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I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Wednesday, June 25, 2014

देश में आपातकाल (Emergency) 26 जून 1975 से 22 मार्च,1977.


देश में आपातकाल (Emergency) 26 जून 1975 से 22 मार्च,1977.

आज के नौजवान साथियों को वह दौर समझने में थोड़ी मुश्किल ज़रूर हो सकती है। पूरे इमरजेंसी का निचोड़ जॉर्ज फर्नांडिस की यह तस्वीर है, जो उनका 1977 के आम चुनाव में उनका पोस्टर था। जेल से चुनाव लड़े और उत्तर भारत में जनता पार्टी के अन्य प्रत्याशियों की तरह चुनाव स्वीप कर लिए।

मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, और सोशलिस्ट पार्टी के नेता हमेशा की तरह इंदिरा गांधी के विरुद्ध राय बरेली से चुनाव लड़ते थे। इस चुनाव में इंदिरा अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किय। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इंदिरा गांधी पर इस्तीफे का दवाब था। परन्तु उन्होंने इसे फ़ासिस्ट ताक़तों का षड़यंत्र (जे पी,जॉर्ज आदि नेतओं को फासिस्ट कहती थी) मानते हुए इस्तीफा देने से इंकार कर दिया और एक बड़े जन आंदोलन की सम्भावना को देखते हुए देश के संविधान में सशस्त्र विद्रोह से निपटने के प्रावधान -इमरजेंसी को लागू कर दिया। इस तरह इंदिरा गांधी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, "जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील क़दम उठाए हैं, तभी से मेरे ख़िलाफ़ गहरी साजिश रची जा रही थी।" और तब शुरू हुआ इंदिरा -संजय गांधी के नेतृत्व में देश में तानाशाही का खौफनाक और शर्मनाक दौर।
आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा क़ानून (मीसा) के तहत हज़ारों की तायदाद में राजनीतिक विरोधियों की गिरफ़्तारी की गई, इनमें जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चौ चरण सिंह, जॉर्ज फ़र्नांडिस और अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे।

आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज़ होती देख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी। चुनाव में आपातकाल लागू करने का फ़ैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ. ख़ुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं।

1977 में 16 से 20 मार्च के बीच लोक सभा चुनाव हुए।1977 के चुनाव में 32 करोड़ मतदाताओं से 60% ने वोट किया। 23 मार्च को घोषित परिणाम में कह गया की 43.2% लोकप्रिय वोट और 271 सीटें हासिल करके जनता पार्टी ने एक व्यापक और अभूतपूर्व विजय हासिल की थी। अकाली दल और कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी के समर्थन के साथ, यह एक दो तिहाई, या 345 सीटों की पूर्ण बहुमत बन चुक था। कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी ने 28 सीटें जीती और जगजीवन राम एक राष्ट्रीय दलित नेता के रूप में जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों को दलित वोट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मिलने के लिये काफी बड़ा प्रभाव डाला था।जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।



संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घट कर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली। नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए फ़ैसलों की जाँच के लिए शाह आयोग गठित की गई। हालाँकि नई सरकार दो साल ही टिक पाई और अंदरूनी अंतर्विरोधों के कारण १९७९ में सरकार गिर गई. उप प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे। इसी मुद्दे पर चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई लेकिन चली सिर्फ़ पाँच महीने. उनके नाम कभी संसद नहीं जाने वाले प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड दर्ज हो गया।

1977 में बिहार से सांसद चुने जाने वालों में अन्य प्रमुख नेतओं में पूर्व मुख्यमंत्री स्व बी पी मंडल -मधेपुरा,कर्पूरी ठाकुर -समस्तीपुर, सत्येन्द्र नारायण सिंह - औरंगाबाद, जॉर्ज फर्नांडिस - मुजफ्फरपुर, लालू प्रसाद -छपरा, राम विलास पासवान - हाजीपुर। इत्यादि।

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