1984 में हुई दुनिया की सबसे घातक औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक भोपाल की यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी में तीन हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। 2-3 दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि को कीटनाशी बनाने वाले संयंत्र में एक रासायनिक अभिक्रिया के चलते जहरीली गैसों का रिसाव हो गया, जो कि आसपास फैल गई।
मध्य प्रदेश सरकार ने इसके कारण कुल 3,787 मौतों की पुष्टि की थी। गैर सरकारी आकलन का कहना है कि मौतों की संख्या 10 हजार से भी ज्यादा थी। पांच लाख से ज्यादा लोग घायल हो गए थे, बहुतों की मौत फेफड़ों के कैंसर, किडनी फेल हो जाने और लीवर से जुड़ी बीमारी के चलते हुई।
एंडरसन दुर्घटना के चार दिन बाद भोपाल पहुंचे थे परंतु नई दिल्ली से एक फोन आने के बाद तुरंत सरकारी देख-रेख में फरार हो गये। उसके बाद भारत सरकार ने उन्हें भारतीय कानून के दायरे में लाने की नाटक करती रही। भारत सरकार की ओर से एंडरसन के प्रत्यर्पण के लिए कई अनुरोध किए थे और आधिकारिक तौर पर उन्हें भगौड़ा भी घोषित किया था। द टाईम्स ने कहा कि अमेरिकी सरकार के समर्थन के चलते वह प्रत्यर्पण से बच गए।
हादसे को लेकर यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वॉरेन एंडरसन के खिलाफ हर किसी में जबर्दस्त गुस्सा था। सभी यही मानते थे कि वही हजारों लोगों का कातिल है। हर तरफ से एंडरसन की गिरफ्तारी की मांग जोर पकड़ रही थी। धरना-प्रदर्शनों के बाद 3 दिसंबर की शाम हनुमानगंज थाने में एंडरसन के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लिया गया।
डॉन कर्जमैन की लिखी किताब 'किलिंग विंड' के मुताबिक, एंडरसन अपने अन्य सहयोगियों के साथ 7 दिसंबर को सुबह साढ़े नौ बजे इंडियन एयरलाइंस के विमान से भोपाल पहुंचा, हवाईअड्डे पर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी और जिलाधिकारी मोती सिंह मौजूद थे। दोनों एंडरसन को एक सफेद एंबेस्डर कार में कार्बाइड के रेस्ट हाउस ले गए और वहीं उन्हें हिरासत में लिए जाने की जानकारी दी।
कर्जमैन आगे लिखते हैं कि दोपहर साढ़े तीन बजे एंडरसन को पुलिस अधिकारी द्वारा बताया जाता है कि हमने आपको भोपाल से दिल्ली जाने के लिए राज्य सरकार के विशेष विमान की व्यवस्था की है, जहां से आप अमेरिका लौट सकते हैं। कुछ जरूरी कागजात पर दस्तखत करने के बाद एंडरसन दिल्ली के लिए निकल गया। हजारों इंसानों का कातिल फिर कभी भोपाल नहीं आया, वहीं से उसे अमेरिका भेज दिया गया।
इधर भोपाल में उसे दोषी ठहराने की लड़ाई जारी रही। 1 दिसंबर 1987 को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने एंडरसन के खिलाफ मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया। 9 फरवरी 1989 को सीजेएम की अदालत ने एंडरसन के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया, मगर वह नहीं आया। आखिरकार 1 फरवरी 1992 को अदालत ने एंडरसन को भगोड़ा घोषित कर दिया।
एंडरसन के भोपाल न आने के बावजूद न्यायिक लड़ाई जारी रही। 27 मार्च 1992 को सीजेएम अदालत ने एंडरसन के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर गिरफ्तार कर पेश करने के आदेश दिए। साथ ही एंडरसन के प्रत्यार्पण के लिए केंद्र सरकार को निर्देश जारी किए, मगर जून 2004 में यूएस स्टेट एंड जस्टिस डिपार्टमेंट ने एंडरसन के प्रत्यार्पण की भारत की मांग खारिज कर दी।
नारा लगा था - "तुम हमें एंडरसन दो, हम तुम्हें ओसामा देंगे।"
भोपाल की सीजेएम अदालत ने 7 जून 2010 को सात भारतीय अधिकारियों को दो-दो साल की सजा सुनाई और जमानत पर रिहा कर दिया। एंडरसन के प्रत्यार्पण को लेकर यूएस स्टेट एंड जस्टिस डिपार्टमेंट के निर्णय का मामला अभी भी सीजेएम अदालत में विचाराधीन है। इस बीच खबर आई कि 29 सितंबर, 2014 को 92 वर्षीय यूनियन कार्बाइड के पूर्व प्रमुख वॉरेन एंडरसन का अमेरिका के फ्लोरिडा के एक नर्सिग होम में में निधन हो गया।भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार कहते हैं कि सरकारों की दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव में एंडरसन का प्रत्यपर्ण नहीं हो पाया। भोपाल वासियों के साथ तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने विश्वासघात किया था, उसके बाद वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी वही कर रहे हैं। कोई फर्क ही नहीं दिखता।
No comments:
Post a Comment