देश के संविधान में बाबा साहेब के गैर दलित पिछड़ों के सम्बन्ध में व्यक्त चिंता की वजह से दिए गए प्रावधान के अनुरूप पहला पिछड़ा वर्ग आयोग एक ब्राह्मण काका कालेलकर की अध्यक्षता में गठित की गयी, परंतु इस आयोग की अनुशंसाओं पर स्वयं अध्यक्ष काका कालेलकर की ओर से राष्ट्रपति को दिए गए आपत्ति के कारण इसे ख़ारिज दिया गया। 1977 में जनता पार्टी के शासन में आने पर अपने घोषणा पत्र में किये गए वायदे के अनुसार दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग गठित किया गया। इसकी जिम्मेदारी प्रधान मंत्री मोरारजी भाई देसाई ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बी पी मंडल को सौपते हुए कहे थे कि, "मंडल जी, आपको शायद लगा होगा की मैंने आपको कैबिनेट में स्थान क्यों नहीं दिया। परंतु यह अधिक जिम्मेदारी का दायित्व है जिसके लिए आपको हमेशा याद किया जायेगा।"
यह गौरतलब है की जहाँ प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग ने 30 मार्च, 1955 को कुल 2399 हिन्दू जातियों को पिछड़ा घोषित किया था, और क्लास 1 में 25%, क्लास II में 33.5% तथा क्लास III & IV में 40% आरक्षण की अनुशंसा की थी, वहीं मंडल कमीशन रिपोर्ट ने विभिन्न धर्मो (मुसलमान भी) और पंथो के 3743 जातियाँ (देश के 54% जनसँख्या) को सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक मापदंडो के आधार पर सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ा (संविधान में आर्थिक पिछड़ा नहीं लिखा है और कमीशन आर्थिक बराबरी के लिए भी नहीं था) घोषित करते हुए 27% (क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 50% अधिकतम का फैसला दिया था और पहले से SC/ST के लिए 22.5 % था), की रिपोर्ट दी।
कोर्ट फैसले के अनुसार गैर संविधानिक 'क्रीमी लेयर" प्रावधान और नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास के आदेशानुसार इसमें रोज छेड़-छाड़ की जा रही है।
सही मायने में उलटा आरक्षण लागू है (यानि 27% से अधिक मेरिट में भी नहीं आ सकते), और तमाम ओबीसी नेता सिर्फ अपने परिवार को तरक्की देने में लगे हैं।
#98thBirthAnniversaryOfBPMandal



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