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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Sunday, May 28, 2017

महाराजा (एयर इण्डिया) की बिक्री : देश को अरबों का चूना !


3 साल की लूट बनाम 60 साल की!!
हम जान चुके हैं की आर्थिक दृष्टिकोण से मनमोहन सिंह की काँग्रेस सरकार और मोदी की भाजपा सरकार में कोई फ़र्क़ नहीं है।
अंतर सिर्फ इतना की देश और जनसाधारण के हितों से खिलवाड़ करने में नरेंद्र मोदी की सरकार अधिक घिनौनी, घृणित, घटिया और घातक है।
यह भी बड़ी सच्चाई है कि देश के अधिकतर सार्वजानिक प्रतिष्ठानों को बेचने के लिए उन्हें घाटे में लाना ज़रूरी होता है। घाटे में लाने वाले अधिकतर अफसर "मेरिटधारी" होते हैं, जो आरक्षण से नहीं आते और उनमें से अधिकांश पर भ्रष्टाचार के आरोप होते जो कभी साबित नहीं होते। जब इन्हें विनिवेश के नाम पर औने- पौने दाम में किसी कॉर्पोरेट को बेचा जाता है तो इन प्रतिष्ठानों पर हुए खर्च का एक छोटा हिस्सा भी सरकार को नहीं मिलता और तब टैक्सपेयर्स के पैसों को लूटने की बात कोई नहीं करता।
एयर इंडिया की स्थापना 1932 में जेआर डी टाटा ने टाटा एयरलाइंस के नाम से की थी। आज एयर इंडिया भारत की ध्वज वाहक एयरलाइन है। यह इंडिगो, जेट एयरवेज और स्पाइसजेट के बाद यात्रियों की दृष्टि से भारत की चौथी सबसे बड़ी घरेलू एयरलाइन है, मार्च 2017 तक 13% की बाजार हिस्सेदारी है। यह एयर इंडिया लिमिटेड, भारत सरकार की एक उद्यम है, और एयरबस और बोइंग विमान के एक बेड़े का संचालन करता है जिसमें 90 घरेलू और अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों की सेवा है।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, भारत में नियमित व्यावसायिक सेवा बहाल की गई और टाटा एयरलाइंस 29 जनवरी 1946 को एयर इंडिया नाम के तहत एक सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी बन गई। 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के बाद, 1948 में भारत सरकार द्वारा 49% एयरलाइंस का अधिग्रहण किया गया था। 1953 में, भारत सरकार ने एयर कॉरपोरेशन अधिनियम पारित किया और कैरियर में बहुमत हिस्सेदारी खरीद ली। कंपनी का नाम बदलकर एयर इंडिया इंटरनेशनल लिमिटेड रखा गया था और घरेलू सेवाएं पुनर्रचना के एक हिस्से के रूप में इंडियन एयरलाइंस को स्थानांतरित कर दी गई।
2000-01 में, एयर इंडिया के निजीकरण और 2006 से बाद के प्रयासों के लिए प्रयास किए गए, पर 2006 में NCP के मंत्री प्रफुल पटेल द्वारा इंडियन एयरलाइंस से किए गए विलय के बाद एयर इण्डिया को बड़ा नुकसान हुआ।
2006-07 में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के लिए संयुक्त नुकसान 7.7 बिलियन (120 मिलियन अमेरिकी डालर) थे और विलय के बाद यह मार्च 2009 तक 72 अरब (यूएस $ 1.1 बिलियन) तक पहुंच गया।
मनमोहन सिंह की सरकार और मंत्री प्रफुल पटेल के कार्यकाल में ही मार्च 2012 में एयर इंडिया में 32 हज़ार करोड़ रूपया का पंप किया। कल्पना कीजिये किसको कितनी कमीशन मिली होगी।
2013 में तत्कालीन नागर विमानन मंत्री अजित सिंह ने कहा था कि निजीकरण इस एयरलाइन के अस्तित्व की कुंजी है।परन्तु उस समय भाजपा और सीपीआई (एम) के नेतृत्व में विपक्ष ने सरकार के इस फैसले का पुरजोर विरोध किया और इसके विरुद्ध अरुण जेटली ने धुआंधार भाषण दिया।
11 जुलाई 2014 को एयर इंडिया स्टार अलायंस का 27 वां सदस्य बन गया। अगस्त 2015 में, यह कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाह्य वाणिज्यिक उधार में $ 300 मिलियन जुटाने के लिए सिटी बैंक और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। वित्त वर्ष 2014-15 के लिए वित्त वर्ष 2014-15 की तुलना में वित्त वर्ष 2014-15 की तुलना में वित्त वर्ष 2014-15 की तुलना में इसकी राजस्व, संचालन हानि और शुद्ध हानि ₹ 198 बिलियन (यूएस $ 3.1 बिलियन), ₹ 2.171 बिलियन (34 मिलियन अमेरिकी डॉलर) और ₹ 5.41 बिलियन (यूएस $ 84 मिलियन) थी, जो कि ₹ 147 बिलियन (यूएस $ 2.3 बिलियन), ₹ 5.138 बिलियन (यूएस $ 80 मिलियन) और ₹ 7.55 बिलियन (यूएस $ 120 मिलियन) है।
सरकारी नागर विमान सेवा उपक्रम एयर इंडिया ने पिछले वित्त वर्ष में 105 करोड़ रुपये का परिचालन लाभ का दावा किया था। ईंधन खर्च में कमी और यात्री संख्या में बढोतरी के साथ कंपनी ने दस साल में पहली बार परिचालन लाभ दिखाया। वित्तीय स्थिति सुधारने में लगी इस एयरलाइन को वर्ष 2014-15 में परिचालन कार्य में 2,636 करोड़ रुपये की हानि हुई थी। इसी दौरान इसकी आय घटकर 20,526 करोड़ रुपये रही, जो एक साल पहले 20,613 करोड़ रुपये थी. 2007 के बाद कंपनी पहली बार परिचालन लाभ में आई।
उधर, भारत के नियंत्रण एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने कहा था कि एयर इंडिया को पिछले वित्त वर्ष में परिचालन मुनाफे के बजाय वास्तव में 321.4 करोड़ रुपये का परिचालन घाटा हुआ। एयरलाइन ने इससे पहले वर्ष के दौरान परिचालन मुनाफा होने की जानकारी दी थी. कैग ने हालांकि, यह स्पष्ट किया कि इसमें आंकड़ों का कोई हेरफेर नहीं हुआ है बल्कि एयरलाइन ने जो आंकड़े रिपोर्ट किये हैं वह वास्तव में ‘घाटे को कम करके बताया गया है।
’इंडिगो और जेट एयरवेज के 15.4% बाजार हिस्सेदारी के बाद फरवरी 2016 तक, एयर इंडिया भारत में तीसरी सबसे बड़ी वायु वाहक है। .
अब, जेटली जी कहते हैं कि, "एयर इंडिया पर 50,000 करोड़ रुपये का कर्ज है, जबकि उसके विमानों का मूल्यांकन 20,000-25,000 करोड़ रुपये होगा. नागरिक विमानन मंत्रालय सभी संभावनाएं तलाश रहा है।" नागरिक विमानन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने पहले कहा था कि एयर इंडिया के कर्जो को कम करने की जरूरत है तथा इसमें वित्तीय बदलाव के लिए बैलेंस शीट के पुर्नगठन की जरूरत है। सिन्हा ने कहा था, "एयर इंडिया में कॉरपोरेट प्रशासन और बेहतर प्रबंधन को लागू करने की भी जरूरत है।इसके अलावा यह भी देखा जाना चाहिए कि एयर इंडिया की गैर-महत्वपूर्ण संपत्तियों का किस प्रकार से सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया जा सकता है।"
दरअसल, यह लूट है। और इसे रोकना है।

Saturday, May 27, 2017

#EC का मिशन इम्पॉसिबल : #EVM हैकिंगः #NCP का चैलेंज लेने मतलब :

3 जून को #EVM स्वयंवर है
सभी दल आमंत्रित है ,
शर्त है #दुल्हन को बिना छुए माँ बनाना है।
देश में लोकतंत्र के अधिकृत अभिरक्षक #ECI द्वारा इस तरह का ड्रामा ठीक नहीं नहीं।
कांग्रेस ने कहा है की चुनौती देने वालों को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के मदरबोर्ड सहित प्रमुख पार्ट पुर्जे तक पहुंच की अनुमति दी जानी चाहिए।
हम सभी जानते हैं कि हमारे फोन का ब्लूटूथ ऑन नहीं हो तो उस तक भी कोई पहुँच नहीं सकता, फिर यह तो #ईवीएम मशीन है।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) से छेड़छाड़ करके दिखाने के चुनाव आयोग के चैलेंज को एनसीपी (NCP) को छोड़कर किसी भी राजनीतिक दल ने आवेदन नहीं किया है। चुनाव आयोग की ओर से राजनीतिक दलों को शुक्रवार शाम पांच बजे तक एक्सपर्ट के नाम देने का समय दिया था।
चुनाव आयोग के प्रवक्ता ने बताया कि एनसीपी चुनाव आयोग की ईवीएम चुनौती में भाग लेने की इच्छुक एक मात्र पार्टी है और इसके अलावा किसी राजनीतिक दल ने आवेदन नहीं किया है। वहीं चुनाव आयोग ने गुरुवार देर शाम को बताया था कि अब तक किसी पार्टी ने किसी जानकार को ईवीएम चुनौती स्वीकार करने के लिए नामित नहीं किया है। बीती 20 मई को आयोग ने घोषणा की थी कि 3 जून से ईवीएम चैलेंज हो रहा है जिसके लिए 26 मई तक पार्टियां तान जानकारों को नामित कर सकती हैं।



प्रश्न यह है कि क्या एनसीपी वाक़ई में हैकिंग के लिए सीरियस है? या एनसीपी चुनाव आयोग के लिए "अप्रूवर" बनने वाली है?
इसका जवाब श्री शरद पवार जी हैं।
पवार साहब राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार हैं। अगर एनसीपी EVM हैक करने की ताक़त रखता है तो बीजेपी पवार साहब को राष्ट्रपति मानते हुए हैकिंग करने से एनसीपी को रोकेगी। अगर एनसीपी यह कहने के लिए भी कि EVM हैक नहीं हो सकता, यह चैलेंज स्वीकार की है, तो भी बीजेपी पवार साहेब को राष्ट्रपति पद के लिए दी जाने वाली प्रस्ताव पर सहानुभूति पूर्वक विचार करेगी।
दरअसल, शरद पवार जी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प से भारत के किसी नेता से अधिक नजदीक हैं और यह मोदी जानते हैं।

Friday, May 26, 2017

मोदी सरकार के तीन साल : जनता का खून जला है, खून खौलेगा तो ?

मोदी सरकार के तीन साल असल में मनमोहन सरकार पार्ट 3 है।
एक अहम् फ़र्क़ ज़रूर है, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता पर मोदी सरकार का हमला अब कोई छुप छुपा कर नहीं, खुले आम है।
पर मैं आर्थिक नीति की बात कर रहा हूँ।
कोई माई का लाल एक फ़र्क़ दिखा दे, मनमोहन और मोदी के आर्थिक नीतियों में। डिग्री का फ़र्क़ ज़रूर है। अब आम जनता के हितों पर कुठाराघात अधिक पैने तरीके से है, और अंबानी अडानी के दौलत को दिन दुगुना रात चौगुना 56 इंच का सीना ठोक कर किया जा रहा है। जनाब वज़ीरे आला देश विदेश परदेश सब जगह अम्बानी अडानी को साथ लेकर घूमें। पीएम कम और एजेंट ज्यादा थे। बांग्लादेश को करोड़ों डॉलर इसलिए दिए कि वे अडानी के पॉवर प्रोजेक्ट का कैश पेमेंट करें।
सरदार जी इतने बेशर्म नहीं थे।
आधार कार्ड पर मोदी ने सुरक्षा लेकर गंभीर सवाल उठाये, और अब आधार कार्ड लेकर नाँच रहें हैं। मनमोहन सिंह और आधार का मजाक उड़ाते मोदी का वीडियो ज़रूर देखें। अब मोदी सरकार ने हर योजना के लिये आधार जरूरी कर दिया है। रोज आधार के डाटा को कॉर्पोरेट को लीक कर रहें हैं।
2005 में 500 - 1000 रुपये नोट बंद करने का मनमोहन सरकार के प्रस्ताव का भाजपा ने विरोध किया, और फिर अब #नोटबंदी का खेल खेला। उसमें भी अम्बानी को फायदा। '#जियो' सिम पर आधार कार्ड मांगना और फिर पुराने नोट को बदलने के लिए आधार कार्ड का फोटोकॉपी। काफी छुटभैये जैसे काम करके अम्बानी को फायदा पहुँचाया और दावा की काला धन को समाप्त कर रहें हैं, अलगावादियों और आतंकवादियों को पैसे नहीं मिलेंगें। थोथे दलील। ढाक के तीन पात।
किसानों के क़र्ज़ माफ़ी में भारी दिक्कत, परन्तु कॉर्पोरेट के अरबों रुपये माफ़ किया। नतीजा यह है कि तीन साल में कई गुना अधिक किसानों ने खुदकशी की, कर्ज और भुखमरी से परेशान हो कर।
विजय माल्या जैसे मालामाल, किसान तंगहाल।
मोदी ने पहले #मनरेगा को विफलताओं की स्मारक, #GST को घातक और #एफडीआई को देश विरोधी बताया था।
आज मनरेगा में पहले से ज्यादा पैसा, #एफडीआई देश हित में और #GST से सारे पाप धुल गये बताये जा रहे हैं।
मोदी जो चाय पर चर्चा में लोगों को बताता था कि देश के बाहर इतना काला धन है कि वह आ जाये तो हर एक के खाते में 15-15 लाख आ जायें।
अब सुप्रीम कोर्ट के कहने के बावजूद उन काले धन वालों के नाम तक सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाये जिनकी सूचि सरकार के पास मौजूद है।
मोदी माँ बेटे की सरकार को जम कर कोसता था कि उसकी सरकार आते ही सारे भ्रष्टाचारी कांग्रेसी जेल में होंगे।
पर तीन साल में एक कांग्रेसी का एक भी कुत्ता तक को जेल न भेजा जा सका, उल्टे सारे भ्रष्टाचारी अपनी पार्टी में ले कर उन्हें पवित्र घोषित कर दिये हैं।
यहाँ मैंने आतंकवाद और चीन पाकिस्तान के हाँथ देश के नितन्तर हो रहे अपमान का जिक्र नहीं कर रहा हूँ। इस पर अलग से चर्चा ज़रूरी है।
दरअसल मनमोहन या मोदी सरकार को नहीं चलाते। चलाते हैं अंतराष्ट्रीय पूँजी के मालिक अमेरिका, वर्ल्ड बैंक, IMF आदि। ये तो एजेंट हैं। अंतरष्ट्रीय पूँजी अलग अलग समय में मुक्त व्यापार, ग्लोबलाइजेशन आदि के नाम से नियम बना कर अन्य देशों पर यह कह कर थोपते हैं कि "तुम्हारे फायदे में है"। समस्त एजेंट अर्थशास्त्री, पार्टी और मनमोहन मोदी जैसे जैसे नेता इसका प्रचार करते हैं, अमल में लाते हैं।
इसलिए सेट टॉप बॉक्स, #GST, #नोटबंदी, #कैशलेस, #FDI, #किसानों_पर_टैक्स, स्वास्थ्य व शिक्षा का निजीकरण, उच्च शिक्षा का बाजारीकरण, #FYUP या #CBCS, आदिवासियों के जल, ज़मीन, जंगल पर कॉर्पोरेट के लिए कब्ज़ा आदि नीतियाँ मनमोहन और मोदी दोनों के हैं।
इसके विपरीत मोरारजी देसाई, चौ चरण सिंह, वीपी सिंह, देवेगौडा आदि की तथाकथित कमजोर सरकारें ही जनहित और देशहित की आर्थिक नीतियाँ को लागू किये। इंदिरा गाँधी 1971 से पहले कमजोर स्थिति में थीं अतः बैंक राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स को समाप्त करना आदि नीतियों पर सत्ता में आते अमल कीं।
देश की स्थिति अब फिर एक ऐसी सरकार की मांग कर रही है।
#नोटबंदी, #उच्च_शिक्षा पर निशाना, #जेएनयू, #बेरोजगारी, #सहारनपुर, #सुकमा, #ईवीएम, #सीमा_पर_शहादत आदि से जनता का खून जला है, खून खौलेगा तो सही।
निसंदेह सोशल मिडिया क्रांति का एक साधन होगा।
#मोदी_सरकार_तीन_साल_जनता_परेशान_बदहाल

Thursday, May 25, 2017

"युद्ध" या फिक्स्ड मैच !!

'राष्ट्रवादी' नारों के बीच ये अजीबोगरीब "जंग" चल रहा है भारत पाकिस्तान में !
दोनों ओर से वीडियो जारी की जाती है, और उसे दोनों तरफ से 'फर्जी' कहा जाता है।
दोनों देश 'शांति' के समय एक दुसरे पर किये गए गोलाबारी से नुकसान को ख़ारिज करते हैं, जबकि अमूमन शांति के समय इस तरह की क्रिया को अंतराष्ट्रीय फोरम पर उठाया जाता है जिससे हमलावर राष्ट्र की चौतरफा निंदा हो।
परन्तु यह सच्चाई है कि हमारे फौजी रोज शहीद हो रहें हैं।
और हमारे मंत्रीगण 'सिर्फ' निंदा करते हैं।
यह समझना होगा कि 'युद्ध' की घोषणा करना एक जटिल स्थिति है, जिसके लिए क्या हम तैयार है ?
मोदी सरकार जनता को हाशिये पर रख कर कॉर्पोरेट के कभी न मिटने वाली दौलत की भूख को पूरा करने में लगी हुई हैं।
मोदी और नवाज़ की दोस्ती में सज्जन जिंदल को फायदा पहुँचाने का रेस को अंतराष्ट्रीय स्तर पर सब जानते हैं।
फिर क्या यह तथाकथित गोला बारी सिर्फ जनता को दिखाने के लिए WWF कुश्ती है, जिसमें कहीं न कहीं हमारे किसी देशवासी के घर पर मातम मनाया जा रहा है?
संभव है भारत पाकिस्तान में 'युद्ध' ज़रूर होगा, पर तब यह मोदी और उसके सरकार की गिरती साख को बचाने के लिए होगा, देश और उसकी जनता के लिए नहीं।
जय हिन्द।