एक अहम् फ़र्क़ ज़रूर है, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता पर मोदी सरकार का हमला अब कोई छुप छुपा कर नहीं, खुले आम है।
पर मैं आर्थिक नीति की बात कर रहा हूँ।
कोई माई का लाल एक फ़र्क़ दिखा दे, मनमोहन और मोदी के आर्थिक नीतियों में। डिग्री का फ़र्क़ ज़रूर है। अब आम जनता के हितों पर कुठाराघात अधिक पैने तरीके से है, और अंबानी अडानी के दौलत को दिन दुगुना रात चौगुना 56 इंच का सीना ठोक कर किया जा रहा है। जनाब वज़ीरे आला देश विदेश परदेश सब जगह अम्बानी अडानी को साथ लेकर घूमें। पीएम कम और एजेंट ज्यादा थे। बांग्लादेश को करोड़ों डॉलर इसलिए दिए कि वे अडानी के पॉवर प्रोजेक्ट का कैश पेमेंट करें।
सरदार जी इतने बेशर्म नहीं थे।
आधार कार्ड पर मोदी ने सुरक्षा लेकर गंभीर सवाल उठाये, और अब आधार कार्ड लेकर नाँच रहें हैं। मनमोहन सिंह और आधार का मजाक उड़ाते मोदी का वीडियो ज़रूर देखें। अब मोदी सरकार ने हर योजना के लिये आधार जरूरी कर दिया है। रोज आधार के डाटा को कॉर्पोरेट को लीक कर रहें हैं।
2005 में 500 - 1000 रुपये नोट बंद करने का मनमोहन सरकार के प्रस्ताव का भाजपा ने विरोध किया, और फिर अब #नोटबंदी का खेल खेला। उसमें भी अम्बानी को फायदा। '#जियो' सिम पर आधार कार्ड मांगना और फिर पुराने नोट को बदलने के लिए आधार कार्ड का फोटोकॉपी। काफी छुटभैये जैसे काम करके अम्बानी को फायदा पहुँचाया और दावा की काला धन को समाप्त कर रहें हैं, अलगावादियों और आतंकवादियों को पैसे नहीं मिलेंगें। थोथे दलील। ढाक के तीन पात।
किसानों के क़र्ज़ माफ़ी में भारी दिक्कत, परन्तु कॉर्पोरेट के अरबों रुपये माफ़ किया। नतीजा यह है कि तीन साल में कई गुना अधिक किसानों ने खुदकशी की, कर्ज और भुखमरी से परेशान हो कर।
विजय माल्या जैसे मालामाल, किसान तंगहाल।
मोदी ने पहले #मनरेगा को विफलताओं की स्मारक, #GST को घातक और #एफडीआई को देश विरोधी बताया था।
आज मनरेगा में पहले से ज्यादा पैसा, #एफडीआई देश हित में और #GST से सारे पाप धुल गये बताये जा रहे हैं।
मोदी जो चाय पर चर्चा में लोगों को बताता था कि देश के बाहर इतना काला धन है कि वह आ जाये तो हर एक के खाते में 15-15 लाख आ जायें।
अब सुप्रीम कोर्ट के कहने के बावजूद उन काले धन वालों के नाम तक सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाये जिनकी सूचि सरकार के पास मौजूद है।
मोदी माँ बेटे की सरकार को जम कर कोसता था कि उसकी सरकार आते ही सारे भ्रष्टाचारी कांग्रेसी जेल में होंगे।
पर तीन साल में एक कांग्रेसी का एक भी कुत्ता तक को जेल न भेजा जा सका, उल्टे सारे भ्रष्टाचारी अपनी पार्टी में ले कर उन्हें पवित्र घोषित कर दिये हैं।
यहाँ मैंने आतंकवाद और चीन पाकिस्तान के हाँथ देश के नितन्तर हो रहे अपमान का जिक्र नहीं कर रहा हूँ। इस पर अलग से चर्चा ज़रूरी है।
दरअसल मनमोहन या मोदी सरकार को नहीं चलाते। चलाते हैं अंतराष्ट्रीय पूँजी के मालिक अमेरिका, वर्ल्ड बैंक, IMF आदि। ये तो एजेंट हैं। अंतरष्ट्रीय पूँजी अलग अलग समय में मुक्त व्यापार, ग्लोबलाइजेशन आदि के नाम से नियम बना कर अन्य देशों पर यह कह कर थोपते हैं कि "तुम्हारे फायदे में है"। समस्त एजेंट अर्थशास्त्री, पार्टी और मनमोहन मोदी जैसे जैसे नेता इसका प्रचार करते हैं, अमल में लाते हैं।
इसलिए सेट टॉप बॉक्स, #GST, #नोटबंदी, #कैशलेस, #FDI, #किसानों_पर_टैक्स, स्वास्थ्य व शिक्षा का निजीकरण, उच्च शिक्षा का बाजारीकरण, #FYUP या #CBCS, आदिवासियों के जल, ज़मीन, जंगल पर कॉर्पोरेट के लिए कब्ज़ा आदि नीतियाँ मनमोहन और मोदी दोनों के हैं।
इसके विपरीत मोरारजी देसाई, चौ चरण सिंह, वीपी सिंह, देवेगौडा आदि की तथाकथित कमजोर सरकारें ही जनहित और देशहित की आर्थिक नीतियाँ को लागू किये। इंदिरा गाँधी 1971 से पहले कमजोर स्थिति में थीं अतः बैंक राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स को समाप्त करना आदि नीतियों पर सत्ता में आते अमल कीं।
देश की स्थिति अब फिर एक ऐसी सरकार की मांग कर रही है।
#नोटबंदी, #उच्च_शिक्षा पर निशाना, #जेएनयू, #बेरोजगारी, #सहारनपुर, #सुकमा, #ईवीएम, #सीमा_पर_शहादत आदि से जनता का खून जला है, खून खौलेगा तो सही।

निसंदेह सोशल मिडिया क्रांति का एक साधन होगा।
#मोदी_सरकार_तीन_साल_जनता_परेशान_बदहाल
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