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I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Saturday, July 27, 2013

सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर के विवादास्पद फैसले -


सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर के विवादास्पद फैसले -

जज और खास तौर से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को विवाद से परे होना चाहिए। इसके पहले 22 सितम्बर, 2012 के अपने Facebook पोस्ट में अल्तमस कबीर साहब के ऍफ़ डी आई पर सरकार समर्थक खुले विचारों पर मैंने टिप्पणी की थी।

अब भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर अपने कार्यालय demit करने से कुछ घंटे पहले दिए गए शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश और आरक्षण पर दो महत्वपूर्ण फैसले के कारण ताजा विवाद में फंस गए हैं।

पहले फैसले में अल्तमस कबीर ने कहा है की अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में सुपर स्पेशियलिटी स्तर पर आरक्षण की कोई छूट नहीं किया जा सकता है। मेरिट केवल मापदंड होना चाहिए। कार्यकर्ता वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि कबीर साहब के फैसले में संभवतः हितों का टकराव था क्योंकि मुख्य न्यायाधीश महोदय उसी समय अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान सुपर स्पेशियलिटी पदों में आरक्षण के मुद्दे से प्रभावित होने वाले डाक्टरों के इलाज़ में थे। वैसे भी पद छोड़ने से कुछ घंटे पहले ऐसे महत्वपूर्ण फैसले को टाला जा सकता था।

दूसरा फैसला भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा देश के सभी मेडिकल और बीडीएस पाठ्यक्रमों के लिए एक एकल राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा को रद्द करने को लेकर है। इस फैसले से सरकारी मेडिकल कालेजों के प्रवेश प्रक्रिया में फेर बदल से सरकार और आम लोगों का नुकसान हुआ, वहीं निजी मेडिकल कालेजों की चंडी हो गयी है।
पर विवाद इस बात पर था की यह फैसला निजी मेडिकल कालेजों को लीक कर दिया गया था जिससे कपिटेशन फीस में वे भरी रकम कमा लिए। एक कानूनी वेबसाइट ने तो यह भी पहले ही कह दिया था की तीन न्यायाधीशों में एक कौन इस फैसले के खिलाफ जायेगा।

सरकार को चाहिये की इन विवादास्पद फैसलों पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करें। लेकिन क्या भ्रष्टाचार और सामाजिक न्याय विरोधी यू पी ए सरकार और उसके कानून मंत्री कपिल सिब्बल ऐसा करेंगे? शायद नहीं।

http://economictimes.indiatimes.com/photo/21155845.cms

My Facebook Post of 22nd September, 2012 -

Justices are freely praising 'reforms'. So will they not be prejudiced in their dealing cases on these issues? Is it not against judicial propriety?
Former Chief Jusitice Y K Sabharwal had observed in ' Canons of Judicial Ethics
- Speech as part of MC Setalvad Memorial Lectures Series' -
" Almost every public servant is governed by certain basic Code of Conduct
which includes expectation that he shall.... not take part in party politics; not be
associated with activities that are pre-judicial to the interests of the sovereignty
and integrity of India or public order; ...A just and humane Judge will always be non-partisan...... He would be above narrow considerations and not prone to external influences......Regard for the public welfare is the highest law (SALUS
POPULI EST SUPREMA LEX)....."
Hoping that Justice is seen to be done.

CJI S.H. Kapadia and CJI-designate Altamas Kabir praise Prime ...
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