About Me

My photo
New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Wednesday, January 30, 2013

एक आन्दोलन का बिखराव - इंडिया अगेंस्ट करप्शन से जनतत्र मोर्चा तक.....


भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अन्ना हजारे की जनतंत्र रैली को लेकर पटना की जनता पर कोई ख़ास उत्साह नहीं दिखा। स्थानीय गांधी मैदान में दोपहर बाद आयोजित इस रैली में बहुत ज़्यादा भीड़ नहीं दिखी।

दरअसल शुरुआत ही पटना में गलत हुआ। सुशासन बाबू से तालमेल के बाद इस रैली को भ्रष्टाचार विरोध की जगह जनतंत्र रैली कहा गया। बिहार में सुशासन बाबू की भ्रष्टाचार से त्रस्त लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ की नितीश कुमार अन्ना की तारीफ कर यह सन्देश दे रहे थे की उन्ही के छत्रछाया में यह रैली हो रही है। अगर अन्ना आज नितीश के विरुद्ध हुंकार भरते तो बेशक उनका जादू चल जाता। वैसे, बिहार की जनता ने इतना ज़रूर याद रखा है की राज ठाकरे जैसे कलुषित बोल नेता के बिहार विरोधी अनर्गल प्रलाप का अन्ना ने विरोध नहीं किया।

टीम अन्ना के एक सदस्य के अनुसार , “यह तक साफ नहीं है कि यह रैली किसकी है और कौन इसे करवा रहा है। यह जनरल वी. के. सिंह की प्रायोजित रैली है या फिर उनके करीबी बिजनेसमैन इसकी फंडिंग कर रहे हैं। पहले पटना प्रशासन भी रैली के लिए सहयोग नहीं कर रहा था, अब वहां के मुख्यमंत्री खुद इसमें रुचि ले रहे हैं। इस रैली में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के नाम का भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।”

अन्ना के आन्दोलन का यह हश्र होने से हम जैसे भ्रष्टाचार विरोधियों को निराशा हुई है। जो आन्दोलन कांग्रेस जैसी पार्टी के आगे नहीं झुकी, जिसे स्वामी अग्निवेश(कपिल मुनि!) जैसे भीतरघातियों तोड़ने में कामयाब नहीं हुए, वह अपने ही टीम के अहम् और महत्वकांक्षा का शिकार हो गयी है।

इसमें मैं अरविन्द केजरीवाल का उतना ही दोष मानता हूँ जितना उन्होंने पार्टी की गठन की जल्दीबाजी में दिखाई। अगर रोज़ दिग्विजय सिंह जैसे नेता यह चुनौती दें की आप चुनाव लड़ कर आओ और तब कुछ बोलो, तो चुनाव के लिए तैयार होने के अलावे कोई चारा नहीं बच रहा था। लेकिन जब अरविन्द ने कांग्रेस के साथ-साथ भा जा पा को भी निशाने पर लिया तो उनका एजेंट किरण बेदी को यह नागवार गुजरा। अन्ना के आन्दोलन के बिखराव के लिए किरण बेदी ही अधिक जिम्मेदार है। जो पुलिस सेवा के दौरान इनके राजनैतिक ताल मेल से वाकिफ हैं, वे मुझसे ज़रूर सहमत होंगे।


किंतु इसी बीच यह खबर भी आ रही है कि टीम अन्ना का दिल्ली कार्यालय बंद हो रहा है। मकान मालिक महेश शर्मा के अनुसार , “हम अब नए किराएदार की तलाश कर रहे हैं। कार्यालय का अनुबंध भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन (रालेगण सिद्धि) के श्याम सुंदर के नाम से है। किरन बेदी इसमें गवाह बनी थीं। उन्होंने हमसे कहा कि 1 लाख रुपये सुरक्षा राशि में से 50 हजार रुपये इस महीने का किराया काट कर बाकी के 50 हजार का चेक बना कर उन्हें दे दें। हम दुविधा में हैं क्योंकि अनुबंध में किसी और का नाम है।”

Saturday, January 26, 2013

गणतंत्र दिवस के कुछ दिलचस्प तथ्य-


गणतंत्र दिवस के कुछ दिलचस्प तथ्य-

1. गणतंत्र दिवस समारोह वास्तव में तीन दिनों के लिए रहता है! बीटिंग द रिट्रीट तीसरे दिन के अंत में आयोजित होता है जिससे इस समारोह का अंत होता है।

2. सम्विधान की सिर्फ दो मूल हस्तलिखित प्रतियाँ हैं - एक हिंदी और अंग्रेजी में लिखा है। वे भारत की संसद में हीलियम से भरे पेटी में संरक्षित किया गया है। यह संविधान calligraphed (हस्तलिखित) किया गया है और मुद्रित नहीं है. इस के केवल 100 प्रतियाँ फोटो lithographic हैं।

3. जबकि राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते है, प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर लाल किला से राष्ट्र को संबोधित करते है।

4. हमारा संविधान विश्व का सबसे लम्बा लिखित संविधान है जिसे आप एक दिन में नहीं पढ़ सकते हैं।

5. इसे तैयार करना आसन नहीं था। डा भीमराव आंबेडकर के नेतृत्व में भारतीय संविधान के मसौदे को तैयार करने के लिए संविधान सभा द्वारा बनायीं गयी। समिति 166 दिनों को दो वर्ष 11 महीने 18 दिनों की अवधि के दौरान बैठकें की जब अंतिम संसकरण तैयार हुआ। 24 जनवरी, 1950 को इसके हस्तलिखित प्रति पर सभी 308 (वास्तव में 284 सदस्य जिमें 15 महिलाएं थीं)सदस्यों ने हस्ताक्षर किये।

6. जब संविधान पर हस्ताक्षर किया जा रहा था, उस समय संसद भवन के बाहर बारिश हो रही थी, जिसे एक अच्छा सगुन माना गया।

7. कानूनी रूप से संविधान 26 जनवरी, 1950 को 10:18 बजे प्रातः से प्रचलन में आया। तब से संविधान को भारत पर शासन के लिए 1935 के इंडिया एक्ट की जगह 26 जनवरी 1950 से अमल में लाया गया जिसके बाद भारत एक सम्प्रफुता-सम्पन्न, जनतांत्रिक गणतंत्र बन गया।

8. सम्राट अशोक का सारनाथ शेर स्तम्भ जिसमें पहिया, बैल और घोड़े हैं, भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के रूप में भारत सरकार द्वारा 26 जनवरी, 1950 को अपनाया गया था.

9. बीटिंग द रिट्रीट के अंत में, 'Abide by me' गाना बजाया जाता जिसके बाद समारोह का अंत होता है।




Tuesday, January 15, 2013

कांग्रेस नीत यू पी ए की सोनिया-मनमोहन सरकार की जनता के साथ गुंडागर्दी की हद - अब आई आई टी के बाद आई आई ऍम की फीस तीन गुना बढाई। Fee hike in IIT & IIM.


कांग्रेस नीत यू पी ए की सोनिया-मनमोहन सरकार की जनता के साथ गुंडागर्दी की हद - अब आई आई टी के बाद आई आई ऍम की फीस तीन गुना बढाई।

केंद्र की कांग्रेस नीत यू पी ए सरकार सोनिया गाँधी की क्षत्र-छाया में और अमरीकी खवास सरदार मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बार-बार गरीब विरोधी फैसले ले रही है और लोगों के धैर्य पर मोहित हो रही है। इस बार जनता के पैसे पर बने आई आई टी की फीस 80% बढ़ाते हुए प्रति वर्ष 90,000/- रुपये से अधिक कर (पूरे कोर्स के लिए 3लाख,60 हज़ार से भी अधिक), अपनी पीठ थप-थपा रही है। गौरतलब है की मामूली पृष्ठभूमि के छात्र आई आई टी में कम्पीट कर भी जायें तो शिक्षा उनसे दूर हो, इसका भरसक प्रयास विदेशी प्रभाव में किया जा रहा है। इसी मकसद के तहत दिल्ली विश्वविद्यालय और जे एन यू जैसे जनसाधारण के पहुँच के केन्द्रीय शैक्षिक संस्थाओं को योजनाबद्ध तरीके से तहस-नहस किया जा रहा है, और उनके फीस को बढ़ाने का दवाब निरंतर जारी है। दिल्ली विश्वविद्यालय में तो पिछले तीन-चार वर्षों से कोई स्थायी नियुक्ति नहीं हुई है। यह सब उन विदेशी और निजी संस्थाओं के लिए किया जा रहा है, जिनमें अधिकांस मानकों से नीचे हैं, परन्तु मंत्रियों और यु जी सी अधिकारीयों की जेबे गरम करते हैं। आज महिलाओं के साथ दुराचार पर देश आहत है, परन्तु शिक्षा व्यवस्था का बलात्कार भी नेताओं द्वारा बदस्तूर जारी है।

कुछ ही दिनों पहले आई आई टी की फीस 80% बढ़ाने के बाद यह जनविरोधी सरकार ने जनता के पैसे पर बनायीं गयी सभी आई आई एम् (भारतीय प्रबंधन संस्थान) की फीस में 60,000/- रुपये से तीन गुना बढ़ा कर 1.80 लाख रुपये कर दी है। पूरे सत्र के लिए अब यह 7.4 लाख रुपये से बढ़ कर 16.6 लाख रुपये हो गयी है। इसके पहले 2008 में आई आई एम् ने 6 गुना बढ़ा कर 2 लाख से 12 लाख किया था। विश्व बेंक के दलाल अर्थशास्त्री भांड गैस, पेट्रोल, डीजल की मूल्यवृद्धि पर तो कहते हैं की 'लागत' तो जनता से वुसूल करना ही होगा। अब जनता के पैसे पर बनी ये संस्थान किसके बाप की लागत से बनी है की इसे आमीरों के चोंचले बनाने की कवायद जारी है।

और कहाँ गए वे महानुभाव जो 'आर्थिक आधार' की वकालत करते हैं? जब कभी सार्वजानिक संस्थानों में आरक्षण की बात आती है तो जाने कहाँ से समाज के जातिवादी शोषकों के आंख से 'आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों' के लिए घडियाली आंसू बहने लगते है। अब गरीबों के साथ हो रहे नाइंसाफी पर न तो इनका और न ही जातिवादी मीडिया का खून खौलता है? फेसबुक पर मैंने देखा की एक महाशय ने आई आई टी की फीस की वृद्धि के समाचार में सिर्फ उस अंश को चिन्हित किया था, जहाँ लिखा था की SC/ST वर्गों को फीस में छूट है। वाह रे क्रांतिकारी। सामान्य वर्ग के साथ अन्याय को दलितों के आर में छुपा कर कौन तीर मार लोगे? और कर ही क्या लोगे? सर पर मनमोहन वही कर रहा है जो वह जबान से नहीं कर सकता। और विपक्ष के जिन नेताओं के भरोसे हो, उममें इतना ही दम है की वे कितना भी भ्रष्ट साबित हों, अपने जाति के बूते ही 'पूर्ती' घोटाले से बचते रहेंगे।

मुझे अब भी भरोसा है की जनसाधारण के लिए विष उगलने वाली इस कालिया सांप रुपी मनमोहन सरकार को चुनाव में कोई पिछड़े वर्ग का ही कोई नेता नाथेगा, जैसा उत्तर प्रदेश में हुआ।

Monday, January 14, 2013

इलाहबाद (प्रयाग) में धरती पर सबसे विशाल जनसमूह सम्मलेन "महाकुम्भ मेला" शुरू - Mahakumbh Mela

गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर सोमवार तड़के मकर संक्रांति के अवसर पर पहले शाही स्नान के साथ ही धर्म विश्वास और आस्था के प्रतीक इस शताब्दी के दूसरे महाकुंभ का आगाज हो गया।

कुंभ कैंपस. बारह साल बाद आयोजित होने वाले सदी के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन कुंभ 2013 के पहले शाही स्नान यानी मकर संक्रांति के दिन इलाहाबाद विश्व का सबसे बड़ा जिला बना। सरकारी आंकड़ो के मुताबिक़ इस दिन संगम तट पर करीब एक करोड़ 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाएंगे। एक करोड़ से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्नान करवाने के लिए सारी तैयारियां कल ही पूरी कर ली गई थीं।

पहले शाही स्नान पर्व पर अखाड़ों के नागा संन्यासियों, महामंडलेश्वरों, साधु-महात्माओं सहित तकरीबन एक करोड़ दस लाख श्रद्धालुओं के संगम सहित गंगा और यमुना के विभिन्न घाटों पर डुबकी लगाने की संभावना है। सोमवार को सुबह 4 बजे से शुरू स्नान पूरे दिन जारी रहेगा।

आज सुबह सबसे पहले 5:45 बजे महानिर्वाणी के साधु-संत पूरे लाव-लश्कर के साथ शाही स्नान को निकले। इस तरह अखाड़ों के स्नान का क्रम शुरू हुआ। सभी अखाड़ों को बारी-बारी से स्नान के लिए चालीस मिनट का समय दिया दिया गया है।

मेले में श्रधालुओं के स्नान के लिए 29 कच्चे और पक्के घाट बनाएं गए है। पहले स्नान पर्व के लिए सेक्टर 1,2,3,5 और 11 के अलावा अन्य सभी सेक्टरो मे 29 घाट बने है।सेक्टर 3 का 70 फीसीदी हिस्सा संगम स्नान के लिए सुरक्षित रखा गया है। भीड़ बढ़ने की संभावना को देखते हुए प्रशासन ने उसे संभालने की सारी तैयारियां कर लेने का दावा किया है।

कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक- में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष इस पर्व का आयोजन होता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ होता है।

कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे सेइंद्रपुत्र 'जयंत' अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा।

इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि नेदेवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया।

अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं। अतएव कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है।

जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ पर्व होता है।





स्नान के लिए कुम्भ में जो दिन विशेषकर हैं वो इस प्रकार हैं
मकर संक्रांति - 14 जनवरी 2013
पौष पूर्णिमा - 27 जनवरी 2013
एकादशी स्नान - 6 फरवरी 2013
मौनी अमावस्या - 10 फरवरी 2013
वसंत पंचमी - 15 फरवरी 2013
रथ सप्तमी - 17 फरवरी 2013
माघी पूर्णिमा - 25 फरवरी 2013
भीष्म एकादशी - 18 फरवरी 2013
महा शिवरात्रि - 10 मार्च 2013.

Sunday, January 13, 2013

मकर संक्रांति Makar Sakranti

मकर संक्रांति -
मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगलनामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं।

माना जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिल गयी थीं।

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। यथा-
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात भारत से दूर होता है। इसी कारण यहाँ रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है।

सम्पूर्ण भारत में मकर संक्रान्ति विभिन्न रूपों में मनाया जाता है।

हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व १३ जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्नि पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं। बहुएँ घर घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी माँगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का भी लुत्फ उठाया जाता है।

बिहार में 14 जनवरी को मकर सक्रांति को तिल -सक्रांति के रूप में भी मनाया जाता है। सवेरे स्नानं-ध्यान कर दही-चुडा, तिलकुट, गुड आदि ही खाया जाता है।

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है। इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जाना जाता है। १४ जनवरी से इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है।१४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। और उत्तर भारत मे तो पहले इस एक महीने मे किसी भी अच्छे कार्य को अंजाम भी नहीं दिया जाता था। मसलन शादी-ब्याह नहीं किये जाते थे पर अब समय के साथ लोग भी काफी बदल गये हैं। १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है। बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवंरामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती केसंगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है।

महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -"लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला" अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो। इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं।

बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-"सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।"
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।

असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं।

राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।

Friday, January 11, 2013

12 जनवरी - स्वामी विवेकानंद की 150 वीं जयंती : राष्ट्रिय युवा दिवस।

विश्व के अधिकांश देशों में कोई न कोई दिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में स्वामी विवेकानन्द की जयन्ती , अर्थात १२ जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार सन् 1985 ई. को अन्तरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया। इसके महत्त्व का विचार करते हुए भारत सरकार ने घोषणा की कि सन १९८५ से 12 जनवरी यानी स्वामी विवेकानन्द जयन्ती का दिन राष्ट्रीय युवा दिन के रूप में देशभर में सर्वत्र मनाया जाए। स्वामी विवेकानन्द का जन्म १२ जनवरी सन्‌ १८६3 को कलकत्ता में हुआ था। इनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ था। इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे।

विवेकानंद वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। २५ वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिये। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का वेदान्तअमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वेरामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत " मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों " के साथ करने के लिए जाना जाता है ।

उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आनेवाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

गुरुदेव रवींन्द्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था, ‘‘यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएँगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।’’ रोमां रोलां ने उनके बारे में कहा था, ‘‘उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है। वे जहाँ भी गए, सर्वप्रथम हुए। हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता। वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देखकर ठिठककर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा, ‘शिव !’ यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे पर लिख दिया हो।’’

4 जुलाई, 1902 को बेलूर में रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए।

स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विषमता पर अनमोल वचन -
मेरी केवल यह इच्छा है कि प्रतिवर्ष यथेष्ठ संख्या में हमारे नवयुवकों को चीन जापान में आना चाहिए। जापानी लोगों के लिए आज भारतवर्ष उच्च और श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वप्नराज्य है। और तुम लोग क्या कर रहे हो? ... जीवन भर केवल बेकार बातें किया करते हो, व्यर्थ बकवाद करने वालो, तुम लोग क्या हो? आओ, इन लोगों को देखो और उसके बाद जाकर लज्जा से मुँह छिपा लो। सठियाई बुध्दिवालो, तुम्हारी तो देश से बाहर निकलते ही जाति चली जायगी! अपनी खोपडी में वर्षों के अन्धविश्वास का निरन्तर वृध्दिगत कूडा-कर्कट भरे बैठे, सैकडों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करनेवाले, युगों के सामाजिक अत्याचार से अपनी सारी मानवता का गला घोटने वाले, भला बताओ तो सही, तुम कौन हो? और तुम इस समय कर ही क्या रहे हो? ...किताबें हाथ में लिए तुम केवल समुद्र के किनारे फिर रहे हो। तीस रुपये की मुंशी - गीरी के लिए अथवा बहुत हुआ, तो एक वकील बनने के लिए जी - जान से तडप रहे हो -- यही तो भारतवर्ष के नवयुवकों की सबसे बडी महत्वाकांक्षा है। तिस पर इन विद्यार्थियों के भी झुण्ड के झुण्द बच्चे पैदा हो जाते हैं,जो भूख से तडपते हुए उन्हें घेरकर ' रोटी दो, रोटी दो ' चिल्लाते रहते हैं। क्या समुद्र में इतना पानी भी न रहा कि तुम उसमें विश्वविद्यालय के डिप्लोमा, गाउन और पुस्तकों के समेत डूब मरो ? आओ, मनुष्य बनो! उन पाखण्डी पुरोहितों को, जो सदैव उन्नत्ति के मार्ग में बाधक होते हैं, ठोकरें मारकर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा, उन्के हृदय कभी विशाल न होंगे। उनकी उत्पत्ति तो सैकडों वर्षों के अन्धविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है। पहले पुरोहिती पाखंड को ज़ड - मूल से निकाल फेंको। आओ, मनुष्य बनो। कूपमंडूकता छोडो और बाहर दृष्टि डालो। देखो, अन्य देश किस तरह आगे बढ रहे हैं।

महत्त्वपूर्ण तिथियाँ

12 जनवरी,1863 : कलकत्ता में जन्म
सन् 1879 : प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश
सन् 1880 : जनरल असेंबली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश
नवंबर 1881 : श्रीरामकृष्ण से प्रथम भेंट
सन् 1882-86 : श्रीरामकृष्ण से संबद्ध
सन् 1884 : स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण; पिता का स्वर्गवास
सन् 1885 : श्रीरामकृष्ण की अंतिम बीमारी
16 अगस्त, 1886 : श्रीरामकृष्ण का निधन
सन् 1886 : वराह नगर मठ की स्थापना
जनवरी 1887 : वराह नगर मठ में संन्यास की औपचारिक प्रतिज्ञा
सन् 1890-93 : परिव्राजक के रूप में भारत-भ्रमण
25 दिसंबर, 1892 : कन्याकुमारी में
13 फरवरी, 1893 : प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान सिकंदराबाद में
31 मई, 1893 : बंबई से अमेरिका रवाना
25 जुलाई, 1893 : वैंकूवर, कनाडा पहुँचे
30 जुलाई, 1893 : शिकागो आगमन
अगस्त 1893 : हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो. जॉन राइट से भेंट
11 सितंबर, 1893 : विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान
27 सितंबर, 1893 : विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अंतिम व्याख्यान
16 मई, 1894 : हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण
नवंबर 1894 : न्यूयॉर्क में वेदांत समिति की स्थापना
जनवरी 1895 : न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरंभ
अगस्त 1895 : पेरिस में
अक्तूबर 1895 : लंदन में व्याख्यान
6 दिसंबर, 1895 : वापस न्यूयॉर्क
22-25 मार्च, 1896 : वापस लंदन
मई-जुलाई 1896 : हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान
15 अप्रैल, 1896 : वापस लंदन
मई-जुलाई 1896 : लंदन में धार्मिक कक्षाएँ
28 मई, 1896 : ऑक्सफोर्ड में मैक्समूलर से भेंट
30 दिसंबर, 1896 : नेपल्स से भारत की ओर रवाना
15 जनवरी, 1897 : कोलंबो, श्रीलंका आगमन
6-15 फरवरी, 1897 : मद्रास में
19 फरवरी, 1897 : कलकत्ता आगमन
1 मई, 1897 : रामकृष्ण मिशन की स्थापना
मई-दिसंबर 1897 : उत्तर भारत की यात्रा
जनवरी 1898: कलकत्ता वापसी
19 मार्च, 1899 : मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना
20 जून, 1899 : पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा
31 जुलाई, 1899 : न्यूयॉर्क आगमन
22 फरवरी, 1900 : सैन फ्रांसिस्को में वेदांत समिति की स्थापना
जून 1900 : न्यूयॉर्क में अंतिम कक्षा
26 जुलाई, 1900 : यूरोप रवाना
24 अक्तूबर, 1900 : विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र आदि देशों की यात्रा
26 नवंबर, 1900 : भारत रवाना
9 दिसंबर, 1900 : बेलूर मठ आगमन
जनवरी 1901 : मायावती की यात्रा
मार्च-मई 1901 : पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थयात्रा
जनवरी-फरवरी 1902 : बोधगया और वारणसी की यात्रा
मार्च 1902 : बेलूर मठ में वापसी
4 जुलाई, 1902 : महासमाधि।




स्वामी विवेकानंद की आवाज़ - शिकागो में अन्तराष्ट्रीय धर्म सम्मलेन में दिए गए भाषण के कुछ अंश का लिंक -
http://youtu.be/lxUzKoIt5aM

Tuesday, January 8, 2013

अकबरुद्दीन ओवैसी का भाषण / 'हेट स्पीच'

अकबरुद्दीन ओवैसी का भाषण तसल्ली से यू ट्यूब पर सुना। ज़ाहिर है इसे हर तरह से 'हेट स्पीच' हीं माना जाय। सबसे

दिलचस्प तो मुझे हमारे उन दलित साथियों की बात लगी, जो ओवैसी के भाषण की तारीफ कर रहें हैं,क्योंकि पूरे जोर-शोर से

अपने स्पीच में वह कांग्रेस द्वारा प्रोमोसन में SC / ST के लिए आरक्षण का विरोध 'मेरिट' के नाम पर कर रहा था।

'कांग्रेस' को अपने वोट के लिए अपने दरवाज़े पर 'फकीर और भीखमंगे' कहते हुए ,बार बार मोदी और भा जा पा को

चुनौती दे रहा था। ओवैसी के भाषण में कसाब के करतूत की तुलना गुजरात के दंगाईयों से किया जाना, और ये कहना

की बाबरी मस्जिद गिराए जाने पर हीं मुंबई बम विस्फोट हुए, स्थिति को तनावपूर्ण करने के लिए काफी है। वह अपने भाषण

में बार-बार यह कह रहा था की कोई 'गड़बड़ी'हो तो मुझे फोन मत करो, पहले कुछ करो और तब बताओ।
मैं तो

यह मानता हूँ की इस तरह की 'आवाज़', हालाँकि कुछ हद तक मुसलमानों की दिक्कतों को भी

बयान करता है, पूर्ण रूप से फिरकापरस्ती की जुनून को भड़काती है। जो सवाल मुसलमानों के लिए उठाये गए हैं वे पिछड़े

वर्ग के लिए उतने हीं प्रासंगिक है। कई बार तो हिन्दुओं के देवी-देवताओं के लिए बेहद अपमानजनक ढंग से टिप्पणी किया

गया, और कुछ एक बार तो राम जेठमलानी के बहाने। कुल मिलाकर समझा जा सकता है की ऐसे 'हेट स्पीच' से धूर्विकरण

होगा, जिसका फायदा भा जा पा और कांग्रेस दोनों को होने की उम्मीद है, इसलिए इसपर अंकुश लगना मुश्किल लगता है।

दाव पर भारत की एकता और अखंडता है। आगे इस देश की जनता मालिक!


अकबरुद्दीन ओवैसी के भाषण का यू ट्यूब का लिंक -

http://youtu.be/m0hmoO9Dcac


बलात्कार के लिए सजा:

1) संयुक्त अरब अमीरात - तुरंत 7 दिनों के भीतर फांसी मौत की सजा

2) ईरान - तुरंत पत्थर से मारते हुए मौत / 24 घंटे के अन्दर फांसी

3) अफगानिस्तान- 4 दिन के भीतर सिर पर गोली मार कर तत्काल मृत्यु

4) चीन - कोई न्यायिक प्रक्रिया नहीं, अगर मेडिकल परीक्षण में बलात्कार साबित तो मृत्युदंड

5) मलेशिया - मौत की सजा

6) मंगोलिया - परिवार से बदला लेने के रूप में मौत

7) इराक - पत्थर से मारते हुए आखिरी सांस तक मौत

8) तालिबान - हाथ / पैर/ बॉल्स सभी काट कर, फिर पथराव कर और फिर गोली मार कर मौत

9) पोलैंड - सुअर के सामने फेंक कर मौत

10) भारत - ..........................................!
.
.
.
.
4 बार दैनिक सरकारी भोजन और 24 x 7 पुलिस सुरक्षा
7-14 साल के लिए ..! अजीब, लेकिन यही सच्चाई है:
दरअसल संसद के 554 सदस्यों में 84 पर बलात्कार का आरोप, मौत का कानून कौन बनाएगा?




Monday, January 7, 2013

आसाराम पापू ....के अनसुनी अधर्मी किस्से।

आसाराम विवादास्पद बयानों के लिए ही नहीं विवादास्पद कुकृत्यों के लिए भी जाना जाता है। इनकी पहुँच भा जा पा के बड़े नेताओं तक है। आसाराम के आश्रम और इस तथाकथित 'संत' पर कई काले कारनामों का आरोप है। सबसे संगीन आरोप 2008 में हिम्मतनगर आश्रम में रहे अविन वर्मा नाम की एक पूर्व महिला स्वयंसेवक ने लगया की आश्रम में धन का दरुपयोग और महिला भक्तों का यौन शोषण होता है। उसने एक संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया गया है कि आसाराम आश्रम उसके बेटे नारायण द्वारा एक वेश्यालय की तरह चलाया जाता है और महिला सदस्यों के प्रति उसका व्यवहार अपनी पत्नियों के रूप मे होता है।

2008 में आसाराम के आश्रमों में 18 हत्याओं के मामले प्रकाश में आये। अहमदाबाद के नज़दीक विर्न्ग्हम आश्रम के संचालक नरेन्द्र की हत्या कर दी गयी और FIR भी दर्ज नहीं हुआ। 2001 में सूरत के नज़दीक आश्रम के संचालक आमोर भाई को 37 साधकों के समक्ष आसाराम के आदेश पर पीट-पीट कर मार डाला गया, और जिसका FIR आज तक दर्ज नहीं किया गया। 10 वर्ष के नरेश का अहमदाबाद के आश्रम में मौत हो गयी जिसे आश्रम द्वारा आत्महत्या कहा गया, और 10 वर्ष के बालक के आत्महत्या की इस अजीबोगरीब किस्से की जाँच नहीं हुई। आश्रम के नरेश त्रिवेदी की मौत को ऋषिकेश में गंगा में डूबने से हुआ माना गया। आश्रम के सिक्यूरिटी मुंबई निवासी वाशी,जिसकी बहन अभी भी आश्रम में है, उसकी यौन शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने पर कहा गया की नदी में डूबने पर उसकी मौत हो गयी। नई दिल्ली स्थित करोल बाग में बालक दास महाराज का आश्रम था जिसे 5 लाख रुपये में आसाराम ने लेने की बात की, और वह रुपये प्राप्त करने से पहले बालक दास की मौत ज़हर से हो गयी। वैसे यह ज़गह वन विभाग की है, लेकिन अब तक आसाराम का उसपर ज़बरन कब्ज़ा है। रजोकरी आश्रम में वरीयो की मौत सांप काटने से हुई जिसे छोटी जात का मानते हुए कोई उपचार नहीं किया गया। इसी तरह आसाराम का बेटा नारायण साईं ने दरभंगा (बिहार) में सांप के काटने से मृत बालिका को जिंदा कर देगा। दफ़न लाश को गाँव वालों ने निकल कर उसके हवाले किया। पीपल के पत्ते को कुछ समय तक उसके नाक के पास रखा गया। कुछ नहीं होने पर गुस्साए गाँव वालों के डर से वह नेपाल भाग कर अपनी जान बचायी।

आसाराम पर 4500 करोड़ रुपए के धोखाधड़ी के 23 मामले विभिन्न न्यायालयों में चल रहे है।

जहाँ तक संपत्तियों पर जबरन कब्ज़ा करने के कई मामले हैं, उनमें ये प्रमुख हैं - दिल्ली में सीलमपुर के मंदिर पर जबरन कब्ज़ा, करोल बाग में वन विभाग के ज़मीन पर जबरन आश्रम बनाये जाने का मामला, फैज़ रोड पर शिव मंदिर के कैश और मंदिर पर कब्ज़ा, रजोकरी और नज़फगढ़ में ज़मीन पर कब्ज़ा। इसी तरह ऋषिकेश, हरिद्वार, ग्वालियर, छिन्द्वारा, ब्रह्मपुरी, इंदौर, रतलाम, गोरेगांव, चंडीगढ़, बनारस, सूरत आदि में संपत्तियों पर जबरन कब्ज़ा।

मीडिया में इस ढकोसले बाज़ के महिलाओं के साथ होली खेलने और 'बबलू' कह कर महिलाओं से आपत्तिजनक व्यवहार करते सरेआम देखा गया है। परन्तु इस देश की भ्रष्ट और धर्मान्ध्विश्वास के माहौल में इस पर कोई करवाई होते दिख नहीं रही है।

इधर, दिल्ली गैंगरेप केस को लेकर यह गुरुघंटाल आसाराम ने विवादास्पद बयान दिया है. उनके मुताबिक अपने ऊपर हुए अत्‍याचारों के लिए पीड़‍ित लड़की भी आरोपियों के बारबर ही जिम्‍मेदार है.पीड़ित परिवार से हमदर्दी जताते हुए आसाराम ने कहा है कि पीड़ित छात्रा अगर घटना के वक्त आरोपियों में से किसी को भाई बना लेती तो शायद बच जाती. क्या गिड़गिड़ाने से रुकता रेप?

इसका जवाब मेरे फेसबुक मित्रमंडली के गीता श्री ने यूँ दिया है -" अब लीजिए, बड़बोले और विवादास्पद बाबा आसाराम बापू ने कहा है कि रेप पीड़ित लड़की के साथ जो हुआ है उसमें उस लड़की का भी कसूर है। ताली दोनो हाथ से बजती है। लड़की को हाथ पांव जोड़ने चाहिए थे, किसी को भाई बनाती,,,आदि आदि...।
अब ये बाबा तय करेंगे कि दामिनी को उस वक्त क्या करना चाहिए था। कभी लड़की होकर तो सोचें। उस भयावह पल को तो सोचे। जिसकी कल्पना से रुह रह रह कर कांप उठती है। सोचो कि हैवानो को भाई बना लेती तो क्या वे रहम करते। उनका दिल बदल जाता। बाबा लड़की की गल्तियां देख रहे हैं। बाबा तय करेंगे कि बाजारु महिलाएं बेचारे पुरुषो को फंसा लेंगी...ये धार्मिक नेता देश के कलंक हैं। कैसे फल फूल रहे हैं ये, किन भक्तों के दम पर। समाज सोचता क्यों नहीं इन धर्मगुरुओं के बयान पर, इनकी घटिया मानसिकता पर... कौन तय करेगा कि महिलाएं बाजारु कैसे हो जाती हैं। ये बाजारुपन क्या होता है। कौन चिन्हित करता है बाजारुपन को...इतना संवेदहीन बयान एक संत कहे जाने वाले पुरुष के मुंह से निकलता है। भक्तो सोचो..कैसा प्रलाप कर रहा है आपका गुरु। ये क्या रास्ता दिखाएगा कि इन्हें ही दिमागी इलाज की जरुरत है। एसे बाबाओं को पैदा करना बंद कर देना चाहिए..."

इसी तरह सरोज यादव का कहना है - " आधुनिक बाबा वनाम उपदेश : आज देशभर मेँ महिला सुरक्षा को लेकर लोकतांत्रिक तरीके से एक सुनियोजित आंदोलन और चर्चा चल रही है, ऐसे मौके पर आसाराम बापू का ये बयान कि लड़की अगर उन शराबियोँ मेँ से किसी एक को भाई बना लेती तो उसकी जान बच सकती थी ? इस तरह का उपदेश हास्यास्पद ही नही वल्कि बचकानी और पाखंड को भी दर्शाता है। आसाराम जी को इस समय रामायण की उस वाकया को याद करना चाहिए जिस समय रावन सीताजी का हरण कर रहा था और देवी सीता अपने परमेस्वर को चिल्ला रही थी, पुकार रही थी ! क्या रावन को कुछ समझ आया ? नहीँ ! जिसका परिणाम क्या हुआ हम सभी जानते ही है। इसलिए मेरा मानना ये है कि , ये दरिदेँ तो रावण की तरह रावण से भी नीच और घिनौनी हरकत किया है और कर रहा है ? इसलिए इन बाबाओँ की बातो पर ध्यान न देकर हम सभी देशवासी खासकर युवाओँ को सोचना है कि ऐसे वहसियोँ को सीधे मौत के घाट उतार दिए जाए। आज इस देश मेँ डर पैदा करना जरुरी हो गया है और डर पैदा होगा सिर्फ मौत की सजा से ? ताकि इन बलात्कारियोँ और भ्रष्टाचारियोँ को सबक मिल सके।"






आज कल इस गुरु घंटाल की बेटी भी प्रवचन देती है। अगर खुदा-न-खास्ते उसे ऐसी दरिंदगी का सामना करना पड़े तो वह बाबा का नुस्खा अपनाये, उम्मीद है राहत मिलेगी।