महाराणा प्रताप को उनके पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि :
महाराणा प्रताप (9 मई, 1540- 19 जनवरी, 1597) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। राजस्थान के कुंभलगढ़ में प्रताप का जन्म महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जीवंत कंवर के घर हुआ था। मेवाड़ की भूमि को मुग़ल सम्राट अकबर से आधिपत्य से बचाने हेतु महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा, स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा किंतु अकबर का आधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करुंगा।
उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। हन्होंने कई वर्षों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। इनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को शक्ति सिंह ने बचाया। उनके प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गएँ। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। लकिन असफल रहे। अपने सीमित साधनों से ही अकबर जैसी शक्ति से दीर्घ काल तक टक्कर लेने वाले वीर महाराणा प्रताप की मृत्यु शिकार के दौरान लगी चोटों की वजह से महारणा प्रताप 19 जनवरी 1597 को चावंड में वीरगति को प्राप्त कर गए।
आपको जान कर अचरज होगा की महाराणा प्रताप के भाला का वजन 80 किलो था। उनका कवच 72 किलो का था। अगर उनका भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवार का कुल वजन मिला दें तो 206 किलो होता है। इतने वजन को साथ में रखते हुए दिन भर रणभूमि में दुश्मन से लड़ने के लिए कितना उन्हें कितना ताक़त रहा होगा?
महाराणा प्रताप (9 मई, 1540- 19 जनवरी, 1597) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। राजस्थान के कुंभलगढ़ में प्रताप का जन्म महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जीवंत कंवर के घर हुआ था। मेवाड़ की भूमि को मुग़ल सम्राट अकबर से आधिपत्य से बचाने हेतु महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा, स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा किंतु अकबर का आधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करुंगा।
उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। हन्होंने कई वर्षों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। इनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को शक्ति सिंह ने बचाया। उनके प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गएँ। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। लकिन असफल रहे। अपने सीमित साधनों से ही अकबर जैसी शक्ति से दीर्घ काल तक टक्कर लेने वाले वीर महाराणा प्रताप की मृत्यु शिकार के दौरान लगी चोटों की वजह से महारणा प्रताप 19 जनवरी 1597 को चावंड में वीरगति को प्राप्त कर गए।
आपको जान कर अचरज होगा की महाराणा प्रताप के भाला का वजन 80 किलो था। उनका कवच 72 किलो का था। अगर उनका भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवार का कुल वजन मिला दें तो 206 किलो होता है। इतने वजन को साथ में रखते हुए दिन भर रणभूमि में दुश्मन से लड़ने के लिए कितना उन्हें कितना ताक़त रहा होगा?
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