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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Friday, April 29, 2011

suraj_yadav2005's photostream

Newly elected Tibet PM - in Exile Lobsang Sangay memories at DUNewly elected Tibet PM - in Exile Lobsang Sangay memories at DUNewly elected Tibet PM - in Exile Lobsang Sangay memories at DUNewly elected Tibet PM - in Exile Lobsang Sangay memories at DUTibetian PM in Exile Lobsang Sangay.Newly elected Tibet PM - in Exile Lobsang Sangay memories at DU
Newly elected Tibet PM - in Exile Lobsang Sangay memories at DUNewly elected Tibet PM - in Exile Lobsang Sangay memories at DUNewly elected Tibet PM - in Exile Lobsang Sangay memories at DUTribute to Baba Saheb Bhim Rao Ambedkar & poem recital by Adam GondviTribute to Baba Saheb Bhim Rao Ambedkar & poem recital by Adam GondviSuraj Yadav
Tribute to Baba Saheb Bhim Rao Ambedkar & poem recital by Adam GondviAmit ChamariaChowdhry SahebDr Suchitra GuptaProf  D N JhaDr D N Gupta
Adam GondviAdam GondviAdam Gondvi & Dr Ratan LalAdam Gondvi & Dr Ratan LalTribute to Baba Saheb Bhim Rao Ambedkar & poem recital by Adam GondviProf & Mrs D N Jha

Lobsang Sangay attending a meeting of foreign students at Delhi University in probably 1992-93. The meeting was organised by Culture Council, DU. Dy Dean Culture Council Mr Sydney Rebeiro and Convenor Suraj Yadav conducted the meet.

Wednesday, April 27, 2011

Lobsang Sangay next PM of exiled Tibetan govt

Lobsang Sangay next PM of exiled Tibetan govt
My comments -
Congratulations Lobsang. We were together in the Department of Chinese & Japanese Studies (now called Department of Far East Studies), University of Delhi. Lobsang was in International Student House (Hostel) and took keen interest in Delhi University Students Union Activities, along with me. I am so happy for you, Lobsang, and our best wishes to you.

Friday, April 15, 2011

Ambedkar Jatyanti at Delhi University - Poem recital by ADAM GONDVI



Ambedkar Jayanti celebrated at Delhi University.

15th April, New Delhi.

Several teachers, students, University Professors, few Principals, professionals and journalist gathered at Hindu College Teachers lodge, residence of Dr Ratan Lal, on the evening of 14th April, 2011 to celebrate 120th Birth Anniversary of Baba Saheb Bhim Rao Ambedkar. Remembering Baba Saheb the speakers recalled that " Bhimrao Ramji Ambedkar: डॉ.भीमराव रामजी आंबेडकर [b 14 April 1891 — 6 December 1956), also known as Babasaheb, was an Indian jurist, political leader, Buddhist activist, philosopher, thinker, anthropologist, historian, orator, prolific writer, economist, scholar, editor, revolutionary and a revivalist for Buddhism in India. He was also the Chairman of the Drafting Committee of Indian Constitution. Ambedkar was posthumously awarded the Bharat Ratna, India's highest civilian award, in 1990." What was unique in this tribute to Baba Saheb was the poem recital by revolutionary, rustic hindi poet Adam Gondvi, known for his popular masterpieces depicting the concern for common man in the present political set up.

The programme was chaired by Prof D N Jha, former Head, Department of History, University of Delhi. Dr Suchitra Gupta, Associate Professor, Hindu College anchored the programme. Dr Rajendra Prasad, Principal, Ramjas College, Dr D N Gupta, Hindu College, Dr Manoj Jha, associate Professor, Delhi School of Social Work, Dr Suraj Yadav, associate Professor, SSN College, Dr Sanjay Verma, Associate Professor, Kirori Mal College and several others attended the programme.

The vote of thanks was presented by the host and Social Justice activist Dr Ratan Lal, Associate Professor, Hindu College.
Some poems of Adam Gondvi -

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में


ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में
मुसल्सकल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में
न इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई
खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लम्बीा क़तारों में
अदीबों! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्मे के सिवा क्याी है फ़लक़ के चाँद-तारों में
रहेम मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तज़रबे से
बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में
कहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद
जो है संगीन के साये की चर्चा इश्तशहारों में.

हिन्दूज़ या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
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हिन्दूज़ या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुरसी के लिए जज्बाित को मत छेड़िए
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थी; जुम्ममन का घर फिर क्योंम जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए

काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में
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काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में

Tuesday, April 12, 2011

रास नहीं आया - भ्रष्टाचार के विरुद्ध जंग या उसे लड़ने वाले -



बात शुरू हुई अन्ना हजारे के जन लोकपाल विधेयक को सरकारी कानून बनाये जाने की मुहीम में नई दिल्ली के जंतर मंतर पर अमरण अनशन पर बैठने के बाद. वैसे इससे पहले बाबा रामदेव ने विदेशों में भारत के डेढ़ खरब अमरीकी डालर की काले धन को वापस भारत लाने पर भी कुछ ऐसी ही बहस हुई थी. हमारे कुछ साथी जिनके विचारों से अक्सर मैं बहुत प्रभावित रहता हूँ वे इस मुहीम को हर तरह से नकारने लगे. तो इस पर मैं भी अपनी राय देने का प्रयास क़र रहा हूँ. वैसे तो मैं भी आदतन आलोचक हूँ परन्तु आधे गिलास के पानी को आधे भरे हुए पानी के रूप में देखने की दुस्साहस भी करता हूँ. परन्तु मेरे मित्रों के अप्पतियों में कुछ तो वजन रखते हैं और कुछ में उनके अहम् की छाया नज़र आ रही है.
मुद्दा ये है की भारत में भ्रष्टाचार से लोग त्रस्त हैं. राजनैतिक व नौकरशाहों के भ्रष्टाचार सबसे अधिक चिंता जनक हैं. अंतर्राष्ट्रीय संस्थi Transparency International के अनुसार भारत के १५ प्रतिशत जनता ने किसी सरकारी कामकाज करने के लिए स्वयं रिश्वत दिए या दिलवाए. इसी संस्था का आंकलन है की ट्रक चालक लगभग ५ अरब अमरीकी डालर प्रति वर्ष रिश्वत देते हैं. भ्रष्टाचार के मापने के इंडेक्स में १७८ देशों में भारत का स्थान ८७ वाँ है. जहाँ भारत विश्व के भ्रष्टतम देशों में है वहीँ दक्षिण एशिया में इससे भी भ्रष्ट कई देश हैं.
प्रश्न है कि इस समस्या से निजात पाने के लिए आप क्या उपाय सुझाते हैं. बाबा रामदेव का मानना है की काले धन की वापसी से इस मुहीम को बल मिलेगा. अन्ना हजारे एवम उनके साथियों ने एक विधेयक तैयार किया - जन लोकपाल विधेयक - जिससे उन्हें लगता है कि भ्रष्टाचार करने वालों को इस बेहतर कानून से बांधा जा सकता है. इस पर शंका और बहस जायज है. यह भी आवश्यक है कि हमारे नज़र में इससे बेहतर क्या उपाय हैं वह भी कहें.
परन्तु बहस यह है "अन्ना हजारे तुम इतने टेढ़े क्यों हो?" जगदीश्वर चतुर्वेदी - अन्ना ने लोकतंत्र व्यवस्था के विरुद्ध टिपण्णी की !;"सावधान अन्ना! पीछे छिपे खेल से" अमलेंदु उपाध्याय - कानून बनाना संसद का काम है, इसे कोई अन्ना,केजरीवाल या अग्निवेश बंधक नहीं बना सकते;"भ्रष्टाचार और अन्ना हजारे की मृग-मरीचिका" जगदीश्वर चतुर्वेदी - इस दौर का संघर्ष मीडिया इवेंट है!; रजनीश के झा - आम गरीब किसान मजदूर का नदारद होना और सिर्फ सो काल्ड सिविल सोसायटी का होना अन्ना पर प्रश्न चिन्ह है और मीडिया पर भी. फिर प्रश्न उठा की अन्ना ने राज ठाकरे को समर्थन दिया था, वह भूतकाल में क्या-क्या किया था. यह भी सामने आया की दो toilet के बीच चल रहा था अन्ना का आन्दोलन. अब सरकार ने धरने के लिए toilet के बीच का स्थान दिया है, तो लोग जायेंगे कहाँ?
सिविल सोसाइटी के नुमाइंदे कौन हो सकते थे. आन्दोलन करने वाले ही बनेंगे या बुलाक़र ले जायेंगेकिसी पत्रकार या विद्वान को.
इन सभी आपत्तियों में भ्रष्टाचार का प्रश्न व उससे लड़ने की बात कहीं नहीं है. अगर यह आन्दोलन नहींथा तो टिप्पणीकार स्वयं कोई आन्दोलन क्यों नहीं शुरू किये.
भ्रष्टाचार से लोहा लेने के लिए न समाजवादी, न मार्क्सवादी, न सामाजिक न्याय के पक्षधर और न ही सामाजिक अन्यायकर्ता कोई सामने नहीं आये.
मैंने यह प्रश्न पहले भी उठाया जब मुझे लगा की यह बताने का प्रयास किया जा रहा की भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन सामाजिक न्याय के विरुद्ध है.
व्यक्ति अगर परिस्थितियों में बंध कर कोई कदम उठाता है तो फ़िलहाल उसी कदम का विश्लेषण होना चाहिए.
जहाँ तक प्रश्न भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का है, भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय के तथाकथित कौन योद्धा है जिसमे यह नैतिक साहस हो कि वे ऐसा आन्दोलन करें? भ्रष्ट तंत्र के वैसे ही अभिन्न अंग हैं जैसे मनुवादी नेता. और भ्रष्टाचार से अगर देश के आम नागरिक त्रस्त हैं तो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग , अल्पसंख्यक समुदाय सभी उतने ही प्रभावित हैं. अगर कोई नेता भ्रष्टाचार के विरुद्ध थोडा भी कदम बढ़ाता है तो उसका हौसला अफजाई होना चाहिए, भले वो आरक्षण के लिए उसी प्रतिबद्धता से कोई आन्दोलन न किये हों और न आगे करें.
अन्ना के आन्दोलन में शंकाएं हो सकते हैं , खास तौर से जब देश की जातिवादी,सूदखोर और बड़े उद्योगपतियों के कठपुतली मीडिया इसमें साथ ही नहीं दें बल्कि ढोल बजा-बजा क़र करें. इसका कारण का विश्लेषण करना भी आवश्यक है, परन्तु इससे आन्दोलन के चरित्र और अन्ना की प्रतिबद्धता पर प्रश्न नहीं उठते हैं.
अगर किसी गरीब व्यक्ति को बेवजह पीटा जा रहा है और मैं हस्तक्षेप करूँ और यह कहा जाय की क्या अपने कभी किसी पर हाथ नहीं उठाया है तब ही आप इसे बच सकतें हैं, तो दरअसल वह उस व्यक्ति के पीटे जाने का पक्षधर है.
बाबा रामदेव ने भी जब विदेशों में जमा काले धन का मुद्दा छेड़ा तो उनके संपत्ति का प्रश्न उठा कार उन्हें बचाओ की मुद्रा में ले आया गया. तो जिसने 'पाप न किया हो और पापी न हो' तर्क पर तो न्यायधीश भी नहीं मिल पाएंगे.
मेरा यह निवेदन है सार्थक बहस के लिए आलोचना में यह भी बात उठे की भ्रष्टाचार स निपटने के लिए और क्या उपाय हो सकतें हैं.

Symester System at Delhi University - mindless copying of rejected US system.



The HRD Minister Mr Kapil Sibal's, quite known for his slavish following of US, son who had done his 2 year LLB and 9 months LLM from American University under Symester System, was facing problems in getting enrolled as Advocate with Bar Council of India. This is the background of Mr Sibal's mindless pushing of Symester System in Indian Universities, especially at University of Delhi. He manipulated things at High Court. It is strange that views of teachers who have to teach and have experience was totally ignored.
Those who compare JNU and Jamia to Delhi University just forget that JNU has atotal strength of nearly 5000 students, a strength equal to the average of just two of nearly 72 colleges of DU. It is naive to expect system working well at JNU to be valid for Delhi University also.
Let us now know how does the examination system in American Universities work. In America, mostly there is nothing called as external examinations. The very same professor who teaches the student evaluates the examination performance. Usually a student has to appear in two major examinations- final and mid-term. As the name suggests, mid-term examinations are held half way through the course. The final examinations are given at the end of the course/semester. Both the examinations are usually written. The final examinations last from 2-3 hours while mid-term examinations last for an hour only.
At Delhi University which has a strength of more than 1.5 lakh and twice the number in Open School category this sort of thing is simply not possible.
Therefore, looking objectively, it is clear that the Symester System should be rejected at DU.

Saturday, April 9, 2011

Mahatma Gandhi on Corruption.


…It is the duty of all leading men, whatever their persuasion or party, to safeguard the dignity of India. That dignity can’t be saved if misgovernment and corruption flourish. Misgovernment and corruption always go together. I have it from very trustworthy sources that corruption is increasing in our country. Is everyone then going to think only of himself, and not al all of India?….(Hindu. 16/12/1947).

Friday, April 8, 2011

मधेपुरा में अन्ना के समर्थन में अमरण अनशन शुरू.Fast unto death begins at Madhepura in support of Anna Hazare's movement.



इस जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा
गिरा दिया है तो साहिल पे इंतज़ार न कर
अगर वोह डूब गया है तो दूर निकलेगा
अन्ना हजारे के समर्थन में मधेपुरा में मेरे कुछ साथी अमरण अनशन पर आज से बैठ गए हैं. कल मैंने मधेपुरा टाइम्स में अपील भी की थी. अंगद यादव, मधेपुरा के जाने-माने RTI तथा राजनैतिक कार्यकर्त्ता के साथ कई प्रमुख नागरिक भी इस अनशन में शामिल हुए हैं. दरअसल यह सिर्फ अन्ना के लिए समर्थन ही नहीं बल्कि मधेपुरा में व्याप्त भ्रष्टाचार से परेशान नागरिकों के लिए यह एक मौका है जब वे अपनी कुंठा को व्यक्त कर रहें हैं. मजेदार बात है की बिहार के मुख्यमंत्री ने अन्ना के अनशन को समर्थन दिए हैं. ध्यान देने की बात है की जन लोकपाल के प्रस्तावित विधेयक की प्रति सभी मुख्य मंत्रियों को भी दी गयी है. अच्छा है की बिहार में इस प्रस्तावित विधेयक को हु बी हु नितीश जी लागू करें.
वैसे आशा करता हूँ की केन्द्रीय सरकार बगैर देरी किये इस पर समिति की अधिसूचना जरी कर दें. भ्रष्टाचार तो तुरंत दूर नहीं होगा, परन्तु भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में यह एक प्रभावशाली कदम होगा. जय हिंद.
Fast unto death begins at Madhepura in support of Anna Hazare's movement.
Citizens of Madhepura have joined Anna Hazre's protest movement against corruption by beginning 'fast unto death'. Several activists including RTI and social, political activists Angad Yadav was joined by other citizens. This is not merely a support for Anna but an occassion to express total rejection of corruption by the people which has plagued Madhepura among other places in Bihar and India. This is also an expression of the fruatration of people in dealing with this menace of corruption.
It is interesting thta Bihar Chief Minister has supported Anna'a fast. it should be noted that a copy of the proposed Jan Lokal Bill has been given to all Chief Ministers of India. They can go ahead with this version in their states and all of us will welcome if iNitish Kumar implements it in Bihar.
Nevertheless, every moment delayed by the Cemtral Government in issuing a notification on draft of new Lokpal Bill, will prove to be costly for UPA, and will definitely will be a bane of frustration for it later.

Wednesday, April 6, 2011

भ्रष्टाचार के विरुद्ध और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष - एक ही या अलग- अलग ?

इस जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा
गिरा दिया है तो साहिल पे इंतज़ार न कर
अगर वोह डूब गया है तो दूर निकलेगा.

क्या भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष दो विपरीत परिस्थितयां हैं? मेरे कई साथियों के उठाये गए सवाल इस ओर इशारा कर रहें हैं. यह कुछ उसी तरह का सवाल है, जब विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग के अनुशंसाओं को आंशिक रूप से लागू किये थे. कई लोगों ने कहा कि वी पी ने अपने मुख्य मंत्रित्व कल में डकैतों के नाम पर कई पिछड़े वर्ग और एक खास जाति के लोगों का नरसंहार किये थे. मेरे समझ में एक ही व्यक्ति विभिन्न परिस्थियों में अलग अलग तरह से निर्णय ले सकते हैं. मुझे गाइड फिल्म में देव आनंद का किरदार याद आ रहा है जिसमें मूल रूप से वे एक धोकेबाज हैं और गाँव वाले उन्हें पूजने लगते हैं. अंत में उन्हें लोगों के विश्वास के अनुरूप ढलना पड़ता है और वर्षा के लिए वे उपवास रखतें हैं और फिर बारिश भी होती है, परन्तु उनकी जान चली जाति है. मैं समझता हूँ कि व्यक्ति अगर परिस्थितियों में बंध कर कोई कदम उठाता है तो फ़िलहाल उसी कदम का विश्लेषण होना चाहिए.
जहाँ तक प्रश्न भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का है, भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय के तथाकथित कौन योद्धा है जिसमे यह नैतिक साहस हो कि वे ऐसा आन्दोलन करें? भ्रष्ट तंत्र के वैसे ही अभिन्न अंग हैं जैसे मनुवादी नेता. और भ्रष्टाचार से अगर देश के आम नागरिक त्रस्त हैं तो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग , अल्पसंख्यक समुदाय सभी उतने ही प्रभावित हैं. अगर कोई नेता भ्रष्टाचार के विरुद्ध थोडा भी कदम बढ़ाता है तो उसका हौसला अफजाई होना चाहिए, भले वो आरक्षण के लिए उसी प्रतिबद्धता से कोई आन्दोलन न किये हों और न आगे करें.
अन्ना के आन्दोलन में शंकाएं हो सकते हैं , खास तौर से जब देश की जातिवादी,सूदखोर और बड़े उद्योगपतियों के कठपुतली मीडिया इसमें साथ ही नहीं दें बल्कि ढोल बजा करें. इसका कारण का विश्लेषण करना भी आवश्यक है, परन्तु इससे आन्दोलन के चरित्र और अन्ना की प्रतिबद्धता पर प्रश्न नहीं उठते हैं. आरक्षण की लड़ाई हमारी जिम्मेवारी है, कोई अन्ना आये या न आये, फर्क नहीं पड़ता. लेकिन देश के अरबों रूपये को लूटने वालों के विरुद्ध अगर कानून बनाये जाने में रोड़ा डाला जाता है, और कोई संघर्ष होता है, तो सामाजिक न्याय के समर्थकों को भी उसमे शामिल होना लाजिमी है. दिक्कत है की पप्पू यादव जैसे नेता इस मुहीम में शामिल होते हैं, तो हम जैस लोगों को भी थोड़ी शंका होती है.

Tuesday, April 5, 2011

अन्ना हजारे ने आमरण अनशन शुरू किया....





स्वतंत्र भारत में कुछ ही ऐसे छण हैं जब किसी सत्याग्रह या जनांदोलन को स्वतः आम लोगों का विशाल समर्थन मिलता है जैसा आज नई दिल्ली के जंतर मंतर पर शुरू अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के विरूद्ध आमरण अनशन को मिला. मैं अपने कुछ साथियों के साथ अपना समर्थन ज़ाहिर करने के लिए जंतर मंतर गया जिससे अन्ना के आन्दोलन को बल मिले क्योंकि मुझे इस आन्दोलन के सार्थकता, महत्व और ईमानदारी के प्रति कोई शंका नहीं है.
अन्ना हजारे ने आज से अपना अमरण अनशन एक सशक्त भ्रष्टाचार विरोधी कानून " जन लोकपाल विधेयक " लाये की मांग को लेकर शुरू किये हैं.
वहां बांटे गए पर्चे पर लिखा था - " पिछले बार जब अन्ना हजारे ने आमरण अनशन किया तो - * महाराष्ट्र के ६ भ्रष्ट मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा;* ४०० भ्रष्ट अधिकारीयों को नौकरी से बर्खास्त किया गया;*२००२ - महाराष्ट्र सूचना अधिकार विधेयक पारित हुआ;*२००६ - केन्द्रीय सरकार ने सूचना के अधिकार में अपने प्रस्तावित संशोधन को वापस ले लिया.
अब अन्ना जन लोकपाल विधेयक की मांग को लेकर अनशन कर रहे हैं. ७८ वर्ष की आयु में अन्ना अपने लिए नहीं हमारे बच्चों के भविष्य के लिए अनशन कर रहें हैं.
आज दिल्ली में 25 लाख लोग देश के लिए उपवास करेंगे | आप क्या करेगे ... और कुछ नहीं तो एक missed call तो कर ही सकते हो .. नंबर मै दे देता हूँ. | 02261550789 पर करनी है.
डॉ.किसन बाबुराव हजारे,उर्फ़ अन्ना हजारे ( जन्म जून १५, १९३८),एक समाजसेवी हैं जिन्हें महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक गाँव रालेगन सिद्धि के विकास के लिए तथा इस गाँव को एक माडल गाँव बनाने में योगदान दिया . भारत सरकार ने उन्हें १९९२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया.
१९६३ में भारत - चीन युद्ध के समय भारत सरकार के आह्वान पर वे भारतीय फौज में शामिल हो गए. १९६५ में पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय वे खेमकरण सीमा पर तैनात थे. पाकिस्तान के हवाई हमले में उनके सभी साथी मरे गए, तथा उनके सर के बिलकुल पास से एक गोली निकल कर चली गयी. उनके जीवन का वो एक निर्णायक छण था. वे स्वामी विवेकानंद के चित्र और बाद में उनके जीवन से प्रभावित हुए.
इस तरह अपने मुट्ठी भर पेंसन के सहारे ही समाजसेवा और अपने गाँव को सुधरने में जुट गए. उनके आन्दोलन के सामने अक्सर सरकार को झुकना पड़ा है. सूचना है की उनके अनशन के समर्थन में महाराष्ट्र के ४०० छोटे बड़े जगहों पर साथ- साथ अनशन हो रहा है.
मैंने देखा की लोगों के साथ-साथ वहां मीडिया का भी भारी जमवारा था. मेरे ध्यान में कुछ मित्रों का शंका आया जो इन्टरनेट पर अपने वार्ता या बयान में बहुत योगदान देते हैं. परन्तु यह मेरा निजी और पूर्ण विश्वास है की भ्रष्टाचार रुपी दीमक जो हमारे देश के जड़ों को खोकला कर रहा है, से अगर कोई लोहा लेता है तो किसी भी कोने या राजनैतिक-सामाजिक छाया से आने वाले समर्थन का स्वागत होना चाहिए, चाहे उनकी जो मजबूरी से वे मदद दे रहें हों.यह भी कटु सत्य है की सिर्फ व्यापक जन आन्दोलन से ही परिवर्तन आयेगा, जैसा १९७७ के जनता (जे पी ) या १९९० के जनता (वि पी) के जनांदोलनो से हुआ था.
मुझे स्वामी विवेकानंद की वो आह्वान याद आ रही है जब उन्होंने कहा, " उठो, जागो और चलते रहो जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाये." यह इस आन्दोलन को समर्थन देने सभी भारत वासियों को याद रखना होगा. जय हिंद.

Anna Hazare begins fast unto death...






There has been a few instances of widespread public support to mass movements or Satyagrah in Independent India as that of 'Fast unto Death' begun by Anna Hazare today at Jantar Mantar, New Delhi. I too went there with few of my colleagues and registered my support for the cause, the importance and genuineness of which I am convinced.
Anna Hazare has begun fast unto death demanding enactment of a strong Anti Corruption Law called "Jan Lokpal Bill" from today.
The pamphlet distributed said that " Last time when Anna sat on fast -
*6 Corrupt Ministers in Maharashtra had to resign;*400 corrupt officers were dismissed from job;*2002 - Maharashtra RTI Act was passed;*2006 - Central Government withdrew its proposal to amend RTI Act.
Now Anna is fasting to demand Jan Lokpal Bill. At 78, Anna is not fasting for himself, he is fasting for the future of our children.
To stay updated about this movement, please send us a missed call at 02261550789."
Dr.Kisan Baburao Hazare, popularly known as Anna Hazare (b. June 15, 1938), is an Indian social activist who is especially recognized for his contribution to the development of Ralegan Siddhi, a village in Ahmednagar district, Maharashtra, India and his efforts for establishing it as a model village, for which he was awarded the Padma Bhushan by Govt. of India, in 1992.

His tryst with the army came when many Indian soldiers became martyrs in the Indo-China War of 1962 and the Government of India had appealed to young Indians to join the Indian army. Being passionate about patriotism, he promptly responded to the appeal and joined the Indian Army in 1963. During his 15-year tenure as a soldier, he was posted to several states like Sikkim, Bhutan, Jammu-Kashmir, Assam, Mizoram, Leh and Ladakh and braved challenging weathers.

At times, Hazare used to be frustrated with life and wondered about the very existence of human life. His mind yearned to look out for a solution to this simple and basic question. His frustration reached the peak level and at one particular moment, he also contemplated suicide. For this, he had also penned a two page essay on why he wants to live no more. Fortunately for him, inspiration came from the most unexpected quarters ?at the book stall of the railway station of New Delhi, where he was located then. He came across a book of Swami Vivekananda and immediately bought it.

He was inspired by Vivekananda’s photograph on the cover. As he started reading the book, he found answers to all his questions, he says. The book revealed to him that the ultimate motive of human life should be service to humanity. Striving for the betterment of common people is equivalent to offering a prayer to the God, he realized.

In the year 1965, Pakistan attacked India and at that time, Hazare was posted at the Khemkaran border. On November 12, 1965, Pakistan launched air attacks on Indian base and all of Hazare’s comrades became martyrs, It was a close shave for Hazare as one bullet had passed by his head. Hazare believes this was the turning point of his life as it meant he had a purpose to life. Anna was greatly influenced by Swami Vivekananda’s teachings. It was at that particular moment that Hazare took an oath to dedicate his life in the service of humanity, at the age of 26. He decided not not to let go of a life time by being involved merely in earning the daily bread for the family. That’s the reason why he pledged to be a bachelor. By then he had completed only three years in the army and so would not be eligible for the pension scheme. In order to be self-sufficient, he continued to be in the army for 12 more years. After that, he opted for voluntary retirement and returned to his native place in Ralegan Siddhi, in the Parner tehsil of Ahmednagar district.

While in the army, Hazare used to visit Ralegan Siddhi for two months every year and used to see the miserable condition of farmers due to water scarcity. Ralegan Siddhi falls in the drought-prone area with a mere 400 to 500 mm of annual rainfall. There were no weirs to retain rainwater. During the month of April and May, water tankers were the only means of drinking water. Almost 80 per cent of the villagers were dependent on other villages for food grains. Residents used to walk for more than four to six kilometers in search of work and some of them had opted to open country liquor dens as a source of income.
More than 30-35 such dens located in and around the village had tarnished the dignity of the village and marred the social peace. Small scuffles, thefts and physical brawls resulted in loss of civic sense. Morality had reached such a nadir that some of the residents stole wooden logs of the temple of the village deity Yadavbaba to burn the choolah of one of the country liquor outfits.
I witnessed the conglomeration of entire Media, and support of people from different shades of socio-political set up. I remembered doubt of some of my friends who contribute widely to discussions especially in Net dialogues / monologues. However, it is my firm belief that while combating the termite of today's socio-political disorder eating away into the prosperity of India and Indians, support coming from different quarters are welcome, but it is also a a hard fact that only a mass movement can bring about meaningful difference as the kind that occurred in 1977 the Janta Rising (JP) or 1990 also the Janta Rising (VP)!
So, remember what Swami Vivekanand had to say, " Arise, awake and stop not till the goal is achieved." This is for those who also support this cause.

Saturday, April 2, 2011

श्रंद्धांजलि - वरीय अधिवक्ता स्व रमेश चन्द्र यादव (१३ मई १९३८-२ अप्रैल २००५), मेरे पिताजी के छठे पुण्यतिथि पर


श्रंद्धांजलि - वरीय अधिवक्ता स्व रमेश चन्द्र यादव (१३ मई १९३८-२ अप्रैल २००५), मेरे पिताजी के छठे पुण्यतिथि पर.
स्व रमेश चन्द्र यादव स्व रासबिहारी लाल मंडल, ज़मींदार मुरहो स्टेट , मधेपुरा (बिहार) के प्रथम सुपुत्र स्व भुब्नेश्वरी प्रसाद मंडल, ऍम एल सी, १९३७ बिहार-ओड़िसा विधान परिषद्, एवं, अध्यक्ष, जिला परिषद् , भागलपुर(अपने मृत्यु १९४८ तक) के तृतीय सुपुत्र थे. उनके सबसे बड़े भाई स्व न्यायमूर्ति राजेश्वर प्रसाद मंडल, पटना उच्च न्यायलय के पिछड़े वर्ग से आने वाले प्रथम न्यायधीशों में थे. उनके दुसरे बड़े भाई स्व सुरेश चन्द्र यादव , पूर्व विधायक, तथा सहरसा जिला परिषद् के पूर्व अध्यक्ष थे.
स्व रमेश चन्द्र यादव मधेपुरा के वरिष्ठ व निर्भीक अधिवक्ता थे. वे मधेपुरा के सांस्कृतिक, सामाजिक व राजनैतिक जीवन के एक युग का प्रतिनिधित्व करते थे. वे मधेपुरा भूमि विकास बैंक के कई कार्यकाल तक अध्यक्ष रहे. मधेपुरा- सुपौल केन्द्रीय सहकारी बैंक के निदेशक रहे और किसानो के लिए हमेशा कIम करते रहे. लगभग तीन दशकों तक मधेपुरा के सांस्कृतिक जीवन की अभिन्न पहचान त्रिदिवसीय सार्वजनिक दशहरा संगीत समरोह के करता-धर्ता स्व रमेश बाबु ही थे जो उनकी मृत्यु के बाद समाप्त ही हो गयी. मधेपुरा में खेल-कूद से जुड़े हरेक कार्यक्रम में उन्ही का योगदान होता था. मधेपुरा नगर पालिका में जब तक वे प्रमुख व विशिष्ठ वार्ड संख्या का प्रतिनिधित्व करते रहे, नगरपालिका का कार्य भी सही ढंग से चलता रहा. वे अपने चाचा स्व बी पी मंडल के लगभग सभी चुनाव के चुनाव प्रभारी रहे और मधेपुरा की स्थानीय राजनीती में सम्मानीय मुरहो परिवार का प्रतिनिधित्व करते रहे. रासबिहारी उच्च विद्यालय के प्रबंध समिति में दानदाता परिवार के नाते हमेशा सदस्य रहे और शिवनंदन प्रसाद मंडल उच्च विद्यालय में प्रबंधन को लेकर जब तथा कथित अगरों-पिछड़ों का संघर्ष हुआ तो वे आसानी से विद्यालय प्रबंधन समिति के सचिव चुने गए और कई वर्षों तक बने रहे. उन्ही के प्रयास से विद्यालय के परिसर के चारों ओर दीवाल का निर्माण हुआ जिससे विद्यालय के ज़मीन की सुरक्षा हुई और मुख्य सड़क के किनारे दुकानों के निर्माण से विद्यालय को आमदनी का स्रोत निश्चित हुआ.
स्व रमेश बाबु कभी भी मधेपुरा के आम नागरिकों के लिए किसी भी पदाधिकारी से आमना-सामना करने के लिए तैयार रहते थे. एक बार एक जिला पदाधिकारी के इशारे पर मधेपुरा के सम्मानीय घोष परिवार के विरुद्ध एक झूठा मामला दर्ज किया गया और अधिवक्ताओं को इस मामले में पैरवी नहीं करने की धमकी दी गयी. स्व रमेश बाबु ने न सिर्फ उस व्यक्ति के मामले की न्यायलय में पैरवी की बल्कि उसे निर्दोष भी साबित किया. बाद में उक्त जिला पदाधिकारी ने उनके उपर झूठा मुकदमा करवाया. आनन फानन में मधेपुरा वासियों ने मधेपुरा बंद किया. तत्कालीन प्रधान मंत्री स्व विश्वनाथ प्रताप सिंह के हस्तक्षेप के बाद बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने उस जिला पदाधिकारी का रातों रात तबादला किया.
स्व रमेश चन्द्र यादव कुछ समय तक बीमार रहे और दिल्ली में उनका इलाज़ चल रहा था. २००५ के होली क अवसर पर वे चिकित्सकों के सलाह के विपरीत मधेपुरा आयें. शाम को मधेपुरा के प्रमुख अधिवक्ताओं, जैसे श्री रंधीर सिंह,श्री धीरेन्द्र झा, श्री सोहन झा, श्री प्रफुल यादव इत्यादि , का जमघट रमेश बाबु के घर पर था और ठहाकों के बीच उन्हें ब्रेन हमोरज हुआ. उन्हें रातों रात दिल्ली के अपोलो अस्पताल में भारती कराया गया. परन्तु २ अप्रैल को उनका स्वर्गवास हो गया. अगले दिन उनका दाहसंस्कार हरिद्वार में किया गया.
स्व रमेश चन्द्र यादव के मृत्यु के बाद ऐसा लगता है कि मधेपुरा के सांस्कृतिक, सामाजिक व राजनैतिक जीवन में उनकी कमीं को पूरा करना संभव नहीं है. मैं उनके छठे पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.