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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Sunday, November 17, 2013

भारत रत्न :(Bharat Ratna)


भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। यह सम्मान राष्ट्रीय सेवा के लिए दिया जाता है। इन सेवाओं में कला, साहित्य, विज्ञान या सार्वजनिक सेवा शामिल है। 2011 से इसमें खेल भी जोड़ दिया गया। इस सम्मान की स्थापना २ जनवरी १९५४ में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई थी। अन्य अलंकरणों के समान इस सम्मान को भी नाम के साथ पदवी के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। प्रारम्भ में इस सम्मान को मरणोपरांत देने का प्रावधान नहीं था, यह प्रावधान १९५५ में बाद में जोड़ा गया। बाद में यह १० व्यक्तियों को मरणोपरांत प्रदान किया गया। एक वर्ष में अधिकतम तीन व्यक्तियों को ही भारत रत्न दिया जा सकता है।
अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों में पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री,का नाम लिया जा सकता है ।

१९९२ में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को इस पुरस्कार से मरणोपरान्त सम्मानित किया गया था। लेकिन उनकी मृत्यु विवादित होने के कारण पुरस्कार के मरणोपरान्त स्वरूप को लेकर प्रश्न उठाया गया था। इसीलिए भारत सरकार ने यह पुरस्कार वापस ले लिया। यह पुरस्कार वापस लिये जाने का यह एकमेव उदाहरण है|

भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री श्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को जब भारत रत्न देने की बात आयी तो उन्होंने जोर देकर मना कर दिया, कारण कि जो लोग इसकी चयन समिति में रहे हों, उनको यह सम्मान नहीं दिया जाना चाहिये। बाद में १९९२ में उन्हें मरणोपरांत दिया गया।

मूल रूप में इस सम्मान के पदक का डिजाइन ३५ मिमि गोलाकार स्वर्ण मैडल था। जिसमें सामने सूर्य बना था, ऊपर हिन्दी में भारत रत्न लिखा था, और नीचे पुष्प हार था। और पीछे की तरफ़ राष्ट्रीय चिह्न और मोटो था। फिर इस पदक के डिज़ाइन को बदल कर तांबे के बने पीपल के पत्ते पर प्लेटिनम का चमकता सूर्य बना दिया गया। जिसके नीचे चाँदी में लिखा रहता है "भारत रत्न", और यह सफ़ेद फीते के साथ गले में पहना जाता है।



इन हस्तियों को मिला है भारत रत्न
क्रमांक नाम साल
1 चक्रवर्ती राजगोपालाचारी 1954
2 सी.वी. रमन 1954
3 सर्वपल्ली राधाकृष्णण 1954
4 भगवान दास 1955
5 एम. विसवेशरैय्या 1955
6 जवारहलाल नेहरू 1955
7 गोविंद वल्लभ पंत 1957
8 डी. केसव कर्वे 1958
9 बिधान चंद्र रॉय 1961
10 पुरुषोत्तम दास टंडन 1961
11 राजेंद्र प्रसाद 1962
12 जाकिर हुसैन 1963
13 पांडुरंग वामन काने 1963
14 लाल बहादुर शास्त्री 1966
15 इंदिरा गांधी 1971
16 वी.वी. गिरी 1975
17 के. कामराज 1976
18 मदर टेरेसा 1980
19 विनोवा भावे 1983
20 खान अब्दुल गफ्फार खान 1987
21 एम.जी. रामचंद्रन 1988
22 बी.आर. अंबेडकर 1990
23 नेल्सन मंडेला 1990
24 राजीव गांधी 1991
25 सरदार वल्लभभाई पटेल 1991
26 मोरारजी देसाई 1991
27 अब्दुल कलाम आजाद 1992
28 जे.आर.डी. टाटा 1992
29 सत्यजीत राय 1992
30 ए.पी.जे. अब्दुल कलाम 1997
31 गुलजारी लाल नंदा 1997
32 अरुणा आसफ अली 1997
33 एम.एस.सुबुलक्ष्मी 1998
34 चिदंबरम सुब्रमण्यम 1998
35 जयप्रकाश नारायण 1999
36 रवि शंकर 1999
37 अमर्त्य सेन 1999
38 गोपीनाथ बारदोलई 1999
39 लता मांगेशकर 2001
40 बिस्मिल्लाह खान 2001
41 भीमसेन जोशी 2008
42 प्रो. सी.एन.आर. राव 2013
43 सचिन तेंडुलकर 2013
44 पंडित मदन मोहन मालवीय 2014
45 अटल बिहारी वाजपेयी 2014.

Saturday, November 16, 2013

कांग्रेस लीला के शिकार लालू प्रसाद: (Laloo Prasad)


सियासी ज़िन्दगी में हाल के दिनों में रोज़ कांग्रेस-सोनिया का नाम जपने वाले लालू प्रसाद को सी बी आई कोर्ट ने सजा सुनायी और उन्हें राहत देने वाले अध्यादेश को राहुल बाबा ने नॉनसेंस कह कर उसकी हवा निकल दी। इधर कांग्रेस जद(यू) से ताल-मेल की बात का खंडन नहीं किया। इस बेवफाई के बावजूद रा ज द का कांग्रेस-प्रेम बरक़रार रहा।

इधर हुंकार रैली में जैसे ही नरेंद्र मोदी ने यदुवंशियों से उन्हें समर्थन देने की अपील की,कांग्रेस कि नींद उड़ गयी। राजनैतिक जोड़-घटाओ करते हुए उन्हें नज़र आया कि अगर यादवों का एक अंश भी नरेंद्र मोदी के साथ हो जाता है तो बिहार में चुनाव नतीजों को भा ज पा के पक्ष में एक तरफ़ा माना जा सकता है।

तब उन्हें लगा कि बिना लालू प्रसाद को जेल से बाहर निकले और रा ज द से ताल-मेल किये , बात नहीं बनेगी।

इसके लिए माहौल बनाने का भार कांग्रेस नीत पत्रिका तहलका को सौंपा गया जिसमें इसके संवाददाता अजित शाही लिखते हैं:
चारा घोटाले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को सजा दिए जाने का कोई विशेष आधार नहीं है और फैसला अस्पष्ट, हलके और विकृत सबूत पर आधारित है।

निचले अदालत से सजायाफ्ता आजीवन कारावास पाये हुए पप्पू यादव उच्च न्यायलय से बाइज्जत बरी हुए हैं। तो क्या लालू प्रसाद को बचाना कांग्रेस के लिए बड़ी बात थी?



पहले फंसाओ और फिर बचा कर अहसान के बोझ तले दबा कर काम निकालो, कांग्रेस की निति रही है। लालू प्रसाद यह समझे कि नहीं, उनके समर्थक तो ज़रूर समझ रहें होंगे।

भारत रत्न: आज ध्यानचंद भी याद आये। (Major Dhyan Chand)


भारत का राष्ट्रिय खेल हॉकी है और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर थे।

मेजर ध्यानचंद सिंह (२९ अगस्त, १९०५ - ३ दिसंबर, १९७९) भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाडी एवं कप्तान थे एवं उन्हें भारत एवं विश्व हॉकी के क्षेत्र में सबसे बेहतरीन खिलाडियों में शुमार किया जाता है। वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे हैं जिनमें १९२८ का एम्सटर्डम ओलोम्पिक, १९३२ का लॉस एंजेल्स ओलोम्पिक एवं १९३६ का बर्लिन ओलम्पिक शामिल है। उनकी जन्म तिथि को भारत में "राष्ट्रीय खेल दिवस" के तौर पर मनाया जाता है |

ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है। गेंद इस कदर उनकी स्टिक से चिपकी रहती कि प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को अक्सर आशंका होती कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं। यहाँ तक हॉलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई। जापान में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक से जिस तरह गेंद चिपकी रहती थी उसे देख कर उनकी हॉकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात कही गई।

ध्यानचंद ओलिंपिक में भारत को सम्मान दिलाए। 1928 में एम्सटर्डम ओलम्पिक खेलों में पहली बार भारतीय टीम ने भाग लिया। एम्स्टर्डम में खेलने से पहले भारतीय टीम ने इंगलैंड में 11 मैच खेले और वहाँ ध्यानचंद को विशेष सफलता प्राप्त हुई। फाइनल मैच में हालैंड को 3-0 से हराकर विश्व भर में हॉकी के चैंपियन घोषित किए गए और 29 मई को उन्हें पदक प्रदान किया गया। फाइनल में दो गोल ध्यानचंद ने किए।

1932 में लास एंजिल्स में हुई ओलम्पिक प्रतियोगिताओं के निर्णायक मैच में भारत ने अमेरिका को 24-1 से हराया था। तब एक अमेरिका समाचार पत्र ने लिखा था कि भारतीय हॉकी टीम तो पूरव से आया तूफान थी। इस यात्रा में ध्यानचंद ने 262 में से 101 गोल स्वयं किए।

1936 के बर्लिन ओलपिक खेलों में ध्यानचंद को भारतीय टीम का कप्तान चुना गया। इस पर उन्होंने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा- "मुझे ज़रा भी आशा नहीं थी कि मैं कप्तान चुना जाऊँगा"। खैर, उन्होंने अपने इस दायित्व को बड़ी ईमानदारी के साथ निभाया। 15 अगस्त, 1936 को भारत और जर्मन की टीमों के बीच फाइनल मुकाबला था। इस मैच को देखने वाले स्टेडियम में 40 से 50 हज़ार दर्शक, जर्मनी के फ्यूहरर एडोल्फ हिटलर, शीर्ष नाज़ी अफसर हरमन गोएरिंग, जोसेफ गोएबल्स, जोआचिम रिबेनट्रोप आदि उपस्थित थे जिससे जर्मन टीम मैच जीतने के लिए प्रोत्साहित हो। मुकाबला 14 अगस्त को खेला जाने वाला था पर उस दिन इतनी बारिश हुई कि मैदान में पानी भर गया और खेल को एक दिन के लिए स्थगित कर दिया गया। गीले मैदान और प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण हमारे खिलाड़ी और भी निराश हो गए थे। तभी भारतीय टीम के मैनेजर पंकज गुप्ता को एक युक्ति सूझी।



उस समय कौन जानता था कि 15 अगस्त को ही भारत का स्वतन्त्रता दिवस बनेगा।
भारत द्वारा मैच जीतने के बाद स्टेडियम में एक अजीब चुप्पी छाई हुई थी। हिटलर को मेडल देने थे, लेकिन गुस्से और निराशा में वह स्टेडियम छोड़ चले गए।

अगले दिन हिटलर ने ध्यानचंद को मिलने के लिए बुलाये। जर्मन तानाशाह ने ध्यानचंद से पूछा कि आप क्या करते हैं? इसपर ध्यानचंद ने जवाब दिया “मैं सेना में सूबेदार हूं”। इस पर हिटलर ने कहा, “इतना बढ़िया खिलाड़ी अगर हमारी टीम में होता तो, वह सेना में किसी बड़े पद पर होता”।

ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से जर्मन तानाशाह हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना कायल बना दिया था। उस समय सिर्फ हिटलर ही नहीं, जर्मनी के हॉकी प्रेमियों के दिलोदिमाग पर भी एक ही नाम छाया था और वह था ध्यानचंद।

उन्हें १९५६ में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। ध्यान चंद को खेल के क्षेत्र में १९५६ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है। इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। भारतीय ओलम्पिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था।

ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग भी की जा रही है |

Saturday, November 9, 2013

मंडल कमीशन:


दरअसल कई साथी यह जानना चाहेंगे कि मंडल कमीशन क्या है?

देश की आज़ादी के बाद समाज के सबसे कमजोर तपके, जिन्हें अनुसूचित जाति और जनजाति कहा गया, के बारे में यह मानते हुए कि यह वर्ग समाज में वर्षों से कई बाधाओं और विकृतियों से जूझ रहा है और उनके उत्थान के लिए विशेष अवसरों कि आवश्यकता होगी, उन्हें आरक्षण और विशेष अवसरों का प्रावधान किया गया। लेकिन इसके पीछे एक इतिहास थी और यह इतना आसान भी नहीं था क्योंकि आज़ादी के संघर्ष के दौरान दलित नेता डा बी आर आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच हुए समझौतों के कारण, खास तौर से हिन्दू समाज को एक रखने के लिए संविधान में यह आया।

परन्तु यह भी बात उठी कि इन वर्गों के अलावे कई और सामाजिक तपके हैं, जिन्हें भी विशेष अवसरों कि आवश्यकता होगी। सामाजिक और शैक्षणिक रूप से इन पिछड़े वर्गों का पता लगाने के लिए संविधान के धारा 340 के अनुसार एक आयोग बनाने का प्रावधान किया गया, जिसे पिछड़ा वर्ग आयोग कहा जाना था।

पंडित नेहरू पर इस बात का दबाब बढ़ने पर 29 जनवरी, 1953 को काका कालेलकर की अध्यक्षता में पहले पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया जिसने 30 मार्च 1955 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी।इस रिपोर्ट के अनुसार 2,399 जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया, जिनमें 837 जातियों को अति-पिछड़ा घोषित किया गया। लेकिन इस आयोग के रिपोर्ट कि सबसे दिलचस्प पहलु यह थी कि आयोग के अध्यक्ष ने रिपोर्ट के साथ माननीय राष्ट्रपति को दिए गए अपने पत्र में अपनी ही रिपोर्ट को ख़ारिज कर दी।

इसी पत्र के आधार पर वर्षों तक पिछड़े वर्ग के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। 1977 के लोक सभा चुनाव में नवगठित जनता पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में पिछड़े वर्ग के लिए विशेष उपाय पूरे संजीदगी से उठाया गया और उस चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस को पहली और करारी हार दी।

जनता पार्टी के प्रमुख नेताओं में बिहार के पूर्व मुख्य मंत्री बी पी मंडल भी थे जो बिहार में जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष भी थे।(उन्होंने ने ही लालू प्रसाद को उस चुनाओ में टिकट दी थी)। बी पी मंडल मधेपुरा लोक सभा क्षेत्र से शानदार विजय प्राप्त किये और इस बात का कयास लगाया जा रहा था की जनता पार्टी कि पहली गैर-कांग्रेसी केंद की सरकार उन्हें कोई महत्वपूर्ण मंत्रालय दी जायेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

इसी बीच पैर टूटने के इलाज़ के दौरान मंडल जी बम्बई के जसलोक अस्पताल में भरती थे, जहाँ उनसे मिलने प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई पहुंचे। मोरारजी भाई ने बी पी मंडल से कहा की मैंने आपको मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया क्योंकि आपको एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देना चाहता हूँ। मंत्री तो कई लोग बनते हैं लेकिन यह जिम्मेदारो इतना विशेष है की मरने के बाद भी लोग आपको याद करेंगे।

राष्ट्रपति ने 1 जनवरी, 1979 को पिछड़ा वर्ग आयोग कि गठन कि अधिसूचना जारी की जिसके अध्यक्ष बिहार के पूर्व मुख्य-मंत्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल (बी पी मंडल) को बनाया गया। उन्हीं के नाम पर इस आय़ोग को मंडल आयोग के नाम से जाना गया। बी पी मंडल ने 31 दिसंबर,1980 को नई दिल्ली के विज्ञानं भवन में राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह को रिपोर्ट सौंप दी।

मंडल कमीशन रिपोर्ट तो पूरे विज्ञानिक आधार के बनायी गयी की वर्षों बाद सर्वोच्च न्यायलय के सम्पूर्ण बेंच द्वारा भी इसमें किसी तरह कि कमी नहीं निकाली जा सकी। रिपोर्ट में 1931 में हुए आखिरी जाति आधारित जनगणना के अनुसार भारत के 52% जनसंख्या जिसमें 3,743 अलग अलग जातियों को समाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा या ‘backward’ घोषित किया गया। परन्तु चुकी पहले से अनुसूचित जाति/जनजाति को 22.5% आरक्षण प्राप्त था अतः कई अन्य अनुशंसाओं के साथ साथ उनके लिए 27% आरक्षण का प्रावधान करने के लिए कहा गया, जिसे जोड़ने के बाद आरक्षण का कुल प्रतिशत 49.5 होता था जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय सीलिंग 50% से कम था।

स्व बी पी मंडल की मृत्यु रिपोर्ट सौंपने के लगभग एक वर्ष बाद 13 अप्रैल, 1982 को हो गयी। इस तरह कांग्रेस के सरकार में रिपोर्ट को ढंडे बस्ते में डाल दिया गया।
1989 का लोकसभा चुनाव पूर्ण हुआ। कांग्रेस को भारी क्षति उठानी पड़ी। उसे मात्र 197 सीटें ही प्राप्त हुईं। विश्वनाथ प्रताप सिंह के राष्ट्रीय मोर्चे को 146 सीटें मिलीं। भाजपा के 86 सांसद थे और वामदलों के पास 52 सांसद के समर्थन से राष्ट्रीय मोर्चे को 248 सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो गया और वी. पी.सिंह प्रधानमंत्री बने। दिसंबर 1980 से ठन्डे बस्ते में पड़ी मंडल आयोग के रिपोर्ट को 9 अगस्त, 1990 को आंशिक रूप से लागू कर इस देश के 52% से भी अधिक पिछड़े वर्ग को केंद्र सरकार की नौकरियों में 27% आरक्षण देकर समाजिक न्याय दिलाने का प्रयास किया, जिससे तमाम उच्च जातियां उनकी 'दुश्मन' बन बैठे, की उनकी मृत्यु पर भी उन्हें मिलने वाले सम्मान से वंचित किया गया।

और उधर 1991 में मंडल कमीशन का भीषण विरोध शुरू हो गया। परन्तु देश का बड़ा मौन प्रतिशत में भी इसकी प्रतिक्रिया हो रही थी और बिहार में लालू प्रसाद एवं उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव इसी मंडल आंदोलन के कारन मुख्य मंत्री बने और बने रहे। अतः वास्तव में मंडल कमीशन की सिफारिशों से भारतीय राजनीति और समाज में भूचाल आया।



आज भारतीय राजनीति में पिछड़े वर्ग की पहचान भी मंडल कमीशन से जुडी हुई है। यहाँ तक की राजनैतिक और ऐतिहासिक तौर पर आज़ाद भारत को मंडल पूर्व और मंडल पश्चात जाना जाने लगा है।

Sunday, November 3, 2013

दीपावली की मान्यताएं :


दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधिसे बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति । भारतवर्षमें मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावलीका सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं।

भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है।

त्रेतायुग में भगवान राम जब रावण को हराकर अयोध्या वापस लौटे तब उनके आगमन पर दीप जलाकर उनका स्वागत किया गया और खुशियाँ मनाई गईं।

यह भी कथा प्रचलित है कि जब श्रीकृष्ण ने आतताई नरकासुर जैसे दुष्ट का वध किया तब ब्रजवासियों ने अपनी प्रसन्नता दीपों को जलाकर प्रकट की।

राक्षसों का वध करने के लिए माँ देवी ने महाकाली का रूप धारण किया। राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई। इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है।

महाप्रतापी तथा दानवीर राजा बलि ने अपने बाहुबल से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली, तब बलि से भयभीत देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर प्रतापी राजा बलि से तीन पग पृथ्वी दान के रूप में माँगी। महाप्रतापी राजा बलि ने भगवान विष्णु की चालाकी को समझते हुए भी याचक को निराश नहीं किया और तीन पग पृथ्वी दान में दे दी। विष्णु ने तीन पग में तीनों लोकों को नाप लिया। राजा बलि की दानशीलता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राज्य दे दिया, साथ ही यह भी आश्वासन दिया कि उनकी याद में भू लोकवासी प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाएँगे।

कार्तिक अमावस्या के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविन्दसिंहजी बादशाह जहाँगीर की कैद से मुक्त होकर अमृतसर वापस लौटे थे।

कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को किया था। इसी खुशी में अगले दिन अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियाँ मनाई थीं।

मोहनजोदड़ो सभ्यता के प्राप्त अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार उस समय भी दीपावली मनाई जाती थी। उस मूर्ति में मातृ-देवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं।

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के समर्थकों एवं अनुयायियों ने गौतम बुद्ध के स्वागत में हजारों-लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।

सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दीपावली के दिन हुआ था। इसलिए दीप जलाकर खुशियाँ मनाई गईं।

ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में रचित कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार कार्तिक अमावस्या के अवसर पर मंदिरों और घाटों (नदी के किनारे) पर बड़े पैमाने पर दीप जलाए जाते थे।

अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के ही दिन शुरू हुआ था।

जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने भी दीपावली के दिन ही बिहार के पावापुरी में अपना शरीर त्याग दिया। महावीर-निर्वाण संवत्‌ इसके दूसरे दिन से शुरू होता है। इसलिए अनेक प्रांतों में इसे वर्ष के आरंभ की शुरुआत मानते हैं। दीपोत्सव का वर्णन प्राचीन जैन ग्रंथों में मिलता है। कल्पसूत्र में कहा गया है कि महावीर-निर्वाण के साथ जो अन्तर्ज्योति सदा के लिए बुझ गई है, आओ हम उसकी क्षतिपूर्ति के लिए बहिर्ज्योति के प्रतीक दीप जलाएँ।

पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली।

महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की।

दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे।

मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेते थे।

शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लाल किले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।

शुभ दीपावली!