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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Sunday, December 16, 2012

भारत का काल्पनिक केंद्र- जीरो माइल स्टोन: नागपुर.

भारत का काल्पनिक केंद्र-

जीरो माइल स्टोन: नागपुर, महाराष्ट्र में भारत की भौगोलिक केंद्र की पहचान के लिए अँगरेज़ सरकार द्वारा चार घोड़े और एक बलुआ पत्थर का बना स्तंभ का निर्माण किया गया था। अग्रेजी शासकों ने नागपुर को भारत के केंद्र के रूप में माना और इसके लिए नागपुर को दूसरी राजधानी बनाने की उनकी योजना थी.




Distance from Zero Mile Stone - Ahmadabad 851
Bangalore 1062
Chennai 1117
Delhi 1029
Hyderabad 493
Kolkata 1118
Mumbai 798
Pune 734

Saturday, December 15, 2012

कानपूर में "भ्रष्ट तंत्र विनाशक शनि मंदिर" की स्थापना........Bhrasht Tantra Vinashak Shani Mandir


कानपूर में "भ्रष्ट तंत्र विनाशक शनि मंदिर" की स्थापना हुई है जिसका लोकार्पण पवन राणे वाल्मीकि द्वारा 08.12.2012 को किया गया। मंदिर निजी भूमि पर है जहाँ जनसाधारण को आने की अनुमति है, परन्तु यहाँ वर्तमान व पूर्व IAS / PCS अधिकारीयों, जज, मजिस्ट्रेट, पूर्व व वर्तमान विधायक/सांसद एवं मंत्रियों का आना वर्जित है क्योंकि देश की दुर्दशा के लिए इन्हें ही जिम्मेदार माना गया है। संस्थापकों का कहना है की 20 वर्षों बाद इस नियम पर पुनर्विचार किया जायेगा। मंदिर स्थापना का उद्देश्य यह है की भ्रष्ट शासकों को जनता भगवान की तरह देखने के बजाये, उन्हें तिरस्कृत करें और उनका बहिष्कार हो। मंदिर में शनि देव के साथ हनुमान जी एवं ब्रह्मा जी की मूर्तियाँ हैं। वर्तमान मंत्रियों की तस्वीर शनि देव की वक्र दृष्टि के सामने रखा गया है जिससे अगर वे भ्रष्टाचार करें या जनविरोधी कानून बनाएं तो शनि देव उनका नाश कर दें। सर्वोच्च न्यायालय और इलाहबाद उच्च न्यायालय के जजों की भी तस्वीर लगी है की वे अपने न्याय में किसी प्रकार की त्रुटि न करें। यहाँ प्रसाद चढ़ाना और फूल तोड़ कर अर्पित करना मना है। सिर्फ लौंग, काली मिर्च और इलायांची चढ़ाया जा सकता है। लाऊड स्पीकर, घंटा व शोर करना मना है। मिटटी के दीये में सरसों तेल जलाया जा सकता है। शराब व तम्बाकू का सेवन करने वालों को भी अन्दर जाने की इज़ाज़त नहीं है।

Bhrasht Tantra Vinashak Shani Mandir
(destroyer of the corrupt system) Shani Mandir
Plot No.20, Sumangal Housing Society Near Ratan Orbit, behind Kanpur University , 1
Kilometer on road from Patrakarpuram to Indira Nagar, Post Indiranagar- Kanpur, Uttar Pradesh, IndiaPINCODE- 208026

FeaturesPRAAN PRATISHTHA
OF IDOLS--- ON AKSHAYA TRITIYA -24-04-2012
LOKARPAN (DEDICATION FOR GENERAL PUBLIC)-
By PAVAN RANE BALMIKI A HANDICAPPED
PERSON OF THE SCHEDULED CASTE COMMUNITY
ON SATURDAY -08-12-2012



--Mandir is on private Land,
--Rights of Admission Reserved
--Open for the general public but entry of High
Rank Rulers (most responsible for the present
Plight of the Nation), like past and Present--
IAS/PCS officers; JUDGES/MAGISTRATES; past and
Present MP’s/MLA’s, Ministers is prohibited.
This condition will be reconsidered after twenty
years if things improve.
OBJECT AND MESSAGE TO
THE GENERAL PUBLIC------- Do not treat the
corrupt ruling class like Gods, instead boycott them
and make them understand that they are
despicable people so that they introspect and
improve.
GENERAL PUBLIC TO REMEMBER—That they, the
general public are nothing but the prey for the Ruling(Predatory) Class in INDIA and are hunted &
feasted upon by this predatory class.
--All the Current Politicians Photos kept in direct
sight of Shani Dev Idol so that they will perish if
they make anti people Laws and indulge in
Corruption.
--Photos of All the Supreme Court and Allahabad
High Court Judges kept in direct Sight of Shani Dev
so that they thrive if they give pro-people
Judgments and perish if they indulge in
Sycophancy of the Government and uphold Anti
people Laws and also retrospective Laws.
Deities-
Three Idols of Shani Dev Maharaj in standing pose.
One Idol of Hanumanji.
One Idol of Brahmaji in direct sight of Shani Dev.
Do’s and Don’t’s—
--No Prasad like sweets etc so that the Mandir is
not turned in to a playground of Mice, Ants, insects
etc.
--No flowers as Flowers also have the Right to live
till they die a natural death.
--No Ghanta (Gong); No Loudspeaker to destroy the
peace and quiet of the Neighborhood.
--Request that no oil is poured over Idols.
--Entry of Drunkards and Tobacco chewing public is
hated.
--No spitting
--Prasad of Kaali Mirch (Black-pepper), Cloves and
Elaichi (cardamom). allowed
--Lighting of Diya (earthenware lamps with mustard
oil allowed.
-- Help for establishment of Similar other Mandirs
solicited. In these Bhrasht Tantra Vinashak Shani
Temples, either Dalits or Handicapped persons will get
chance to take pride and earn livelihood by selling
earthen Lamps and permitted Prasad. Endeavor to be
made to break the Caste System of Hindu Religion.

Friday, December 14, 2012

सर क्रीक (Sir Creek) का मुद्दा- गुजरात नहीं भारत का प्रश्न?

नरेन्द्र मोदी ने सर क्रीक के मसले पर इसे पाकिस्तान को दिए जाने की जो शंका जाहिर की, और जिस तरह से कांग्रेस इसका खंडन करने की जगह, मसले को छोड़ कर सिर्फ उसके तकनिकी पहलुओं का जवाब दे रही है, उससे कई सवाल उठते हैं। दरअसल यह मुद्दा सिर्फ गुजरात का नहीं, बल्कि पूरे देश का है।

सर क्रीक का सिर्फ सामरिक महत्व ही नहीं, बल्कि यहाँ पेट्रोल का भंडार होने के प्रमाण भी है। इसके एक टुकड़े को भी दिए जाने से अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून के हिसाब से सैकड़ों किलोमीटर क्षेत्र से भारत का हक समाप्त हो जायेगा।

सर क्रीक का मसला है क्या? मूलतः और स्थानीय स्तर पर भारत पाकिस्तान के बीच कच्च के रण में 96 किलोमीटर के इस दलदली इलाके को 'बाण गंगा' कहा जाता है। अरब सागर से जुड़ने वाला यह क्षेत्र भारत के गुजरात को पाकिस्तान के सिंध प्रान्त से विभाजित करता है। इस इलाके को सिंध प्रान्त का अंग मानते हुए पाकिस्तान इस पर दावा कर रहा है, जबकि भारत ज्वार-भाटा के समय नाले के रूप में परिवर्तित होने वाले इसके धारा के बीचो-बीच को अंतर्राष्ट्रीय सीमा मानता है। भारत 1924 में इस धारा के बीच में स्तंभ लगाकर उसके आधार पर 1925 में बनाये गए नक़्शे को अपने दावा का आधार मानता है। पाकिस्तान, सिंध सरकार और कच रियासत के बीच 1914 के बॉम्बे सरकार प्रस्ताव के अनुच्छेद 9 और 10 के आधार पर पूरे क्षेत्र पर दावा कर रहा है।

1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच इस क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए मुठभेड़ हुए। ब्रिटिश प्रधान मंत्री के हस्तक्षेप से 1968 में एक समाधान निकलता दिखाई पड़ा जिसके अनुसार पाकिस्तान के दावे का 9,000 किलोमीटर का 10% उसे दिए जाने की बात हुई। कारगिल युद्ध के दौरान 10 अगस्त,1999 को भारतीय वायु सेना के मिग-21 विमान ने पाकिस्तानी घुसपैठिये को मार गिराया था।



नरेन्द मोदी ने आरोप लगाया है की डा मनमोहन सिंह ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति ज़रदारी से इस क्षेत्र को पाकिस्तान को सौपनें की 'मौन सहमती' दे चुके हैं। PMO ने ट्वीट कर इस आरोप को "असत्य" बताया है। लेकिन इससे आगे कोई खंडन करने के बजाये कांग्रेस के मनीष तिवारी और सलमान खुर्शीद इस मुद्दे को चुनाव के दौरान उठाये जाने का विरोध कर रहे हैं। मोदी ने प्रधान मंत्री के जवाब को अपर्याप्त कहते हुए कहा है, 'सर क्रीक जमीन का नहीं, जिगर का टुकड़ा है।"


नोट- चित्र में हरी लकीर पाकिस्तानी दावा है, लाल लकीर भारत का दावा है, और काला इलाका वो है जिसपर कोई विवाद नहीं है।

Thursday, December 6, 2012

राज्य सभा में FDI पर अरूण जेटली का प्रभावी भाषण -

आज राज्य सभा में नेता विपक्ष अरुण जेटली ने सिलसिलेवार ढंग से FDI पर मनमोहन सरकार के सभी दावों को निरस्त कर दिया। उन्होंने ने याद दिलाया की यही डा मनमोहन सिंह ठीक एक दशक पहले 6 दिसंबर,2002 को FDI को ख़ारिज करते हुए सदन में कहा था की इससे छोटे दुकानदार, रेहड़ी पटरी वालों के रोज़गार पर विपरीत असर होगा, बेरोज़गारी बढ़ेगी और हिंदुस्तान के लिए उपयुक्त नहीं है। अंतराष्ट्रीय व्यापारिक रियायतों में हमेशा कोई भी देश बदले में कुछ रियायतें प्राप्त करता है, जो दिख नहीं रहा है। सबसे महत्वपूर्ण, लगभग 12 वर्षों से हिंदुस्तान पर रिटेल में FDI लागू करने का अमरीकी दबाब है, परन्तु पता नहीं क्यों पिछले सत्र तक 'आम सहमती' बनाने की बात करने वाली सरकार अचानक इसे लागू कर दिया?

अरुण जेटली ने 'सुधार' के पश्चिमी परिभाषा को चुनौती देते हुए कहा की अमरीका भारत में नौकरियों के आउटसोर्स किये जाने को समाप्त करने की बात कर जब चाहे 'सुधार' को ठेंगा दिखा देता है, लगभग सभी पश्चिमी देश अपने किसानों को वालमार्ट जैसे स्टोर से निपटने के लिए और बाज़ार में अपने उत्पाद की सही कीमत दिए जाने ले लिए प्रतिदिन हजारों डॉलर सब्सिडी देता है, परन्तु हमें मना किया जाता है। ऐसे 'सुधार' को लागू नहीं करना हीं राष्ट्र हित में है।

यह अत्यंत हास्यास्पद हीं है की सत्ता पक्ष इस मुद्दे को ऐसे प्रस्तुत कर रहा था जैसे वालमार्ट कोई धार्मिक या स्वयंसेवी संस्था हो जो भारत आकर यहाँ परोपकार और लोक-कल्याण के कार्य करना चाहती है, और विपक्ष उन्हें रोक रहा है। अगर कांग्रेस नीत यु पी ए सरकार को खुली छूट मिले तो यह कहते हुए की यह भवन बहुत पुरानी हो चुकी है, संसद भवन को हीं वालमार्ट को स्टोर खोलने के लिए बेच दें।

वैसे जो लोग लोक सभा में इस मुद्दे पर अरुण जेटली के विद्यार्थी जीवन के समकालीन लालू प्रसाद अथवा अन्य कांग्रेसी वकील कपिल सिब्बल का भाषण भी सुने हों उन्हें फर्क पता चल गया होगा।



ध्यान दिलाना चाहूँगा की जब लालू प्रसाद पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे, उन्ही दिनों श्रीराम कालेज ऑफ़ कॉमर्स के विद्यार्थी अरुण जेटली भी दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे। दोनों 1974 में कांग्रेस और इंदिरा गाँधी द्वारा जबरन आपातकाल लागू कर तमाम विपक्ष के नेताओं को जेल भेजे जाने के विरोध में जय प्रकाश नारायण के आन्दोलन में शामिल थे। दोनों नेता कनून की डिग्री प्राप्त किये हैं। और जब 1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ तो अरुण जेटली जनता पार्टी के सबसे युवा राष्ट्रिय कार्यकारिणी के सदस्य थे। परन्तु 1977 वे चुनाव नहीं लड़े। लालू प्रसाद को 1977 में बिहार में जनता पार्टी संसदीय दल के अध्यक्ष स्व बी पी मंडल ने, जय प्रकाश बाबु के अनुशंसा पर और बाबु सत्येन्द्र नारायण सिंह और कर्पूरी ठाकुर के आपत्ति के बावजूद, 'राजपूत सीट' छपरा से लोक सभा का टिकट दिया जहाँ से वे छोटे उम्र में सांसद चुने गए।

Tuesday, November 27, 2012

वी पी सिंह के पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि

आज भरत के आठवें प्रधान मंत्री, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मंडल मसीहा राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह की पुण्यतिथि है। राजा साहब से मैं 1987 से हीं जुड़ा था, जब उन्हें अपने मित्र दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष Narinder Tandon के साथ इन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक सभा में आमंत्रित किया था। 27 नवम्बर, 2008 को 77 वर्ष की अवस्था में वी. पी. सिंह का निधन दिल्ली के अपोलो हॉस्पीटल में हुआ था। मैं उनकी अंतिम यात्रा में 1,तीन मूर्ति मार्ग से हवाई अड्डे तक शामिल था।

विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म 25 जून, 1931 उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद ज़िले में हुआ था। वह राजा बहादुर राय गोपाल सिंह के पुत्र थे। उन्होंने इलाहाबाद और पूना विश्वविद्यालय में अध्ययन किया था। वे 1947-1948 में उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी की विद्यार्थी यूनियन के अध्यक्ष रहे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्टूडेंट यूनियन में उपाध्यक्ष भी थे। 9 जून, 1980 से 28 जून, 1982 तक वे उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे। 31 दिसम्बर, 1984 को वह भारत के वित्तमंत्री भी बने। इसी बीच स्वीडन ने 16 अप्रैल, 1987 को यह समाचार प्रसारित किया कि भारत के बोफोर्स कम्पनी की 410 तोपों का सौदा हुआ था, उसमें 60 करोड़ की राशि कमीशन के तौर पर दी गई थी, जिसे बाद में 'बोफोर्स कांड' के तौर पर जाना गया।

12 जनवरी, 1987 को उन्हें वित्त मंत्रालय से हटा कर रक्षा मंत्री बना दिया गया, जिस पद अपर वे 12 अप्रैल,1987 को इस्तीफा देने तक रहे। उसके बाद उन्हें राजीव गाँधी ने कांग्रेस से निष्काषित कर दिया। वी. पी. सिंह ने विद्याचरण शुक्ल, अरुण नेहरु, अरुण सिंह आरिफ मुहम्मद खान, रामधन तथा सतपाल मलिक और अन्य असंतुष्ट कांग्रेसियों के साथ मिलकर 2 अक्टूबर, 1987 को अपना एक पृथक मोर्चा गठित कर लिया। इस मोर्चे को भारतीय जनता पार्टी और वामदलों ने भी समर्थन देने की घोषणा कर दी। इस प्रकार सात दलों के मोर्चे का निर्माण 6 अगस्त, 1988 को हुआ और 11 अक्टूबर, 1988 को राष्ट्रीय मोर्चा का विधिवत गठन कर लिया गया। इधर लोक सभा चुनाव की घोषणा हो गयी।

1989 का लोकसभा चुनाव पूर्ण हुआ। कांग्रेस को भारी क्षति उठानी पड़ी। उसे मात्र 197 सीटें ही प्राप्त हुईं। विश्वनाथ प्रताप सिंह के राष्ट्रीय मोर्चे को 146 सीटें मिलीं। भाजपा के 86 सांसद थे और वामदलों के पास 52 सांसद के समर्थन से राष्ट्रीय मोर्चे को 248 सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो गया और वी. पी.सिंह प्रधानमंत्री बने। दिसंबर 1980 से ठन्डे बस्ते में पड़ी मंडल आयोग के रिपोर्ट को 9 अगस्त, 1990 को आंशिक रूप से लागू कर इस देश के 52% से भी अधिक पिछड़े वर्ग को केंद्र सरकार की नौकरियों में 27% आरक्षण देकर समाजिक न्याय दिलाने का प्रयास किया, जिससे तमाम उच्च जातियां उनकी 'दुश्मन' बन बैठे, की उनकी मृत्यु पर भी उन्हें मिलने वाले सम्मान से वंचित किया गया।


स्व विश्वनाथ प्रताप सिंह की स्मृति में उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।

Saturday, November 24, 2012

नितीश सरकार की रिपोर्ट कार्ड - मुख्यमंत्री का दावा खोखला और आंकड़े किताबी ...

अपने राजनैतिक स्वाभाव के अनुरूप नितीश कुमार अपने सरकार के कामकाज की मीडिया में आज तारीफ के पुल बाँध कर उसकी वाहवाही की डफली बजा रहें हैं. खैर, ऐसा सभी नेता करते हैं. लेकिन अगर इस सरकार की पिछले सरकार से इसलिए तुलना न की जाये क्योंकि तब ' सुशासन' का दावा नहीं था, तो 'सुशासन का सच' दिख जायेगा. मीडिया की तारीफ और सरज़मीन की सच्चाई का एक ट्रेलर तो पटना के अदालतगंज घाट की छठ पूजा की बद-इन्तजामी में हीं दिख गया था जब 20 नवम्बर को कुछ मिनटों पहले मुख्यमंत्री अपने काफिले में हाथ हिलाते गुजरे थे और तब ऐसी दुखद और हृदयविदारक त्रासदी हुई, जिसकी 'जांच' के आदेश देकर उसे भूलने के लिए कह दिया गया. गौरतलब है की जब छठ पूजा (बिहार के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण) की तैयारियां चल रही थी और उसके लिए पास राशियों की बंदरबांट हो रही थी, तब 'अल्पसंख्यक वोट' के लिए बेकरार विकास पुरुष पाकिस्तान में जिन्ना के मकबरे पर पुष्प श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे. 'जाँच' की विषादपूर्ण पहलू यह है की सुशासन बाबू के पहले टर्म में कोसी की भीषण त्रासदी, ( मानव अपराधिक लापरवाही से हुई दुर्घटना को त्रासदी कहते हैं), हुई थी, जिसमें आठ जिले प्रभावित के लाखों लोग प्रभावित हुए थे, और उनकी चल-अचल संपत्ति और पशु-मवेशी का भीषण नुकसान हुआ था. इस त्रासदी की जिम्मेदारी तत्कालीन जल संसाधन मंत्री और उनके रिश्तेदार ठेकेदार और दोषी अभियंताओं का माना गया था. इन लोगों को बचाने के उद्देश्य से एक सद्सीय न्यायिक जांच आयोग, राजेश वालिया कमीशन, गठित किया गया जिसे तीन महीने में रिपोर्ट देना था. आज उस त्रासदी के चार वर्ष से ऊपर हो गए हैं, और RTI जानकारी के अनुसार अब तक इस आयोग पर ढाई करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन रिपोर्ट का अता-पता नहीं है.


अगर कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर इस सरकार के कामकाज का विश्लेषण किया जाये तो पता चलता है की मुख्यमंत्री का दावा खोखला है और आंकड़े किताबी हैं. कहा गया की राज्य में लोकायुक्त का गठन हुआ है. इसके प्रावधानों पर टीम अन्ना ने भी निराशा व्यक्त की थी. संक्षेप में कहा जाय तो यह बताना आवश्यक है की बिहार के लोकायुक्त के समक्ष आम आदमी किसी अधिकारी के भ्रष्टाचार की शिकायत कर हीं नहीं सकता, क्योंकि पहले दोषी अधिकारी के समक्ष वह शिकायत जायेगा, और तब वह अधिकारी अपनी सफाई प्रस्तुत करेगा एवं सरकारी वकील उस अधिकारी का बचाओ करेगा. अगर आपकी शिकायत साबित नहीं हुई ( शिकायत साबित कर हीं नहीं पाएंगे), तो शिकायतकर्ता को जुर्माना और दो साल की जेल बामुशक्कत दिए जाने का प्रावधान है. अधिकारीयों के संपत्ति का ब्यौरा आज कल सबसे हँसाने वाले चुटकुले हैं, और चंदा मामा की कहानियों को मात कर रही है. राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी का पटना के डाक बंगला चौराहे पर भारी संपत्ति और होटल के बारे में रिक्शा वाले भी जानते हैं, परन्तु सरकारी वेबसाइट पर उन्हें चढ़ने के लिए के कार भी नहीं है. ये जो कुछ भ्रष्ट अधिकारी के संपत्ति को जब्त करने की ढिंढोरा पीटा जा रहा है, यह उस समय बेईमानी लगती है जब आपको पता चलेगा की किस निर्लज्जता के साथ सरकार के मंत्री अधिकरियों से पैसों की मांग करते हैं, और बदले में उन्हें जनता और उनके विकास के लिए तय राशियों को लूटने की खुली छूट देते हैं. मधेपुरा जिला में यह आँखों देखी बता रहा हूँ की मंत्री किस तरह अधिकारीयों को बुला कर अपना 'कमीशन' उसूलते हैं. (मंत्रियों के नाम भी कभी सार्वजनिक करूंगा जब उनके कुकर्म का रिकार्डिंग भी मिल जायेगा). आलम यह है की केंद्र सरकार की मनरेगा सरीखे योजनाओं की बड़ी राशी गबन की जा रही है. इसी गबन को और बढ़ाने के लिए तथाकथित 'विशेष दर्जे' की मांग की जा रही है.

कैग ( भारत सरकार का महालेखाकार) के रिपोर्ट में कहा गया था की २००७-०८ तक बिहार सरकार ने ११,४१२ कड़ोड़ रूपये के विकास खर्च के लेख-जोखा में गड़बड़ी की है, और बाद में पटना उच्च न्यायलय ने भी इस पर संज्ञान लिया था और सी बी आई जांच की अनुशंसा की थी , जिसे manage कर लिया गया.
कैग की एक दुसरे रिपोर्ट में कहा गया है की बाढ़ सहायता में एक बड़ा घोटाला हुआ है और अगस्त - अक्तूबर २००७ में कुछ जिलों में ट्रक पर राशन भेजने के बजाय मोटर सायकल पर खाद्य सामग्री ढोए गए थे जिसमें बाढ़ राहत के लिए २७४.१५ quintal का गोल माल हुआ था. विधान सभा में पेश कैग के अन्य रिपोर्ट में दोपहर खाने, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना में भारी घोटाले के आरोप लगाये गए हैं जिन पर राज्य सरकार ने कोई कार्यवाई नहीं की है. कैग रिपोर्ट में राष्ट्रिय ग्रामीण स्वास्थ्य स्कीम, जननी सुरक्षा योजना अदि में भ्रष्ट अफसरशाही के कारण १४०० कड़ोड़ रूपये का घोटाला हुआ. शिक्षक ट्रेनिंग के लिए ८.७३ कड़ोड़ रूपये का कोई उपयोग ही नहीं हुआ.

बिहार पुलिस से अधिक भ्रष्ट शायद हीं किसी राज्य की पुलिस होगी. अगर किसी अपराध की रपट लिखाने थाना जायेंगे, तो उस समय तो आपकी प्रथम सूचना रपट तो हरगिज़ नहीं लिखी जाएगी. जिस पर केस बनता है, थानेदार पहले उससे पैसों की बात करेगा, और अगर बात नहीं बनी तो आपसे पैसे लेकर रिपोर्ट दर्ज की जाएगी. मुझे उस समय घोर आश्चर्य हुआ जब बिहार पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी से पता चला की अपने प्रमोशन के लिए फ़ाइल बढाने के लिए अपने ही मातहत एक कनीय अधिकारी को उन्होंने घूस दी, क्योंकि यही प्रचलन है.

सुशासन बाबू कह रहें है की RTI का प्रावधान किया गया. मैं यह बता देना आवश्यक समझता हूँ की बिहार शायद उन चंद राज्यों में है, जहाँ सबसे अधिक RTI के मामले लंबित है, जिनके जवाब नहीं दिए गए और उन पर अपील की जा रही है, जिसकी सुनवाई नहीं है. बिहार सरकार ने अपनी ओर से अलग प्रावधान किया है की एक बार में सिर्फ दो प्रश्न पूछे जा सकते हैं. दिलचस्प बात यह है की कई ऐसे मामले आये हैं जब RTI में पूछे गए प्रश्न का कोरे कागज़ भेज कर जवाब दिया गया है! यह बिहार सरकार के इस कानून के प्रति उदासीनता का हीं नतीजा है.

बिजली की बात में कई आंकड़े पेश किये गए. बताना चाहूँगा की मधेपुरा जैसे जगह में कई दिनों तो १२ में सिर्फ २ घंटे बिजली आती है. बिजली के दावे का खोखलापन का अंदाज़ा आप ऐसे लगा सकते हैं की अधिकांश जिला मुख्यालयों में सबसे अधिक डीजल की खपत वहां बैंक जैसे प्रतिष्ठानों और कार्यालयों के जेनरेटर चलाने में हीं होते हैं. बिजली की स्थिति का एक वाकया वैशाली जिला के पातेपुर थाना के अंतर्गत इमादपुर गाँव का है, जहाँ 2004 में गाँव का बिजली ट्रांसफर्मर जल गया था, और आज तक बदला नहीं गया क्योंकि गाँव वालों ने इस सुशासन में उसे बदलने के लिए बिजली विभाग के अधिकारीयों को घूस देने से मना कर दिया!
जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में ,
गाँव तक वो रोशनी आयेगी कितने साल में.

अस्पतालों की स्थिति यह है की केंद्र सरकार से प्राप्त जिला अस्पतालों में उपलब्ध दवाईयों के लिए फंड जो पहले जिलों में जिला अधिकारी और सिविल सर्जन के पास होते थे, उसे स्वास्थ्य मंत्री ने कार्यकारी आदेश देकर केन्द्रीयकृत कर दिया है, और अपने पुत्र को एकमात्र एजेंसी नियुक्त किया है, जहाँ से दोयम दर्जे की दवाईयाँ लेना अनिवार्य है!

सडकों की स्थिति दिन पर दिन ख़राब हो रही है और केंद्र सरकार से प्राप्त राशियों पर बनी सडकों का श्रेय भी लेना अब दूभर हो रहा है.

अपने 'अधिकार यात्रा ' के दौरान जगह जगह पर नितीश कुमार पर जूते-चप्पल क्यों चले उस पर थोड़ी जानकारी दे दूं- बिहार में शिक्षा मित्र की शुरुआत तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के शासन काल में हुई थी लेकिन शिक्षामित्र फेज़ २ की शुरुआत वर्तमान मुख्यमंत्री नीतिश कुमार जी के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ. जिसमे असीमित घोटाले हुए. कही कही तो उच्च अंक प्राप्त अभ्यर्थी की जगह पैसे लेकर ऐसे लोगो को शिक्षा मित्र बनाया गया है जो कही से भी उस पद के लायक नहीं थे. जिनका कोउन्सल्लिंग भी नहीं हुआ था, पैसे की माया ने इस मेघा घोटाले को पूरी तरह ढक दिया. अभी भी बिहार के प्रखंड से लेकर जिले तक और जिले से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक सेकडों की तादाद में शिकायत दर्ज है, जिसका निबटारा नीतिश जी के आदेश के बावजूद अभी तक नहीं हुआ है, क्यों की अभ्यर्थी और उनके रिश्तेदार साथ में पंचायत के मुखिया पंचायत सेवक प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी प्रखंड विकास पदाधिकारी आपस में मिलकर पैसे के बल पर गलत रिपोर्ट देते है या फिर रिपोर्ट भेजते ही नहीं जिससे बिहार का अब तक का सबसे बड़ा मेघा घोटाला आज भी फाइलों में ही बंद है, जिसका निष्पादन शायद संभव नहीं. इसके लिए जिस निति की ज़रुरत है वह निति नीतिश जी के पास नहीं है. शिक्षा मित्र की बहाली के लिए जो गाइड लाइन बनाये गए थे वह प्रकाशित होने के बाद हर बार, बार बार, लगातार इतनी बार की लिख नहीं सकते बदले गए, जिसके चलते हमेशा से शिक्षा मित्र फेज़ २ विवादस्पद रही है, कुछ और न सही कम से कम जिन लोगो के उपर शिकायत दर्ज की गयी है उनका तो निष्पादन हो जाये ताकि इस मेघा घोटाले के पाप से नीतिश जी को थोडी मुक्ति मिल जायेगी.

सबसे अधिक विकट स्थिति कृषि क्षेत्र और कृषि में सामुदायिक रिश्तों की है, जिसके बारे में सुशासन बाबू चुप हैं. इसपर विस्तार से अगले पोस्ट में चर्चा करूँगा. जिस राज्य के राजधानी में 'गंग रेप की कई घटनाएं हुई हैं, और खुद मुख्यमंत्री के समक्ष कानून और व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाई गयी है, तो उस पर चर्चा करना हीं बेकार है।

सबसे रोचक मुख्यमंत्री का जनता दरबार है. मुख्यमंत्री के समक्ष जनता दरबार में दिए गए शिकायत में एक भी मामला ऐसा नहीं है जिसका तसल्लिबक्स निपटारा हुआ हो. कहा जा सकता है की सुशासन बाबू के दावे दुरुस्त नहीं है. अब प्रश्न है की क्या सुशासन में कानून व्यवस्था में व्यापक सुधार हुआ है? हम तो वही जानेंगे जो समाचारों में आयेगा. और सुशासन में समाचार वही छपता है जो सुशासन बाबू चाहते हैं. पहले छोटे या जिला स्तर के विज्ञापन जिले में ही तय होते थे. सुशासन बाबू ने इस व्यवस्था में फेर बदल करते हुए इसे केंद्रीकृत कर दिया है. अब छोटे-बड़े सभी विज्ञापन मुख्यमंत्री के यहाँ तय होता है, और छोटे-बड़े समाचार भी वहीँ से मोनिटर होता है. अगर किसी अख़बार ने गुस्ताखी की तो उसका विज्ञापन गया! आर टी आई द्वारा प्राप्त सुशासन में नितीश सरकार द्वारा विभिन्न अख़बार और न्यूज़ चैनलों को वितरित विज्ञापन राशी की २०१०-२०११ की विस्तृत जानकारी उपलब्ध है. गौरतलब है की टाइम्स आफ इंडिया और इकोनोमिक टाइम्स जैसे अख़बार, जो बिहार में अधिक साख नहीं रखतें हैं, उन्हें सबसे अधिक करोड़ों में विज्ञापन दिया गया है. दरअसल इकोनोमिक टाइम्स जैसे अखबार नए नए सर्वे करा कर कुछ आंकड़ें पकाते हैं, जिससे यह साबित हो की बिहार ज़बरदस्त तरक्की कर रहा है, सुशासन से वाकई बिहार में आर्थिक परिवर्तन हो रहा है, और सुशासन बाबू नितीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं, प्रधानमंत्री होना चाहिए.

दरअसल, सबसे अधिक कमी है निष्कपटता की. मैं मरहूम अदम गोंडवी के इन लाईनों से अपनी बात समाप्त करता हूँ –

तुम्हा्री फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है ,
मगर ये आकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है.
उधर जम्हूडरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो,
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है.
लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ गरीबी में,
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है.
तुम्हाधरी मेज चाँदी की तुम्हाबरे ज़ाम सोने के ,
यहाँ जुम्मदन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है.

Monday, November 19, 2012

लक्ष्मीबाई और झलकारीबाई - १८५७ की आज़ादी की प्रथम लड़ाई की वीरांगनाएं.

आज झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्मदिवस है। रानी लक्ष्मीबाई (१९ नवंबर १८२८ – १७ जून १८५८) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थीं। इनका जन्म वाराणसी जिले के भदैनी नामक नगर में हुआ था। इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था पर प्यार से मनु कहा जाता था। इनकी माता का नाम भागीरथी बाई तथा पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं। मनु जब चार वर्ष की थीं तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गए जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया। लोग उसे प्यार से "छबीली" बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली। सन १८४२ में इनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ, और ये झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन १८५१ में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन १८५३ में राजा गंगाधर राव का बहुत अधिक स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव की मृत्यु २१ नवंबर १८५३ में हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।

झाँसी १८५७ के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती भी की गयी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया।
१८५७ के सितंबर तथा अक्तूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया। १८५८ के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लडाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया। परन्तु रानी, दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भागने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली।

तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया. 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा-की-सराय में ब्रिटिश सेना से लढ़ते-लढ़ते रानी लक्ष्मीबाई की मौत हो गई. लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी "सुंदरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए उल्लेखनीय" और "विद्रोही नेताओं में सबसे खतरनाक" थीं. सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता 'झाँसी की रानी' की यह पंक्तियाँ भी हमेशा याद रहेंगी -

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी के साथ झलकारी बाई का नाम लेना भी ज़रूरी है। झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झांसी के पास के भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। झलकारी बाई (२२ नवंबर १८३० - ४ अप्रैल १८५७) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। अपने अंतिम समय में भी वे रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गयीं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उन्होंने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता से लड़ते हुए ब्रिटिश सेना के कई हमलों को विफल किया था। यदि लक्ष्मीबाई के सेनानायकों में से एक ने उनके साथ विश्वासघात न किया होता तो झांसी का किला ब्रिटिश सेना के लिए प्राय: अभेद्य था। झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है। भारत सरकार ने २२ जुलाई २००१ में झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया है, उनकी प्रतिमा और एक स्मारक अजमेर, राजस्थान में निर्माणाधीन है, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उनकी एक प्रतिमा आगरा में स्थापित की गयी है, साथ ही उनके नाम से लखनऊ मे एक धर्मार्थ चिकित्सालय भी शुरु किया गया है।

झलकारी बाई के पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तब उनकी माँ की मृत्यु के हो गयी थी, और उसके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह पाला था। उन्हें घुड़सवारी और हथियारों का प्रयोग करने में प्रशिक्षित किया गया था। उन दिनों की सामाजिक परिस्थितियों के कारण उन्हें कोई औपचारिक शिक्षा तो प्राप्त नहीं हो पाई, लेकिन उन्होनें खुद को एक अच्छे योद्धा के रूप में विकसित किया था। झलकारी बचपन से ही बहुत साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी। झलकारी घर के काम के अलावा पशुओं के रखरखाव और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती थी। एक बार जंगल में उसकी मुठभेड़ एक तेंदुए के साथ हो गयी थी, और झलकारी ने अपनी कुल्हाड़ी से उस जानवर को मार डाला था। एक अन्य अवसर पर जब डकैतों के एक गिरोह ने गाँव के एक व्यवसायी पर हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था। उसकी इस बहादुरी से खुश होकर गाँव वालों ने उसका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक पूरन कोरी से करवा दिया, पूरन भी बहुत बहादुर था, और पूरी सेना उसकी बहादुरी का लोहा मानती थी। एक बार गौरी पूजा के अवसर पर झलकारी गाँव की अन्य महिलाओं के साथ महारानी को सम्मान देने झाँसी के किले मे गयीं, वहाँ रानी लक्ष्मीबाई उन्हें देख कर अवाक रह गयी क्योंकि झलकारी बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखतीं थीं (दोनो के रूप में आलौकिक समानता थी)। अन्य औरतों से झलकारी की बहादुरी के किस्से सुनकर रानी लक्ष्मीबाई बहुत प्रभावित हुईं। रानी ने झलकारी को दुर्गा सेना में शामिल करने का आदेश दिया। झलकारी ने यहाँ अन्य महिलाओं के साथ बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी की प्रशिक्षण लिया। यह वह समय था जब झांसी की सेना को किसी भी ब्रिटिश दुस्साहस का सामना करने के लिए मजबूत बनाया जा रहा था।
लार्ड डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के चलते, ब्रिटिशों ने निःसंतान लक्ष्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि वे ऐसा करके राज्य को अपने नियंत्रण में लाना चाहते थे। हालांकि, ब्रिटिश की इस कार्रवाई के विरोध में रानी के सारी सेना, उसके सेनानायक और झांसी के लोग रानी के साथ लामबंद हो गये और उन्होने आत्मसमर्पण करने के बजाय ब्रिटिशों के खिलाफ हथियार उठाने का संकल्प लिया।

अप्रैल १८५८ के दौरान, लक्ष्मीबाई ने झांसी के किले के भीतर से, अपनी सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश और उनके स्थानीय सहयोगियों द्वारा किये कई हमलों को नाकाम कर दिया। रानी के सेनानायकों में से एक दूल्हेराव ने उसे धोखा दिया और किले का एक संरक्षित द्वार ब्रिटिश सेना के लिए खोल दिया। जब किले का पतन निश्चित हो गया तो रानी के सेनापतियों और झलकारी बाई ने उन्हें कुछ सैनिकों के साथ किला छोड़कर भागने की सलाह दी। रानी अपने घोड़े पर बैठ अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झांसी से दूर निकल गईं।

झलकारी बाई का पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया लेकिन झलकारी ने बजाय अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के, ब्रिटिशों को धोखा देने की एक योजना बनाई। झलकारी ने लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और झांसी की सेना की कमान अपने हाथ मे ले ली। एक बुंदेलखंड किंवदंती है कि झलकारी के इस उत्तर से जनरल ह्यूग रोज़ दंग रह गया और उसने कहा कि "यदि भारत की १% महिलायें भी उसके जैसी हो जायें तो ब्रिटिशों को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा"। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने झलकारी की बहादुरी को निम्न प्रकार पंक्तिबद्ध किया है -



जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झाँसी की झलकारी थी।
गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी।

Sunday, November 18, 2012

There are weird similarities between Abraham Lincoln and John F. Kennedy.


Courtesy OMG Facts post by anonymous -

Abraham Lincoln was elected to Congress in 1846. John F. Kennedy was elected to Congress in 1946.
Abraham Lincoln was elected President in 1860. John F. Kennedy was elected President in 1960.
Both were shot in the back of the head in the presence of their wives.
Both wives lost their children while living in the White House.
Both Presidents were shot on a Friday.
Lincoln's secretary was named Kennedy.
Both were succeeded by Southerners named Johnson.
Andrew Johnson, who succeeded Lincoln, was born in 1808. Lyndon Johnson, who succeeded Kennedy, was born in 1908.
Lincoln was shot in the Ford Theatre. Kennedy was shot in a Lincoln, made by Ford.
Lincoln was shot in a theater and his assassin ran and hid in a warehouse. Kennedy was shot from a warehouse and his assassin ran
and hid in a theater.
Booth and Oswald were assassinated before their trials.

Tuesday, October 9, 2012

इतिहास फिर दोहराया जा रहा है.

इतिहास फिर दोहराया जा रहा है. २००४ में एन डी ए की सरकार, 'इंडिया शायनिंग' का नारा, विनिवेश और निजिकरण के नाम पर सरकारी संपत्ति की खुली लूट, एस ई जेड के नाम पर किसानों की ज़मीन पर कब्ज़ा, अटल जी के मूह्बोले दामाद रंजन भट्टाचार्य का लूट. मन में घुटन, लग रहा था की कांग्रेस अगर सत्ता में रहती तो ऐसा अंधेर न होता. २०१२ में यु पी ए २ की सरकार. 'भारत निर्माण' का नारा, सी डब्लू जी, २ जी, कोल जी इत्यादि की भीषण लूट. इधर रोबेर्ट वाड्रा का डी एल ऍफ़ से सांठ-गाँठ और किसानों की ज़मीन की खुली लूट. आम लोगों को 'मैंगो मैन' और भारत को 'बनाना रिपब्लिक' कह कर अपमानित करना.फिर घुटन. लोग करें भी तो क्या करें? ************************************************************************************* निराशा का दौर - आज पूर्व आई पी एस अधिकारी वाई पी सिंह ने महारष्ट्र में 'लावाषा' परियोजना के सन्दर्भ में शरद पवार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये. उसके पहले भा लो द नेता ओमप्रकाश चौटाला ने राहुल गाँधी पर एक ज़मीन के मामले में स्टाम्प चोरी के आरोप लगाये. आम आदमी बेबस लग रहे हैं. अक्सर मैं लोगों को पूछते सुनता हूँ की अगर भारत सोने की चिड़िया थी, तो इतनी गरीबी क्यों? सदियों से भारत को लूटा गया, और आज भी लूट जरी है. १८९० के दशक में सामाजिक, शैक्षिक और राजनैतिक अधिनायक और कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता दादाभाई नाओरोजी ने एक पुस्तक लिखी - Poverty and Un-British Rule in India, जिसमें उन्होंने बताया की भारत गरीब इसलिए है क्योंकि भारत का दौलत अँगरेज़ लूट कर इंग्लैंड ले जा रहें हैं. अपनी बात को साबित करने के लिए उन्होंने ठोस आंकड़े दिए. आज भी यह मंतव्य सही है. आज के काले अँगरेज़, लूटेरे नेता, अफसर और कार्पोरेट लूट कर संपत्ति विदेशों में काले धन के रूप में जामा किये हुए हैं, इसलिए हम गरीब के गरीब हैं. जनता क्या करे? नेता तो डरने लगे हैं - इन खुलासों के बारे में कहने लगे है की 'अराजकता' फैलाया जा रहा है. और अराजकता से संपत्ति वाले बहुत डरते हैं. मैं फिर मरहूम आदम गोंडवी साहब के इन आखिरी पंक्तियों को दोहराता हूँ - घूस खोरी कालाबाजारी है या व्यभिचार है, कौन है जो कह रहा भारत में भ्रष्टाचार है। जब सियासत हो गई पूंजीपतियों की रखैल, आम जनता को बगावत का खुला अधिकार है।

Thursday, August 30, 2012

संसद नहीं चलने से नुकसान बड़ा या घोटालों पर हंगामा ज़रूरी?

मैं पहले स्पष्ट कर दूं की मैं भा जा पा का पक्षपोषक नहीं हूँ. आज कल कई चैनल और उनके कर्यक्रम में बहस करने वाले हमें यह आंकड़ा देते हैं की एक दिन संसद नहीं चलता है तो देश का ७.५० करोड़ रुपये का नुकसान होता है. समझ में नहीं आता है की वे क्या कहना चाहते है या संसदीय प्रणाली को क्या समझते हैं? उन्हें शायद लगता है की जैसे बैंक या कोई दफ्तर बंद रह गया हो और लोगों का काम रुक गया हो. संसद में काम रोकना भी एक प्रस्ताव के तहत लाया जाता है. परतु कुछ बेहद संवेदनशील मुद्दे होते हैं, जैसे अभी हुआ कोयला घोटाला जिसमें देश के संवैधानिक संस्था, भारत के महालेखाकार (CAG) के अनुसार १,८६,००० करोड़ रूपया का नुकसान हुआ है. अब सरकार इसे मानती ही नहीं और कहती है की "शुन्य-नुकसान" हुआ है. सरकार विवादास्पद कोयला आवंटन भी ख़ारिज नहीं कर रही है और कहती है की वह बहस के लिए तैयार है. अब इसमें बिना कोई कार्यवाई किये, बहस क्या हो? तो संसद में हंगामा होना लाजिमी है. अब रोजाना संसद के नहीं चलने के कारण हुए रुपये का नुकसान देखते हुए, क्या सांसद चुप रहें? और प्रधान मंत्री या मंत्री जो वेतन लेते हैं, और फिर भी काम करना तो दूर, घोटाले करते हैं और देश के राजस्व का नुकसान करें, उसका क्या? अब कोयला घोटाले में ही देखिये, कांग्रेस को मुश्किलों में बचाने वाला समाजवादी, वाम दल और तेलुगु देशम पार्टी भी कल यानि ३१ अगस्त, २०१२ को, संसद के बहार धरने पर बैठेंगे. हो सकता है कुछ चैनल यह भी गिननें लगे धरने पर बैठे सांसदों का एक दिन का कितना वेतन था, और उसे देश के नुकसान में जोड़ने लगें. फिर इसको क्या कहेंगे? ज़रुरत है की देश को हो रहे वृहत नुकसान नहीं हो, और इसे रोकने के लिए अगर संसद को रोकना पड़े, तो वह भी सही.
हमें जुर्म सहने की आदत न होती, तो रहबर हमारे लूटेरे न बनते!

Monday, August 27, 2012

बी पी मंडल - सामाजिक न्याय के प्रणेता.....

आज स्व बी पी मंडल, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, की ९४ वाँ जयंती है, जो बिहार सरकार द्वारा राजकीय समारोह के रूप में उनके पैत्रिक गाँव मुरहो, मधेपुरा और राजधानी पटना में मनाया जाता है. स्व बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल उस महान स्वंत्रता सेनानी और यादव जाति के विभूति स्व रासबिहारी लाल मंडल के पुत्र थे, जो ज़मींदार होते हुए भी कांग्रेस के पार्टी के बिहार से स्थापना सदस्यों में एक थे, अंग्रेजों से लोहा लिए और १९११ में बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश के अग्रणी यादवों को साथ लेकर अखिल भारतीय गोप जातीय महासभा (जिसे बाद में यादव महासभा कहा गया) की स्थापना की. रासबिहारी बाबू के अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई पर तत्कालीन प्रसिद्ध अख़बार अमृता बाज़ार पत्रिका ने १९०८ में अपने सम्पादकीय में उनकी तारीफ की, और दरभंगा महराज ने उन्हें 'मिथिला का शेर' कह कर संबोधित किया. १९१८ में बनारस में ५१ वर्ष की आयु में जब रासबिहारी बाबू का निधन हुआ तो वहीँ बी पी मंडल का जन्म हुआ. रासबिहारी लाल मंडल के बड़े पुत्र भुब्नेश्वरी प्रसाद मंडल थे जो १९२४ में बिहार-उड़ीसा विधान परिषद् के सदस्य थे, तथा १९४८ में अपने मृत्यु तक भागलपुर लोकल बोर्ड (जिला परिषद्) के अध्यक्ष थे. दूसरे पुत्र कमलेश्वरी प्रसाद मंडल आज़ादी की लड़ाई में जय प्रकाश बाबू वगैरह के साथ गिरफ्तार हुए थे और हजारीबाग सेन्ट्रल जेल में थे और १९३७ में बिहार विधान परिषद् के सदस्य चुने गए. बी पी मंडल १९५२ में मधेपुरा विधान सभा से सदस्य चुने गए. १९६२ पुनः चुने गए और १९६७ में मधेपुरा से लोक सभा सदस्य चुने गए. १९६५ में मधेपुरा क्षेत्र के पामा गाँव में हरिजनों पर सवर्णों एवं पुलिस द्वारा अत्याचार पर वे विधानसभा में गरजते हुए कांग्रेस को छोड़ सोशिअलिस्ट पार्टी में आ चुके थे. बड़े नाटकीय राजनैतिक उतार-चढ़ाव के बाद १ फ़रवरी,१९६८ में बिहार के पहले यादव मुख्यमंत्री बने. इसके लिए उन्होंने सतीश बाबू को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनवाए. अतः सतीश बाबू को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनाने वाले स्व बी पी मंडल ही थे. बी पी मंडल ६ महीने तक सांसद थे, और बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी थे. वे राम मनोहर लोहिया जी एवं श्रीमती इंदिरा गाँधी की इच्छा के विरुद्ध बिहार में पहले पिछड़े समाजके मुख्यमंत्री बनने जा रहे थे. परन्तु विधानसभा में बहुमत के बावजूद तत्कालीन ब्राह्मण राज्यपाल रांची जाकर बैठ गए और मंडल जी को शपथ दिलाने से इस आधार पर इंकार कर दिया कि बी पी मंडल बिहार में बिना किसी सदन के सदस्य बने ६ महीने तक मंत्री रह चुके है. परन्तु बी पी मंडल ने राज्यपाल को चुनौती दी और इस परिस्थिति से निकलने के लिए तय किया गया की सतीश बाबू एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बन कर इस्तीफा देंगे जिससे बी पी मंडल के मुख्यमंत्री बनने में राज्यपाल द्वारा खड़ा किया गया अरचन दूर किया जा सके. अब इंदिरा गाँधी और लोहिया जी सभी मंडल जी के व्यक्तित्व से डरते थे और नहीं चाहते थे की सतीश बाबू इस्तीफा दें. परन्तु सतीश बाबू ने बी पी मंडल का ही साथ दिया. आगे की कहानी और दिलचस्प है. उन्ही दिनों बरौनी रिफायनरी में तेल का रिसाव गंगा में हो गया और उसमें आग लग गयी. बिहार विधान सभा में पंडित बिनोदानंद झा ने कहा कि शुद्र मुख्यमंत्री बना है तो गंगा में आग ही लगेगी! साक्ष्य तो इस प्रकरण का बिहार विधानसभा के रिकार्ड में है - बात पहले बिहार विधान सभा की है, जब स्व बी पी मंडल ने आपत्ति की थी कि यादवों के लिए विधान सभा में 'ग्वाला' शब्द का प्रयोग किया गया. सभापति सहित कई सदस्यों ने कहा की यह असंसदीय कैसे हो सकता है क्योंकि यह शब्दकोष (Dictionary) में लिखा हुआ है. स्व मंडल ने कुछ गालियों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये भी तो शब्दकोष (Dictionary) में है, फिर इन्हें असंसदीय क्यों माना जाता है. सभापति ने स्व मंडल की बात मानते हुए, यादवों के लिए 'ग्वाला' शब्द के प्रयोग को असंसदीय मान लिया.लेकिन उन दिनों किन जातिवादी हालातों में बाते हो रही थी, इसका अंदाज़ मुश्किल है. १९६८ में उपचुनाव जीत कर पुनः लोक सभा सदस्य बने. १९७२ में मधेपुरा विधान सभा से सदस्य चुने गए. १९७७ में जनता पार्टी के टिकट पर मधेपुरा लोक सभा से सदस्य बने. १९७७ में जनता पार्टी के बिहार संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के नाते लालू प्रसाद को कर्पूरी ठाकुर और सत्येन्द्र नारायण सिंह के विरोध के बावजूद छपरा से लोक सभा टिकट मंडल जी ने ही दिया. १९७८ में कर्णाटक के चिकमंगलूर से श्रीमती इंदिरा गाँधी के लोक सभा में आने पर जब उनकी सदस्यता रद्द की जा रही थी, तो मंडल जी ने इसका पुरजोर विरोध किया. १.१.१९७९ को प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने बी पी मंडल को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया, जिस जबाबदेही को मानल जी ने बखूबी निभाया. इनके दिए गए रिपोर्ट को लाख कोशिश के बावजूद सर्वोच्च न्यायलय में ख़ारिज नहीं किया जा सका. खैर, उसके बाद की घटनाएं तो तात्कालिक इतिहास में दर्ज है और जो हममें से बहुतों को अच्छी तरह याद है. स्व बी पी मंडल जी की मृत्यु १३ अप्रैल.१९८२ को ६३ वर्ष की आयु में हो गयी. स्व बी पी मंडल के जयंती पर उनकी स्मृति को अनेकों बार नमन.

Sunday, August 26, 2012

रासबिहारी लाल मंडल (१८६६-१९१८) - मिथिला के यादव शेर.

अगर बिहार के आधुनिक इतिहास में पिछड़े वर्ग के और यादव समाज के प्रथम क्रन्तिकारी व्यकित्व का उल्लेख किया जाये तो मुरहो एस्टेट के ज़मींदार रासबिहारी लाल मंडल का ही नाम आयेगा. ज़मींदार होते हुए भी स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रीय और कांग्रेस पार्टी में बिहार से स्थापना सदस्यों में एक रासबिहारी बाबू का साथ सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, बिपिन चन्द्र पाल, सच्चिदानंद सिन्हा जैसे प्रमुख नेताओं से था. १९०८ से १९१८ तक प्रदेश कांग्रेस कमिटी और ए आई सी सी के बिहार से निर्वाचित सदस्य थे. १९११ में गोप जातीय महासभा (बाद में यादव महासभा) की स्थापना के साथ, यादवों के लिए जनेऊ धारण आन्दोलन और १९१७ में मोंटेग-चेल्म्फोर्ड समिति के समक्ष यादवों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए, वायसरॉय चेल्म्फोर्ड को परंपरागत 'सलामी'देने की जगह उनसे हाथ मिलते हुए जब यादवों के लिए नए राजनैतिक सुधारों में उचित स्थान और सेना में यादवों के लिए रेजिमेंट की मांग की तो वे भी दंग रह गए. १९११ सम्राट जार्ज पंचम के हिंदुस्तान में ताजपोशी के दरबार में प्रतिष्टित जगह से शामिल हो कर वह उन अँगरेज़ अफसरों को भी दंग कर दिए जिनके विरुद्ध वे वर्षों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे. कांग्रेस के अधिवेशन में वे सबसे पहले पूर्ण स्वराज्य की मांग की. कलकत्ता से छपने वाली हिंदुस्तान का तत्कालीन प्रतिष्टित अंग्रेजी दैनिक अमृता बाज़ार पत्रिका ने रासबिहारी लाल मंडल की अदम्य साहस और अभूतपूर्व निर्भीकता की प्रशंसा की और अनेक लेख और सम्पादकीय लिखी, और दरभंगा महराज ने उन्हें 'मिथिला का शेर' कह कर संबोधित किया . २७ अप्रैल, १९०८ के सम्पादकीय में अमृता बाज़ार पत्रिका ने कलकत्ता उच्च न्यायलय के उस आदेश पर विस्तृत टिप्पणी की थी जिसमें भागलपुर के जिला पदाधिकारी लायल के रासबिहारी बाबू के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यवहार को देखते हुए उनके विरुद्ध सभी मामले को दरभंगा हस्तांतरित कर दिया था. रासबिहारी बाबू के वकील जैक्सन ने न्यायलय को बताया था की चूँकि तत्कालीन जिला पदाधिकारी सीरीज को १९०२ में मधेपुरा में अदालत और डाक बंगले के निर्माण के लिए काफी भूमि देने के बाद भी, लायब्रेरी के लिए एक बड़े भूखंड (जहाँ अभी रासबिहारी विद्यालय स्थित है) मांगे जाने पर उसे देने से इनकार कर दिया, तब से स्थानीय प्रशासन और पुलिस के निशाने पर आ गए हैं, और उनके विरुद्ध १०० से अधिक मामले दर्ज किये गए हैं, और लगभग एक दर्ज़न बार बचने के लिए उन्हें उच्च न्यायालय के शरण में आना पड़ा है. यह संयोग नहीं है की गिरफ्तार होने से पहले ज़मानत (जिसे आज कल अग्रिम ज़मानत कहते हैं, और जो आम है) हिंदुस्तान के काननों के इतिहास में सबसे पहले रासबिहारी लाल मंडल को ही दिया गया. रासबिहारी लाल मंडल का जन्म मुरहो, मधेपुरा के ज़मींदार रघुबर दयाल मंडल के एकमात्र पुत्र के रूप में हुआ. बचपन में ही उनके माँ-बाप की मृत्यु हो गयी, और तब रानीपट्टी में उनकी नानी ने उनका लालन-पालन किया. रासबिहारी बाबू ११वी तक पढ़े, और हिंदी, उर्दू, मैथिलि, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा का उन्हें ज्ञान था, और हर रोज़ मुरहो में उनके पलंग के बगल में तीन-चार अख़बार उनके पढने के लिए रखा रहता था. रासबिहारी लाल मंडल ने १९११ में यादव जाति के उत्थान के लिए मुरहो, मधेपुरा (बिहार) में गोप जातीय महासभा की स्थापना की. इस महान कार्य में उनका साथ दिया बांकीपुर(पटना) के श्रीयुत्त केशवलाल जी, देवकुमार प्रसादजी, संतदास जी वकील, सीताराम जी, मेवा लाल जी, दसहरा दरभंगा के नन्द लाल राय जी,गोरखपुर के रामनारायण राउत जी, छपरा के शिवनंदन जी वकील, जमुना प्रसाद जी, जौनपुर के फेकूराम जी, सलिग्रामी मुंगेर के रघुनन्दन प्रसाद मुख़्तार जी, हजारीबाग से स्वय्म्भर दासजी, लखनऊ के कन्हैय्यालाल जी, मुरहो, मधेपुरा से ब्रिज बिहारी लाल मंडल जी, रानीपट्टी से शिवनंदन प्रसाद मंडल जी एवं मधेपुरा से लक्ष्मीनारायण मंडल जी. रासबिहारी बाबू ने अपने स्वागत भाषण में इस सभा के उद्देश्य को रेखांकित किया - सनातनधर्मपरायणता, विद्याप्रचार, विवाह विषयक संशोधन, सामाजिक आचरण संसोधन, कृषि, गोरक्ष वान्निज्यो - व्रती, पारस्परिक सम्मलेन, मद्य निषेध तथा अनुचित व्यय निषेध. यह महासभा के संस्थापकों की दूरदृष्टी ही थी जिसके अनुरूप उन्होंने शिक्षा प्रसार को महत्व दिया और स्कूल कालेजों की स्थापना के साथ साथ यादव छात्र- छात्राओं के लिए होस्टलों एवं वजीफे क इंतजाम करने का प्रयास किया जिससे डाक्टर, इंजीनियर बनने के अलावे आई ए एस व आई पी एस भी बनें. प्रत्येक जिले में यादव भवन व संगठन बनाये जाने और 'गोपाल-मित्र' मासिक पत्रिका का मुद्रण का लक्ष्य रखा गया. अपने भाषण के समाप्ति में उन्होंने कहा -" उत्थवयं , जागृतवयं,जोक्तवयं भूति कर्माषु. भावोष्यतीत्येव मनः कृत्वा सततमव्यथै. - उठाना चाहिए जागना चाहिए सत कार्यों में सदैव प्रवृत रहना चाहिए और ढृढ़ विश्वास रखना चहिये की सफलता हमें अवश्य प्राप्त होगी." इस प्रयास पर रासबिहारी बाबू के पौत्र न्यायमूर्ति राजेश्वर प्रसाद मंडल ( पटना उच्च न्यायलय के प्रथम यादव न्यायाधीश) ने कहा था - " अंग्रेजों ने शिक्षा को मंदिर मस्जिद से निकाल कर जनता की झोली में डाल दिया. किन्तु धर्म के द्वारा स्थापित बंधनों पर सबसे बड़ा अघात तब लगा जब बाबू रासबिहारी लाल मंडल ने आवाज़ दी की तोड़ डालों इन बंधनों को, मिटा दो शोषण के इस रीति-रिवाजों को. ब्राहमण ग्रंथों के अनुसार शुद्र समुदाय की श्राद्ध क्रिया को एक माह तक चलनी चाहिए. जनेऊ संस्कार के हकदार ऊँची जाति के ही लोग हुआ करते थे. मंडल जी ने इन पाबंदियों को तोड़ डाला. इनके प्रोत्साहन पर जन समुदाय बारह दिनों में ही श्राद्ध क्रम करने लगे. जेनू धारण करने लगे. एक नया संस्कार जग उठा, एक नया जागरण हुआ." बाद में समाजशास्त्रियों ने इसे "संस्कृतिकरण" कहा. वैसे इसका उच्च जातियों द्वारा पुरजोर विरोध भी हुआ. मुंगेर जिला में यादवों और भुमियारों के बीच संघर्ष हुआ. दरभंगा में तो जनेऊ धारण करने वाले यादवों को दाग दिया गया था. परन्तु रासबिहारी बाबू अपने प्रयास में आगे बढ़ते रहे. उन्होंने ब्राह्मो-समाज के साथ मिलकर ग्राम-सुधार कार्यक्रम भी चलाये. सांप्रदायिक ईर्ष्या-द्वेष, जाति-व्यवस्था, अस्पृश्यता,सती-प्रथा, बाल-विवाह, अपव्यय और ऋण, निरक्षरता और मद्यपान, जसी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध कई सभाएं की. कांग्रेस के १९१८ के कलकत्ता अधिवेशन के दौरान वे बीमार पद गए और ५१ वर्ष की अल्प-आयु में बनारस में २५-२६ अगस्त,१९१८ को रासबिहारी लाल मंडल का निधन हो गया. यह संयोग ही था की उसी दिन बनारस में ही रासबिहारी बाबू के सबे छोटे पुत्र बी पी मंडल का जन्म हुआ. रासबिहारी लाल मंडल के बड़े पुत्र भुब्नेश्वरी प्रसाद मंडल थे जो १९२४ में बिहार-उड़ीसा विधान परिषद् के सदस्य थे, तथा १९४८ में अपने मृत्यु तक भागलपुर लोकल बोर्ड (जिला परिषद्) के अध्यक्ष थे. दूसरे पुत्र कमलेश्वरी प्रसाद मंडल आज़ादी की लड़ाई में जय प्रकाश बाबू वगैरह के साथ गिरफ्तार हुए थे और हजारीबाग सेन्ट्रल जेल में थे और १९३७ में बिहार विधान परिषद् के सदस्य चुने गए.
बी पी मंडल १९५२ में मधेपुरा विधान सभा से सदस्य चुने गए. १९६२ पुनः चुने गए और १९६७ में मधेपुरा से लोक सभा सदस्य चुने गए. १९६५ में मधेपुरा क्षेत्र के पामा गाँव में हरिजनों पर सवर्णों एवं पुलिस द्वारा अत्याचार पर वे विधानसभा में गरजते हुए कांग्रेस को छोड़ सोशिअलिस्ट पार्टी में आ चुके थे. बड़े नाटकीय राजनैतिक उतार-चढ़ाव के बाद १ फ़रवरी,१९६८ में बिहार के पहले यादव मुख्यमंत्री बने. Rash Behari Lal Mandal v. Emperor 12 C.W.N. 117 : 6 C.L.J. 760 : 6 Cr. L.J. 408 where it was held that "the High Court has full jurisdiction under Section 437 of the Criminal Procedure Code to revise a commitment order made under Section 436 on points of law as well as of facts." In Rash Behary Lal Mandal v. Emperor (1908) 35 Cal. 1076, it was held by a Bench of the Calcutta High Court that a warrant of arrest which had been illegally issued under Section 96, Criminal P.C., could not be treated as valid under Section 98.

Late Lamented Rash Behari Lal Mandal, the Yadav King and Lion of Mithila

The editorial of 27th April,1908 Amrita Bazar Patrika, the renowned daily of India then, published from Calcutta was all praise for Rash Bihari Lal Mandal, the Zamindar of Murho Estate, Madhepura for having taken headlong Mr FF Lyall, the haughty Disrtict Magistrate of Bhagalpur, and Mandal's petition at Calcutta High Court for transfer of his cases from Bhagalpur to Darbhanga on the ground of prejudiced attitude of Lyall had been accepted. Lyall raked the issue again by making defamatory comments against the Justices of Calcutta High Court on the order, and was again hauled for it. Before that the 22nd February, 1908 issue of Amrita Bazar Patrika had reported the issue, according to which Mr Jackson, the Lawyer of Rashbihari Lal Mandal had argued before Justice Geidt that since 1902, when Mandal had refused to part with a certain piece of Land at heart of Madhepura (where now Rashbihari Vidyalay stands) on the orders of the Mr Shirres, the then District Magistrate, had incurred the wrath of the administration and police. Since then series of criminal cases were brought against Mr Mandal and he had to move to High Court more than a dozen of times to save himself. It was not a mere coincidence that the first person to be granted bail before arrest (so common these days as Anticipatory Bail), on the orders of Calcutta High Court was Late Rashbihari Lal Mandal. The Gazetteer of Bhagalpur District has also mentioned the extraordinary case of Rashbihari Lal Mandal. Late Rashbihari Lal Mandal had many distinctions to his credit. Born in 1866 to Raghubar Dayal Mandal, the Zamindar of Murho, he had inherited considerable property at Ranipatti also. Rashbihari Lal's parents died when he was very young and he had to look after his estate since adolescence. He was educated till Class XI and knew many languages including Sanskrit, Hindi, Maithili, English, Urdu, Persian and French. Everyday newspaper in various languages were by his bedside at Murho. By 1908 Rashbihari Lal Mandal had come to the forefront of the National Movement, started his contribution in the Social Justice Movement and continued his legal crusade against the British rulers. However, late Rashbihari Lal Mandal also made history by attending the coronation of King GeorgeV at Delhi and also by leading a delegation of Yadav leaders to Montagu-Chelmsford Committee to demand rights for Yadav's and also to establish Ahir Regiment in the Army. Here he shook hands with Lord Chelmsford rather than rendering the traditional 'salami' to the Viceroy. Rashbihari Lal Mandal was the first leader of Yadav Community, nay the Backward Classes, to be the elected Member of Provincial Congress Committee and the All India Congress Committee from Bihar. He came in contact with Surendra Nath Bannerjea, Bipin Chandra Pal,Sachidanand Sinha and other Congress leaders at Calcutta, and remained on the forefront of the Congress leadership of Bihar till his death in 1918. Dr Rajendra Prasad had confided with Late B P Mamdal, the youngest son of late Rashbihari Lal Mandal in 1952, when he had gone to seek Congress ticket for Vidhan Sabha, that Rashbihari Babu used to be our inspiration and guide us at Calcutta when we were students. Rashbihari Lal Mandal organised the first GopeJatiy Mahasabha (later christened as Yadav Mahasabha) at Murho, Madhepura in December, 1911. The other Yadav leaders who had joined him in this endeavor included Keshav Lal, Devkumar Prasad, Sant Das(Pleader), Sita Ram, Mewa Lal from Bankipore (Patna), Kanhaiya Lal (Lucknow), Ram Narayan Raut (Gorakhpur), Shiv Nandan Prasad(Pleader), Jamuna Prasad(Chhapra), Feku Ram (Jaunpur), Nandlal Rai (Dashara, Darbhanga), Ram Dhani Gope, Ram Dhyan Prasad (Muzaffarpur), Syambhardas (Hazaribagh), Raghunandan Prasad (Saligrami,Munghyr), Brij Bihari lal Mandal, Shiv Nandan Prasad Mandal (Madhepura). The resolutions adopted at the Mahasabha included steps to improve education among Yadav's by establishing, Schools, Colleges, Boarding Houses and giving stipends, stopping Child-Marriage, ending Dowry System, staying away from Liquor consumption, improving Agriculture practices, protecting Cows, taking part in Commerce, avoid fight among themselves, establish Gope Jatiy Buildings and organisation in every district with a Secretary, bring out a Monthly Magazine "Gopal Mitr" and have a session of Mhasabha annually at different places. The most important step taken by the Mahasabha was what was later called "Sanskritisation" by Sociologists, or holding of 'Janaiu Dharan' ceremony. This was vehemently opposed by the upper caste and caste clashes took place at Munger while the Yadav's who had donned sacred thread were cauterised. It was a unique coincidence that when Late Rash Bihari Lal Mandal breathed his last at a young age of 51 at Benaras on 25th-26th
August 1918, it was here that his youngest son B P Mandal, former Chief Minister of Bihar was born. Rashbihari Babu's eldest son was Bhubneshwari Prasad Mandal, Member, Bihar-Orissa Legislative Council in 1924 and Chairman, Bhagalpur Local Board (District Board) till his death in 1948, and second son was Kamleshwari Prasad Mandal, member, Bihar Legislative Concil in 1937. His eldest grandson Justice Rajeshwar Prasad Mandal was the first Yadav Judge of Patna High Court. Other grandsons including Suresh Chandra Yadav was Ex-MLA, Ramesh Chandra Yadav, Advocate was Chairmn of Bhumi Vikas Bank, Director, Madhepura-Supaul Central Co-operative bank and Ward Commissioner, Madhepura Municiapality and Manindra kumar Mandal, Ex-MLA. *************************************************************************************
Rash Behari Lal Mandal v. Emperor 12 C.W.N. 117 : 6 C.L.J. 760 : 6 Cr. L.J. 408 where it was held that "the High Court has full jurisdiction under Section 437 of the Criminal Procedure Code to revise a commitment order made under Section 436 on points of law as well as of facts."
Rash Behari Lal Mandal and Ors. v. The Emperor (1907) 12 C.W.N. 117. Under the Codes of 1871 and 1892 it has been held that this Court will not exercise its power of revision on the ground that the lower Court has not rightly appreciated the evidence the reason being that it is for the Court called upon to determine whether the person charged is guilty or not, to consider and weigh the evidence, and any error as to the probative force and effect is not open to correction on revision, but only on appeal.
In Rash Behary Lal Mandal v. Emperor (1908) 35 Cal. 1076, it was held by a Bench of the Calcutta High Court that a warrant of arrest which had been illegally issued under Section 96, Criminal P.C., could not be treated as valid under Section 98.

Sunday, August 12, 2012

आमिर खान का नीतीश को पत्र, गया अश्विनी चौबे के कूड़े में..


सत्यमेव जयते जैसे कार्यक्रम से चर्चा में आये आमिर खान का एक एपिसोड जेनेरिक दवाओं को लेकर था। आमिर खान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर यह आग्रह किया है कि वे राज्य में आम लोगो के लिए जेनेरिक दवाओं को सुलभ कराने की दिशा में प्रयास करें।

आमिर ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि वे जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता बढ़ाए ताकि इससे मघ्य वर्ग और निम्नमघ्य वर्ग के लोगों को लाभ पहुंच सके। आमिर खान ने आगे लिखा है कि हाल में किए गए शोध से यह पता चला है कि जेनेरिक दवाऐं किसी भी सूरत में कमतर नहीं है और उनका असर मरीजों पर वही होता है जो महंगी दवाओं का होता है।


अब बेचारे आमिर हिन्दुस्तानी, क्यों सुशासन बाबु को राज्य में आम लोगो के लिए जेनेरिक दवाओं को सुलभ कराने की दिशा में प्रयास करने के आग्रह के लिए  पत्र लिख कर वक़्त बर्बाद कर रहे हैं? उन्हें कोई सूचना दे की बिहार में जेनेरिक दवाओं की क्या बात की जाये, सभी सदर और अन्य अस्पतालों में तमाम दवाइयों की सप्लाई स्वास्थ्य मंत्री के दफ्तर में केन्द्रित कर दिया गया है. यहाँ भी सप्लाई का एकाधिकार स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे (वही जो डाक्टरों के हाथ काटने जी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं) के नजदीकी रिश्तेदारों के पास है, जो केंद्र सरकार द्वारा अस्पतालों को दवाई खरीदने के लिए भेजे गए फंड से सिर्फ इनसे घटिया दवाई खरीदने को बाध्य हैं. इसमें भी सभी सिविल सर्जन से मोटे कमीशन की मांग की जाती है, और मधेपुरा सदर अस्पताल जैसे कई अस्पताल के सिविल सर्जन कमीशन देने से मना कर देते हैं, तो वहां दवाइयों को खरीदा ही नहीं जाता है, जिससे आम रोगियों को बिना अस्पताल के दवाई के ही रहना पड़ता है अथवा बाज़ार से महंगे दवाई का ही सहारा रह जाता है. और यह सब होता है पुरुष नहीं, बल्कि विकास पुरुष नितीश कुमार के पूरे सूचना में. तो बताईये बेचारे जेनेरिक दवाई के लिए कौन आमिर खान के पत्र की सुधि लेगा?

ब्रांडेड दवाएं बनाने वाली कम्पनियां जेनेरिक दवाएं भी बनाती है। आमिर ने बताया कि हिन्दुस्तान से साल भर में 35 हजार करोड़ रूपये की जेनेरिक दवाओं का निर्यात होता है। इससे यह स्पष्ट है कि हमारी कम्पनियां जेनेरिक दवाएं बनाती है। किन्तु वे इसका व्यापार करती हैं। वे इसे अपने देश की जनता को उपलब्ध नहीं कराती है। आमिर ने आशा व्यक्त किया है कि मुख्यमंत्री इन जेनेरिक दवाओं को राज्य की जनता को उपलब्ध कराने में अच्छी भूमिका निभा सकतें है।

Saturday, August 11, 2012

Trains from Dauram Madhepura/DMH to Samastipur Junction/SPJ


11 Trains / 0 ΣChains from Dauram Madhepura/DMH to Samastipur Junction/SPJ

Try these Xfer Stations:

55553 Dauram Madhepura Samastipur Passenger
SMTWTFS
DMH Dep: 05:45 to SPJ Arr: 12:25
Unreserved
15209 Jan Seva Express
SMTWTFS
SHC Dep: 08:45 to BJU Arr: 11:25
Unreserved
55567 Saharsa Samastipur Passenger
SMTWTFS
SHC Dep: 10:10 to SPJ Arr: 14:45
Unreserved
15279 Poorbiya Express
ST
SHC Dep: 11:00 to BJU Arr: 13:30
IISL3A
23225 Saharsa-Dnapur InterCity Link Express
MTWTFS
SHC Dep: 12:50 to BJU Arr: 16:05
IICC
12203 Saharsa Amritsar Garib Rath
SMT
SHC Dep: 15:00 to SPJ Arr: 18:12
CC3A
08623 Saharsa-Ranchi Weekly Special
T
SHC Dep: 15:00 to BJU Arr: 17:05
IISL3A
14603 Saharsa-Amritsar Jan Sadharan Express
F
SHC Dep: 16:15 to SPJ Arr: 20:15
Unreserved
55565 Saharsa Samastipur Passenger
SMTWTFS
SHC Dep: 17:00 to SPJ Arr: 21:30
Unreserved
15275 Saharsa-Barauni Express
SMTWTFS
SHC Dep: 18:00 to BJU Arr: 21:15
Unreserved
15283 Janaki Express
MWF
SHC Dep: 23:15 to SPJ Arr: 02:15 +1 night
IISL3A