केंद्र सरकार के नौकरियों में आरक्षण के लाभों का वितरण के लिए पिछड़े वर्ग के उप वर्गीकरण के लिए जस्टिस रोहिणी कमीशन:
पिछड़े वर्ग का आरक्षण विवाद का केंद्र रहा है। दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 340,341,342 तथा अनुच्छेद 15(4),के अनुसार विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा मीडिया तथा अन्य संस्थाओं में जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व होना चाहिए। परन्तु, जैसा मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, अक्सर समाज के पिछड़े वर्ग को प्रतिनिधित्व या समान अवसर देने में एक बड़े तबके को "हार्टबर्न" या हृद्दाह अथवा नाख़ुशी होती है। यह उस समय दिखा था जब 7 अगस्त, 1991 को मंडल आयोग की रिपोर्ट को ठन्डे बस्ते से निकाल कर आंशिक रूप से केंद्र सरकार की नौकरियों में लागू करने का वी पी सिंह सरकार ने फैसला किया था। फिर जबरदस्त विरोध का दौर चला। मामला सर्वोच्च न्यायालय में गया, जहाँ दिग्गज वकील राम जेठमलानी ने इसका बचाव किया। लोगों को लग रहा था की सर्वोच्च न्यायालय इसे निरस्त कर देगी। परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के फैसले अनुसार पिछड़े वर्ग के आरक्षण में कृमि लेयर लागू किया गया और यह उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने इंदिरा साहनी एवं अन्य बनाम भारत सरकार मामले में 16 नवंबर 1992 को अपने आदेश में व्यवस्था दी थी कि पिछड़े वर्गों को पिछड़ा या अति पिछड़ा के रूप में श्रेणीबद्ध करने में कोई संवैधानिक या कानूनी रोक नहीं है।
इसी प्रावधान के मद्देनज़र, 2 अक्टूबर, 2017 को नरेंद्र मोदी कैबिनेट के अनुशंसा पर संविधान की धारा 340 के अंतर्गत महामहिम राष्ट्रपति ने अन्य पिछड़ा वर्गों के सभी स्तरों के बीच केंद्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण के लाभों व संसाधनों के समान वितरण के तरीके और पर विचार कर अन्य पिछड़ा वर्ग के उप वर्गीकरण के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय रिटायर्ड चीफ जस्टिस जी रोहिणी की अध्यक्षता में एक कमीशन का गठन किया है। इस कमीशन के एक अन्य महत्वपूर्ण सदस्य डा जे के बजाज हैं। आयोग के अध्यक्ष द्वारा प्रभार धारण के बारह हफ्तों की अवधि के भीतर आयोग को अपनी रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया है।
संदर्भ की शर्तों के अनुसार आयोग को केंद्रीय सूची के अन्य पिछड़ा वर्गों की व्यापक श्रेणी में शामिल जाति या समुदायों में आरक्षण के लाभों के गैर-लाभकारी वितरण की सीमा को जांचने के लिए कहा गया है तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के उप वर्गीकरण की विधि और तंत्र, मापदंड, मानदंड और पैरामीटर तय करने के लिए भी कहा गया है।
यहाँ अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षण की पृष्ठभूमि पर थोडी जानकारी आवश्यक है।
देश की आज़ादी के बाद यह भी बात उठी कि इन वर्गों के अलावे कई और सामाजिक तपके हैं, जिन्हें भी विशेष अवसरों कि आवश्यकता होगी। सामाजिक और शैक्षणिक रूप से इन पिछड़े वर्गों का पता लगाने के लिए संविधान के धारा 340 के अनुसार एक आयोग बनाने का प्रावधान किया गया, जिसे पिछड़ा वर्ग आयोग कहा जाना था।
पंडित नेहरू पर इस बात का दबाब बढ़ने पर 29 जनवरी, 1953 को काका कालेलकर की अध्यक्षता में पहले पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया जिसने 30 मार्च 1955 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी।इस रिपोर्ट के अनुसार 2,399 जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया, जिनमें 837 जातियों को अति-पिछड़ा घोषित किया गया। लेकिन इस आयोग के रिपोर्ट कि सबसे दिलचस्प पहलु यह थी कि आयोग के अध्यक्ष ने रिपोर्ट के साथ माननीय राष्ट्रपति को दिए गए अपने पत्र में अपनी ही रिपोर्ट को ख़ारिज कर दी।
इसी पत्र के आधार पर वर्षों तक पिछड़े वर्ग के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। 1977 के लोक सभा चुनाव में नवगठित जनता पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में पिछड़े वर्ग के लिए विशेष उपाय पूरे संजीदगी से उठाया गया और उस चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस को पहली और करारी हार दी।
राष्ट्रपति ने 1 जनवरी, 1979 को पिछड़ा वर्ग आयोग कि गठन कि अधिसूचना जारी की जिसके अध्यक्ष बिहार के पूर्व मुख्य-मंत्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल (बी पी मंडल) को बनाया गया। उन्हीं के नाम पर इस आय़ोग को मंडल आयोग के नाम से जाना गया। बी पी मंडल ने 31 दिसंबर,1980 को नई दिल्ली के विज्ञानं भवन में राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह को रिपोर्ट सौंप दी।
मंडल कमीशन रिपोर्ट तो पूरे विज्ञानिक आधार के बनायी गयी की वर्षों बाद सर्वोच्च न्यायलय के सम्पूर्ण बेंच द्वारा भी इसमें किसी तरह कि कमी नहीं निकाली जा सकी। रिपोर्ट 5 वॉल्यूम में है। पहले वॉल्यूम में रिपोर्ट और अनुशंसा है। दुसरे में तमाम जुड़े कागजात का 'अपेंडिक्स' है। तीसरे में आज़ादी और उसके पहले से आरक्षण पर पूरे भारत में न्यायालय में दायर केस और उनके निर्णय की इंडियन लॉ इंस्टिट्यूट द्वारा किया गया विस्तृत अध्यन है। चौथे वॉल्यूम में भारत के 31 राज्यों (उस समय के) में प्रत्येक ज़िले में जातियों का अध्यन है जो प्रतिष्ठित टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज द्वारा किया गया है। पांचवे वॉल्यूम में राज्यवार जातियों की सूची है जिन्हें पिछड़े वर्ग की केंद्रीय सूची में शामिल किया गया है। रिपोर्ट में 1931 में हुए आखिरी जाति आधारित जनगणना के अनुसार भारत के 52% जनसंख्या जिसमें 3,743 अलग अलग जातियों को समाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा या ‘backward’ घोषित किया गया। परन्तु चुकी पहले से अनुसूचित जाति/जनजाति को 22.5% आरक्षण प्राप्त था अतः कई अन्य अनुशंसाओं के साथ साथ उनके लिए 27% आरक्षण का प्रावधान करने के लिए कहा गया, जिसे जोड़ने के बाद आरक्षण का कुल प्रतिशत 49.5 होता था जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय सीलिंग 50% से कम था।
1989 का लोकसभा चुनाव के बाद वी. पी.सिंह प्रधानमंत्री बने और दिसंबर 1980 से ठन्डे बस्ते में पड़ी मंडल आयोग के रिपोर्ट को 7 अगस्त, 1991 को आंशिक रूप से लागू कर दिया। और उधर मंडल कमीशन का भीषण विरोध शुरू हो गया। अतः वास्तव में मंडल कमीशन की सिफारिशों से भारतीय राजनीति और समाज में भूचाल आ गया।
अब हम यह जानते हैं कि पिछड़े वर्ग का उप वर्गीकरण क्या है ? इस बात की मांग उठती रही है कि अन्य पिछड़ी जातियों में जो आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत जातियां हैं उनको आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा मिल रहा है और बिल्कुल हाशिए पर की जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित हैं। इस तर्क के अनुसार बिहार में मुंगेरी लाल कमीशन के अनुसार कर्पूरी ठाकुर फार्मूला लागू किया गया जिसके तहत एनेक्सचर-1 और एनेक्सचर- 2 की जातियों का विभाजन कियागया था और आरक्षण के भीतर आरक्षण देने का फैसला किया था। अन्य पिछड़ी जातियों में वर्गीकरण कराने और क्रीमी लेयर के दायरे को छोटा करने का केंद्र सरकार का फैसला इस बात का संकेत है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के कर्पूरी ठाकुर फार्मूला को केंद्र स्तर पर लागू करना चाहते हैं।
परन्तु इससे कुछ अन्य चिंताएं जुडी हुई है। सबसे अधिक जिज्ञासा दो बिंदुओं पर है। एक, मंडल आयोग लागू होने के बाद पिछड़े वर्ग का केंद्रीय सरकार की नौकरियों में कितना प्रतिनिधित्व है ? और दूसरा आज की परिस्थिति में केंद्र सरकार की नौकरियाँ ही कितनी है ?
इस सन्दर्भ में 26 दिसंबर, 2015 के टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपे एक रिपोर्ट के अनुसार मंडल आयोग की सिफारिश के आंशिक रूप से लागू किये जाने के 20 वर्ष बाद भी केंद्र सरकार की नौकरियों में अन्य पिछड़े वर्ग की संख्या 12 प्रतिशत से भी कम है। एक आरटीआई से प्राप्त जानकारी के आधार पर कहा गया है कि 1 जनवरी, 2015 तक मण्डल आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन के 2 दशक बाद केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की अनुशंसा किये जाने के बाद भी आंकड़े बताते हैं कि केंद्र सरकार के मंत्रालयों, विभागों और सांविधिक निकायों के 12 प्रतिशत से कम कर्मचारी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से हैं। इस सम्बन्ध में केंद्र सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय सहित 40 मंत्रालय और सामाजिक न्याय विभाग सहित 48 विभागों ने आरटीआई का जवाब नहीं दिया। फिर भी, उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक केंद्र सरकार में कार्यरत समूह ए, बी, सी और डी श्रेणी के कर्मचारी के 79,483 पदों में से केवल 9,040 कर्मचारी ओबीसी हैं।
एक आरटीआई के अनुसार रोजगार के सन्दर्भ में 74 मंत्रालोयों और विभागों ने सरकार को बताया है कि अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों की 2013 में 92,928 भर्तियां हुई थीं। 2014 में 72,077 भर्तियां हुईं। मगर 2015 में घटकर 8,436 रह गईं। इस तरह नब्बे फीसदी गिरावट आई है।
अतः यह ज़रूरी होगा की सरकार यह जानकरी दें की पिछड़े वर्ग में प्राप्त आरक्षण में किन जातियों का प्रतिनिधित्व कितना है ? साथ ही दावेदारी कितनी है ?
अगर जातियों की दावेदारी और प्राप्त हिस्सा में अन्तर हो तो उप वर्गीकरण से निश्चित तौर पर लाभ होगा। अगर न दावेदारी है, न जातियों को हुए फायदे के आंकड़ें हैं और न ही सरकार को देने के लिए रोजगार है, तो पिछड़े वर्ग के आरक्षण उप वर्गीकरण का कोई मतलब नहीं है और न ही इसका कोई राजनैतिक लाभ नरेंद्र मोदी की सरकार को मिलेगा।
"There is equality only among equals. To equate unequals is to perpetuate inequality." ~ Bindheshwari Prasad Mandal "All epoch-making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-~ADOLF HITLER.
About Me
- Suraj Yadav
- New Delhi, NCR of Delhi, India
- I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....
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