"There is equality only among equals. To equate unequals is to perpetuate inequality." ~ Bindheshwari Prasad Mandal "All epoch-making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-~ADOLF HITLER.
About Me
- Suraj Yadav
- New Delhi, NCR of Delhi, India
- I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....
Saturday, August 13, 2011
कांगेस में फैसला किसका? नेतृत्व का संकट?
कांग्रेस का ही फैसला कहें की अन्ना हजारे को अनशन करने के लिए २२ शर्तों के साथ तीन दिन के लिए, मात्र ५- ६ हज़ार लोगों के साथ जे पी पार्क में इज़ाज़त देने का नाटक किया जा रहा है. सभी समझ रहे हैं कि अन्ना के अनशन की शानदार कामयाबी के लिए कांग्रेस आधार तैयार कर रही है.
दुष्यंत कुमार की चार लाइन हैं - हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिएइI
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिएईII
मैं इसलिए याद दिला दूं कि हिंदुस्तान के लोगों, और खास तौर से युवाओं की फितरत है की अगर उन्हें लगता है की किसी के साथ अन्याय हो रहा है तो वे पूरे ताक़त के साथ उसके साथ खड़े हो जाते हैं. मुझे याद आ रहा है कि २४ जुलाई, १९८७ को वी पी सिंह कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध दिल्ली विश्वविद्यालय में सिंहनाद आयोजित किया गया था. २३ जुलाई के शाम को दिल्ली विश्वविद्यालय के ही सेंट स्टीफंस कालेज के छात्रावास में प्राचार्य जॉन हाला द्वारा अनुमति नहीं दिए जाने पर, वार्डेन प्रो दिवेदी द्वारा अपने आवास पर परिचर्चा पर राजा साहेब को बुलाये थे. कांग्रेस के छात्र इकाई के कुछ अति उत्साही गुट ने वी पी सिंह पर पेट्रोल बम से हमला किया जिसमें वे बाल-बाल बचे. मुझे लगा कि अगले दिन दिल्ली विश्वविद्यालय कि सभा में कोई नहीं आयेगा. परन्तु अगले दिन जो सभा हुई वह दिल्ली विश्वविद्यालय कि इतिहास में अभूतपूर्व था. सभा में धन्यवाद ज्ञापन देते हुए मैंने कहा कि "...हार कर मजबूर होकर यह सभा हमें वहीँ करनी पड़ रही है जहाँ पहली पर जे पी ने सभा की थी जिसके परिणामस्वरुप श्रीमती गाँधी सत्ता से हटी थीं. आज के सभा के परिणाम यही होगा कि राजीव गाँधी सत्ता से हटेंगे और भावी प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का मैं स्वागत करता हूँ."
अब जे पी पार्क में कई शर्तों के साथ अगर अन्ना हजारे को इजाजत दी जा रही है , तो यह तय है की हिंदुस्तान की इतिहास में एक मोड़ आने वाला है! कहने का अर्थ यह है कि कांग्रेस के फैसला लेने वाले अन्ना हजारे से डर कर कई तरह कि बाधाएं खड़ी कर रहें हैं, जो निश्चित तौर से लोगों को अन्ना के प्रति सहानुभूति बढ़ाएंगे और उनके मांगों को लोगों के बीच में और अधिक लोकप्रिय करेंगे. एक वकील बेशर्मी से कानून का ज्ञान बघार रहें हैं, और दूसरा वकील दलीलें देते हुए आम जनता को मूर्खों कि जमात समझ रहें हैं. परन्तु क्या कांग्रेस में वकीलों की ही चल रही है?
हम सब जानते हैं के कांग्रेस का अर्थ है सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी - यानि आदेश इन्ही का चलेगा. परन्तु सच्चाई शायद यह नहीं है. कांग्रेस में दो- तीन सत्ता के केंद्र हैं. सोनिया और राहुल तो औपचारिक (De jure) सत्ता के केंद्र हैं ही, दुसरे वास्तविक (de facto) सत्ता पंजाबी खत्रियों के एक गुट के पास है जो प्रधान मंत्री डा.मनमोहन सिंह के इर्द-गिर्द हैं. इस गुट में गृह मंत्री चिदंबरम भी शामिल हैं. अन्य मंत्री हैं - डा. मनमोहन सिंह का खासम-खास कपिल सिबल, सूचना और प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया.
अब जो यह गुट हैं उनके फैसले कैसे प्रभावी हैं यह उन सभी मसलों पर दीखता है जिन्हें जन-विरोधी फैसले कहा जा सकता है, या यूं कहें की जिससे कांग्रेस की किर-किरी हुई हो. उधाहरण के लिए अन्ना हजारे से बात-चीत के बीच में ही एक शिखंडी बिल प्रस्तुत किया जाना, पहले बाबा रामदेव से समझौता और फिर रामलीला मैदान में उनके शिविर में हमला इत्यादि.
परन्तु भाजपा कुछ बोले तो अच्छा नहीं लगता है, खास तौर से अन्ना के समर्थन में उन्हें आने का नैतिक आधार ही नहीं है. सभी समझते हैं की लोकपाल विधेयक पर उनका रुख क्या है. और जब गुजरात में सही बात कहने के लिए IPS अधिकारीयों के विरुद्ध कार्यवाई हो रही है तो ताक़तवर लोकपाल को ये कैसे बर्दाश्त करेंगे? कपिल सिबल के तार जातिगत आधार पर ही भाजपा से भी जुड़े हुए हैं.
यह आम धरना है की देश में आपात काल जैसे हालत बन रहे हैं. यह संयोग ही है की आपात काल के पहले-दौर में भी संजय गाँधी के साथ अम्बिका सोनी का योगदान था. अब करेला पर नीम चढ़ा हैं कपिल सिबल जैसे धुरंधर जो कभी भी आम जनता से जुड़े नहीं रहे हैं. पैसे के लिए किसी भी मुअक्किल के लिए काम करना ही इनका ईमान है. दरअसल इनके जैसे लोगों का राजनीती में पदार्पण लालू प्रसाद जैसे नेताओं के पाप से ही हुआ है. कपिल सिबल चारा घोटाले में लालू प्रसाद के वकील थे. फीस में राज्य सभा की सदस्यता लालू प्रसाद से ली और बाद में कांग्रेस ज्वाइन कर लिये. यह जो 'ब्लेकमेल' का आरोप अन्ना हजारे पर यह लगते हैं , यह खुद उसमें माहिर हैं और इसके भुक्तभोगी शोइब इकबाल हैं जो चांदनी चौक चुनाव-क्षेत्र से सिबल के विरुद्ध लोजपा के प्रत्यासी थे, और जिन्हें रास्ते से हटाने के लिए हर कुकर्म सिबल ने किये.
अन्ना हजारे की मुहीम कांग्रेस के विरुद्ध है या कांग्रेस खामखा भ्रष्टाचारियों का संरक्षक बन रही है. दोनों वकील - चिदंबरम और सिबल - अपराधियों का ही बचाओ करते रहें हैं और अब भी वही कर रहे है. बाबा रामदेव प्रकरण में इन्होने दिखा दिया की विदेशों में काला धन जमा करने वालों को डरने ज़रुरत नहीं - कांग्रेस का हाथ, सदा उनके साथ! या बताया जा रहा है की समय रहते भैया स्विस बैंक से पैसे निकाल लो!
निष्कर्ष यह है की अगर नुकसान कांग्रेस का होता है तो इसके भुक्तभोगी सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी होंगे. डा. मनमोहन सिंह अपनी पारी खेल चुके हैं. अब खेल बिगर जायें तो उनका या सिबल का क्या बिगड़ेगा? जो बिगड़ेगा वो राहुल गाँधी का ही होगा, क्योंकि उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में कांग्रेस को सत्ता में लाने का उनका सपना ज़रूर बिखर जायेगा. सिबल तो तुरंत दूसरा मुअक्किल दूंढ़ लेंगे. नुकसान ऐसे तमाम कांग्रेसियों का है जो निष्ठां से पार्टी के लिए काम करते हैं.
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"आरक्षण" पर संयम बरतने की नसीहत देने वाले कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी, आज अन्ना हजारे के अनशन को लेकर विचलित होकर किसी जस्टिस सावंत के वर्षो पुरानी राम-कहानी सुना रहे थे. इधर जातिगत आधार पर प्रधान मंत्री डा.मनमोहन सिंह के सत्ता में खासम-खास कपिल सिब्बल व अम्बिका सोनी भी अन्ना हजारे को लेकर व्यथित थे. अन्ना को लेकर सवाल उठाने का अंदाज़ ऐसा की वैसे पाकिस्तान के बारे भी नहीं बोलते हैं. मोहतरमा अम्बिका सोनी कह रही थी की आज तक किसी ने Holy Cow डा. मनमोहन सिंह के ऊपर प्रश्न -चिन्ह नहीं लगाये. लेकिन खुद अन्ना हजारे पर सैकड़ो प्रश्न खड़ी कर रही थी. अब उन्हें कौन समझाए की मूर्ति की तरह भ्रष्टाचार होते देखना भ्रष्टाचार करने से भी निरशाजनक है, और भ्रष्टाचार के लिए भ्रष्ट लोगों से वह अधिक दोषी है. अब देखते हैं की सिब्बल अन्ना को डरा पाते हैं की नहीं - अनशन कांड की शुरुआत होती है की नहीं...अगली कड़ी में देखेंगे हम लोग!
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