

लोकपाल संस्कृत शब्द 'लोक' यानि जनता और 'पाल' यानि जनता का रक्षक को मिला कर बना है. लोकपाल का विचार भारतीय राजनीती के सभी स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से निपटने को ध्यान में रख कर लाया गया. परन्तु आज़ादी के कई दशक बाद भी इस विधेयक पर कानून नहीं बन सका है. सबसे पहले १९६९ में यह विधेयक लाया गया परन्तु राज्य सभा में पारित होने के बावजूद लोक सभा में पारित नहीं हो सका. १९७९ में तत्कालीन कानून मंत्री शांतिभूषण ( जो अभी जन-लोकपाल समिति में सदस्य हैं) ने इसे सदन में रखा परन्तु इसे पारित नहीं करा पाए. अतः १९७१, १९७७,१९८५,१९८९, २००१, २००५ और हाल में २००८ में संसद में लाने जाने पर भी यह कानून नहीं बन पाया है.सरकार फिर एक लोकपाल विधेयक के साथ तैयार है, परतु गांधीवादी नेता अन्ना हजारे की अगुआई में India Against Corruption के कार्यकर्त्ता एक जन लोकपाल विधेयक को लागू करवाने के लिए संघर्ष कर रहे है जिसके दायरे में प्रधान मंत्री और सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश भी आयें.
मैं अन्ना हजारे के मुहीम का समर्थन करता हूँ. परन्तु मेरे सुझाव है कि लोकपाल संस्था कम से कम तीन सदस्यीय हो जिसमे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय को प्रतिनिधित्व मिलते रहना चाहिए.लोकपाल के दायरे में प्रधान मंत्री एवं सर्वोच्च न्यायलय भी निश्चित तौर पर आना चाहिए.
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