उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को चिट्ठी लिखी जिसमें कहा कि," मैं भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूं। मैं पिछले लगभग 30 साल से बीजेपी से जुड़ा रहा हूं और पार्टी के विभिन्न पदों पर रहा हूं। लेकिन आज जिस तरह किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है, मैं उससे आहत हूं।"
परन्तु शाम को अपना इस्तीफा वापस ले लिया है। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि,"मैं पार्टी का निष्ठावान कार्यकर्ता था, हूं और रहूंगा।"
इस पूरे प्रकरण में मुझे 1987 -89 का दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव याद आ रहा है।
छात्र संघ अध्यक्ष पद के लिए नरेंद्र टंडन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी थे और किरण बेदी नार्थ दिल्ली की डीसीपी थीं। चुनाव के पूर्व संध्या पर प्रचार के दौरान रात के करीब 11-12 बजे कथित तौर पर कांग्रेस छात्र इकाई NSUI के अपराधिक तत्वों ने नरेंद्र टंडन को घेर लिया और एक खंजर से ठीक उनके ह्रदय के नीचे वार कर उसे आर-पार कर दिया। नरेंद्र गंभीर रूप से घायल थे और तब मुझे किरोड़ीमल कॉलेज में इसकी सूचना हमें देर रात को मिली। इस बीच उन दिनों इंडियन एक्सप्रेस के संपादक अरुण शौरी ने स्वयं नरेंद्र टंडन को अस्पताल में दाखिल करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। नरेंद्र अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ रहे थे और सवेरे चुनाव के वोटिंग का समय आ गया।
चुकी घटना देर रात की थी तो सिर्फ "पंजाब केसरी" के लगभग 500 कॉपी में रात 2 बजे स्टॉप प्रेस कर यह समाचार छपी थी जिसकी सभी प्रति हमलोगों ने हॉकरों से खरीद ली थी। उन दिनों चैनल्स और मोबाइल का प्रचलन नहीं के बराबर था। अतः सवेरे सवेरे वोटरों को रात को हुए गुंडागर्दी और जानलेवा हमले की जानकारी देना चुनौती थी। किरण बेदी उन दिनों के गृह मंत्री सरदार बूटा सिंह के प्रभाव में थीं और उनकी कांग्रेस से अच्छे सम्बन्ध थे। डीसीपी होने के नाते अखबार में छपे समाचार की संवेदनशीलता को देखते हुए अखबार बांटने पर रोक लगा दी। नरेंद्र प्रिय मित्र थे और उनकी हालत के बारे में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों को सूचित करना मुझे नैतिक जिम्मेदारी लग रही थी जिसके बारे में मैं भावुक भी हो गया था। पुलिस से लुका-छिपी खेलते हुए किरोड़ीमल कॉलेज, हिन्दू कॉलेज, हंसराज कॉलेज, रामजस कॉलेज, मिरांडा हाउस आदि में अखबार बाँट दिया और छात्रों को रात की घटना की जानकारी हो गयी। इस बीच किरण बेदी हमलोगों को अनेक बार एरेस्ट करने की चेतावनी दे चुकी थी।
खैर, उस चुनाव में नरेंद्र टंडन भारी मतों से दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए। ठीक होकर छात्र संघ के कार्यभार को सँभालने में नरेंद्र टंडन को तीन-चार महीने लग गए, और इस बीच विद्यार्थी परिषद की ओर से छात्र संघ गतिविधियों की देख रेख का भार मुझे ही मिला था।
परन्तु उन दिनों की याद का प्रभाव किरण बेदी के बारे में हमारे राय पर ज़रूर है। और मुझे आश्चर्य नहीं है जब आवेश में नरेंद्र टंडन ने कल बयान दिया था कि,"जिस किरण बेदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं पर निर्ममता से डंडे बरसाए थे, ना जाने कितने कार्यकर्ताओं के सिर फटे, टांगे टूटी और वो किरण बेदी आज हम पर राज करेगीं।"
लेकिन अच्छा है की मामला टूल पकड़ने से पहले सुलझ गया है।
(तस्वीर में भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्री श्री जगत प्रकाश नड्डा जी , दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र टंडन के साथ मैं (सूरज यादव).
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