1 अप्रैल, 1987 को राजीव गाँधी की सरकार से भ्रष्टाचार के गंभीर मुद्दे पर विवाद के बाद वित्त-मंत्री के पद से विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। एक दो दिन बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र नेता होने के नाते मैं और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव नरेन्द्र टंडन विश्वनाथ प्रताप सिंह से मिल कर भ्रष्टाचार के विरुद्ध दिल्ली विश्वविद्यालय में एक सभा संबोधित करने का निवेदन किया। उस समय परीक्षाएं चल रही थी, इसलिए राजा साहब(मैं इसी तरह उन्हें संबोधित करता था) ने छुट्टियों के बाद विश्वविद्यालय खुलने पर 24 जुलाई को आने को राजी हुए। वर्तमान सांसद जगत प्रकाश नड्डा जी, जो उस समय विद्यार्थी परिषद् से संबधित थे, मुझे कार्यक्रम करने को प्रोतसाहित करते किया। परन्तु 23 जुलाई की देर शाम सेंट स्टीफेंस कॉलेज में आते वक़्त NSUI के कर्यकर्ताओं द्वारा विश्वनाथ प्रताप सिंह पर पेट्रोल बम से जानलेवा हमला किया गया। राजा साहब बाल-बाल बचे।
अगली सुबह सभी अख़बारों के सुर्ख़ियों में यह हमला था। मुझे लगा की 24 जुलाई का कार्यक्रम फ्लॉप हो जायेगा और रद्द करना पड़ेगा। किसी तरह मैंने श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी को कार्यक्रम में आने के लिए राजी कर लिया। और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों, कर्मचारियों और प्रोफेसरों ने जो समर्थन दिया, और जो भीड़ हुई वह अभूतपूर्व था।
समापन भाषण में मैंने कहा, : ऐसा नहीं है की दिल्ली विश्वविद्यालय में किसी सम्मानीय व्यक्ति को सुनने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। हमारे पास ऑडिटोरियम है, लेक्चर हाल हैं, ग्राउंड है। लेकिन कांग्रेस के इशारे पर कुलपति ने हमें कोई भी सुविधा देने से इनकार कर दिया और इस सभा पर पाबन्दी लगा दी। मजबूर होकर हमें यह सभा वहिंकरनी पद रही है जहाँ श्रीमति इंदिरा गाँधी के विरुद्ध पहली बार जयप्रकाश नारायण ने सभा की थी जिसके परिणामस्वरूप श्रीमति गाँधी सत्ता से हटी थी। आज की सभा का अपरिणाम फिर वही होगा। कांग्रेस सत्ता से हटेगी और भावी प्रधानमंत्री राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह का मैं स्वागत करता हूँ। जय हिन्द .:
No comments:
Post a Comment