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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Friday, February 8, 2013

सिविल सेवा परीक्षा में ग्रामीण और पिछड़े प्रतियोगियों के लिए बाधाएं - Civil Services Exam Format Change handicap for rural aspirants



संघ लोक सेवा आयोग, सिविल सेवा परीक्षा में बारबार परिवर्तन कर ग्रामीण और पिछड़े प्रतियोगियों के लिए बाधाएं उत्पन्न कर रहा है। सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा में 2011 से बदलाव किए जा चुके हैं। इसमें वैकल्पिक विषयों को खत्म किया जा चुका है। इस वर्ष भी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं क्योंकि तय समय पर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने इसका विज्ञापन नहीं निकाला है। इसलिए यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि इस बार मुख्य परीक्षा में बदलाव का ऐलान हो सकता है।

ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के प्रतियोगियों को परीक्षा का पैटर्न समझने में ही समय (उनका उम्र) निकल जाता है। जब तक वे परीक्षा के कायदे और बर्रेकियों को समझते हैं तब तक संघ लोक सेवा आयोग 'प्रतियोगिता के नियमों' को ही बदल देता है।(They change the rules of the game). इससे कम से कम ग्रामीण क्षेत्र के उम्मीदवारों का चयन हो पता है।

मौजूदा 26 वैकल्पिक विषयों को हटाकर सिर्फ दो प्रश्न पत्र रखे जाएं। ये दोनों प्रश्न पत्र कॉमन और वस्तुनिष्ठ होने चाहिए। पहला प्रश्न पत्र सामान्य अध्ययन एवं दूसरा उपरोक्त 26 विषयों का कॉमन प्रश्न पत्र होगा। इसके अलावा भाषा के प्रश्न पत्रों को पूर्ववत रखे जाने की संभावना है।

इसके पहले कांग्रेस नीत सोनिया-मनमोहन की यू पी सरकार शिक्षा का बाजारीकरण, आई आई टी और आई आई एम् के फीस व्यवश्ता में भीषण बढ़ोतरी कर यह सन्देश दिया है की शिक्षा, विशेष रूप से उच्च शिक्षा, गरीबों के लिए नहीं है। औब यह भी तय किया जा रहा है की कलक्टर , एस पी और इनकम टैक्स अफसर होना भी गरीबों के बूते नहीं रहे।

दूसरी ओर चुकी पिछड़े क्षेत्रों के अधिक प्रतियोगी अरक्षित वर्ग के होते हैं, इसलिए सामान्य श्रेणी में वे नहीं आ पाते हैं। नियमतः सभी प्रतियोगी पहले 50% सीटों के लिए चयनित हो सकते हैं, लेकिन उसके बाद वे आरक्षण के आधार पर ही आ सकते हैं। आरक्षित वर्गों के साथ भेदभाव साक्षात्कार के नियमों में भी हो रहा है। नियमों के विरुद्ध अरक्षित वर्गों का साक्षात्कार दोपहर बाद अलग से लिया जा रहा है। गौरतलब है की सिविल सेवा से देश के सर्वोच्च पदों के लिए नौकरशाह चयनित होते हैं, और अगर फेक्टरी में ही खराबी हो तो उत्पाद अच्छा कैसे मिलेगा?

2011 के सिविल सेवा परीक्षा में 25 शीर्ष उम्मीदवारों में 13 दिल्ली से परीक्षा दिए थे, 2 से 3 जयपुर, मुंबई और चंडीगढ़ से, और 1 -1 हैदराबाद, चेन्नई, दिसपुर, पटना और जम्मू केन्द्रों से। इनमें से अधिकांश IIT, IIM और यहाँ तक की लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के पूर्व छात्र थे।

और संघ लोक सेवा आयोग की


संरचना देखा जाय - डा डी पी अग्रवाल (अध्यक्ष), प्रो पुरषोत्तम अग्रवाल ( आरक्षण विरोध के कारण ही कांग्रेस द्वारा मनोनीत), प्रशान्त कुमार मिश्र, डा वेंकटरामी रेड्डी, रजनी राजदान, डा के के पॉल, विजय सिंह (पूर्व आईएस), मनबीर सिंह (पूर्व आई ऍफ़ एस), अलका सिरोही, आई एम् जी खान, डेविड र सिएम्लिएह। इन सदस्यों में अन्य पिछड़े वर्ग से एक भी सदस्य नहीं है, और न ही शायद दलित समुदाय से। तो इस फेक्टरी से कैसा समान निकलेगा, यह समझा जा सकता है। और इनके नीतियों से हमारी आशंकाओं को और बल मिलता है।

Friday, February 1, 2013

नया लोकपाल - The Lokpal Bill



लोकपाल बिल को अब यू पी ए द्वारा चर्चा का केंद्र बनाने का प्रयास जारी है। अब तक जो संकेत हैं, उस के अनुसार सोनिया-मनमोहन का लोकपाल दंतहीन, विषहीन, नखविहीन और भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देने वाला होगा। जैसे अगर आप शिकायत करेंगे, तो पहले उसकी प्रति सम्बंधित अधिकारी को जायेगा। जाहिर है शिकायत रसूखदार आईएस/ आईपीएस के विरुद्ध ही होगा, और सभी शिकायतकर्ता अरविन्द केजरीवाल की तरह मीडिया के ढाल के साथ नहीं होगा। अफसर को पहले ही संकेत रहेगा की निपटा लो। अब शिकायत निपटेगा या शिकायतकर्ता, यह तो आगे पता चलेगा।

सरकारी लोकपाल राजनीतिक दलो की जांच नही कर पाएगा,न धार्मिक संस्थाओ की,न सरकारी चंदे वाली NGO की।तो क्या वो नर्सरी के बच्चो की कापियां जांचेगा? सरकारी लोकपाल वैसा ही है जैसे बिल्ली अपने गले में डालने के लिए घंटी बनाए मगर उसमें घूंघरूं न डाले। सरकारी लोकपाल के कमजोर होने का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि उससे ज्यादा अधिकार तो मनमोहन सिंह के पास है। अतः सरकारी लोकपाल के रूप में सरकार ने देश को एक और मनमोहन सिंह दिया है।

और कहा जा रहा है की लोकायुक्त एक वर्ष के भीतर बन जाना चाहिए। मगर कैसा? अगर सुशासन बाबू का लोकायुक्त देखा जाय तो इस पद का ऐसा भौंडा मजाक कुछ और नहीं हो सकता है। एक-दो विशेषताएं अगर गिनाऊँ तो कहा जा सकता है की बिहार में लोकायुक्त के पास कोई शिकायत जाने पर उस शिकायत को गोपनीय रखा जायेगा। उस अफसर को पहले शिकायत जायेगा जिसके लिए सरकार का वकील पैरवी करेगा। अगर शिकायतकर्ता आरोप को साबित नहीं कर पायेगा तो शिकायतकर्ता को 6 महीने कैद-इ-बामुशक्कत की सजा होगी। नतीजा है की जबसे नितीश कुमार वर्जन का लोकायुक्त लागू हुआ है, एक भी शिकायत करने का किसी को हिम्मत नहीं हुआ है। टीम अन्ना ने जब इस लोकायुक्त को ख़ारिज किया तो विकास पुरुष बिफर पड़े थे। लेकिन कल अन्ना ने उनके दिल को छू लिया, क्योंकि नितीश के भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना ने मौन साध ली थी।

वैसे गुजरात जैसे राज्य में नरेन्द्र मोदी लोकायुक्त लाना ही नहीं चाहते हैं। पता नहीं क्यों?


पद शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है,
उसका क्या जो दंतहीन विषरहित शक्तिहीन तरल हैI