About Me

My photo
New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Saturday, September 20, 2014

हम दो हमारे दो :


इस सदी के अंत में दुनिया की जनसंख्या 9.6 से 12.3 अरब के बीच पहुंच जाएगी। सबसे ज्यादा आबादी अफ्रीका में बढ़ेगी। एशिया की जनसंख्या में 2050 के बाद गिरावट आने लगेगी।
जहां तक भारत की जनसंख्या का सवाल है, यह 2028 में यह चीन के बराबर हो जाएगी।

दुनिया की जनसंख्या में बढ़ोतरी मुख्यत: अफ्रीकी देशों के अलावा इंडोनेशिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और अमेरिका से होगी।
अमेरिका की जनसंख्या में दूसरे देशों से आकर बसने वाले इजाफा करेंगे। अमेरिका में अगले चार दशकों में 10 लाख लोग सालाना जाएंगे।
पूर्व अमरीकी उपराष्टपति अल गोरे का कहना है की जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि पृथ्वी के संसाधनों पर भारी दबाव है, और इसे स्थिर करने में सबसे महत्वपूर्ण कारक लड़कियों को शिक्षित करना ही बन सकती है।

मैं समझता हूँ की भारत की अनेक समस्याओं का इलाज़ इस जनसख्या विस्फोट पर लगाम लगाना ही है।1975 में आपातकाल (Emergency) लगाये जाने के समय उस समय के असंवैधानिक सत्ता के स्वामी, इंदिरा गाँधी के छोटे पुत्र संजय गाँधी ने जनसँख्या नियंत्रण के लिए नसबंदी सहित कई उपाय किये जो बाद में इस दौरान की गयी ज्यादतियों में तब्दील हो गयी थी। इसमें मुसलमानों पर भी जनसख्या नियत्रण के लिए दबाब दिया गयाथा। कहते हैं की 1977 में कांग्रेस की चौंकाने वाला हार की वजह इमेर्जेंसी में हुई ज्यादतियाँ को माना गया।
अब वर्षों बाद पहली बार है कि काँग्रेस पार्टी ने संजय गांधी के बारे में अपनी राय स्पष्ट की है। कांग्रेस ने अपने वजूद के 125 साल पूरे होने पर अपना इतिहास जारी किया है जिसमें इमरजेंसी का जिक्र किया गया है। 'द कांग्रेस एंड द मेकिंग ऑफ द नेशन' नाम की इस किताब में इमरजेंसी के दौरान जबरन नसबंदी और झुग्गियां हटाने के लिए संजय गांधी को जिम्मेदार ठहराया गया है।

जबकि इस नीति की कितनी आवश्यकता है यह आज समझा सकता है।

इधर इसी विषय पर समाजवादी नेता आज़म खान ने राजीव गांधी और संजय गांधी की मौत को अल्लाह द्वारा दी गई सजा करार दिया।
आजम ने कहा कि राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद के प्रवेश द्वारों को खोलने के आदेश दिए थे जबकि संजय गांधी ने आपातकाल के दौरान बल प्रयोग कर नसबंदी कार्यक्रम चलवाया और इसलिए दोनों को अल्लाह ने सजा दी।



इनसे परे मेरा तो आज भी इसी नारा पर विश्वास है कि बच्चे दो ही अच्छे।

Sunday, September 14, 2014

हिंदी दिवस पर शुभकामनाएँ : On 14th September.


हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है।
हिन्दी और इसकी बोलियाँ उत्तर एवं मध्य भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में ६० करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की अधिकतर और नेपाल की कुछ जनता हिन्दी बोलती है।

हिन्दी शब्द का सम्बन्ध संस्कृत शब्द सिन्धु से माना जाता है। 'सिन्धु' सिन्ध नदी को कहते थे ओर उसी आधार पर उसके आस-पास की भूमि को सिन्धु कहने लगे। यह सिन्धु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिन्दू’, हिन्दी और फिर ‘हिन्द’ हो गया। बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा हिन्द शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिन्द ईक) ‘हिन्दीक’ बना जिसका अर्थ है ‘हिन्द का’। यूनानी शब्द ‘इन्दिका’ या अंग्रेजी शब्द ‘इण्डिया’ आदि इस ‘हिन्दीक’ के ही विकसित रूप हैं। हिन्दी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफुद्दीन यज्+दी’ के ‘जफरनामा’(१४२४) में मिलता है।

भाषाविद हिन्दी एवं उर्दू को एक ही भाषा समझते हैं। हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर अधिकांशत: संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करती है। उर्दू, फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर उस पर फ़ारसी और अरबी भाषाओं का प्रभाव अधिक है।

हिन्दी हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार परिवार के अन्दर आती है। ये हिन्द ईरानी शाखा की हिन्द आर्य उपशाखा के अन्तर्गत वर्गीकृत है। हिन्द-आर्य भाषाएँ वो भाषाएँ हैं जो संस्कृत से उत्पन्न हुई हैं। उर्दू, कश्मीरी, बंगाली, उड़िया, पंजाबी, रोमानी, मराठी नेपाली जैसी भाषाएँ भी हिन्द-आर्य भाषाएँ हैं।

हिन्‍दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। हिन्‍दी भाषा व साहित्‍य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्‍था अवहट्ठ से हिन्‍दी का उद्भव स्‍वीकार करते हैं।





अपभ्रंश की समाप्ति और आधुनिक भारतीय भाषाओं के जन्मकाल के समय को संक्रांतिकाल कहा जा सकता है। हिन्दी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। १००० ई. के आसपास इसकी स्वतंत्र सत्ता का परिचय मिलने लगा था, जब अपभ्रंश भाषाएँ साहित्यिक संदर्भों में प्रयोग में आ रही थीं। यही भाषाएँ बाद में विकसित होकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के रूप में अभिहित हुईं। अपभ्रंश का जो भी कथ्य रुप था - वही आधुनिक बोलियों में विकसित हुआ।

इतिहास को ठीक जानें : काका कालेलकर कमीशन के रिपोर्ट.


प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग या काका कालेलकर कमीशन के रिपोर्ट को 1955 में क्यों नहीं मानी गई, इसके जवाब में अलग अलग धारणाएँ हैं।

परन्तु इसके लिए प्रमुख रूप से स्वयं काका कालेलकर जिम्मेदार थे। अपनी ही रिपोर्ट के राष्ट्रपति महोदय को लिखे गए अनुशंसा भूमिका पत्र में काका कालेलकर ने रिपोर्ट से असहमति जताते हुए उसे निरस्त करने की मांग कर दी थी।

केंद्र सरकार को उपरोक्त रिपोर्ट अग्रेसारित करते हुए कालेलकर ने उसके बुनियादी निष्कर्ष के साथ अपने मजबूत से असहमति रिकॉर्डिंग करवाई थी। उन्होंने लिखा की रिपोर्ट की अनुशंसा और दिए गए सुझाव उन बुराईयाँ जिनसे वे मुकाबला करने की मांग कर रही थी, वे उन बुराइयों से भी बदतर थे। उन्होंने लिखा कि आयोग द्वारा अपनाई जांच की लाइन गलत था क्योंकि "लोकतंत्र में यह इकाई है जो व्यक्ति, न परिवार या जाति है, और यह विश्लेषण लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध है।"

................................................ In 1953, six years after India got its independence from the British Raj, the central government established a Backwards Classes Commission under Kalelkar's chairmanship with the charter to recommend reforms for removing inequities for underprivileged people. The Commission issued its report in 1955, recommending, among other things, that the government grant special privileges to untouchables and other underprivileged people.



While forwarding the above report to the central government, Kalelkar attached a letter, recording his strong disagreement with the Commission's fundamental conclusions. He wrote that the suggested remedies were worse than the evils they sought to combat. He wrote that the whole line of investigation pursued by the Commission was “repugnant to the spirit of democracy since in democracy it is the individual, not the family or the caste, which is the unit." He recommended that the state regard as backward and entitled to special educational and economic aid all persons whose total annual family income was less than 800 rupees [at that time] regardless of their caste or community. He stated his disagreement with the Commission's recommendation of reserving posts in government services for the backward classes.

ब्लू जींस : (Blue Jeans -Hindi)



जर्मनी के बेवेरिया में जन्मे लेवी स्ट्रॉस 18 साल की उम्र में अपने परिवार के साथ 1847 में अमेरिका गए थे। स्ट्रॉस के दो भाइयों का न्यूयॉर्क में कपड़े का बिजनेस था। लेवी ने एक साल इनसे काम सीखा। फिर रिश्तेदारों के पास केन्टुकी गए। यहां उन्होंने तीन साल तक फेरी लगाकर कपड़े बेचे। इसी दौरान उन्होंने अपना स्टोर खोलने का मन बनाया। सेन फ्रांसिसको आकर बहनोई डेविड स्टर्न के साथ मिलकर स्टोर खोला, जिसे लेवी स्ट्रॉस एंड कंपनी नाम दिया।

लेवी जर्मनी से साथ लाए मोटा कपड़ा खदान मजदूरों को बेचने लगे। रफ एंड टफ होने के कारण मजदूर इसका पैंट सिलवाते थे। मांग ज्यादा होने के कारण जल्द ही कपड़े का स्टॉक खत्म हो गया। लेवी ने इसका विकल्प ढूंढ़ लिया। वे फ्रांस के शहर नाइम्स से मोटा डेनिम फेब्रिक मंगवाने लगे, जिसे नीला करने के लिए नील से डाई करवाते थे। मजदूरों ने इसे भी हाथों हाथ लिया। अगले 13 वर्षों में लेवी का बिजनेस तीन गुना बढ़ गया।

1872 में लेवी को नेवादा के टेलर जैकब डेविस का पत्र मिला, जिसने लेवी को ऑफर दिया कि अगर वे उसकी नई तकनीक के पेटेंट की फीस भर दें तो वह इससे होने वाली कमाई का आधा हिस्सा उन्हें देगा। कभी लेवी की दुकान से कपड़े खरीदने वाले जैकब ने पैंट में धातु के हुक (रिबिट) लगाने का तरीका ढूंढ़ा था। लेवी और उसके बहनोई को ऑफर अच्छा लगा। इस स्टाइल का पेटेंट कराकर 20 मई 1873 को लेवी ने अपने घर में ही कारखाना खोला और पहली ब्लू जींस बनाई। हालांकि तब मजदूर इसे ‘ओवरऑल' कहते थे। इस साल मंदी होने के बावजूद उनका नया बिजनेस प्रभावित नहीं हुआ। काम बढ़ा तो उन्होंने अपनी फैक्ट्री भी स्थापित कर दी। इसी दौरान जनवरी 1874 में स्टर्न की मौत हो गई।

1886 में लेवी ने पहली बार जींस की वेस्ट पर लेदर टैग लगाया। इस पर जींस को विपरीत दिशा में खींचते दो घोड़ों की फोटो के साथ 501 नंबर प्रिंट था। उम्र बढ़ने पर लेवी ने बिजनेस अपने भतीजों जेकब और लुईस स्टर्न को सौंप दिया और सामाजिक कार्यों से जुड़ गए। 1902 में लेवी के निधन के चार साल बाद भूकंप व आग से बैट्री स्ट्रीट पर कंपनी का मुख्यालय और फैक्ट्री पूरी तरह नष्ट हो गए। कंपनी दोबारा खड़ी की गई। इस मुसीबत के बाद मंदी ने उनके बिजनेस को और नुकसान पहुंचाया। इससे निपटने के लिए 1912 में कंपनी ने अपना पहला इनोवेटिव प्रोडक्ट बच्चों का प्लेसूट बाजार में उतारा। इसकी सेल से कंपनी कुछ संभली।



1950 के दशक में मजदूरों की देखा देखी हिप्पीज़ और युवाओं ने भी डेनिम पहनना चालू किया। रिंकल फ्री और फिक्स साइज इनके बीच ज्यादा पॉपुलर हुए। 1960 में इसे जींस नाम मिला। 1964 तक दो प्लांट वाली लेवी स्ट्रॉस के 80 के दशक में 50 प्लांट हो गए थे। 35 से ज्यादा देशों में उसके ऑफिस काम करने लगे थे। 1991 में अमेरिका के कोलंबस ओहियो में पहला स्टेार खोला। इसके बाद जॉर्ज पी सिंपकिंस के नेतृत्व में कंपनी ने अमेरिका के बाहर 23 प्लांट खोले। साथ ही डॉकर्स, डेनिजिन, सिगनेचर और लेवाइस जैसे कई ब्रांड बाजार में उतारे। जींस मार्केट में दुनिया के टॉप बैंड लेवाइस के भारत सहित 110 देशों में स्टोर हैं। हाल में लेवाइस ने खादी ब्रैंड पेश किया है। जिन लेवी स्ट्रॉस ने दुनिया को जींस दी, उन्होंने खुद इसे कभी नहीं पहना।