
अपने सुसाइड नोट में रोहित ने लिखा, "..... आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा........मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं. मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था. विज्ञान पर लिखने वाला, कार्ल सगान की तरह. लेकिन अंत में मैं सिर्फ़ ये पत्र लिख पा रहा हूं.................मैं पहली बार इस तरह का पत्र लिख रहा हूं. पहली बार मैं आख़िरी पत्र लिख रहा हूं. मुझे माफ़ करना अगर इसका कोई मतलब न निकले तो..............आप जो मेरा पत्र पढ़ रहे हैं, अगर कुछ कर सकते हैं तो मुझे अपनी सात महीने की फ़ेलोशिप मिलनी बाक़ी है. एक लाख 75 हज़ार रुपए. कृपया ये सुनिश्चित कर दें कि ये पैसा मेरे परिवार को मिल जाए. मुझे रामजी को चालीस हज़ार रुपए देने थे. उन्होंने कभी पैसे वापस नहीं मांगे. लेकिन प्लीज़ फ़ेलोशिप के पैसे से रामजी को पैसे दे दें...........................अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन परिवार, आप सब को निराश करने के लिए माफ़ी. आप सबने मुझे बहुत प्यार किया. सबको भविष्य के लिए शुभकामना.......................आख़िरी बार - जय भीम....................... ..मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया. ख़ुद को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है.
रोहित की आत्महत्या की ख़बर आने के बाद से तेलंगाना के छात्र संगठनों ने आंदोलन शुरू करते हुए, इस घटना के विरोध में सोमवार को बंद की। कुछ दिनों में इस मामले को लेकर तेलंगाना के साथ-साथ दिल्ली के जेएनयू समेत देश के अन्य कई विश्वविद्यालयों के छात्र भी आंदोलनरत हो गए। संसद में हंगामा हुआ और मानव संसाधन विकास मंत्रालय, उच्च शिक्षा राजपत्र विभाग ने फरवरी, 2, 2016 को न्यायमूर्ति अशोक कुमार रुपनवाल की अगुवाई में घटनाओं की जांच के लिए एक कमीशन नियुक्त किया। इस कमीशन को इस बात का पर रिपोर्ट देनी थी कि
(I) रोहित की आत्महत्या की तथ्यों की जांच और परिस्थिति तय करने के लिए एवं (Ii) विश्वविद्यालय में छात्रों के लिए निवारण तंत्र मौजूदा शिकायत की समीक्षा करने के लिए, और सुधार के लिए सुझाव देने की ज़रुरत।
रोहित वेमुला खुदकुशी मामले की जांच कर रहे न्यायिक आयोग ने इस आत्महत्या के लिए रोहित को ही जिम्मेदार बताया है। द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक आयोग का मानना है कि रोहित की खुदकुशी की वजह निजी तनाव था जिसमें विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। अपनी रिपोर्ट में आयोग का कहना है कि रोहित वेमुला का जाति प्रमाण पत्र फर्जी था और वे दलित थे ही नहीं। आयोग ने रोहित को छात्रावास से बाहर किए जाने संबंधी विश्वविद्यालय के फैसले को भी सही बताया है। इलाहाबाद हाइकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एके रूपनवाल के एक सदस्यीय आयोग ने अगस्त 2016 में 41 पन्नों की रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी है।
अहम सवाल ये खड़ा हो रहा है कि क्या कमेटी को इस तथ्य के बारे में जांच करनी थी?
टर्म्स ऑफ़ रेफेरेंस के मुताबिक रोहित की जाति के बारे में पता करना कमेटी का काम नहीं था। 'ये (जाति के बारे में पता करना) कमेटी के टर्म ऑफ रेफरेंस में था ही नहीं।
रोहित की आत्महत्या, दरअसल, एक 'संस्थागत हत्या' थी। कमीशन की रिपोर्ट में कहीं भी भारत सरकार द्वारा स्कॉलरशिप बंद किये जाने से देश के रिसर्च करने वाले शोद्यार्थियों पर उसका असर, होस्टल से निकाले जाने का असल कारण और उसपर कोई टिप्पणी, इनका कोई जिक्र ही नहीं है।
लगता है इस रिपोर्ट का सिर्फ यह साबित करना है कि रोहित 'दलित' नहीं था, जिससे राजनैतिक तौर पर सत्ताधारी दल को कोई नुकसान नहीं हो।
रोहित वेमुला द्वारा आत्महत्या की घटना ने राष्ट्र के सामूहिक चिंतन पटल को झकझोर के रख दिया थाI उसके सुसाइड नोट से उसके सपनो का चित्र, एक निराश एवं मलिनचित भावना तथा इस पीड़ादायक जिंदगी से दूर जाने की इच्छा, सब कुछ दिखता है। वह इस समाज की वर्तमान जाति व्यवस्था का एक नवीनतम शिकार है, भले सरकार आज साबित करे की वह दलित था ही नहींI यह भी पूरी तरह सही नहीं है की यह एक छात्र पर अनुशासनक कार्यवाही, छात्रावास से निष्कासन अथवा छात्रवृति रोके जाने भर तक का ही मामला है।
रोहित से विश्वविद्यालय का ऐसा व्यवहार एक दलित छात्र के तौर पर ही किया गया जिसका अपने सैद्धांतिक तथा नैतिक आदर्शों हेतू अम्बेडकर से प्रेरणा लेने का तथा उन वैचारिक संघर्षों को आगे जारी रखने के अधिकार से सम्बंधित हैI उस छात्र को एक अलग दृष्टिकोण रखने तथा कोई विशेष राजनितिक संगठन में होने के कारण प्रताड़ित नहीं जा सकता। यह उसका अधिकार है की वह महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विषयों पर अपनी राय रखे। वह संभवतः मृत्युदंड देने के खिलाफ था। अतः उसे स्थानीय सांसद द्वारा राष्ट्र विरोधी ठहरा दिया गया था।
रोहित ने सवर्ण हिन्दू समाज द्वारा अपने एक दलित पी.एच.डी. छात्र होने के प्रति हो रहे पूर्वाग्रहों के कारण क्षुब्ध था। वह उसके लिए तैयार नहीं था और उसे नहीं झेल पाया। रोहित की आत्महत्या के ऊपर होने वाली जांच का नतीजा हमें स्वीकार्य नहीं है।
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