"There is equality only among equals. To equate unequals is to perpetuate inequality." ~ Bindheshwari Prasad Mandal "All epoch-making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-~ADOLF HITLER.
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- Suraj Yadav
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- I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....
Tuesday, January 15, 2013
कांग्रेस नीत यू पी ए की सोनिया-मनमोहन सरकार की जनता के साथ गुंडागर्दी की हद - अब आई आई टी के बाद आई आई ऍम की फीस तीन गुना बढाई। Fee hike in IIT & IIM.
कांग्रेस नीत यू पी ए की सोनिया-मनमोहन सरकार की जनता के साथ गुंडागर्दी की हद - अब आई आई टी के बाद आई आई ऍम की फीस तीन गुना बढाई।
केंद्र की कांग्रेस नीत यू पी ए सरकार सोनिया गाँधी की क्षत्र-छाया में और अमरीकी खवास सरदार मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बार-बार गरीब विरोधी फैसले ले रही है और लोगों के धैर्य पर मोहित हो रही है। इस बार जनता के पैसे पर बने आई आई टी की फीस 80% बढ़ाते हुए प्रति वर्ष 90,000/- रुपये से अधिक कर (पूरे कोर्स के लिए 3लाख,60 हज़ार से भी अधिक), अपनी पीठ थप-थपा रही है। गौरतलब है की मामूली पृष्ठभूमि के छात्र आई आई टी में कम्पीट कर भी जायें तो शिक्षा उनसे दूर हो, इसका भरसक प्रयास विदेशी प्रभाव में किया जा रहा है। इसी मकसद के तहत दिल्ली विश्वविद्यालय और जे एन यू जैसे जनसाधारण के पहुँच के केन्द्रीय शैक्षिक संस्थाओं को योजनाबद्ध तरीके से तहस-नहस किया जा रहा है, और उनके फीस को बढ़ाने का दवाब निरंतर जारी है। दिल्ली विश्वविद्यालय में तो पिछले तीन-चार वर्षों से कोई स्थायी नियुक्ति नहीं हुई है। यह सब उन विदेशी और निजी संस्थाओं के लिए किया जा रहा है, जिनमें अधिकांस मानकों से नीचे हैं, परन्तु मंत्रियों और यु जी सी अधिकारीयों की जेबे गरम करते हैं। आज महिलाओं के साथ दुराचार पर देश आहत है, परन्तु शिक्षा व्यवस्था का बलात्कार भी नेताओं द्वारा बदस्तूर जारी है।
कुछ ही दिनों पहले आई आई टी की फीस 80% बढ़ाने के बाद यह जनविरोधी सरकार ने जनता के पैसे पर बनायीं गयी सभी आई आई एम् (भारतीय प्रबंधन संस्थान) की फीस में 60,000/- रुपये से तीन गुना बढ़ा कर 1.80 लाख रुपये कर दी है। पूरे सत्र के लिए अब यह 7.4 लाख रुपये से बढ़ कर 16.6 लाख रुपये हो गयी है। इसके पहले 2008 में आई आई एम् ने 6 गुना बढ़ा कर 2 लाख से 12 लाख किया था। विश्व बेंक के दलाल अर्थशास्त्री भांड गैस, पेट्रोल, डीजल की मूल्यवृद्धि पर तो कहते हैं की 'लागत' तो जनता से वुसूल करना ही होगा। अब जनता के पैसे पर बनी ये संस्थान किसके बाप की लागत से बनी है की इसे आमीरों के चोंचले बनाने की कवायद जारी है।
और कहाँ गए वे महानुभाव जो 'आर्थिक आधार' की वकालत करते हैं? जब कभी सार्वजानिक संस्थानों में आरक्षण की बात आती है तो जाने कहाँ से समाज के जातिवादी शोषकों के आंख से 'आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों' के लिए घडियाली आंसू बहने लगते है। अब गरीबों के साथ हो रहे नाइंसाफी पर न तो इनका और न ही जातिवादी मीडिया का खून खौलता है? फेसबुक पर मैंने देखा की एक महाशय ने आई आई टी की फीस की वृद्धि के समाचार में सिर्फ उस अंश को चिन्हित किया था, जहाँ लिखा था की SC/ST वर्गों को फीस में छूट है। वाह रे क्रांतिकारी। सामान्य वर्ग के साथ अन्याय को दलितों के आर में छुपा कर कौन तीर मार लोगे? और कर ही क्या लोगे? सर पर मनमोहन वही कर रहा है जो वह जबान से नहीं कर सकता। और विपक्ष के जिन नेताओं के भरोसे हो, उममें इतना ही दम है की वे कितना भी भ्रष्ट साबित हों, अपने जाति के बूते ही 'पूर्ती' घोटाले से बचते रहेंगे।
मुझे अब भी भरोसा है की जनसाधारण के लिए विष उगलने वाली इस कालिया सांप रुपी मनमोहन सरकार को चुनाव में कोई पिछड़े वर्ग का ही कोई नेता नाथेगा, जैसा उत्तर प्रदेश में हुआ।
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