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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Friday, September 16, 2016

जंजीर में न्याय :

देश की न्यायिक व्यवस्था चरमरा चुकी है।
न्यायमूर्ति जितेंद्र मोहन शर्मा द्वरा शहाबुद्दीन को बेल दी गई है। इस बेल के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में दो अलग अलग याचिकाओं द्वारा चुनौती दी जा रही है। नितीश अब जागे हैं, बीजेपी छाती पीट रही है। सुशील मोदी शहाबुद्दीन पर बोल रहा है, पर देश की न्यायिक व्यवस्था, जो अब केंद्र में भाजपा सरकार के अन्तर्गत है, पर कोई टिपण्णी नहीं कर रहा है। शाहबुद्दीन को सिर्फ इसलिए बेल मिल जाना की कोई प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं की गई के साथ यह भी आदेश आना चाहिए था की जिसकी जिम्मेदारी उस प्रक्रिया पूरी करने की थी, उसे इस गैरजिम्मेदारी के लिए सज़ा भी दी जानी चाहिए। बेल कैसे मिलता है यह कुछ "वकीलों" को ही नहीं, जो बेल ले चुके हुए हैं, उन्हें भी अच्छी तरह मालूम है।
मैं यहाँ दो अलग अलग हाई कोर्ट के व्यक्तिगत अनुभव बताना चाहता हूं।
एक हिस्ट्री शीटर, जिस पर दर्जनों हत्याएँ, फिरौती, लूट, गवाहों को मारने आदि का केस चल रहा है। हाई कोर्ट में उस का बेल मैटर आना था। इसके पहले उस नेता बने अपराधी के भाई को इस आधार पर बेल दिया गया की यह भाई व्यक्तिगत रूप से इन अपराधों में नहीं है, इसलिए इसे बेल दी जाती है और इस आधार पर उस हिस्ट्री शीटर को बेल नहीं दी जाएगी। इधर इस नामी बदमाश के बेल का विरोध के लिए तैयार कुछ एक्टिविस्ट "कंप्यूटर" द्वारा तैयार कॉज लिस्ट पर नज़र रखे हुए थे। परंतु अचानक वह केस लिस्ट पर उसी दिन के लिए सुनवाई पर आता है, और उस हिस्ट्री शीटर को इस आधार पर बेल मिल जाता है की इसी केस में इसके भाई को बेल दी गई है।
दुसरे जगह एक अन्य मामले में केस फाइल होता है।
5.2. 2016 : पहली सुनवाई।
4.3. 2016 : जज नहीं बैठे।
29.4.2016 : जज बदल गए : नोटिस जारी।
16.5.2016 : नोटिस जिन्हें था उन्होंने और समय माँगा।
15.7.2016 : जवाब नहीं दिया गया, 6 अक्टूबर की डेट दे दी गई।
19.7.2016 : चुकी मामला का तब तक कोई मतलब नहीं रह जाता, जल्द सुनवाई के लिए आवेदन: जिसे ख़ारिज कर दिया गया।
दरअसल, विवादो के निपटारे में असामान्य देरी के लिए, लंबित पड़े मामलो के लिए साथ ही साथ न्यायिक प्रक्रिया के गंदे या दोषपूर्ण प्रबंधन ही भारतीय न्यायिक व्यवस्था की पहचान है।
शीर्ष अदालत के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, 1 दिसंबर 2014 को सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या 64,919 है।
24 उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों के लिए उपलब्ध लंबित मामले क्रमश: 44.5 लाख और 2.6 करोड़ है। 24 उच्च न्यायालयों में लंबित 44 लाख मामले में से 34,32,493 दीवानी और 10,23,739 आपराधिक हैं।
न्याय में देरी, अन्याय हैI यह वादी जनता की दुर्दशा एवं बड़े पैमाने पर समाज के लिए कम सरोकार दिखाती है जिसका विनाशकारी परिणाम विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों को भुगतना पड़ता हैI
यह सर्वविदित है कि न्यायिक प्रक्रिया तथाकथित 'मेरिट'वालों के हाथों में है। अब इसके लिए जिम्मेदारी देश के संसद को लेनी होगी और देश में भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा की तरह भारतीय न्यायिक देव की स्थापना और संविधान अनुरूप व्यवस्था जब तक लागू नहीं होगी तब तक यह समस्या विकराल होती जाएगी।
और अगर न्याय की देवी के आँखों से पट्टी नहीं हटेगी तो बहुत देर हो जाएगी।

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