दरअसल शुरुआत ही पटना में गलत हुआ। सुशासन बाबू से तालमेल के बाद इस रैली को भ्रष्टाचार विरोध की जगह जनतंत्र रैली कहा गया। बिहार में सुशासन बाबू की भ्रष्टाचार से त्रस्त लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ की नितीश कुमार अन्ना की तारीफ कर यह सन्देश दे रहे थे की उन्ही के छत्रछाया में यह रैली हो रही है। अगर अन्ना आज नितीश के विरुद्ध हुंकार भरते तो बेशक उनका जादू चल जाता। वैसे, बिहार की जनता ने इतना ज़रूर याद रखा है की राज ठाकरे जैसे कलुषित बोल नेता के बिहार विरोधी अनर्गल प्रलाप का अन्ना ने विरोध नहीं किया।
टीम अन्ना के एक सदस्य के अनुसार , “यह तक साफ नहीं है कि यह रैली किसकी है और कौन इसे करवा रहा है। यह जनरल वी. के. सिंह की प्रायोजित रैली है या फिर उनके करीबी बिजनेसमैन इसकी फंडिंग कर रहे हैं। पहले पटना प्रशासन भी रैली के लिए सहयोग नहीं कर रहा था, अब वहां के मुख्यमंत्री खुद इसमें रुचि ले रहे हैं। इस रैली में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के नाम का भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।”
अन्ना के आन्दोलन का यह हश्र होने से हम जैसे भ्रष्टाचार विरोधियों को निराशा हुई है। जो आन्दोलन कांग्रेस जैसी पार्टी के आगे नहीं झुकी, जिसे स्वामी अग्निवेश(कपिल मुनि!) जैसे भीतरघातियों तोड़ने में कामयाब नहीं हुए, वह अपने ही टीम के अहम् और महत्वकांक्षा का शिकार हो गयी है।
इसमें मैं अरविन्द केजरीवाल का उतना ही दोष मानता हूँ जितना उन्होंने पार्टी की गठन की जल्दीबाजी में दिखाई। अगर रोज़ दिग्विजय सिंह जैसे नेता यह चुनौती दें की आप चुनाव लड़ कर आओ और तब कुछ बोलो, तो चुनाव के लिए तैयार होने के अलावे कोई चारा नहीं बच रहा था। लेकिन जब अरविन्द ने कांग्रेस के साथ-साथ भा जा पा को भी निशाने पर लिया तो उनका एजेंट किरण बेदी को यह नागवार गुजरा। अन्ना के आन्दोलन के बिखराव के लिए किरण बेदी ही अधिक जिम्मेदार है। जो पुलिस सेवा के दौरान इनके राजनैतिक ताल मेल से वाकिफ हैं, वे मुझसे ज़रूर सहमत होंगे।
किंतु इसी बीच यह खबर भी आ रही है कि टीम अन्ना का दिल्ली कार्यालय बंद हो रहा है। मकान मालिक महेश शर्मा के अनुसार , “हम अब नए किराएदार की तलाश कर रहे हैं। कार्यालय का अनुबंध भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन (रालेगण सिद्धि) के श्याम सुंदर के नाम से है। किरन बेदी इसमें गवाह बनी थीं। उन्होंने हमसे कहा कि 1 लाख रुपये सुरक्षा राशि में से 50 हजार रुपये इस महीने का किराया काट कर बाकी के 50 हजार का चेक बना कर उन्हें दे दें। हम दुविधा में हैं क्योंकि अनुबंध में किसी और का नाम है।”