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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Saturday, August 13, 2011

कांगेस में फैसला किसका? नेतृत्व का संकट?


कांग्रेस का ही फैसला कहें की अन्ना हजारे को अनशन करने के लिए २२ शर्तों के साथ तीन दिन के लिए, मात्र ५- ६ हज़ार लोगों के साथ जे पी पार्क में इज़ाज़त देने का नाटक किया जा रहा है. सभी समझ रहे हैं कि अन्ना के अनशन की शानदार कामयाबी के लिए कांग्रेस आधार तैयार कर रही है.

दुष्यंत कुमार की चार लाइन हैं - हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिएइI
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिएईII


मैं इसलिए याद दिला दूं कि हिंदुस्तान के लोगों, और खास तौर से युवाओं की फितरत है की अगर उन्हें लगता है की किसी के साथ अन्याय हो रहा है तो वे पूरे ताक़त के साथ उसके साथ खड़े हो जाते हैं. मुझे याद आ रहा है कि २४ जुलाई, १९८७ को वी पी सिंह कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध दिल्ली विश्वविद्यालय में सिंहनाद आयोजित किया गया था. २३ जुलाई के शाम को दिल्ली विश्वविद्यालय के ही सेंट स्टीफंस कालेज के छात्रावास में प्राचार्य जॉन हाला द्वारा अनुमति नहीं दिए जाने पर, वार्डेन प्रो दिवेदी द्वारा अपने आवास पर परिचर्चा पर राजा साहेब को बुलाये थे. कांग्रेस के छात्र इकाई के कुछ अति उत्साही गुट ने वी पी सिंह पर पेट्रोल बम से हमला किया जिसमें वे बाल-बाल बचे. मुझे लगा कि अगले दिन दिल्ली विश्वविद्यालय कि सभा में कोई नहीं आयेगा. परन्तु अगले दिन जो सभा हुई वह दिल्ली विश्वविद्यालय कि इतिहास में अभूतपूर्व था. सभा में धन्यवाद ज्ञापन देते हुए मैंने कहा कि "...हार कर मजबूर होकर यह सभा हमें वहीँ करनी पड़ रही है जहाँ पहली पर जे पी ने सभा की थी जिसके परिणामस्वरुप श्रीमती गाँधी सत्ता से हटी थीं. आज के सभा के परिणाम यही होगा कि राजीव गाँधी सत्ता से हटेंगे और भावी प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का मैं स्वागत करता हूँ."

अब जे पी पार्क में कई शर्तों के साथ अगर अन्ना हजारे को इजाजत दी जा रही है , तो यह तय है की हिंदुस्तान की इतिहास में एक मोड़ आने वाला है! कहने का अर्थ यह है कि कांग्रेस के फैसला लेने वाले अन्ना हजारे से डर कर कई तरह कि बाधाएं खड़ी कर रहें हैं, जो निश्चित तौर से लोगों को अन्ना के प्रति सहानुभूति बढ़ाएंगे और उनके मांगों को लोगों के बीच में और अधिक लोकप्रिय करेंगे. एक वकील बेशर्मी से कानून का ज्ञान बघार रहें हैं, और दूसरा वकील दलीलें देते हुए आम जनता को मूर्खों कि जमात समझ रहें हैं. परन्तु क्या कांग्रेस में वकीलों की ही चल रही है?

हम सब जानते हैं के कांग्रेस का अर्थ है सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी - यानि आदेश इन्ही का चलेगा. परन्तु सच्चाई शायद यह नहीं है. कांग्रेस में दो- तीन सत्ता के केंद्र हैं. सोनिया और राहुल तो औपचारिक (De jure) सत्ता के केंद्र हैं ही, दुसरे वास्तविक (de facto) सत्ता पंजाबी खत्रियों के एक गुट के पास है जो प्रधान मंत्री डा.मनमोहन सिंह के इर्द-गिर्द हैं. इस गुट में गृह मंत्री चिदंबरम भी शामिल हैं. अन्य मंत्री हैं - डा. मनमोहन सिंह का खासम-खास कपिल सिबल, सूचना और प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया.

अब जो यह गुट हैं उनके फैसले कैसे प्रभावी हैं यह उन सभी मसलों पर दीखता है जिन्हें जन-विरोधी फैसले कहा जा सकता है, या यूं कहें की जिससे कांग्रेस की किर-किरी हुई हो. उधाहरण के लिए अन्ना हजारे से बात-चीत के बीच में ही एक शिखंडी बिल प्रस्तुत किया जाना, पहले बाबा रामदेव से समझौता और फिर रामलीला मैदान में उनके शिविर में हमला इत्यादि.

परन्तु भाजपा कुछ बोले तो अच्छा नहीं लगता है, खास तौर से अन्ना के समर्थन में उन्हें आने का नैतिक आधार ही नहीं है. सभी समझते हैं की लोकपाल विधेयक पर उनका रुख क्या है. और जब गुजरात में सही बात कहने के लिए IPS अधिकारीयों के विरुद्ध कार्यवाई हो रही है तो ताक़तवर लोकपाल को ये कैसे बर्दाश्त करेंगे? कपिल सिबल के तार जातिगत आधार पर ही भाजपा से भी जुड़े हुए हैं.

यह आम धरना है की देश में आपात काल जैसे हालत बन रहे हैं. यह संयोग ही है की आपात काल के पहले-दौर में भी संजय गाँधी के साथ अम्बिका सोनी का योगदान था. अब करेला पर नीम चढ़ा हैं कपिल सिबल जैसे धुरंधर जो कभी भी आम जनता से जुड़े नहीं रहे हैं. पैसे के लिए किसी भी मुअक्किल के लिए काम करना ही इनका ईमान है. दरअसल इनके जैसे लोगों का राजनीती में पदार्पण लालू प्रसाद जैसे नेताओं के पाप से ही हुआ है. कपिल सिबल चारा घोटाले में लालू प्रसाद के वकील थे. फीस में राज्य सभा की सदस्यता लालू प्रसाद से ली और बाद में कांग्रेस ज्वाइन कर लिये. यह जो 'ब्लेकमेल' का आरोप अन्ना हजारे पर यह लगते हैं , यह खुद उसमें माहिर हैं और इसके भुक्तभोगी शोइब इकबाल हैं जो चांदनी चौक चुनाव-क्षेत्र से सिबल के विरुद्ध लोजपा के प्रत्यासी थे, और जिन्हें रास्ते से हटाने के लिए हर कुकर्म सिबल ने किये.

अन्ना हजारे की मुहीम कांग्रेस के विरुद्ध है या कांग्रेस खामखा भ्रष्टाचारियों का संरक्षक बन रही है. दोनों वकील - चिदंबरम और सिबल - अपराधियों का ही बचाओ करते रहें हैं और अब भी वही कर रहे है. बाबा रामदेव प्रकरण में इन्होने दिखा दिया की विदेशों में काला धन जमा करने वालों को डरने ज़रुरत नहीं - कांग्रेस का हाथ, सदा उनके साथ! या बताया जा रहा है की समय रहते भैया स्विस बैंक से पैसे निकाल लो!


निष्कर्ष यह है की अगर नुकसान कांग्रेस का होता है तो इसके भुक्तभोगी सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी होंगे. डा. मनमोहन सिंह अपनी पारी खेल चुके हैं. अब खेल बिगर जायें तो उनका या सिबल का क्या बिगड़ेगा? जो बिगड़ेगा वो राहुल गाँधी का ही होगा, क्योंकि उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में कांग्रेस को सत्ता में लाने का उनका सपना ज़रूर बिखर जायेगा. सिबल तो तुरंत दूसरा मुअक्किल दूंढ़ लेंगे. नुकसान ऐसे तमाम कांग्रेसियों का है जो निष्ठां से पार्टी के लिए काम करते हैं.

Tuesday, August 9, 2011

२०११ के लन्दन दंगे. क्या हैं?

इंग्लैंड के कई इलाके जैसे टोत्तेंहम, उत्तरी लन्दन में जन-अशांति, लूट और आगजनी की घटनाएं ६ अगस्त,२०११ से शुरू हुई जब स्थानीय पुलिस की गोली से २९ वर्षीय मार्क डुग्गन की मृत्यु हो गयी. इसके विरोध में टोतेंग्हम में २०० लोगों के विरोध जुलूस के बाद से दंगे शुरू हुए. मारा जाने वाला शख्स अश्वेत था. मार्च भी अश्वेत निकले थे. उसके बाद से अशांति शहर के अन्य इलाके जिनमें वूड ग्रीन, अन्फील्ड टाउन, पोंड़ेर्स एंड,ब्रिक्सटन आदि में फ़ैल गया. लगभग ३५ पुलिस अधिकारी घायल हुए हैं. ८ अगस्त,२०११ से दंगे और आगजनी बर्मिंघम, लिवरपूल,नॉटिंघम,ब्रिस्टल,केंट और लीड्स में भी फ़ैल गया. ५२५ से ऊपर लोग गिरफ्तार हुए हैं. ९ अगस्त की रात को अशांति फ़ैलाने के विरुद्ध पुलिस ने कड़ी कार्यवाई की चेतावनी दी है. प्रधान मंत्री डेविड कैमेरून अपनी छुटियाँ बीच में रद्द कर वापस लन्दन आ गए हैं और ११ अगस्त को संसद की सत्र पुनः बुलाई गयी है.
वहां बसे भारतीयों को सतर्क रहना होगा. दरअसल, भारतीयों को दोनों - श्वेतों व अश्वेतों- ओर से खतरा रहता है.
माना जाता है की अशां

ति फ़ैलाने में सोसल नेटवर्क ब्लैक बेर्री मेसेजिंग और ट्वीटर ने नकारात्मक भूमिका निभाई है
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Sunday, August 7, 2011

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AIBSF1, JNUAibsf, JNUAIBSF, JNUDr Ambumani Ramdoss at JNUAibsf 1Aibsf 2, JNU
Dr Ambumani Ramdoss  at JNUAIBSF, JNUAibsf 3Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament.
Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament.
Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Convention on Caste Census: betrayal of Parliament. Digvijay Singh 1Digvijay Singh

All India Backward Students Federation observed 21 years of Mandal Commission today, the 7th August, 2011 at SSS-1 Audi JNU, New Delhi. Shri Sharad Yadav, Shri Ram Vilas Paswan, Dr Ambumani Ramdoss, Shri Ram Avdhesh Singh, Prof RavivermaKumar, Shri D. Subba Rao, Prof Lobiyal were main speakers. Dr Ambumani Ramdoss was at his eloquence best.

Thursday, August 4, 2011

लोकपाल- विधेयक से कानून तक. दिल्ली दूर है.

आज लोकपाल विधेयक लोक सभा में पेश किया गया तो प्रणब मुख़र्जी ने बयान दिया कि संसद की संप्रभुता का पूर्ण ख्याल रखा जायेगा और सभी संसदीय परम्पराओं का पालन किया जायेगा. इशारा है की बेकार में अन्ना और उनके साथी विधेयक की प्रतियाँ जला रहें हैं, इसका वो ही हस्र होगा जो पहले लोकपाल के कई विधेयेकों का हुआ.

दरअसल प्रथम लोकपाल विधेयक १९६८ में पेश किया गया और लोक सभा में पारित होने के बावजूद राज्य सभा में पारित नहीं होने पर कानून नहीं बन पाया. फिर १९७१, १९७७ में तत्कालीन कानून मंत्री और लोकपाल विधेयक समिति के वर्तमान सदस्य शांति भूषण द्वारा, १९८५, १९८९, १९९६, १९९८, २००१, २००५ तथा २००८ में प्रस्तुत किये गए. इस तरह प्रस्तुत होने के ४२ वर्ष बाद भी लोकपाल विधेयक कानून नहीं बन सका. अब अन्ना हजारे ने जन लोकपाल की मुहीम शुरू की तो विधेयक प्रस्तुत कर सरकार ने यह बताने की कोशिश की है कि ढाक के तीन पात. अब अगर यह कानून भी बन जायेगा तो क्या? यह एक शिखंडी लोकपाल होगा और भ्रष्ट नेताओं को चिंतित होने कि जरूरत नहीं.


संसदीय परंपरा में विधेयक को कानून बनने के लिए उसे संसद के दोनों सदनों - लोक सभा और राज्य सभा - में पारित होकर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाने के बाद कानून का दर्जा मिल जाता है. साधारणतया संसद के दोनों सदनों में समान कार्यविधि की व्यवस्था होती है। प्रत्येक विधेयक को कानून बनने से पहले प्रत्येक सदन में अलग अलग पांच स्थितियों से गुजरना पड़ता है और उसके तीन वाचन (Reading) होते हैं। पाँचों स्थितियाँ इस प्रकार हैं पहला वाचन, दूसरा वाचन, प्रवर समिति की स्थिति, प्रतिवेदन काल (report stage) तथा तीसरा वाचन। जब दोनों सदनों में इन पाँचों स्थितियों से विधेयक गुजर कर बहुमत से प्रत्येक सदन में पारित हो जाता है तब विधेयक सर्वोच्च कार्यपालिका (राष्ट्रपति) के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है. इस बीच में विधेयक संसदीय समिति (Standing Committee) के अवलोकन तथा आवश्यक सुधIर के लिए भी भेजा जाता है. तो समय बड़ा बलवान है, और कोई नहीं जनता कि इस लोक सभा कि कार्यकाल कब तक है, यानि सरकार कब तक रहे.
और प्रणब मुख़र्जी ने बराबर यह कतिपय शब्दों में स्पष्ट किया है कि सरकार भ्रष्टाचारियों और विदेशों में कला धन जमा करने वालों के साथ है. और संसदीय परंपरा के पक्षधर प्रणब बाबु जाने कितने बार बिना बहस किये विधेयेकों को कानून बनाये है, खास तौर से जब अमेरिका के साथ परमाणु संधि जैसे मसलें हों.

संसदीय व्यवस्था में गिरावट कोई शोध का विषय नहीं है, यह सर्व विदित है. गिरावट का निष्कर्ष इससे भी निकलता है कि पूर्व में संसद का ४९% समय कानून बनाने में जाता था और अब मात्र १३%. सदस्य उपस्थित ही नहीं रहते हैं. पिछले ३० वर्षों में सदस्यों का एक भी निजी बिल कानून नहीं बन पाया है और सरकारी बिल बिना सोचे-समझे और बहस के पारित होते रहें हैं. तो अन्ना के जन लोकपाल को सदस्यों के निजी बिल के तौर पर भी पारित होने के आसार नहीं है. और कौन सदस्य चाहेगे की भ्रष्टाचार मिटे, घाटा उन्हें भी हो सकता है.

अन्ना के सामने रास्ता कठिन है. एक दायरे (सिविल सोसाइटी) में रह कर कोई आन्दोलन नहीं हो सकता है. जे पी और वि पी , हाल में भ्रष्टाचार के विरूद्ध योद्धाओं ने, युवाओं के बीच जाकर ही हुंकार कर बढे और विजयी बने.सबसे महत्वपूर्ण विषय है की सिविल सोसाइटी द्वारा सामाजिक न्याय पक्ष को साथ नहीं ले सकने से एक बड़े तपके इस मुहीम से नदारद है और इसका फायदा सरकार ले रही है.

हम यह तहे दिल से चाहते हैं और हमारी इच्छा है की अन्ना की मुहीम कामयाब हो और एक सशक्त लोकपाल बने जिससे सुरसा जैसे मुह फाड़े भ्रष्टाचार पर लगाम लगे. इसके लिए आवश्यक है की या तो अन्ना अपने मुहीम को पैना बनाये या संसद सदस्यों के द्वारा प्रस्तुत बिल में व्यापक फेर बदल कर इसे शिखंडी के जगह अर्जुन का तीर बनाया जाये.