About Me

My photo
New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Thursday, September 22, 2016

मधेपुरा दूरदर्शन टॉवर को हटाये जाने के विरोध में प्रदर्शन।

मधेपुरा युवा मोर्चा के तत्वाधान में दिनांक 22 सितंबर, 2016 को दोपहर 12 बजे मधेपुरा दूरदर्शन टॉवर को हटाये जाने के विरोध में एक प्रदर्शन किया गया।
प्रदर्शनकारी वार्ड आयुक्त मुकेश कुमार, ध्यानी यादव, ओम श्रीवास्तव, गूगल पासवान, हेमेंद्र कुमार, बाल किशोर यादव आदि के नेतृत्व में मुरहो मार्किट से चल कर डाक बंगला स्थित दूरदर्शन टॉवर पर पहुँच कर अपना पुरजोर विरोध दर्ज किया।
मधेपुरा के नागरिकों ने विशाल प्रदर्शन माध्यम से मधेपुरा से दूरदर्शन टॉवर हटाए जाने का विरोध करते हुए निम्नलिखित तथ्यों की ओर ज़िला पदाधिकारी के माध्यम से केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किये हैं।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जब से दूरदर्शन टॉवर के माध्यम से मधेपुरा में ऍफ़ एम् रेडियो सुविधा दिए जाने की घोषणा हुई है समय तत्काल प्रभाव से प्रसार भारती के इंजीनियरिंग विभाग के डिप्टी डायरेक्टर ने मधेपुरा से दूरदर्शन टॉवर हटाए जाने के लिए ट्रक व स्टाफ तथा मजदूरों को मधेपुरा भेज दिया है, जो अब टॉवर को खोलने में लग गए हैं।
* इस सन्दर्भ में दूरदर्शन अधिकारियों द्वारा दिए जा रहे तर्क सच्चाई व ज़मीनी हक़ीक़त से परे है, आधारहीन है और मधेपुरा जैसे पिछड़े व सीमांचल ज़िले के लाखों लोगो के साथ अन्याय है। दूरदर्शन अधिकारियों का कहना है की अब सोनबरसा में हाई पॉवर ट्रांसमिशन टॉवर लगा दी गई है जिससे मधेपुरा सहित सिमरी बख्तियारपुर, खगड़िया व बंगाल में कलना लो पॉवर ट्रांसमिशन टॉवर की ज़रुरत नहीं है।
* यह तर्क में कोई डीएम नहीं है, क्योंकि हाई पॉवर ट्रांसमिशन हर जगह असफल है। वैसे भी विकसित ज़िलों और दिल्ली एवं अन्य महानगरों में दोनों व्यवस्थाएं हैं जबकि मधेपुरा एवं अन्य ज़िलों के हज़ारों वर्ग किलोमीटर के सीमांचल इलाके के लाखों की जनसँख्या के लिए भारत सरकार के द्वारा रेडियो व टेलीविजन सुविधा की प्रति नागरिक अनुपात अभी भी काफी कम है।
* भारत सरकार द्वारा 100 करोड़ खर्च कर पंजाब फ़ज़लिका में 11 वर्षों के निर्माण समय लगा कर 1000 फ़ीट की टेलीविजन टॉवर लगाई गई और दावा किया गया की अब पाकिस्तान में हमारी टेलीविजन वेव ही चलेगी। लकिन हुआ उल्टा। पाकिस्तान के वेव के दखल से पंजाब के लोग भी फ़ज़लिका टॉवर का प्रसारण नहीं देख सकते है। इसी तरह भारत का दूसरा सबसे बड़ा टेलीविजन टॉवर रामेश्वरम में सफ़ेद हांथी साबित हुआ। अधिकांश जनसँख्या को इससे कोई फायदा नहीं हुआ। इसी तरह सोनबरसा का टॉवर का कोई फायदा नहीं हो रहा है, क्योंकि कई बार तो बिजली गुल होने पर उसका जेनेरेटर भी नहीं चलता है। और सबसे बड़ा घाटा यह है की मधेपुरा के लोगों को प्रसार भारती ऍफ़ एम् रेडियो की सुविधा से वंचित कर देगी।
* इसके पहले भी मधेपुरा से इसे हटाने का पुरजोर विरोध हुआ है और यह मांग की गई है मधेपुरा स्थित दूरदर्शन टॉवर से दूरदर्शन के लिए अन्य प्रोफार्म जैसे ऍफ़ एम् रेडियो, किसान चैनेल, लोक सभा व राज्य सभा चैनल, उर्दू व क्षेत्रीय बिहार टीवी का प्रसारण जारी रखा जाए।
* प्रसार भारती के अधिकारियों को यह भी बताया गया की मधेपुरा जैसे सीमांचल ज़िलों में एक भी आकाशवाणी के कार्यक्रम चीनी रेडियो वेव के दखल के कारन ठीक से सुनाई नहीं देती है।
* समाचार के लिए भी यहाँ के लोग बीबीसी या रेडियो नेपाल को सुनने के लिए विवश हैं। चुकी यह सीमांचल व कोसी बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र हैं, तो यह और भी चिंता का विषय है।
* भारत सरकार और प्रसार भारती नीतिगत तौर पर कई बार घोषणा कर चुके हैं की मधेपुरा जैसे सीमान्त क्षेत्र में रेडियो और टेलीविजन के सिग्नल को और शक्तिशाली करेगी लेकिन मधेपुरा से दूरदर्शन टॉवर हटाने के प्रयास करके सरकार अपने ही घोषणाओं और नीतियों के विरुद्ध काम कर रही है, जिसका विरोध किया जायेगा और सरकार को यह जन विरोधी कदम वापस लेने पर मजबूर किया जायेगा।
* सरकार यह सोच ही नहीं है की जो जनता नरेन्द्र मोदी जी की मन की बात सुनने के लिए बेचैन रहते हैं उनसे उनका वाजिब हक़ छिना जा रहे है। इस ज्ञापन के माध्यम से हम भारत सरकार और प्रसार भारती को सूचित करते हैं की दूरदर्शन व आकाशवाणी के अनुपयुक्त सुविधाओं और कमियों के कारण कोसी और सीमांचल क्षेत्र के लोग प्रधान मंत्री की 'मन की बात' कार्यक्रम को कभी ठीक से सुन नहीं पाए हैं।
* मधेपुरा में अपने रैली में २ नवम्बर 2015 को प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मधेपुरा के लिए किए गए घोषणाएं व वायदे के विपरीत मधेपुरा से दूरदर्शन का टॉवर हटाया जा रह है।
ऐसी परिस्थिति में और तथ्यों के आधार पर मधेपुरा के लोगों ने केंद्रीय मंत्री से अनुरोध किये है की मधेपुरा सहित सिमरी बख्तियारपुर, खगड़िया आदि से दूरदर्शन का टॉवर हटाने की प्रक्रिया को अविलम्ब रोक जाए और इस फैसले को रद्द किया जाए अन्यथा मधेपुरा की जनता इस मुद्दे पर अपना विरोध व सत्याग्रह जारी रखेगी।

People of Madhepura oppose removal of Doordarshan TV Tower. Memorandum to Shri Muppavarapu Venkaiah Naidu, Hon'ble Minister for Information & Broadcasting, Government of India

We, the people of Madhepura (Bihar), would like to draw your attention to the fact that that as soon as the news came that FM Radio Channel would be launched at Madhepura (Bihar), the Deputy Director (Engg) of Prasar Bharati has sent trucks to immediately dismantle the Doordarshan LPT at Madhepura and some other places.
* Doordarshan officials have been arguing that a High Power Transmission has been stationed at Sonebarsa in Saharsa District of Bihar and therefore LPTs at Kalna, Madhepura, Simri Bakhtiyarpur & Khagaria are not needed.
* This argument is wrong because HPT is no replacement for the various Low Power Transmission Tower. HPT does not function as expected and the failure of Fazilka TV Tower, often nicknamed the Fazilka Eiffel Tower and Rameswaram TV Tower, is the second-tallest man-made structure in India, is a case in point. It took 11 years and more than Rs 80 crore to erect it. However, nearly four years after it was erected and made functional, the Fazilka TV tower has failed to serve the very purpose, which necessitated its construction.
The television and the radio signals from Pakistan, which it was supposed to weaken, are still as strong as ever. Worse, the population, mostly rural, in all areas around 100 kilometres from its location, which it was supposed to serve have mostly switched over either to the cable connection or to the DTH.
The approximately 1,000 ft free standing tower, the second tallest man-made structure in India (after Rameshwaram TV tower, which is approximately 1,060 ft tall), has turned into a white elephant now. Planned as a relay station on lines of Jalandhar Doordarshan Kendra, apart from weakening the signals from Pakistan, the tower now relays only Doordarshan channels. No programmes are made here even though it houses the equipment necessary to create and relay them.
• There was a massive protest at Madhepura against this decision earlier also and today, and it is submitted that the LPTs should begin FM Radio Program in these backward area and also other DD Programmes such as Rajya Sabha TV, Lok sabha TV, PMs favorite Kisan Channel etc can be relayed from these LPTs and so they should not be removed.
• Our border areas should not be allowed to fall prey to the allurement of Chinese FM Radio Channels broadcasting Hindi programmes and songs.
• The people of border districts of Madhepura,Saharsa and Supaul, and the people residing in far flung areas of India have not much of chioce than radio as reach of television, internet etc have lots of limitations. It is not just for their entertainment that Radio is important, but it is for News i.e., keeping in touch with India, that Radio matters. The sensitivity of this has always been acknowledged by Government of India in its files and discussions at highest levels.
• The people in districts of Madhepura , Saharsa, Supaul, Purnea, Katihar, Araria and Kishanganj, i.e.,the districts which bore the brunt of Kosi floods of 2008, are facing peculiar problem while tuning to All India Radio Stations.
• Almost all AIR stations are intruded by overlapping Chinese Radio Stations, so much so that irritated listeners prefer to tune in to Radio Nepal to listen to Hindi film songs ans BBC Hindi service to listen to News. AIR Evening News had always been popular, but now BBC is preferred because it can be heard better.AIR Vividh Bharati was most trusted for those in love with Hindi Film songs but now FM of Radio Kantipur has taken its place.Interestingly Chinese do not obstruct Nepal Radio or BBC and even broadcast Hindi Film songs from their Radio stations!
• The Government of India had planned strengethening Radio waves in border areas by providing more radio relay stations in districts like Madhepura and strengthening the broadcasting power of existing ones, but the decision is yet to come out of government files and get implemented.
• This is exactly opposite to what Prime Minister Narendra Modi had promised to the people of Madhepura while addressing an Election Rally on 2nd November, 2015. He went on to say that, "The blessings I have got in all my rallies, I have got more than all of them put together alone in Madhepura." More recently while addressing the nation on Radio in the "Man ki Baat" programmem Shri Narendra Modi goes on to say, " My dear countrymen, India has always tried its best to have close, cordial and vibrant relations with its neighbours. A very important event took place recently. The Honourable President of India Shri Pranab Mukherjee inaugurated a new radio channel named ‘Akashvani Maitree Channel’ at Kolkata. Now, some people may wonder whether Honourable President should inaugurate a Radio Channel? But this is no ordinary Radio Channel, it is a very big and very important step. We have Bangladesh as our neighbour. We know that both Bangladesh and West Bengal continue to have a common cultural heritage. So, Akashvani Maitree on this side and Bangladesh Betaar on that side will mutually share the content and Bengali speaking people on both sides will enjoy the programmes of Akashvani, that is, All India Radio. This people to people contact is a big contribution of Akashvani. The President launched this radio channel..."
In such a circumstance the DD LPT Stations at Madhepura, Simri Bakhtiyarpur & Khagaria (of Border Areas) should not be ordered to be removed, or else the people of Madhepura shall continue the agitation in its support.
We, the people of Madhepura :

Sunday, September 18, 2016

बढ़ता रेल किराया और घटती रेल सुविधा :

हम 'मोदी, मोदी, मोदी.....' करते रह गए, और हे 'प्रभु' तूने यह क्या कर दिया।

मोदी सरकार के तमाम कदम के पीछे आम जनता से उसूले जा रहे पैसे को बढ़ाना और कॉरपोरेट के कदम में डालना ही रहा है। सुरेश प्रभु जैसे मंत्री, जिनके जात पर मंत्री पद तय होता है, जनता से कोई सरोकार नहीं है।
रेल ने किराया बढ़ाने को 'सर्ज प्राइसिंग' कहा है, उसे इस तरह से समझें। आप को सुलभ शौचालय जाना है, जोरों का प्रेशर है, अब वहाँ कर्मचारी आपके 'अर्ज' को देखते हुए अधिक पैसे लेगा। शौचालय कब जा पाएंगे, यह तय नहीं। लोग प्रेशर के साथ लाइन में लगते जायेंगे और 'सुलभ' का सुविधा का दाम बढ़ता जायेगा! तो यह है 'अर्ज प्राइसिंग'!
देश में इस समय 42 राजधानी, 46 शताब्दी तथा 54 दुरंतो ट्रेनें चल रही हैं। रेलवे ने 9 सितंबर के बाद की तिथि पर 'फ्लैक्सी किराया प्रणाली' लागू करने का फैसला लिया है। जिससे बुकिंग बढ़ने के साथ ही किराया भी बढ़ता जाएगा। मांग के अनुसार बढ़ते किराए की व्यवस्था के तहत 10 से 50 प्रतिशत तक अधिक किराया देना पड़ेगा। विमान किराए की तर्ज पर बुकिंग आरंभ होने पर पहली 10 प्रतिशत सीटें मूल किराए पर बुक होंगी। इसके आगे सीटों की बुकिंग 10-10 प्रतिशत बढ़ने पर 10-10 फीसदी किराया भी बढ़ाने का प्रावधान है।
इधर, रेलवे ने हाफ टिकट का कॉन्सेपट बदल दिया है। अभी तक रेलवे में हाफ टिकट लेकर बच्चों के लिए पूरी सीट हासिल करने वाली प्रक्रिया अब समाप्त कर दी जाएगी। रेलवे में अभी 5 से 12 साल के बच्चों का हाफ टिकट लगता है और उन्हें पूरी सीट मिलती है। बच्चों के लिए अगर सीट मांगी जाएगी तो उनका किराया भी पूरा लगेगा। हाफ टिकट पर बच्चे अब माता-पिता या बड़ों की सीट को ही शेयर करेंगे। रेलवे द्वारा जब-जब किराया बढ़ाया जाता है, चंडीगढ़ के यात्रियों से एक रुपये के चार रुपये तक भी वसूले जाते हैं। राउंड फिगर के नाम पर यह दोहरा बोझ डाला जाता है। बुधवार को हुई रेल किराए की बढ़ोतरी में जन शताब्दी, गरीब रथ और इलाहबाद के लिए थर्ड एसी से यात्रा करने वालों को यह अतरिक्त बोझ उठाना होगा।
एक जमाना था जब मालभाड़ा और रेल किराया केवल रेल बजट में ही बढ़ता था. रेल बजट निकला और आम आदमी निश्चिंत हो जाता था साल भर के लिए. यही हाल आम बजट और उससे जुड़े करों का था लेकिन भाजपा ने सारी तस्वीर ही बदल दी है। अब कभी भी रेल किराया बढ़ जाता है और कभी भी अन्य कर लग जाते हैं।
अब लोग पूछ रहे हैं कि अच्छे दिन और उन वायदों का क्या हुआ?
दरअसल, हवाई जहाजों का बेहिसाब बढ़ता किराया रोकने की उम्मीद के विपरीत सरकार ने रेल किराया बढ़ा कर जनता को मंहगाई की मार झेलने के लिए मजबूर कर दिया है। कॉरपोरेट को न हो नुकसान, भाड़ में जाए जनता तमाम।

रेलवे को मुनाफे का जरिया बना कर रिलाएंस या अन्य कॉरपोरेट को सौंपने का विरोध हर देशभक्त का परम कर्तव्य है।

Friday, September 16, 2016

जंजीर में न्याय :

देश की न्यायिक व्यवस्था चरमरा चुकी है।
न्यायमूर्ति जितेंद्र मोहन शर्मा द्वरा शहाबुद्दीन को बेल दी गई है। इस बेल के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में दो अलग अलग याचिकाओं द्वारा चुनौती दी जा रही है। नितीश अब जागे हैं, बीजेपी छाती पीट रही है। सुशील मोदी शहाबुद्दीन पर बोल रहा है, पर देश की न्यायिक व्यवस्था, जो अब केंद्र में भाजपा सरकार के अन्तर्गत है, पर कोई टिपण्णी नहीं कर रहा है। शाहबुद्दीन को सिर्फ इसलिए बेल मिल जाना की कोई प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं की गई के साथ यह भी आदेश आना चाहिए था की जिसकी जिम्मेदारी उस प्रक्रिया पूरी करने की थी, उसे इस गैरजिम्मेदारी के लिए सज़ा भी दी जानी चाहिए। बेल कैसे मिलता है यह कुछ "वकीलों" को ही नहीं, जो बेल ले चुके हुए हैं, उन्हें भी अच्छी तरह मालूम है।
मैं यहाँ दो अलग अलग हाई कोर्ट के व्यक्तिगत अनुभव बताना चाहता हूं।
एक हिस्ट्री शीटर, जिस पर दर्जनों हत्याएँ, फिरौती, लूट, गवाहों को मारने आदि का केस चल रहा है। हाई कोर्ट में उस का बेल मैटर आना था। इसके पहले उस नेता बने अपराधी के भाई को इस आधार पर बेल दिया गया की यह भाई व्यक्तिगत रूप से इन अपराधों में नहीं है, इसलिए इसे बेल दी जाती है और इस आधार पर उस हिस्ट्री शीटर को बेल नहीं दी जाएगी। इधर इस नामी बदमाश के बेल का विरोध के लिए तैयार कुछ एक्टिविस्ट "कंप्यूटर" द्वारा तैयार कॉज लिस्ट पर नज़र रखे हुए थे। परंतु अचानक वह केस लिस्ट पर उसी दिन के लिए सुनवाई पर आता है, और उस हिस्ट्री शीटर को इस आधार पर बेल मिल जाता है की इसी केस में इसके भाई को बेल दी गई है।
दुसरे जगह एक अन्य मामले में केस फाइल होता है।
5.2. 2016 : पहली सुनवाई।
4.3. 2016 : जज नहीं बैठे।
29.4.2016 : जज बदल गए : नोटिस जारी।
16.5.2016 : नोटिस जिन्हें था उन्होंने और समय माँगा।
15.7.2016 : जवाब नहीं दिया गया, 6 अक्टूबर की डेट दे दी गई।
19.7.2016 : चुकी मामला का तब तक कोई मतलब नहीं रह जाता, जल्द सुनवाई के लिए आवेदन: जिसे ख़ारिज कर दिया गया।
दरअसल, विवादो के निपटारे में असामान्य देरी के लिए, लंबित पड़े मामलो के लिए साथ ही साथ न्यायिक प्रक्रिया के गंदे या दोषपूर्ण प्रबंधन ही भारतीय न्यायिक व्यवस्था की पहचान है।
शीर्ष अदालत के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, 1 दिसंबर 2014 को सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या 64,919 है।
24 उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों के लिए उपलब्ध लंबित मामले क्रमश: 44.5 लाख और 2.6 करोड़ है। 24 उच्च न्यायालयों में लंबित 44 लाख मामले में से 34,32,493 दीवानी और 10,23,739 आपराधिक हैं।
न्याय में देरी, अन्याय हैI यह वादी जनता की दुर्दशा एवं बड़े पैमाने पर समाज के लिए कम सरोकार दिखाती है जिसका विनाशकारी परिणाम विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों को भुगतना पड़ता हैI
यह सर्वविदित है कि न्यायिक प्रक्रिया तथाकथित 'मेरिट'वालों के हाथों में है। अब इसके लिए जिम्मेदारी देश के संसद को लेनी होगी और देश में भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा की तरह भारतीय न्यायिक देव की स्थापना और संविधान अनुरूप व्यवस्था जब तक लागू नहीं होगी तब तक यह समस्या विकराल होती जाएगी।
और अगर न्याय की देवी के आँखों से पट्टी नहीं हटेगी तो बहुत देर हो जाएगी।