पिछड़े वर्ग के आरक्षण पर बड़ा हमला : मंडल कमीशन को बिना लागू किये,अब एक नया कमीशन :
केंद्र सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए नया आयोग बनाने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई कैबिनेट बैठक में यह निर्णय लिया गया।
कहा जा रहा है की अब आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलेगा: नए आयोग का नाम सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग (एनएसईबीसी) रखा जाएगा। यह मौजूदा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की जगह लेगा। संसद से बिल पारित करा इसे संवैधानिक दर्जा भी दिया जाएगा। अभी आयोग का संवैधानिक दर्जा नहीं है।
इससे पिछला कानून रद्द हो जायेगा : मंत्रिमंडल ने पिछड़ा वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम, 1993 को भी निरस्त कर दिया और इसके तहत गठित संस्था को भंग कर दिया है। पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हुआ था। संवैधानिक दर्जा नहीं होने से इसकी सिफारिशों और आदेशों को मानने में विभाग कोताही बरतते हैं। यह माना जा रहा था कि यह आयोग अन्य पिछड़ा वर्ग के हितों की रक्षा नहीं कर पा रहा था।
दरअसल, पिछड़े वर्ग के लिए मंडल कमीशन की अनुशंसाओं को निरस्त कर, आरक्षण में छेड़छाड़ कर, आरक्षण समाप्त करने के संघ के कई बार घोषित एजेंडा की दिशा में मोदी सरकार का पहला कदम है।
मंदिर, रोमियो, बूचड़खाना, नोटबंदी आदि के नाम पर जब तक जनता का ध्यान बँटा कर खेल हो जायेगा।
संवैधानिक तौर पर पूर्व में पिछड़े वर्ग आयोग का दो बार गठन हुआ है : काका कालेलकर आयोग और मंडल आयोग।
काका कालेलकर खुद ही अपनी अनुशंसाओं को नहीं लागू करने का निवेदन राष्ट्रपति को किये थे।
मंडल आयोग को इतिहास के ठन्डे बक्से से निकाल कर आंशिक रूप से भी लागू करने में वर्षों लग गए।
बावजूद आज तक यह सही ढंग से लागू नहीं है। मंडल रिपोर्ट कानूनी तौर पर इतना ठोस है कि कोर्ट में इसे निरस्त करने के लंबे प्रयास को भी मुहँ की कहानी पड़ी।
तब एक असंवैधानिक क्लॉज़, "क्रीमी लेयर" जबरन जोड़ा गया जिसे आज तक संसद ने भी मान रखा है।
हाल में 120 पिछड़े वर्ग के सिविल सेवा में कम्पीट किये हुए अभ्यर्थियों को मोदी सरकार ने "क्रीमी लेयर" की नई परिभाषा लागू कर लिस्ट से हटा दिए और उस जगह को खाली रखा है।
अब किसे पिछड़े वर्ग के लिस्ट में रखना है, किसे हटाना है, यह संसद के माध्यम से मोदी सरकार अपने हाथ में लेना चाहती है। अतः यह नई कमीशन का प्रावधान।
पिछड़े वर्ग की संख्या मंडल आयोग ने 52% माना था और चुकी 50% का सर्वोच्च न्यायालय का कैप था, तो 27% आरक्षण की अनुशंसा की गई थी।
परंतु आज भी उल्टा आरक्षण लागू है यानि जेनेरल के 50% नौकरियों में 'मेरिट' पर आए पिछड़े और दलित अभ्यर्थियों को जेनेरल में स्थान नहीं दिया जाता है।
कई हाई कोर्ट ने इस असंवैधानिक परिभाषा पर मुहर लगाई है। सरकार और संसद चुप है।
अब सरकार पिछड़े वर्ग में शामिल किये या हटाये जाने की पॉवर को लेकर उन वर्गों पर हमला करेगी जो उसके वोटर नहीं है।
यह भी संभव है कि "आर्थिक" आधार पर पिछड़े वर्ग की पहचान को सरकार मान्यता दे दें। चुकी यह कमीशन संविधान में संशोधन करके लाया जायेगा, तो इसके पहले के संवैधानिक परिभाषा कि "शैक्षणिक और सामाजिक" रूप से पिछड़े वर्ग की भी बदला हुआ माना जायेगा।
आरक्षण को निरस्त करने के लिए काँग्रेस समय से सरकारी नौकरियां ख़त्म की जा रही हैं। अब सरकारी उच्च शिक्षा पर हमला है और सीटें काम करते हुए इन्हें "निजीकरण" करके कॉरपोरेट को सौंप दिया जायेगा।
यह बड़ी साज़िश है।
जैसे ईवीएम का खेल हुआ है, वैसे ही अब पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण को निरस्त किया जायेगा।
जो आरक्षण की समीक्षा करने की बात करते हैं, वह जान लें की मोदी कभी आरक्षण की समीक्षा नहीं करंगें।
अगर समीक्षा करना होता तो जाति जनगणना के परिणाम भी सार्वजानिक किये जाते, जिसमें कौन वर्ग को अभी कितने रोजगार पर्याप्त हैं और उनकी आर्थिक स्थिति क्या है, यह सभी को पता चल जायेगा।
मंडल कमीशन के लगूं होने पर भी पिछड़े वर्ग को कोई खास रोजगार नहीं, और आरक्षण के 27% अनुशंसा की जगह यह मात्र 6 या 7% है।
फिर जो यह कहते हैं की आरक्षण के अलाभ यह ले लिया और उसे नहीं मिला, वे साज़िश की तहत सिर्फ पिछड़े वर्ग में आपसी दुर्भावना या कलह को बढ़ाना चाहते हैं क्योंकि वास्तविक रूप से समाज में समानता लाने के लिए रोजगार की उपलब्धता और समान अवसर प्रदान करना एक सपना ही है।
ऊपर से सरकारी रोजगार के अवसर को ही समाप्त करके आरक्षण को निरस्त और रोजगार सिर्फ ठेकेदारी व्यवस्था में रहे, जिससे जब मालिक चाहे किसी को हटा सकें ऐवम कॉरपोरेट को अपने स्टाफ के लिए सामाजिक सुरक्षा की जिम्मेदारी और खर्च से मुक्त रखा जाए का मार्ग प्रसस्त हो।
कुल मिला कर शाह और मोदी के पहले अगर कांग्रेसी शासन भ्रष्टाचार का मिसाल था, तो इन रंगा बिल्ला का शासन मात्र धोखा और जनता को बरगला कर अंततः अपने डिक्टेटरशिप को कायम करना है। सभी वर्गों को बेवकूफ बनाना ही इनका लक्ष्य है।
पिछड़े वर्ग के लिए नए आयोग के तमाम पहलु को सार्वजानिक कर इसके औचित्य पर जब तक बहस नहीं होगा, इसके पीछे की मंशा और आपके चिंता का निवारण नहीं होगा।
ध्यान रहे नरेन्द्र मोदी कोई पिछड़ा वर्ग से नहीं है। वह मोढ जाति से है जिसे उसने चुनाव से पहले गुजरात के पिछड़े वर्ग मैं शामिल करवाया और फिर खुद को पिछड़े वर्ग का घोषित करके चुनाव में वोट लिया। परंतु आज तक पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए कोई काम नहीं किया है। अब संघ के एजेंडा के तहत बहुत योजनाबद्ध तरीके से इस नए आयोग के माध्यम से पहले इसी 27% में जाट, पटेल आदि 90% जनता को ला कर, और यादव आदि को निकाल कर, जहाँ एक और आरक्षण को ही निरस्त किया जायेगा, वहीँ 2019 का चुनाव जीतने का आधार तैयार होगा।
फिर 2019 आरक्षण समाप्त कर दिया जायेगा।
हमारे दलित साथियों को समझना होगा की पिछड़े वर्ग 'बफर' हैं।
पिछड़े जब धराशायी तो अगली बारी दलितों की !!
हमें इसका विरोध करना ही चाहिए।
"There is equality only among equals. To equate unequals is to perpetuate inequality." ~ Bindheshwari Prasad Mandal "All epoch-making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-~ADOLF HITLER.
About Me
- Suraj Yadav
- New Delhi, NCR of Delhi, India
- I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....
Saturday, March 25, 2017
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