इस जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा
गिरा दिया है तो साहिल पे इंतज़ार न कर
अगर वोह डूब गया है तो दूर निकलेगा.
क्या भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष दो विपरीत परिस्थितयां हैं? मेरे कई साथियों के उठाये गए सवाल इस ओर इशारा कर रहें हैं. यह कुछ उसी तरह का सवाल है, जब विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग के अनुशंसाओं को आंशिक रूप से लागू किये थे. कई लोगों ने कहा कि वी पी ने अपने मुख्य मंत्रित्व कल में डकैतों के नाम पर कई पिछड़े वर्ग और एक खास जाति के लोगों का नरसंहार किये थे. मेरे समझ में एक ही व्यक्ति विभिन्न परिस्थियों में अलग अलग तरह से निर्णय ले सकते हैं. मुझे गाइड फिल्म में देव आनंद का किरदार याद आ रहा है जिसमें मूल रूप से वे एक धोकेबाज हैं और गाँव वाले उन्हें पूजने लगते हैं. अंत में उन्हें लोगों के विश्वास के अनुरूप ढलना पड़ता है और वर्षा के लिए वे उपवास रखतें हैं और फिर बारिश भी होती है, परन्तु उनकी जान चली जाति है. मैं समझता हूँ कि व्यक्ति अगर परिस्थितियों में बंध कर कोई कदम उठाता है तो फ़िलहाल उसी कदम का विश्लेषण होना चाहिए.
जहाँ तक प्रश्न भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का है, भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय के तथाकथित कौन योद्धा है जिसमे यह नैतिक साहस हो कि वे ऐसा आन्दोलन करें? भ्रष्ट तंत्र के वैसे ही अभिन्न अंग हैं जैसे मनुवादी नेता. और भ्रष्टाचार से अगर देश के आम नागरिक त्रस्त हैं तो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग , अल्पसंख्यक समुदाय सभी उतने ही प्रभावित हैं. अगर कोई नेता भ्रष्टाचार के विरुद्ध थोडा भी कदम बढ़ाता है तो उसका हौसला अफजाई होना चाहिए, भले वो आरक्षण के लिए उसी प्रतिबद्धता से कोई आन्दोलन न किये हों और न आगे करें.
अन्ना के आन्दोलन में शंकाएं हो सकते हैं , खास तौर से जब देश की जातिवादी,सूदखोर और बड़े उद्योगपतियों के कठपुतली मीडिया इसमें साथ ही नहीं दें बल्कि ढोल बजा करें. इसका कारण का विश्लेषण करना भी आवश्यक है, परन्तु इससे आन्दोलन के चरित्र और अन्ना की प्रतिबद्धता पर प्रश्न नहीं उठते हैं. आरक्षण की लड़ाई हमारी जिम्मेवारी है, कोई अन्ना आये या न आये, फर्क नहीं पड़ता. लेकिन देश के अरबों रूपये को लूटने वालों के विरुद्ध अगर कानून बनाये जाने में रोड़ा डाला जाता है, और कोई संघर्ष होता है, तो सामाजिक न्याय के समर्थकों को भी उसमे शामिल होना लाजिमी है. दिक्कत है की पप्पू यादव जैसे नेता इस मुहीम में शामिल होते हैं, तो हम जैस लोगों को भी थोड़ी शंका होती है.
"There is equality only among equals. To equate unequals is to perpetuate inequality." ~ Bindheshwari Prasad Mandal "All epoch-making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-~ADOLF HITLER.
About Me
- Suraj Yadav
- New Delhi, NCR of Delhi, India
- I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....
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