अपने राजनैतिक स्वाभाव के अनुरूप नितीश कुमार अपने सरकार के कामकाज की मीडिया में आज तारीफ के पुल बाँध कर उसकी वाहवाही की डफली बजा रहें हैं. खैर, ऐसा सभी नेता करते हैं. लेकिन अगर इस सरकार की पिछले सरकार से इसलिए तुलना न की जाये क्योंकि तब ' सुशासन' का दावा नहीं था, तो 'सुशासन का सच' दिख जायेगा. मीडिया की तारीफ और सरज़मीन की सच्चाई का एक ट्रेलर तो पटना के अदालतगंज घाट की छठ पूजा की बद-इन्तजामी में हीं दिख गया था जब 20 नवम्बर को कुछ मिनटों पहले मुख्यमंत्री अपने काफिले में हाथ हिलाते गुजरे थे और तब ऐसी दुखद और हृदयविदारक त्रासदी हुई, जिसकी 'जांच' के आदेश देकर उसे भूलने के लिए कह दिया गया. गौरतलब है की जब छठ पूजा (बिहार के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण) की तैयारियां चल रही थी और उसके लिए पास राशियों की बंदरबांट हो रही थी, तब 'अल्पसंख्यक वोट' के लिए बेकरार विकास पुरुष पाकिस्तान में जिन्ना के मकबरे पर पुष्प श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे. 'जाँच' की विषादपूर्ण पहलू यह है की सुशासन बाबू के पहले टर्म में कोसी की भीषण त्रासदी, ( मानव अपराधिक लापरवाही से हुई दुर्घटना को त्रासदी कहते हैं), हुई थी, जिसमें आठ जिले प्रभावित के लाखों लोग प्रभावित हुए थे, और उनकी चल-अचल संपत्ति और पशु-मवेशी का भीषण नुकसान हुआ था. इस त्रासदी की जिम्मेदारी तत्कालीन जल संसाधन मंत्री और उनके रिश्तेदार ठेकेदार और दोषी अभियंताओं का माना गया था. इन लोगों को बचाने के उद्देश्य से एक सद्सीय न्यायिक जांच आयोग, राजेश वालिया कमीशन, गठित किया गया जिसे तीन महीने में रिपोर्ट देना था. आज उस त्रासदी के चार वर्ष से ऊपर हो गए हैं, और RTI जानकारी के अनुसार अब तक इस आयोग पर ढाई करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन रिपोर्ट का अता-पता नहीं है.
अगर कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर इस सरकार के कामकाज का विश्लेषण किया जाये तो पता चलता है की मुख्यमंत्री का दावा खोखला है और आंकड़े किताबी हैं. कहा गया की राज्य में लोकायुक्त का गठन हुआ है. इसके प्रावधानों पर टीम अन्ना ने भी निराशा व्यक्त की थी. संक्षेप में कहा जाय तो यह बताना आवश्यक है की बिहार के लोकायुक्त के समक्ष आम आदमी किसी अधिकारी के भ्रष्टाचार की शिकायत कर हीं नहीं सकता, क्योंकि पहले दोषी अधिकारी के समक्ष वह शिकायत जायेगा, और तब वह अधिकारी अपनी सफाई प्रस्तुत करेगा एवं सरकारी वकील उस अधिकारी का बचाओ करेगा. अगर आपकी शिकायत साबित नहीं हुई ( शिकायत साबित कर हीं नहीं पाएंगे), तो शिकायतकर्ता को जुर्माना और दो साल की जेल बामुशक्कत दिए जाने का प्रावधान है. अधिकारीयों के संपत्ति का ब्यौरा आज कल सबसे हँसाने वाले चुटकुले हैं, और चंदा मामा की कहानियों को मात कर रही है. राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी का पटना के डाक बंगला चौराहे पर भारी संपत्ति और होटल के बारे में रिक्शा वाले भी जानते हैं, परन्तु सरकारी वेबसाइट पर उन्हें चढ़ने के लिए के कार भी नहीं है. ये जो कुछ भ्रष्ट अधिकारी के संपत्ति को जब्त करने की ढिंढोरा पीटा जा रहा है, यह उस समय बेईमानी लगती है जब आपको पता चलेगा की किस निर्लज्जता के साथ सरकार के मंत्री अधिकरियों से पैसों की मांग करते हैं, और बदले में उन्हें जनता और उनके विकास के लिए तय राशियों को लूटने की खुली छूट देते हैं. मधेपुरा जिला में यह आँखों देखी बता रहा हूँ की मंत्री किस तरह अधिकारीयों को बुला कर अपना 'कमीशन' उसूलते हैं. (मंत्रियों के नाम भी कभी सार्वजनिक करूंगा जब उनके कुकर्म का रिकार्डिंग भी मिल जायेगा). आलम यह है की केंद्र सरकार की मनरेगा सरीखे योजनाओं की बड़ी राशी गबन की जा रही है. इसी गबन को और बढ़ाने के लिए तथाकथित 'विशेष दर्जे' की मांग की जा रही है.
कैग ( भारत सरकार का महालेखाकार) के रिपोर्ट में कहा गया था की २००७-०८ तक बिहार सरकार ने ११,४१२ कड़ोड़ रूपये के विकास खर्च के लेख-जोखा में गड़बड़ी की है, और बाद में पटना उच्च न्यायलय ने भी इस पर संज्ञान लिया था और सी बी आई जांच की अनुशंसा की थी , जिसे manage कर लिया गया.
कैग की एक दुसरे रिपोर्ट में कहा गया है की बाढ़ सहायता में एक बड़ा घोटाला हुआ है और अगस्त - अक्तूबर २००७ में कुछ जिलों में ट्रक पर राशन भेजने के बजाय मोटर सायकल पर खाद्य सामग्री ढोए गए थे जिसमें बाढ़ राहत के लिए २७४.१५ quintal का गोल माल हुआ था. विधान सभा में पेश कैग के अन्य रिपोर्ट में दोपहर खाने, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना में भारी घोटाले के आरोप लगाये गए हैं जिन पर राज्य सरकार ने कोई कार्यवाई नहीं की है. कैग रिपोर्ट में राष्ट्रिय ग्रामीण स्वास्थ्य स्कीम, जननी सुरक्षा योजना अदि में भ्रष्ट अफसरशाही के कारण १४०० कड़ोड़ रूपये का घोटाला हुआ. शिक्षक ट्रेनिंग के लिए ८.७३ कड़ोड़ रूपये का कोई उपयोग ही नहीं हुआ.
बिहार पुलिस से अधिक भ्रष्ट शायद हीं किसी राज्य की पुलिस होगी. अगर किसी अपराध की रपट लिखाने थाना जायेंगे, तो उस समय तो आपकी प्रथम सूचना रपट तो हरगिज़ नहीं लिखी जाएगी. जिस पर केस बनता है, थानेदार पहले उससे पैसों की बात करेगा, और अगर बात नहीं बनी तो आपसे पैसे लेकर रिपोर्ट दर्ज की जाएगी. मुझे उस समय घोर आश्चर्य हुआ जब बिहार पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी से पता चला की अपने प्रमोशन के लिए फ़ाइल बढाने के लिए अपने ही मातहत एक कनीय अधिकारी को उन्होंने घूस दी, क्योंकि यही प्रचलन है.
सुशासन बाबू कह रहें है की RTI का प्रावधान किया गया. मैं यह बता देना आवश्यक समझता हूँ की बिहार शायद उन चंद राज्यों में है, जहाँ सबसे अधिक RTI के मामले लंबित है, जिनके जवाब नहीं दिए गए और उन पर अपील की जा रही है, जिसकी सुनवाई नहीं है. बिहार सरकार ने अपनी ओर से अलग प्रावधान किया है की एक बार में सिर्फ दो प्रश्न पूछे जा सकते हैं. दिलचस्प बात यह है की कई ऐसे मामले आये हैं जब RTI में पूछे गए प्रश्न का कोरे कागज़ भेज कर जवाब दिया गया है! यह बिहार सरकार के इस कानून के प्रति उदासीनता का हीं नतीजा है.
बिजली की बात में कई आंकड़े पेश किये गए. बताना चाहूँगा की मधेपुरा जैसे जगह में कई दिनों तो १२ में सिर्फ २ घंटे बिजली आती है. बिजली के दावे का खोखलापन का अंदाज़ा आप ऐसे लगा सकते हैं की अधिकांश जिला मुख्यालयों में सबसे अधिक डीजल की खपत वहां बैंक जैसे प्रतिष्ठानों और कार्यालयों के जेनरेटर चलाने में हीं होते हैं. बिजली की स्थिति का एक वाकया वैशाली जिला के पातेपुर थाना के अंतर्गत इमादपुर गाँव का है, जहाँ 2004 में गाँव का बिजली ट्रांसफर्मर जल गया था, और आज तक बदला नहीं गया क्योंकि गाँव वालों ने इस सुशासन में उसे बदलने के लिए बिजली विभाग के अधिकारीयों को घूस देने से मना कर दिया!
जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में ,
गाँव तक वो रोशनी आयेगी कितने साल में.
अस्पतालों की स्थिति यह है की केंद्र सरकार से प्राप्त जिला अस्पतालों में उपलब्ध दवाईयों के लिए फंड जो पहले जिलों में जिला अधिकारी और सिविल सर्जन के पास होते थे, उसे स्वास्थ्य मंत्री ने कार्यकारी आदेश देकर केन्द्रीयकृत कर दिया है, और अपने पुत्र को एकमात्र एजेंसी नियुक्त किया है, जहाँ से दोयम दर्जे की दवाईयाँ लेना अनिवार्य है!
सडकों की स्थिति दिन पर दिन ख़राब हो रही है और केंद्र सरकार से प्राप्त राशियों पर बनी सडकों का श्रेय भी लेना अब दूभर हो रहा है.
अपने 'अधिकार यात्रा ' के दौरान जगह जगह पर नितीश कुमार पर जूते-चप्पल क्यों चले उस पर थोड़ी जानकारी दे दूं- बिहार में शिक्षा मित्र की शुरुआत तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के शासन काल में हुई थी लेकिन शिक्षामित्र फेज़ २ की शुरुआत वर्तमान मुख्यमंत्री नीतिश कुमार जी के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ. जिसमे असीमित घोटाले हुए. कही कही तो उच्च अंक प्राप्त अभ्यर्थी की जगह पैसे लेकर ऐसे लोगो को शिक्षा मित्र बनाया गया है जो कही से भी उस पद के लायक नहीं थे. जिनका कोउन्सल्लिंग भी नहीं हुआ था, पैसे की माया ने इस मेघा घोटाले को पूरी तरह ढक दिया. अभी भी बिहार के प्रखंड से लेकर जिले तक और जिले से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक सेकडों की तादाद में शिकायत दर्ज है, जिसका निबटारा नीतिश जी के आदेश के बावजूद अभी तक नहीं हुआ है, क्यों की अभ्यर्थी और उनके रिश्तेदार साथ में पंचायत के मुखिया पंचायत सेवक प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी प्रखंड विकास पदाधिकारी आपस में मिलकर पैसे के बल पर गलत रिपोर्ट देते है या फिर रिपोर्ट भेजते ही नहीं जिससे बिहार का अब तक का सबसे बड़ा मेघा घोटाला आज भी फाइलों में ही बंद है, जिसका निष्पादन शायद संभव नहीं. इसके लिए जिस निति की ज़रुरत है वह निति नीतिश जी के पास नहीं है. शिक्षा मित्र की बहाली के लिए जो गाइड लाइन बनाये गए थे वह प्रकाशित होने के बाद हर बार, बार बार, लगातार इतनी बार की लिख नहीं सकते बदले गए, जिसके चलते हमेशा से शिक्षा मित्र फेज़ २ विवादस्पद रही है, कुछ और न सही कम से कम जिन लोगो के उपर शिकायत दर्ज की गयी है उनका तो निष्पादन हो जाये ताकि इस मेघा घोटाले के पाप से नीतिश जी को थोडी मुक्ति मिल जायेगी.
सबसे अधिक विकट स्थिति कृषि क्षेत्र और कृषि में सामुदायिक रिश्तों की है, जिसके बारे में सुशासन बाबू चुप हैं. इसपर विस्तार से अगले पोस्ट में चर्चा करूँगा. जिस राज्य के राजधानी में 'गंग रेप की कई घटनाएं हुई हैं, और खुद मुख्यमंत्री के समक्ष कानून और व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाई गयी है, तो उस पर चर्चा करना हीं बेकार है।
सबसे रोचक मुख्यमंत्री का जनता दरबार है. मुख्यमंत्री के समक्ष जनता दरबार में दिए गए शिकायत में एक भी मामला ऐसा नहीं है जिसका तसल्लिबक्स निपटारा हुआ हो. कहा जा सकता है की सुशासन बाबू के दावे दुरुस्त नहीं है. अब प्रश्न है की क्या सुशासन में कानून व्यवस्था में व्यापक सुधार हुआ है? हम तो वही जानेंगे जो समाचारों में आयेगा. और सुशासन में समाचार वही छपता है जो सुशासन बाबू चाहते हैं. पहले छोटे या जिला स्तर के विज्ञापन जिले में ही तय होते थे. सुशासन बाबू ने इस व्यवस्था में फेर बदल करते हुए इसे केंद्रीकृत कर दिया है. अब छोटे-बड़े सभी विज्ञापन मुख्यमंत्री के यहाँ तय होता है, और छोटे-बड़े समाचार भी वहीँ से मोनिटर होता है. अगर किसी अख़बार ने गुस्ताखी की तो उसका विज्ञापन गया! आर टी आई द्वारा प्राप्त सुशासन में नितीश सरकार द्वारा विभिन्न अख़बार और न्यूज़ चैनलों को वितरित विज्ञापन राशी की २०१०-२०११ की विस्तृत जानकारी उपलब्ध है. गौरतलब है की टाइम्स आफ इंडिया और इकोनोमिक टाइम्स जैसे अख़बार, जो बिहार में अधिक साख नहीं रखतें हैं, उन्हें सबसे अधिक करोड़ों में विज्ञापन दिया गया है. दरअसल इकोनोमिक टाइम्स जैसे अखबार नए नए सर्वे करा कर कुछ आंकड़ें पकाते हैं, जिससे यह साबित हो की बिहार ज़बरदस्त तरक्की कर रहा है, सुशासन से वाकई बिहार में आर्थिक परिवर्तन हो रहा है, और सुशासन बाबू नितीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं, प्रधानमंत्री होना चाहिए.
दरअसल, सबसे अधिक कमी है निष्कपटता की. मैं मरहूम अदम गोंडवी के इन लाईनों से अपनी बात समाप्त करता हूँ –
तुम्हा्री फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है ,
मगर ये आकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है.
उधर जम्हूडरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो,
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है.
लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ गरीबी में,
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है.
तुम्हाधरी मेज चाँदी की तुम्हाबरे ज़ाम सोने के ,
यहाँ जुम्मदन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है.
"There is equality only among equals. To equate unequals is to perpetuate inequality." ~ Bindheshwari Prasad Mandal "All epoch-making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-~ADOLF HITLER.
About Me
- Suraj Yadav
- New Delhi, NCR of Delhi, India
- I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....
Saturday, November 24, 2012
नितीश सरकार की रिपोर्ट कार्ड - मुख्यमंत्री का दावा खोखला और आंकड़े किताबी ...
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