* रोजगार ख़त्म तो आरक्षण कहाँ?
* सरकारी प्रतिष्ठानों को निजी हाँथों में बेच देने पर आरक्षण समाप्त क्योंकि निजी क्षेत्र में आरक्षण नहीं
* लेटरल एंट्री के तहत आईएएस IAS में केंद्र सरकार के ज्वॉइंट सेक्रेटरी के शीर्ष पद पर, बिना परीक्षा / आरक्षण के सवर्णों की सीधी नियुक्ति।
* उच्च न्यायिक व्यवस्था में आरक्षण नहीं। सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों में 80 % ब्राह्मण।
* सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से आरक्षण निरस्त करने के नित्य नए आदेश : सरकार मौन।
* बिना डेटा के ओबीसी वर्गीकरण को कोशिश।
* मेडिकल एडमिशन वगैरह में बिना कोई नियम या कानून के ओबीसी आरक्षण समाप्त।
*आरक्षण के औचित्य पर प्रोपागंडा के तहत #गोदी_मीडिया में रोज प्रश्न, पर जाति जनगणना के आदेश नहीं.... आदि आदि।
अब क्रीमी लेयर के प्रावधान में फेर बदल कर लाखों ओबीसी को आरक्षण के दायरे से बाहर करने की साज़िश। सर्वोच्च न्यायालय में केस स्वीकार कर अनुसूचित जाति / जनजाति में भी क्रीमी लेयर लागू करने की कोशिश जारी.....
एक, क्रीमी लेयर असंवैधानिक है। दूसरा, अब उसके आय लिमिट बढ़ाने के नाम पर सैलेरी, खेती की आमदनी, गाँव की ज़मीन आदि को जोड़ने का प्रावधान कर आरक्षण को पूर्णतः आर्थिक आधार बना कर लाखों ओबीसी को इसके लाभ से वंचित कर दिया जाएगा।
वैसे भी कहीं भी और कभी भी ओबीसी का 27% आरक्षण पूरा नहीं होता। इस सम्बंध में कोई डाटा सरकार के पास नहीं है।
जाति जनगणना से स्थिति स्पष्ट हो जाती और देश के 54% से अधिक आबादी के साथ अन्याय और भेदभाव उजागर हो जाता। ओबीसी गणना से ओबीसी के हिस्से में आ रही नौकरी, संसाधन में हिस्सेदारी न पता चले, तो आरएसएस भाजपा मोदी की सरकार ने जाति जनगणना मना कर दिया है।
आईये इस अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाएं और संघर्ष करें।