About Me

My photo
New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Saturday, December 10, 2011

मेरे ब्लॉग ' सूरज यादव ओपिनियन'के २५ हज़ार,२३५ हिट्स...

कम्प्यूटर से मैं कभी विशेष प्रभावित नहीं रहा. कालेज में प्राध्यापक के तौर पर कम्प्यूटर से दूर ही रहा, परन्तु २००९ में जब बीमार था, तो टेलीविजन से ऊब कर, लेप टॉप लिया, और बहुत कुछ सीखा, खास तौर से लिखने और सम-सामयिक विषयों पर टिपण्णी के शौक के कारण अपना ब्लॉग SURAJ YADAV OPINION २०१० में लिखना शुरू किया. यू ट्यूब पर कई विडियो बना कर पोस्ट किया, जो suraj _yadav2005 के नाम से उपलब्ध है.
इन्टरनेट के कारण राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं को बहुत फायदा है. अपनी बात को बेबाक अंदाज़ में कहने का यह सशक्त माध्यम है. मीडिया पर पूँजी और ऊँची जाति की पकड़ सर्वविदित है. फेसबुक पर टिपण्णी, ब्लॉग में लेख आदि सब के पहुँच में है, और आपकी बात सेंसर भी नहीं होता है. परन्तु हाल के दिनों में केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल द्वारा नेट पर सेंसर लागू करने के प्रयासों की बात निश्चित तौर से चिंता का विषय है. इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए, सिर्फ मुक्त संवाद के लिए नहीं, बल्कि आम और शोषित समाज की बात को दबाये जाने से रोकने के लिए.
आज मेरे ब्लॉग ने २५ हज़ार २३५ हिट्स दर्ज किया है, तो मैं इसे अपने ब्लॉग पर लिखने की चाहत रोक नहीं पाया. आशा है अगर आप कभी मेरे ब्लॉग को क्लिक करें तो अपना टिपण्णी देने का भी कष्ट करें, मेहेरबानी होगी. धन्यवाद और जय हिंद.

Monday, December 5, 2011

यादें देव साहब से मुलाक़ात की....

शायद १९९० का वर्ष था और दिल्ली विश्वविद्यालय में 'फिल्म अप्रिसिएसन सोसाइटी' के अध्यक्ष के नाते मेरा, प्रो सिडनी रिबेरो और छात्र संघ के तत्कालीन सह-सचिव अतुल गंगवार व पूर्व अध्यक्ष नरिंदर टंडन के साथ मिलकर देव आनंद साहब को विश्वविद्यालय कला संकाय में सम्मानित करने का कार्यक्रम बना.
इसके लिए देव साब को एक दिन पूर्व रात के नौ बजे नई दिल्ली के मौर्या शेराटन में स्वागत करना था. देव साब की उडान दो घंटे लेट हो गई. इंतज़ार करते-करते रात के लगभग १२ बज गए. देव साब आये और उनके स्वागत की औपचारिकता पूरा करते एक-ढेढ़ घंटे और बीत गए. नींद आ रही थी, तो देव साब को कहा कि 'आप थक गयें होंगे, आराम करें'. सुनते ही देव साब तपाक से बोले, ' तुम लोग थक गए हो, आराम करो. मेरी चिंता मत करो'. उस समय ६७ वर्ष के नायक २२-२४ साल के छात्रों को जो कह रहे थे, अजीब लगा. वे उर्जा से भरे, और खुशमिजाज थे- इसीलिए उन्हें सदा-बहार कहते थे.
दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय(Arts Faculty) के नई दीक्षांत सभागार(New Convocation Hall) में दिख रहा था की देव आनंद सभी पीढ़ी के दिलों की धड़कन हैं - एक और कुलपति सहित विश्वविद्यालय प्रशासन के लगभग सभी प्रोफ़ेसर १०.३० बजे ही अपने स्थान पर बैठे थे, तो दूसरी और छात्र- छात्राएं ११०० लोगों के लिए बने सभागार के अन्दर - बहार भरे हुए थे. छात्रों की एक अकेस्त्रा को हम लोगों ने मंच पर देव आनंद के गानों को सुनाने के लिए कह रखा था, यह सोच कर की अगर वे विलम्ब से आएंगे तो श्रोताओं का ध्यान बटा रहेगा. परन्तु वे एक दम सही वक़्त पर ११ बजे पहुँच गए और हॉल में सभी लोगों ने खड़े होकर जोरदार तालियों के साथ उनका स्वागत किया, और उधर मंच पर उनके ही फिल्म का गाना , "पल भर के लिए कोई मुझे प्यार कर ले....." गाया जा रहा था. वो पल शानदार था, और देव आनंद का स्वागत अविस्मर्णीय बन गया.
देव साहब के मंच पर आते ही लगा की बिजली कौंध गयी. जब वे "Flying Kiss" देने लगे तो, पीछे से एक छात्रा कुर्सियों पर से कूदते हुए, कुलपति को लांघते हुए मंच तक पहुँच गयी, जब एक महिला पुलिस ने उसे रोक लिया. देव साब मुझे कहे की उसे आने दें, पर मैंने अदब से कहा की पूरा हॉल मंच पर आ जायेगा, और हम किसी को रोक नहीं पाएंगे. देव साब मान गए. लेकिन संबोधन उसी छात्रा का जिक्र करते शुरू किया.
उसके बाद हम लोग University Guest House में लंच पर गए. भीड़ इतनी थी की मेरे कंधे पर लटका हुआ कैमरा(Nikkon




MF II) कोई काट लिया. देव आनंद साहब खाने में सिर्फ सलाद खाए और बोले की चावल खाए मुझे बरसों बीत गए.
कल उनके ८८ वर्ष की उम्र में दुखद देहांत की खबर सुन कर वो पल एक-एक कर याद आने लगे, जिसे मैं आपसे बाँट रहा हूँ. इश्वर देव आनंद साहब के आत्मा को शांति दें. उनके जीवन और फिल्म से सीख हमेशा मिलती रहेगी.

Sunday, October 30, 2011

भारत में मोटर स्पोर्ट्स - किस कीमत पर?


नॉएडा में आज भारतीय ऍफ़ वोन ग्रांड प्रिक्स मोटर स्पोर्ट्स की शुरुआत होगी. जिस जगह पर यह रेस होगी उसे जे पी ग्रुप ने बनाया है, और पहले इसका नाम जेपी ग्रुप सर्किट रखा गया परन्तु, संभवतः उत्तर प्रदेश में बहन मायावती के शासन के प्रभाव में इसका नाम बुद्ध अन्तरराष्ट्रीय परिपथ (Buddh International Circuit) रखा गया. अतः भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के नोएडा में बना फॉर्मूला वन दौड़ का परिपथ (रास्ते का लूप) है। इसका उद्घाटन १८ अक्टूबर, २०११ को किया गया।

दो हजार करोड़ रुपए की लागत से बने इस सर्किट में ऐसे सभी अत्याधुनिक उपकरण व तकनीक इस्तेमाल की गई हैं जो किसी अंतरराष्ट्रीय सर्किट के लिए जरूरी हैं। इस ट्रैक को जर्मनी के हर्मन टिल्के द्वारा 5000 कामगारों, 300 इंजीनियरों एवं देश विदेश के नामी एफ1 सर्किट विशेषज्ञों की मदद से ढाई वर्ष में तैयार किया गया है। यमुना एक्सप्रेस मार्ग पर 250 एकड़ जमीन पर बनाए गए बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट की कुल दर्शक क्षमता एक लाख लोगों की है, जिसमें नार्थ से ईस्ट तक का 1.4 किमी का ट्रैक सबसे तेज है। इस पर कार 317 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से भी दौड़ सकती है। इस ट्रैक पर करीब 210 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने वाली फार्मूला वन कार एक मिनट 27 सेकंड में एक लैप पूरा कर सकेंगी। रेस में कुल 60 लैप होंगे।

इस रेस लूप को बनाने के लिए तक़रीबन ३०० किसानों की ज़मीन ली गयी, जिनकी शिकायत है की उन्हें उचित मुआवजा नहीं दिया गया.



एक विवाद दिलचस्प रूप से सामने आया है कि भारतीय खेल मंत्री अजय माकन ने आरोप लगाये की उन्हें निमंत्रण नहीं दिया गया क्योंकि जे पी ग्रुप ने १०० करोड़ रूपये की कर में छूट मांगी, जिसे उन्होंने ख़ारिज कर दिया था.


The first BRG! 1903 Napier Since motor racing was illegal in Great Britain, ...(In photo..)

Friday, October 28, 2011

सुशासन बाबू का मीडिया पर शिकंजा विज्ञापन राशी बंदरबांट से.

आर टी आई द्वारा प्राप्त सुशासन में नितीश सरकार द्वारा विभिन्न अख़बार और न्यूज़ चैनलों को वितरित विज्ञापन राशी की २०१०-२०११ की विस्तृत जानकारी नीचे दी गयी है. अब प्रश्न है की क्या सुशासन में कानून व्यवस्था में व्यापक सुधार हुआ है? हम तो वही जानेंगे जो समाचारों में आयेगा. और सुशासन में समाचार वही छपता है जो सुशासन बाबू चाहते हैं. पहले छोटे या जिला स्तर के विज्ञापन जिले में ही तय होते थे. सुशासन बाबू ने इस व्यवस्था में फेर बदल करते हुए इसे केंद्रीकृत कर दिया है. अब छोटे-बड़े सभी विज्ञापन मुख्यमंत्री के यहाँ तय होता है, और छोटे-बड़े समाचार भी वहीँ से मोनिटर होता है. अगर किसी अख़बार ने गुस्ताखी की तो उसका विज्ञापन गया!
इसका दूसरा पहलू है जिसका निर्देशन एन के सिंह जैसे पूर्व नौकरशाह और जद(यु) नेता करते हैं. गौर करें की टाइम्स आफ इंडिया और इकोनोमिक टाइम्स जैसे अख़बार, जो बिहार में अधिक साख नहीं रखतें हैं, उन्हें सबसे अधिक करोड़ों में विज्ञापन दिया गया है. दरअसल इकोनोमिक टाइम्स जैसे अखबार नए नए सर्वे करा कर कुछ आंकड़ें पकाते हैं, जिससे यह साबित हो की बिहार ज़बरदस्त तरक्की कर रहा है, सुशासन से वाकई बिहार में आर्थिक परिवर्तन हो रहा है, और सुशासन बाबू नितीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं, प्रधानमंत्री होना चाहिए, और एन डी ए की ओर से मोदी नहीं नितीश दावेदार रहें, बेचारे अडवाणी बेकार मैं यात्रा पर हैं!
कुछ ऐसे अख़बार हैं, जिनके नाम भी आप नहीं सुने होंगे. कई तो घोटाले हो गए, और कुछ दलाल बने पत्रकारों को मिलता है.
बाकीं निष्कर्ष आप स्वयं निकालें.


वर्ष 2010-2011
विभिन्न समाचार पत्र/पत्रिकाओं/इलेक्ट्रॉनिक चैनलों को भुगतान की गई राशि का विवरण (गैर योजना मद)
क्रम सं. पत्र/पत्रिका/चैनल का नाम भुगतान राशि (रुपये) 1. हिंदुस्तान 10,12,13,999 2. हिंदुस्तान टाइम्स 58,63,454 3. दैनिक जागरण 5,33,68,449 4. आज 1,30,54,899 5. प्रभात खबर 1,10,08,037 6. राष्ट्रीय सहारा 67,41,602 7. रोजनामा राष्ट्रीय सहारा 1,47,313 8. टाइम्स ऑफ इंडिया+ईटी 1,13,52,332 9. प्रत्युष नव विहार, पटना 30,29,027 10. कौमी तंजीम 98,72,810 11. फारूकी तंजीम 62,35,314 12. पिंदार 44,11,220 13. संगम 13,80,890 14. इंकलाब-ए-जदीद 20,57,062 15. प्यारी उर्दू 16,30,667 16. मोसल्लस 4,21,899 17. प्रात: कमल 39,63,519 18. हालात-ए-बिहार 6,67,867 19. सन्मार्ग, कोलकाता 6,81,003 20. बिजनेस स्टैंडर्ड, दिल्ली 4,27,607 21. इंडियन एक्सप्रेस, दिल्ली 5,95,800 22. अमर उजाला, दिल्ली 3,88,493 23. पायनियर, दिल्ली 7,12,994 24. पंजाब केसरी दिल्ली 10,11,461 25. डीएनए, मुंबई 1,12,268 26. न्यू इंडियन एक्सप्रेस 27,776 27. झारखंड जागरण 1,42,503 28. स्टेट्‌समैन, कोलकाता 1,68,723 29. मेल टुडे, दिल्ली 7,07,635 30. नई बात, भागलपुर 22,11,150 31 देश विदेश, भागलपुर 7,22,536 32. दैनिक भास्कर, भोपाल 4,06,440 33. विश्वमित्र, कोलकाता 93,395 34. राजस्थान पत्रिका, जयपुर 6,07,904 35. रांची एक्सप्रेस, रांची 1,38,893 36. इंडिया टुडे ट्रैवल्स प्लस 7,50,000 37. दी वीक 15,20,000 38 ईस्टर्न क्रोनिकल 3,43,750 39. टुडे ट्रैवर्ल्स 4,50,000 40. न्यू ग्लोबल इंडिया 1,42,850 41. पांचवां स्तंभ 9,37,500 42. पांचजन्य 80,000 43. नई दुनिया 6,00,000 44. आलिया प्रोडक्शन 1,60,000 45. गुंजन मूवीज 1,26,883 46. प्रणव मोशन पिक्चर्स 1,77,583 47. आरुषि न्यूज नेटवर्क 4,00,000 48. ईटीवी 1,05,12,784 49. महुआ टीवी 98,77,537 50. आईबीएन-7 1,46,689 51. प्रसार भारती आकाशवाणी 16,37,289 52. प्रसार भारती (दूरदर्शन) 29,41,701 53. इंडपेंडेंट न्यूज सर्विस 3,14,286 54. रेडियो मिर्ची 9,41,000 55. सौभाग्य मिथिला 3,57,372 56. सहारा टीवी 1,40,300 57. साधना न्यूज 28,83,347 58. टीवी टुडे नेटवर्क 3,53,876 59. आईएनएक्स न्यूज 35,613 60. रेडियो धमाल 99,854 61. इन्साइट टीवी न्यूज 28,333 62. ब्रांड बिहार डॉट कॉम 56,666
योग 28,15,92,154 (अट्ठाइस करोड़ पंद्रह लाख बानवे हजार एक सौ चौवन रुपये)

Saturday, August 13, 2011

कांगेस में फैसला किसका? नेतृत्व का संकट?


कांग्रेस का ही फैसला कहें की अन्ना हजारे को अनशन करने के लिए २२ शर्तों के साथ तीन दिन के लिए, मात्र ५- ६ हज़ार लोगों के साथ जे पी पार्क में इज़ाज़त देने का नाटक किया जा रहा है. सभी समझ रहे हैं कि अन्ना के अनशन की शानदार कामयाबी के लिए कांग्रेस आधार तैयार कर रही है.

दुष्यंत कुमार की चार लाइन हैं - हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिएइI
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिएईII


मैं इसलिए याद दिला दूं कि हिंदुस्तान के लोगों, और खास तौर से युवाओं की फितरत है की अगर उन्हें लगता है की किसी के साथ अन्याय हो रहा है तो वे पूरे ताक़त के साथ उसके साथ खड़े हो जाते हैं. मुझे याद आ रहा है कि २४ जुलाई, १९८७ को वी पी सिंह कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध दिल्ली विश्वविद्यालय में सिंहनाद आयोजित किया गया था. २३ जुलाई के शाम को दिल्ली विश्वविद्यालय के ही सेंट स्टीफंस कालेज के छात्रावास में प्राचार्य जॉन हाला द्वारा अनुमति नहीं दिए जाने पर, वार्डेन प्रो दिवेदी द्वारा अपने आवास पर परिचर्चा पर राजा साहेब को बुलाये थे. कांग्रेस के छात्र इकाई के कुछ अति उत्साही गुट ने वी पी सिंह पर पेट्रोल बम से हमला किया जिसमें वे बाल-बाल बचे. मुझे लगा कि अगले दिन दिल्ली विश्वविद्यालय कि सभा में कोई नहीं आयेगा. परन्तु अगले दिन जो सभा हुई वह दिल्ली विश्वविद्यालय कि इतिहास में अभूतपूर्व था. सभा में धन्यवाद ज्ञापन देते हुए मैंने कहा कि "...हार कर मजबूर होकर यह सभा हमें वहीँ करनी पड़ रही है जहाँ पहली पर जे पी ने सभा की थी जिसके परिणामस्वरुप श्रीमती गाँधी सत्ता से हटी थीं. आज के सभा के परिणाम यही होगा कि राजीव गाँधी सत्ता से हटेंगे और भावी प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का मैं स्वागत करता हूँ."

अब जे पी पार्क में कई शर्तों के साथ अगर अन्ना हजारे को इजाजत दी जा रही है , तो यह तय है की हिंदुस्तान की इतिहास में एक मोड़ आने वाला है! कहने का अर्थ यह है कि कांग्रेस के फैसला लेने वाले अन्ना हजारे से डर कर कई तरह कि बाधाएं खड़ी कर रहें हैं, जो निश्चित तौर से लोगों को अन्ना के प्रति सहानुभूति बढ़ाएंगे और उनके मांगों को लोगों के बीच में और अधिक लोकप्रिय करेंगे. एक वकील बेशर्मी से कानून का ज्ञान बघार रहें हैं, और दूसरा वकील दलीलें देते हुए आम जनता को मूर्खों कि जमात समझ रहें हैं. परन्तु क्या कांग्रेस में वकीलों की ही चल रही है?

हम सब जानते हैं के कांग्रेस का अर्थ है सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी - यानि आदेश इन्ही का चलेगा. परन्तु सच्चाई शायद यह नहीं है. कांग्रेस में दो- तीन सत्ता के केंद्र हैं. सोनिया और राहुल तो औपचारिक (De jure) सत्ता के केंद्र हैं ही, दुसरे वास्तविक (de facto) सत्ता पंजाबी खत्रियों के एक गुट के पास है जो प्रधान मंत्री डा.मनमोहन सिंह के इर्द-गिर्द हैं. इस गुट में गृह मंत्री चिदंबरम भी शामिल हैं. अन्य मंत्री हैं - डा. मनमोहन सिंह का खासम-खास कपिल सिबल, सूचना और प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया.

अब जो यह गुट हैं उनके फैसले कैसे प्रभावी हैं यह उन सभी मसलों पर दीखता है जिन्हें जन-विरोधी फैसले कहा जा सकता है, या यूं कहें की जिससे कांग्रेस की किर-किरी हुई हो. उधाहरण के लिए अन्ना हजारे से बात-चीत के बीच में ही एक शिखंडी बिल प्रस्तुत किया जाना, पहले बाबा रामदेव से समझौता और फिर रामलीला मैदान में उनके शिविर में हमला इत्यादि.

परन्तु भाजपा कुछ बोले तो अच्छा नहीं लगता है, खास तौर से अन्ना के समर्थन में उन्हें आने का नैतिक आधार ही नहीं है. सभी समझते हैं की लोकपाल विधेयक पर उनका रुख क्या है. और जब गुजरात में सही बात कहने के लिए IPS अधिकारीयों के विरुद्ध कार्यवाई हो रही है तो ताक़तवर लोकपाल को ये कैसे बर्दाश्त करेंगे? कपिल सिबल के तार जातिगत आधार पर ही भाजपा से भी जुड़े हुए हैं.

यह आम धरना है की देश में आपात काल जैसे हालत बन रहे हैं. यह संयोग ही है की आपात काल के पहले-दौर में भी संजय गाँधी के साथ अम्बिका सोनी का योगदान था. अब करेला पर नीम चढ़ा हैं कपिल सिबल जैसे धुरंधर जो कभी भी आम जनता से जुड़े नहीं रहे हैं. पैसे के लिए किसी भी मुअक्किल के लिए काम करना ही इनका ईमान है. दरअसल इनके जैसे लोगों का राजनीती में पदार्पण लालू प्रसाद जैसे नेताओं के पाप से ही हुआ है. कपिल सिबल चारा घोटाले में लालू प्रसाद के वकील थे. फीस में राज्य सभा की सदस्यता लालू प्रसाद से ली और बाद में कांग्रेस ज्वाइन कर लिये. यह जो 'ब्लेकमेल' का आरोप अन्ना हजारे पर यह लगते हैं , यह खुद उसमें माहिर हैं और इसके भुक्तभोगी शोइब इकबाल हैं जो चांदनी चौक चुनाव-क्षेत्र से सिबल के विरुद्ध लोजपा के प्रत्यासी थे, और जिन्हें रास्ते से हटाने के लिए हर कुकर्म सिबल ने किये.

अन्ना हजारे की मुहीम कांग्रेस के विरुद्ध है या कांग्रेस खामखा भ्रष्टाचारियों का संरक्षक बन रही है. दोनों वकील - चिदंबरम और सिबल - अपराधियों का ही बचाओ करते रहें हैं और अब भी वही कर रहे है. बाबा रामदेव प्रकरण में इन्होने दिखा दिया की विदेशों में काला धन जमा करने वालों को डरने ज़रुरत नहीं - कांग्रेस का हाथ, सदा उनके साथ! या बताया जा रहा है की समय रहते भैया स्विस बैंक से पैसे निकाल लो!


निष्कर्ष यह है की अगर नुकसान कांग्रेस का होता है तो इसके भुक्तभोगी सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी होंगे. डा. मनमोहन सिंह अपनी पारी खेल चुके हैं. अब खेल बिगर जायें तो उनका या सिबल का क्या बिगड़ेगा? जो बिगड़ेगा वो राहुल गाँधी का ही होगा, क्योंकि उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में कांग्रेस को सत्ता में लाने का उनका सपना ज़रूर बिखर जायेगा. सिबल तो तुरंत दूसरा मुअक्किल दूंढ़ लेंगे. नुकसान ऐसे तमाम कांग्रेसियों का है जो निष्ठां से पार्टी के लिए काम करते हैं.

Tuesday, August 9, 2011

२०११ के लन्दन दंगे. क्या हैं?

इंग्लैंड के कई इलाके जैसे टोत्तेंहम, उत्तरी लन्दन में जन-अशांति, लूट और आगजनी की घटनाएं ६ अगस्त,२०११ से शुरू हुई जब स्थानीय पुलिस की गोली से २९ वर्षीय मार्क डुग्गन की मृत्यु हो गयी. इसके विरोध में टोतेंग्हम में २०० लोगों के विरोध जुलूस के बाद से दंगे शुरू हुए. मारा जाने वाला शख्स अश्वेत था. मार्च भी अश्वेत निकले थे. उसके बाद से अशांति शहर के अन्य इलाके जिनमें वूड ग्रीन, अन्फील्ड टाउन, पोंड़ेर्स एंड,ब्रिक्सटन आदि में फ़ैल गया. लगभग ३५ पुलिस अधिकारी घायल हुए हैं. ८ अगस्त,२०११ से दंगे और आगजनी बर्मिंघम, लिवरपूल,नॉटिंघम,ब्रिस्टल,केंट और लीड्स में भी फ़ैल गया. ५२५ से ऊपर लोग गिरफ्तार हुए हैं. ९ अगस्त की रात को अशांति फ़ैलाने के विरुद्ध पुलिस ने कड़ी कार्यवाई की चेतावनी दी है. प्रधान मंत्री डेविड कैमेरून अपनी छुटियाँ बीच में रद्द कर वापस लन्दन आ गए हैं और ११ अगस्त को संसद की सत्र पुनः बुलाई गयी है.
वहां बसे भारतीयों को सतर्क रहना होगा. दरअसल, भारतीयों को दोनों - श्वेतों व अश्वेतों- ओर से खतरा रहता है.
माना जाता है की अशां

ति फ़ैलाने में सोसल नेटवर्क ब्लैक बेर्री मेसेजिंग और ट्वीटर ने नकारात्मक भूमिका निभाई है
.

Sunday, August 7, 2011

suraj_yadav2005's photostream

AIBSF1, JNUAibsf, JNUAIBSF, JNUDr Ambumani Ramdoss at JNUAibsf 1Aibsf 2, JNU
Dr Ambumani Ramdoss  at JNUAIBSF, JNUAibsf 3Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament.
Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament.
Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Digvijay Singh 1Digvijay Singh

All India Backward Students Federation observed 21 years of Mandal Commission today, the 7th August, 2011 at SSS-1 Audi JNU, New Delhi. Shri Sharad Yadav, Shri Ram Vilas Paswan, Dr Ambumani Ramdoss, Shri Ram Avdhesh Singh, Prof RavivermaKumar, Shri D. Subba Rao, Prof Lobiyal were main speakers. Dr Ambumani Ramdoss was at his eloquence best.

Thursday, August 4, 2011

लोकपाल- विधेयक से कानून तक. दिल्ली दूर है.

आज लोकपाल विधेयक लोक सभा में पेश किया गया तो प्रणब मुख़र्जी ने बयान दिया कि संसद की संप्रभुता का पूर्ण ख्याल रखा जायेगा और सभी संसदीय परम्पराओं का पालन किया जायेगा. इशारा है की बेकार में अन्ना और उनके साथी विधेयक की प्रतियाँ जला रहें हैं, इसका वो ही हस्र होगा जो पहले लोकपाल के कई विधेयेकों का हुआ.

दरअसल प्रथम लोकपाल विधेयक १९६८ में पेश किया गया और लोक सभा में पारित होने के बावजूद राज्य सभा में पारित नहीं होने पर कानून नहीं बन पाया. फिर १९७१, १९७७ में तत्कालीन कानून मंत्री और लोकपाल विधेयक समिति के वर्तमान सदस्य शांति भूषण द्वारा, १९८५, १९८९, १९९६, १९९८, २००१, २००५ तथा २००८ में प्रस्तुत किये गए. इस तरह प्रस्तुत होने के ४२ वर्ष बाद भी लोकपाल विधेयक कानून नहीं बन सका. अब अन्ना हजारे ने जन लोकपाल की मुहीम शुरू की तो विधेयक प्रस्तुत कर सरकार ने यह बताने की कोशिश की है कि ढाक के तीन पात. अब अगर यह कानून भी बन जायेगा तो क्या? यह एक शिखंडी लोकपाल होगा और भ्रष्ट नेताओं को चिंतित होने कि जरूरत नहीं.


संसदीय परंपरा में विधेयक को कानून बनने के लिए उसे संसद के दोनों सदनों - लोक सभा और राज्य सभा - में पारित होकर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाने के बाद कानून का दर्जा मिल जाता है. साधारणतया संसद के दोनों सदनों में समान कार्यविधि की व्यवस्था होती है। प्रत्येक विधेयक को कानून बनने से पहले प्रत्येक सदन में अलग अलग पांच स्थितियों से गुजरना पड़ता है और उसके तीन वाचन (Reading) होते हैं। पाँचों स्थितियाँ इस प्रकार हैं पहला वाचन, दूसरा वाचन, प्रवर समिति की स्थिति, प्रतिवेदन काल (report stage) तथा तीसरा वाचन। जब दोनों सदनों में इन पाँचों स्थितियों से विधेयक गुजर कर बहुमत से प्रत्येक सदन में पारित हो जाता है तब विधेयक सर्वोच्च कार्यपालिका (राष्ट्रपति) के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है. इस बीच में विधेयक संसदीय समिति (Standing Committee) के अवलोकन तथा आवश्यक सुधIर के लिए भी भेजा जाता है. तो समय बड़ा बलवान है, और कोई नहीं जनता कि इस लोक सभा कि कार्यकाल कब तक है, यानि सरकार कब तक रहे.
और प्रणब मुख़र्जी ने बराबर यह कतिपय शब्दों में स्पष्ट किया है कि सरकार भ्रष्टाचारियों और विदेशों में कला धन जमा करने वालों के साथ है. और संसदीय परंपरा के पक्षधर प्रणब बाबु जाने कितने बार बिना बहस किये विधेयेकों को कानून बनाये है, खास तौर से जब अमेरिका के साथ परमाणु संधि जैसे मसलें हों.

संसदीय व्यवस्था में गिरावट कोई शोध का विषय नहीं है, यह सर्व विदित है. गिरावट का निष्कर्ष इससे भी निकलता है कि पूर्व में संसद का ४९% समय कानून बनाने में जाता था और अब मात्र १३%. सदस्य उपस्थित ही नहीं रहते हैं. पिछले ३० वर्षों में सदस्यों का एक भी निजी बिल कानून नहीं बन पाया है और सरकारी बिल बिना सोचे-समझे और बहस के पारित होते रहें हैं. तो अन्ना के जन लोकपाल को सदस्यों के निजी बिल के तौर पर भी पारित होने के आसार नहीं है. और कौन सदस्य चाहेगे की भ्रष्टाचार मिटे, घाटा उन्हें भी हो सकता है.

अन्ना के सामने रास्ता कठिन है. एक दायरे (सिविल सोसाइटी) में रह कर कोई आन्दोलन नहीं हो सकता है. जे पी और वि पी , हाल में भ्रष्टाचार के विरूद्ध योद्धाओं ने, युवाओं के बीच जाकर ही हुंकार कर बढे और विजयी बने.सबसे महत्वपूर्ण विषय है की सिविल सोसाइटी द्वारा सामाजिक न्याय पक्ष को साथ नहीं ले सकने से एक बड़े तपके इस मुहीम से नदारद है और इसका फायदा सरकार ले रही है.

हम यह तहे दिल से चाहते हैं और हमारी इच्छा है की अन्ना की मुहीम कामयाब हो और एक सशक्त लोकपाल बने जिससे सुरसा जैसे मुह फाड़े भ्रष्टाचार पर लगाम लगे. इसके लिए आवश्यक है की या तो अन्ना अपने मुहीम को पैना बनाये या संसद सदस्यों के द्वारा प्रस्तुत बिल में व्यापक फेर बदल कर इसे शिखंडी के जगह अर्जुन का तीर बनाया जाये.

Monday, July 25, 2011

Caste Census : Breach of assurance to the Parliament, cheating the people of India.

Speaking in the national convention on “Caste Census: betrayal of Parliament” at VP House, Rafi Marg, New Delhi on 24th July, I recalled that 24 years ago I had welcomed V P Singh at Delhi University Maurice Nagar Chowk on 24th July, 1987 to raise and represent youth’s voice against corruption, which was symbolized by Bofors deal. He had instantly become national symbol of fight against corruption. However, he was constantly demeaned after he implemented Mandal Commission in 1991. Nevertheless, V P Singh occupies an important place in the OBC Reservation in India. Similarly the role of Shri Arjun Singh deserves to be mentioned also.

But speaking on census first.

Caste Census would never have been an issue in India, to the extent it has become, had it not been clubbed with the decision to ascertain the count of OBC’s in India. A group of reactionary individuals who use the nemesis of “Equality”, though are ardent supporters and perpetuators of Brahmanical Inequality, have raised several irrelevant questions on Mandal Commission fixing 54% as the count for OBC. They have used all arguments on why Mandal Commission was not required to fix the OBC percentage, “It is obvious that the Kalelkar Commission was required to prepare a list of Socially and Educationally Backward classes setting out their approximate number. On the contrary, the Mandal commission was required only to determine the criteria for defining the SEBCs.”
They allege that Mandal Pre-judged OBC headcount. Continuing the disinformation they say, “Before the Mandal Commission’s survey, Lohia claimed that the OBC population was 60%. Mandal was a follower of Lohia, and he has to prove it to be true as his political career thrived on this fact." They have pointed to the report in The Pioneer (October 22, 2006 ):
“In a startling revelation, chairman of the technical committee of the Mandal Commission and noted social scientist Professor BK Roy Burman has said that Mandal had already fixed the OBC population at 54 per cent before their panel could carry out any scientific survey”.

Ans thus they concluded,
“Thus , the figure of 52% is a work of imagination, that too crude.”

To rest such crude arguments, it has to be pointed out that their argument is self-contradictory. Infact, Shri Kelkar under rebuke from Nehru, himself rubbished the report submitted by him, and the report was never taken-up again in the Parliament. So, Shri B P Mandal had to begin afresh, lest the report submitted by him did not meet the same fate. Secondly, those who know the turn of events when Mandal became Chief-Minister of Bihar, one of the first from the backward classes, at least in Bihar, he became so by going against Lohia. More-over, Mandal had to prove nothing to Lohia, that too several years after the death of Lohia! Misinformation against B P Mandal and the report submitted by him began right after its implementation in 1991, and infact, I issued one of the first clarification to these mischievous designs in an article “In the Eye of the Storm”, published in the then most reputed English Weekly, The illustrated weekly of India, a Times of India publication in 1991.

Now with main argument being that the figures of OBC is inflated by Mandal Commission and unrealistic logically the Caste census should be the answer to bring out a closer picture. Infact, what better decision would have been there, then to hold Caste Census. But the same contractors of “Equality”, have become paranoid and are opposing the caste count tooth and nail, to the extent of calling the step as dangerous and out to dismember India. It’s another way to have their cake and eat it too.

Speaking at the Conference JD(U) leader Shri Sharad Yadav said that the assurance to Parliament on Caste census has taken several beatings. First, it was said that it would be a part of second round of information sought as per Census act. Then, it was handed to Urban Affairs Ministry, later to Rural Affairs Ministry to be clubbed with survey on BPL head-count to know the poverty, which ironically Government has not been able to find out inspite of several agencies and several years! Lately, it is being said that caste survey would be conducted by those under NAREGA! It’s height of joke being played with the assurance to the Parliament, which Sharad Yadav continued that Pranab Mukherjee categorically stated that it would be in the format submitted by Sharad ji. Infact, one arm of the government does not know what the other is doing, so, while Pranab Da is giving assurances, Chidambaram is busy scheming!

Shri Ram Vilas Paswan speaking on the issue in the convention was categorical in stating that unity of dalits, OBC, minority will be the only factor which will force the Government to have caste census. He said that “Creamy-layer provision too had to be challenged. Infact, Several political leaders and academicians, who addressed a National Convention on "Caste Census : betrayal of Parliament", organised by Janhit Abhiyan at Speakers Hall, V P House, Rafi Marg, New Delhi today accused the Union Government of having cheated by going back on assurance given to Parliament of India on the question of Caste census. Learned academician Prof Gail Omvedt went to extent of calling the exercise on caste census by Government of India as "Fraud" and said that it was lost case for those hopeful of caste census, who now had to pin hope for the same in the 2021 census. While leaders like Sh Ram Vilas Paswan, Sh Sharad Yadav, Sh Ali Anwar said that if the convention was anything but a reflection of public opinion of the majority on this issue, then the Government should better watch out before misleading the members on the farce they are upto in the name of conducting census on caste, as per the promise made to Parliament of India. They warned the Government to amend during the coming session of Parliament.

The convention was addressed by Sh Ram Vilas Paswan, Sh Sharad Yadav, Janab Ali Anwar, MP, Sh Uday Pratap Singh, MP, Sh Karan Singh Yadav, former MP, Sh Raghu Yadav, Dr M. Vijayanunni, Former Census Commissioner & Registrar General of India and Former Chief Secretary of Kerala, Sh Dilip Mandal, Writer and Freelance Journalist, Prof Subodh Narain Malakar, JNU, Sh Suraj Yadav, Associate Professor, SSN College, DU, Sh BS Yadav, Sh KK Yadav, Dr V K Singh, Sh Prabhash Chandra Yadav, Advocate. Dr Sushma Yadav, Head of Dr B R Ambedkar Chair, IIPA, New Delhi conducted the Convention while Sh Raj Narain was the main organiser.


Coming to the assurance given in the Parliament, we know that it’s another matter that Parliament has failed in its duties and role. At the time of zamindari abolition and nationalisation of banks (the first under Pandit Nehru, the second under Indira Gandhi) the judiciary intervened on points of propriety. Both Nehru and Indira asserted and got the legislation through.
The extensive criminalisation of politics, now it has turned to politicisation of crime.Earlier, politicians used criminals for their purposes. Now the criminals, instead of working for politicians, have themselves joined politics.
Mahatma Gandhi who, in exasperation, said about a similar situation, “How long can the people tolerate?” The impasse in current Parliament was testing the nerves of the people of India, whose money was being drained by reckless MPs.
This august institution was in decline as shown by many indicators,the decline is qualitative and quantitative. Earlier, 49 percent of Parliament’s time was spent in law-making. Now it had come down to 13 percent.

So, assurance given to this body, i.e., the Parliament is bound to be empty, and no protest shall come on it also. And what can we expect from Parliament, where the two channels working under it, the Rajya Sabha and the Lok Sabha channels do not honour the Reservations, and there is no protest from Hon’ble Members on it.
The Caste Census is bound to have several stumbling block, and every time the decision is to be implemented every upper caste interpreter will have his own version and ways to derail it.




Sunday, July 24, 2011

Convention on Caste Census: betrayal of Parliament.

Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament.
Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament.
Convention on Caste Census: betrayal of Parliament.

Several political leaders and academicians, who addressed a National Convention on "Caste Census : betrayal of Parliament", organised by Janhit Abhiyan at Speakers Hall, V P House, Rafi Marg, New Delhi today accused the Union Government of having cheated by going back on assurance given to Parliament of India on the question of Caste census. Learned academician Ms Gail Omvedt went to extent of calling the exercise on caste census by Government of India as "Fraud" and said that it was lost case for those hopeful of caste census, who now had to pin hope for the same in the 2021 census. While leaders like Sh Ram Vilas Paswan, Sh Sharad Yadav, Sh Ali Anwar said that if the convention was anything but a reflection of public opinion of the majority on this issue, then the Government should better watch out before misleading the members on the farce they are upto in the name of conducting census on caste, as per the promise made to Parliament of India. They warned the Government to ammend during the coming session of Parliament.

The convention was addressed by Sh Ram Vilas Paswan, Sh Sharad Yadav, Janab Ali Anwar, MP, Sh Uday Pratap Singh, MP, Sh Karan Singh Yadav, former MP, Sh Raghu Yadav, Dr M. Vijayanunni, Former Census Commissioner & Registrar General of India and Former Chief Secretary of Kerala, Sh Dilip Mandal, Writer and Freelance Journalist, Prof Subodh Narain Malakar, JNU, Sh Suraj Yadav, Associate Professor, SSN College, DU, Sh BS Yadav, Sh KK Yadav, Dr V K Singh, Sh Prabhash Chandra Yadav, Advocate. Dr Sushma Yadav, Head of Dr B R Ambedkar Chair, IIPA, New Delhi conducted the Convention while Sh Raj Narain was the main organiser.