इतिहास के कुछ रोमांचक पल : बाजीराव पेशवा प्रथम और मस्तानी।
18वीं शताब्दी के पूर्व मध्यकाल में मराठा इतिहास में मस्तानी का विशेष उल्लेख मिलता है। बखर और लेखों से मालूम पड़ता है कि मस्तानी अफ़गान और गूजर जाति की थी। इनका जन्म नृत्य करनेवाली जाति में हुआ था। गुजरात के गीतों में इन्हें 'नृत्यांगना' या 'यवन कांचनी' के नाम से संबोधित किया गया है।
कहानी राजा छत्रसाल के राज्य पर मुगल दरबार के मुहम्मद खान बंगश के हमले के साथ शुरू होता है।
छत्रसाल, अमर सम्राट शिवाजी महाराज से प्रेरणा प्राप्त करने के बाद (दिल्ली के लिए दक्षिण पूर्व) बुंदेलखंड में अपने राज्य की स्थापना की थी। खान बंगश ने उसके राज्य पर हमला किया, और छत्रसाल ने सहायता के लिए बाजीराव के लिए एक संदेश भेजा।
छत्रसाल जो खुद एक अच्छा कवि था, अपने संदेश में लिखा -
"जो बीती गज-राज पर, सो गति भायी है आज, बाजी जात बुन्देल की रक्खो, बाजी लाज"
(हम 'बुंदेले' नदी में पानी पीने गए उस गजराज की तरह भयानक स्थिति में हैं, जिसका पैर एक मगरमच्छ द्वारा पकड़ा लिया गया है, जब ... तो, ओह बाजी हमें और हमारे सम्मान की रक्षा करने के लिए कृपया मदद के लिए आएं..)
इस पुकार का जवाब देते हुए बाजीराव बुंदेलखंड के पास गए और जैतपुर की युद्ध में बंगश को पराजित किया। बंगश को पीछे हटाने के बाद बाजीराव और छत्रसाल भरतपुर में मिले, और इस ख़ुशी में छत्रसाल ने बाजीराव को अपने तीसरे बेटे के रूप में घोषित किया और अपने राज्य के एक तिहाई हिस्से से सम्मानित किया।
दरबार में अपने इस स्वागत में हो रहे पारंपरिक नृत्य के दौरान बाजीराव और मस्तानी ने पहली बार एक दूसरे को देखा।
इसको बेहतर समझने के लिए मराठा इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण शासक और उनके प्रधान मंत्री (पेशवा) के बारे में जानना ज़रूरी है।
महाराज शिवाजी ने सतारा वंश और मराठा साम्राज्य की नीवं 1674 में रखी। मराठा साम्राज्य या मराठा महासंघ 1674 से 1818 तक अस्तित्व में रही। यह साम्राज्य 1818 तक चला और लगभग पूरे भारत में फैल गया।
छत्रपति शिवाजी (1627-1680)
छत्रपति सम्भाजी (1657-1689)
छत्रपति राजाराम (1670-1700) कोल्हापुर वंश।
महारनी ताराबाई (1675-1761)
छत्रपति शाहू (1682-1749) उर्फ शिवाजी द्वितीय, छत्रपति संभाजी का बेटा
छत्रपति रामराज (छत्रपति राजाराम और महारानी ताराबाई का पौत्र)।
मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्रियों को पेशवा (मराठी: पेशवा) कहते थे। ये राजा के सलाहकार परिषद अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख होते थे। राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था। शिवाजी के अष्टप्रधान मंत्रिमंडल में प्रधान मंत्री अथवा वजीर का पर्यायवाची पद था। 'पेशवा' फारसी शब्द है जिसका अर्थ 'अग्रणी' है।
पेशवा का पद वंशानुगत नहीं था। आरंभ में, संभवत: पेशवा मर्यादा में अन्य सदस्यों के बराबर ही माना जाता था। छत्रपति राजाराम के समय में पंत-प्रतिनिधि का नवनिर्मित पद, राजा का प्रतिनिधि होने के नाते पेशवा से ज्येष्ठ ठहराया गया था। पेशवाई सत्ता के वास्तविक संस्थापन का, तथा पेशवा पद को वंशपरंपरागत रूप देने का श्रेय ऐतिहासिक क्रम से सातवें पेशवा, बालाजी विश्वनाथ को है। किंतु, यह परिवर्तन छत्रपति शाहू के सहयोग और सहमति द्वारा ही संपन्न हुआ, उसकी असमर्थता के कारण नहीं। यद्यपि बालाजी विश्वनाथ के उत्तराधिकारी बाजीराव ने मराठा साम्राज्य के सीमाविस्तार के साथ साथ अपनी सत्ता को भी सर्वोपरि बना दिया, तथापि वैधानिक रूप से पेशवा की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन शाहू की मृत्यु के बाद, बाजीराव के पुत्र बालाजी के समय में हुआ। अल्पवयस्क छत्रपति रामराजा की अयोग्यता के कारण समस्त राजकीय शक्ति संगोला के समझौते (25 सितंबर 1750) के अनुसार, पेशवा को हस्तांतरित हो गई, तथा शासकीय केंद्र सातारा की अपेक्षा पुणे निर्धारित किया गया। किंतु पेशवा माधवराव के मृत्युपरांत जैसा सातारा राजवंश के साथ हुआ, वैसा ही पेशवा वंश के साथ हुआ। माधवराज के उत्तराधिकारियों की नितांत अयोग्यता के कारण राजकीय सत्ता उनके अभिभावक नाना फड़नवीस के हाथों में केंद्रित हो गई। किंतु आँग्ल शक्ति के उत्कर्ष के कारण इस स्थिति में भी शीघ्र ही महान परिवर्तन हुआ। अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय को वसई की संधि के अनुसार (31 दिसम्बर 1802) अंग्रेजों का प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ा; 13 जून 1817, की संधि के अनुसार मराठा संघ पर उसे अपना अधिकार छोड़ना पड़ा; तथा अंत में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध की समाप्ति पर, मराठा साम्राज्य के विसर्जन के बाद, पदच्युत होकर अंग्रेजों की पेंशन ग्रहण करने के लिये विवश होना पड़ा।
पेशवाओं का काल-
बाळाजी विश्वनाथ पेशवा (1714-1720)
बाजीराव पेशवा प्रथम (1720-1740)
बाळाजी बाजीराव पेशवा ऊर्फ नानासाहेब पेशवा (1740-1761)
माधवराव बल्लाळ पेशवा ऊर्फ थोरले माधवराव पेशवा (1761-1772)
नारायणराव पेशवा (1772-1774)
रघुनाथराव पेशवा (अल्पकाल)
सवाई माधवराव पेशवा (1774-1795)
दूसरे बाजीराव पेशवा (1796-1818)
दूसरे नानासाहेब पेशवा (सिंहासन पर नहीं बैठ पाए)।
बाजीराव प्रथम के बारे में कुछ तथ्य :
जन्म 1700 ई. : मृत्यु 1740। जब महाराज शाहू ने १७२० में बालाजी विश्वनाथ के मृत्यूपरांत उसके 19 वर्षीय ज्येष्ठपुत्र बाजीराव को पेशवा नियुक्त किया तो पेशवा पद वंशपरंपरागत बन गया। अल्पव्यस्क होते हुए भी बाजीराव ने असाधारण योग्यता प्रदर्शित की। उसका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था; तथा उसमें जन्मजात नेतृत्वशक्ति थी। अपने अद्भुत रणकौशल, अदम्य साहस और अपूर्व संलग्नता से, तथा प्रतिभासंपन्न अनुज चिमाजी अप्पा के सहयोग द्वारा शीघ्र ही उसने मराठा साम्राज्य को भारत में सर्वशक्तिमान् बना दिया। शकरलेडला (Shakarkhedla) में उसने मुबारिज़खाँ को परास्त किया। (1724)। मालवा तथा कर्नाटक पर प्रभुत्व स्थापित किया (1724-1726)। पालखेड़ में महाराष्ट्र के परम शत्रु निजामउलमुल्क को पराजित कर (1728) उससे चौथ तथा सरदेशमुखी वसूली। फिर मालवा और बुंदेलखंड पर आक्रमण कर मुगल सेनानायक गिरधरबहादुर तथा दयाबहादुर पर विजय प्राप्त की (1729)। तदनंतर मुहम्मद खाँ बंगश (Bangash) को परास्त किया (1729)। दभोई में त्रिंबकराव को नतमस्तक कर (1731) उसने आंतरिक विरोध का दमन किया। सीदी, आंग्रिया तथा पुर्तगालियों को भी विजित किया। दिल्ली का अभियान (1737) उसकी सैन्यशक्ति का चरमोत्कर्ष था। उसी वर्ष भोपाल में उसने फिरसे निजाम को पराजय दी। अंतत:1739 में उसने नासिरजंग पर विजय प्राप्त की। अपने यशोसूर्य के मध्य्ह्राकाल में ही 28 अप्रैल 1740 को अचानक रोग के कारण उसकी असामयिक मृत्यु हुई।
मस्तानी:
18 वीं शताब्दी के पूर्व मध्यकाल में मराठा इतिहास में मस्तानी का विशेष उल्लेख मिलता है। बखर और लेखों से मालूम पड़ता है कि मस्तानी अफ़गान और गूजर जाति की थी। इनका जन्म नृत्य करनेवाली जाति में हुआ था। गुजरात के गीतों में इन्हें 'नृत्यांगना' या 'यवन कांचनी' के नाम से संबोधित किया गया है।
मस्तानी अपने समय की अद्वितीय सुंदरी एवं संगीत कला में प्रवीण थी। इन्होंने घुड़सवारी और तीरंदाजी में भी शिक्षा प्राप्त की थी। गुजरात के नायब सूबेदार शुजाअत खाँ और मस्तानी की प्रथम भेंट 1724 ई० के लगभग हुई। चिमाजी अप्पा ने उसी वर्ष शुजाअत-खान पर आक्रमण किया। युद्ध क्षेत्र में ही शुजाअत खाँ की मृत्यु हुई। लूटी हुई सामग्री के साथ मस्तानी भी चिमाजी अप्पा को प्राप्त हुई। चिमाजी अप्पा ने उन्हें बाजीराव के पास पहुँचा दिया। तदुपरांत मस्तानी और बाजीराव एक दूसरे के लिए ही जीवित रहे।
1727 ई० में प्रयाग के सूबेदार मोहम्मद खान बंगश ने राजा छत्रसाल (बुंदेलखंड) पर चढ़ाई की। राजा छत्रसाल ने तुरंत ही पेशवा बाजीराव से सहायता माँगी। बाजीराव अपनी सेना सहित बुंदेलखंड की ओर बढ़े। मस्तानी भी बाजीराव के साथ गई। मराठे और मुगल दो बर्षों तक युद्ध करते रहे। तत्पश्चात् बाजीराव जीते। छत्रसाल अत्यंत आनंदित हुए। उन्होंने मस्तानी को अपनी पुत्री के समान माना। बाजीराव ने जहाँ मस्तानी के रहने का प्रबंध किया उसे 'मस्तानी महल' और 'मस्तानी दरवाजा' का नाम दिया।
मस्तानी ने पेशवा के हृदय में एक विशेष स्थान बना लिया था। उसने अपने जीवन में हिंदू स्त्रियों के रीति रिवाजों को अपना लिया था। बाजीराव से संबंध के कारण मस्तानी को भी अनेक दु:ख झेलने पड़े पर बाजीराव के प्रति उसका प्रेम अटूट था। मस्तानी के 1734 ई० में एक पुत्र हुआ। उसका नाम शमशेर बहादुर रखा गया। बाजीराव ने काल्पी और बाँदा की सूबेदारी उसे दी, शमशेर बहादुर ने पेशवा परिवार की बड़े लगन और परिश्रम से सेवा की। 1761 ई० में शमशेर बहादुर मराठों की ओर से लड़ते हुए पानीपत के मैदान में मारा गया।
1739 ई० के आरंभ में पेशवा बाजीराव और मस्तानी का संबंध विच्छेद कराने के असफल प्रयत्न किए गए। 1739 ई० के अंतिम दिनों में बाजीराव को आवश्यक कार्य से पूना छोड़ना पड़ा। मस्तानी पेशवा के साथ न जा सकी। चिमाजी अप्पा और नाना साहब ने मस्तानी के प्रति कठोर योजना बनाई। उन्होंने मस्तानी को पर्वती बाग में (पूना में) कैद किया। बाजीराव को जब यह समाचार मिला, वे अत्यंत दु:खित हुए। वे बीमार पड़ गए। इसी बीच अवसर पा मस्तानी कैद से बचकर बाजीराव के पास 4 नवम्बर 1739 ई० को पटास पहुँची। बाजीराव निश्चिंत हुए पर यह स्थिति अधिक दिनों तक न रह सकी। शीघ्र ही पुरंदरे, काका मोरशेट तथा अन्य व्यक्ति पटास पहुँचे। उनके साथ पेशवा बाजीराव की माँ राधाबाई और उनकी पत्नी काशीबाई भी वहाँ पहुँची। उन्होंने मस्तानी को समझा बुझाकर लाना आवश्यक समझा। मस्तानी पूना लौटी। १७४० ई० के आरंभ में बाजीराव नासिरजंग से लड़ने के लिए निकल पड़े और गोदावरी नदी को पारकर शत्रु को हरा दिया। बाजीराव बीमार बड़े और 28 अप्रैल 1740 को उनकी मृत्यु हो गई।
मस्तानी बाजीराव की मृत्यु का समाचार पाकर बहुत दु:खित हुई और उसके बाद अधिक दिनों तक जीवित न रह सकी। आज भी पूना से २० मील दूर पाबल गाँव में मस्तानी का मकबरा उनके त्याग दृढ़ता तथा अटूट प्रेम का स्मरण दिलाता है।
बाजीराव के निरंतर अभियानों के परिणामस्वरूप निस्संदेह, मराठा शासन को अत्याधिक भार वहन करना पड़ा, मराठा साम्राज्य सीमतीत विस्तृत होने के कारण असंगठित रह गया, मराठा संघ में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ प्रस्फुटित हुई, तथा मराठा सेनाएँ विजित प्रदेशों में असंतुष्टिकारक प्रमाणित हुई; तथापि बाजीराव की लौह लेखनी ने निश्चय ही महाराष्ट्रीय इतिहास का गौरवपूर्ण परिच्छेद रचा।
"There is equality only among equals. To equate unequals is to perpetuate inequality." ~ Bindheshwari Prasad Mandal "All epoch-making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-~ADOLF HITLER.
About Me
- Suraj Yadav
- New Delhi, NCR of Delhi, India
- I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....
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