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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Wednesday, December 28, 2016

कैशलेस धोखा : आपकी जेब काटी जा रही है, वह भी जबरन।


क्या आपको अंदाजा है हम पर जो कैश लेस इकनॉमी थोपी जा रही है उसका फायदा किसको और कितना होने वाला है?
तथ्य नंबर-1
जब भी आप डेबिट कार्ड से कोई आर्थिक व्यवहार करते हैं तो बैंक रिटेलर या जिसको पैसे का भुगतान किया गया है उससे 0.5 से लेकर 1% तक कमीशन लेते हैं।
तथ्य नंबर -2
क्रेडिट कार्ड कंपनियां और बैंक क्रेडिट कार्ड से होने वाले हर आर्थिक व्यवहार (ट्रांजेक्शन) पर 1.5 % से लेकर 2.5% तक दलाली लेती है । यह दलाली दुकानदार यानी भुगतान लेने वाले से वसूली जाती है।
तथ्य नंबर -3
Paytm/Freecharge/ Jio Money और इन जैसी दूसरी E-wallets कम्पनियां 2.5% से 3.5% तक दलाली लेती है जब हम अपने मेहनत की कमाई अपने बैंक अकाउंट से e-wellet में ट्रांसफर करते हैं।
तथ्य नंबर -4
आरबीआई के अंकड़ों के मुताबिक हर महीने 2.25 लाख करोड़ और हर साल करीब 25 से 30 लाख करोड़ रुपये पूरे देश में ATM मशीनों से निकाले जाते हैं। अगर बैंकों से होने वाले विड्राल को भी इसमें जोड़ दिया जाए तो (ATM+ बैंक) से निकलने वाली यह राशि होती है करीब 75 लाख करोड़। चूंकि इस राशि का सारा लेनदेन बैंक से होता है इसलिए यह सारा पैसा 1 नंबर का सफेद धन होता है।
तथ्य नंबर -5
वर्तमान में कुल आर्थिक व्यवहार का केवल 3 % आर्थिक व्यवहार इलेक्ट्रॉनिक तरीके से होता है।
तथ्य नंबर -6
अगर 1 नंबर में हुए 75 लाख करोड़ के आर्थिक व्यवहार को कैश लेस कर देंगे तो क्या होगा? Paytm/Freecharge/ Jio Money और इन जैसी दूसरी E-wallets कंपनियों की चांदी हो जायेगी।
कैसे होगी? तो जानिए ऐसे होगी...
75 लाख करोड़ के कैशलैस आर्थिक व्यवहार पर अगर यह निजी कंपनियां औसतन 2% भी कमीशन पाती हैं तो सीधे-सीधे हर साल डेढ़ लाख करोड़ रुपये इन कंपनियों को मिलेगा। बिना कुछ किये धरे। पैसा जनता का, माल व्यापारी का और ये कंपनियां मुफ्त में माल उड़ाएंगी!

सरकार ऐसे देगी सफाई
सरकार कहेगी मत यूज करो E-WELLET हम आपको फ्री में UPI app उपलब्ध करा रहे हैं। यह सरकारी है। एकदम फ्री है। इसके जरिये भुगतान करो। अच्छी बात है। लेकिन जरा सोचिए पिछले कई सालों से काम कर रहे रेलवे रिजर्वेशन के सरकारी सर्वर की क्या स्पीड है? इसी स्पीड में UPI का सर्वर भी चलेगा या फिर Paytm/Freecharge/ Jio Money और इन जैसी दूसरी E-wallets कंपनियां इसकी स्पीड बढ़ने नहीं देंगी। इतिहास गवाह है सरकारी विमान कंपनी एयर इंडिया की कमर बीजेपी वाले प्रमोद महाजन की करीबी जेट ने तोड़ी। BSNL और MTNL को कौन अपनी मुट्ठी में कर लिया है। इसलिए यह मत कहना की UPI यूज करो। जब UPI से स्पीड में पेमेंट नहीं होगा तो लोग वापस Paytm/Freecharge/ Jio Money और इन जैसी दूसरी E-wallets कंपनियों पर आश्रित हो जाएंगे।
डेढ़ लाख करोड़ रुपये सालाना का यह एक खुल्लमखुल्ला घोटाला है।
सरकार, Paytm/Freecharge/ Jio Money और इन जैसी दूसरी E-wallets कॉर्पोरेट कंपनियों और बैंकों की इसमें मिली भगत है।
अब समझ में आ रहा है कि कालाधन के नाम पर नोट बन्दी का फैसला कालाधन चलाने वाले कॉर्पोरेट को उपकृत करने के लिए लिया गया है। 2014 के चुनाव में कॉर्पोरेट ने बीजेपी पर जो निवेश किया था यह उसका रिटर्न है।
सारा गेम प्लान है
जैसे- जैसे नोट बन्दी की परतें उघड़ रहीं है कई बातें समझ में आने लगी हैं। मसलन नोट बन्दी, मोदी या जेटली के दिमाग से निकला फैसला नहीं है, क्योंकि इनके पास इतना गूढ़ डेढ़ लाख करोड़ सालाना कमाने का आइडिया सोचने वाला दिमाग है ही नहीं। अगर होता तो यह लोग राजनीति नहीं बिजनेस कर रहे होते। यह तो सिर्फ चेहरा हैं। असल गेम प्लान तो किसी और ने करोड़ों रुपये खर्च करके, टॉप चार्टड अकाउंटेंट, बैंकर और वित्त विशेषज्ञों से तैयार करवाया है। सरकार तो सिर्फ इस रेडीमेड प्लान को ढो रही है।
याद कीजिए, नोट बन्दी के चार दिन बाद यानी 13 नवंबर को प्रधानमंत्री का गोवा में दिया गया भाषण। क्या कहा था मोदी ने? उन्होंने कहा था, "मैं जानता हूं, मैंने कैसी-कैसी ताकतों से लड़ाई मोल ले ली है। जानता हूं, कैसे लोग मेरे खिलाफ हो जाएंगे। मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे..." अब समझ में आ रहा है कि प्रधानमंत्री वास्तव में किस से डर रहे हैं।

Thursday, December 1, 2016

सीमा क्या होगी कंपनी राज का ?

सरकार कैश रकम निकालने और रखने की सीमा तय कर चुकी है।
अब सोना रखने और खरीदने पर भी सीमा तय कर दिया जायेगा।
परंतु अम्बानी और अडानी और उनके जैसे धन्ना सेठों के संपत्ति पर कोई सीमा नहीं। दिन दुगुना और रात चौगुना बढ़ती रहे।
पुराने मोनोपोली (एकाधिकार) एक्ट का कोई मतलब नहीं रह गया है।
टीवी देखने के लिए भी, न जाने किस कानून के अन्तर्गत, बिना सेट टॉप बॉक्स, आप टीवी देख नहीं सकते। छिटपुट केवल वालों की जगह ज़ी नेटवर्क और रिलायंस को केबल सप्लाई का एकाधिकार दे दिया गया है : वजह, पहले एक पेमेंट पर कई लोग देखते थे जिससे कंपनियों को नुकसान हो रहा था और लोगों पर कड़ी नज़र भी रखना है।
पहले भी लैंड सीलिंग एक्ट के तहत ज़मीन रखने की सीमा तय की गयी थी। आज कंपनियों को सेज़ (SEZ) आदि के माध्यम से बेहिसाब ज़मीन किसानों से छीन कर दे दिया गया है।
तो "सीमा" सिर्फ आम लोगों के लिए।
दरअसल यह कवायद वर्ल्ड बैंक और अमरीका के इशारे पर हो रहा है। भारत अभी भी 'सोने की चिड़िया' है, परंतु आम जनों का अपनी सम्पति और मेहनत से कमाई दौलत को बचा बचा कर खर्च करने की परंपरा रही है। अब विदेशों में जमा 'काला धन' का परिभाषा बदल कर, लोगों के निजी संपत्ति को ही 'काला धन' बता कर, उसे विदेशियों और देशी धन्ना सेठों को लूटने के लिए निकलवाया जा रहा है।
इस पूरे प्रकरण में, आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी विपक्ष नपुंसक जैसा सिर्फ शोर कर पा रहा है।
पर इसका उपाय दिखेगा, वक़्त के साथ जवाब भी मिलेगा।
इंतज़ार है।