लोकपाल बिल को अब यू पी ए द्वारा चर्चा का केंद्र बनाने का प्रयास जारी है। अब तक जो संकेत हैं, उस के अनुसार सोनिया-मनमोहन का लोकपाल दंतहीन, विषहीन, नखविहीन और भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देने वाला होगा। जैसे अगर आप शिकायत करेंगे, तो पहले उसकी प्रति सम्बंधित अधिकारी को जायेगा। जाहिर है शिकायत रसूखदार आईएस/ आईपीएस के विरुद्ध ही होगा, और सभी शिकायतकर्ता अरविन्द केजरीवाल की तरह मीडिया के ढाल के साथ नहीं होगा। अफसर को पहले ही संकेत रहेगा की निपटा लो। अब शिकायत निपटेगा या शिकायतकर्ता, यह तो आगे पता चलेगा।
सरकारी लोकपाल राजनीतिक दलो की जांच नही कर पाएगा,न धार्मिक संस्थाओ की,न सरकारी चंदे वाली NGO की।तो क्या वो नर्सरी के बच्चो की कापियां जांचेगा? सरकारी लोकपाल वैसा ही है जैसे बिल्ली अपने गले में डालने के लिए घंटी बनाए मगर उसमें घूंघरूं न डाले। सरकारी लोकपाल के कमजोर होने का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि उससे ज्यादा अधिकार तो मनमोहन सिंह के पास है। अतः सरकारी लोकपाल के रूप में सरकार ने देश को एक और मनमोहन सिंह दिया है।
और कहा जा रहा है की लोकायुक्त एक वर्ष के भीतर बन जाना चाहिए। मगर कैसा? अगर सुशासन बाबू का लोकायुक्त देखा जाय तो इस पद का ऐसा भौंडा मजाक कुछ और नहीं हो सकता है। एक-दो विशेषताएं अगर गिनाऊँ तो कहा जा सकता है की बिहार में लोकायुक्त के पास कोई शिकायत जाने पर उस शिकायत को गोपनीय रखा जायेगा। उस अफसर को पहले शिकायत जायेगा जिसके लिए सरकार का वकील पैरवी करेगा। अगर शिकायतकर्ता आरोप को साबित नहीं कर पायेगा तो शिकायतकर्ता को 6 महीने कैद-इ-बामुशक्कत की सजा होगी। नतीजा है की जबसे नितीश कुमार वर्जन का लोकायुक्त लागू हुआ है, एक भी शिकायत करने का किसी को हिम्मत नहीं हुआ है। टीम अन्ना ने जब इस लोकायुक्त को ख़ारिज किया तो विकास पुरुष बिफर पड़े थे। लेकिन कल अन्ना ने उनके दिल को छू लिया, क्योंकि नितीश के भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना ने मौन साध ली थी।
वैसे गुजरात जैसे राज्य में नरेन्द्र मोदी लोकायुक्त लाना ही नहीं चाहते हैं। पता नहीं क्यों?
पद शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है,
उसका क्या जो दंतहीन विषरहित शक्तिहीन तरल हैI
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