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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Tuesday, July 31, 2012

पी. चिदंबरम - दागी या प्रतिभावान? Chidambaram - Tainted or Talented?

तो पी. चिदंबरम को पुनः वित्त मंत्री बनाया गया है. या तो कांग्रेस में talent की कमी है, अथवा सिर्फ tainted ही बचे है.
 ये तमाशा देख कर हम आईना-बेज़ार हैं ,
जिनके चेहरे ही नहीं वो आईना-बरदार हैं.
ऐ मेरी जम्हूरियत! तेरी कहानी है अजीब,
काबिल-ए-नफरत हैं जो, वो साहब-ए-किरदार हैं.

देखने वाली बात यह होगी की 2 जी में चिदंबरम की भूमिका के बारे में सुब्रमनियम स्वामी की सर्वोच्च न्यायालय में लंबित याचिका में अगर प्रथम दृष्टया सही पाती है और कार्यवाई की आदेश देती है तो अगला वित्त मंत्री कौन होंगें?

पी.चिदंबरम पर अन्य आरोप- १) एयरसेल-मक्सिस सौदा विवाद, जिसमें उनके बेटे कार्तिक चिदंबरम पर आरोप है.

                            २)काला धन- चिदंबरम पर विदेशों में काला धन संचय करने के आरोप लगे है, जिसपर उसने कोई सफाई नहीं दी है. 

                            ३)एनरोन का वकालत- दिवालिया अमरीकी कंपनी एनरोन का वकील थे.

                            ४) १० जुलाई १९९२ को भारत सरकार के वाणिज्य राज्यमंत्री पद से फेयरग्रोथ कंपनी, जो प्रतिभूति घोटाले में शामिल थी, में निवेश करने पर इस्तीफा दिया.

                            ५) वित्तमंत्री रहते उनके स्वैच्छिक आय प्रकटीकरण योजना या Voluntary Disclosure of Income Scheme (VDIS) को भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने अपनी  रिपोर्ट में इस योजना की निंदा करते हुए इसे वास्तविक करदाताओं के लिए अपमानजनक और धोखाधडी बताया.

                            ६) महंगाई के अनेक कारण हैं. उनमें एक है पी. चिदंबरम की देन - पी नोट्स, जो पूरी दुनिया में सिर्फ भारत में लागू है - जिसका अर्थ है की विदेशों में जमा काले धन वाले बिना अपनी जानकारी दिए,सेबी के विरोध के बावजूद, शेयर बाज़ार में निवेश कर सकते हैं, और इसमें मॉरिशस को टैक्स में विशेष छूट है, नतीजा बेनामी निवेशक जम कर पैसा लगा रहे हैं, चीजें कम और रुपये अधिक, दाम बढ़ेंगे नही तो और क्या होगा? उधर तमाम विदेशी कम्पनी मॉरिशस में एक कमरा लेकर उसी पते से शेयर बाज़ार में पूंजी लगा रहे हैं, और टैक्स देने से भी बच रहे हैं! जय हो धोती-लुंगी वाले की. 

                            ७) अगस्त २००६ में राष्ट्रपति ऐ.पी. जे.अब्दुल कलाम ने इस बात के जांच के आदेश दिए थे की प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी.चिदंबरम चुनाव के वक़्त राजीव गाँधी foundation में लाभ के पद पर थे. आज तक चुनाव आयोग जाँच कर ही रहा है. 

                            ८) २००९ के लोक सभा चुनाव में अन्नादृमक के प्रत्याशी के विर्रुध चंद वोटों से जीत पर शिवगंगा लोक सभा क्षेत्र के चुनाव अधिकारी पर बेईमानी से जितने का आरोप सहित कई विवाद उठा.


                            ९) हाल में ही रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के समर्थकों पर बीच रात में सोते हुए लोगों पर लाठी बरसवाने जैसे कायरतापूर्ण कार्यवाई और अन्ना हजारे की गिरफ़्तारी जैसे राजनैतिक भूल का श्रेय भी इन्ही महाशय का था.

ऐसी स्थिति में पी.चिदंबरम को मंत्री बनाना प्रतिभा की पहचान या एक दागी का सम्मान है- यह आप ही तय करें.

Friday, July 27, 2012

Should Indian Citizens contemptuous of Government's inability to deal with corruption approach the United Nations?


Salman Khurshid mocks Team Anna, asks them to move UN - ANI

www.aninews.in/.../salman-khurshid-mocks-team-anna-asks-th...


So, a senior Union Minister of Government of India Mr Salman Khursheed has said that the citizens of India should move to United Nations on the question of Corruption. Mr Khursheed is also a lawyer and he has a point here, knowing the limitations of the Government of India on controlling the spiraling Corruption. So, I am posting the details of relevant office of the United Nations for the citizens of India who want to approach United Nations on this complaint. 


It is pertinent to mention here that The United Nations Convention against Corruption (UNCAC) is the first legally binding international anti-corruption instrument.In its 8 Chapters and 71 Articles, the UNCAC obliges its States Parties to implement a wide and detailed range of anti-corruption measures affecting their laws, institutions and practices. These measures aim to promote the prevention, criminalization and law enforcement, international cooperation, asset recovery, technical assistance and information exchange, and mechanisms for implementation.

Article 63 of the UNCAC establishes a CoSP with a mandate to, inter alia, promote and review the implementation of the Convention. In accordance with Article 63, "the Conference shall establish, if it deems necessary, any appropriate mechanism or body to assist in the effective implementation of the Convention". At its first session, held in Jordan in December 2006, the CoSP agreed that it was necessary to establish an appropriate and effective mechanism to assist in the review of the implementation of the Convention (Resolution 1/1). The Conference established an open-ended intergovernmental expert group to make recommendations to the Conference on the appropriate mechanism, which should allow the Conference to discharge fully and efficiently its mandates, in particular with respect to taking stock of States’ efforts to implement the Convention.

In general, the adoption of an effective follow-up monitoring mechanism is often considered to be one of the biggest challenges that still lies ahead. Many developing countries also face the challenge of implementing the demanding provisions of the UNCAC into national law, and above all into the reality of daily life. Effective technical assistance, as foreseen in the UNCAC ( Coalition of Civil Services Organisations), is therefore crucial for the successful implementation of the Convention.


UN Resident Coordinator's Office

 55 Lodi Estate

New Delhi-110003

India

tel:  91-11-46532333

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Wednesday, July 25, 2012

राजेश खन्ना का आखिरी रेकॉर्डेड सन्देश......फिल्म 'आनंद' की तरह.


दोस्तों, इस ऑडियो क्लिप को सुनिए...जैसे राजेश खन्ना धन्यवाद् दे रहें हों उनलोगों को जो उनके आखिरी यात्रा में शामिल हुए...जो काका के फैन थे, और जो नहीं भी थे, सुनने में अच्छा लगेगा..अलविदा सुपरस्टार.

Tuesday, July 24, 2012

छत्रपति शाहूजी महाराज - रियासत कोल्हापुर के शासक

इतिहास के पन्ने से....आरक्षण के बारे में दो शब्द...
विंध्य के दक्षिण में प्रेसीडेंसी क्षेत्रों और रियासतों के एक बड़े क्षेत्र में पिछड़े वर्गो (बीसी) के लिए आजादी से बहुत पहले आरक्षण की शुरुआत हुई थी. महाराष्ट्र में कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति साहूजी महाराज ने 1902 में पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने और राज्य प्रशासन में उन्हें उनकी हिस्सेदारी देने के लिए आरक्षण का प्रारम्भ किया था. कोल्हापुर राज्य में पिछड़े वर्गों/समुदायों को नौकरियों में आरक्षण देने के लिए 1902 की अधिसूचना जारी की गयी थी. यह अधिसूचना भारत में दलित वर्गों के कल्याण के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने वाला पहला सरकारी आदेश है.
पिछड़े वर्गों का आंदोलन भी सबसे पहले दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु में जोर पकड़ा. देश के कुछ समाज सुधारकों के सतत प्रयासों से अगड़े वर्ग द्वारा अपने और अछूतों के बीच बनायी गयी दीवार पूरी तरह से ढह गयी; उन सुधारकों में शामिल हैं रेत्तामलई श्रीनिवास पेरियार, अयोथीदास पंडितर, ज्योतिबा फुले, बाबा साहेब अम्बेडकर, छत्रपति साहूजी महाराज और अन्य.

  • 1901- महाराष्ट्र के सामंती रियासत कोल्हापुर में शाहू महाराज द्वारा आरक्षण शुरू किया गया. सामंती बड़ौदा और मैसूर की रियासतों में आरक्षण पहले से लागू थे.
  • 1979 - सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मंडल आयोग को स्थापित किया गया. आयोग के पास उपजाति, जो अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी (OBC)) कहलाती है, का कोई सटीक आंकड़ा था और ओबीसी की 52% आबादी का मूल्यांकन करने के लिए 1930 की जनगणना के आंकड़े का इस्तेमाल करते हुए पिछड़े वर्ग के रूप में 1,257 समुदायों का वर्गीकरण किया.
  • 1980 - आयोग ने एक रिपोर्ट पेश की, और मौजूदा कोटा में बदलाव करते हुए 22% से 49.5% वृद्धि करने की सिफारिश की.
  • 1990 मंडल आयोग की सिफारिशें विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू किया गया.
छत्रपति साहू महाराज (अंग्रेज़ी: Chhatrapati Shahu Maharaj, जन्म- 26 जुलाई, 1874; मृत्यु- 10 मई, 1922, मुम्बई) को एक भारत में सच्चे प्रजातंत्रवादी और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता था। वे कोल्हापुर के इतिहास में एक अमूल्य मणि के रूप में आज भी प्रसिद्ध हैं। छत्रपति साहू महाराज ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने राजा होते हुए भी दलित और शोषित वर्ग के कष्ट को समझा और सदा उनसे निकटता बनाए रखी। उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की थी। गरीब छात्रों के छात्रावास स्थापित किये और बाहरी छात्रों को शरण प्रदान करने के आदेश दिए। साहू महाराज के शासन के दौरान 'बाल विवाह' पर ईमानदारी से प्रतिबंधित लगाया गया। उन्होंने अंतरजातिय विवाह और विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में समर्थन की आवाज उठाई थी। इन गतिविधियों के लिए महाराज साहू को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। साहू महाराज ज्योतिबा फुले से प्रभावित थे और लंबे समय तक 'सत्य शोधक समाज', फुले द्वारा गठित संस्था के संरक्षण भी रहे।
छत्रपति साहू महाराज का जन्म 26 जुलाई, 1874 ई. को हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे था। छत्रपति साहू महाराज का बचपन का नाम 'यशवंतराव' था। छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य करते थे। ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राह्मण दीवान की गद्दारी की वजह से जब शिवाजी चतुर्थ का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने जागीरदार जयसिंह राव आबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को मार्च, 1884 ई. में गोद ले लिया। बाल्य-अवस्था में ही यशवंतराव को साहू महाराज की हैसियत से कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी को सम्भालना पड़ा। यद्यपि राज्य का नियंत्रण उनके हाथ में काफ़ी समय बाद अर्थात 2 अप्रैल, सन 1894 में आया था।
छत्रपति साहू महाराज का विवाह बड़ौदा के मराठा सरदार खानवीकर की बेटी लक्ष्मीबाई से हुआ था।
साहू महाराज की शिक्षा राजकोट के 'राजकुमार महाविद्यालय' और धारवाड़ में हुई थी। वे 1894 ई. में कोल्हापुर रियासत के राजा बने। उन्होंने देखा कि जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग पिस रहा है। अतः उन्होंने दलितों के उद्धार के लिए योजना बनाई और उस पर अमल आरंभ किया। छत्रपति साहू महाराज ने दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए। इससे उनमें शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी। परन्तु उच्च वर्ग के लोगों ने इसका विरोध किया। वे छत्रपति साहू महाराज को अपना शत्रु समझने लगे। उनके पुरोहित तक ने यह कह दिया कि- "आप शूद्र हैं और शूद्र को वेद के मंत्र सुनने का अधिकार नहीं है। छत्रपति साहू महाराज ने इस सारे विरोध का डट कर सामना किया।
साहू महाराज हर दिन बड़े सबेरे ही पास की नदी में स्नान करने जाया करते थे। परम्परा से चली आ रही प्रथा के अनुसार, इस दौरान ब्राह्मण पंडित मंत्रोच्चार किया करता था। एक दिन बंबई से पधारे प्रसिद्ध समाज सुधारक राजाराम शास्त्री भागवत भी उनके साथ हो लिए थे। महाराजा कोल्हापुर के स्नान के दौरान ब्राह्मण पंडित द्वारा मंत्रोच्चार किये गए श्लोक को सुनकर राजाराम शास्त्री अचम्भित रह गए। पूछे जाने पर ब्राह्मण पंडित ने कहा की- "चूँकि महाराजा शूद्र हैं, इसलिए वे वैदिक मंत्रोच्चार न कर पौराणिक मंत्रोच्चार करते है।" ब्राह्मण पंडित की बातें साहू महाराज को अपमानजनक लगीं। उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया। महाराज साहू के सिपहसालारों ने एक प्रसिद्ध ब्राह्मण पंडित नारायण भट्ट सेवेकरी को महाराजा का यज्ञोपवीत संस्कार करने को राजी किया। यह सन 1901 की घटना है। जब यह खबर कोल्हापुर के ब्राह्मणों को हुई तो वे बड़े कुपित हुए। उन्होंने नारायण भट्ट पर कई तरह की पाबंदी लगाने की धमकी दी। तब इस मामले पर साहू महाराज ने राज-पुरोहित से सलाह ली, किंतु राज-पुरोहित ने भी इस दिशा में कुछ करने में अपनी असमर्थता प्रगट कर दी। इस पर साहू महाराज ने गुस्सा होकर राज-पुरोहित को बर्खास्त कर दिया।
आरक्षण की व्यवस्था:
सन 1902 के मध्य में साहू महाराज इंग्लैण्ड गए हुए थे। उन्होंने वहीं से एक आदेश जारी कर कोल्हापुर के अंतर्गत शासन-प्रशासन के 50 प्रतिशत पद पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिये। महाराज के इस आदेश से कोल्हापुर के ब्राह्मणों पर जैसे गाज गिर गयी। उल्लेखनीय है कि सन 1894 में, जब साहू महाराज ने राज्य की बागडोर सम्भाली थी, उस समय कोल्हापुर के सामान्य प्रशासन में कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी नियुक्त थे। इसी प्रकार लिपिकीय पद के 500 पदों में से मात्र 10 पर गैर-ब्राह्मण थे। साहू महाराज द्वारा पिछड़ी जातियों को अवसर उपलब्ध कराने के कारण सन 1912 में 95 पदों में से ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या अब 35 रह गई थी। सन 1903 में साहू महाराज ने कोल्हापुर स्थित शंकराचार्य मठ की सम्पत्ति जप्त करने का आदेश दिया। दरअसल, मठ को राज्य के ख़ज़ाने से भारी मदद दी जाती थी। कोल्हापुर के पूर्व महाराजा द्वारा अगस्त, 1863 में प्रसारित एक आदेश के अनुसार, कोल्हापुर स्थित मठ के शंकराचार्य को अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति से पहले महाराजा से अनुमति लेनी आवश्यक थी, परन्तु तत्कालीन शंकराचार्य उक्त आदेश को दरकिनार करते हुए संकेश्वर मठ में रहने चले गए थे, जो कोल्हापुर रियासत के बाहर था। 23 फ़रवरी, 1903 को शंकराचार्य ने अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति की थी। यह नए शंकराचार्य लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के क़रीबी थे। 10 जुलाई, 1905 को इन्हीं शंकराचार्य ने घोषणा की कि- "चूँकि कोल्हापुर भोसले वंश की जागीर रही है, जो कि क्षत्रिय घराना था। इसलिए राजगद्दी के उत्तराधिकारी छत्रपति साहू महाराज स्वाभविक रूप से क्षत्रिय हैं।"
स्कूलों व छात्रावासों की स्थापना:
मंत्री ब्राह्मण हो और राजा भी ब्राह्मण या क्षत्रिय हो तो किसी को कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन राजा की कुर्सी पर वैश्य या फिर शूद्र शख्स बैठा हो तो दिक्कत होती थी। छत्रपति साहू महाराज क्षत्रिय नहीं, शूद्र मानी गयी जातियों में आते थे। कोल्हापुर रियासत के शासन-प्रशासन में पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व नि:संदेह उनकी अभिनव पहल थी। छत्रपति साहू महाराज ने सिर्फ यही नहीं किया, अपितु उन्होंने पिछड़ी जातियों समेत समाज के सभी वर्गों मराठा, महार, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, ईसाई, मुस्लिम और जैन सभी के लिए अलग-अलग सरकारी संस्थाएँ खोलने की पहल की। साहू महाराज ने उनके लिए स्कूल और छात्रावास खोलने के आदेश जारी किये। जातियों के आधार पर स्कूल और छात्रावास असहज लग सकते हैं, किंतु नि:संदेह यह अनूठी पहल थी उन जातियों को शिक्षित करने के लिए, जो सदियों से उपेक्षित थीं। उन्होंने दलित-पिछड़ी जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए ख़ास प्रयास किये थे। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। साहू महाराज के प्रयासों का परिणाम उनके शासन में ही दिखने लग गया था। स्कूल और कॉलेजों में पढ़ने वाले पिछड़ी जातियों के लड़के-लड़कियों की संख्या में उल्लेखनीय प्रगति हुई थी। कोल्हापुर के महाराजा के तौर पर साहू महाराज ने सभी जाति और वर्गों के लिए काम किया। उन्होंने 'प्रार्थना समाज' के लिए भी काफ़ी काम किया था। 'राजाराम कॉलेज' का प्रबंधन उन्होंने 'प्रार्थना समाज' को दिया था।
कथन:
छत्रपति साहू महाराज के कार्यों से उनके विरोधी भयभीत थे और उन्हें जान से मारने की धमकियाँ दे रहे थे। इस पर उन्होंने कहा था कि- "वे गद्दी छोड़ सकते हैं, मगर सामाजिक प्रतिबद्धता के कार्यों से वे पीछे नहीं हट सकते।"
साहू महाराज जी ने 15 जनवरी, 1919 के अपने आदेश में कहा था कि- "उनके राज्य के किसी भी कार्यालय और गाँव पंचायतों में भी दलित-पिछड़ी जातियों के साथ समानता का बर्ताव हो, यह सुनिश्चित किया जाये। उनका स्पष्ट कहना था कि- "छुआछूत को बर्दास्त नहीं किया जायेगा। उच्च जातियों को दलित जाति के लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही चाहिए। जब तक आदमी को आदमी नहीं समझा जायेगा, समाज का चौतरफा विकास असम्भव है।"
15 अप्रैल, 1920 को नासिक में 'उदोजी विद्यार्थी' छात्रावास की नीव का पत्थर रखते हुए साहू महाराज ने कहा था कि- "जातिवाद का अंत ज़रूरी है. जाति को समर्थन देना अपराध है। हमारे समाज की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा जाति है। जाति आधारित संगठनों के निहित स्वार्थ होते हैं। निश्चित रूप से ऐसे संगठनों को अपनी शक्ति का उपयोग जातियों को मजबूत करने के बजाय इनके खात्मे में करना चाहिए।
समानता की भावना:
छत्रपति साहू महाराज ने कोल्हापुर की नगरपालिका के चुनाव में अछूतों के लिए भी सीटें आरक्षित की थी। यह पहला मौका था की राज्य नगरपालिका का अध्यक्ष अस्पृश्य जाति से चुन कर आया था। उन्होंने हमेशा ही सभी जाति वर्गों के लोगों को समानता की नज़र से देखा। साहू महाराज ने जब देखा कि अछूत-पिछड़ी जाति के छात्रों की राज्य के स्कूल-कॉलेजों में पर्याप्त संख्या हैं, तब उन्होंने एक आदेश से इनके लिए खुलवाये गए पृथक स्कूल और छात्रावासों को बंद करा करवा दिया और उन्हें सामान्य व उच्च जाति के छात्रों के साथ ही पढने की सुविधा प्रदान की।
भीमराव अम्बेडकर के मददगार:
ये छत्रपति साहू महाराज ही थे, जिन्होंने 'भारतीय संविधान' के निर्माण में महत्त्वपूर्व भूमिका निभाने वाले भीमराव अम्बेडकर को उच्च शिक्षा के लिए विलायत भेजने में अहम भूमिका अदा की। महाराजाधिराज को बालक भीमराव की तीक्ष्ण बुद्धि के बारे में पता चला तो वे खुद बालक भीमराव का पता लगाकर मुम्बई की सीमेंट परेल चाल में उनसे मिलने गए, ताकि उन्हें किसी सहायता की आवश्यकता हो तो दी जा सके। साहू महाराज ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर के 'मूकनायक' समाचार पत्र के प्रकाशन में भी सहायता की। महाराजा के राज्य में कोल्हापुर के अन्दर ही दलित-पिछड़ी जातियों के दर्जनों समाचार पत्र और पत्रिकाएँ प्रकाशित होती थीं। सदियों से जिन लोगों को अपनी बात कहने का हक नहीं था, महाराजा के शासन-प्रशासन ने उन्हें बोलने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी थी।
निधन:
छत्रपति साहूजी महाराज का निधन 10 मई, 1922 मुम्बई में हुआ। महाराज ने पुनर्विवाह को क़ानूनी मान्यता दी थी। उनका समाज के किसी भी वर्ग से किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था। साहू महाराज के मन में दलित वर्ग के प्रति गहरा लगाव था। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जो क्रन्तिकारी उपाय किये थे, वह इतिहास में याद रखे जायेंगे।


Wednesday, July 18, 2012

सुपरस्टार राजेश खन्ना को आखिरी सलाम....


राजेश खन्ना (जन्म: 29 दिसम्बर 1942 - मृत्यु: 18 जुलाई 2012) एक भारतीय फिल्म जगत के सबसे  पहले सुपरस्टार अभिनेता थे।उन्होंने कई हिन्दी फिल्में भी बनायी और राजनीति में भी कुछ समय के लिये रहे।
उन्होंने कुल 163 फीचर फिल्मों में काम किया, 128 फिल्मों में मुख्य भूमिका निभायी, 106 में उनका मुख्य रोल रहा, 22 में दोहरी भूमिका के अतिरिक्त 17 छोटी फिल्मों में काम किया। उन्हें तीन वार फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार मिला। अधिकतम चार वार हिन्दी फिल्मों के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी उनके नाम रहा।2005 में उन्हें फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेण्ट अवार्ड दिया गया। राजेश खन्ना हिन्दी सिनेमा के पहले सुपर स्टार थेI 1966 में उन्होंने आखिरी खत नामक फिल्म से अपने अभिनय की शुरुआत की। राज़, बहारों के सपने, आराधना व आनन्द उनकी बेहतरीन फिल्में मानी जाती हैं।
29 दिसम्बर 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना का असली नाम जतिन खन्ना था। 1966 में उन्होंने पहली बार 24 साल की उम्र में आखिरी खत नामक फिल्म में काम किया था। इसके बाद राज, बहारों के सपने, औरत के रूप जैसी कई फिल्में उन्होंने कीं लेकिन उन्हें असली कामयाबी 1969 में आराधना से मिली। इसके पश्चात एक के बाद एक 14 सुपरहिट फिल्में देकर उन्होंने हिन्दी फिल्मों के पहले सुपरस्टार का तमगा अपने नाम किया।
1971 में राजेश खन्ना ने कटी पतंग, आनन्द, आन मिलो सजना, महबूब की मेंहदी, हाथी मेरे साथी, अन्दाज नामक फिल्मों से अपनी कामयाबी का परचम लहराये रखा। बाद के दिनों में दो रास्ते, दुश्मन, बावर्ची, मेरे जीवन साथी, जोरू का गुलाम, अनुराग, दाग, नमक हराम, हमशक्ल जैसी फिल्में भी कामयाब रहीं। 1980 के बाद राजेश खन्ना का दौर खत्म होने लगा। बाद में वे राजनीति में आये और 1991 में वे नई दिल्ली से कांग्रेस की टिकट पर संसद सदस्य चुने गये। 1994 में उन्होंने एक बार फिर खुदाई फिल्म से परदे पर वापसी की कोशिश की। आ अब लौट चलें, क्या दिल ने कहा, जाना, वफा जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया लेकिन इन फिल्मों को कोई खास सफलता नहीं मिली।
जून 2012 में यह सूचना आयी कि राजेश खन्ना पिछले कुछ दिनों से काफी अस्वस्थ चल रहे हैं। 23 जून 2012 को उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिल रोगों के उपचार हेतु लीलावती अस्पताल ले जाया गया जहाँ उनका सघन चिकित्सा कक्ष में उपचार चला और वे वहाँ से 8 जुलाई 2012 को डिस्चार्ज हो गये। उस समय वे पूर्ण स्वस्थ हैं ऐसी रिपोर्ट दी गयी थी।14 जुलाई 2012 को उन्हें मुम्बई के लीलावती अस्पताल में पुन: भर्ती कराया गया। उनकी पत्नी डिम्पल ने मीडिया को बतलाया कि उन्हें निम्न रक्तचाप है और वे अत्यधिक कमजोरी महसूस कर रहे हैं।
अन्तत: 18 जुलाई 2012 को यह खबर प्रसारित हुई कि सुपरस्टार राजेश खन्ना नहीं रहे।

यह डायलोग फिल्म 'दाग' से है......
"आप क्या जाने मुझको समझते हैं क्या? मैं तो कुछ भी नहीं,
इस क़दर प्यार  
इतनी बड़ी क़दर भीड़ का मै रखूँगा कहाँ ?
इस क़दर प्यार रखने के काबिल नहीं                  http://youtu.be/SeCgXUetgqo
मेरा दिल मेरी जान
मुझको इतनी मोहब्बत न दो दोस्तों-2 
सोच लो दोस्तों 
इस क़दर प्यार कैसे संभालूँगा  मै?
मै तो कुछ भी नहीं 

प्यार ?
प्यार इक शख्स का अगर मिल सके तो
बड़ी चीज़ है जिंदगी के लिए 
आदमी को मगर ये भी मिलता नहीं 
ये भी मिलता नहीं
मुझको इतनी मोहब्बत मिली आपसे-2
ये मेरा हक नहीं मेरी तकदीर है 
मै ज़माने की नज़रों में कुछ ना था-2
मेरी आँखों में अबतक वो तस्वीर है 
इस मोहब्बत के बदले मै क्या नज़र दूँ ?
मै तो कुछ भी नहीं 

इज्ज़ते 
शोहरते 
चाहते 
उल्फ़ते 
कोई भी चीज़ दुनिया में रहती नहीं 
आज मै हूँ जहां कल कोई और था -2
ये भी इक दौर है वो भी इक दौर था 

आज इतनी मोहब्बत ना दो दोस्तों -2
की मेरे कल की खातिर ना कुछ भी रहे 
आज का प्यार थोडा बचा कर रखो -2
मेरे कल के लिए 
कल?
कल जो गुमनाम है 
कल जो सुनसान है 
कल जो अनजान है 
कल जो वीरान है 
मै तो कुछ भी नहीं हूँ 
मै तो कुछ भी नहीं "


राजेश खन्ना के famous dialogues...
कब, कौन, कैसे उठेगा ये कोई नहीं बता सकता है (आनंद)
बबुमोशाई, ज़िन्दगी और मौत उपरवाले के हाथ है. उसे ना आप बदल सकते हैं, ना मैं (आनंद)
यह भी तो नहीं कह सकता, की मेरी उम्र तुझे लग जाये! (आनंद)
मैं मरने से पहले मरना नहीं चाहता. (सफ़र)
यह तो  मैं ही जानता हूँ की ज़िन्दगी के आखरी मोड़ पर कितना अँधेरा है (सफ़र)
किसी बड़ी ख़ुशी के इंतज़ार में ... हम यह छोटे छोटे खुशियों के मौके खो देते हैं. (बावर्ची).
यह लो, फिर तुम्हारी आँखों मैं पानी! मैंने तुमसे कितनी बार कहा है की, पुष्पा मुझसे ये आंसू देखे नहीं जाते. I hate tears. (अमर प्रेम)
इस एक ग्लास में एक मजदूर की एक महीने की रोटी है और परिवार की सांस. कभी सोचा है की इस एक ग्लास को पीते ही हम एक परिवार को भूखा मार देते हैं. (नमक हराम).