



दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र और शिक्षक फिर सड़क पर आने को मजबूर है। कारण नरेंद्र मोदी की सरकार आने से देश 'कांग्रेस मुक्त भारत' बनने की दिशा में कदम तो बढ़ाया पर असल में देश अभी भी कांग्रेस-नीत भारत ही है।
पिछले वर्ष ही छात्र-शिक्षक संघर्ष के दबाब में सरकार ने चार -साल के बेसिरपैर की पाठ्यक्रम (कोर्स) FYUP को दिल्ली विश्वविद्यालय से हटाया। अब फिर से तथाकथित "सुधार" के नाम पर उसी घटिया कोर्स को तीन वर्ष के ढाँचे में सीबीसीएस (CBCS) के नाम पर थोपा जा रहा है। इससे न विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा मिलेगी और न ही वे रोज़गार के लिए तैयार हो सकेंगें।
इस बार देश के सभी कॉलेज और विश्वविद्यालय में जुलाई 2015 से ही चॉइस बेस्ड क्रेडिट सीस्टम (CBCS) लागू करने की घोषणा की गयी है।
इस तरह से देश में उच्च शिक्षा के स्तर को बेहतर बंनाने की जगह इसे विदेशी और निजी हाथों में सौंपने की तैयारी की जा रही है जिससे देश की उच्च शिक्षा के साथ साथ छात्र-छात्राओं की भविष्य के साथ खिलवाड़ होगी।
सीबीसीएस (CBCS) क्या है ?
दरअसल अमेरिका में 12 वीं के बाद अक्सर माँ-बाप बच्चों की शिक्षा के लिए बच्चों को उन्हीं के हाल पर छोड़ देते हैं। बच्चे नौकरी करने के साथ साथ 6 महीने तक पैसे इकठ्ठा कर या लोन लेकर निजी संस्थाओं से क्रेडिट लेते हैं और कई वर्षों में क्रेडिट को इकठ्ठा कर डिग्री लेते हैं। नतीजा साधारण अमरीकी विद्यार्थी का स्तर भारत के आम विद्यार्थी से कहीं नीचे रहता है। इसकी एक झलक हम तब देखते हैं जब अमरीका में नासा (NASA) सहित अनेक वैज्ञानिक, मैनजमेंट, सामाजिक शास्त्र के संस्थानों में भारत से शिक्षित कार्यरत हैं। पर पिछली कांग्रेसी सरकार और अब कांग्रेस-नीत मोदी सरकार उच्च शिक्षा का श्रेष्ठ केंद्र दिल्ली विश्वविद्यालय पर इसलिए लगातार कुठाराघात कर रही है क्योंकि साधारण फीस में यहीं लाखों विद्यार्थी अच्छी शिक्षा प्राप्त करते हैं और लाखों फीस लेने वाले निजी संस्थानों की बिजनेस चल नहीं रही है। इधर भारत जैसे माहौल में जहाँ मंत्री भी फ़र्ज़ी डिग्री ले आते हैं, वहां कई वर्षों में घूम घूम कर तथाकथित "क्रेडिट" से क्या डिग्री का हश्र होगा यह हम समझ सकते हैं। साथ ही अमरीकी व्यवस्था की अंधी नक़ल शिक्षा के बाजारीकरण के अलावे पी चिदंबरम, कपिल सिबल, सुषमा स्वराज आदि के पुत्र-पुत्री, भतीजा-भतीजी के शिक्षा के "एडजस्टमेंट" के भी कारण है।
इसलिए चॉइस यानि मनपसंद कोर्स चुनने की सहूलियत दरअसल उन्हीं को मिल पायेगी जो ऊँची फीस दे सकेंगे।
इसलिए सीबीसीएस (CBCS) का मक़सद:
* चॉइस के नाम पर सरकारी संस्थानों को प्राइवेट संस्थानों के अधीन बनाना।
* सरकारी संस्थानों को बर्बाद करके छात्रों को प्राइवेट संस्थानों में जाने के लिए मज़बूर करना।
* उच्च शिक्षा का बाजारीकरण करके इसको धंधा-कारोबार में बदलने का मंसूबा।
* औने-पौने वेतन शिक्षकों को ठेकेदारी (contractual) पर बहाल करके और ऊंची फीस लेकर निजी संस्थानों को मुनाफे का अवसर देना।
* जनता से टैक्स उसूल कर देशी विदेशी मुनाफाखोरों को फायदा पहुँचाने की साज़िश।
इस तरह कांग्रेस-नीत सरकार पुराने कांग्रेसी सरकार के रास्ते चल कर, जिस तरह पहले सरकारी स्कूलों और सरकारी अस्पतालोंको बर्बाद किया गया है, वैसे ही अब इनका अगला निशाना उच्च शिक्षा है।
कुल मिला कर जो फटीचर शिक्षा के लिए भी लाखों की फीस से सकेंगे (मजेदार बात है इसके लिए शिक्षा लोन भी उपलब्ध करा देतें हैं), वही अब शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे।
गरीब, देहात के नौजवान, महिलाओं, पिछड़े, दलित को नतीजन शिक्षा से बाहर करने की विदेशी प्रायोजित इस साज़िश को नाकाम करना हर देशभक्त का कर्तव्य है। इसके विरुद्ध दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (DUTA) के आंदोलन को अपना सहयोग और समर्थन दने की हमारे अपील पर विचार करें।
जय हिन्द।
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