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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Wednesday, August 28, 2013

श्री कृष्ण


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संक्षिप्त परिचय -
श्री कृष्ण
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अन्य नाम - द्वारिकाधीश, केशव, गोपाल, नंदलाल, बाँके बिहारी, कन्हैया, गिरधारी, मुरारी आदि
अवतार - सोलह कला युक्त पूर्णावतार (विष्णु)
वंश - गोत्र वृष्णि वंश (चंद्रवंश)
कुल - यदुकुल
पिता - वसुदेव
माता - देवकी
पालक पिता - नंदबाबा
पालक माता -यशोदा
जन्म विवरण - भादों कृष्णा अष्टमी
समय-काल - महाभारत काल
परिजन - रोहिणी बलराम (भाई), सुभद्रा (बहन), गद (भाई)
गुरु - संदीपन, आंगिरस
विवाह - रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, मित्रविंदा, भद्रा, सत्या, लक्ष्मणा, कालिंदी
संतान - प्रद्युम्न
विद्या पारंगत - सोलह कला, चक्र चलाना
रचनाएँ - गीता
शासन-राज्य - द्वारिका
संदर्भ ग्रंथ महाभारत, भागवत, छान्दोग्य उपनिषद
मृत्यु - पैर में तीर लगने से
यशकीर्ति - द्रौपदी के चीरहरण में रक्षा करना। कंस का वध करके उग्रसेन को राजा बनाना।
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मैं कोई धार्मिक विवेचन न करना जनता हूँ और न ही भगवान को मानने के लिए किसी को कहता हूँ। और न मैं कहता हूँ की मेरे हैं गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई। पर श्री कृष्ण मेरे अराध्य देवों में एक ज़रूर हैं।

और आज जन्माष्टमी पर मेरे कुछ फेसबुकिया साथी श्री कृष्ण पर टिप्पणी कर रहें हैं जो इस मुहावरे को चरितार्थ करता है कि अधजल गगरी छलकत जाये। कोई गीता के ज्ञान को अपूर्ण मानते हुए अपनी अलग व्यख्या दे रहें हैं। उनको यही कहना चाहूँगा कि थोडा ज्ञान रखने से अच्छा अज्ञानी ही रहना है।

श्री कृष्ण को जानने और समझने के लिए एक जन्म काफी नहीं है। सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं। कृष्ण हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार माने जाते हैं ।
ऐतिहासिक अनुसंधानों के आधार पर श्रीकृष्ण का जन्म लगभग 1500 ई.पू. माना जाता है, जो कि अनुचित है। हिंदू काल गणना अनुसार आज से लगभग 5235 वर्ष पूर्व कृष्ण का जन्म हुआ था।

श्रीकृष्ण साधारण व्यक्ति न होकर युग पुरुष थे। उनके व्यक्तित्व में भारत को एक प्रतिभासम्पन्न राजनीतिवेत्ता ही नही, एक महान कर्मयोगी और दार्शनिक प्राप्त हुआ, जिसका गीता- ज्ञान समस्त मानव-जाति एवं सभी देश-काल के लिए पथ-प्रदर्शक है। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।
कृष्ण पूर्ण योगी और योद्धा थे। यमुना के तट पर और यमुना के ही जंगलों में गाय और गोपियों के संग-साथ रहकर बाल्यकाल में कृष्ण ने पूतना, शकटासुर, यमलार्जुन, कलिय-दमन, प्रलंब, अरिष्ट आदि का संहार किया तो किशोरावस्था में बड़े भाई बलदेव के साथ कंस का वध किया और फिर नरकासुर वध ।

यहाँ बताना चाहूँगा की माना जाता है की भगवान कृष्ण को १६,१०८ पत्नियाँ थीं. दरअसल राजकन्याओं से विवाहोपरांत उनकी सिर्फ ८ पत्नियाँ थी। १६,१०० वे थीं जिन्हें नरकासुर का वध करके भगवान कृष्ण ने आज़ाद किया था। उन्हें कहीं जाने को नहीं था, और समाज में प्रतिष्ठता से रह सकें, तो उनके आग्रह पर कृष्ण ने अपने महल में उन्हें पनाह दिए, परन्तु कोई शारीरिक संपर्क नहीं रहा।

देवता के रूप में कृष्ण की पूजा, बाल कृष्ण गोपाल या वासुदेव के रूप में 4 शताब्दी ई.पू. से देखा जा सकता है। 10 वीं सदी ई. से, कृष्ण कला और क्षेत्रीय परंपराओं के प्रदर्शन में एक पसंदीदा विषय बन गए और फिर ओडिशा में भगवान जगन्नाथ, राजस्थान में श्रीनाथजी, महाराष्ट्र में विठोबा के रूप में कृष्ण के रूपों के लिए भक्ति का विकास हुआ। International Society for Krishna Consciousness के कारण1960 के दशक के बाद से कृष्ण की पूजा भी पश्चिम में फैल गया है।

कृष्ण युग पुरुष भी थे और योगी भी इसलिए योगेश्वर कहलाये। वास्तव में कृष्ण जी दो प्रकार के योग में पारंगत थे। पहला तो वहीँ महान पवित्र योग और द्वितीय भृष्ट योग। प्रथम योग के द्वारा जो कि पूर्ण सत्य पर आधारित होता है, भगवान कृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को विराट रूप दिखाया था। यह रूप कोई भी महान योगी दिखा सकता है. जिसमें वह अपने शरीर में ही पूरे ब्रह्माण्ड के दर्शन करा देता है। द्रोपदी को दुर्वासा क्र श्राप से बचने के लिए जब कृष्ण ने पतीले से एक शेष चावल का दाना ढूंढ़ कर निकाला और उसे खा लिया. और डकार लेते हुए बोले कि अब मेरी भूख शांत होने वाली है। तब भृष्ट योग के द्वारा उन्होंने उस चावल का प्रभाव उन आगंतुकों पर डाला और उनका पेट भी भर गया।

योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने योग की शिक्षा और दिक्षा उज्जैन स्थित महर्षि सांदिपनी के आश्रम में रह कर हासिल की थी। वह योग में पारगत थे तथा योग द्वारा जो भी सिद्धियाँ स्वत: की प्राप्य थी उन सबसे वह मुक्त थे। सिद्धियों से पार भी जगत है वह उस जगत की चर्चा गीता में करते है। गीता मानती है कि चमत्कार धर्म नहीं है। बहुत से योगी योग बल द्वारा जो चमत्कार बताते है योग में वह सभी वर्जित है। सिद्धियों का उपयोग प्रदर्शन के लिए नहीं अपितु समाधि के मार्ग में आ रही बाधा को हटाने के लिए है। गीता में कर्म योग का बहुत महत्व है। गीता में कर्म बंधन से मुक्ति के साधन बताएँ हैं। कर्मों से मुक्ति नहीं, कर्मों के जो बंधन है उससे मुक्ति। कर्म बंधन अर्थात हम जो भी कर्म करते हैं उससे जो शरीर और मन पर प्रभाव पड़ता है उस प्रभाव के बंधन से मुक्ति आवश्यक है।

कृष्ण को ईश्वर मानना अनुचित है, किंतु इस धरती पर उनसे बड़ा कोई ईश्वर तुल्य नहीं है, इसीलिए उन्हें पूर्ण अवतार कहा गया है। कृष्ण ही गुरु और सखा हैं। कृष्ण ही भगवान है अन्य कोई भगवान नहीं। कृष्ण हैं राजनीति, धर्म, दर्शन और योग का पूर्ण वक्तव्य। कृष्ण को जानना और उन्हीं की भक्ति करना ही हिंदुत्व का भक्ति मार्ग है। अन्य की भक्ति सिर्फ भ्रम, भटकाव और निर्णयहीनता के मार्ग पर ले जाती है। भजगोविंदम मूढ़मते।

कालिया नाग :
कदंब वन के समीप एक नाग जाति का व्यक्ति रहता था, जिसे पुराणों ने नाग ही घोषित कर दिया। उक्त व्यक्ति बालक कृष्ण के द्वार पर आ धमका था। जबकि घर में कोई नहीं था, लेकिन बलशाली कृष्ण ने उक्त व्यक्ति को तंग कर वहाँ से भगा दिया। इसी प्रकार वहीं ताल वन में दैत्य जाति का धनुक नाम का अत्याचारी व्यक्ति रहता था जिसे बलदेव ने मार डाला था। उक्त दोनों घटना के कारण दोनों भाइयों की ख्‍याति फैल गई थी।

गोवर्धन पूजा -
गोकुल के गोप प्राचीन-रीति के अनुसार वर्षा काल बीतने और शरद के आगमन के अवसर पर इन्द्र देवता की पूजा किया करते थे। इनका विश्वास था कि इन्द्र की कृपा के कारण वर्षा होती है, जिसके परिणामस्वरूप पानी पड़ता है। कृष्ण और बलराम ने इन्द्र की पूजा का विरोध किया तथा गोवर्धन (धरती माँ, जो अन्न और जल देती है) की पूजा का अवलोकन किया। इस प्रकार एक ओर कृष्ण ने इन्द्र के काल्पनिक महत्त्व को बढ़ाने का कार्य किया, दूसरी और बलदेव ने हल लेकर खेती में वृद्धि के साधनों को खोज निकाला। पुराणों में कथा है कि इस पर इन्द्र क्रुद्ध हो गया और उसने इतनी अत्यधिक वर्षा की कि हाहाकार मच गया। किन्तु कृष्ण ने बुद्धि-कौशल के गिरि द्वारा गोप-गोपिकाओं, गौओं आदि की रक्षा की। इस प्रकार इन्द्र-पूजा के स्थान पर अब गोवर्धन पूजा की स्थापना की गई।

कंस-वध
कृष्ण-बलराम का नाम मथुरा में पहले से ही प्रसिद्ध हो चुका था। उनके द्वारा नगर में प्रवेश करते ही एक विचित्र कोलाहल पैदा हो गया। जिन लोगों ने उनका विरोध किया वे इन बालकों द्वारा दंडित किये गये। ऐसे मथुरावासियों की संख्या कम न थी जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृष्ण के प्रति सहानुभूति रखते थे। इनमें कंस के अनेक भृत्य भी थे, जैसे सुदाभ या गुणक नामक माली, कुब्जा दासी आदि।
कंस के शस्त्रागार में भी कृष्ण पहुंच गये और वहाँ के रक्षक को समाप्त कर दिया। इतना करने के बाद कृष्ण-बलराम ने रात में संभवत: अक्रूर के घर विश्राम किया। अन्य पुराणों में यह बात निश्चित रूप से ज्ञात नहीं हो पाती कि दोनों भाइयों ने रात कहाँ बिताई। कंस ने ये उपद्रवपूर्ण बातें सुनी। उसने चाणूर और मुष्टिक नामक अपने पहलवानों को कृष्ण-बलराम के वध के लिए सिखा-पढ़ा दिया। शायद कंस ने यह भी सोचा कि उन्हें रंग भवन में घुसने से पूर्व ही क्यों न हाथी द्वारा कुचलवा दिया जाय, क्योंकि भीतर घुसने पर वे न जाने कैसा वातावरण उपस्थित कर दें। प्रात: होते ही दोनों भाई धनुर्याग का दृश्य देखने राजभवन में घुसे। ठीक उसी समय पूर्व योजनानुसार कुवलय नामक राज्य के एक भयंकर हाथी ने उन पर प्रहार किया। दोनों भाइयों ने इस संकट को दूर किया। भीतर जाकर कृष्ण चाणूर से और बलराम मुष्टिक से भिड़ गये। इन दोनों पहलवानों को समाप्त कर कृष्ण ने तोसलक नामक एक अन्य योद्धा को भी मारा। कंस के शेष योद्धाओं में आतंक छा जाने और भगदड़ मचने के लिए इतना कृत्य यथेष्ट था। इसी कोलाहल में कृष्ण ऊपर बैठे हुए कंस पर झपटे और उसको भी कुछ समय बाद परलोक पहुँचा दिया। इस भीषण कांड के समय कंस के सुनाम नामक भृत्य ने कंस को बचाने की चेष्टा की। किन्तु बलराम ने उसे बीच में ही रोक उसका वध कर डाला।
अपना कार्य पूरा करने के उपरांत दोनो भाई सर्वप्रथम अपने माता-पिता से मिले। वसुदेव और देवकी इतने समय बाद अपने प्यारे बच्चों से मिल कर हर्ष-गदगद हो गये। इस प्रकार माता-पिता का कष्ट दूर करने के बाद कृष्ण ने कंस के पिता उग्रसेन को, जो अंधकों के नेता थे, पुन: अपने पद पर प्रतिष्ठित किया। समस्त संघ चाहता था कि कृष्ण नेता हों, किन्तु कृष्ण ने उग्रसेन से कहा:- "मैनें कंस को सिंहासन के लिए नहीं मारा है। आप यादवों के नेता हैं । अत: सिंहासन पर बैठें।"

जरासंध वध -
पुराणों के अनुसार जरासंध ने अठारह बार मथुरा पर चढ़ाई की। सत्रह बार यह असफल रहा। अंतिम चढ़ाई में उसने एक विदेशी शक्तिशाली शासक कालयवन को भी मथुरा पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। कृष्ण बलराम को जब यह ज्ञात हुआ कि जरासंध और कालयवन विशाल फ़ौज लेकर आ रहे हैं तब उन्होंने मथुरा छोड़कर कहीं अन्यत्र चले जाना ही बेहतर समझा।
अब समस्या थी कि कहाँ जाया जाय? यादवों ने इस पर विचार कर निश्चय किया कि सौराष्ट्र की द्वारकापुरी में जाना चाहिए। यह स्थान पहले से ही यादवों का प्राचीन केन्द्र था और इसके आस-पास के भूभाग में यादव बड़ी संख्या में निवास करते थे। ब्रजवासी अपने प्यारे कृष्ण को न जाने देना चाहते थे और कृष्ण स्वयं भी ब्रज को क्यों छोड़ते? पर आपत्तिकाल में क्या नहीं किया जाता? कृष्ण ने मातृभूमि के वियोग में सहानुभूति प्रकट करते हुए ब्रजवासियों को कर्त्तव्य का ध्यान दिलाया और कहा-
'जरासंध के साथ हमारा विग्रह हो गया है दु:ख की बात है। उसके साधन प्रभूत है। उसके पास वाहन, पदाति और मित्र भी अनेक है। यह मथुरा छोटी जगह है और प्रबल शत्रु इसके दुर्ग को नष्ट करना चाहता है। हम लोग यहाँ संख्या में भी बहुत बढ़ गये हैं, इस कारण भी हमारा इधर-उधर फैलना आवश्यक है।'
इस प्रकार पूर्व निश्चय के अनुसार उग्रसेन, कृष्ण, बलराम आदि के नेतृत्व में यादवों ने बहुत बड़ी संख्या में मथुरा से प्रयाण किया और सौराष्ट्र की नगरी द्वारावती में जाकर बस गये। द्वारावती का जीर्णोद्वार किया गया और उससे बड़ी संख्या में नये मकानों का निर्माण हुआ। मथुरा के इतिहास में महाभिनिष्क्रमण की यह घटना बड़े महत्त्व की है। यद्यपि इसके पूर्व भी यह नगरी कम-से-कम दो बार ख़ाली की गई थी-पहली बार शत्रुध्न-विजय के उपरांत लवण के अनुयायिओं द्वारा और दूसरी बार कंस के अत्याचारों से ऊबे हुए यादवों द्वारा, पर जिस बड़े रूप में मथुरा इस तीसरे अवसर पर ख़ाली हुई वैसे वह पहले कभी नहीं हुई थी। इस निष्क्रमण के उपरांत मथुरा की आबादी बहुत कम रह गई होगी। कालयवन और जरासंध की सम्मिलित सेना ने नगरी को कितनी क्षति पहुँचाई, इसका सम्यक पता नहीं चलता। यह भी नहीं ज्ञात होता कि जरासंध ने अंतिम आक्रमण के फलस्वरूप मथुरा पर अपना अधिकार कर लेने के बाद शूरसेन जनपद के शासनार्थ अपनी ओर से किसी यादव को नियुक्त किया अथवा किसी अन्य को। परंतु जैसा कि महाभारत एवं पुराणों से पता चलता है, कुछ समय बाद ही श्री कृष्ण ने बड़ी युक्ति के साथ पांडवों की सहायता से जरासंध का वध करा दिया। अत: मथुरा पर जरासंध का आधिपत्य अधिक काल तक न रह सका।
कुछ समय बाद युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ की तैयारियाँ आरंभ कर दी। और आवश्यक परामर्श के लिए कृष्णा को बुलाया। कृष्ण इन्द्रप्रस्थ आये और उन्होंने राजसूय यज्ञ के विचार की पुष्टि की। उन्होंने यह सुझाव दिया कि पहले अत्याचारी शासकों को नष्ट कर दिया जाय और उसके बाद यज्ञ का आयोजन किया जाय। कृष्ण ने युधिष्ठिर को सबसे पहले जरासंध पर चढ़ाई करने की मन्त्रणा दी। तद्नुसार भीम और अर्जुन के साथ कृष्ण रवाना हुए और कुछ समय बाद मगध की राजधानी गिरिब्रज पहुँच गये। कृष्ण की नीति सफल हुई और उन्होंने भीम के द्वारा मल्लयुद्ध में जरासंध को मरवा डाला। जरासंध की मृत्यु के बाद कृष्ण ने उसके पुत्र सहदेव को मगध का राजा बनाया। फिर उन्होंने गिरिब्रज के कारागार में बन्द बहुत से राजाओं को मुक्त किया। इस प्रकार कृष्ण ने जरासंध-जैसे महापराक्रमी और क्रूर शासक का अन्त कर बड़ा यश पाया। जरासंध के पश्चात पांडवों ने भारत के अन्य कितने ही राजाओं को जीता।

शिशुपाल वध -
अब पांडवों का राजसूय यज्ञ बड़ी धूमधाम से आरम्भ हुआ। ब्रह्मचारी भीष्म ने कृष्ण की प्रशंसा की तथा उनकी `अग्रपूजा` करने का प्रस्ताव किया। सहदेव ने सर्वप्रथम कृष्णको अर्ध्यदान दिया। चेदि-नरेश शिशुपाल कृष्ण के इस सम्मान को सहन न कर सका और उलटी-सीधी बातें करने लगा। उसने युधिष्ठिर से कहा कि 'कृष्ण न तो ऋत्विक् है, न राजा और न आचार्य। केवल चापलूसी के कारण तुमने उसकी पूजा की है। शिशुपाल दो कारणों से कृष्ण से विशेष द्वेष मानता था-प्रथम तो विदर्भ कन्या रुक्मिणी के कारण, जिसको कृष्ण हर लाये थे और शिशुपाल का मनोरथ अपूर्ण रह गया था। दूसरे जरासंध के वध के कारण, जो शिशुपाल का घनिष्ठ मित्र था। जब शिशुपाल यज्ञ में कृष्ण के अतिरिक्त भीष्म और पांडवों की भी निंदा करने लगा तब कृष्ण से न सहा गया और उन्होंने उसे मुख बंद करने की चेतावनी दी। किंतु वह चुप नहीं रह सका। कृष्ण ने अन्त में शिशुपाल को यज्ञ में ही समाप्त कर दिया। अब पांडवों का राजसूर्य यज्ञ पूरा हुआ। पर इस यज्ञ तथा पांडवों की बढ़ती हुई साख को देख उनके प्रतिद्वंद्वी कौरवों के मन में विद्वेश की अग्नि प्रज्वलित हो उठी और वे पांडवों को नीचा दिखाने का उपाय सोचने लगे।

महाभारत में यादव -
इस प्रकार कृष्ण भी संधि कराने में असफल हुए। अब युद्ध अनिवार्य हो गया। दोनों पक्ष अपनी-अपनी सेनाएँ तैयार करने लगे। इस भंयकर युद्धग्नि में इच्छा या अनिच्छा से आहुति देने को प्राय: सारे भारत के शासक शामिल हुए। पांडवों की ओर मध्स्य, पंचाल, चेदि, कारूश, पश्चिमी मगध, काशी और कंशल के राजा हुए। सौराष्ट्र-गुजरात के वृष्णि यादव भी पांडवो के पक्ष में रहे। कृष्ण, युयंधान और सात्यकि इन यादवों के प्रमुख नेता थे। ब्रजराम अद्यपि कौरवों के पक्षपाती थे, तो भी उन्होंने कौरव-पांडव युद्ध में भाग लेना उचित न समझा और वे तीर्थ-पर्यटन के लिए चले गये। कौरवों की और शूरसेन प्रदेश के यादव तथा महिष्मती, अवंति, विदर्भ और निषद देश के यादव हुए। इनके अतिरिक्त पूर्व में बंगाल, आसाम, उड़ीसा तथा उत्तर-पश्चिम एवं पश्चिम भारत के बारे राजा और वत्स देश के शासक कौरवों की ओर रहे। इस प्रकार मध्यदेश का अधिकांश, गुजरात और सौराष्ट्र का बड़ा भाग पांडवों की ओर था और प्राय: सारा पूर्व, उत्तर-पश्चिम और पश्चिमी विंध्य कौरवों की तरफ। पांडवों की कुल सेना सात अक्षौहिणी तथा कौरवों की ग्यारह अक्षौहिणी थी।

लेकिन क्या कृष्ण की पूजा सिर्फ हिन्दू करते हैं?

जैन धर्म - जैन धर्म में सबसे ऊंचा स्थान चौबीस तीर्थंकरों हैं। जब कृष्ण को जैन वीरों की सूची में शामिल किया गया तो यह एक समस्या थी क्योंकि वे शांतिवादी नहीं थे। इसे हल करने के लिए बलदेव, वासुदेव और प्रति-वासुदेव की अवधारणा का इस्तेमाल किया गया। जैन महापुरुष की सूची में तिरेसठ शलाकापुरुष थे जिनमें चौबीस तीर्थंकरों और इस त्रय के नौ सेट शामिल थे। इस त्रय में से एक में वासुदेव के रूप में कृष्ण, बलदेव के रूप में बलराम और प्रति-वासुदेव के रूप में जरासंध हैं। वे 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ के चचेरे भाई थे। कृष्ण इनके पास बैठकर इनके प्रवचन सुना करते थे। जैन धर्म ने कृष्ण को उनके त्रैषठ शलाका पुरुषों में शामिल किया है, जो बारह नारायणों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि अगली चौबीसी में कृष्ण जैनियों के प्रथम तीर्थंकर होंगे।
''उन-उन भोगों की कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात पूजते हैं। परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।''-कृष्ण

बौध धर्म - कृष्ण की कहानी बौद्ध धर्म में जातक कथाओं में, वैभव जातक में है, जहाँ कृष्ण को भारत के राजा के रूप में तथा एक राजकुमार और महान विजेता कहा गया है। बौद्ध संस्करण में, कृष्ण को वासुदेव, कान्हा और केशव कहा जाता है, और बड़े भाई बलराम बलदेव है। ये विवरण भागवत पुराण में दी गई कहानी के जैसे लगते हैं।

बहाई धर्म - बहाई कृष्णा को एक "इश्वर की अभिव्यक्ति" मानते हैं जो धीरे - धीरे परिपक्व होते मानवता के लिए पैगम्बर के श्रेणी में एक के रूप में विश्वास करते हैं।
अहमदिया इस्लाम - अहमदिया समुदाय के मानने वाले उनके संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद द्वारा वर्णित इश्वर के महान पैगम्बर के रूप में होने का विश्वास करते है।

कृष्ण का अंत -
आर्यभट्‍ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ। नवीनतम शोधानुसार यह युद्ध 3067 ई. पूर्व हुआ था। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी। तभी से कलियुग का आरम्भ माना जाता है।
कृष्ण जन्म और मृत्यु के समय ग्रह-नक्षत्रों की जो स्थिति थी उस आधार पर ज्योतिषियों अनुसार कृष्ण की आयु 119-33 वर्ष आँकी गई है। उनकी मृत्यु एक बहेलिए के तीर के लगने से हुई थी।
ऐसा माना जाता है की जब महाभारत (३१३८ ईसा पूर्व) के ३६ वर्षों बाद जंगल में व्याध जारा के बाण से कृष्ण घायल हुए तो उन्होंने मृत्युलोक छोड़ कर वैकुण्ठ की ओर प्रस्थान किया। वन में श्रीकृष्ण भूमि पर लेटे थे। उस समय एक व्याघ मृगों को मारने की इच्छा से उधर आ निकला। व्याघ ने दूर से श्रीकृष्ण को मृग समझकर उन पर बाण चला दिया। जब वह पास आया तो पीताम्बरधारी कृष्ण को वहाँ देख भयभीत हो खड़ा रह गया।
तब अर्जुन द्वारका आकर कृष्ण के पौत्रों एवं उनके पत्नियों को हस्तिनापुर ले गए। जब अर्जुन द्वारका छोड़े तब यह भव्य शहर समुद्र में समा गया. महाभारत में अर्जुन ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है -
......प्रकृति द्वारा यह लाया गया था. समुद्र शहर की ओर तेजी से बढ़ा. समुद्र पूरे शहर को निगल गया। मैंने देखा की ख़ूबसूरत भवन एक एक करके जलमग्न हो रहे थे। कुछ ही क्षण में वह स्थल एक शांत झील में परिवर्तित हो गया। शहर का की निशान नहीं था। द्वारका का सिर्फ नाम रह गया, बस उसकी स्मृति रह गयी।
विष्णु पुराण भी द्वारका के समुद्र द्वारा निगले जाने का जिक्र है - जिस दिन श्री कृष्ण संसार छोड़े उसी दिन कलि-युग का आगमन हुआ। समुद्र मेंवृद्धि हुई और सम्पूर्ण द्वारका जलमग्न हो गया।

अंतत: कृष्ण के जीवन के कई उलझे हुए पहलू हैं जिन्हें समझना आसान नहीं है किंतु फिर भी गहन अध्ययन किया जाए तो उनके जीवन की सच्चाई को जाना जा सकता है। परन्तु सबसे है इस युग पुरुष के धार्मिक, अध्यात्मिक और ऐतिहासिक अस्तित्व को अलग अलग करके देखना।



एक राजनैतिक दल आम आदमी पार्टी की अपील मैं देख रहा था जिसमें दिल्ली के कंस कोंग्रेस को चुनाव में वध करने के लिए इस तरह से आह्वान किया गया है -
भ्रष्टाचार और शोषण की राजनीति के खिलाफ धर्मयुद्ध के महानायक 'श्रीकृष्ण' के जन्मदिवस पर शुभकामनाएं. श्री कृष्ण, एक ऐसे आन्दोलनकारी थे जो पूरा जीवन आम आदमी का शोषण करने वाली सत्ता के खिलाफ लडते रहे. उन्होंने कंस की सत्ता को उखाड़ फेंका था, दिल्ली विधानसभा चुनाव राजनीति में बैठे कंस को खत्म करने का एक मौका होगा. इस जन्माष्टमी पर, अपने अंदर बैठे श्रीकृष्ण को जिंदा कीजिए और आम आदमी पार्टी को वोट देने का संकल्प लीजिए दीजिए.
हरे कृष्ण।

Monday, August 19, 2013

बदला - धमहरा स्टेशन हादसा : हमारे लोगों की दुखद मौत -



मधेपुरा - सहरसा के लोगों के लिए यह अत्यंत दुःख का समय है। एक दो नहीं, कम-से-कम 37 श्रद्धालुओं की मौत हुई है।

सोमवार की सुबह राज्यरानी एक्सप्रेस ट्रेन (ट्रेन नंबर 12567) सहरसा से पटना जा रही थी। यह घटना धमहरा स्टेशन के पास हुई। यहां मां कात्यायिनी का एक मंदिर है, जहां पूजा के लिए लोग जमा थे। वैसे आज़ादी के 67 वर्ष बाद भी इस क्षेत्र में सड़क मार्ग नहीं है। मंदिर जाने के लिए भी रेलवे ट्रैक पर चलना पड़ता है। यहां स्टेशन पर किसी को भी ट्रेन के आने की जानकारी नहीं दी गई। अचानक ट्रेन के आ जाने से पटरी पर खड़े लोग इसकी चपेट में आ गए।

इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

हादसे के बाद रेल राज्य मंत्री अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि स्थानीय प्रशासन की लापरवाही के कारण यह हादसा हुआ है। बीजेपी - आरजेडी भी नीतीश सरकार पर निशाना साध रही है।

यह तो जाहिर है की इतने बड़े पूजा होने के बावजूद यहाँ स्थानीय प्रशासन के तरफ से कोई इंतजाम नहीं था। और रेलवे भी यह देखते हुए की इतनी भीड़ है, आने वाले ट्रेन ड्राईवर को अथवा ट्रेक पर लोगों को कोई चेतावनी नहीं दिए। गलती जिसकी भी हो, जान तो बेगुनाह लोगों की ही गयी। अब मुआवजा देने से भी उनके परिवार को इस नुकसान की भरपाई हो पायेगी क्या?

क्या करें, समय बीत जायेगा और जिम्मेदारी तय नहीं हो पायेगी। जैसे कोसी आपदा के 5 वर्ष बाद भी नितीश सरकार द्वारा इस त्रासदी की जिम्मेदारी तय करने के लिए बिठाया गया राजेश बलिया आयोग, जिसे तीन महीने में रिपोर्ट देनी थी, आयोग पर 5 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी जिम्मेदारी पर रिपोर्ट नहीं दी है। आयोग और जाँच जिम्मेदारी तय करने के लिए नहीं, बल्कि जिम्मेदार को बचाने के लिए बनाये जाते हैं।

6 जून, 1981, को इसी स्टेशन के पास मानसी और सहरसा के बीच.अब तक की सबसे भीषण रेल दुर्घटना हुई थी जब एक यात्री ट्रेन पुल पार करते वक़्त पटरी से उतर गई और बागमती नदी में बह गई। इस दुर्घटना के पांच दिनों के बाद भी 200 से अधिक शव नदी में बह रहे थे कि सैकड़ों से अधिक लापता हो गए थे। अनुमान था की 500 से 800 लोग इस दुर्घटना में मरे थे। बाद में कहा गया की एक बैल या भैंस के पुल पर आ जाने पर ब्रेक मारते हुए फेल होने से यह दुर्घटना हुई।
एक तो इस इलाके में सड़क नहीं और कोई अच्छा ट्रेन भी नहीं है। बहुत दिनों के बाद यह राज्य-रानी एक्सप्रेस चली थी जो ठीक-ठाक समय में सहरसा से पटना पहुंचा देती है। परन्तु एक महीने पहले ही इस ट्रेन को पकड़ने के लिए मधेपुरा से चलने वाली ट्रेन बंद कर दी गयी। गौरतलब है की मधेपुरा से कई वर्षों से यहाँ से बहार के राष्ट्रिय नेता शरद यादव सांसद है।

आज मरने वाले शोक संतप्त परिवार को ढाढस देने का समय है।



लेकिन मैं इतना ही उम्मीद करता हूँ की दुर्घटना के कारण जो भी रेल सुविधा क्षेत्र को उपलब्ध है उसे बेहतर करें और सड़क मार्ग से जल्द जोड़ने का प्रयास हो। ऐसा नहीं की जो भी उपलब्ध था उसे भी छीन लिया जाय।

Sunday, August 18, 2013

पत्रकारों की छटनी - Mass sacking of Journalists.


पत्रकारों की छटनी -
जिस `मेरिट` की धार से अक्सर सामाजिक न्याय के सिद्धांत को काटा जाता है, और जिसे आम तौर पर पत्रकारों का भरपूर समर्थन भी मिलता रहा है, उसी तलवार से लगभग 300 पत्रकारों को नौकरी से निकालने का अन्याय किया गया है और नेता- जनता, पक्ष-विपक्ष चुप है। चिढाने के लिए अजय माकन जैसे कांग्रेस के नेता घरियाली आंसू बहते हुए ट्वीट करते हैं - Regular mtng with journos in my room at AICC.Sad not to see many regular faces.They were frm TV18.Good hardworking journos.Feel bad for them; और दिखाते हैं कि सरकार में रहते हुए भी वे कॉर्पोरेट के आगे कितने बेबस हैं।

दरअसल एक-दो दिन पूर्व टीवी 18 ब्रॉडकास्ट, सीएनएन-आईबीएन, आईबीएन 7 से करीब 300 स्टाफ-कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया है। नौकरी से निकाले गए में कुछ वरिष्ट पत्रकार और एंकर भी शामिल हैं। खबर है की और छटनी होने की आशंका है। टीवी 18 NBC Universal और मुंबई में आधारित नेटवर्क 18 समूह के बीच भारत में 50/50 के आधार पर संयुक्त उद्यम आपरेशन है।

तो जब यह समाचार चल रहा था ... ''ब्‍लडबॉथ इन दलाल स्‍ट्रीट... ब्‍लैक फ्राइडे...'' तो उससे भी बुरा हाल हो था सीएनबीसी आवाज टीवी चैनल में काम करने वाले कर्मचारियों का।

ध्यान देने की बात है कि हर अन्याय का विरोध करने वाले प्रेस में काम करने वाले पत्रकारों की ओर से कोई खास विरोध नहीं हुआ है। कारण स्पष्ट है की अधिकांश मीडिया कॉर्पोरेट के हाथों में है। और भारत में कानून कॉर्पोरेट पर लागू नहीं होता, बल्कि कॉर्पोरेट के लिए कानून बनते हैं। उदाहरण के रूप में जो सरकार मानती है की मार्केट फोर्सेज (बाजारी ताक़तों) पर देश को छोड़ देना चाहिए, वह सरकार गैरकानूनी और असंवैधानिक तरीके से मीडिया की भरपूर कमाई और लोगों के पॉकेट से जबरन रुपये निकालने के लिए अनिवार्य सेट टॉप बॉक्स का कानून बना कर लागू कर दिया और पक्ष-विपक्ष मेज थप-थपाते रह गए। तो क्या पत्रकारों के हक के लिए कोई कानून नहीं बन सकता है? खास तौर से जब एक कांग्रेसी कॉर्पोरेट सांसद नवीन जिन्दल के कोयला घोटाले में भूमिका के उजागर को रोकने के लिए जी ग्रुप के चेयरमैन सहित अन्य पत्रकारों पर मुक़दमा ठोक दिया गया और जलील किया गया।

और रेगुलेटर के दौर में, क्या मीडिया रेगुलेटर को पत्रकारों के हित की रक्षा का भार सौंपा नहीं जा सकता है। इस सरकार ने, या यूं कहें की NDA सरकार के समय से, शासन का भर रेगुलेटर को दिया जा रहा है। तो फोन का रेट टेलिकॉम रेगुलेटर तय करेगा, रेल भाडा और बाद में रेलकर्मियों का वेतन आदि रेगुलेटर तय करेंगे। तो मंत्री और मंत्रालयों का क्या काम? जनता का धन दो सत्ता के केन्द्रों पर क्यों खर्च हो? क्यों नहीं PM और रेगुलेटर सभी कुछ तय करें और कॉर्पोरेट संसद की सदस्यता को नीलामी से प्राप्त कर लें। खैर यह अलग मुद्दा है।

पत्रकारों का असल शोषण और दोहन तो छोटे स्तर पर होता है। हिंदुस्तान जैसे अख़बार का एक संवाददाता को 4-5 हज़ार रुपये और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार के समाचार पर सौ-दो सौ रुपये देकर उन्हें मजबूर किया जाता है की वे अपने व्यवसाय के साथ धोखा करे या उसकी बोली लगवाएं। क्या वरिष्ठ पत्रकारों का इनके लिए कोई कर्त्यव्य नहीं है?

इतने पत्रकारों के साथ हुए अन्याय पर हर बात पर बोलने वाले प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष जस्टिस काटजू कहा चुप हैं? जिस सिद्दत से वे नरेन्द्र मोदी की कमियां गिनातें हैं, इस विषय पर वे उसी सिद्दत से क्यों नहीं सरकार पर दवाब बनाते हैं?

तो दिक्कत निजीकरण की निति में ही है और सरकार के अप्रभावी और कॉर्पोरेट के रखैल बनने में ही है। मैं आव्हान करता हूँ अपने पत्रकार साथियों से जहाँ भी मुझ जैसे छोटे कार्यकर्त्ता भी अगर कॉर्पोरेट के दखलंदाज़ी का विरोध करें, तो ज़रूर साथ दें।



और मैं अपने पत्रकार साथियों से यह भी कहना चाहूँगा की इस अन्याय का विरोध ज़रूर करें और हम जैसे कार्यकर्ता आपके साथ हैं। हम विपक्ष से, और खास तौर से श्री नरेन्द्र मोदी से, अपील करते हैं की इस अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठायें।
जय हिन्द।

Saturday, August 17, 2013

गलत आर्थिक विश्लेषण -


मीडिया/टेलीविजन पर बहस में पढ़े लिखे अज्ञानी अनजान बनते हुए देश को बतलाना चाहते है की देश में आर्थिक दुर्दशा की वजह आर्थिक सुधार में कमी और गरीबों के लिए खर्च की जा रही राशी है।

अब और कितना बिकेगा देश सुधारों के नाम पर? देश में उत्पादन ठप है और चीन जैसे देशों के बेकार चीजों को देश में डंप कर बेरोजगारों से रोजगार छीन लिया गया है। जहाँ अमरीका रोज़गार बचाने के नाम पर भारत जैसे देशों में कॉल सेंटर व्यवस्था को गैर कानूनी बना चुकी है, हम तथाकथित वैश्वीकरण के नाम पर देश को विदेशी कंपनियों को नोचने के लिए छोड़ दिए हैं।

पर सबसे महत्वपूर्ण देश की आर्थिक नीतियों से रिलायंस जैसे कोर्पोरेट मालामाल हो रहें हैं, और आम जनता तंगहाल कंगाल, उसे बदलने की जगह उसे जारी रखने की कसमें खाई जा रही है।

और देश के अरबों-खरबों की संपत्ति लूट कर काले धन के रूप में आज भी रोज विदेश जा रही है, उसे रोके बिना कैसे अर्थव्यवस्था पटरी पर आएगी। वर्षों पहले कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता और अध्यक्ष दादाभाई नैरोजी ने अपने किताब Poverty and Un-British Rule in India में ड्रेन ऑफ़ वेल्थ यानि की धन के पलायन के सिद्धांत को समझाए थे। आज उससे भी विषम स्थिति है। उसे रोके बिना, देश की आर्थिक स्थिति में सुधार संभव नहीं है।

दादाभाई नैरोजी ने 1870 में अपने तथ्यों और आँकड़ों से यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय के दरिद्रता में आकंठ डूबे रहने का कारण अंग्रेजों द्वारा शासन पर खर्च और विदेश भेजे गए धन था। उस समय भारत की प्रशासकीय सेवा दुनियाँ में सबसे महँगी थी। भारतीयों की आर्थिक स्थिति के संबंध में प्रारंभिक सर्वेक्षण के बाद यही निष्कर्ष निकला कि देश में एक व्यक्ति की औसत वार्षिक आय कुल बीस रुपए थी।

आज 160 वर्ष बाद भी शासन पर खर्च, भ्रष्टाचार और विदेशों के बैंकों में जमा काला धन से देश के बाहर जाने से आर्थिक स्थिति ख़राब है।

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मनमोहन के अर्थ अव्यवस्था ?

एक वरिष्ठ नेता मुझे बता रहे थे की सोनिया गाँधी शुरू से ही पी वी नरसिम्ह राव से इर्ष्या करती थीं और उनके कार्यकाल में हो रहे आर्थिक सफलताओं के श्रेय सार्वजनिक रूप से तात्कालिक वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को देती थी। कांग्रेस अध्यक्षा चिदंबरम के तमाम अक्षमताओं के बावजूद उन्हें भी तरजी देती हैं।
आज मनमोहन और चिदंबरम के अर्थव्यवस्था संचालन की हवा निकल रही है।
दरअसल आर्थिक सुधार के नाम पर देश को बेच रहें हैं और ऊपर से घोटालो की लूट से बंटाधार तो तय है। लेकिन ये देश का सत्यानाश करके ही दम लेंगे। अर्थव्यस्था पर मंडराते खतरे के बीच पीएम ने कहा कि दुनिया के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के दरवाजे अब बंद नहीं कर सकते। समझिये लूट जारी रहेगी। पीएम ने यह भी कहा है कि अब 1991 जैसे हालात नहीं होंगे। क्योंकि हालात तो उससे भी ख़राब होने वाले हैं।

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रुपए में रिकॉर्ड गिरावट, सोना भी हुआ तीस हजारी - रूपया का डॉलर के मुकाबले कीमत निरंतर गिरने की वजह और परिणाम दोनों रिलायंस के फायदे के लिया पेट्रोल डीजल का दाम बार बार बढ़ाना है। रिलायंस के चुंगल से सरकार और तेल के निकलते ही रुपये की कीमत स्थिर हो जाएगी।


UPA Government - Reliance – the cause of crash of the Rupee value vis-a vis Dollar.
16 August 2013 at 18:48

The rupee is on record low ever. This is a matter of worry or the economy, companies as well asconsumers. A study of the latest annual earnings data of top BSE 500 companiesby the ET Intelligence Group reveals the impact of the weak rupee on IndiaInc's import and exports bill.

On the net level, asignificantly weakened rupee is bound to adversely impact the country'scommerce. India Inc earns 20% of its standalone revenues from exports.

However,it spends over 36% of its revenues on imports. A 8.9% depreciation in the rupeeagainst the dollar and similar movement against other major currencies of theworld since the beginning of the current quarter is likely to impact thecompanies' net forex bill.

Reliance Industries leads the pack in our study - being the the highest import spending. InFY12, its imports bill stood at Rs 2.64 lakh crore, eating up 77.7% of totalrevenues. Incidentally, oil companies dominate the list of companies' withhighest forex spends, and Reliance is the top Private sector Oil company.

Government has decontrolled Oil and Gas price for the benefit of Reliance alone.

Sunday, August 11, 2013

खुदीराम बोस को सलाम -


खुदीराम बोस को सलाम -

खुदीराम बोस ( जन्म: १८८९ - मृत्यु : १९०८) मात्र १९ साल की उम्र में हिन्दुस्तान की आजादी के लिये फाँसी पर चढ़ गये। खुदीराम का जन्म ३ दिसंबर १८८९ को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गाँव में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहाँ हुआ था। उसकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़ा। स्कूल छोडने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वन्दे मातरम् पैफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। १९०५ में बंगाल के विभाजन (बंग - भंग) के विरोध में चलाये गये आन्दोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।

मिदनापुर में ‘युगांतर’ नाम की क्रांतिकारियों की गुप्त संस्था के माध्यम से खुदीराम क्रांतिकार्य पहले ही में जुट चुके थे। १९०५ में लॉर्ड कर्जन ने जब बंगाल का विभाजन किया तो उसके विरोध में सडकों पर उतरे अनेकों भारतीयों को उस समय के कलकत्ता के मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड ने क्रूर दण्ड दिया। अन्य मामलों में भी उसने क्रान्तिकारियों को बहुत कष्ट दिया था । इसके परिणामस्वरूप किंग्जफोर्ड को पदोन्नति देकर मुजफ्फरपुर में सत्र न्यायाधीश के पद पर भेजा । ‘युगान्तर’ समिति कि एक गुप्त बैठक में किंग्जफोर्ड को ही मारने का निश्चय हुआ। इस कार्य हेतु खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार चाकी का चयन किया गया । खुदीरामको एक बम और पिस्तौल दी गयी। प्रफुल्लकुमार को भी एक पिस्तौल दी गयी । मुजफ्फरपुर में आने पर इन दोनों ने सबसे पहले किंग्जफोर्ड के बँगले की निगरानी की । उन्होंने उसकी बग्घी तथा उसके घोडे का रंग देख लिया । खुदीराम तो किंग्जफोर्ड को उसके कार्यालय में जाकर ठीक से देख भी आया ।

३० अप्रैल १९०८ को ये दोनों नियोजित काम के लिये बाहर निकले और किंग्जफोर्ड के बँगले के बाहर घोडागाडी से उसके आने की राह देखने लगे। खुदीराम ने किंग्जफोर्ड की गाडी समझकर बम फेंका था परन्तु उस दिन किंग्जफोर्ड थोडी देर से क्लब से बाहर आने के कारण बच गया । दैवयोग से गाडियाँ एक जैसी होने के कारण दो यूरोपियन स्त्रियों को अपने प्राण गँवाने पडे। खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार दोनों ही रातों - रात नंगे पैर भागते हुए गये और २४ मील दूर स्थित वैनी रेलवे स्टेशन पर जाकर ही विश्राम किया।
अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया। अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्लकुमार चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी जबकि खुदीराम पकड़े गये। ११ अगस्त १९०८ को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी दे दी गयी। उस समय उनकी उम्र मात्र १९ साल की थी।



जय हिन्द।

Thursday, August 8, 2013

जिला के लिए संघर्ष - मधेपुरा बनाम सहरसा 1947 -


हालाँकि सहरसा 1 अप्रैल 1954 में भागलपुर जिला से बांटकर जिला घोषित हुआ। लेकिन 1947 से ही मधेपुरा को सहरसा की जगह जिला घोषित किये जाने की मुहीम चल रही थी।
इसी उद्देश्य को लेकर मधेपुरा के कांग्रेस आफिस में दिनांक 8-8-1947 को शाम 7 बजे एक सार्वजानिक सभा हुई थी जिसका ब्यौरा इस प्रकार से है -
प्रस्ताव संख्या 1 - श्री भूपेंद्र नारायण मंडल को सभा का सभापति बनाने का प्रस्ताव हुआ।
प्रस्तावक - श्री उमादास गांगुली।
समर्थक - श्री शीतल प्रसाद मंडल।
प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ।

प्रस्ताव संख्या 2 - यह प्रस्ताव किया जाता है की मधेपुरा में निम्नलिखित कारणों से जिले सदर मुकाम हो -
(1) मधेपुरा उत्तर भागलपुर के मध्य में पड़ता है, लेकिन सहरसा जिले के दक्षिण-पश्चिम किनारें पर है।
(2) मधेपुरा 80 वर्ष पुराना सबडिविजन है। सुपौल और मधेपुरा में सिविल कोर्ट, क्रिमिनल कोर्ट, जेल, अस्पताल तथा प्रायः सभी प्रकार के सरकारी महकमें मौजूद हैं। जनसाधारण को मधेपुरा आने-जाने और रहने की काफी सुविधा है। लेकिन सहरसा एक नयी जगह है और वहां सभी बातों का आभाव है। इस तरह मधेपुरा में जिले की सदर मुकाम होने से सरकारी रुप्पियों की भी काफी बचत होगी।
(3) मधेपुरा कोशी से दूर है और इसकी सतह सहरसा की सतह से 5 (पांच) फुट ऊँची है। लेकिन सहरसा अभी भी कोशी, तिलाबे तथा धीमरा की प्रखर धाराओं से प्रभावित है।
(4) जलवायु की दृष्टि से भी मधेपुरा स्वस्थ्य-कर है। सहरसा भयंकर महामारियों (प्लेग,मलेरिया,कालाज्वर, हैजा, चेचक वगैरह) से प्रतिवर्ष पीड़ित रहता है।
(5) यातायात के ख्याल से जिला महकमें तथा जन-सुविधाओं के लिए मधेपुरा ही विशेष सुगम है। मुरलीगंज तक रेल सम्बन्ध, फुलौत तक बढ़िया सड़क आदि है।
(6) सुपौल के सात थानों के अन्दर सिर्फ सुपौल और थरबिट्टा के सिवाय शेष पांच थानें (भीमनगर, प्रतापगंज, डगमारा, त्रिवेणीगंज, छातापुर) के लोगों को मधेपुरा होकर ही सहरसा जाना पड़ता है। इसी तरह लोधरहारा को छोड़कर बांकीये सात थाने (मधेपुरा, सिंघेश्वर स्थान, सौर बाज़ार, सोनबर्षा, किशुनगंज, आलमनगर, मुरलीगंज) के लोगों को मधेपुरा आना ही सुविधाजनक है।
(7) यह सभा सरकार से मांग करती है कि वस्तुस्थिति की जांच के लिए एक निष्पक्ष कमीशन नियुक्त कर आवश्यक कार्यवाई करें।
(8) निशचय हुआ कि निम्नलिखित पाँच सज्जनों का एक डेलेगेशन अतिशीघ्र ही आवश्यक अधिकारीयों से मिलकर उक्त मांगों को पेश करें -
(क) बाबू भुवनेश्वरी प्रसाद मण्डल
(ख) बाबू सागर मल
(ग) मौलवी हलीम
(घ) बाबू कार्तिक प्रसाद सिंह
(ङ्) प्रेजिडेंट, थाना कांग्रेस कमिटी
(9) इस आन्दोलन को बराबर चालू रखने के लिए निम्नलिखित सज्जनों की एक कमिटी बनायी गयी -
(1) बाबू बिन्ध्येश्वरी प्रसाद मण्डल (सेक्रेटरी)
(2) बाबू महावीर प्रसाद सिंह
(3) बाबू सुधीन्द्र नाथ दास
(4) बाबू कमलेश्वरी प्रसाद मण्डल
(5) काजी अबू ज़फर
(6) बाबू गजेन्द्र नारायण महतो
(7) बाबू शीतल प्रसाद मण्डल
(8) बाबू हलधर चौधरी
(9) बाबू कमलेश चन्द्र भाधुरी
(10) बाबू सुरेन्द्र नारायण सिंह
(11) बाबू कैलाशपति मण्डल

(10) यह प्रस्तावित हुआ है कि निम्न-लिखित अधिकारीयों को ये प्रस्ताव भेजें जाएँ -
1. Home Member, Government of India.
2. President, Constituent Assembly.
3. H. E. Governor of Bihar.
4. Prime Minister, Government of Bihar.
5. President, Bihar Provincial Congress Committee.
6. Hon`ble Health Minister, Government of Bihar.
7. Parliamentary Secretary
Babu Shiv Nandan Prasad Mandal & Babu Bir Chand Patel

Sd/-
(Bhuvneshwari Prasad Mandal)
President.
8/8/47.


आन्दोलन हेतु चंदा देने वाले सदस्य -
(1) बाबू बिन्ध्येश्वरी प्रसाद मण्डल - 10 रु/-
(2) बाबू सागर मल - 10 रु/-
(3) बाबू मदन राम - 10 रु/-
(4) बाबू रघुनन्दन प्रसाद मण्डल - 15 रु/-
(5) बाबू शीतल प्रसाद मण्डल - 5 रु/-
(6) बाबू नंदन प्रसाद सिंह - 5 रु/-
(7) बाबू भुवनेश्वरी प्रसाद मण्डल - शेष खर्च।

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मधेपुरा को जिला बनाये जाने की मुहीम के समय पूरे प्रकरण के अभिभावक और संरक्षक मधेपुरा के महान सपूत स्व रासबिहारी लाल मण्डल के बड़े पुत्र स्व भुवनेश्वरी प्रसाद मण्डल थे जो उस समय भागलपुर जिला कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष थे। वे तात्कालिक भागलपुर लोकल बोर्ड (जिला परिषद्) के भी अध्यक्ष थे। परन्तु इसी मुहीम के दौरान 1948 में उनकी मृत्यु हो गयी। बाद में उनके फुफेरे भाई स्व भूपेंद्र नारायण मण्डल (रानीपट्टी) और उनके अपने छोटे भाई स्व बी पी मण्डल इस मांग के लिए संघर्ष करते रहे। लेकिन ऐसा माना जाता है की सहरसा को जिला बनाने के फैसले के समय मधेपुरा के अन्य बड़े नेता स्व शिवनंदन प्रसाद मण्डल (रानीपट्टी), जो बिहार सरकार में तात्कालिक कबिनेट मंत्री थे, से चूक हुई थी।
9 मई, 1981 को मधेपुरा जिला बनाये जाने की औपचारिक घोषणा रासबिहारी विद्यालय में आयोजित एक समारोह में की गयी थी। उदघाटनकर्ता बिहार के तात्कालिक मुख्यमंत्री डा जगनाथ मिश्र थे और सभा की अध्यक्षता पूर्व मुख्यमंत्री और मधेपुरा के पहले विधायक और कई बार रहे सांसद स्व बी पी मण्डल कर रहे थे। अपने भाषण की शुरुआत करते हुए स्व बी पी मण्डल ने कहा था की मैं इश्वर को धन्यवाद देता हूँ की यह दिन देखने के लिए जीवित हूँ।
मधेपुरा को जिला घोषित किये जाने के लम्बे पृष्ठभूमि में स्व बी पी मण्डल के इस उदगार को समझा जा सकता है।
ध्यान देने की बात है कि 1935 के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट के तहत कुछ प्रान्तों में जो चुनाव हुए, वहाँ के सदर को प्राइम मिनिस्टर या प्रीमियर कहा जाता था। अतः जिला बनाने के लिए बिहार के प्राइम मिनिस्टर को ज्ञापन देने की बात हुई थी जो उस समय डॉ श्रीकृष्ण सिंह थे।

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प्रस्तुति -
सूरज यादव।
प्राध्यापक, दिल्ली विश्वविद्यालय।
8/8/2013