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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Sunday, April 28, 2013

Himalyan Blunder हिमालयन ब्लंडर या हिमालय भूल।




हिमालय ब्लंडर ब्रिगेडियर जॉन दलवी द्वारा लिखा गया एक बेहद विवादास्पद युद्ध संस्मरण था. यह चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा भारत पर थोपा गया करारी और शर्मनाक हार का क्षुब्द विवरण था जिसे भारत सरकार ने तत्काल प्रतिबंधित कर दिया। यह सीमा पर तैनात एक सैन्य अधिकारी द्वारा 1962 के भारत चीन युद्ध के कारण, परिणाम औरउसके बाद का विस्तृत विवरण था।. पुस्तक के प्रकाशित होने के बाद संयोग से, शब्द 'हिमालय गलती', भारतीय राजनीति के संदर्भ में भारी विफलता के लिए एक पर्याय के रूप में जाना जाने लगा।

पुस्तक ब्रिगेडियर के DSSC, Wellington के दिनों के उस कथन के साथ शुरू होता है जब एक गेस्ट फेकल्टी, जो एक रिटायर्ड ब्रिटिश सैन्य अधिकारी थे, जब सुना कि नेहरू ने चीन के साथ पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और ब्रिटिश द्वारा तिब्बत में चीन के साथ अग्रिम स्थिति बनाये रखने के लिए सेना की चौकी को चीनियों को सौंपने का फैसला किया है तो कहा कि भारत और चीन जल्दी ही युद्ध की स्थिति में हो सकता है। ब्रिगेडियर. दलवी वह अपने देश के नेता की आलोचना करने सज्जन पर गुस्सा आया और उसके कथन को तुरंत चुनौती दी।

ब्रिगेडियर दलवी तिब्बत के सन्दर्भ में भारत और चीन की स्थिति की तुलना करते हैं। वे मानते हैं की ब्रिटिश को चीन की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा कीअंतर्दृष्टि थी, इसलिए तिब्बत को एक बफर राज्य के रूप में रखा गया था। उम्मीद के मुताबिक, चीनी 1950 में तिब्बत पर हमला किया और उस पर कब्ज़ा कर लिया. भारत ने, नेहरू की चीन के अनुकूल नीति के कारण कोई विरोध नहीं किया था।

चीनी तिब्बत से लद्दाख के पास अक्साई चिन में अग्रणी स्थिति के लिए सड़कों का निर्माण शुरू किया। उसके बाद चीन ने दो प्रमुख भारतीय प्रदेशों पर अपना दावा किया -
1 ) जम्मू एवं कश्मीर के लद्दाख जिले के पूर्वोत्तर भाग में अक्साई चिन पर, और
2) ब्रिटिश नामित पूर्वोत्तर फ्रंटियर एजेंसी (नेफा), जो वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश है।

जब 8 सितंबर, 1962 को युद्ध शुरू हुआ तो आदतन नेहरू भारत में नहीं थे। चीनी लद्दाख क्षेत्र और नेफा पर एक साथ हमला कर दिया था। चीन अक्साई चिन और नेफा (अरुणाचल प्रदेश) में 11,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा करने में कामयाब रहे।

चतुर्थ कोर के कमांडर जनरल बी.एम. कौल सीमा के अग्रणी लाइनों पर नहीं था और दिल्ली के सैन्य अस्पताल में भर्ती था। दलवी आगे आरोप है कि बी.एम. कौल नेहरू के व्यक्तिगत और जातिय पसंद था क्योंकि अधिक सक्षम और वरिष्ठ अधिकारियों को नज़रंदाज़ कर उसे जनरल के पद पर पदोन्नत किया गया था।
दलवी के अनुसार, भारतीय सेना को पहाड़ युद्ध के लिए उपकरण, हथियार, और गर्म कपड़े, बर्फ जूते, और चश्मे आदि आवश्यक उपकरणों की बुनियादी कमी थी. ब्रिगेडिअर दलवी ने अपनी ब्रिगेड के साहस, वीरता, और दुश्मनों को मुहतोड़ जबाब देने की और उनके आक्रमण का सामना करने की धैर्य और सहस की भूरी-भूरी प्रशंसा की।

क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के बावजूद चीनी सेना ने यथास्थिति बनाए रखते हुए एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा की। ब्रिगेडियर दलवी को अपनी ब्रिगेड के सैनिकों के साथ चीन द्वारा युद्ध कैदी के रूप में गिरफ्तार कर लिया गया था। और बाद में उन्हें छह महीने के लिए जेल में डाल दिया गया था।

दलवी ने रिकार्ड किया है की कैसे चीन सावधानी से हमले की योजना बनाई थी, जबकि आधिकारिक तौर पर यह एक अलग मुद्रा बनाए रखा था।

ब्रिगेडिअर दलवी ने युद्ध के बाद की स्थिति पर टिपण्णी करते हुए लिखा है कि प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के आलोचकों ने पराजय के लिए नेहरु सहित रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन और जनरल बृज मोहन कौल जिम्मेदार ठहराया और मेनन एवं कौल को इस्तीफा देना पड़ा।

Wednesday, April 24, 2013

चीन का भारत पर हमला, सरकार खामोश।


1962 के चीनी विश्वासघात और हमले के बाद यह पहली बार नहीं है की चीन ने खुले तौर से भारत में घुसपैठ किया हो। गौरतलब है की 1962 में पंडित नेहरु और तात्कालिक रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन को लगा की उनके साथ विश्वासघात हुआ, परन्तु पिछले 10 वर्षों से हो रहे चीनी घुसपैठ और दादागिरी पर मौनी बाबा प्रधान मंत्री खामोश हैं, और आका सोनिया गाँधी को शायद कोई फर्क नहीं पर रहा है। नहीं, मैं यह नहीं कहता की उनके विदेशी मूल का कोई प्रभाव है, परन्तु भारत माता के निरंतर अपमान को सहना भी समझ में नहीं आ रहा है। और विपक्ष एवं मीडिया का भी इसे तवज्जो नहीं देना दुखद है।

पूरे प्रकरण में चीन अपने इतिहास के उस समझ से प्रेरित है जिसके अनुसार वे मानते हैं की चीन दुनिया का केंद्र है, और सम्पूर्ण 'सभ्य' दुनिया पर उनका अधिकार है। इस तरह से वे अँगरेज़ के समय के भारत-चीन सीमा तय करने वाली रेखा मैक-मोहन लाईन के वजूद को ही नकारते हुए, जम्मू व कश्मीर के क्षेत्र अक्साई-चिन और पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल पर अपना दावा करते हैं। तदनुसार 15 अप्रैल, 2013 को 13 किलोमीटर लद्दाख में किये घुसपैठ को अपने क्षेत्र का मानते हुए, घुसपैठ से ही इनकार कर रहे हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर विवादित इलाके में अपने सैनिकों की टेंट चौकी खड़ी कर चीन ने हद लांघने के साथ ही 2005 में हुए समझौते को भी तोड़ा है। सीमा पर बीते नौ दिन से जारी तनाव को कम करने के लिए भारत ने चीन को सीमा पर 15 अप्रैल से पहले की स्थिति में लौटने के लिए कहा है। चीन ने भारत को दो टूक सुनाते हुए कहा कि हम अपने ही क्षेत्र में हैं हमने घुसपैठ नहीं किया है। हम वापस नहीं लौटेंगे। चीन ने अपनी पिछली स्थिति पर लौटने की भारतीय मांग मानने से मना कर दिया।

चीन इतना पर नहीं रुका है। पाकिस्तान, श्री लंका, नेपाल, बंगला देश, मालदीव में अपनी सैन्य उपस्थिति मजबूत कर वह भारत की घेराबंदी कर चूका है। साउथ चाइना सागर से भारत को हटने की चेतावनी दे चूका है. नित्य उसके युद्ध पोत भारतीय समुद्री क्षेत्र में और हेलीकाप्टर भारतीय आकाश में घुसपैठ कर रहें हैं। और यह सरकार खामोश है।

लद्दाख में चीन के घुसपैठ पर भारत के विदेश मंत्री खुर्शीद का यह बयान की यह एक 'स्थानीय समस्या' है, यह दर्शाता है की वे या तो तीसरे दर्जे के मुर्ख हैं, अथवा जानबूझ कर देश को बर्गला रहे हैं। इस तरह के बयान नेहरु भी 1962 के चीनी आक्रमण के पहले दे रहे थे। अपंगों के बैसाखी गोलमाल करने वाले खुर्शीद कह रहे हैं की मई में वे चीन जायेंगे और 'शायद' चीनी घुसपैठ के मासले को उठा सकते हैं। ऐसी स्थिति में चीन जाने का औचित्य क्या है? खुर्शीद का कहना है चीन भारत की बात सुन नही रहा और इस बीच खबर आया है कि खुद चीन जाएंगे। उन्हे क्या लगता है यहां से उनकी आवाज चीन तक नही पहुंच रही? और चीनी प्रधान मंत्री भी भारत आएंगे, और यहाँ से पाकिस्तान जायेंगे। क्या खुर्शीद को हिम्मत है की चीन के बाद वे जापान,( आज कल चीन से जापान का सम्बन्ध ठीक नहीं है), जाने की हिमाकत कर सकते हैं? इधर, चीन का कहना है कि लद्दाख मे हुई घुसपैठ का भारत-चीन मे जारी बातचीत पर कोई असर नही पडेगा। अगर चीनी सेना दिल्ली तक भी आ जाएं तब भी वो यही कहेगे। और भारत उन्हें चाय को पूछेगा। दरअसल, भारत सरकार कोमा में है। देश की प्रतिष्ठता और सीमाएं को बचने वाला अभी कोई नहीं है। जागिये साथियों, जागिये।

भ्रष्टाचार को चरम सीमा पर लाने वाली यह सोनिया- मौन मोहन की सरकार देश के सरहदों की रक्षा करने में भी अक्षम साबित हो रही है। क्या जनता जागेगी?

Status on Sunday, the 5th May, 2013 -
अपने ही ज़मीन छोड़, पीछे हटी भारतीय सेना - जय बोलो बेईमान देशद्रोही कांग्रेस सरकार की।
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के 50 सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय क्षेत्र दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में 19 किलोमीटर भीतर घुस आए थे और 15-16 अप्रैल की रात में वहां तंबू लगाकर चौकी बना ली थी। अब मीडिया में खबर आ रही है की दोनों सेनाएं पीछे हट रही है। गतिरोध बिन्दु दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र से रविवार को भारत और चीन के सैनिकों के पीछे हट जाने के बारे में विस्मय यह है की चीनी सैनिकों के पीछे हटने की बात तो समझ में आती है, लेकिन वह यह बात समझ में नहीं आ रही है कि भारतीय सैनिक क्षेत्र में कहां से हटे हैं? देश को जानने का अधिकार है कि भारत कहां से हटा और भारत को कहां से हटना था क्योंकि यह हमारा क्षेत्र है, यह वास्तविक नियंत्रण रेखा का हमारा क्षेत्र है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय क्षेत्र में चीनी सैनिकों की मौजूदगी से विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद की चीन यात्रा पर सवाल खड़ा हो गया था, और अब तो भारत सरकार की यह बड़ी झूठ और साजिश उनकी देशभक्ति (अगर हो तो) पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। निश्चित ही देश बेईमानों और गद्दारों के हाथों में सुरक्षित नहीं।