
वर्ष १९८५ या १९८६ था जब दिल्ली विश्वविद्यालय ने मदर टेरेसा को मानक उपाधि से समान्नित किया था. सर शंकर लाल कंसर्ट हॉल में हुए समारोह में मुझे भी किरोरी मल कॉलेज से छात्र संघ प्रतिनिधि होने के नाते शिरकत करने का मौका मिला. हालाँकि मैं समारोह में जाने से हिचकिचा रहा था क्योंकि औपचारिक पोशाक में सम्मिलित होना था. मेरे मित्र संजीव मिश्र ने मुझे टाय दिया और अनतः मदर टेरेसा के सम्मान समरोह में मैं गया , जहाँ नहीं जाने का अफसोश मुझे हमेशा रहता . समारोह के बाद हमलोगों के साथ वे फोटो खिचवायें ( हालाँकि मैं अभी भी उन फोटो को प्राप्त नहीं कर सका हूँ) तथा विश्वविद्यालय द्वारा दिए गए समारिका के पृष्ठ पर उन्होंने अपना औटोग्राफ दिया. मदर ने साथ में सन्देश लिखा था " God Bless You "(प्रभु आशीर्वाद दें).
मदर टेरेसा की जीवनी इस प्रकार से है-
मदर टेरेसा ( २६ अगस्त, १९१० - ५ सितम्बर, १९९७) का जन्म अग्नेसे गोंकशे बोजशियु के नाम से एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (आज का सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ था। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिनके पास भारतीय नागरिकता थी। उन्होंने १९५० में कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चेरिटी की स्थापना की। ४५ सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ, और मरते हुए इन्होंने लोगों की मदद की और साथ ही चेरिटी के मिशनरीज के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया।
१९७० तक वे ग़रीबों और असहायों के लिए अपने मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्द हो गयीं, माल्कोम मुगेरिज के कई वृत्तचित्र और पुस्तक जैसे समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गोड में इसका उल्लेख किया गया। उन्होंने १९७९ में नोबेल शांति पुरस्कार और १९८० में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया। मदर टेरेसा के जीवनकाल में मिशनरीज़ ऑफ चेरिटी का कार्य लगातार विस्तृत होता रहा और उनकी मृत्यु के समय तक यह १२३ देशों में ६१० मिशन नियंत्रित कर रही थी। इसमें एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं/ घर शामिल थे, और साथ ही सूप रसोई, बच्चों और परिवार के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय भी थे। मदर टेरसा की मृत्यु के बाद उन्हें पोप जॉन पॉल द्वितीय ने धन्य घोषित किया और उन्हें कोलकाता की धन्य की उपाधि प्रदान की।
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