"There is equality only among equals. To equate unequals is to perpetuate inequality." ~ Bindheshwari Prasad Mandal "All epoch-making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-~ADOLF HITLER.
About Me
- Suraj Yadav
- New Delhi, NCR of Delhi, India
- I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....
Thursday, August 30, 2012
संसद नहीं चलने से नुकसान बड़ा या घोटालों पर हंगामा ज़रूरी?
मैं पहले स्पष्ट कर दूं की मैं भा जा पा का पक्षपोषक नहीं हूँ. आज कल कई चैनल और उनके कर्यक्रम में बहस करने वाले हमें यह आंकड़ा देते हैं की एक दिन संसद नहीं चलता है तो देश का ७.५० करोड़ रुपये का नुकसान होता है. समझ में नहीं आता है की वे क्या कहना चाहते है या संसदीय प्रणाली को क्या समझते हैं? उन्हें शायद लगता है की जैसे बैंक या कोई दफ्तर बंद रह गया हो और लोगों का काम रुक गया हो. संसद में काम रोकना भी एक प्रस्ताव के तहत लाया जाता है. परतु कुछ बेहद संवेदनशील मुद्दे होते हैं, जैसे अभी हुआ कोयला घोटाला जिसमें देश के संवैधानिक संस्था, भारत के महालेखाकार (CAG) के अनुसार १,८६,००० करोड़ रूपया का नुकसान हुआ है. अब सरकार इसे मानती ही नहीं और कहती है की "शुन्य-नुकसान" हुआ है. सरकार विवादास्पद कोयला आवंटन भी ख़ारिज नहीं कर रही है और कहती है की वह बहस के लिए तैयार है. अब इसमें बिना कोई कार्यवाई किये, बहस क्या हो? तो संसद में हंगामा होना लाजिमी है. अब रोजाना संसद के नहीं चलने के कारण हुए रुपये का नुकसान देखते हुए, क्या सांसद चुप रहें? और प्रधान मंत्री या मंत्री जो वेतन लेते हैं, और फिर भी काम करना तो दूर, घोटाले करते हैं और देश के राजस्व का नुकसान करें, उसका क्या?
अब कोयला घोटाले में ही देखिये, कांग्रेस को मुश्किलों में बचाने वाला समाजवादी, वाम दल और तेलुगु देशम पार्टी भी कल यानि ३१ अगस्त, २०१२ को, संसद के बहार धरने पर बैठेंगे. हो सकता है कुछ चैनल यह भी गिननें लगे धरने पर बैठे सांसदों का एक दिन का कितना वेतन था, और उसे देश के नुकसान में जोड़ने लगें. फिर इसको क्या कहेंगे? ज़रुरत है की देश को हो रहे वृहत नुकसान नहीं हो, और इसे रोकने के लिए अगर संसद को रोकना पड़े, तो वह भी सही.
हमें जुर्म सहने की आदत न होती,
तो रहबर हमारे लूटेरे न बनते!
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