पूरे प्रकरण में चीन अपने इतिहास के उस समझ से प्रेरित है जिसके अनुसार वे मानते हैं की चीन दुनिया का केंद्र है, और सम्पूर्ण 'सभ्य' दुनिया पर उनका अधिकार है। इस तरह से वे अँगरेज़ के समय के भारत-चीन सीमा तय करने वाली रेखा मैक-मोहन लाईन के वजूद को ही नकारते हुए, जम्मू व कश्मीर के क्षेत्र अक्साई-चिन और पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल पर अपना दावा करते हैं। तदनुसार 15 अप्रैल, 2013 को 13 किलोमीटर लद्दाख में किये घुसपैठ को अपने क्षेत्र का मानते हुए, घुसपैठ से ही इनकार कर रहे हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर विवादित इलाके में अपने सैनिकों की टेंट चौकी खड़ी कर चीन ने हद लांघने के साथ ही 2005 में हुए समझौते को भी तोड़ा है। सीमा पर बीते नौ दिन से जारी तनाव को कम करने के लिए भारत ने चीन को सीमा पर 15 अप्रैल से पहले की स्थिति में लौटने के लिए कहा है। चीन ने भारत को दो टूक सुनाते हुए कहा कि हम अपने ही क्षेत्र में हैं हमने घुसपैठ नहीं किया है। हम वापस नहीं लौटेंगे। चीन ने अपनी पिछली स्थिति पर लौटने की भारतीय मांग मानने से मना कर दिया।
चीन इतना पर नहीं रुका है। पाकिस्तान, श्री लंका, नेपाल, बंगला देश, मालदीव में अपनी सैन्य उपस्थिति मजबूत कर वह भारत की घेराबंदी कर चूका है। साउथ चाइना सागर से भारत को हटने की चेतावनी दे चूका है. नित्य उसके युद्ध पोत भारतीय समुद्री क्षेत्र में और हेलीकाप्टर भारतीय आकाश में घुसपैठ कर रहें हैं। और यह सरकार खामोश है।
लद्दाख में चीन के घुसपैठ पर भारत के विदेश मंत्री खुर्शीद का यह बयान की यह एक 'स्थानीय समस्या' है, यह दर्शाता है की वे या तो तीसरे दर्जे के मुर्ख हैं, अथवा जानबूझ कर देश को बर्गला रहे हैं। इस तरह के बयान नेहरु भी 1962 के चीनी आक्रमण के पहले दे रहे थे। अपंगों के बैसाखी गोलमाल करने वाले खुर्शीद कह रहे हैं की मई में वे चीन जायेंगे और 'शायद' चीनी घुसपैठ के मासले को उठा सकते हैं। ऐसी स्थिति में चीन जाने का औचित्य क्या है? खुर्शीद का कहना है चीन भारत की बात सुन नही रहा और इस बीच खबर आया है कि खुद चीन जाएंगे। उन्हे क्या लगता है यहां से उनकी आवाज चीन तक नही पहुंच रही? और चीनी प्रधान मंत्री भी भारत आएंगे, और यहाँ से पाकिस्तान जायेंगे। क्या खुर्शीद को हिम्मत है की चीन के बाद वे जापान,( आज कल चीन से जापान का सम्बन्ध ठीक नहीं है), जाने की हिमाकत कर सकते हैं? इधर, चीन का कहना है कि लद्दाख मे हुई घुसपैठ का भारत-चीन मे जारी बातचीत पर कोई असर नही पडेगा। अगर चीनी सेना दिल्ली तक भी आ जाएं तब भी वो यही कहेगे। और भारत उन्हें चाय को पूछेगा। दरअसल, भारत सरकार कोमा में है। देश की प्रतिष्ठता और सीमाएं को बचने वाला अभी कोई नहीं है। जागिये साथियों, जागिये।
भ्रष्टाचार को चरम सीमा पर लाने वाली यह सोनिया- मौन मोहन की सरकार देश के सरहदों की रक्षा करने में भी अक्षम साबित हो रही है। क्या जनता जागेगी?
Status on Sunday, the 5th May, 2013 -
अपने ही ज़मीन छोड़, पीछे हटी भारतीय सेना - जय बोलो बेईमान देशद्रोही कांग्रेस सरकार की।
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के 50 सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय क्षेत्र दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में 19 किलोमीटर भीतर घुस आए थे और 15-16 अप्रैल की रात में वहां तंबू लगाकर चौकी बना ली थी। अब मीडिया में खबर आ रही है की दोनों सेनाएं पीछे हट रही है। गतिरोध बिन्दु दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र से रविवार को भारत और चीन के सैनिकों के पीछे हट जाने के बारे में विस्मय यह है की चीनी सैनिकों के पीछे हटने की बात तो समझ में आती है, लेकिन वह यह बात समझ में नहीं आ रही है कि भारतीय सैनिक क्षेत्र में कहां से हटे हैं? देश को जानने का अधिकार है कि भारत कहां से हटा और भारत को कहां से हटना था क्योंकि यह हमारा क्षेत्र है, यह वास्तविक नियंत्रण रेखा का हमारा क्षेत्र है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय क्षेत्र में चीनी सैनिकों की मौजूदगी से विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद की चीन यात्रा पर सवाल खड़ा हो गया था, और अब तो भारत सरकार की यह बड़ी झूठ और साजिश उनकी देशभक्ति (अगर हो तो) पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। निश्चित ही देश बेईमानों और गद्दारों के हाथों में सुरक्षित नहीं।
@कुमुद सिंह-
ReplyDeleteचीन के मामले में पाकिस्तान की तरह न जो सरकार उग्र हो सकती है और न ही जनता। इसके पीछे कारण है कि 50 साल पहले हम जो थे आज भी वही हैं। हमने चीन की तरह विकास नहीं किया है। गिदरों से लडकर जीत का जश्न मनाने की आदत हो चुकी है। चीन से लडना भारत के लिए पहले से ज्यादा कठिन हो चुका है, क्योंकि 1962 में एक देशभक्ति का भाव था आज वो भी नहीं है। 3 करोड गुजराती की बात करनेवाला चीन को नहीं केवल पाकिस्तान को अपना पडोसी समझता है। वहीं 1962 में 300 किलो सोना दान देनेवाला बिहारी आज खुद भीख मांग रहा है।