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I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Tuesday, November 27, 2012

वी पी सिंह के पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि

आज भरत के आठवें प्रधान मंत्री, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मंडल मसीहा राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह की पुण्यतिथि है। राजा साहब से मैं 1987 से हीं जुड़ा था, जब उन्हें अपने मित्र दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष Narinder Tandon के साथ इन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक सभा में आमंत्रित किया था। 27 नवम्बर, 2008 को 77 वर्ष की अवस्था में वी. पी. सिंह का निधन दिल्ली के अपोलो हॉस्पीटल में हुआ था। मैं उनकी अंतिम यात्रा में 1,तीन मूर्ति मार्ग से हवाई अड्डे तक शामिल था।

विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म 25 जून, 1931 उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद ज़िले में हुआ था। वह राजा बहादुर राय गोपाल सिंह के पुत्र थे। उन्होंने इलाहाबाद और पूना विश्वविद्यालय में अध्ययन किया था। वे 1947-1948 में उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी की विद्यार्थी यूनियन के अध्यक्ष रहे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्टूडेंट यूनियन में उपाध्यक्ष भी थे। 9 जून, 1980 से 28 जून, 1982 तक वे उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे। 31 दिसम्बर, 1984 को वह भारत के वित्तमंत्री भी बने। इसी बीच स्वीडन ने 16 अप्रैल, 1987 को यह समाचार प्रसारित किया कि भारत के बोफोर्स कम्पनी की 410 तोपों का सौदा हुआ था, उसमें 60 करोड़ की राशि कमीशन के तौर पर दी गई थी, जिसे बाद में 'बोफोर्स कांड' के तौर पर जाना गया।

12 जनवरी, 1987 को उन्हें वित्त मंत्रालय से हटा कर रक्षा मंत्री बना दिया गया, जिस पद अपर वे 12 अप्रैल,1987 को इस्तीफा देने तक रहे। उसके बाद उन्हें राजीव गाँधी ने कांग्रेस से निष्काषित कर दिया। वी. पी. सिंह ने विद्याचरण शुक्ल, अरुण नेहरु, अरुण सिंह आरिफ मुहम्मद खान, रामधन तथा सतपाल मलिक और अन्य असंतुष्ट कांग्रेसियों के साथ मिलकर 2 अक्टूबर, 1987 को अपना एक पृथक मोर्चा गठित कर लिया। इस मोर्चे को भारतीय जनता पार्टी और वामदलों ने भी समर्थन देने की घोषणा कर दी। इस प्रकार सात दलों के मोर्चे का निर्माण 6 अगस्त, 1988 को हुआ और 11 अक्टूबर, 1988 को राष्ट्रीय मोर्चा का विधिवत गठन कर लिया गया। इधर लोक सभा चुनाव की घोषणा हो गयी।

1989 का लोकसभा चुनाव पूर्ण हुआ। कांग्रेस को भारी क्षति उठानी पड़ी। उसे मात्र 197 सीटें ही प्राप्त हुईं। विश्वनाथ प्रताप सिंह के राष्ट्रीय मोर्चे को 146 सीटें मिलीं। भाजपा के 86 सांसद थे और वामदलों के पास 52 सांसद के समर्थन से राष्ट्रीय मोर्चे को 248 सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो गया और वी. पी.सिंह प्रधानमंत्री बने। दिसंबर 1980 से ठन्डे बस्ते में पड़ी मंडल आयोग के रिपोर्ट को 9 अगस्त, 1990 को आंशिक रूप से लागू कर इस देश के 52% से भी अधिक पिछड़े वर्ग को केंद्र सरकार की नौकरियों में 27% आरक्षण देकर समाजिक न्याय दिलाने का प्रयास किया, जिससे तमाम उच्च जातियां उनकी 'दुश्मन' बन बैठे, की उनकी मृत्यु पर भी उन्हें मिलने वाले सम्मान से वंचित किया गया।


स्व विश्वनाथ प्रताप सिंह की स्मृति में उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।

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