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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Tuesday, October 9, 2012

इतिहास फिर दोहराया जा रहा है.

इतिहास फिर दोहराया जा रहा है. २००४ में एन डी ए की सरकार, 'इंडिया शायनिंग' का नारा, विनिवेश और निजिकरण के नाम पर सरकारी संपत्ति की खुली लूट, एस ई जेड के नाम पर किसानों की ज़मीन पर कब्ज़ा, अटल जी के मूह्बोले दामाद रंजन भट्टाचार्य का लूट. मन में घुटन, लग रहा था की कांग्रेस अगर सत्ता में रहती तो ऐसा अंधेर न होता. २०१२ में यु पी ए २ की सरकार. 'भारत निर्माण' का नारा, सी डब्लू जी, २ जी, कोल जी इत्यादि की भीषण लूट. इधर रोबेर्ट वाड्रा का डी एल ऍफ़ से सांठ-गाँठ और किसानों की ज़मीन की खुली लूट. आम लोगों को 'मैंगो मैन' और भारत को 'बनाना रिपब्लिक' कह कर अपमानित करना.फिर घुटन. लोग करें भी तो क्या करें? ************************************************************************************* निराशा का दौर - आज पूर्व आई पी एस अधिकारी वाई पी सिंह ने महारष्ट्र में 'लावाषा' परियोजना के सन्दर्भ में शरद पवार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये. उसके पहले भा लो द नेता ओमप्रकाश चौटाला ने राहुल गाँधी पर एक ज़मीन के मामले में स्टाम्प चोरी के आरोप लगाये. आम आदमी बेबस लग रहे हैं. अक्सर मैं लोगों को पूछते सुनता हूँ की अगर भारत सोने की चिड़िया थी, तो इतनी गरीबी क्यों? सदियों से भारत को लूटा गया, और आज भी लूट जरी है. १८९० के दशक में सामाजिक, शैक्षिक और राजनैतिक अधिनायक और कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता दादाभाई नाओरोजी ने एक पुस्तक लिखी - Poverty and Un-British Rule in India, जिसमें उन्होंने बताया की भारत गरीब इसलिए है क्योंकि भारत का दौलत अँगरेज़ लूट कर इंग्लैंड ले जा रहें हैं. अपनी बात को साबित करने के लिए उन्होंने ठोस आंकड़े दिए. आज भी यह मंतव्य सही है. आज के काले अँगरेज़, लूटेरे नेता, अफसर और कार्पोरेट लूट कर संपत्ति विदेशों में काले धन के रूप में जामा किये हुए हैं, इसलिए हम गरीब के गरीब हैं. जनता क्या करे? नेता तो डरने लगे हैं - इन खुलासों के बारे में कहने लगे है की 'अराजकता' फैलाया जा रहा है. और अराजकता से संपत्ति वाले बहुत डरते हैं. मैं फिर मरहूम आदम गोंडवी साहब के इन आखिरी पंक्तियों को दोहराता हूँ - घूस खोरी कालाबाजारी है या व्यभिचार है, कौन है जो कह रहा भारत में भ्रष्टाचार है। जब सियासत हो गई पूंजीपतियों की रखैल, आम जनता को बगावत का खुला अधिकार है।