"There is equality only among equals. To equate unequals is to perpetuate inequality." ~ Bindheshwari Prasad Mandal "All epoch-making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-~ADOLF HITLER.
About Me
- Suraj Yadav
- New Delhi, NCR of Delhi, India
- I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....
Thursday, November 24, 2016
संगठित लूट? कानूनी लूट-खसोट ? किसका देश और किसकी सरकार ?
सर्वोच्च न्यायालय में नोटबन्दी पर केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि दुनिया में जीडीपी का महज 4 प्रतिशत कैश ट्रांजैक्शन होता है, लेकिब हमारे देश में ये जीडीपी का 12 प्रतिशत है, ऐसे में नोटबंदी का कदम ज्यादा कैश ट्रांजैक्शन को खत्म कर, उसको डिजिटल करने के लिए उठाया गया है।
विश्व बैंक की 2011 में अंतर्राष्ट्रीय तुलना कार्यक्रम के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि भारतीय आबादी का 23.6%, या लगभग 276 मिलियन लोग प्रति दिन क्रय शक्ति समानता पर $ 1.25 से नीचे रहते हैं। यानि हैण्ड तो माउथ, या जैसे तैसे ज़िन्दगी बसर कर रहें हैं। और सबसे दुःखस पहलु है की यही वह तपका है जिसे डिजिटलाइजेशन की ओर ले जाने के लिए सरकार यह कवायद कर रही है।
हलफनामा में सरकार ने कहा है कि इस कदम से 70 साल के ब्लैक मनी के बोझ को सरकार ने खत्म करने का प्रयास किया है। क्या इसी 'ब्लैकमनी' की बात नरेन्द्र मोदी ने चुनाव प्रचार में किए थे ?
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जिस तरह से इसे लागू किया गया है, वह ‘प्रबंधन की विशाल असफलता’ है और यह संगठित एवं कानूनी लूट-खसोट का मामला है। उन्होंने पीएम से पूछा कि क्या ऐसा कोई देश है जहां लोग अपने पैसे जमा तो करवा सकते हैं लेकिन निकलवा नहीं सकते? नोटबंदी के बाद से देश में 60 से 65 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
इस बीच, मोदी सरकार ने अपने दोस्तों को दिया हुआ 7 हज़ार करोड़ रुपए का लोन माफ़ कर दिया जिसमें 1200 करोड़ रुपए का लोन विजय माल्या का भी था।
बैंकों के माध्यम से जो लोन सरकार माफ़ करा रहे हैं वो हमारे या आपके द्वारा लिए गए छोटे-छोटे लोन नहीं हैं बल्कि इस देश के 9 बड़े-बड़े धन्नासेठों के घराने हैं जिन्होंने मिलकर कुल 7 लाख करोड़ रुपए का लोन सरकारी बैंकों से उठा रखा है। और मोदी जी के इन कर्ज़दार दोस्तों के नाम हैं –
एस्सार, रिलायंस, जीवीके, जीएमआर, अडानी, लैनको, वीडियोकॉन, वेदांता, जेपी आदि बड़े उद्योगपतियों के लोन माफ़ किया गया है।
कई कारणों से सरकार ने यह दावा किया है की नोट बंदी पर गोपनीयता बरती गयी। परंतु RBI के सितंबर 2016 की आकड़े देखे तो अगस्त 2016 के मुकाबले 5,88,600 करोड़ रुपया बैंकों के खाते में अतिरिक्त जमा हुआ। जुलाई 2016 में बैंकों के खातों में 96 हजार 196 बिलियन रुपये जमा हुए और सितंबर 2016 में बैंकों के सभी खातों में राशि बढ़कर 1 लाख 2 हजार 82 बिलियन रुपये हो गई। जिसका अंतर कनवर्ट करने पर 5,88,600 करोड़ रुपया होता है।
अब जरा RBI के आकड़ों के अनुसार ही 2015 में जुलाई और सितंबर के बीच जमा होने वाली राशि देखिए। जुलाई 2015 में सभी बैंकों में लगभग 88 हजार 301 बिलियन रुपये जमा हुआ और उसी साल सितंबर 2015 में 89 हजार 462 बिलियन रुपये जमा हुआ था।
हाल ही में ये बात सामने आई थी कि कुछ नेताओं को नोट बंदी की जानकारी पहले से ही थी। ऐसे में ये आकड़े सवाल पैदा करते है कि क्या कुछ नेताओं या बिजनेस मैन को इस बात की जानकारी पहले से ही थी। क्या जुलाई और सितंबर के जमा आकड़ों का भारी अंतर ये दर्शाता है कि कुछ लोगों ने अपने पैसों का निपटारा पहले ही कर लिया है। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में वित्त मंत्री अरूण जेटली से नोट बंदी की गोपनीयता पर सवाल करने पर वो मान चुके है कि सरकार ने पूरी तरह से नोट बंदी पर गोपनीयता बरती है लेकिन हो सकता हो इस बात कि जानकारी कुछ लोगों को पहले ही हो गई हो।
8 नवंबर की रात ऐतिहासिक थी। देश में 500 और 1000 का नोट बंद कर प्रधानमंत्री मोदी ने नये 500 और 2000 रुपये के नोट जारी करने की घोषणा की। पीएम मोदी ने अपने फैसले को अबतक का काला धन के खिलाफ सबसे बड़ा फैसला बताया।
इससे पहले भी पीएम मोदी कई मौकों पर काला धन के मुद्दे पर भाषण देते आए हैं। लेकिन इन भाषणों के दौरान भी दौरान यानि नोट बंदी के 11 महीने पहले ही मोदी सरकार की कुछ फैसले से हवाला काराबारियों को कानूनी रूप से विदेशों में धन भेजने का सुनहरा मौका मिल गया। इतने समयांतराल में कुछ लोगों ने 30,000 करोड़ रुपये विदेशों में ट्रांसफर कर दिया। यह पिछले सालो की तुलना में तीन गुना राशि है।
मोदी सरकार बनने के पहले LRS (Liberalised Remittance Scheme) की तहत विदेश में धन भेजने की सीमा सिर्फ 75 हजार डॉलर थी। बीजेपी की सरकार ने सत्ता में आने के एक हफ्ते के अंदर ही 03 जून 2014 को इसकी सीमा बढ़ा 125 हजार डॉलर कर दी गई। पिछले साल 26 मई 2015 को दोबारा LRS बढ़ाकर 250 डॉलर कर दी गई। ये फैसला एक तरफ से हवाला कारोबार को कानूनी दर्जा देने जैसा साबित हुआ। इस फैसले के चलते जून 2015 में 30,000 हजार करोड़ रुपये विदेशी खातों में भेज गए।
यहा तक कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की जानकारी में ये सब तब से हो रहा था। जब RBI गुपचुप तरीके से 500 और 1000 की नोटों की रोक की तैयारी कर रही थी। RBI के पास आज भी इसका स्पष्ट जवाब नहीं है कि इतनी बड़ी रकम अचानक कैसे विदेशी खातों में पहुंच गई।
प्रधानमंत्री ने कहा है 50 दिन तक रुकने के लिए कहा है, लेकिन देश के गरीब वर्ग के लिए ये 50 दिन मुश्किलों भरे होंगे।
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