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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Saturday, May 21, 2011

२० वीं पुण्य तिथि पर :राजीव गाँधी की मौत - किसका बदला? फ़ायदा किसको?




भारत के सातवें प्रधान मंत्री स्व राजीव रत्न गाँधी ( २० अगस्त,१९४४- २१ मई,१९९१) की आज २०वीं पुण्य तिथि है. मुझे आज भी वह मनहूस रात याद है जब Gwyer Hall हॉस्टल में अपने साथी हरेन्द्र सिंह के कमरें में हम बातें कर रहे थे और बार बार कुत्ते की रोने की आवाज़ आ रही थी. मैंने कहा भी की कोई अपशकुन लग रहा है और इस बीच रेडियो पर खबर आई की एक बम विस्फोट में राजीव गाँधी मारें गए. बहुत दुःख हुआ. भागे भागे कामन रूम में टी वी पर खबर देखने पंहुच गए.
३१ अक्तूबर, १९८४ में श्रीमती इंदिरा गाँधी की दुखद मृत्यु के बाद वे प्रधान मंत्री बने थे. राजीव जी से उनके प्रधान मंत्रित्व काल में दो बार मिला था. उनसे बहुल प्रभावित भी था. ४० वर्ष में वे इस देश के सबसे कम उम्र के युवा प्रधान मंत्री थे. जिस समय उनकी असमय मृत्यु हुई वे ४६ वर्ष के थे. परन्तु मध्य १९८७ में जब बोफोर्स कांड सामने आया तो एक इमानदार, युवा और भ्रष्टाचार से लड़ने वाले नेता की उनकी छवि को धक्का पहुंचा. और १९८९ का आम चुनाव वे हार गए. १९९१ के चुनाव प्रचार के समय ही LTTE के आतंकवादियों ने श्रीलंका में भारतीय फ़ौज के दखलंदाजी का बदला लेने के लिए मानव बम से उन्हें उड़ा दिया.
१९९१ में जब कांग्रेस के सहयोग से विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को गिरा कर चंद्रशेखर जी प्रधान मंत्री बने तो लगा की इतिहास दोहराया जा रहा है. हुआ यह था की १९८० में ठीक इसी तरह कांग्रेस के सहयोग से मोरारजी भाई के सरकार को गिरा कर चौ चरण सिंह प्रधान मंत्री बने थे. लेकिन इतिहास एक और तरह से दोहराया गया - जैसे ६ महीने बाद इंदिरा जी चौ साहेब की सरकार से समर्थन वापस ले लीं थीं, वैसा ही कुछ होने वाला था जिसकी उम्मीद चंद्रशेखर जी ने नहीं की थी. संसद में चंद्रशेखर जी की सरकार पर लगे अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होने था, और कांग्रेसी सांसद राजीव जी के इशारे पर सांसद से गायब थे. चंद्रशेखर जी और उनके सलाहकार भाग दौड़ में लगे थे. चंद्रशेखर जी इस बीच संसद में जाकर अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी. माना गया की चंद्रशेखर जी ने इसे दिल पर लिया.
अब प्रश्न उठता है क्या राजीव जी की असमय मौत और क़त्ल सिर्फ LTTE का बदला था या और लोगों का बदला ? वैसे फ़ायदा किसका? LTTE से जुड़े चंद्रशेखर जी के साथी चंद्रा स्वामी और पी वी नरसिम्हाराव ( जो संयोग से राजीव जी की मृत्यु उपरांत कांग्रेस को मिली बढ़त के दम पर प्रधान मंत्री बने) से कई सवाल उठे हैं जिनका जवाब अभी तक मिला नहीं है.

Thursday, May 19, 2011

क्या आप राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे रहते हैं ? राजमार्ग यानि ग्रामीणों के लिए फंदा और मकरजाल.



राजमार्ग यानि ग्रामीणों के लिए फंदा और मकरजाल.
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण , इस देश में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मार्ग बनाने तथा जनसाधारण के जीवन स्तर में व्यापक सुधार लाने हेतु अपने क्रियाकलाप में व्यस्त है. प्राधिकरण अपने उद्देश्य के बारे में कहती है कि "To meet the nation’s need for the provision and maintenance of National Highways network to global standards and to meet user’s expectations in the most time bound and cost effective manner, within the strategic policy framework set by the Government of India and thus promote economic well being and quality of life of the people."

परन्तु कुछ बातें गले से नहीं उतरती. जिन लोगों के ज़मीन से ये सडकें गुजरती हैं, उस सड़क का प्रयोग के लिए उन्हें कम से कम १० की मी का चक्कर लगाना पड़ता है. टी वी में इस विषय पर एक प्रतिक्रिया देख रहा था. श्री झा कह रहे थे की सड़क किनारे की मेरी ज़मीन इस राजमार्ग के लिए ले ली गयी, मुआवजा तो मिला लेकिन सरकारी रेट पर, और चूकी राजमार्ग लगभग ६ से ८ फीट ऊँची है तो उसका प्रयोग तो दूर उसके पर अपने लोगों से मिलने जाने के लिए गाड़ी को ८ से १० की मी का चक्कर लगाना पड़ता है. जिस कालेज में मैं पढाता हूँ वहां भी येही स्तिथि है. दिल्ली से सोनीपत, चंडीगढ़ राजमार्ग पर अपने कालेज जाने के लिए या तो मैं राजमार्ग का इस्तेमाल नहीं करूँ या फिर लगभग २ की मी आगे जा कर वापस आना पड़ता है.
और टोल (Toll) का क्या किस्सा है, यह बताने वाला कोई नहीं. कितना सरकार को प्राप्त हो चूका और लोगों से फिर भी उसूला जा रहा है. मैं दिल्ली से अजमेर गया और मैंने ३७५ रूपये टोल दिए. भट्टा -परसौल प्रकरण पर मेरे एक सहयोगी कह रहे थे कि गौड़ साहब ( जे पी ग्रुप के मालिक) को नॉएडा एक्सप्रेस वे का ९९ साल का लीज है. वे सरकार से अलग भी किसानो को पैसे बाँट सकते हैं. कहने का अर्थ है कि इतना रुपया फायदा होगा कि उनके कई पुश्त ऐश करंगे! और ये पैसे कि आमदनी अधिकतर टोल से ही होना है!!
कहने का अर्थ यह है की विकास के नाम पर आम आदमी और साधारण जगहों से सरकारी योजनाकारों को कोई सरोकार नहीं. दरअसल सांसदों का हाल भी यह है की अफसर उनसे सलाह वगैरह करना भी तौहीनी समझते हैं. क्यों नहीं राजमार्ग के किनारे बसने वाले और इस समस्या से पीड़ित जनसाधारण इस विषय पर ज़मीन अधिग्रहण नीति में सारकार को सुझाव दें? शायद जनता की बात सुन ली जाये.

Saturday, May 14, 2011

भूमि अधिग्रहण रुकने की एक कहानी.



मुहाजिर हैं मगर एक दुनिया छोड़ आए हैं
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं
अब अपनी जल्दबाजी पर बोहत अफ़सोस होता है
कि एक खोली की खातिर राजवाड़ा छोड़ आए हैं


भूमि अधिग्रहण से जुड़े किसानो की समस्या और डर को मैं बखूबी समझता हूँ , और जब मुझे राष्ट्रीय जनता दल के कुछ साथियों से पता चला की रेल मंत्री के हैसियत से लालू प्रसाद जी मधेपुरा के नकदीक मेरे पैत्रिक गाँव मुरहो में ही एक रेल फैक्ट्री बनाये जाने की घोषणा करेंगे तो मुझे ख़ुशी से ज्यादा शंकाओं ने घेर लिया. एक तो यह इलाका सघन बस्तियों से भरा हुआ है और ज़मीन उपजाऊ है. मधेपुरा के आस पास ही ऐसे इलाके थे जहाँ ज़मीन भी कम उपजाऊ है और जहाँ एक बड़े इलाके में ईट भट्टियों का बहुतायत है. वैसे यह ध्यान देने योग्य है की मेरा गाँव मुरहो यादवों के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. मेरे परदादा जी स्व रासबिहारी लाल मंडल ने सन १९११ में येहीं से अखिल भारतीय गोप जातीय (बाद में यादव) महासभा की स्थापना की थी जिसमें पूरे हिंदुस्तान से कई प्रमुख यादव नेताओं ने हिस्सा लिया था. स्व रासबिहारी लाल मंडल के बड़े पुत्र भुब्नेश्वरी प्रसाद मंडल १९२४ में भागलपुर क्षेत्र से बिहार-उड़ीसा विधान परिषद् के सदस्य थे और १९४८ में मृत्यु तक भागलपुर लोकल बोर्ड के अध्यक्ष थे. दुसरे पुत्र कमलेश्वरी प्रसाद मंडल १९३७ में बिहार विधान परिषद् के सदस्य थे और स्वंतंत्रता संग्राम में अपना योगदान देते हुए जयप्रकाश नारायण के साथ हज़Iरीबाघ जेल में कई दिनों तक बंद थे. सबसे छोटे पुत्र बी पी मंडल बिहार के मुख्य मंत्री एवं भारत सरकार के पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष थे जिसे मंडल आयोग भी कहा जाता है. और भी कई लोगों का योगदान कई तरह से है. मुझे यह शंका था की यहाँ फैक्ट्री लगाने का मतलब था की गाँव के वजूद ही समाप्त हो जाता. साथ ही कई लोगों का घर-द्वार, मंदिर-मस्जिद, और खेत-खलियान सभी समाप्त हो जाते. दुःख की बात थी की सामाजिक न्याय के प्रणेता स्व बी पी मंडल की समाधी भी अधिग्रहित होती और पिछड़े वर्गों के सम्मान का एक प्रतीक मटिया-मेट हो जाता.
मैं और मेरे साथियों ने बैठक कर लालू प्रसाद जी को ज्ञापन दिया की फैक्ट्री के स्थान में परिवर्तन किया जाय. इधर सूचना के अधिकार से रेल मंत्रालय से मुझे जानकारी मिली की मेरे शंका निराधार नहीं थे. मुरहो गाँव के लगभग सभी क्षेत्र का अधिग्रहण होना था, और जून २००७ को हमIरे धरना के बाद स्व बी पी मंडल जी का समाधी स्थल को छोड़ दिया गया था. यह भी एक संयोग था की इस नक़्शे के अनुसार मेरा घर व ज़मीन अधिग्रहण क्षेत्र में नहीं थे. फिर आन्दोलन का दौर शुरू हुआ. मैं बार बार यह कह रहा था कि रेल मंत्रालय भूमि अधिग्रहण करेगा और उसे निजी हांथों में सौंप देगा, फिर फैक्ट्री बने या नए ज़मींदारों कि जागीर वे जाने!(मेरी यह आशंका भी अब सही साबित हो रही है). इधर अफवाह यह थी क़ी सरकार २७ लाख प्रति एकड़ का भुगतान करेगी, जबकि सच्चाई यह थी क़ी २लIख ७० हज़ार रूपये प्रति एकड़ ही दिया जाना था. पूरे प्रकरण में मीडिया का साथ रहा. सहारा समय टी वी ने मुरहो से भूमि अधिग्रहण पर ३० जनवरी,२००८ को एक ज़ोरदार कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया, जिसका शीर्षक था - 'मंडल पर वार'. इस कार्यक्रम में लगभग १५० ग्रामीण ने हिस्सा लिया और सभी ने एक स्वर में इस अधिग्रहण का विरोध किया. शायद लालू जी तक मेसेज पहुँच गया. अंततः रेल मंत्रालय ने अधिग्रहण क्षेत्र दूसरे जगह बदले जाने की घोषणा क़ी.
दिनांक १४ जुलाई,2008 को इस फैसले पर मैंने लालू प्रसाद जी को धन्यवाद् देते हुए कुछ सुझाव प्रस्तुत किये. मैंने अपने ज्ञापन में लिखा -
"आपसे सादर निम्नलिखित निवेदन कर रहा हूँ, जिस पर आशा करता हूँ क़ी सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे -
१. रेल इंजन कारखाना हेतु भूमि अधिग्रहण को कम से कम किये जाने का प्रावधान करने क़ी कृपा जाये.(९०० एकड़ का प्रस्ताव था).
२. भूमि अधिग्रहण के कवायद में कम से कम कृषि योग्य भूमि, घरों, मंदिर, मस्जिद को नुकसान पहुंचे.
३. अधिग्रहण किये गए भूमि का अधिक से अधिक बाज़ार भाव के मूल्य पर मुआवजा दिया जाये. मुआवजा पूर्णतः नगद न होकर बांड के माध्यम से किये जाने का प्रावधान किया जाये.
४. जिनकी भूमि का अधिग्रहण हो उनके परिवार जनों को उनके योग्यता के अनुरूप रेलवे द्वारा नौकरी दिया जाये.
५. अगर किसी कारण वस् कारखाना शुरू न हो सके अथवा किसी समय बंद हो तो इसे वापस भूस्वामियों को देने का एकरारनामा किया जाये.
......................................सेज के अंतर्गत किसानो के कृषि योग्य भूमि अधिग्रहण किये जाने के विवाद में भी एक उचित दिशा-निर्देश देंगे."

लालू जी तो मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिए थे परन्तु मायावती जी के राज में उत्तर प्रदेश शासन ने अपने प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून में इन बातों को रखा है.
किसानो के लिए न कोई दल न तथाकथित सिविल सोसाइटी के स्वयंभू नुमाइंदे कोई अव्वाज़ उठा रहे हैं. दरअसल राजनीति में उद्योग जगत के दलालों का बोल-बाला है और राजनीती दलालों का अड्डा बन गया है. ऐसी स्तिथि में आगे क्या होता है, क्या केंद्र सरकार १८९४ के भूमि अधिग्रहण कानून के जगह नई कानून संसद के अगले सत्र में लाते हैं कि नहीं और उसका स्वरुप क्या होगा, यह देखनI दिलचस्प होगा.

Sunday, May 8, 2011

Change the land acquisition act.




Remembering that Former Prime Minister V P Singh had strongly advocated for changing the existing land acquisition Act, in the backdrop of a series of farmers' protests over land acquisition for setting up industrial units in different parts of India, he had said,"I want the Land Acquisition Act 1894 changed in this Parliament session commencing shortly as it was detrimental to the interest of the farmers,". He told farmers of Kisan Manch at his residence before they had left for Raj Ghat, where they held a meeting against the Act.He claimed that the Act, of late, has started giving benefits to industrialists at the cost of interest of the poor farmers.
The Land Acquisition Act of 1894 is a law in India that allows the government to acquire private land.
“Land Acquisition” literally means acquiring of land for some public purpose by government/government agency, as authorised by the law, from the individual landowner(s) after paying a government fixed compensation in lieu of losses incurred by land owner(s) due to surrendering of his/their land to the concerned government agency.
The land acquisition act of 1894 was created with the expressed purpose of facilitating the government’s acquisition of privately held land for public purposes. The word "public purpose", as defined in the act, refers to the acquisition of land for putting up educational institutions or schemes such as housing, health or slum clearance, apart from the projects for rural planning or formation of sites. The word "government" refers to the central government if the purpose for acquisition is for the union and for all other purposes it refers to the state government. It is not necessary that all the acquisition has to be initiated by the government alone. Local authorities, societies registered under the societies registration act, 1860 and co-operative societies established under the co-operative societies act can also acquire the land for developmental activities through the government.
People did not protest when the land acquired under the Act were used for setting up schools, hospital and canals, but nowadays the legislation is being misused to benefit industrial houses.
While the government, under World bank influence says that market forces should be allowed to prevail, then why shouldn't negotiation on compensation and price be held with farmers directly? Even Shri Singh had said that people interested to buy agriculture land for development should approach the farmers directly and strike a bargain rather the governments.
Will Government ever acquire Tata's Iron, Birla's Cement and Reliance power & gas for public purpose and 'development' without due compensation?
Why great injustice to farmers - not even being given due compensation ?
Dadri, Singur, Andhra, Jaitpur, Greater Noida story continues. When will the Kisans unite, when will this end?

Another skeleton in BJP cupboard! HUDCO Scam!!


TO CBI RTI may help explain why agency closed probe.

he Right to Information Act may help to unveil the mystery behind the Central Vigilance Commission proposing and the CBI disposing in the R1,300-crore HUDCO scam.
The Central Information Commission this week directed the CBI to provide the inquiry report on closing investigation in four cases where the CVC found “adequate evidence of paying bribes“ to mobilise funds from Housing and Urban Development Corporation (HUDCO) in 2006.

The CBI had closed the case saying there was not enough evidence to proceed with the probe.
This had resulted in the housing and urban development ministry submitting a closure report in Supreme Court in 2007.

Howz'zat Mr Ananth Kumar, the great 'cleansing' minister of NDA regime, who did not leave any chance to cleanse money which will not be called by BJP as bribe. So, skeletons from BJP cupboard are coming out and they will have to do much soul-searching and cleansing!

Monday, May 2, 2011

Osama bin Mohammed bin Awad bin Laden - Facts & Lessons India should learn.


Osama bin Mohammed bin Awad bin Laden (Arabic: أسامة بن محمد بن عوض بن لادن‎, ʾUsāmah bin Muḥammad bin ʿAwaḍ bin Lādin; March 10, 1957 – May 2, 2011, was a member of the wealthy Saudi bin Laden family and the founder of the jihadistorganization al-Qaeda, responsible for the September 11 attacks on the United States and numerous other mass-casualtyattacks against civilian and military targets.
Osama bin Laden was on the American Federal Bureau of Investigation's lists of Ten Most Wanted Fugitives and Most Wanted Terrorists for his involvement in the 1998 US embassy bombings.

1- Osama bin Laden was born in Riyadh, Saudi Arabia. In a 1998 interview, he gave his birth date as March 10, 1957
2- His father, Muhammed bin Laden, was killed in 1967 in an airplane crash in Saudi Arabia when his American pilot misjudged a landing.
3- According to CNN national security correspondent David Ensore, as of 2002 bin Laden had married four women and fathered roughly 25 or 26 children.
4- Capturing Osama bin Laden has been an objective of the United States government since the presidency of Bill Clinton.
5- The Taliban refused to extradite Osama Bin Laden. It wasn’t until after the bombing of Afghanistan began in October 2001 that the Taliban finally did offer to turn over Osama bin Laden to a third-party country for trial, in return for the US ending the bombing and providing evidence that Osama bin Laden was involved in the 9/11 attacks. This offer was rejected by George W Bush stating that this was no longer negotiable with Bush responding that “There’s no need to discuss innocence or guilt. We know he’s guilty.”
6- October 2009: An article in the British tabloid Daily Mail points out that the theory that Bin Laden died in 2001 “is gaining credence among political commentators, respected academics and even terror experts” and notes that the mounting evidence that supports the claim makes the theory “worthy of examination”.
7- On October 18, 2010, an unnamed NATO official suggested that bin Laden is “alive and well and living comfortably” in Pakistan, protected by elements of the country’s intelligence services. A senior Pakistani official denied the allegations and said they were designed to put pressure on the Pakistani government ahead of talks aimed at strengthening ties between Pakistan and the United States.
He was believed to be hiding near the border between Afghanistan and Pakistan'sFederally Administered Tribal Areas with fellow al-Qaeda leaders, however, he was discovered hiding in a million-dollar three-story mansion in Abbottabad, Pakistan.
On May 2, 2011, Osama bin Laden was killed in Abbottabad, Pakistan in an operation conducted by a small group of American military forces and the Central Intelligence Agency.

Who knows if we will ever find out if he is in fact dead or alive.

We take note with grave concern that part of the statement in which President Obama said that the fire fight in which Osama Bin Laden was killed took place in Abbotabad “deep inside Pakistan”. This fact underlines our concern that terrorists belonging to different organisations find sanctuary in Pakistan. We believe that the perpetrators of the Mumbai terror attack, including the controllers and handlers of the terrorists who actually carried out the attack, continue to be sheltered in Pakistan. We once again call upon the Government of Pakistan to arrest the persons whose names have been handed over to the Interior Minister of Pakistan as well as provide voice samples of certain persons who are suspected to be among the controllers and handlers of the terrorists.