

बात शुरू हुई अन्ना हजारे के जन लोकपाल विधेयक को सरकारी कानून बनाये जाने की मुहीम में नई दिल्ली के जंतर मंतर पर अमरण अनशन पर बैठने के बाद. वैसे इससे पहले बाबा रामदेव ने विदेशों में भारत के डेढ़ खरब अमरीकी डालर की काले धन को वापस भारत लाने पर भी कुछ ऐसी ही बहस हुई थी. हमारे कुछ साथी जिनके विचारों से अक्सर मैं बहुत प्रभावित रहता हूँ वे इस मुहीम को हर तरह से नकारने लगे. तो इस पर मैं भी अपनी राय देने का प्रयास क़र रहा हूँ. वैसे तो मैं भी आदतन आलोचक हूँ परन्तु आधे गिलास के पानी को आधे भरे हुए पानी के रूप में देखने की दुस्साहस भी करता हूँ. परन्तु मेरे मित्रों के अप्पतियों में कुछ तो वजन रखते हैं और कुछ में उनके अहम् की छाया नज़र आ रही है.
मुद्दा ये है की भारत में भ्रष्टाचार से लोग त्रस्त हैं. राजनैतिक व नौकरशाहों के भ्रष्टाचार सबसे अधिक चिंता जनक हैं. अंतर्राष्ट्रीय संस्थi Transparency International के अनुसार भारत के १५ प्रतिशत जनता ने किसी सरकारी कामकाज करने के लिए स्वयं रिश्वत दिए या दिलवाए. इसी संस्था का आंकलन है की ट्रक चालक लगभग ५ अरब अमरीकी डालर प्रति वर्ष रिश्वत देते हैं. भ्रष्टाचार के मापने के इंडेक्स में १७८ देशों में भारत का स्थान ८७ वाँ है. जहाँ भारत विश्व के भ्रष्टतम देशों में है वहीँ दक्षिण एशिया में इससे भी भ्रष्ट कई देश हैं.
प्रश्न है कि इस समस्या से निजात पाने के लिए आप क्या उपाय सुझाते हैं. बाबा रामदेव का मानना है की काले धन की वापसी से इस मुहीम को बल मिलेगा. अन्ना हजारे एवम उनके साथियों ने एक विधेयक तैयार किया - जन लोकपाल विधेयक - जिससे उन्हें लगता है कि भ्रष्टाचार करने वालों को इस बेहतर कानून से बांधा जा सकता है. इस पर शंका और बहस जायज है. यह भी आवश्यक है कि हमारे नज़र में इससे बेहतर क्या उपाय हैं वह भी कहें.
परन्तु बहस यह है "अन्ना हजारे तुम इतने टेढ़े क्यों हो?" जगदीश्वर चतुर्वेदी - अन्ना ने लोकतंत्र व्यवस्था के विरुद्ध टिपण्णी की !;"सावधान अन्ना! पीछे छिपे खेल से" अमलेंदु उपाध्याय - कानून बनाना संसद का काम है, इसे कोई अन्ना,केजरीवाल या अग्निवेश बंधक नहीं बना सकते;"भ्रष्टाचार और अन्ना हजारे की मृग-मरीचिका" जगदीश्वर चतुर्वेदी - इस दौर का संघर्ष मीडिया इवेंट है!; रजनीश के झा - आम गरीब किसान मजदूर का नदारद होना और सिर्फ सो काल्ड सिविल सोसायटी का होना अन्ना पर प्रश्न चिन्ह है और मीडिया पर भी. फिर प्रश्न उठा की अन्ना ने राज ठाकरे को समर्थन दिया था, वह भूतकाल में क्या-क्या किया था. यह भी सामने आया की दो toilet के बीच चल रहा था अन्ना का आन्दोलन. अब सरकार ने धरने के लिए toilet के बीच का स्थान दिया है, तो लोग जायेंगे कहाँ?
सिविल सोसाइटी के नुमाइंदे कौन हो सकते थे. आन्दोलन करने वाले ही बनेंगे या बुलाक़र ले जायेंगेकिसी पत्रकार या विद्वान को.
इन सभी आपत्तियों में भ्रष्टाचार का प्रश्न व उससे लड़ने की बात कहीं नहीं है. अगर यह आन्दोलन नहींथा तो टिप्पणीकार स्वयं कोई आन्दोलन क्यों नहीं शुरू किये.
भ्रष्टाचार से लोहा लेने के लिए न समाजवादी, न मार्क्सवादी, न सामाजिक न्याय के पक्षधर और न ही सामाजिक अन्यायकर्ता कोई सामने नहीं आये.
मैंने यह प्रश्न पहले भी उठाया जब मुझे लगा की यह बताने का प्रयास किया जा रहा की भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन सामाजिक न्याय के विरुद्ध है.
व्यक्ति अगर परिस्थितियों में बंध कर कोई कदम उठाता है तो फ़िलहाल उसी कदम का विश्लेषण होना चाहिए.
जहाँ तक प्रश्न भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का है, भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय के तथाकथित कौन योद्धा है जिसमे यह नैतिक साहस हो कि वे ऐसा आन्दोलन करें? भ्रष्ट तंत्र के वैसे ही अभिन्न अंग हैं जैसे मनुवादी नेता. और भ्रष्टाचार से अगर देश के आम नागरिक त्रस्त हैं तो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग , अल्पसंख्यक समुदाय सभी उतने ही प्रभावित हैं. अगर कोई नेता भ्रष्टाचार के विरुद्ध थोडा भी कदम बढ़ाता है तो उसका हौसला अफजाई होना चाहिए, भले वो आरक्षण के लिए उसी प्रतिबद्धता से कोई आन्दोलन न किये हों और न आगे करें.
अन्ना के आन्दोलन में शंकाएं हो सकते हैं , खास तौर से जब देश की जातिवादी,सूदखोर और बड़े उद्योगपतियों के कठपुतली मीडिया इसमें साथ ही नहीं दें बल्कि ढोल बजा-बजा क़र करें. इसका कारण का विश्लेषण करना भी आवश्यक है, परन्तु इससे आन्दोलन के चरित्र और अन्ना की प्रतिबद्धता पर प्रश्न नहीं उठते हैं.
अगर किसी गरीब व्यक्ति को बेवजह पीटा जा रहा है और मैं हस्तक्षेप करूँ और यह कहा जाय की क्या अपने कभी किसी पर हाथ नहीं उठाया है तब ही आप इसे बच सकतें हैं, तो दरअसल वह उस व्यक्ति के पीटे जाने का पक्षधर है.
बाबा रामदेव ने भी जब विदेशों में जमा काले धन का मुद्दा छेड़ा तो उनके संपत्ति का प्रश्न उठा कार उन्हें बचाओ की मुद्रा में ले आया गया. तो जिसने 'पाप न किया हो और पापी न हो' तर्क पर तो न्यायधीश भी नहीं मिल पाएंगे.
मेरा यह निवेदन है सार्थक बहस के लिए आलोचना में यह भी बात उठे की भ्रष्टाचार स निपटने के लिए और क्या उपाय हो सकतें हैं.
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