"There is equality only among equals. To equate unequals is to perpetuate inequality." ~ Bindheshwari Prasad Mandal "All epoch-making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-~ADOLF HITLER.
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- Suraj Yadav
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- I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....
Wednesday, September 19, 2018
#DUSU चुनावों में #ईवीएम: भारत के चुनाव आयोग का इस सम्बन्धी 13.9.2018 का बयान क्यों भ्रामक है?
चुनाव आयोग ने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में प्रयोग #ईवीएम से किसी तरह से लेने देने से इंकार किया है, जबकि पिछले ही वर्ष चुनाव आयोग की सहमति से दिल्ली विश्वविद्यालय को ईवीएम फिर से मुहैया किया गया। इसके पहले भी चुनाव आयोग के आदेश पर ही पहली बार सरकारी कंपनी ईसीआईएल ने दिल्ली विश्वविद्यालय को सन 2006 में ईवीएम सप्लाई किया था। कोई भी व्यक्ति या संस्था बिना चुनाव आयोग के आदेश के ईवीएम प्राप्त नहीं कर सकता।
कुछ तथ्य:
शैक्षणिक वर्ष 2005-2006 में स्वामी श्रद्धानन्द कॉलेज छात्र संघ के चुनाव अधिकारी के रूप में, मैंने ईवीएम मशीनों के द्वारा कॉलेज छात्र संघ चुनाव आयोजित करने के लिए ईवीएम मशीनों को उधार देने के लिए भारत के निर्वाचन आयोग से संपर्क किया था। वह पहली बार #ईवीएम का छात्र संघ चुनाव में प्रयोग होता।
चूंकि तब चुनाव बहुत नजदीक था,(2 सितंबर, 2005), अतः भारत का निर्वाचन आयोग, अपने दिनांक 25 अगस्त, 2005 के पत्र संख्या 51/8/4/2005-पीएलएन -4 से प्रिंसिपल, स्वामी श्रद्धानन्द कॉलेज को सूचित किया गया कि "आयोग आपके द्वारा अनुरोध किए गए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को उधार देने की स्थिति में नहीं है।" (उस समय का, बतौर चुनाव अधिकारी, मेरे द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति की प्रति, संलग्न है।)
हालांकि, अगले वर्ष, 2006 में, दिल्ली विश्वविद्यालय ने घोषणा की कि आने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ (डीयूएसयू) चुनाव एक से अधिक तरीकों से ऐतिहासिक होंगे। हाई-टेक जाकर, वे पार्टियों को एसएमएस और ई-मेल जैसे दिन के संचार उपकरण का उपयोग पर ध्यान देने की इच्छा रखते हैं। परन्तु विशेष बात यह थी कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (#ईवीएम) का इस्तेमाल देश के विश्वविद्यालय चुनावों में पहली बार किया जाना था।(यह समाचार 'द हिंदू' समेत कई समाचार पत्रों में यह रिपोर्ट छपा था। 24 अगस्त, 2006 'द हिन्दू' अखबार का स्क्रीनशॉट संलग्न है। लिंक है: Electronic voting machines for DUSU elections now https://www.thehindu.com/…/electronic-vo…/article3095105.ece....। (परसों से द हिन्दू ने इस लिंक से समाचार हटा लिया है। )
चुनाव आयोग ने विश्वविद्यालय की जरूरतों के अनुरूप विशेष रूप से डिजाइन की गई मशीनों का आदेश दिया था।
दिल्ली विश्वविद्यालय के तत्कालीन प्रोक्टर प्रोफेसर गुरमीत सिंह, जो वर्तमान में पांडिचेरी विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्यरत हैं, ने उस समय कहा था कि, "विश्वविद्यालय को केवल 18 अगस्त को ही ईवीएम मशीनों के लिए औपचारिक अनुमति मिली।... इस ईवीएम में हमारे लिए अलग आवश्यक सुविधाएं देनी हैं। अलग अलग पोस्ट के लिए कई छात्र चुनाव लड़ेंगे। मशीन का इस्तेमाल कॉलेज यूनियन चुनावों के लिए भी किया जाएगा, इसलिए हम उन आम मशीनों का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे जिनका इस्तेमाल आम चुनावों के लिए किया जाता था।''
ऐसा कहा जाता था कि ईसीआईएल ने ईसीआई के निर्देशों पर ईवीएम को दिल्ली विश्वविद्यालय को आपूर्ति की थी। यह वास्तव में दिलचस्प है कि भारत के निर्वाचन आयोग ने दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनावों में इस्तेमाल ईवीएम से किसी भी तरह से कोई लेने देने से इंकार कर दिया है। (चुनाव आयोग की 13.9.18 दिनांकित पत्र की प्रतिलिपि संलग्न है।)
उस समय दिल्ली विश्वविद्यालय ने मशीनों की लागत प्रत्येक मशीन के लिए अनुमानित राशि लगभग 10,000 रु प्रति मशीन माना था। प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा, "हम यह राशि अग्रिम एडवांस दे सकते हैं और फिर व्यय का एक हिस्सा कॉलेजों को स्थानांतरित कर सकते हैं। '
तदनुसार इसलिए सभी कालेजों को प्रत्येक चुनाव में #ईवीएम के इस्तेमाल के लिए कुछ राशि विश्वविद्यालय को देना पड़ता हैं। उदहारण के लिए पिछले वर्ष स्वामी श्रद्धानन्द कॉलेज छात्र संघ चुनाव के चुनाव अधिकारी के रूप में मैंने किंस्वे कैंप स्थित विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव कण्ट्रोल रूम में ईवीएम वापस सौंपते समय 34,000/ - रुपये का डिमांड ड्राफ्ट सौंप कर, रसीद प्राप्त की।
पिछले साल, ईवीएम की समस्या फिर से हुई थी। चूंकि केवल कुछ ही ईवीएम दिए जाते हैं, जिससे मतदान के दौरान छात्रों की लंबी कतार हो जाती है, अतः हम, स्वामी श्रद्धानन्द कॉलेज की ओर से विश्वविद्यालय से अधिक ईवीएम मांगे थे। इस बीच, हमें पता चला कि विश्वविद्यालय भी ईवीएम की कमी के कारण समस्याओं का सामना कर रहा था और ईसीआई से अनुरोध किया था कि वह या तो ईवीएम किराए पर दे या विश्वविद्यालय को खरीदने की अनुमति दें, जैसा कि पहले किया गया था। प्रारंभ में, आयोग ने इनकार कर दिया, क्योंकि उन्होंने कुछ अन्य विश्वविद्यालयों से इनकार कर दिया था, लेकिन फिर आयोग की बैठक के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय को #ईवीएम प्राप्त करने के बाद अनुमति दी गई थी। इस मामले की जानकारी संबंधित कार्यालयों के साथ उपलब्ध है।
अब ईवीएम के कार्यप्रणाली पर: हर साल, ईवीएम कंपनी के तकनीकी विशेषज्ञ, आवश्यकता के अनुसार ईवीएम को प्रोग्राम करने के लिए विश्वविद्यालय आते हैं। यह प्रग्रामिंग प्रति पद पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के अनुरूप लिया जाता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अलग-अलग पदों के लिए अलग-अलग पोलिंग पैनल (मतदान बोर्ड की इकाइयां) होती हैं, जबकि वोट यानि सूचनाओं को संग्रहित करने के लिए एक ही नियंत्रण इकाई (कण्ट्रोल पैनल) होता है। इसमें परेशानियाँ हो सकती है। कुछ इसी तरह कि शिकायत 2018 में माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा निपटाए गए याचिका (संजय बनाम दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्य) में उल्लिखित शिकायतें हो सकती हैं। इस पेटिशन में बताया गया कि एक ही कॉलेज में मतदान करने वाले एक ही संख्या के छात्रों के मतगणना में अलग अलग वोट पाए हए। विभिन्न पदों के लिए मतदान किए गए विभिन्न मतों से संबंधित पेटीशन के प्रासंगिक हिस्सों की प्रतिलिपि संलग्न है।
इस साल भी यह जानना महत्वपूर्ण है कि कौन से कॉलेज ईवीएम दोषपूर्ण थे?
(डॉ सूरज यादव)
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