सरकार कैश रकम निकालने और रखने की सीमा तय कर चुकी है।
अब सोना रखने और खरीदने पर भी सीमा तय कर दिया जायेगा।
परंतु अम्बानी और अडानी और उनके जैसे धन्ना सेठों के संपत्ति पर कोई सीमा नहीं। दिन दुगुना और रात चौगुना बढ़ती रहे।
पुराने मोनोपोली (एकाधिकार) एक्ट का कोई मतलब नहीं रह गया है।
टीवी देखने के लिए भी, न जाने किस कानून के अन्तर्गत, बिना सेट टॉप बॉक्स, आप टीवी देख नहीं सकते। छिटपुट केवल वालों की जगह ज़ी नेटवर्क और रिलायंस को केबल सप्लाई का एकाधिकार दे दिया गया है : वजह, पहले एक पेमेंट पर कई लोग देखते थे जिससे कंपनियों को नुकसान हो रहा था और लोगों पर कड़ी नज़र भी रखना है।
पहले भी लैंड सीलिंग एक्ट के तहत ज़मीन रखने की सीमा तय की गयी थी। आज कंपनियों को सेज़ (SEZ) आदि के माध्यम से बेहिसाब ज़मीन किसानों से छीन कर दे दिया गया है।
तो "सीमा" सिर्फ आम लोगों के लिए।
दरअसल यह कवायद वर्ल्ड बैंक और अमरीका के इशारे पर हो रहा है। भारत अभी भी 'सोने की चिड़िया' है, परंतु आम जनों का अपनी सम्पति और मेहनत से कमाई दौलत को बचा बचा कर खर्च करने की परंपरा रही है। अब विदेशों में जमा 'काला धन' का परिभाषा बदल कर, लोगों के निजी संपत्ति को ही 'काला धन' बता कर, उसे विदेशियों और देशी धन्ना सेठों को लूटने के लिए निकलवाया जा रहा है।
इस पूरे प्रकरण में, आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी विपक्ष नपुंसक जैसा सिर्फ शोर कर पा रहा है।
पर इसका उपाय दिखेगा, वक़्त के साथ जवाब भी मिलेगा।
इंतज़ार है।
"There is equality only among equals. To equate unequals is to perpetuate inequality." ~ Bindheshwari Prasad Mandal "All epoch-making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-~ADOLF HITLER.
About Me
- Suraj Yadav
- New Delhi, NCR of Delhi, India
- I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....
Right, absolutely right sir.
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