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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Sunday, August 11, 2013

खुदीराम बोस को सलाम -


खुदीराम बोस को सलाम -

खुदीराम बोस ( जन्म: १८८९ - मृत्यु : १९०८) मात्र १९ साल की उम्र में हिन्दुस्तान की आजादी के लिये फाँसी पर चढ़ गये। खुदीराम का जन्म ३ दिसंबर १८८९ को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गाँव में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहाँ हुआ था। उसकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़ा। स्कूल छोडने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वन्दे मातरम् पैफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। १९०५ में बंगाल के विभाजन (बंग - भंग) के विरोध में चलाये गये आन्दोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।

मिदनापुर में ‘युगांतर’ नाम की क्रांतिकारियों की गुप्त संस्था के माध्यम से खुदीराम क्रांतिकार्य पहले ही में जुट चुके थे। १९०५ में लॉर्ड कर्जन ने जब बंगाल का विभाजन किया तो उसके विरोध में सडकों पर उतरे अनेकों भारतीयों को उस समय के कलकत्ता के मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड ने क्रूर दण्ड दिया। अन्य मामलों में भी उसने क्रान्तिकारियों को बहुत कष्ट दिया था । इसके परिणामस्वरूप किंग्जफोर्ड को पदोन्नति देकर मुजफ्फरपुर में सत्र न्यायाधीश के पद पर भेजा । ‘युगान्तर’ समिति कि एक गुप्त बैठक में किंग्जफोर्ड को ही मारने का निश्चय हुआ। इस कार्य हेतु खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार चाकी का चयन किया गया । खुदीरामको एक बम और पिस्तौल दी गयी। प्रफुल्लकुमार को भी एक पिस्तौल दी गयी । मुजफ्फरपुर में आने पर इन दोनों ने सबसे पहले किंग्जफोर्ड के बँगले की निगरानी की । उन्होंने उसकी बग्घी तथा उसके घोडे का रंग देख लिया । खुदीराम तो किंग्जफोर्ड को उसके कार्यालय में जाकर ठीक से देख भी आया ।

३० अप्रैल १९०८ को ये दोनों नियोजित काम के लिये बाहर निकले और किंग्जफोर्ड के बँगले के बाहर घोडागाडी से उसके आने की राह देखने लगे। खुदीराम ने किंग्जफोर्ड की गाडी समझकर बम फेंका था परन्तु उस दिन किंग्जफोर्ड थोडी देर से क्लब से बाहर आने के कारण बच गया । दैवयोग से गाडियाँ एक जैसी होने के कारण दो यूरोपियन स्त्रियों को अपने प्राण गँवाने पडे। खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार दोनों ही रातों - रात नंगे पैर भागते हुए गये और २४ मील दूर स्थित वैनी रेलवे स्टेशन पर जाकर ही विश्राम किया।
अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया। अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्लकुमार चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी जबकि खुदीराम पकड़े गये। ११ अगस्त १९०८ को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी दे दी गयी। उस समय उनकी उम्र मात्र १९ साल की थी।



जय हिन्द।

1 comment:

  1. बिहार सरकार के रायफल से लाख कोशिश पर भी नहीं चली गोली -
    क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस के शहादत दिवस पर सलामी के दौरान बिहार पुलिसकर्मी की राइफल की गोली चलने में विफल रही।
    शहीद खुदीराम बोस को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में 1908 में आज ही के दिन अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया गया था। आज उनकी 105 वी शहादत दिवस को सादगी से मनाया गया जहाँ पर जदयू सरकार का कोई मंत्री या उच्च अधिकारी उपस्थित नहीं था।
    नितीश सरकार की शर्मिंदगी की इन्तहां तब हुई जब शहीद के सम्मान के रूप में हवा में पुलिस द्वारा जो 21 राउंड गोली फायर होना था उसमें भी एक शॉट फायर होने में विफल रहा। पुलिस अधिकारी ने कहा कि पुरानी राइफलें कई बार प्रयास के बावजूद नहीं चली।
    बिहार सरकार और तंत्र की अक्षमता की हद है।

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