गुरू-पूर्णिमा
श्री गुरुस्तोत्रम्: गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः
Sri Guru Stotram: Gurur Brahma Gurur Vishnu Gurudevo Maheshwara
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है।अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।
भारत भर में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं।
"There is equality only among equals. To equate unequals is to perpetuate inequality." ~ Bindheshwari Prasad Mandal "All epoch-making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-~ADOLF HITLER.
About Me
- Suraj Yadav
- New Delhi, NCR of Delhi, India
- I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....
Friday, July 31, 2015
Thursday, July 23, 2015
कृष्ण की द्वारिका :
मथुरा से निकलकर भगवान कृष्ण ने द्वारिका क्षेत्र में ही पहले से स्थापित खंडहर हो चुके नगर क्षेत्र में एक नए नगर की स्थापना की थी। कहना चाहिए कि भगवान कृष्ण ने अपने पूर्वजों की भूमि को फिर से रहने लायक बनाया था लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि द्वारिका नष्ट हो गई? किसने किया द्वारिका को नष्ट? क्या प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो गई द्वारिका? क्या किसी आसमानी ताकत ने नष्ट कर दिया द्वारिका को या किसी समुद्री शक्ति ने उजाड़ दिया द्वारिका को। आखिर क्या हुआ कि नष्ट हो गई द्वारिका और फिर बाद में वह समुद्र में डूब गई। अंतिम पेज पर खुलेगा इसका रहस्य जो आज तक कोई नहीं जानता।
इस सवाल की खोज कई वैज्ञानिकों ने की और उसके जवाब भी ढूंढे हैं। सैकड़ों फीट नीचे समुद्र में उन्हें ऐसे अवशेष मिले हैं जिसके चलते भारत का इतिहास बदल गया है। अब इतिहास को फिर से लिखे जाने की जरूरत बन गई है। आओ, इस सबके खुलासे के पहले जान लें इस क्षेत्र की प्राचीन पृष्ठभूमि को। पहले जान लें इस क्षेत्र का इतिहास... तब खुलेगा द्वारिका का एक ऐसा रहस्य, जो आप आज तक नहीं जान पाए हैं।
ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे- 1. पुरु, 2. यदु, 3. तुर्वस, 4. अनु और 5. द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है। 7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों का संपूर्ण धरती पर राज था। पांचों पुत्रों ने अपने-अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुई। इन पांचों कुल के लोगों ने आपस में कई प्रसिद्ध लड़ाइयां लड़ी हैं जिसमें से एक दासराज्ञ का युद्ध और दूसरा महाभारत का युद्ध प्रसिद्ध है।
पुराणों में उल्लेख है कि ययाति अपने बड़े लड़के यदु से रुष्ट हो गया था और उसे शाप दिया था कि यदु या उसके लड़कों को राजपद प्राप्त करने का सौभाग्य न प्राप्त होगा। (हरिवंश पुराण, 1, 30, 29)। ययाति सबसे छोटे बेटे पुरु को बहुत अधिक चाहता था और उसी को उसने राज्य देने का विचार प्रकट किया, परंतु राजा के सभासदों ने ज्येष्ठ पुत्र के रहते हुए इस कार्य का विरोध किया। (महाभारत, 1, 85, 32)
किसको कौन सा क्षेत्र मिला : ययाति ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम में द्रुहु को, दक्षिण में यदु को (आज का सिन्ध-गुजरात प्रांत) और उत्तर में अनु को मांडलिक पद पर नियुक्त किया तथा पुरु को संपूर्ण भूमंडल के राज्य पर अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए।
यदु ने पुरु पक्ष का समर्थन किया और स्वयं मांडलिक पद से इंकार कर दिया। इस पर पुरु को राजा घोषित किया गया और वह प्रतिष्ठान की मुख्य शाखा का शासक हुआ। उसके वंशज पौरव कहलाए। अन्य चारों भाइयों को जो प्रदेश दिए गए, उनका विवरण इस प्रकार है- यदु को चर्मरावती अथवा चर्मण्वती (चंबल), बेत्रवती (बेतवा) और शुक्तिमती (केन) का तटवर्ती प्रदेश मिला। तुर्वसु को प्रतिष्ठान के दक्षिण-पूर्व का भू-भाग मिला और द्रुहु को उत्तर-पश्चिम का। गंगा-यमुना दो-आब का उत्तरी भाग तथा उसके पूर्व का कुछ प्रदेश जिसकी सीमा अयोध्या राज्य से मिलती थी, अनु के हिस्से में आया।
यदि हम यादवों के क्षेत्र की बात करें तो वह आज के पाकिस्तान स्थित सिन्ध प्रांत और भारत स्थित गुजरात का प्रांत है। इसके बीच का क्षेत्र यदु क्षेत्र कहलाता था। पहले राज्य का विभाजन नदी और वन क्षेत्र के आधार पर था। सरस्वती नदी पहले गुजरात के कच्छ के पास के समुद्र में विलीन होती थी। सरस्वती नदी के इस पार (अर्थात विदर्भ की ओर गोदावरी-नर्मदा तक) से लेकर उस पार सिन्धु नदी के किनारे तक का क्षेत्र यदुओं का था। सिन्धु के उस पार यदु के दूसरे भाइयों का क्षेत्र था।
द्वारिका का परिचय : कई द्वारों का शहर होने के कारण द्वारिका इसका नाम पड़ा। इस शहर के चारों ओर बहुत ही लंबी दीवार थी जिसमें कई द्वार थे। वह दीवार आज भी समुद्र के तल में स्थित है। भारत के सबसे प्राचीन नगरों में से एक है द्वारिका। ये 7 नगर हैं- द्वारिका, मथुरा, काशी, हरिद्वार, अवंतिका, कांची और अयोध्या। द्वारिका को द्वारावती, कुशस्थली, आनर्तक, ओखा-मंडल, गोमती द्वारिका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारिदुर्ग, उदधिमध्यस्थान भी कहा जाता है।
गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित 4 धामों में से 1 धाम और 7 पवित्र पुरियों में से एक पुरी है द्वारिका। द्वारिका 2 हैं- गोमती द्वारिका, बेट द्वारिका। गोमती द्वारिका धाम है, बेट द्वारिका पुरी है। बेट द्वारिका के लिए समुद्र मार्ग से जाना पड़ता है।
द्वारिका का प्राचीन नाम कुशस्थली है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। यहां द्वारिकाधीश का प्रसिद्ध मंदिर होने के साथ ही अनेक मंदिर और सुंदर, मनोरम और रमणीय स्थान हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहां के बहुत से प्राचीन मंदिर तोड़ दिए। यहां से समुद्र को निहारना अति सुखद है।
कृष्ण क्यों गए थे द्वारिका : कृष्ण ने राजा कंस का वध कर दिया तो कंस के श्वसुर मगधपति जरासंध ने कृष्ण और यदुओं का नामोनिशान मिटा देने की ठान रखी थी। वह मथुरा और यादवों पर बारंबार आक्रमण करता था। उसके कई मलेच्छ और यवनी मित्र राजा थे। अंतत: यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कृष्ण ने मथुरा को छोड़ने का निर्णय लिया। विनता के पुत्र गरूड़ की सलाह एवं ककुद्मी के आमंत्रण पर कृष्ण कुशस्थली आ गए। वर्तमान द्वारिका नगर कुशस्थली के रूप में पहले से ही विद्यमान थी, कृष्ण ने इसी उजाड़ हो चुकी नगरी को पुनः बसाया।
कृष्ण अपने 18 नए कुल-बंधुओं के साथ द्वारिका आ गए। यहीं 36 वर्ष राज्य करने के बाद उनका देहावसान हुआ। द्वारिका के समुद्र में डूब जाने और यादव कुलों के नष्ट हो जाने के बाद कृष्ण के प्रपौत्र वज्र अथवा वज्रनाभ द्वारिका के यदुवंश के अंतिम शासक थे, जो यदुओं की आपसी लड़ाई में जीवित बच गए थे। द्वारिका के समुद्र में डूबने पर अर्जुन द्वारिका गए और वज्र तथा शेष बची यादव महिलाओं को हस्तिनापुर ले गए। कृष्ण के प्रपौत्र वज्र को हस्तिनापुर में मथुरा का राजा घोषित किया। वज्रनाभ के नाम से ही मथुरा क्षेत्र को ब्रजमंडल कहा जाता है।
द्वारिका के इन समुद्री अवशेषों को सबसे पहले भारतीय वायुसेना के पायलटों ने समुद्र के ऊपर से उड़ान भरते हुए नोटिस किया था और उसके बाद 1970 के जामनगर के गजेटियर में इनका उल्लेख किया गया। उसके बाद से इन खंडों के बारे में दावों-प्रतिदावों का दौर चलता चल पड़ा। बहरहाल, जो शुरुआत आकाश से वायुसेना ने की थी, उसकी सचाई भारतीय नौसेना ने सफलतापूर्वक उजागर कर दी।
एक समय था, जब लोग कहते थे कि द्वारिका नगरी एक काल्पनिक नगर है, लेकिन इस कल्पना को सच साबित कर दिखाया ऑर्कियोलॉजिस्ट प्रो. एसआर राव ने।
प्रो. राव ने मैसूर विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद बड़ौदा में राज्य पुरातत्व विभाग ज्वॉइन कर लिया था। उसके बाद भारतीय पुरातत्व विभाग में काम किया। प्रो. राव और उनकी टीम ने 1979-80 में समुद्र में 560 मीटर लंबी द्वारिका की दीवार की खोज की। साथ में उन्हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा सिन्धु घाटी सभ्यता के भी कई अवशेष उन्होंने खोजे। उस जगह पर भी उन्होंने खुदाई में कई रहस्य खोले, जहां पर कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ था।
नौसेना और पुरातत्व विभाग की संयुक्त खोज : पहले 2005 फिर 2007 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निर्देशन में भारतीय नौसेना के गोताखोरों ने समुद्र में समाई द्वारिका नगरी के अवशेषों के नमूनों को सफलतापूर्वक निकाला। उन्होंने ऐसे नमूने एकत्रित किए जिन्हें देखकर आश्चर्य होता है। 2005 में नौसेना के सहयोग से प्राचीन द्वारिका नगरी से जुड़े अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छंटे पत्थर मिले और लगभग 200 नमूने एकत्र किए गए।
गुजरात में कच्छ की खाड़ी के पास स्थित द्वारिका नगर समुद्र तटीय क्षेत्र में नौसेना के गोताखोरों की मदद से पुरा विशेषज्ञों ने व्यापक सर्वेक्षण के बाद समुद्र के भीतर उत्खनन कार्य किया और वहां पड़े चूना पत्थरों के खंडों को भी ढूंढ निकाला।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के समुद्री पुरातत्व विशेषज्ञों ने इन दुर्लभ नमूनों को देश-विदेशों की पुरा प्रयोगशालाओं को भेजा। मिली जानकारी के मुताबिक ये नमूने सिन्धु घाटी सभ्यता से कोई मेल नहीं खाते, लेकिन ये इतने प्राचीन थे कि सभी दंग रह गए।
नौसेना के गोताखोरों ने 40 हजार वर्गमीटर के दायरे में यह उत्खनन किया और वहां पड़े भवनों के खंडों के नमूने एकत्र किए जिन्हें आरंभिक तौर पर चूना पत्थर बताया गया था। पुरातत्व विशेषज्ञों ने बताया कि ये खंड बहुत ही विशाल और समृद्धशाली नगर और मंदिर के अवशेष हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक (धरोहर) एके सिन्हा के अनुसार द्वारिका में समुद्र के भीतर ही नहीं, बल्कि जमीन पर भी खुदाई की गई थी और 10 मीटर गहराई तक किए गए इस उत्खनन में सिक्के और कई कलाकृतियां भी प्राप्त हुईं।
इस समुद्री उत्खनन के बारे में सहायक नौसेना प्रमुख रियर एडमिरल एसपीएस चीमा ने तब बताया था कि इस ऐतिहासिक अभियान के लिए उनके 11 गोताखोरों को पुरातत्व सर्वेक्षण ने प्रशिक्षित किया और नवंबर 2006 में नौसेना के सर्वेक्षक पोत आईएनएस निर्देशक ने इस समुद्री स्थल का सर्वे किया। इसके बाद इस साल जनवरी से फरवरी के बीच नौसेना के गोताखोर तमाम आवश्यक उपकरण और सामग्री लेकर उन दुर्लभ अवशेषों तक पहुंच गए। रियर एडमिरल चीमा ने कहा कि इन अवशेषों की प्राचीनता का वैज्ञानिक अध्ययन होने के बाद देश के समुद्री इतिहास और धरोहर का तिथिक्रम लिखने के लिए आरंभिक सामग्री इतिहासकारों को उपलब्ध हो जाएगी।
इस उत्खनन के कार्य के आंकड़ों को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के सामने पेश किया गया। इन विशेषज्ञों में अमेरिका, इसराइल, श्रीलंका और ब्रिटेन के विशेषज्ञ भी शामिल हुए। नमूनों को विदेशी प्रयोगशालाओं में भी भेजा गया ताकि अवशेषों की प्राचीनता के बारे में किसी प्रकार की त्रुटि का संदेह समाप्त हो जाए।
द्वारिका पर ताजा शोध : 2001 में सरकार ने गुजरात के समुद्री तटों पर प्रदूषण के कारण हुए नुकसान का अनुमान लगाने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी द्वारा एक सर्वे करने को कहा। जब समुद्री तलहटी की जांच की गई तो सोनार पर मानव निर्मित नगर पाया गया जिसकी जांच करने पर पाया गया कि यह नगर 32,000 वर्ष पुराना है तथा 9,000 वर्षों से समुद्र मंड विलीन है। यह बहुत ही चौंका देने वाली जानकारी थी।
माना जाता है कि 9,000 वर्षों पूर्व हिमयुग की समाप्ति पर समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण यह नगर समुद्र में विलीन हो गया होगा, लेकिन इसके पीछे और भी कारण हो सकते हैं।
कैसे नष्ट हो गई द्वारिका : वैज्ञानिकों के अनुसार जब हिमयुग समाप्त हुआ तो समद्र का जलस्तर बढ़ा और उसमें देश-दुनिया के कई तटवर्ती शहर डूब गए। द्वारिका भी उन शहरों में से एक थी। लेकिन सवाल यह उठता है कि हिमयुग तो आज से 10 हजार वर्ष पूर्व समाप्त हुआ। भगवान कृष्ण ने तो नई द्वारिका का निर्माण आज से 5 हजार 300 वर्ष पूर्व किया था, तब ऐसे में इसके हिमयुग के दौरान समुद्र में डूब जाने की थ्योरी आधी सच लगती है।
लेकिन बहुत से पुराणकार और इतिहासकार मानते हैं कि द्वारिका को कृष्ण के देहांत के बाद जान-बूझकर नष्ट किया गया था। यह वह दौर था, जबकि यादव लोग आपस में भयंकर तरीके से लड़ रहे थे। इसके अलावा जरासंध और यवन लोग भी उनके घोर दुश्मन थे। ऐसे में द्वारिका पर समुद्र के मार्ग से भी आक्रमण हुआ और आसमानी मार्ग से भी आक्रमण किया गया। अंतत: यादवों को उनके क्षेत्र को छोड़कर फिर से मथुरा और उसके आसपास शरण लेना पड़ी।
हाल ही की खोज से यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि यह वह दौर था जबकि धरती पर रहने वाले एलियंस का आसमानी एलियंस के साथ घोर युद्ध हुआ था जिसके चलते यूएफओ ने उन सभी शहरों को निशाना बनाया, जहां पर देवता लोग रहते थे या जहां पर देवताओं के वंशज रहते थे।
https://youtu.be/QSEMIdGB8Uk
इस सवाल की खोज कई वैज्ञानिकों ने की और उसके जवाब भी ढूंढे हैं। सैकड़ों फीट नीचे समुद्र में उन्हें ऐसे अवशेष मिले हैं जिसके चलते भारत का इतिहास बदल गया है। अब इतिहास को फिर से लिखे जाने की जरूरत बन गई है। आओ, इस सबके खुलासे के पहले जान लें इस क्षेत्र की प्राचीन पृष्ठभूमि को। पहले जान लें इस क्षेत्र का इतिहास... तब खुलेगा द्वारिका का एक ऐसा रहस्य, जो आप आज तक नहीं जान पाए हैं।
ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे- 1. पुरु, 2. यदु, 3. तुर्वस, 4. अनु और 5. द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है। 7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों का संपूर्ण धरती पर राज था। पांचों पुत्रों ने अपने-अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुई। इन पांचों कुल के लोगों ने आपस में कई प्रसिद्ध लड़ाइयां लड़ी हैं जिसमें से एक दासराज्ञ का युद्ध और दूसरा महाभारत का युद्ध प्रसिद्ध है।
पुराणों में उल्लेख है कि ययाति अपने बड़े लड़के यदु से रुष्ट हो गया था और उसे शाप दिया था कि यदु या उसके लड़कों को राजपद प्राप्त करने का सौभाग्य न प्राप्त होगा। (हरिवंश पुराण, 1, 30, 29)। ययाति सबसे छोटे बेटे पुरु को बहुत अधिक चाहता था और उसी को उसने राज्य देने का विचार प्रकट किया, परंतु राजा के सभासदों ने ज्येष्ठ पुत्र के रहते हुए इस कार्य का विरोध किया। (महाभारत, 1, 85, 32)
किसको कौन सा क्षेत्र मिला : ययाति ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम में द्रुहु को, दक्षिण में यदु को (आज का सिन्ध-गुजरात प्रांत) और उत्तर में अनु को मांडलिक पद पर नियुक्त किया तथा पुरु को संपूर्ण भूमंडल के राज्य पर अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए।
यदु ने पुरु पक्ष का समर्थन किया और स्वयं मांडलिक पद से इंकार कर दिया। इस पर पुरु को राजा घोषित किया गया और वह प्रतिष्ठान की मुख्य शाखा का शासक हुआ। उसके वंशज पौरव कहलाए। अन्य चारों भाइयों को जो प्रदेश दिए गए, उनका विवरण इस प्रकार है- यदु को चर्मरावती अथवा चर्मण्वती (चंबल), बेत्रवती (बेतवा) और शुक्तिमती (केन) का तटवर्ती प्रदेश मिला। तुर्वसु को प्रतिष्ठान के दक्षिण-पूर्व का भू-भाग मिला और द्रुहु को उत्तर-पश्चिम का। गंगा-यमुना दो-आब का उत्तरी भाग तथा उसके पूर्व का कुछ प्रदेश जिसकी सीमा अयोध्या राज्य से मिलती थी, अनु के हिस्से में आया।
यदि हम यादवों के क्षेत्र की बात करें तो वह आज के पाकिस्तान स्थित सिन्ध प्रांत और भारत स्थित गुजरात का प्रांत है। इसके बीच का क्षेत्र यदु क्षेत्र कहलाता था। पहले राज्य का विभाजन नदी और वन क्षेत्र के आधार पर था। सरस्वती नदी पहले गुजरात के कच्छ के पास के समुद्र में विलीन होती थी। सरस्वती नदी के इस पार (अर्थात विदर्भ की ओर गोदावरी-नर्मदा तक) से लेकर उस पार सिन्धु नदी के किनारे तक का क्षेत्र यदुओं का था। सिन्धु के उस पार यदु के दूसरे भाइयों का क्षेत्र था।
द्वारिका का परिचय : कई द्वारों का शहर होने के कारण द्वारिका इसका नाम पड़ा। इस शहर के चारों ओर बहुत ही लंबी दीवार थी जिसमें कई द्वार थे। वह दीवार आज भी समुद्र के तल में स्थित है। भारत के सबसे प्राचीन नगरों में से एक है द्वारिका। ये 7 नगर हैं- द्वारिका, मथुरा, काशी, हरिद्वार, अवंतिका, कांची और अयोध्या। द्वारिका को द्वारावती, कुशस्थली, आनर्तक, ओखा-मंडल, गोमती द्वारिका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारिदुर्ग, उदधिमध्यस्थान भी कहा जाता है।
गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित 4 धामों में से 1 धाम और 7 पवित्र पुरियों में से एक पुरी है द्वारिका। द्वारिका 2 हैं- गोमती द्वारिका, बेट द्वारिका। गोमती द्वारिका धाम है, बेट द्वारिका पुरी है। बेट द्वारिका के लिए समुद्र मार्ग से जाना पड़ता है।
द्वारिका का प्राचीन नाम कुशस्थली है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। यहां द्वारिकाधीश का प्रसिद्ध मंदिर होने के साथ ही अनेक मंदिर और सुंदर, मनोरम और रमणीय स्थान हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहां के बहुत से प्राचीन मंदिर तोड़ दिए। यहां से समुद्र को निहारना अति सुखद है।
कृष्ण क्यों गए थे द्वारिका : कृष्ण ने राजा कंस का वध कर दिया तो कंस के श्वसुर मगधपति जरासंध ने कृष्ण और यदुओं का नामोनिशान मिटा देने की ठान रखी थी। वह मथुरा और यादवों पर बारंबार आक्रमण करता था। उसके कई मलेच्छ और यवनी मित्र राजा थे। अंतत: यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कृष्ण ने मथुरा को छोड़ने का निर्णय लिया। विनता के पुत्र गरूड़ की सलाह एवं ककुद्मी के आमंत्रण पर कृष्ण कुशस्थली आ गए। वर्तमान द्वारिका नगर कुशस्थली के रूप में पहले से ही विद्यमान थी, कृष्ण ने इसी उजाड़ हो चुकी नगरी को पुनः बसाया।
कृष्ण अपने 18 नए कुल-बंधुओं के साथ द्वारिका आ गए। यहीं 36 वर्ष राज्य करने के बाद उनका देहावसान हुआ। द्वारिका के समुद्र में डूब जाने और यादव कुलों के नष्ट हो जाने के बाद कृष्ण के प्रपौत्र वज्र अथवा वज्रनाभ द्वारिका के यदुवंश के अंतिम शासक थे, जो यदुओं की आपसी लड़ाई में जीवित बच गए थे। द्वारिका के समुद्र में डूबने पर अर्जुन द्वारिका गए और वज्र तथा शेष बची यादव महिलाओं को हस्तिनापुर ले गए। कृष्ण के प्रपौत्र वज्र को हस्तिनापुर में मथुरा का राजा घोषित किया। वज्रनाभ के नाम से ही मथुरा क्षेत्र को ब्रजमंडल कहा जाता है।
द्वारिका के इन समुद्री अवशेषों को सबसे पहले भारतीय वायुसेना के पायलटों ने समुद्र के ऊपर से उड़ान भरते हुए नोटिस किया था और उसके बाद 1970 के जामनगर के गजेटियर में इनका उल्लेख किया गया। उसके बाद से इन खंडों के बारे में दावों-प्रतिदावों का दौर चलता चल पड़ा। बहरहाल, जो शुरुआत आकाश से वायुसेना ने की थी, उसकी सचाई भारतीय नौसेना ने सफलतापूर्वक उजागर कर दी।
एक समय था, जब लोग कहते थे कि द्वारिका नगरी एक काल्पनिक नगर है, लेकिन इस कल्पना को सच साबित कर दिखाया ऑर्कियोलॉजिस्ट प्रो. एसआर राव ने।
प्रो. राव ने मैसूर विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद बड़ौदा में राज्य पुरातत्व विभाग ज्वॉइन कर लिया था। उसके बाद भारतीय पुरातत्व विभाग में काम किया। प्रो. राव और उनकी टीम ने 1979-80 में समुद्र में 560 मीटर लंबी द्वारिका की दीवार की खोज की। साथ में उन्हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा सिन्धु घाटी सभ्यता के भी कई अवशेष उन्होंने खोजे। उस जगह पर भी उन्होंने खुदाई में कई रहस्य खोले, जहां पर कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ था।
नौसेना और पुरातत्व विभाग की संयुक्त खोज : पहले 2005 फिर 2007 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निर्देशन में भारतीय नौसेना के गोताखोरों ने समुद्र में समाई द्वारिका नगरी के अवशेषों के नमूनों को सफलतापूर्वक निकाला। उन्होंने ऐसे नमूने एकत्रित किए जिन्हें देखकर आश्चर्य होता है। 2005 में नौसेना के सहयोग से प्राचीन द्वारिका नगरी से जुड़े अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छंटे पत्थर मिले और लगभग 200 नमूने एकत्र किए गए।
गुजरात में कच्छ की खाड़ी के पास स्थित द्वारिका नगर समुद्र तटीय क्षेत्र में नौसेना के गोताखोरों की मदद से पुरा विशेषज्ञों ने व्यापक सर्वेक्षण के बाद समुद्र के भीतर उत्खनन कार्य किया और वहां पड़े चूना पत्थरों के खंडों को भी ढूंढ निकाला।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के समुद्री पुरातत्व विशेषज्ञों ने इन दुर्लभ नमूनों को देश-विदेशों की पुरा प्रयोगशालाओं को भेजा। मिली जानकारी के मुताबिक ये नमूने सिन्धु घाटी सभ्यता से कोई मेल नहीं खाते, लेकिन ये इतने प्राचीन थे कि सभी दंग रह गए।
नौसेना के गोताखोरों ने 40 हजार वर्गमीटर के दायरे में यह उत्खनन किया और वहां पड़े भवनों के खंडों के नमूने एकत्र किए जिन्हें आरंभिक तौर पर चूना पत्थर बताया गया था। पुरातत्व विशेषज्ञों ने बताया कि ये खंड बहुत ही विशाल और समृद्धशाली नगर और मंदिर के अवशेष हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक (धरोहर) एके सिन्हा के अनुसार द्वारिका में समुद्र के भीतर ही नहीं, बल्कि जमीन पर भी खुदाई की गई थी और 10 मीटर गहराई तक किए गए इस उत्खनन में सिक्के और कई कलाकृतियां भी प्राप्त हुईं।
इस समुद्री उत्खनन के बारे में सहायक नौसेना प्रमुख रियर एडमिरल एसपीएस चीमा ने तब बताया था कि इस ऐतिहासिक अभियान के लिए उनके 11 गोताखोरों को पुरातत्व सर्वेक्षण ने प्रशिक्षित किया और नवंबर 2006 में नौसेना के सर्वेक्षक पोत आईएनएस निर्देशक ने इस समुद्री स्थल का सर्वे किया। इसके बाद इस साल जनवरी से फरवरी के बीच नौसेना के गोताखोर तमाम आवश्यक उपकरण और सामग्री लेकर उन दुर्लभ अवशेषों तक पहुंच गए। रियर एडमिरल चीमा ने कहा कि इन अवशेषों की प्राचीनता का वैज्ञानिक अध्ययन होने के बाद देश के समुद्री इतिहास और धरोहर का तिथिक्रम लिखने के लिए आरंभिक सामग्री इतिहासकारों को उपलब्ध हो जाएगी।
इस उत्खनन के कार्य के आंकड़ों को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के सामने पेश किया गया। इन विशेषज्ञों में अमेरिका, इसराइल, श्रीलंका और ब्रिटेन के विशेषज्ञ भी शामिल हुए। नमूनों को विदेशी प्रयोगशालाओं में भी भेजा गया ताकि अवशेषों की प्राचीनता के बारे में किसी प्रकार की त्रुटि का संदेह समाप्त हो जाए।
द्वारिका पर ताजा शोध : 2001 में सरकार ने गुजरात के समुद्री तटों पर प्रदूषण के कारण हुए नुकसान का अनुमान लगाने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी द्वारा एक सर्वे करने को कहा। जब समुद्री तलहटी की जांच की गई तो सोनार पर मानव निर्मित नगर पाया गया जिसकी जांच करने पर पाया गया कि यह नगर 32,000 वर्ष पुराना है तथा 9,000 वर्षों से समुद्र मंड विलीन है। यह बहुत ही चौंका देने वाली जानकारी थी।
माना जाता है कि 9,000 वर्षों पूर्व हिमयुग की समाप्ति पर समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण यह नगर समुद्र में विलीन हो गया होगा, लेकिन इसके पीछे और भी कारण हो सकते हैं।
कैसे नष्ट हो गई द्वारिका : वैज्ञानिकों के अनुसार जब हिमयुग समाप्त हुआ तो समद्र का जलस्तर बढ़ा और उसमें देश-दुनिया के कई तटवर्ती शहर डूब गए। द्वारिका भी उन शहरों में से एक थी। लेकिन सवाल यह उठता है कि हिमयुग तो आज से 10 हजार वर्ष पूर्व समाप्त हुआ। भगवान कृष्ण ने तो नई द्वारिका का निर्माण आज से 5 हजार 300 वर्ष पूर्व किया था, तब ऐसे में इसके हिमयुग के दौरान समुद्र में डूब जाने की थ्योरी आधी सच लगती है।
लेकिन बहुत से पुराणकार और इतिहासकार मानते हैं कि द्वारिका को कृष्ण के देहांत के बाद जान-बूझकर नष्ट किया गया था। यह वह दौर था, जबकि यादव लोग आपस में भयंकर तरीके से लड़ रहे थे। इसके अलावा जरासंध और यवन लोग भी उनके घोर दुश्मन थे। ऐसे में द्वारिका पर समुद्र के मार्ग से भी आक्रमण हुआ और आसमानी मार्ग से भी आक्रमण किया गया। अंतत: यादवों को उनके क्षेत्र को छोड़कर फिर से मथुरा और उसके आसपास शरण लेना पड़ी।
हाल ही की खोज से यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि यह वह दौर था जबकि धरती पर रहने वाले एलियंस का आसमानी एलियंस के साथ घोर युद्ध हुआ था जिसके चलते यूएफओ ने उन सभी शहरों को निशाना बनाया, जहां पर देवता लोग रहते थे या जहां पर देवताओं के वंशज रहते थे।
https://youtu.be/QSEMIdGB8Uk
Saturday, July 18, 2015
कब्ज से बचाए, यह 10 घरेलू उपाय...
कब्ज से बचाए, यह 10 घरेलू उपाय
अनियमित दिनचर्या और खान-पान के कारण कब्ज की समस्या होना आम बात है। भोजन के बाद बैठे रहने और रात के खाने के बाद सीधे सो जाने जैसी आदतें कब्ज के लिए जिम्मेदार होती हैं।
1 सुबह उठने के बाद पानी में नींबू का रस और काला नमक मिलाकर पिएं। इससे पेट अच्छी तरह साफ होगा, और कब्ज की समस्या नहीं होगी।
2 कब्ज के लिए शहद बहुत फायदेमंद है। रात को सोने से पहले एक चम्मच शहद को एक गिलास पानी के साथ मिलाकर पिएं। इसके नियमित सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है।
3 सुबह उठकर प्रतिदिन खाली पेट, 4 से 5 काजू, उतने ही मुनक्का के साथ मिलाकर खाने से भी, कब्ज की शिकायत समाप्त हो जाती है। इसके अलावा रात को सोन से पहले 6 से 7 मुनक्का खाने से भी कब्ज ठीक हो जाता है।
4 प्रतिदिन रात में हरड़ के चूर्ण या त्रिफला को कुनकुने पानी के साथ पिएं। इससे कब्ज दूर हेगा, साथ ही पेट में गैस बनने की समस्या से भी निजात मिलेगी।
5 कब्ज के लिए आप सोते समय अरंडी के तेल को हल्के गर्म दूध में मिलाकर पी सकते हैं। इससे पेट साफ होता है, और कब्ज की समस्या नहीं होती।
6 र्इसबगोल की भूसी कब्ज के लिए रामबाण इलाज है। आप इसका प्रयोग दूध या पानी के साथ, रात को सोते वक्त कर सकते हैं। इससे कब्ज की समस्या बिल्कुल समाप्त हो जाएगी।
7 फलों में अमरूद और पपीता, कब्ज के लि बेहद फायदेमंद होते हैं। इनका सेवन किसी भी समय किया जा सकता है। इन्हें खाने से पेट की समस्याएं तो समाप्त होती ही हैं, त्वचा भी खूबसूरत बनती है।
8 किशमिश को कुछ देर तक पानी में गलाने के बाद, इसका सेवन करने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। इसके अलावा अंजीर को भी रातभर पानी में गलाने के बाद उसका सेवन करने से कब्ज की समस्या खत्म होती है।
9 पालक भी कब्ज के मरीजों के लिए एक अच्छा विकल्प है। प्रतिदिन पालक के रस को दिनचर्या में शामिल कर, आप कब्ज से आजदी पा सकते हैं, साथ ही इसकी सब्जी भी सेहत के लिए अच्छी होती है। लेकिन अगर आप पथरी के मरीज हैं, तो सका इस्तेमाल न करें।
10 कब्ज से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम और योगा करना बेहद फायदेमंद होता है। इसके अलावा हमेशा गरिष्ठ भोजन करने से बचना चाहिए।
अनियमित दिनचर्या और खान-पान के कारण कब्ज की समस्या होना आम बात है। भोजन के बाद बैठे रहने और रात के खाने के बाद सीधे सो जाने जैसी आदतें कब्ज के लिए जिम्मेदार होती हैं।
1 सुबह उठने के बाद पानी में नींबू का रस और काला नमक मिलाकर पिएं। इससे पेट अच्छी तरह साफ होगा, और कब्ज की समस्या नहीं होगी।
2 कब्ज के लिए शहद बहुत फायदेमंद है। रात को सोने से पहले एक चम्मच शहद को एक गिलास पानी के साथ मिलाकर पिएं। इसके नियमित सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है।
3 सुबह उठकर प्रतिदिन खाली पेट, 4 से 5 काजू, उतने ही मुनक्का के साथ मिलाकर खाने से भी, कब्ज की शिकायत समाप्त हो जाती है। इसके अलावा रात को सोन से पहले 6 से 7 मुनक्का खाने से भी कब्ज ठीक हो जाता है।
4 प्रतिदिन रात में हरड़ के चूर्ण या त्रिफला को कुनकुने पानी के साथ पिएं। इससे कब्ज दूर हेगा, साथ ही पेट में गैस बनने की समस्या से भी निजात मिलेगी।
5 कब्ज के लिए आप सोते समय अरंडी के तेल को हल्के गर्म दूध में मिलाकर पी सकते हैं। इससे पेट साफ होता है, और कब्ज की समस्या नहीं होती।
6 र्इसबगोल की भूसी कब्ज के लिए रामबाण इलाज है। आप इसका प्रयोग दूध या पानी के साथ, रात को सोते वक्त कर सकते हैं। इससे कब्ज की समस्या बिल्कुल समाप्त हो जाएगी।
7 फलों में अमरूद और पपीता, कब्ज के लि बेहद फायदेमंद होते हैं। इनका सेवन किसी भी समय किया जा सकता है। इन्हें खाने से पेट की समस्याएं तो समाप्त होती ही हैं, त्वचा भी खूबसूरत बनती है।
8 किशमिश को कुछ देर तक पानी में गलाने के बाद, इसका सेवन करने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। इसके अलावा अंजीर को भी रातभर पानी में गलाने के बाद उसका सेवन करने से कब्ज की समस्या खत्म होती है।
9 पालक भी कब्ज के मरीजों के लिए एक अच्छा विकल्प है। प्रतिदिन पालक के रस को दिनचर्या में शामिल कर, आप कब्ज से आजदी पा सकते हैं, साथ ही इसकी सब्जी भी सेहत के लिए अच्छी होती है। लेकिन अगर आप पथरी के मरीज हैं, तो सका इस्तेमाल न करें।
10 कब्ज से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम और योगा करना बेहद फायदेमंद होता है। इसके अलावा हमेशा गरिष्ठ भोजन करने से बचना चाहिए।
Sunday, July 12, 2015
An Appeal to oppose CBCS at University of Delhi.
Why Choice Based Credit System is being forced at University of Delhi?
The members of the highest Academic Body of an University, which is about to celebrate its 100 years in 2022, i.e. the Academic Council of the University of Delhi, the model institution for entire Nation and nearly entire developing countries, is about to decide its fate by adopting or rejecting CBCS.
In my humble opinion it is our duty and minimum return we can give to this great Institution by saving it from disintegration by unilaterally rejecting CBCB with overwhelming majority in the Academic Council.
The intentions behind the introduction and the implication of these systems like Semester and CBC, which were forcefully implemented in the erstwhile Congress led UPA Government by the then Minister for HRD Kapil Sibbal, throgh UGC, vide letter number D.O.No. F.1-2/2008, (XI Plan) dated March 2009, with the directive as Subject : Action Plan for Academic and Administrative Reforms, can be clearly understood. Anyhow, that the same is being forced upon us and implemented without debate in the Government of Narendra Modi, which had promised 'Congress Muqt Bharat', cannot really be understood.
Ideally such a change should be after an discussion and debate in academic circles. The previous and present Vice-Chancellors of University of Delhi tried to generate a debate on Semester System, and even when all the Staff Associations and the statutory Staff Councils of almost 72 Colleges and in the much hyped meeting of all Teacher-in-Charges of all the Colleges at the University Stadium, the Teachers decided otherwise, the University went ahead with implementing the System. So, we are ready for forcing the CBCS upon us by conducting the farce of the meetings of Academic Council and it is only that history should not accuse us of doing disservice to the University, the education system and the Nation that we emphatically and categorically register our protest and send a copy of our disapproval and dissent to the Parliamentary Committee on Human Resource Development, to be considered by the highest body of the land.
On why we should reject this shall be explained point-wise here -
1. Any system which replaces a present working system has to be made with argument in its favour. Neither previous Congress led UPA or the present Government which has come with slogan of 'Congress Muqt Bharat' has cared to explain the logic of Semester System or CBCS and has tried to bulldoze these motivated systems ultimately meant to benefit Foreign and Private Universities and Institutions in India at the cost of well established Government Institutions like University of Delhi or JNU.
2. We can gather that the idea is to make education converted to purely "skill", by declaring, "The Choice Based Credit System (CBCS) enables a student to obtain a degree by accumulating required number of credits prescribed for that degree. The number of credits earned by the student reflects the knowledge or skill acquired him / her. Each course is assigned with a fixed number of credits based on the contents to be learned. The student also has choice in selecting courses out of those offered by various departments. The grade points earned for each course reflects the student’s proficiency in that course."
However, can the Nation switch over to any other system than 10+2+3 as adopted in the nation-wide consensus obtained in January, 1985, by which the government of Prime Minister Rajiv Gandhi who introduced a new National Policy on Education in May, 1986. The new policy called for "special emphasis on the removal of disparities and to equalise educational opportunity," especially for Indian women, Scheduled Tribes (ST) and the Scheduled Caste (SC) communities. To achieve these, the policy called for expanding scholarships, adult education, recruiting more teachers from the SCs, incentives for poor families to send their children to school regularly, development of new institutions and providing housing and services. The policy expanded the open university system with the Indira Gandhi National Open University, which had been created in 1985. However, in a bid to placate the International forces which is trying to make money out of everything, including education, the 1986 National Policy on Education was modified in 1992 by the P.V. Narasimha Rao government. In 2005, Prime Minister Manmohan Singh adopted a new policy based on the "Common Minimum Programme" of his United Progressive Alliance (UPA) government, Programme of Action (PoA), 1992 under the National Policy on Education (NPE). But with Kapil Sibal becoming the Union Minister for Human Resource Development in the UPA II, deliberate steps were taken in favour "commercialization" of education, without caring for the Constitutional Provisions, the norms of national consensus through National Education Policy (Education anyway is a State subject), or the discussion in Parliament, by forcing the Semester System, FYUP and CBCS in the premier Universities like University of Delhi and JNU. (It is another matter that Kapil Sibbal had personal issues pertaining to his son and Delhi University took special interest in the verbal diktat of implementing FYUP, as the VC Prof Dinesh Singh owed his appointment to him.)
3. Doesn't the argument given by Hon'ble Union Minister of Human Resource against 'illegal' FYUP hold good for CBCS also? Smt Smriti Irani said the Ministry intervened in Delhi University's decision to introduce a four-year undergraduate programme (FYUP) as the 40-odd courses were not sanctioned by the President. "The programme would have produced 77,000 students (each year) with degrees without any worth. Had they been on the streets, were we ready to meet that situation?... If I have protected their future, why are they hurt," she asked, taking a dig at some opposition leaders (read Mr Kapl Sibbal). The situation has not changed for CBCS today.
4. What we understand is that so many private and foreign Universities have mushroomed in India, that besides being great impediment in actually maintaining or raising the standard of Education in India, they are not getting enough number of students required for their business to flourish, because inspite of all efforts of the subsequent Governments students prefer to go in the institutions like University of Delhi. The only way to help them in their business of Education is by destroying or dismembering universities like Delhi and forcing the students to join these teaching 'shops'.
5. CBCS also targets the Government Institutions interference and ultimately be placed under control of Private moneymaking Institutions.
6. Commercialization of Higher Education and the intention to change it into a mere business opportunity.
7. Though the initial thinking was that the Reservation of Teaching Posts can be done away with implementation of such systems, but ultimately it shall do away with Permanent Teaching Posts and henceforth Teachers will be hired on contractual basis on mere subsistence level for giving opportunity of making more money with higher fees to private moneymaking institutions. Therefore, job opportunities in all Government Institutions shall be adversely affected for all sections, both reserved or General.
8. Explicit conspiracy of benefits to Indian and Foreign Commercial Profiteers in Higher Education.
9. Implementation of CBCS will damage the concept of "correspondence education" and play with the careers of more than 4 Lakh students enrolled with University of Delhi through the "School of Open Learning". already facing tough situation with the implementation of Semester System.
Let all the members of the Academic Council of the University of Delhi in the meeting, pledge to oppose the unjust and illegal CBCS, and dispatch the copies of our objection to His Excellency the President of India also the Visitor of the University of Delhi, Hon'ble Minister for Human Resource Development, Government of India and the Parliamentary Committee on Human Resource Development.
We shall fight and we shall win.
The members of the highest Academic Body of an University, which is about to celebrate its 100 years in 2022, i.e. the Academic Council of the University of Delhi, the model institution for entire Nation and nearly entire developing countries, is about to decide its fate by adopting or rejecting CBCS.
In my humble opinion it is our duty and minimum return we can give to this great Institution by saving it from disintegration by unilaterally rejecting CBCB with overwhelming majority in the Academic Council.
The intentions behind the introduction and the implication of these systems like Semester and CBC, which were forcefully implemented in the erstwhile Congress led UPA Government by the then Minister for HRD Kapil Sibbal, throgh UGC, vide letter number D.O.No. F.1-2/2008, (XI Plan) dated March 2009, with the directive as Subject : Action Plan for Academic and Administrative Reforms, can be clearly understood. Anyhow, that the same is being forced upon us and implemented without debate in the Government of Narendra Modi, which had promised 'Congress Muqt Bharat', cannot really be understood.
Ideally such a change should be after an discussion and debate in academic circles. The previous and present Vice-Chancellors of University of Delhi tried to generate a debate on Semester System, and even when all the Staff Associations and the statutory Staff Councils of almost 72 Colleges and in the much hyped meeting of all Teacher-in-Charges of all the Colleges at the University Stadium, the Teachers decided otherwise, the University went ahead with implementing the System. So, we are ready for forcing the CBCS upon us by conducting the farce of the meetings of Academic Council and it is only that history should not accuse us of doing disservice to the University, the education system and the Nation that we emphatically and categorically register our protest and send a copy of our disapproval and dissent to the Parliamentary Committee on Human Resource Development, to be considered by the highest body of the land.
On why we should reject this shall be explained point-wise here -
1. Any system which replaces a present working system has to be made with argument in its favour. Neither previous Congress led UPA or the present Government which has come with slogan of 'Congress Muqt Bharat' has cared to explain the logic of Semester System or CBCS and has tried to bulldoze these motivated systems ultimately meant to benefit Foreign and Private Universities and Institutions in India at the cost of well established Government Institutions like University of Delhi or JNU.
2. We can gather that the idea is to make education converted to purely "skill", by declaring, "The Choice Based Credit System (CBCS) enables a student to obtain a degree by accumulating required number of credits prescribed for that degree. The number of credits earned by the student reflects the knowledge or skill acquired him / her. Each course is assigned with a fixed number of credits based on the contents to be learned. The student also has choice in selecting courses out of those offered by various departments. The grade points earned for each course reflects the student’s proficiency in that course."
However, can the Nation switch over to any other system than 10+2+3 as adopted in the nation-wide consensus obtained in January, 1985, by which the government of Prime Minister Rajiv Gandhi who introduced a new National Policy on Education in May, 1986. The new policy called for "special emphasis on the removal of disparities and to equalise educational opportunity," especially for Indian women, Scheduled Tribes (ST) and the Scheduled Caste (SC) communities. To achieve these, the policy called for expanding scholarships, adult education, recruiting more teachers from the SCs, incentives for poor families to send their children to school regularly, development of new institutions and providing housing and services. The policy expanded the open university system with the Indira Gandhi National Open University, which had been created in 1985. However, in a bid to placate the International forces which is trying to make money out of everything, including education, the 1986 National Policy on Education was modified in 1992 by the P.V. Narasimha Rao government. In 2005, Prime Minister Manmohan Singh adopted a new policy based on the "Common Minimum Programme" of his United Progressive Alliance (UPA) government, Programme of Action (PoA), 1992 under the National Policy on Education (NPE). But with Kapil Sibal becoming the Union Minister for Human Resource Development in the UPA II, deliberate steps were taken in favour "commercialization" of education, without caring for the Constitutional Provisions, the norms of national consensus through National Education Policy (Education anyway is a State subject), or the discussion in Parliament, by forcing the Semester System, FYUP and CBCS in the premier Universities like University of Delhi and JNU. (It is another matter that Kapil Sibbal had personal issues pertaining to his son and Delhi University took special interest in the verbal diktat of implementing FYUP, as the VC Prof Dinesh Singh owed his appointment to him.)
3. Doesn't the argument given by Hon'ble Union Minister of Human Resource against 'illegal' FYUP hold good for CBCS also? Smt Smriti Irani said the Ministry intervened in Delhi University's decision to introduce a four-year undergraduate programme (FYUP) as the 40-odd courses were not sanctioned by the President. "The programme would have produced 77,000 students (each year) with degrees without any worth. Had they been on the streets, were we ready to meet that situation?... If I have protected their future, why are they hurt," she asked, taking a dig at some opposition leaders (read Mr Kapl Sibbal). The situation has not changed for CBCS today.
4. What we understand is that so many private and foreign Universities have mushroomed in India, that besides being great impediment in actually maintaining or raising the standard of Education in India, they are not getting enough number of students required for their business to flourish, because inspite of all efforts of the subsequent Governments students prefer to go in the institutions like University of Delhi. The only way to help them in their business of Education is by destroying or dismembering universities like Delhi and forcing the students to join these teaching 'shops'.
5. CBCS also targets the Government Institutions interference and ultimately be placed under control of Private moneymaking Institutions.
6. Commercialization of Higher Education and the intention to change it into a mere business opportunity.
7. Though the initial thinking was that the Reservation of Teaching Posts can be done away with implementation of such systems, but ultimately it shall do away with Permanent Teaching Posts and henceforth Teachers will be hired on contractual basis on mere subsistence level for giving opportunity of making more money with higher fees to private moneymaking institutions. Therefore, job opportunities in all Government Institutions shall be adversely affected for all sections, both reserved or General.
8. Explicit conspiracy of benefits to Indian and Foreign Commercial Profiteers in Higher Education.
9. Implementation of CBCS will damage the concept of "correspondence education" and play with the careers of more than 4 Lakh students enrolled with University of Delhi through the "School of Open Learning". already facing tough situation with the implementation of Semester System.
Let all the members of the Academic Council of the University of Delhi in the meeting, pledge to oppose the unjust and illegal CBCS, and dispatch the copies of our objection to His Excellency the President of India also the Visitor of the University of Delhi, Hon'ble Minister for Human Resource Development, Government of India and the Parliamentary Committee on Human Resource Development.
We shall fight and we shall win.
Sunday, July 5, 2015
Vyapam : कब तक चलेगी इन मौतें का सिलसिला: कब तक हम देखते रहेंगे भ्रष्टाचार की नंगी नाच?
अब इन मौतों का फैसला STF से नहीं हो पायेगा, अदालतें तो कब की फेल हो चुकी हैं, कानून के आँख ही नहीं हाथ भी बंधे हुए हैं, और भगवान पर हम यह अन्याय छोड़ नहीं सकते हैं।
करना तो कुछ हमें ही पड़ेगा, देश की जनता को ही करना पड़ेगा वरना कई मेधावी छात्रों और आवेदकों के भविष्य की जान लेने वाली व्यापम घोटाला और भी जान लेता रहेगा।
मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले को कवर करने दिल्ली से गए पत्रकार अक्षय सिंह इस घोटाले में संदिग्ध परिस्थितियों में मारे गए लोगों के परिजनों का साक्षात्कार कर रहे थे। उसी दौरान उन्होंने बेचैनी की शिकायत की, और मध्य प्रदेश की सीमा से लगे गुजरात के दाहोद में अस्पताल ले जाते वक्त उनकी मौत हो गई। 2013 में प्रकाश में आने के बाद व्यापमं घोटाले से जुड़े राज्यपाल राम नरेश यादव के पुत्र शैलेश यादव सहित अब तक 38 लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है। इधर आज यानि 5 जुलाई को व्यापम घोटाले की जांच से जुड़े मेडिकल कॉलेज के डीन डा अरुण शर्मा का शव होटल में मिला है।
व्यापम घोटाला मध्य प्रदेश में नेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यापारियों से जुड़े एक बड़े पैमाने पर प्रवेश और भर्ती घोटाला है जिसकी जांच में कुछ निकले की नहीं, उससे जुड़े सवाल पूछने वालों की भी मौतें होती रही हैं।
आज मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दावा किया की उन्होंने ने व्यापाम की जाँच करवाने का आदेश दिया। पर उन्हें कौन समझाएं की व्यापम घोटाले से जुड़े सभी मौतों के वे ही सीधे तौर से जिम्मेदार हैं। या फिर वे ही बताएं की इन मौतों के जिम्मेदार कौन है ?
व्यापम घोटाला मध्य प्रदेश में नेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यापारियों से जुड़े एक बड़े पैमाने पर प्रवेश और भर्ती घोटाला है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने 300 से अधिक अपात्र और अयोग्य उम्मीदवारों में कामयाब रहे और उनके मेरिट लिस्ट में आने कि रिपोर्ट के बाद कुछ छात्रों के माता-पिता द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) निम्न मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (MPPEB) और भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) को नोटिस भेजा। प्री-मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) में अनियमितताओं और कुटिल सौदों की शिकायतें कई अधिकारियों और नेताओं से जुड़े 2009 के बाद से सरफेसिंग रहे थे, लेकिन वर्ष 2013 में, एक प्रमुख घोटाले का पता लगाया गया था। प्रतिरूपण रैकेट डॉ जगदीश सागर के सरगना को गिरफ्तार कर लिया गया था और बाद में कई अन्य प्रभावशाली लोगों में पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, MPPEB के परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी, MPPEB की प्रणाली विश्लेषकों नितिन महेंद्र और अजय सेन और राज्य पीएमटी की परीक्षा प्रभारी सी.के.मिश्रा सहित कई प्रभावशाली लोगों को गिरफ्तार किया गया।
इस घोटाले में रोज नए खुलासे हो रहे हैं। इसमें साठगांठ कर मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले में फर्जीवाड़ा कर भर्तियां की गई। इस घोटाले के अंतर्गत सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार कर रेवड़ियों की तरह नौकरियां बांटी गईं।
मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा इस घोटाले में गिरफ्तार हो चुके हैं और केंद्रीय मंत्री और भाजपा की कद्दावर नेता उमा भारती का नाम भी इस घोटाले में सामने आ रहा है। इस पूरे घोटाले में 100 से ज्यादा लोगों को आरोपी बनाया गया है। कांग्रेस तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह के इस घोटाले में शामिल होने के आरोप लगा रही है।
मध्यप्रदेश में जब लक्ष्मीकांत शर्मा शिक्षा मंत्री थे तो उनके व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम आ गया। शर्मा ने ओपी शुक्ला को अपना ओएसडी तैनात किया जबकि उनके खिलाफ लोकायुक्त में भ्रष्टाचार की शिकायत दर्ज थी। शर्मा के कहने पर शिक्षा विभाग में तैनात पंकज त्रिवेदी को व्यापम का कंट्रोलर बना दिया गया।
त्रिवेदी ने अपने करीबी नितिन महिंद्रा को व्यापम के ऑनलाइन विभाग का हेड यानी सिस्टम एनालिस्ट बनाया। मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों के एडमिशन का सीधा जिम्मा उच्च शिक्षा मंत्रालय के पास था। सरकारी नौकरियों में भर्ती की परीक्षाएं भी इसी विभाग के जरिए करवाई जाती थीं। यह भी आरोप हैं लक्ष्मीकांत शर्मा ने सत्ताबल का प्रयोग करते हुए दूसरी भर्तियों में भी दखल दिया।
इस घोटाले की जांच के दौरान छापेमारी में इंदौर के जगदीश सागर का नाम आया। 7 जुलाई, 2013 को इंदौर में पीएमटी की प्रवेश परीक्षा में कुछ छात्र फर्जी नाम पर परीक्षा देते पकड़े गए। छात्रों से पूछताछ के दौरान डॉ. जगदीश सागर का नाम सामने आया। सागर को पीएमटी घोटाले का सरगना बताया गया।
ग्वालियर का रहने वाला जगदीश सागर पैसे लेकर फर्जी तरीके से मेडिकल कॉलेजों में छात्रों की भर्ती करवाता था। मेडिकल प्रवेश परीक्षा में धांधली कर जगदीश सागर ने करोड़ों की संपत्ति खड़ी कर ली थी। जगदीश सागर के यहां छापेमारी के दौरान गद्दों के भीतर 13 लाख की नकदी, कई प्रॉपर्टी और करीब 4 किलो सोने के गहने मिले थे।
जगदीश सागर से एसटीएफ की पूछताछ में खुलासा हुआ कि यह इतना बड़ा नेटवर्क है जिसमें मंत्री से लेकर अधिकारी और दलालों का पूरा गिरोह काम कर रहा है। जांच और पूछताछ में यह सामने आया कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम का ऑफिस इस काले धंधे का अहम अड्डा था।
जगदीश सागर से खुलासे में पता चला कि परिवहन विभाग में कंडक्टर पद के लिए 5 से 7 लाख, फूड इंस्पेक्टर के लिए 25 से 30 लाख और सब इंस्पेक्टर की भर्ती के लिए 15 से 22 लाख रुपए लेकर फर्जी तरीके से नौकरियां दी जा रही थीं। सागर भी मोटी रकम लेकर फर्जी तरीके से बड़े मेडिकल कॉलेजों में छात्रों को एडमिशन दिलवा रहा था। जगदीश सागर की गवाही इस पूरे घोटाले में अहम साबित हुई।
इस पूरे मामले में फर्जी तरीके से एडमिशन लेने वाले छात्रों के साथ ही मंत्री से लेकर अधिकारियों तक, प्रिंसिपल, दलाल आदि की एक के बाद गिरफ्तारियां हो रही हैं।
इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री का पूर्व एसओडी भी जांच के घेरे में है। पीएमटी घोटाले में अरविन्दो मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन डॉ. विनोद भण्डारी और व्यापम के परीक्षा नियंत्रक डॉ. पंकज त्रिवेदी की गिरफ्तारियां हुईं। पूर्व मंत्री ओपी शुक्ला को घोटाले के पैसों के साथ रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया था। इस घोटाले में कई बड़े कांग्रेसी नेताओं के शामिल होने की भी खबरें हैं।
पत्रकार अक्षय सिंह की दुखद मृत्यु पर मेरी गहरी संवेदना और दुखः।
डीन डा अरुण शर्मा का शव दिल्ली के एक होटल में मिला है। वे व्यापम घोटाले से जुड़ी जांच में शामिल थे। वे उस जांच टीम के प्रमुख थे जो मेडिकल प्रवेश परीक्षा में धांधली की जांच कर रही है। उनकी मृत्यु पर शोक व्यक्त कर रहा हूँ। साथ ही बताना चाहूँगा की व्यापम से जुडी और कितनी जानें गईं हैं।
अब तक 40 -
व्यापम की मौतें :
1. शैलेश यादव - राज्यपाल राम नरेश यादव के पुत्र थे और व्यापम घोटाले में आरोपी हुए। मार्च 2015 में लखनऊ में राज्यपाल आवास पर मृत पाए गए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 50 साल की उम्र में परिवार के सदस्यों को मधुमेह था वह दावा किया था कि और मस्तिष्क रक्तस्त्राव की मृत्यु हो गई। समय नहीं बताया गया। हालांकि, एक टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के कारण उन्होंने विषाक्तता के निधन का उल्लेख है। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण पता नहीं चल सका है।
2. विजय सिंह - एक और आरोपी सिंह अप्रैल 2015 में छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में एक लॉज में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाया गया।
3. नम्रता डामोर - एमजीएम मेडिकल कॉलेज, इंदौर की छात्रा थी और 7 जनवरी, 2012 को वह कॉलेज के छात्रावास से रहस्यमय तरीके से लापता होने सूचना मिली थी और एक सप्ताह के बाद पर उज्जैन में कयता गांव में रेलवे पटरियों के पास उसे मृत पाया गया था। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक रिपोर्ट के अनुसार, अनुचित साधनों का उपयोग कर पी एम टी -2010 में दाखिला के संदिग्धों की सूची में उनका नाम था।
4. डॉ डीके साकल्ले - जबलपुर के नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज के डीन थे और MPPEB घोटाले में उनकी कथित भूमिका के लिए बर्खास्त कर दिए गए है छात्रों के दबाव से बचने के लिए एक 30 दिन की चिकित्सा अवकाश के दौरान खुद को आग लगा लेने से जलने से जुलाई 2014 में मृत्यु हो गई। (आज, 5 जुलाई 2015 को उनके बाद बने मेडिकल कॉलेज के डीन डा अरुण शर्मा का शव दिल्ली में एक होटल में मिला।
5. रामेंद्र सिंह भदौरिया - जनवरी 2015 को पंजीकृत एक प्राथमिकी के अनुसार इस 30 वर्षीय व्यक्ति की लाश ग्वालियर में अपने घर पर लटका पाया गया।
6. नरेंद्र सिंह तोमर - हाई प्रोफाइल MPPEB घोटाले में आरोपी की जून 2015 में इंदौर जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। 29 वर्षीय पशुचिकित्सा रात में सीने में दर्द की शिकायत की और महाराजा यशवंत राव अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत लाया घोषित कर दिया गया।
7. डॉ राजेंद्र आर्य - ग्वालियर में बिरला अस्पताल में तोमर की मौत के 24 घंटे के भीतर इस 40 साल वर्षीय डाक्टर की भी मृत्यु हो गई। व्यापम घोटाले में आरोपी वे एक वर्ष के लिए जमानत पर थे, और कोटा गए थे जहाँ से लौटते हुए उनकी हालत गंभीर हो गयी।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार व्यापम घोटाले की जाँच कर रहे हैं एसआईटी की रिपोर्ट में अन्य आरोपियों के अलावे निम्नांकित को मृत घोषित किया गया है -
8. अंशुल सनचन
9. अनुज पांडे
10 विक्रम सिंह
11. अरविंद शाक्य
12. कुलदीप मरावी
13. अनंतराम टैगोर
14. आशुतोष तिवारी
15. ज्ञान सिंह (भिंड)
16. प्रमोद शर्मा (भिंड)
17. विकास पांडेय (इलाहाबाद)
18. विकास ठाकुर (बड़वानी)
19. श्यामवीर सिंह यादव
20. आदित्य चौधरी
21. दीपक जैन (शिवपुरी)
22. ज्ञान सिंह (ग्वालियर)
23. बृजेश राजपूत (बड़वानी)
24. नरेंद्र राजपूत (झांसी)
25. आनंद सिंह यादव (फतेहपुर)
26. अनिरुद्ध उजकेय (मंडला)
27. ललित कुमार पशुपतिनाथ जायसवाल
28. राघवेन्द्र सिंह (सिंगरौली)
29. आनंद सिंह (बड़वानी)
30. मनीष कुमार समादिया (झांसी)
31. दिनेश जाटव
32. ज्ञान सिंह (सागर)
उनकी मौत के बारे में जानकारी ज्यादा नहीं है, सिर्फ यह उनमें से ज्यादातर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के चंबल क्षेत्र में हुआ है।
करना तो कुछ हमें ही पड़ेगा, देश की जनता को ही करना पड़ेगा वरना कई मेधावी छात्रों और आवेदकों के भविष्य की जान लेने वाली व्यापम घोटाला और भी जान लेता रहेगा।
मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले को कवर करने दिल्ली से गए पत्रकार अक्षय सिंह इस घोटाले में संदिग्ध परिस्थितियों में मारे गए लोगों के परिजनों का साक्षात्कार कर रहे थे। उसी दौरान उन्होंने बेचैनी की शिकायत की, और मध्य प्रदेश की सीमा से लगे गुजरात के दाहोद में अस्पताल ले जाते वक्त उनकी मौत हो गई। 2013 में प्रकाश में आने के बाद व्यापमं घोटाले से जुड़े राज्यपाल राम नरेश यादव के पुत्र शैलेश यादव सहित अब तक 38 लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है। इधर आज यानि 5 जुलाई को व्यापम घोटाले की जांच से जुड़े मेडिकल कॉलेज के डीन डा अरुण शर्मा का शव होटल में मिला है।
व्यापम घोटाला मध्य प्रदेश में नेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यापारियों से जुड़े एक बड़े पैमाने पर प्रवेश और भर्ती घोटाला है जिसकी जांच में कुछ निकले की नहीं, उससे जुड़े सवाल पूछने वालों की भी मौतें होती रही हैं।
आज मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दावा किया की उन्होंने ने व्यापाम की जाँच करवाने का आदेश दिया। पर उन्हें कौन समझाएं की व्यापम घोटाले से जुड़े सभी मौतों के वे ही सीधे तौर से जिम्मेदार हैं। या फिर वे ही बताएं की इन मौतों के जिम्मेदार कौन है ?
व्यापम घोटाला मध्य प्रदेश में नेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यापारियों से जुड़े एक बड़े पैमाने पर प्रवेश और भर्ती घोटाला है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने 300 से अधिक अपात्र और अयोग्य उम्मीदवारों में कामयाब रहे और उनके मेरिट लिस्ट में आने कि रिपोर्ट के बाद कुछ छात्रों के माता-पिता द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) निम्न मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (MPPEB) और भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) को नोटिस भेजा। प्री-मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) में अनियमितताओं और कुटिल सौदों की शिकायतें कई अधिकारियों और नेताओं से जुड़े 2009 के बाद से सरफेसिंग रहे थे, लेकिन वर्ष 2013 में, एक प्रमुख घोटाले का पता लगाया गया था। प्रतिरूपण रैकेट डॉ जगदीश सागर के सरगना को गिरफ्तार कर लिया गया था और बाद में कई अन्य प्रभावशाली लोगों में पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, MPPEB के परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी, MPPEB की प्रणाली विश्लेषकों नितिन महेंद्र और अजय सेन और राज्य पीएमटी की परीक्षा प्रभारी सी.के.मिश्रा सहित कई प्रभावशाली लोगों को गिरफ्तार किया गया।
इस घोटाले में रोज नए खुलासे हो रहे हैं। इसमें साठगांठ कर मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले में फर्जीवाड़ा कर भर्तियां की गई। इस घोटाले के अंतर्गत सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार कर रेवड़ियों की तरह नौकरियां बांटी गईं।
मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा इस घोटाले में गिरफ्तार हो चुके हैं और केंद्रीय मंत्री और भाजपा की कद्दावर नेता उमा भारती का नाम भी इस घोटाले में सामने आ रहा है। इस पूरे घोटाले में 100 से ज्यादा लोगों को आरोपी बनाया गया है। कांग्रेस तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह के इस घोटाले में शामिल होने के आरोप लगा रही है।
मध्यप्रदेश में जब लक्ष्मीकांत शर्मा शिक्षा मंत्री थे तो उनके व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम आ गया। शर्मा ने ओपी शुक्ला को अपना ओएसडी तैनात किया जबकि उनके खिलाफ लोकायुक्त में भ्रष्टाचार की शिकायत दर्ज थी। शर्मा के कहने पर शिक्षा विभाग में तैनात पंकज त्रिवेदी को व्यापम का कंट्रोलर बना दिया गया।
त्रिवेदी ने अपने करीबी नितिन महिंद्रा को व्यापम के ऑनलाइन विभाग का हेड यानी सिस्टम एनालिस्ट बनाया। मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों के एडमिशन का सीधा जिम्मा उच्च शिक्षा मंत्रालय के पास था। सरकारी नौकरियों में भर्ती की परीक्षाएं भी इसी विभाग के जरिए करवाई जाती थीं। यह भी आरोप हैं लक्ष्मीकांत शर्मा ने सत्ताबल का प्रयोग करते हुए दूसरी भर्तियों में भी दखल दिया।
इस घोटाले की जांच के दौरान छापेमारी में इंदौर के जगदीश सागर का नाम आया। 7 जुलाई, 2013 को इंदौर में पीएमटी की प्रवेश परीक्षा में कुछ छात्र फर्जी नाम पर परीक्षा देते पकड़े गए। छात्रों से पूछताछ के दौरान डॉ. जगदीश सागर का नाम सामने आया। सागर को पीएमटी घोटाले का सरगना बताया गया।
ग्वालियर का रहने वाला जगदीश सागर पैसे लेकर फर्जी तरीके से मेडिकल कॉलेजों में छात्रों की भर्ती करवाता था। मेडिकल प्रवेश परीक्षा में धांधली कर जगदीश सागर ने करोड़ों की संपत्ति खड़ी कर ली थी। जगदीश सागर के यहां छापेमारी के दौरान गद्दों के भीतर 13 लाख की नकदी, कई प्रॉपर्टी और करीब 4 किलो सोने के गहने मिले थे।
जगदीश सागर से एसटीएफ की पूछताछ में खुलासा हुआ कि यह इतना बड़ा नेटवर्क है जिसमें मंत्री से लेकर अधिकारी और दलालों का पूरा गिरोह काम कर रहा है। जांच और पूछताछ में यह सामने आया कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम का ऑफिस इस काले धंधे का अहम अड्डा था।
जगदीश सागर से खुलासे में पता चला कि परिवहन विभाग में कंडक्टर पद के लिए 5 से 7 लाख, फूड इंस्पेक्टर के लिए 25 से 30 लाख और सब इंस्पेक्टर की भर्ती के लिए 15 से 22 लाख रुपए लेकर फर्जी तरीके से नौकरियां दी जा रही थीं। सागर भी मोटी रकम लेकर फर्जी तरीके से बड़े मेडिकल कॉलेजों में छात्रों को एडमिशन दिलवा रहा था। जगदीश सागर की गवाही इस पूरे घोटाले में अहम साबित हुई।
इस पूरे मामले में फर्जी तरीके से एडमिशन लेने वाले छात्रों के साथ ही मंत्री से लेकर अधिकारियों तक, प्रिंसिपल, दलाल आदि की एक के बाद गिरफ्तारियां हो रही हैं।
इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री का पूर्व एसओडी भी जांच के घेरे में है। पीएमटी घोटाले में अरविन्दो मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन डॉ. विनोद भण्डारी और व्यापम के परीक्षा नियंत्रक डॉ. पंकज त्रिवेदी की गिरफ्तारियां हुईं। पूर्व मंत्री ओपी शुक्ला को घोटाले के पैसों के साथ रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया था। इस घोटाले में कई बड़े कांग्रेसी नेताओं के शामिल होने की भी खबरें हैं।
पत्रकार अक्षय सिंह की दुखद मृत्यु पर मेरी गहरी संवेदना और दुखः।
डीन डा अरुण शर्मा का शव दिल्ली के एक होटल में मिला है। वे व्यापम घोटाले से जुड़ी जांच में शामिल थे। वे उस जांच टीम के प्रमुख थे जो मेडिकल प्रवेश परीक्षा में धांधली की जांच कर रही है। उनकी मृत्यु पर शोक व्यक्त कर रहा हूँ। साथ ही बताना चाहूँगा की व्यापम से जुडी और कितनी जानें गईं हैं।
अब तक 40 -
व्यापम की मौतें :
1. शैलेश यादव - राज्यपाल राम नरेश यादव के पुत्र थे और व्यापम घोटाले में आरोपी हुए। मार्च 2015 में लखनऊ में राज्यपाल आवास पर मृत पाए गए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 50 साल की उम्र में परिवार के सदस्यों को मधुमेह था वह दावा किया था कि और मस्तिष्क रक्तस्त्राव की मृत्यु हो गई। समय नहीं बताया गया। हालांकि, एक टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के कारण उन्होंने विषाक्तता के निधन का उल्लेख है। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण पता नहीं चल सका है।
2. विजय सिंह - एक और आरोपी सिंह अप्रैल 2015 में छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में एक लॉज में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाया गया।
3. नम्रता डामोर - एमजीएम मेडिकल कॉलेज, इंदौर की छात्रा थी और 7 जनवरी, 2012 को वह कॉलेज के छात्रावास से रहस्यमय तरीके से लापता होने सूचना मिली थी और एक सप्ताह के बाद पर उज्जैन में कयता गांव में रेलवे पटरियों के पास उसे मृत पाया गया था। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक रिपोर्ट के अनुसार, अनुचित साधनों का उपयोग कर पी एम टी -2010 में दाखिला के संदिग्धों की सूची में उनका नाम था।
4. डॉ डीके साकल्ले - जबलपुर के नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज के डीन थे और MPPEB घोटाले में उनकी कथित भूमिका के लिए बर्खास्त कर दिए गए है छात्रों के दबाव से बचने के लिए एक 30 दिन की चिकित्सा अवकाश के दौरान खुद को आग लगा लेने से जलने से जुलाई 2014 में मृत्यु हो गई। (आज, 5 जुलाई 2015 को उनके बाद बने मेडिकल कॉलेज के डीन डा अरुण शर्मा का शव दिल्ली में एक होटल में मिला।
5. रामेंद्र सिंह भदौरिया - जनवरी 2015 को पंजीकृत एक प्राथमिकी के अनुसार इस 30 वर्षीय व्यक्ति की लाश ग्वालियर में अपने घर पर लटका पाया गया।
6. नरेंद्र सिंह तोमर - हाई प्रोफाइल MPPEB घोटाले में आरोपी की जून 2015 में इंदौर जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। 29 वर्षीय पशुचिकित्सा रात में सीने में दर्द की शिकायत की और महाराजा यशवंत राव अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत लाया घोषित कर दिया गया।
7. डॉ राजेंद्र आर्य - ग्वालियर में बिरला अस्पताल में तोमर की मौत के 24 घंटे के भीतर इस 40 साल वर्षीय डाक्टर की भी मृत्यु हो गई। व्यापम घोटाले में आरोपी वे एक वर्ष के लिए जमानत पर थे, और कोटा गए थे जहाँ से लौटते हुए उनकी हालत गंभीर हो गयी।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार व्यापम घोटाले की जाँच कर रहे हैं एसआईटी की रिपोर्ट में अन्य आरोपियों के अलावे निम्नांकित को मृत घोषित किया गया है -
8. अंशुल सनचन
9. अनुज पांडे
10 विक्रम सिंह
11. अरविंद शाक्य
12. कुलदीप मरावी
13. अनंतराम टैगोर
14. आशुतोष तिवारी
15. ज्ञान सिंह (भिंड)
16. प्रमोद शर्मा (भिंड)
17. विकास पांडेय (इलाहाबाद)
18. विकास ठाकुर (बड़वानी)
19. श्यामवीर सिंह यादव
20. आदित्य चौधरी
21. दीपक जैन (शिवपुरी)
22. ज्ञान सिंह (ग्वालियर)
23. बृजेश राजपूत (बड़वानी)
24. नरेंद्र राजपूत (झांसी)
25. आनंद सिंह यादव (फतेहपुर)
26. अनिरुद्ध उजकेय (मंडला)
27. ललित कुमार पशुपतिनाथ जायसवाल
28. राघवेन्द्र सिंह (सिंगरौली)
29. आनंद सिंह (बड़वानी)
30. मनीष कुमार समादिया (झांसी)
31. दिनेश जाटव
32. ज्ञान सिंह (सागर)
उनकी मौत के बारे में जानकारी ज्यादा नहीं है, सिर्फ यह उनमें से ज्यादातर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के चंबल क्षेत्र में हुआ है।
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