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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Thursday, December 24, 2015

इंटरनेट बचाएँ : नेट न्यूट्रेलिटी : #SaveTheInternet

इंटरनेट घोटाला:
इंटरनेट बचाएँ : नेट न्यूट्रेलिटी : फेसबुक के फ्री बेसिक्स अनुमोदन से बचें और उसके व्यवस्था के पक्ष में कमेंट्स दें- बजाए www.mygov.in पर या www.savetheinternet.in पर लॉग करें और वर्तमान
जब सरकार के विभाग रहते "रेगुलेटरी अथॉरिटी" बनाए गए तो दरअसल यह देसी विदेशी कंपनियों के पैसे बनाने के संसद और जनाधिकारों के अंकुश से बचने के उपाय के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
इसी क्रम में ट्राई (TRAI) है, जिसका काम सरकार के इशारे पर कंपनियों के लिए दलाली का है, ने नेट न्यूट्रेलिटी पर विचार मांगे हैं। ट्राई जैसे असंवैधानिक संस्थाओं किसी भी पार्टी द्वारा विरोध ही नहीं होता है। यह जबरन देश में टेलीविजन देखने वालों को सेट टॉप बॉक्स लगाने और बिना उचित जाँच के बिजली बिल बढ़ाने के आदेश देती है और संसद, न्यायालय इस संविधान-इतर संस्था को अनुमोदन देती है। सेट टॉप बॉक्स के माध्यम से उपभोक्ताओं से पैसे उसूलने का जहाँ पूरा इंतज़ाम है वहीँ चैनलों के बेहिसाब वाजिब गैरवाजिब कमाई पर कोई लेख जोखा नहीं।
इसी तरह फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग नरेंद्र मोदी को अहमियत देते हैं या अगर कहते कि उनकी कंपनी नेट निरपेक्षता के लिए प्रतिबद्ध है, तो किसी को यह संशय न रहें की अपना बिज़नेस बढ़ाने के लिए या एकाधिकार बरकरार रखने के लिए ऐसा कह या कर रहें हैं। हालांकि इसके साथ ही उन्होंने इंटरनेट सेवा कंपनियों की तथाकथित जीरो-रेटिंग प्लान का भी समर्थन किया, जिन्हें कई आलोचक इंटरनेट की निरपेक्षता के सिद्धान्त के खिलाफ मानते हैं।इस तरह फेसबुक भी 'फ्री बेसिक्स' के नाम पर इसी मुहीम में लग गया है। फेसबुक के झांसे में न आएँ।
इसी दिशा में सभी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर को लग रहा है कि इंटरनेट के 'सेवा' (पढ़िए बिज़नेस) के पूरे पैसे नहीं मिल रहे हैं। तब सरकार की ओर से TRAI, जिसके लिए व्यापारियों का हित परम धर्म है, ने नेट न्यूट्रेलिटी की बहस शुरू की है।
एक सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि व्हॉट्सऐप, स्काइप और वाइबर जैसी इंटरनेट-आधारित सेवाओं से भारत के भीतर की जाने वाली कॉलों को उसी तरह 'नियंत्रित' किया जाना चाहिए, जैसे 'परंपरागत' फोन कॉलों को किया जाता है। इसी दिशा में तीन प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर्स एयरटेल, वोडाफोन और आईडिया सेल्‍यूलर ने कॉल ड्रॉप्स और नेट न्यूट्रैलिटी पर अपना स्टैंड आईटी पर संसद की स्थायी समिति के सामने रख दिया है।
यह तमाशा है क्या ?
अभी :
सभी वेबसाइट्स और ऐप को बराबरी का दर्जा दिया जाता है।
प्रत्येक यूजर की किसी भी वेब-बेस्ड सर्विस तक पहुंच बनी रहती है।
कोई भी वेबसाइट या ऐप ब्लॉक नहीं होता।
हर वेबसाइट के लिए एक समान स्पीड मिलती है।
इसके तहत विकल्प असीमित रहेंगे, बिल नियंत्रण में रहेगा।
यदि इसे ख़त्म किया गया तो?
अलग-अलग वेबसाइट के लिए अलग-अलग स्पीड मिलेगी।
टेलीकॉम कंपनी से जुड़े ऐप और वेबसाइट ही फ्री होंगे।
जिन ऐप, वेबसाइटों के साथ करार नहीं, उनके लिए अतिरिक्त पैसे देने होंगे।
अच्छी स्पीड के लिए भी अलग से भुगतान करना होगा।
ग्राहकों का फोन बिल बढ़ेगा।
इंटरनेट की वर्तमान व्यवस्था बनाए रखने के लिए, और जो अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस, जापान में भी है,
आपसे अनुरोध है www.mygov.in पर वर्तमान व्यवस्था के पक्ष में कमेंट्स दें।
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Saturday, December 19, 2015

मस्तानी और बाजीराव : एक ऐतिहासिक रोमांचक प्रेम कहानी। Mastani and Bajirao First.

इतिहास के कुछ रोमांचक पल : बाजीराव पेशवा प्रथम और मस्तानी।
18वीं शताब्दी के पूर्व मध्यकाल में मराठा इतिहास में मस्तानी का विशेष उल्लेख मिलता है। बखर और लेखों से मालूम पड़ता है कि मस्तानी अफ़गान और गूजर जाति की थी। इनका जन्म नृत्य करनेवाली जाति में हुआ था। गुजरात के गीतों में इन्हें 'नृत्यांगना' या 'यवन कांचनी' के नाम से संबोधित किया गया है।
कहानी राजा छत्रसाल के राज्य पर मुगल दरबार के मुहम्मद खान बंगश के हमले के साथ शुरू होता है।
छत्रसाल, अमर सम्राट शिवाजी महाराज से प्रेरणा प्राप्त करने के बाद (दिल्ली के लिए दक्षिण पूर्व) बुंदेलखंड में अपने राज्य की स्थापना की थी। खान बंगश ने उसके राज्य पर हमला किया, और छत्रसाल ने सहायता के लिए बाजीराव के लिए एक संदेश भेजा।
छत्रसाल जो खुद एक अच्छा कवि था, अपने संदेश में लिखा -
"जो बीती गज-राज पर, सो गति भायी है आज, बाजी जात बुन्देल की रक्खो, बाजी लाज"
(हम 'बुंदेले' नदी में पानी पीने गए उस गजराज की तरह भयानक स्थिति में हैं, जिसका पैर एक मगरमच्छ द्वारा पकड़ा लिया गया है, जब ... तो, ओह बाजी हमें और हमारे सम्मान की रक्षा करने के लिए कृपया मदद के लिए आएं..)
इस पुकार का जवाब देते हुए बाजीराव बुंदेलखंड के पास गए और जैतपुर की युद्ध में बंगश को पराजित किया। बंगश को पीछे हटाने के बाद बाजीराव और छत्रसाल भरतपुर में मिले, और इस ख़ुशी में छत्रसाल ने बाजीराव को अपने तीसरे बेटे के रूप में घोषित किया और अपने राज्य के एक तिहाई हिस्से से सम्मानित किया।
दरबार में अपने इस स्वागत में हो रहे पारंपरिक नृत्य के दौरान बाजीराव और मस्तानी ने पहली बार एक दूसरे को देखा।
इसको बेहतर समझने के लिए मराठा इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण शासक और उनके प्रधान मंत्री (पेशवा) के बारे में जानना ज़रूरी है।
महाराज शिवाजी ने सतारा वंश और मराठा साम्राज्य की नीवं 1674 में रखी। मराठा साम्राज्य या मराठा महासंघ 1674 से 1818 तक अस्तित्व में रही। यह साम्राज्य 1818 तक चला और लगभग पूरे भारत में फैल गया।
छत्रपति शिवाजी (1627-1680)
छत्रपति सम्भाजी (1657-1689)
छत्रपति राजाराम (1670-1700) कोल्हापुर वंश।
महारनी ताराबाई (1675-1761)
छत्रपति शाहू (1682-1749) उर्फ शिवाजी द्वितीय, छत्रपति संभाजी का बेटा
छत्रपति रामराज (छत्रपति राजाराम और महारानी ताराबाई का पौत्र)।
मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्रियों को पेशवा (मराठी: पेशवा) कहते थे। ये राजा के सलाहकार परिषद अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख होते थे। राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था। शिवाजी के अष्टप्रधान मंत्रिमंडल में प्रधान मंत्री अथवा वजीर का पर्यायवाची पद था। 'पेशवा' फारसी शब्द है जिसका अर्थ 'अग्रणी' है।
पेशवा का पद वंशानुगत नहीं था। आरंभ में, संभवत: पेशवा मर्यादा में अन्य सदस्यों के बराबर ही माना जाता था। छत्रपति राजाराम के समय में पंत-प्रतिनिधि का नवनिर्मित पद, राजा का प्रतिनिधि होने के नाते पेशवा से ज्येष्ठ ठहराया गया था। पेशवाई सत्ता के वास्तविक संस्थापन का, तथा पेशवा पद को वंशपरंपरागत रूप देने का श्रेय ऐतिहासिक क्रम से सातवें पेशवा, बालाजी विश्वनाथ को है। किंतु, यह परिवर्तन छत्रपति शाहू के सहयोग और सहमति द्वारा ही संपन्न हुआ, उसकी असमर्थता के कारण नहीं। यद्यपि बालाजी विश्वनाथ के उत्तराधिकारी बाजीराव ने मराठा साम्राज्य के सीमाविस्तार के साथ साथ अपनी सत्ता को भी सर्वोपरि बना दिया, तथापि वैधानिक रूप से पेशवा की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन शाहू की मृत्यु के बाद, बाजीराव के पुत्र बालाजी के समय में हुआ। अल्पवयस्क छत्रपति रामराजा की अयोग्यता के कारण समस्त राजकीय शक्ति संगोला के समझौते (25 सितंबर 1750) के अनुसार, पेशवा को हस्तांतरित हो गई, तथा शासकीय केंद्र सातारा की अपेक्षा पुणे निर्धारित किया गया। किंतु पेशवा माधवराव के मृत्युपरांत जैसा सातारा राजवंश के साथ हुआ, वैसा ही पेशवा वंश के साथ हुआ। माधवराज के उत्तराधिकारियों की नितांत अयोग्यता के कारण राजकीय सत्ता उनके अभिभावक नाना फड़नवीस के हाथों में केंद्रित हो गई। किंतु आँग्ल शक्ति के उत्कर्ष के कारण इस स्थिति में भी शीघ्र ही महान परिवर्तन हुआ। अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय को वसई की संधि के अनुसार (31 दिसम्बर 1802) अंग्रेजों का प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ा; 13 जून 1817, की संधि के अनुसार मराठा संघ पर उसे अपना अधिकार छोड़ना पड़ा; तथा अंत में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध की समाप्ति पर, मराठा साम्राज्य के विसर्जन के बाद, पदच्युत होकर अंग्रेजों की पेंशन ग्रहण करने के लिये विवश होना पड़ा।
पेशवाओं का काल-
बाळाजी विश्वनाथ पेशवा (1714-1720)
बाजीराव पेशवा प्रथम (1720-1740)
बाळाजी बाजीराव पेशवा ऊर्फ नानासाहेब पेशवा (1740-1761)
माधवराव बल्लाळ पेशवा ऊर्फ थोरले माधवराव पेशवा (1761-1772)
नारायणराव पेशवा (1772-1774)
रघुनाथराव पेशवा (अल्पकाल)
सवाई माधवराव पेशवा (1774-1795)
दूसरे बाजीराव पेशवा (1796-1818)
दूसरे नानासाहेब पेशवा (सिंहासन पर नहीं बैठ पाए)।
बाजीराव प्रथम के बारे में कुछ तथ्य :
जन्म 1700 ई. : मृत्यु 1740। जब महाराज शाहू ने १७२० में बालाजी विश्वनाथ के मृत्यूपरांत उसके 19 वर्षीय ज्येष्ठपुत्र बाजीराव को पेशवा नियुक्त किया तो पेशवा पद वंशपरंपरागत बन गया। अल्पव्यस्क होते हुए भी बाजीराव ने असाधारण योग्यता प्रदर्शित की। उसका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था; तथा उसमें जन्मजात नेतृत्वशक्ति थी। अपने अद्भुत रणकौशल, अदम्य साहस और अपूर्व संलग्नता से, तथा प्रतिभासंपन्न अनुज चिमाजी अप्पा के सहयोग द्वारा शीघ्र ही उसने मराठा साम्राज्य को भारत में सर्वशक्तिमान् बना दिया। शकरलेडला (Shakarkhedla) में उसने मुबारिज़खाँ को परास्त किया। (1724)। मालवा तथा कर्नाटक पर प्रभुत्व स्थापित किया (1724-1726)। पालखेड़ में महाराष्ट्र के परम शत्रु निजामउलमुल्क को पराजित कर (1728) उससे चौथ तथा सरदेशमुखी वसूली। फिर मालवा और बुंदेलखंड पर आक्रमण कर मुगल सेनानायक गिरधरबहादुर तथा दयाबहादुर पर विजय प्राप्त की (1729)। तदनंतर मुहम्मद खाँ बंगश (Bangash) को परास्त किया (1729)। दभोई में त्रिंबकराव को नतमस्तक कर (1731) उसने आंतरिक विरोध का दमन किया। सीदी, आंग्रिया तथा पुर्तगालियों को भी विजित किया। दिल्ली का अभियान (1737) उसकी सैन्यशक्ति का चरमोत्कर्ष था। उसी वर्ष भोपाल में उसने फिरसे निजाम को पराजय दी। अंतत:1739 में उसने नासिरजंग पर विजय प्राप्त की। अपने यशोसूर्य के मध्य्ह्राकाल में ही 28 अप्रैल 1740 को अचानक रोग के कारण उसकी असामयिक मृत्यु हुई।

मस्तानी:
18 वीं शताब्दी के पूर्व मध्यकाल में मराठा इतिहास में मस्तानी का विशेष उल्लेख मिलता है। बखर और लेखों से मालूम पड़ता है कि मस्तानी अफ़गान और गूजर जाति की थी। इनका जन्म नृत्य करनेवाली जाति में हुआ था। गुजरात के गीतों में इन्हें 'नृत्यांगना' या 'यवन कांचनी' के नाम से संबोधित किया गया है।
मस्तानी अपने समय की अद्वितीय सुंदरी एवं संगीत कला में प्रवीण थी। इन्होंने घुड़सवारी और तीरंदाजी में भी शिक्षा प्राप्त की थी। गुजरात के नायब सूबेदार शुजाअत खाँ और मस्तानी की प्रथम भेंट 1724 ई० के लगभग हुई। चिमाजी अप्पा ने उसी वर्ष शुजाअत-खान पर आक्रमण किया। युद्ध क्षेत्र में ही शुजाअत खाँ की मृत्यु हुई। लूटी हुई सामग्री के साथ मस्तानी भी चिमाजी अप्पा को प्राप्त हुई। चिमाजी अप्पा ने उन्हें बाजीराव के पास पहुँचा दिया। तदुपरांत मस्तानी और बाजीराव एक दूसरे के लिए ही जीवित रहे।
1727 ई० में प्रयाग के सूबेदार मोहम्मद खान बंगश ने राजा छत्रसाल (बुंदेलखंड) पर चढ़ाई की। राजा छत्रसाल ने तुरंत ही पेशवा बाजीराव से सहायता माँगी। बाजीराव अपनी सेना सहित बुंदेलखंड की ओर बढ़े। मस्तानी भी बाजीराव के साथ गई। मराठे और मुगल दो बर्षों तक युद्ध करते रहे। तत्पश्चात् बाजीराव जीते। छत्रसाल अत्यंत आनंदित हुए। उन्होंने मस्तानी को अपनी पुत्री के समान माना। बाजीराव ने जहाँ मस्तानी के रहने का प्रबंध किया उसे 'मस्तानी महल' और 'मस्तानी दरवाजा' का नाम दिया।
मस्तानी ने पेशवा के हृदय में एक विशेष स्थान बना लिया था। उसने अपने जीवन में हिंदू स्त्रियों के रीति रिवाजों को अपना लिया था। बाजीराव से संबंध के कारण मस्तानी को भी अनेक दु:ख झेलने पड़े पर बाजीराव के प्रति उसका प्रेम अटूट था। मस्तानी के 1734 ई० में एक पुत्र हुआ। उसका नाम शमशेर बहादुर रखा गया। बाजीराव ने काल्पी और बाँदा की सूबेदारी उसे दी, शमशेर बहादुर ने पेशवा परिवार की बड़े लगन और परिश्रम से सेवा की। 1761 ई० में शमशेर बहादुर मराठों की ओर से लड़ते हुए पानीपत के मैदान में मारा गया।
1739 ई० के आरंभ में पेशवा बाजीराव और मस्तानी का संबंध विच्छेद कराने के असफल प्रयत्न किए गए। 1739 ई० के अंतिम दिनों में बाजीराव को आवश्यक कार्य से पूना छोड़ना पड़ा। मस्तानी पेशवा के साथ न जा सकी। चिमाजी अप्पा और नाना साहब ने मस्तानी के प्रति कठोर योजना बनाई। उन्होंने मस्तानी को पर्वती बाग में (पूना में) कैद किया। बाजीराव को जब यह समाचार मिला, वे अत्यंत दु:खित हुए। वे बीमार पड़ गए। इसी बीच अवसर पा मस्तानी कैद से बचकर बाजीराव के पास 4 नवम्बर 1739 ई० को पटास पहुँची। बाजीराव निश्चिंत हुए पर यह स्थिति अधिक दिनों तक न रह सकी। शीघ्र ही पुरंदरे, काका मोरशेट तथा अन्य व्यक्ति पटास पहुँचे। उनके साथ पेशवा बाजीराव की माँ राधाबाई और उनकी पत्नी काशीबाई भी वहाँ पहुँची। उन्होंने मस्तानी को समझा बुझाकर लाना आवश्यक समझा। मस्तानी पूना लौटी। १७४० ई० के आरंभ में बाजीराव नासिरजंग से लड़ने के लिए निकल पड़े और गोदावरी नदी को पारकर शत्रु को हरा दिया। बाजीराव बीमार बड़े और 28 अप्रैल 1740 को उनकी मृत्यु हो गई।
मस्तानी बाजीराव की मृत्यु का समाचार पाकर बहुत दु:खित हुई और उसके बाद अधिक दिनों तक जीवित न रह सकी। आज भी पूना से २० मील दूर पाबल गाँव में मस्तानी का मकबरा उनके त्याग दृढ़ता तथा अटूट प्रेम का स्मरण दिलाता है।
बाजीराव के निरंतर अभियानों के परिणामस्वरूप निस्संदेह, मराठा शासन को अत्याधिक भार वहन करना पड़ा, मराठा साम्राज्य सीमतीत विस्तृत होने के कारण असंगठित रह गया, मराठा संघ में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ प्रस्फुटित हुई, तथा मराठा सेनाएँ विजित प्रदेशों में असंतुष्टिकारक प्रमाणित हुई; तथापि बाजीराव की लौह लेखनी ने निश्चय ही महाराष्ट्रीय इतिहास का गौरवपूर्ण परिच्छेद रचा।

Friday, December 18, 2015

हार की जीत (कथा-कहानी) : रचनाकार: सुदर्शन | Sudershan

माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवद्-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके में न था। बाबा भारती उसे 'सुल्तान' कह कर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते और देख-देखकर प्रसन्न होते थे। उन्होंने रूपया, माल, असबाब, ज़मीन आदि अपना सब-कुछ छोड़ दिया था, यहाँ तक कि उन्हें नगर के जीवन से भी घृणा थी। अब गाँव से बाहर एक छोटे-से मन्दिर में रहते और भगवान का भजन करते थे। "मैं सुलतान के बिना नहीं रह सकूँगा", उन्हें ऐसी भ्रान्ति सी हो गई थी। वे उसकी चाल पर लट्टू थे। कहते, "ऐसे चलता है जैसे मोर घटा को देखकर नाच रहा हो।" जब तक संध्या समय सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील का चक्कर न लगा लेते, उन्हें चैन न आता।
खड़गसिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर काँपते थे। होते-होते सुल्तान की कीर्ति उसके कानों तक भी पहुँची। उसका हृदय उसे देखने के लिए अधीर हो उठा। वह एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुँचा और नमस्कार करके बैठ गया। बाबा भारती ने पूछा, "खडगसिंह, क्या हाल है?"
खडगसिंह ने सिर झुकाकर उत्तर दिया, "आपकी दया है।"
"कहो, इधर कैसे आ गए?"
"सुलतान की चाह खींच लाई।"
"विचित्र जानवर है। देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे।"
"मैंने भी बड़ी प्रशंसा सुनी है।"
"उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी!"
"कहते हैं देखने में भी बहुत सुँदर है।"
"क्या कहना! जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है।"
"बहुत दिनों से अभिलाषा थी, आज उपस्थित हो सका हूँ।"
बाबा भारती और खड़गसिंह अस्तबल में पहुँचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से, खड़गसिंह ने देखा आश्चर्य से। उसने सैंकड़ो घोड़े देखे थे, परन्तु ऐसा बाँका घोड़ा उसकी आँखों से कभी न गुजरा था। सोचने लगा, भाग्य की बात है। ऐसा घोड़ा खड़गसिंह के पास होना चाहिए था। इस साधु को ऐसी चीज़ों से क्या लाभ? कुछ देर तक आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रहा। इसके पश्चात् उसके हृदय में हलचल होने लगी। बालकों की-सी अधीरता से बोला, "परंतु बाबाजी, इसकी चाल न देखी तो क्या?"
दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय अधीर हो गया। घोड़े को खोलकर बाहर गए। घोड़ा वायु-वेग से उडने लगा। उसकी चाल को देखकर खड़गसिंह के हृदय पर साँप लोट गया। वह डाकू था और जो वस्तु उसे पसंद आ जाए उस पर वह अपना अधिकार समझता था। उसके पास बाहुबल था और आदमी भी। जाते-जाते उसने कहा, "बाबाजी, मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूँगा।"
बाबा भारती डर गए। अब उन्हें रात को नींद न आती। सारी रात अस्तबल की रखवाली में कटने लगी। प्रति क्षण खड़गसिंह का भय लगा रहता, परंतु कई मास बीत गए और वह न आया। यहाँ तक कि बाबा भारती कुछ असावधान हो गए और इस भय को स्वप्न के भय की नाईं मिथ्या समझने लगे। संध्या का समय था। बाबा भारती सुल्तान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। इस समय उनकी आँखों में चमक थी, मुख पर प्रसन्नता। कभी घोड़े के शरीर को देखते, कभी उसके रंग को और मन में फूले न समाते थे। सहसा एक ओर से आवाज़ आई, "ओ बाबा, इस कंगले की सुनते जाना।"
आवाज़ में करूणा थी। बाबा ने घोड़े को रोक लिया। देखा, एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा है। बोले, "क्यों तुम्हें क्या कष्ट है?"
अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा, "बाबा, मैं दुखियारा हूँ। मुझ पर दया करो। रामावाला यहाँ से तीन मील है, मुझे वहाँ जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा।"
"वहाँ तुम्हारा कौन है?"
"दुगार्दत्त वैद्य का नाम आपने सुना होगा। मैं उनका सौतेला भाई हूँ।"
बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे। सहसा उन्हें एक झटका-सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तनकर बैठा है और घोड़े को दौड़ाए लिए जा रहा है। उनके मुख से भय, विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख निकल गई। वह अपाहिज डाकू खड़गसिंह था।बाबा भारती कुछ देर तक चुप रहे और कुछ समय पश्चात् कुछ निश्चय करके पूरे बल से चिल्लाकर बोले, "ज़रा ठहर जाओ।"
खड़गसिंह ने यह आवाज़ सुनकर घोड़ा रोक लिया और उसकी गरदन पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, "बाबाजी, यह घोड़ा अब न दूँगा।"
"परंतु एक बात सुनते जाओ।" खड़गसिंह ठहर गया।
बाबा भारती ने निकट जाकर उसकी ओर ऐसी आँखों से देखा जैसे बकरा कसाई की ओर देखता है और कहा, "यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका है। मैं तुमसे इसे वापस करने के लिए न कहूँगा। परंतु खड़गसिंह, केवल एक प्रार्थना करता हूँ। इसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।"
"बाबाजी, आज्ञा कीजिए। मैं आपका दास हूँ, केवल घोड़ा न दूँगा।"
"अब घोड़े का नाम न लो। मैं तुमसे इस विषय में कुछ न कहूँगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।"
खड़गसिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। उसका विचार था कि उसे घोड़े को लेकर यहाँ से भागना पड़ेगा, परंतु बाबा भारती ने स्वयं उसे कहा कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। इससे क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है? खड़गसिंह ने बहुत सोचा, बहुत सिर मारा, परंतु कुछ समझ न सका। हारकर उसने अपनी आँखें बाबा भारती के मुख पर गड़ा दीं और पूछा, "बाबाजी इसमें आपको क्या डर है?"
सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया, "लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे।" यह कहते-कहते उन्होंने सुल्तान की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही नहीं रहा हो।
बाबा भारती चले गए। परंतु उनके शब्द खड़गसिंह के कानों में उसी प्रकार गूँज रहे थे। सोचता था, कैसे ऊँचे विचार हैं, कैसा पवित्र भाव है! उन्हें इस घोड़े से प्रेम था, इसे देखकर उनका मुख फूल की नाईं खिल जाता था। कहते थे, "इसके बिना मैं रह न सकूँगा।" इसकी रखवाली में वे कई रात सोए नहीं। भजन-भक्ति न कर रखवाली करते रहे। परंतु आज उनके मुख पर दुख की रेखा तक दिखाई न पड़ती थी। उन्हें केवल यह ख्याल था कि कहीं लोग दीन-दुखियों पर विश्वास करना न छोड़ दे। ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं देवता है।
रात्रि के अंधकार में खड़गसिंह बाबा भारती के मंदिर पहुँचा। चारों ओर सन्नाटा था। आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे। थोड़ी दूर पर गाँवों के कुत्ते भौंक रहे थे। मंदिर के अंदर कोई शब्द सुनाई न देता था। खड़गसिंह सुल्तान की बाग पकड़े हुए था। वह धीरे-धीरे अस्तबल के फाटक पर पहुँचा। फाटक खुला पड़ा था। किसी समय वहाँ बाबा भारती स्वयं लाठी लेकर पहरा देते थे, परंतु आज उन्हें किसी चोरी, किसी डाके का भय न था। खड़गसिंह ने आगे बढ़कर सुलतान को उसके स्थान पर बाँध दिया और बाहर निकलकर सावधानी से फाटक बंद कर दिया। इस समय उसकी आँखों में नेकी के आँसू थे। रात्रि का तीसरा पहर बीत चुका था। चौथा पहर आरंभ होते ही बाबा भारती ने अपनी कुटिया से बाहर निकल ठंडे जल से स्नान किया। उसके पश्चात्, इस प्रकार जैसे कोई स्वप्न में चल रहा हो, उनके पाँव अस्तबल की ओर बढ़े। परंतु फाटक पर पहुँचकर उनको अपनी भूल प्रतीत हुई। साथ ही घोर निराशा ने पाँव को मन-मन भर का भारी बना दिया। वे वहीं रूक गए। घोड़े ने अपने स्वामी के पाँवों की चाप को पहचान लिया और ज़ोर से हिनहिनाया। अब बाबा भारती आश्चर्य और प्रसन्नता से दौड़ते हुए अंदर घुसे और अपने प्यारे घोड़े के गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे मानो कोई पिता बहुत दिन से बिछड़े हुए पुत्र से मिल रहा हो। बार-बार उसकी पीठपर हाथ फेरते, बार-बार उसके मुँह पर थपकियाँ देते। फिर वे संतोष से बोले, "अब कोई दीन-दुखियों से मुँह न मोड़ेगा।"

Wednesday, December 16, 2015

निर्भया : 2012 की राजधानी दिल्ली का युवती से निर्शंस मामला: Nirbhaya .


भारत की राजधानी नई दिल्ली में भौतिक चिकित्सा की प्रशिक्षण कर रही एक युवती पर दक्षिण दिल्ली में लिफ्ट देकर बस में सफर के दौरान 16 दिसम्बर 2012 की रात में बस के ड्राइवर, कंडक्टर एवं अन्य दो ने उस युवती और उसके मित्र के साथ अभद्र व्यवहार शुरू की और जब दोनों ने इसका विरोध किया तो उन्हें बुरी तरह पीटा गया। जब उसका पुरुष दोस्त बेहोश हो गया तो उस युवती के साथ उन ने बलात्कार करने की कोशिश की। उस युवती ने उनका डटकर विरोध किया परन्तु जब वह संघर्ष करते-करते थक गयी तो उन्होंने पहले तो उससे बेहोशी की हालत में बलात्कार करने की कोशिश की परन्तु सफल न होने पर उसके साथ वीभत्स और निर्शंस व्यवहार किया गया। बाद में वे सभी उन दोनों को एक निर्जन स्थान पर बस से नीचे फेंककर भाग गये। किसी तरह उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया। वहाँ बलात्कृत युवती की शल्य चिकित्सा की गयी। परन्तु हालत में कोई सुधार न होता देख उसे 26 दिसम्बर 2012 को सिंगापुर के माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल ले जाया गया जहाँ उस युवती की 29 दिसम्बर 2012 को दुखद मृत्यु हो गयी।
घटना के विरोध में अगले ही दिन कई लोगों ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स फेसबुक और ट्विटर के जरिए अपना गुस्सा ज़ाहिर करना शुरु किया। दिल्ली पुलिस ने कहा कि बस के ड्राइवर को सोमवार देर रात गिरफ्तार कर लिया और उसका नाम राम सिंह बताया गया। सामूहिक बलात्कार की घटना के क़रीब दो दिन बाद दिल्ली पुलिस आयुक्त नीरज कुमार ने मीडिया को संबोधित किया और जानकारी दी कि इस मामले में चार अभियुक्तों को गिरफ़्तार कर लिया गया है।
ड्राइवर राम सिंह ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और उसकी निशानदेही पर उसके भाई मुकेश, एक जिम इंस्ट्रक्टर विनय गुप्ता और फल बेचने वाले पवन गुप्ता को गिरफ़्तार किया गया।
मंगलवार 18 दिसम्बर को इस मामले की गूंज संसद में सुनाई पड़ी जहां आक्रोशित सांसदों ने बलात्कारियों के लिए मृत्युदंड की मांग की। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने संसद को आश्वासन दिलाया कि राजधानी में महिलाओं की सुरक्षा के लिए सभी ज़रूरी कदम उठाए जाएंगे।
सड़कों और सोशल मीडिया से उठी आवाज़ संसद के रास्ते सड़कों पर पहले से कहीं अधिक बुलंद आवाज के साथ सड़कों पर उतरी और दिल्ली में जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे।
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा कि उनमें इतनी हिम्मत नहीं कि वो अस्पताल जाकर बस में बर्बर सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई उस पीड़ित लड़की को देखने जा सकें। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सफदरजंग अस्पताल जाकर पीड़ित लड़की का हालचाल जाना। शीला दीक्षित ने ये भी कहा कि ज़रूरत पड़ने पर पीड़ित लड़की को इलाज के लिए विदेश ले जाया जाएगा।
दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि उसने इस मामले में सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन इससे आम लोगों का आक्रोश कम नहीं हुआ और शनिवार को रायसीना हिल्स पर हज़ारों लोग एकजुट हुए जिन्हें पुलिस ने तितर-बितर करने के लिए बल-प्रयोग किया।
शनिवार की घटना से सबक लेते हुए दिल्ली पुलिस ने रविवार के लिए पहले से ही तैयारी कर रखी थी और निषेधाज्ञा लगाकर रोकने की कोशिश की। कड़कड़ाती सर्दी और कुछ मेट्रो स्टेशनों के बंद होने के बाद भी लोग रविवार को बड़ी संख्या में एक बार फिर इंडिया गेट पर जुटे। पुलिस ने एक बार फिर बल प्रयोग करके प्रदर्शनकारियों के हटाने का प्रयास किया लेकिन विरोध का सिलसिला जारी रहा।
11 मार्च 2013 राम सिंह नामक मुख्य आरोपी ने सुबह तिहाड़ जेल में आत्म-हत्या कर लिया।हालाँकि राम सिंह के परिवार वालों तथा उसके वकील का मानना है की उसकी जेल में हत्या की गयी है।
14 सितम्बर 2013 को इस मामले के लिये विशेष तौर पर गठित त्वरित अदालत ने चारो वयस्क दोषियों को फाँसी की सज़ा सुनायी।पांचवें नाबालिग आरोपी को मामूली सजा सुनाई गयी जबकि मृतका के माता -पिता का मानना है सबसे वीभत्स कुकर्म उसी ने किया और सर्वोच्च न्यायलय में गुहार लगायी है।

Tuesday, December 15, 2015

स्व भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल की पुण्यतिथि 15 December, 1948

दादाजी स्व भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल की पुण्यतिथि 15 December, 1948 :
महान स्वतंत्रता सेनानी व देशभक्त, बिहार कांग्रेस के संस्थापक नेता, सामाजिक न्याय के प्रणेता, यादव शिरोमणि, मुरहो एस्टेट के ज़मींदार स्व रासबिहारी लाल मंडल के ज्येष्ठ पुत्र 1924 में बिहार उड़ीसा विधान परिषद में चुने गए तथा अपने मृत्यु 1948 तक भागलपुर लोकल बोर्ड के चेयरमैन बाबू भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल थे, जिनसे छोटे दो भाई 1937 में निर्वाचित बिहार विधान परिषद के सदस्य स्व कमलेश्वरी प्रसाद मंडल व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष स्व बीपी मंडल थे।
बाबू भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल की मृत्यु मधेपुरा स्थित अपने आवास "भुवनेश्वरी हवेली", वार्ड संख्या 18 पर 15 दिसंबर 1948 को हुई। वे अपनी डायरी लिखते थे, जिसमें श्री हनुमान जी / बजरंगबली जी को "महावीर स्वामी" लिखते थे। आखिर समय पर उनके बड़े पुत्र पटना हाई कोर्ट के जज जस्टिस राजेश्वर प्रसाद मंडल ने उनके बीमार हालत के बारे में लिखे हैं। फिर 15 दिसंबर को मझले पुत्र पूर्व विधायक स्व श्री सुरेश चन्द्र यादव ने उनके मृत्यु के बारे में लिखे हैं। छोटे पुत्र स्व रमेश चन्द्र यादव उस समय सिर्फ 7 - 8 वर्ष के थे।
Pages of Diary :
29 नवम्बर,1948, सोमवार :
From Madhipura at 6 A.M. to Baijnathpur 10A.M. with Sumrit to Mansi to Bihpur to Bhagalpur 11 P.M..
Halt at Mundichak Lodge."
मधेपुरा से 6 बजे प्रातः बैजनाथपुर के लिए सुमरित (उनका निजी स्टाफ) के साथ प्रस्थान, फिर मानसी से बिहपुर से भागलपुर 11 बजे रात्रि को पहुंचे। वहां मुंदीचक में अपने निज आवास ( 2 तल्ले की हवेली थी, जिसे बासा कहते थे) पर आराम।
30 नवम्बर, 1948, मंगलवार :
Mundichak, Bhagalpur : Attended District Board Meeting.
Suresh to (TNB) College. Halt at Mundichak Lodge.
मुंदीचक, भागलपुर : जिला परिषद की बैठक में शरीक हुआ।
सुरेश (द्वितीय पुत्र) को कॉलेज (टीएनबी कॉलेज) भेजा। रात्रि विश्राम मुंदीचक बासा पर।
Mundichak, Bhagalpur : Sent Sumrita to College to see and give Ghee to Suresh. Weather bad. Feeling feverish.
मुंदीचक, भागलपुर : सुमरित को सुरेश को देखने व घी देने के लिए कॉलेज भेजा। मौसम ख़राब। बुखार जैसा लग रहा है।
11 दिसंबर, 1948, शनिवार :
"I reached Madhipura at about 11 P.M. I saw father lying. He saw me and bowed his head towards Lord Shiva, whose photo was hanging just beside his bed.
- Rajeshwar."
" मैं लगभग 11 बजे रात्रि को मधेपुरा पहुंचा। मैंने देखा की पिताजी लेते हुए थे। वे मुझे देखे और उनके बिस्तर के ठीक बगल में टंगे भगवान शिव जी के फोटो की ओर अपना शीश नवाए।
- राजेश्वर। "
15 दिसंबर, 1948 बुधवार।
"Father expired today at 12-47 A.M. and left us in the vast ocean of sorrow.
:-Suresh."
"पिताजी आज 12-47 प्रातः को मृत्यु को प्राप्त हो गए और हमें दुःख के अथाह सागर में छोड़ गए।
:-सुरेश। "
"The End".
"इतिश्री" .

Sunday, December 13, 2015

बाबू कमलेश्वरी प्रसाद यादव : सदस्य, भारत का संविधान सभा (1946).

बाबू कमलेश्वरी प्रसाद यादव,

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई 1945 में ब्रिटेन में एक नयी सरकार बनी। इस नयी सरकार ने भारत संबन्धी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा एक संविधान निर्माण करने वाली समिति बनाने का निर्णय लिया। भारत की आज़ादी के सवाल का हल निकालने के लिए ब्रिटिश कैबिनेट के तीन मंत्री भारत भेजे गए। मंत्रियों के इस दल को कैबिनेट मिशन के नाम से जाना जाता है। 15 अगस्त 1947 को भारत के आज़ाद हो जाने के बाद यह संविधान सभा पूर्णतः प्रभुतासंपन्न हो गई। इस सभा ने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1947 से आरम्भ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे।
भारत की संविधान सभा का चुनाव भारतीय संविधान की रचना के लिए किया गया था। ग्रेट ब्रिटेन से स्वतंत्र होने के बाद संविधान सभा के सदस्य ही प्रथम संसद के सदस्य बने।जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। अनुसूचित वर्गों से 30 से ज्यादा सदस्य इस सभा में शामिल थे। सच्चिदानन्द सिन्हा इस सभा के प्रथम सभापति थे। किन्तु बाद में डॉ राजेन्द्र प्रसाद को सभापति निर्वाचित किया गया। भीमराव रामजी आंबेडकर को निर्मात्री सिमित का अध्यक्ष चुना गया था। संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 19 दिन में कुल 166 दिन बैठक की। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी।
बिहार से निर्वाचित सदस्यों में अमियो कुमार घोष, अनुग्रह नारायण सिन्हा, बनारसी प्रसाद झुनझुनवाला, भागवत प्रसाद, बोनिफेस लाकड़ा, ब्रजेश्वर प्रसाद, चंडिका राम, लालकृष्ण टी. शाह, देवेंद्र नाथ सामंत, डुबकी नारायण सिन्हा, गोपीनाथ सिंह, जदुबंस सहाय, जगत नारायण लाल, जगजीवन राम, जयपाल सिंह, दरभंगा के कामेश्वर सिंह, महेश प्रसाद सिन्हा, कृष्ण वल्लभ सहाय, रघुनंदन प्रसाद, राजेन्द्र प्रसाद, रामेश्वर प्रसाद सिन्हा, रामनारायण सिंह, सच्चिदानंद सिन्हा, सारंगधर सिन्हा, सत्यनारायण सिन्हा, बिनोदानन्द झा, पी. लालकृष्ण सेन, श्रीकृष्ण सिंह, श्री नारायण महथा, श्यामानन्द सहाय, हुसैन इमाम, सैयद जफर इमाम, लतीफुर रहमान, मोहम्मद ताहिर, ताजमुल हुसैन, चौधरी आबिद हुसैन, पंडित हरगोविन्द मिश्रा.सहित मधेपुरा के कमलेश्वरी प्रसाद यादव थे।
कमलेश्वरी बाबू चतरा (मधेपुरा) के जमींदार श्री राम लाल मंडल के पुत्र थे जिनका परिवार मधेपुरा के प्रतिष्ठित परिवारों में था।
कमलेश्वरी बाबू के ताऊ (बड़े बाबूजी) श्री राम लाल मंडल के बड़े भाई श्री संत लाल मंडल का विवाह कुमारखंड के पास कोरलाही - सुखसान के श्री गर्जुमन यादव की बहन यशोदा देवी से हुआ था। यशोदा देवी की बड़ी बहन श्रीमति सुमित्रा देवी का विवाह मुरहो एस्टेट के बाबू भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल, ज्येष्ठ पुत्र बाबू रासबिहारी लाल मंडल से हुआ था।
बाबू कमलेश्वरी प्रसाद यादव संविधान सभा के लिए खगडिया क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे। इस चुनाव में निर्वाचित होने के बाद संविधान सभा के सभी बैठकों में महत्वपूर्ण सुझाओं के साथ शामिल हुए और उनके भाषण प्रोसीडिंग्स में शामिल हैं। फिर चुकी यह सभा आज़ाद भारत के संसद के तौर पर मान लिया गया, तो बतौर मधेपुरा -खगडिया क्षेत्र का प्रतिनिधित्व उन्होंने बखूबी किया।
1952 के बिहार विधान सभा चुनाव में कमलेश्वरी बाबू उदा-किशनगंज क्षेत्र से विधायक बने और क्षेत्र के समस्याओं को पूरी जिम्मेदारी के साथ उठाये। इस समय 1952 में मधेपुरा के विधायक मुरहो एस्टेट के यादव शिरोमणि स्व रासबिहारी लाल मंडल के सबसे छोटे सुपुत्र स्व बी पी मंडल थे।
कमलेश्वरी बाबू फिर 1972 में भी निर्वाचित हुए।
बाबू कमलेश्वरी प्रसाद यादव पटना विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र (Political Science) और बी एच यू (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय) से हिंदी में डबल एम ए किए थे। वे पटना विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री भी प्राप्त किए थे।
पहले ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय और अब बी एन मंडल विश्वविद्यालय से मुरलीगंज (मधेपुरा) के पास कमलेश्वरी प्रसाद कॉलेज (www.kpcollege.co.in) आज भी शिक्षा से उनकी स्मृति के जुड़ाव को दर्शाता है।
1902 के लगभग में जन्म लिए बाबू कमलेश्वरी प्रसाद मंडल की मृत्यु 15 नवम्बर, 1989 को हुई।
उनका पुत्र श्री अभय कुमार यादव चतरा - मधेपुरा के राजनैतिक - सामाजिक जीवन में सक्रीय हैं।

Thursday, November 12, 2015

विकास की कीमत : दिल्ली में पेड़ो को अंधाधुन्द काटना।

दिल्ली वालों को दीपावली के मौके पर दिल्ली मेट्रो ने एक और तोहफा दिया है। जहांगीरपुरी से समयपुर बादली तक मेट्रो से सफर कर सकेंगे। इससे रोहिणी, बादली, यादव नगर, स्वरूप नगर समेत करीब एक दर्जन इलाके के 27 हजार यात्रियों को फायदा होगा। साथ ही सड़क से प्रतिदिन 10 हजार वाहन कम हो जाएंगे। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने झंडी दिखाकर रवाना किया।
परन्तु इसे बनाने में हज़ारों पेड़ काटे गए।
इसका दिल्ली मेट्रो ने कोई भरपाई नहीं किया है।
पिछले 15 सालों में अंधाधुंध निर्माण से दिल्ली में करीब 32 हजार हेक्टेयर ग्रीन कवर खत्म हुआ है। दिल्ली में मेट्रो के दो फेज के विस्तार से 34 हजार से ज्यादा पेड़ों को काटा गया। तीसरे फेज के लिए पहले ही 6 हजार पेड़ काटे जा चुके हैं और 5 हजार पेड़ों पर काटे जाने का खतरा मंडरा रहा है।
दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है इसलिए यहां रहने वाले लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि वो शहर के खो चुके ग्रीनरी को वापस लाने में सक्रिय सहयोग करें।
Trees being butchered at Baba Wala Bagh, Sector 19, Rohini and at Sector 18 Rohini, Delhi, India.

Tuesday, November 10, 2015

समीक्षा क्यों नहीं ? भाजपा टिकट बिकता है ?


अगर लोक सभा चुनाव में बिहार के परिणाम की समीक्षा हुई होती तो विधान सभा चुनाव में भाजपा की यह फजीयत नहीं होती। दरअसल बात मोदी लहर में बिहार के इस इलाके से 7 - 8 सीटें हारने को लेकर है।
लोक सभा चुनाव से पहले समझा जा रहा था की बहुत ही व्यवस्थित ढंग से सर्वे वैगेरह करके भाजपा के प्रत्याशियों को चयनित किया जा रहा था। परन्तु वास्तविकता में सुशील मोदी और उनके गुट के नेता सब कुछ मैनेज कर रहे थे। और इसमें पैसों का ज़बरदस्त खेल था। यहाँ तक की पासवान-कुशवाहा को हैसियत से अधिक सीटें देने के पीछे पैसों की ही सेटिंग थी।
मधेपुरा से, जहाँ से मैं भी दावेदारी कर रहा था, वहाँ पता चला की नितीश सरकार की मंत्री रेनू कुशवाहा के पति, जिनका एक मात्र योगदान और परिचय यही है, को 4 करोड़ के सौदे में सुशील मोदी ने टिकट दिलवा दी।
मधेपुरा में यादवों की बड़ी संख्या और राजद उम्मीदवार पप्पू यादव और जद(यू) प्रत्याशी शरद यादव थे।
इस अनर्गल फैसले का विरोध मधेपुरा और सहरसा जिला भाजपा इकाई ने पुरजोर तरीके से किया। सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव कहा गया कि," मधेपुरा लोक सभा क्षेत्र से घोषित भा ज पा प्रत्याशी का संगठन के पंचायत स्तर से लेकर सहरसा और मधेपुरा ज़िला इकाई के एक एक कार्यकर्ता द्वारा विरोध हो रहा है और इकाइयों द्वारा चरणबद्ध आंदोलन भी हो रहा है।
श्रीमान से नम्र निवेदन है कि तत्काल केन्द्रीय नेतृत्व का एक शीर्ष नेता को ज़मीनी जानकारी लेने के लिए भेजा जाय और तब मधेपुरा से घोषित भा ज पा प्रत्याशी पर अंतिम निर्णय लिया जाय।
ज़िला इकाईयां किसी एक को टिकट देने के बारे में कोई माँग नहीं कर रही है, पर घोषित प्रत्याशी को बदलने कि मांग कर रहें हैं।
मधेपुरा संसदीय क्षेत्र में कुल वोटर संख्या 1507610 (पंद्रह लाख छिहत्तर हज़ार छह सौ दस) है। जिनमें 789566 पुरुष और 718044 महिला है।
एक अनुमान के अनुसार इनमें लगभग 5 लाख यादव मतदाता हैं। मुसलमान और दलित लगभग 2 - 2. 50 लाख हैं। यादव छोड़ अन्य पिछड़ी जातियाँ भी लगभग 3 लाख हैं। अन्य पिछड़ी जातियों में कोइरी सबसे कम लगभग 30 - 35 हज़ार हैं। वैश्य लगभग 1 लाख हैं। ब्राह्मणों की संख्या भी लगभग 78 हज़ार और राजपूत की संख्या भी लगभग 79 हज़ार है।
ऐसी परिस्थिति में मधेपुरा कि सीट पर किस समीकरण से कुशवाहा, जो मधेपुरा का है भी नहीं, और जिसे मधेपुरा के 200 लोग भी नहीं जानते हैं, उसे उम्मीदवार बनाया गया है, यह आम कार्यकर्ताओं के समझ से परे है, और भा ज पा को इससे आस पास के सभी सीटों पर नुकसान हो रहा है।
अतः आशा है की तमाम कार्यकर्ताओं के इस अनुरोध पर गहराई से विचार करेंगे और संगठन के हित में फैसला लेंगे।"
परन्तु किसी तरह की कोई कार्यवाई नहीं हुई।
नतीजा हुआ की मधेपुरा सीट पार्टी हार गयी और साथ में यह मानते हुए की राजनैतिक रूप से संवेदनशील मधेपुरा का असर दूसरे क्षेत्रों पर भी हुआ होगा, भाजपा सुपौल, पूर्णियां, अररिया, कटिहार, किशनगंज, भागलपुर, बाँका भी हार गयी। लेकिन मोदी लहर में जीत के जूनून में इस पर ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझा गया।
अभी विधान सभा में सुशील जी के सीधे हस्तक्षेप से मधेपुरा विधान सभा क्षेत्र से एक विवादास्पद व्यक्ति को टिकट दिया गया, जो माना जाता है की ढाई करोड़ उन पर न्योछावर किया। जनाब 40 हज़ार वोटों से हारे हैं।
तो अब हम यही देखना चाहेंगे कि क्या कार्यवाई होती है।

Sunday, October 11, 2015

जे पी की याद में :


स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता जयप्रकाश नारायण (संक्षेप में जेपी) का जन्म बिहार के सारन जिले के सिताबदियारा गांव में 11 अक्टूबर, 1902 को हुआ था और उनकी मृत्यु 8 अक्टूबर, 1979 को।
1939 मे उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोक आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने सरकार को किराया और राजस्व रोकने के अभियान चलाए। टाटा स्टील कंपनी में हड़ताल करा के यह प्रयास किया कि अंग्रेज़ों को इस्पात न पहुंचे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 9 महीने की कैद की सज़ा सुनाई गई। जेल से छूटने के बाद उन्होने गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच सुलह का प्रयास किया। उन्हे बंदी बना कर मुंबई की आर्थर जेल और दिल्ली की कैंप जेल मे रखा गया। 1942 भारत छोडो आंदोलन के दौरान वे आर्थर जेल से फरार हो गए।
उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हथियारों के उपयोग को सही समझा। उन्होंने नेपाल जा कर आज़ाद दस्ते का गठन किया और उसे प्रशिक्षण दिया। उन्हें एक बार फिर पंजाब में चलती ट्रेन में सितंबर 1943 मे गिरफ्तार कर लिया गया। 16 महीने बाद जनवरी 1945 में उन्हें आगरा जेल मे स्थांतरित कर दिया गया। इसके उपरांत गांधी जी ने यह साफ कर दिया था कि डॉ॰ लोहिया और जेपी की रिहाई के बिना अंग्रेज सरकार से कोई समझौता नामुमकिन है। दोनो को अप्रेल 1946 को आजाद कर दिया गया।
1948 मे उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया और बाद में गांधीवादी दल के साथ मिल कर समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। 19 अप्रेल, 1954 में गया, बिहार मे उन्होंने विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन के लिए जीवन समर्पित करने की घोषणा की। 1957 में उन्होंने लोकनीति के पक्ष मे राजनीति छोड़ने का निर्णय लिया।
1960 के दशक के अंतिम भाग में वे राजनीति में पुनः सक्रिय रहे। 1974 में किसानों के बिहार आंदोलन में उन्होंने तत्कालीन राज्य सरकार से इस्तीफे की मांग की।
उन्हें 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। इन्दिरा गांधी को पदच्युत करने के लिये उन्होने 'सम्पूर्ण क्रांति' नामक आन्दोलन चलाया। वे समाज-सेवक थे, जिन्हें 'लोकनायक' के नाम से भी जाना जाता है। 1999 में उन्हें मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मनित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें समाजसेवा के लिये १९६५ में मैगससे पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। पटना के हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया है। दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल 'लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल' भी उनके नाम पर है।
लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान या फिर सुशील मोदी, आज के सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे।

Monday, August 31, 2015

हार्दिक इच्छा !


हार्दिक पटेल चाहते है कि वह अपने आंदोलन का दायरा अन्य राज्यों में भी बढ़ाएं। पूरे देश में पटेल समुदाय को एकजुट करेंगे। इसके साथ ही आंदोलन में कुर्मियों और गुर्जर जैसी जातियों को भी शामिल करेंगे।
दिक्कत है कि अहमदाबाद के सहजानंद कालेज की डिग्री में 50 परसेंट से भी कम नंबर प्राप्त किए हार्दिक को पिछड़े वर्ग आरक्षण और आंदोलन के बारे में कई अहम जानकारियों की भारी कमी है या यूं कहें हैं की जिन्होंने उन्हें आगे किया है वे जानबूझ कर उन जानकारियों को दिया नहीं होगा।
पटेल समुदाय को आरक्षण देने का दबाव बनाने के लिए हार्दिक के प्रयास को अपनी जगह पर कुछ लोगों द्वारा ठीक माना जा सकता है।
लेकिन गुज्जरों की मांग अलग है। वे पिछड़े वर्ग में आते हैं और चाहते हैं की उन्हें अनुसूचित जाति का दर्ज़ा मिले जिसके विरुद्ध राजस्थान के मीणा कमर कस कर आंदोलन कर रहें हैं।
कुर्मी पिछड़े वर्ग में हैं और हालाँकि मंडल आंदोलन में कई जातियाँ दिल्ली विश्वविद्यालय के मंडल विरोधी आंदोलन की उग्रता से चुप थे या विरोध में शमिल थे, आज मंडल आरक्षण का पूरा फायदा उठा रहें हैं। तो कुर्मियों के हार्दिक आंदोलन में शामिल होना संभव नहीं है।
जहाँ तक जाट समुदाय का प्रश्न है, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि में वे पिछड़े वर्ग में हैं।लेकिन जैसे आजकल गैस पर मिलने वाले सब्सिडी कुछ लोग छोड़ देते हैं , वैसे ही हरियाणा के जाट नेताओं ने पिछड़े वर्ग का हिस्सा बनना स्वीकार नहीं किया था और पिछड़े वर्ग के आरक्षण पर मंडल विरोधी आंदोलन के दिल्ली में वे कर्णधार थे। यह अलग बात है की आज वे आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहें हैं। परन्तु हार्दिक के प्रेस सम्मलेन गुज्जर और जाट नेताओं के अलग राय आने लगे।
दरअसल आज भी पिछड़े वर्ग के आरक्षण को ठीक से लागू नहीं किया गया है और आरक्षण नियमों के अवेहलना करते हुए पिछड़े वर्ग के लिए 27 प्रतिशत और अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए 22.5% आरक्षण की जगह जनरल केटेगरी की लिए 50% रिजर्व कर दिया जाता है यानि उसमें अगर OBC/SC/ST प्रतियोगिता के आधार पर आते भी हैं तो उन्हें छांट 27 व 22.5 % में दे दिया जाता है। ऊपर से जब पसमांदा मुसलमान पिछड़े वर्ग में ही आते हैं फिर भी आंध्र में अलग से मुस्लिम कोटा और हिज़डों के लिए भी इसी 27% में एडजस्ट करने के लिए आदेश दिया जाता है। 27 % आँख की किरकिरी है, हार्टबर्न का कारण !
पर हार्दिक को इससे क्या ? वे आधुनिक सरदार पटेल बनने की ख्वाहिश रखते हैं। पर सरदार बनना इतना आसान नहीं है। वैसा कद बनाना पड़ेगा, मूर्तियों का नहीं अपना !

Saturday, August 15, 2015

The Fifth Session of the Constituent Assembly of India : on the night of 14th August - 15th August, 1947.

Thursday, the 14th August 1947


commenced In the Constitution Hall, New Delhi, at Eleven P.M, Mr. President (The Honourable Dr. Rajendra Prasad) in the Chair.

SINGING OF VANDE MATARAM

Mr. President: The first item on the Agenda is the singing of the first verse of VANDE MATARAM. We will listen to it all standing.

Shrimati Sucheta Kripalani (U. P.: General) sang the first verse of the

VANDE MATARAM sang.

PRESIDENT'S ADDRESS

Mr. President:

(Mr. President then delivered his address in Hindustani the fun text of which is published in the Hindustani edition of the Debates.)

In this solemn hour, of our history when after many years of struggle we are taking over the governance of this country, let us offer I= humble thanks to the Almighty Power that shapes the destinies of men and nations and let us recall in grateful remembrance the services and sacrifices of all those men and women, known and unknown, who with smiles on their face walked to the gallows or faced bullets on their chests, who experience living death in the cells of the Andamans, or spent long years in the prisons of India, who preferred voluntary exile in foreign countries to a Me of humiliation in their own, who not only lost wealth and property but cut themselves off from near and dear ones to devote themselves to the achievement of the great objective which we. are witnessing, today. Let us also pay our tribute of love and reverence to Mahatma Gandhi who has been our beacon light, our guide and philospher during the last thirty years or more. He represents that undying spirit in our culture and make-up which has kept India alive through vicissitudes of our history. He it is who pulled us out of the slough of despond and despair and blowed into us a spirit which enabled us to stand up for justice to claim our birth-right of freedom and placed in our hands the matchless and unfailing weapon of Truth and Non-violence which, without arms and armaments has won for us the invaluable prim of Swaraj at a price which, when the history of these times comes to be written, will be regarded as incredible for a vast country of our size and for the teeming millions of our population. We were indifferent-instruments that he had to Wok with but he led us with consummate skill, with unwavering determination, with an undying faith in our future, with faith in his weapon and above all with faith in God. Let us prove true to that faith. Let us hope that India will not, in the hour of her triumph, give up or minimise the value of the weapon which served not only to rouse and inspire her. in her moments of depression but has also proved its efficacy. India has a great part to play in the shaping and moulding of, the future of a war distracted world. She can play that part not by mimicking, from a distance, what others are doing, or by joining in the race for armaments and competing with others in the discovery of the latest and most effective instruments of destruction. She has now the opportunity, and let us hope, she will have the courage and strength to place before the world for its acceptance her infallible substitute for war and bloodshed, death and destruction. The world needs it and will welcome it, unless it is prepared to reel back into barbarism from which it boasts to have emerged.

Friday, July 31, 2015

गुरू-पूर्णिमा: श्री गुरुस्तोत्रम्:- गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः

गुरू-पूर्णिमा
श्री गुरुस्तोत्रम्: गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः
Sri Guru Stotram: Gurur Brahma Gurur Vishnu Gurudevo Maheshwara
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है।अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।



भारत भर में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं।

Thursday, July 23, 2015

कृष्ण की द्वारिका :

मथुरा से निकलकर भगवान कृष्ण ने द्वारिका क्षेत्र में ही पहले से स्थापित खंडहर हो चुके नगर क्षेत्र में एक नए नगर की स्थापना की थी। कहना चाहिए कि भगवान कृष्ण ने अपने पूर्वजों की भूमि को फिर से रहने लायक बनाया था लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि द्वारिका नष्ट हो गई? किसने किया द्वारिका को नष्ट? क्या प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो गई द्वारिका? क्या किसी आसमानी ताकत ने नष्ट कर दिया द्वारिका को या किसी समुद्री शक्ति ने उजाड़ दिया द्वारिका को। आखिर क्या हुआ कि नष्ट हो गई द्वारिका और फिर बाद में वह समुद्र में डूब गई। अंतिम पेज पर खुलेगा इसका रहस्य जो आज तक कोई नहीं जानता।

इस सवाल की खोज कई वैज्ञानिकों ने की और उसके जवाब भी ढूंढे हैं। सैकड़ों फीट नीचे समुद्र में उन्हें ऐसे अवशेष मिले हैं जिसके चलते भारत का इतिहास बदल गया है। अब इतिहास को फिर से लिखे जाने की जरूरत बन गई है। आओ, इस सबके खुलासे के पहले जान लें इस क्षेत्र की प्राचीन पृष्ठभूमि को। पहले जान लें इस क्षेत्र का इतिहास... तब खुलेगा द्वारिका का एक ऐसा रहस्य, जो आप आज तक नहीं जान पाए हैं।

ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे- 1. पुरु, 2. यदु, 3. तुर्वस, 4. अनु और 5. द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है। 7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों का संपूर्ण धरती पर राज था। पांचों पुत्रों ने अपने-अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुई। इन पांचों कुल के लोगों ने आपस में कई प्रसिद्ध लड़ाइयां लड़ी हैं जिसमें से एक दासराज्ञ का युद्ध और दूसरा महाभारत का युद्ध प्रसिद्ध है।

पुराणों में उल्लेख है कि ययाति अपने बड़े लड़के यदु से रुष्ट हो गया था और उसे शाप दिया था कि यदु या उसके लड़कों को राजपद प्राप्त करने का सौभाग्य न प्राप्त होगा। (हरिवंश पुराण, 1, 30, 29)। ययाति सबसे छोटे बेटे पुरु को बहुत अधिक चाहता था और उसी को उसने राज्य देने का विचार प्रकट किया, परंतु राजा के सभासदों ने ज्येष्ठ पुत्र के रहते हुए इस कार्य का विरोध किया। (महाभारत, 1, 85, 32)

किसको कौन सा क्षेत्र मिला : ययाति ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम में द्रुहु को, दक्षिण में यदु को (आज का सिन्ध-गुजरात प्रांत) और उत्तर में अनु को मांडलिक पद पर नियुक्त किया तथा पुरु को संपूर्ण भूमंडल के राज्य पर अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए।

यदु ने पुरु पक्ष का समर्थन किया और स्वयं मांडलिक पद से इंकार कर दिया। इस पर पुरु को राजा घोषित किया गया और वह प्रतिष्ठान की मुख्य शाखा का शासक हुआ। उसके वंशज पौरव कहलाए। अन्य चारों भाइयों को जो प्रदेश दिए गए, उनका विवरण इस प्रकार है- यदु को चर्मरावती अथवा चर्मण्वती (चंबल), बेत्रवती (बेतवा) और शुक्तिमती (केन) का तटवर्ती प्रदेश मिला। तुर्वसु को प्रतिष्ठान के दक्षिण-पूर्व का भू-भाग मिला और द्रुहु को उत्तर-पश्चिम का। गंगा-यमुना दो-आब का उत्तरी भाग तथा उसके पूर्व का कुछ प्रदेश जिसकी सीमा अयोध्या राज्य से मिलती थी, अनु के हिस्से में आया।

यदि हम यादवों के क्षेत्र की बात करें तो वह आज के पाकिस्तान स्थित सिन्ध प्रांत और भारत स्थित गुजरात का प्रांत है। इसके बीच का क्षेत्र यदु क्षेत्र कहलाता था। पहले राज्य का विभाजन नदी और वन क्षेत्र के आधार पर था। सरस्वती नदी पहले गुजरात के कच्छ के पास के समुद्र में विलीन होती थी। सरस्वती नदी के इस पार (अर्थात विदर्भ की ओर गोदावरी-नर्मदा तक) से लेकर उस पार सिन्धु नदी के किनारे तक का क्षेत्र यदुओं का था। सिन्धु के उस पार यदु के दूसरे भाइयों का क्षेत्र था।
द्वारिका का परिचय : कई द्वारों का शहर होने के कारण द्वारिका इसका नाम पड़ा। इस शहर के चारों ओर बहुत ही लंबी दीवार थी जिसमें कई द्वार थे। वह दीवार आज भी समुद्र के तल में स्थित है। भारत के सबसे प्राचीन नगरों में से एक है द्वारिका। ये 7 नगर हैं- द्वारिका, मथुरा, काशी, हरिद्वार, अवंतिका, कांची और अयोध्या। द्वारिका को द्वारावती, कुशस्थली, आनर्तक, ओखा-मंडल, गोमती द्वारिका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारिदुर्ग, उदधिमध्यस्थान भी कहा जाता है।

गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित 4 धामों में से 1 धाम और 7 पवित्र पुरियों में से एक पुरी है द्वारिका। द्वारिका 2 हैं- गोमती द्वारिका, बेट द्वारिका। गोमती द्वारिका धाम है, बेट द्वारिका पुरी है। बेट द्वारिका के लिए समुद्र मार्ग से जाना पड़ता है।

द्वारिका का प्राचीन नाम कुशस्थली है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। यहां द्वारिकाधीश का प्रसिद्ध मंदिर होने के साथ ही अनेक मंदिर और सुंदर, मनोरम और रमणीय स्थान हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहां के बहुत से प्राचीन मंदिर तोड़ दिए। यहां से समुद्र को निहारना अति सुखद है।

कृष्ण क्यों गए थे द्वारिका : कृष्ण ने राजा कंस का वध कर दिया तो कंस के श्वसुर मगधपति जरासंध ने कृष्ण और यदुओं का नामोनिशान मिटा देने की ठान रखी थी। वह मथुरा और यादवों पर बारंबार आक्रमण करता था। उसके कई मलेच्छ और यवनी मित्र राजा थे। अंतत: यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कृष्ण ने मथुरा को छोड़ने का निर्णय लिया। विनता के पुत्र गरूड़ की सलाह एवं ककुद्मी के आमंत्रण पर कृष्ण कुशस्थली आ गए। वर्तमान द्वारिका नगर कुशस्थली के रूप में पहले से ही विद्यमान थी, कृष्ण ने इसी उजाड़ हो चुकी नगरी को पुनः बसाया।

कृष्ण अपने 18 नए कुल-बंधुओं के साथ द्वारिका आ गए। यहीं 36 वर्ष राज्य करने के बाद उनका देहावसान हुआ। द्वारिका के समुद्र में डूब जाने और यादव कुलों के नष्ट हो जाने के बाद कृष्ण के प्रपौत्र वज्र अथवा वज्रनाभ द्वारिका के यदुवंश के अंतिम शासक थे, जो यदुओं की आपसी लड़ाई में जीवित बच गए थे। द्वारिका के समुद्र में डूबने पर अर्जुन द्वारिका गए और वज्र तथा शेष बची यादव महिलाओं को हस्तिनापुर ले गए। कृष्ण के प्रपौत्र वज्र को हस्तिनापुर में मथुरा का राजा घोषित किया। वज्रनाभ के नाम से ही मथुरा क्षेत्र को ब्रजमंडल कहा जाता है।
द्वारिका के इन समुद्री अवशेषों को सबसे पहले भारतीय वायुसेना के पायलटों ने समुद्र के ऊपर से उड़ान भरते हुए नोटिस किया था और उसके बाद 1970 के जामनगर के गजेटियर में इनका उल्लेख किया गया। उसके बाद से इन खंडों के बारे में दावों-प्रतिदावों का दौर चलता चल पड़ा। बहरहाल, जो शुरुआत आकाश से वायुसेना ने की थी, उसकी सचाई भारतीय नौसेना ने सफलतापूर्वक उजागर कर दी।

एक समय था, जब लोग कहते थे कि द्वारिका नगरी एक काल्पनिक नगर है, लेकिन इस कल्पना को सच साबित कर दिखाया ऑर्कियोलॉजिस्ट प्रो. एसआर राव ने।

प्रो. राव ने मैसूर विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद बड़ौदा में राज्य पुरातत्व विभाग ज्वॉइन कर लिया था। उसके बाद भारतीय पुरातत्व विभाग में काम किया। प्रो. राव और उनकी टीम ने 1979-80 में समुद्र में 560 मीटर लंबी द्वारिका की दीवार की खोज की। साथ में उन्हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा सिन्धु घाटी सभ्यता के भी कई अवशेष उन्होंने खोजे। उस जगह पर भी उन्होंने खुदाई में कई रहस्य खोले, जहां पर कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ था।
नौसेना और पुरातत्व विभाग की संयुक्त खोज : पहले 2005 फिर 2007 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निर्देशन में भारतीय नौसेना के गोताखोरों ने समुद्र में समाई द्वारिका नगरी के अवशेषों के नमूनों को सफलतापूर्वक निकाला। उन्होंने ऐसे नमूने एकत्रित किए जिन्हें देखकर आश्चर्य होता है। 2005 में नौसेना के सहयोग से प्राचीन द्वारिका नगरी से जुड़े अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छंटे पत्थर मिले और लगभग 200 नमूने एकत्र किए गए।

गुजरात में कच्छ की खाड़ी के पास स्थित द्वारिका नगर समुद्र तटीय क्षेत्र में नौसेना के गोताखोरों की मदद से पुरा विशेषज्ञों ने व्यापक सर्वेक्षण के बाद समुद्र के भीतर उत्खनन कार्य किया और वहां पड़े चूना पत्थरों के खंडों को भी ढूंढ निकाला।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के समुद्री पुरातत्व विशेषज्ञों ने इन दुर्लभ नमूनों को देश-विदेशों की पुरा प्रयोगशालाओं को भेजा। मिली जानकारी के मुताबिक ये नमूने सिन्धु घाटी सभ्यता से कोई मेल नहीं खाते, लेकिन ये इतने प्राचीन थे कि सभी दंग रह गए।

नौसेना के गोताखोरों ने 40 हजार वर्गमीटर के दायरे में यह उत्खनन किया और वहां पड़े भवनों के खंडों के नमूने एकत्र किए जिन्हें आरंभिक तौर पर चूना पत्थर बताया गया था। पुरातत्व विशेषज्ञों ने बताया कि ये खंड बहुत ही विशाल और समृद्धशाली नगर और मंदिर के अवशेष हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक (धरोहर) एके सिन्हा के अनुसार द्वारिका में समुद्र के भीतर ही नहीं, बल्कि जमीन पर भी खुदाई की गई थी और 10 मीटर गहराई तक किए गए इस उत्खनन में सिक्के और कई कलाकृतियां भी प्राप्त हुईं।

इस समुद्री उत्खनन के बारे में सहायक नौसेना प्रमुख रियर एडमिरल एसपीएस चीमा ने तब बताया था कि इस ऐतिहासिक अभियान के लिए उनके 11 गोताखोरों को पुरातत्व सर्वेक्षण ने प्रशिक्षित किया और नवंबर 2006 में नौसेना के सर्वेक्षक पोत आईएनएस निर्देशक ने इस समुद्री स्थल का सर्वे किया। इसके बाद इस साल जनवरी से फरवरी के बीच नौसेना के गोताखोर तमाम आवश्यक उपकरण और सामग्री लेकर उन दुर्लभ अवशेषों तक पहुंच गए। रियर एडमिरल चीमा ने कहा कि इन अवशेषों की प्राचीनता का वैज्ञानिक अध्ययन होने के बाद देश के समुद्री इतिहास और धरोहर का तिथिक्रम लिखने के लिए आरंभिक सामग्री इतिहासकारों को उपलब्ध हो जाएगी।

इस उत्खनन के कार्य के आंकड़ों को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के सामने पेश किया गया। इन विशेषज्ञों में अमेरिका, इसराइल, श्रीलंका और ब्रिटेन के विशेषज्ञ भी शामिल हुए। नमूनों को विदेशी प्रयोगशालाओं में भी भेजा गया ताकि अवशेषों की प्राचीनता के बारे में किसी प्रकार की त्रुटि का संदेह समाप्त हो जाए।
द्वारिका पर ताजा शोध : 2001 में सरकार ने गुजरात के समुद्री तटों पर प्रदूषण के कारण हुए नुकसान का अनुमान लगाने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी द्वारा एक सर्वे करने को कहा। जब समुद्री तलहटी की जांच की गई तो सोनार पर मानव निर्मित नगर पाया गया जिसकी जांच करने पर पाया गया कि यह नगर 32,000 वर्ष पुराना है तथा 9,000 वर्षों से समुद्र मंड विलीन है। यह बहुत ही चौंका देने वाली जानकारी थी।

माना जाता है कि 9,000 वर्षों पूर्व हिमयुग की समाप्ति पर समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण यह नगर समुद्र में विलीन हो गया होगा, लेकिन इसके पीछे और भी कारण हो सकते हैं।
कैसे नष्ट हो गई द्वारिका : वैज्ञानिकों के अनुसार जब हिमयुग समाप्त हुआ तो समद्र का जलस्तर बढ़ा और उसमें देश-दुनिया के कई तटवर्ती शहर डूब गए। द्वारिका भी उन शहरों में से एक थी। लेकिन सवाल यह उठता है कि हिमयुग तो आज से 10 हजार वर्ष पूर्व समाप्त हुआ। भगवान कृष्ण ने तो नई द्वारिका का निर्माण आज से 5 हजार 300 वर्ष पूर्व किया था, तब ऐसे में इसके हिमयुग के दौरान समुद्र में डूब जाने की थ्योरी आधी सच लगती है।
लेकिन बहुत से पुराणकार और इतिहासकार मानते हैं कि द्वारिका को कृष्ण के देहांत के बाद जान-बूझकर नष्ट किया गया था। यह वह दौर था, जबकि यादव लोग आपस में भयंकर तरीके से लड़ रहे थे। इसके अलावा जरासंध और यवन लोग भी उनके घोर दुश्मन थे। ऐसे में द्वारिका पर समुद्र के मार्ग से भी आक्रमण हुआ और आसमानी मार्ग से भी आक्रमण किया गया। अंतत: यादवों को उनके क्षेत्र को छोड़कर फिर से मथुरा और उसके आसपास शरण लेना पड़ी।

हाल ही की खोज से यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि यह वह दौर था जबकि धरती पर रहने वाले एलियंस का आसमानी एलियंस के साथ घोर युद्ध हुआ था जिसके चलते यूएफओ ने उन सभी शहरों को निशाना बनाया, जहां पर देवता लोग रहते थे या जहां पर देवताओं के वंशज रहते थे।

https://youtu.be/QSEMIdGB8Uk

Saturday, July 18, 2015

कब्ज से बचाए, यह 10 घरेलू उपाय...

कब्ज से बचाए, यह 10 घरेलू उपाय
अनियमित दिनचर्या और खान-पान के कारण कब्ज की समस्या होना आम बात है। भोजन के बाद बैठे रहने और रात के खाने के बाद सीधे सो जाने जैसी आदतें कब्ज के लिए जिम्मेदार होती हैं।
1 सुबह उठने के बाद पानी में नींबू का रस और काला नमक मिलाकर पिएं। इससे पेट अच्छी तरह साफ होगा, और कब्ज की समस्या नहीं होगी।
2 कब्ज के लिए शहद बहुत फायदेमंद है। रात को सोने से पहले एक चम्मच शहद को एक गिलास पानी के साथ मिलाकर पिएं। इसके नियमित सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है।
3 सुबह उठकर प्रतिदिन खाली पेट, 4 से 5 काजू, उतने ही मुनक्का के साथ मिलाकर खाने से भी, कब्ज की शिकायत समाप्त हो जाती है। इसके अलावा रात को सोन से पहले 6 से 7 मुनक्का खाने से भी कब्ज ठीक हो जाता है।
4 प्रतिदिन रात में हरड़ के चूर्ण या त्रिफला को कुनकुने पानी के साथ पिएं। इससे कब्ज दूर हेगा, साथ ही पेट में गैस बनने की समस्या से भी निजात मिलेगी।
5 कब्ज के लिए आप सोते समय अरंडी के तेल को हल्के गर्म दूध में मिलाकर पी सकते हैं। इससे पेट साफ होता है, और कब्ज की समस्या नहीं होती।
6 र्इसबगोल की भूसी कब्ज के लिए रामबाण इलाज है। आप इसका प्रयोग दूध या पानी के साथ, रात को सोते वक्त कर सकते हैं। इससे कब्ज की समस्या बिल्कुल समाप्त हो जाएगी।
7 फलों में अमरूद और पपीता, कब्ज के लि बेहद फायदेमंद होते हैं। इनका सेवन किसी भी समय किया जा सकता है। इन्हें खाने से पेट की समस्याएं तो समाप्त होती ही हैं, त्वचा भी खूबसूरत बनती है।
8 किशमिश को कुछ देर तक पानी में गलाने के बाद, इसका सेवन करने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। इसके अलावा अंजीर को भी रातभर पानी में गलाने के बाद उसका सेवन करने से कब्ज की समस्या खत्म होती है।
9 पालक भी कब्ज के मरीजों के लिए एक अच्छा विकल्प है। प्रतिदिन पालक के रस को दिनचर्या में शामिल कर, आप कब्ज से आजदी पा सकते हैं, साथ ही इसकी सब्जी भी सेहत के लिए अच्छी होती है। लेकिन अगर आप पथरी के मरीज हैं, तो सका इस्तेमाल न करें।
10 कब्ज से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम और योगा करना बेहद फायदेमंद होता है। इसके अलावा हमेशा गरिष्ठ भोजन करने से बचना चाहिए।

Sunday, July 12, 2015

An Appeal to oppose CBCS at University of Delhi.

Why Choice Based Credit System is being forced at University of Delhi?
The members of the highest Academic Body of an University, which is about to celebrate its 100 years in 2022, i.e. the Academic Council of the University of Delhi, the model institution for entire Nation and nearly entire developing countries, is about to decide its fate by adopting or rejecting CBCS.
In my humble opinion it is our duty and minimum return we can give to this great Institution by saving it from disintegration by unilaterally rejecting CBCB with overwhelming majority in the Academic Council.
The intentions behind the introduction and the implication of these systems like Semester and CBC, which were forcefully implemented in the erstwhile Congress led UPA Government by the then Minister for HRD Kapil Sibbal, throgh UGC, vide letter number D.O.No. F.1-2/2008, (XI Plan) dated March 2009, with the directive as Subject : Action Plan for Academic and Administrative Reforms, can be clearly understood. Anyhow, that the same is being forced upon us and implemented without debate in the Government of Narendra Modi, which had promised 'Congress Muqt Bharat', cannot really be understood.
Ideally such a change should be after an discussion and debate in academic circles. The previous and present Vice-Chancellors of University of Delhi tried to generate a debate on Semester System, and even when all the Staff Associations and the statutory Staff Councils of almost 72 Colleges and in the much hyped meeting of all Teacher-in-Charges of all the Colleges at the University Stadium, the Teachers decided otherwise, the University went ahead with implementing the System. So, we are ready for forcing the CBCS upon us by conducting the farce of the meetings of Academic Council and it is only that history should not accuse us of doing disservice to the University, the education system and the Nation that we emphatically and categorically register our protest and send a copy of our disapproval and dissent to the Parliamentary Committee on Human Resource Development, to be considered by the highest body of the land.
On why we should reject this shall be explained point-wise here -
1. Any system which replaces a present working system has to be made with argument in its favour. Neither previous Congress led UPA or the present Government which has come with slogan of 'Congress Muqt Bharat' has cared to explain the logic of Semester System or CBCS and has tried to bulldoze these motivated systems ultimately meant to benefit Foreign and Private Universities and Institutions in India at the cost of well established Government Institutions like University of Delhi or JNU.
2. We can gather that the idea is to make education converted to purely "skill", by declaring, "The Choice Based Credit System (CBCS) enables a student to obtain a degree by accumulating required number of credits prescribed for that degree. The number of credits earned by the student reflects the knowledge or skill acquired him / her. Each course is assigned with a fixed number of credits based on the contents to be learned. The student also has choice in selecting courses out of those offered by various departments. The grade points earned for each course reflects the student’s proficiency in that course."
However, can the Nation switch over to any other system than 10+2+3 as adopted in the nation-wide consensus obtained in January, 1985, by which the government of Prime Minister Rajiv Gandhi who introduced a new National Policy on Education in May, 1986. The new policy called for "special emphasis on the removal of disparities and to equalise educational opportunity," especially for Indian women, Scheduled Tribes (ST) and the Scheduled Caste (SC) communities. To achieve these, the policy called for expanding scholarships, adult education, recruiting more teachers from the SCs, incentives for poor families to send their children to school regularly, development of new institutions and providing housing and services. The policy expanded the open university system with the Indira Gandhi National Open University, which had been created in 1985. However, in a bid to placate the International forces which is trying to make money out of everything, including education, the 1986 National Policy on Education was modified in 1992 by the P.V. Narasimha Rao government. In 2005, Prime Minister Manmohan Singh adopted a new policy based on the "Common Minimum Programme" of his United Progressive Alliance (UPA) government, Programme of Action (PoA), 1992 under the National Policy on Education (NPE). But with Kapil Sibal becoming the Union Minister for Human Resource Development in the UPA II, deliberate steps were taken in favour "commercialization" of education, without caring for the Constitutional Provisions, the norms of national consensus through National Education Policy (Education anyway is a State subject), or the discussion in Parliament, by forcing the Semester System, FYUP and CBCS in the premier Universities like University of Delhi and JNU. (It is another matter that Kapil Sibbal had personal issues pertaining to his son and Delhi University took special interest in the verbal diktat of implementing FYUP, as the VC Prof Dinesh Singh owed his appointment to him.)
3. Doesn't the argument given by Hon'ble Union Minister of Human Resource against 'illegal' FYUP hold good for CBCS also? Smt Smriti Irani said the Ministry intervened in Delhi University's decision to introduce a four-year undergraduate programme (FYUP) as the 40-odd courses were not sanctioned by the President. "The programme would have produced 77,000 students (each year) with degrees without any worth. Had they been on the streets, were we ready to meet that situation?... If I have protected their future, why are they hurt," she asked, taking a dig at some opposition leaders (read Mr Kapl Sibbal). The situation has not changed for CBCS today.

4. What we understand is that so many private and foreign Universities have mushroomed in India, that besides being great impediment in actually maintaining or raising the standard of Education in India, they are not getting enough number of students required for their business to flourish, because inspite of all efforts of the subsequent Governments students prefer to go in the institutions like University of Delhi. The only way to help them in their business of Education is by destroying or dismembering universities like Delhi and forcing the students to join these teaching 'shops'.
5. CBCS also targets the Government Institutions interference and ultimately be placed under control of Private moneymaking Institutions.
6. Commercialization of Higher Education and the intention to change it into a mere business opportunity.
7. Though the initial thinking was that the Reservation of Teaching Posts can be done away with implementation of such systems, but ultimately it shall do away with Permanent Teaching Posts and henceforth Teachers will be hired on contractual basis on mere subsistence level for giving opportunity of making more money with higher fees to private moneymaking institutions. Therefore, job opportunities in all Government Institutions shall be adversely affected for all sections, both reserved or General.
8. Explicit conspiracy of benefits to Indian and Foreign Commercial Profiteers in Higher Education.
9. Implementation of CBCS will damage the concept of "correspondence education" and play with the careers of more than 4 Lakh students enrolled with University of Delhi through the "School of Open Learning". already facing tough situation with the implementation of Semester System.

Let all the members of the Academic Council of the University of Delhi in the meeting, pledge to oppose the unjust and illegal CBCS, and dispatch the copies of our objection to His Excellency the President of India also the Visitor of the University of Delhi, Hon'ble Minister for Human Resource Development, Government of India and the Parliamentary Committee on Human Resource Development.

We shall fight and we shall win.

Sunday, July 5, 2015

Vyapam : कब तक चलेगी इन मौतें का सिलसिला: कब तक हम देखते रहेंगे भ्रष्टाचार की नंगी नाच?

अब इन मौतों का फैसला STF से नहीं हो पायेगा, अदालतें तो कब की फेल हो चुकी हैं, कानून के आँख ही नहीं हाथ भी बंधे हुए हैं, और भगवान पर हम यह अन्याय छोड़ नहीं सकते हैं।
करना तो कुछ हमें ही पड़ेगा, देश की जनता को ही करना पड़ेगा वरना कई मेधावी छात्रों और आवेदकों के भविष्य की जान लेने वाली व्यापम घोटाला और भी जान लेता रहेगा।
मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले को कवर करने दिल्ली से गए पत्रकार अक्षय सिंह इस घोटाले में संदिग्ध परिस्थितियों में मारे गए लोगों के परिजनों का साक्षात्कार कर रहे थे। उसी दौरान उन्होंने बेचैनी की शिकायत की, और मध्य प्रदेश की सीमा से लगे गुजरात के दाहोद में अस्पताल ले जाते वक्त उनकी मौत हो गई। 2013 में प्रकाश में आने के बाद व्यापमं घोटाले से जुड़े राज्यपाल राम नरेश यादव के पुत्र शैलेश यादव सहित अब तक 38 लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है। इधर आज यानि 5 जुलाई को व्यापम घोटाले की जांच से जुड़े मेडिकल कॉलेज के डीन डा अरुण शर्मा का शव होटल में मिला है।
व्यापम घोटाला मध्य प्रदेश में नेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यापारियों से जुड़े एक बड़े पैमाने पर प्रवेश और भर्ती घोटाला है जिसकी जांच में कुछ निकले की नहीं, उससे जुड़े सवाल पूछने वालों की भी मौतें होती रही हैं।
आज मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दावा किया की उन्होंने ने व्यापाम की जाँच करवाने का आदेश दिया। पर उन्हें कौन समझाएं की व्यापम घोटाले से जुड़े सभी मौतों के वे ही सीधे तौर से जिम्मेदार हैं। या फिर वे ही बताएं की इन मौतों के जिम्मेदार कौन है ?
व्यापम घोटाला मध्य प्रदेश में नेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यापारियों से जुड़े एक बड़े पैमाने पर प्रवेश और भर्ती घोटाला है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने 300 से अधिक अपात्र और अयोग्य उम्मीदवारों में कामयाब रहे और उनके मेरिट लिस्ट में आने कि रिपोर्ट के बाद कुछ छात्रों के माता-पिता द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) निम्न मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (MPPEB) और भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) को नोटिस भेजा। प्री-मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) में अनियमितताओं और कुटिल सौदों की शिकायतें कई अधिकारियों और नेताओं से जुड़े 2009 के बाद से सरफेसिंग रहे थे, लेकिन वर्ष 2013 में, एक प्रमुख घोटाले का पता लगाया गया था। प्रतिरूपण रैकेट डॉ जगदीश सागर के सरगना को गिरफ्तार कर लिया गया था और बाद में कई अन्य प्रभावशाली लोगों में पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, MPPEB के परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी, MPPEB की प्रणाली विश्लेषकों नितिन महेंद्र और अजय सेन और राज्य पीएमटी की परीक्षा प्रभारी सी.के.मिश्रा सहित कई प्रभावशाली लोगों को गिरफ्तार किया गया।
इस घोटाले में रोज नए खुलासे हो रहे हैं। इसमें साठगांठ कर मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले में फर्जीवाड़ा कर भर्तियां की गई। इस घोटाले के अंतर्गत सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार कर रेवड़ियों की तरह नौकरियां बांटी गईं।
मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा इस घोटाले में गिरफ्तार हो चुके हैं और केंद्रीय मंत्री और भाजपा की कद्दावर नेता उमा भारती का नाम भी इस घोटाले में सामने आ रहा है। इस पूरे घोटाले में 100 से ज्यादा लोगों को आरोपी बनाया गया है। कांग्रेस तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह के इस घोटाले में शामिल होने के आरोप लगा रही है।
मध्यप्रदेश में जब लक्ष्मीकांत शर्मा शिक्षा मंत्री थे तो उनके व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम आ गया। शर्मा ने ओपी शुक्ला को अपना ओएसडी तैनात किया जबकि उनके खिलाफ लोकायुक्त में भ्रष्टाचार की शिकायत दर्ज थी। शर्मा के कहने पर शिक्षा विभाग में तैनात पंकज त्रिवेदी को व्यापम का कंट्रोलर बना दिया गया।
त्रिवेदी ने अपने करीबी नितिन महिंद्रा को व्यापम के ऑनलाइन विभाग का हेड यानी सिस्टम एनालिस्ट बनाया। मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों के एडमिशन का सीधा जिम्मा उच्च शिक्षा मंत्रालय के पास था। सरकारी नौकरियों में भर्ती की परीक्षाएं भी इसी विभाग के जरिए करवाई जाती थीं। यह भी आरोप हैं लक्ष्मीकांत शर्मा ने सत्ताबल का प्रयोग करते हुए दूसरी भर्तियों में भी दखल दिया।
इस घोटाले की जांच के दौरान छापेमारी में इंदौर के जगदीश सागर का नाम आया। 7 जुलाई, 2013 को इंदौर में पीएमटी की प्रवेश परीक्षा में कुछ छात्र फर्जी नाम पर परीक्षा देते पकड़े गए। छात्रों से पूछताछ के दौरान डॉ. जगदीश सागर का नाम सामने आया। सागर को पीएमटी घोटाले का सरगना बताया गया।

ग्वालियर का रहने वाला जगदीश सागर पैसे लेकर फर्जी तरीके से मेडिकल कॉलेजों में छात्रों की भर्ती करवाता था। मेडिकल प्रवेश परीक्षा में धांधली कर जगदीश सागर ने करोड़ों की संपत्ति खड़ी कर ली थी। जगदीश सागर के यहां छापेमारी के दौरान गद्दों के भीतर 13 लाख की नकदी, कई प्रॉपर्टी और करीब 4 किलो सोने के गहने मिले थे।
जगदीश सागर से एसटीएफ की पूछताछ में खुलासा हुआ कि यह इतना बड़ा नेटवर्क है जिसमें मंत्री से लेकर अधिकारी और दलालों का पूरा गिरोह काम कर रहा है। जांच और पूछताछ में यह सामने आया कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम का ऑफिस इस काले धंधे का अहम अड्डा था।
जगदीश सागर से खुलासे में पता चला कि परिवहन विभाग में कंडक्टर पद के लिए 5 से 7 लाख, फूड इंस्पेक्टर के लिए 25 से 30 लाख और सब इंस्पेक्टर की भर्ती के लिए 15 से 22 लाख रुपए लेकर फर्जी तरीके से नौकरियां दी जा रही थीं। सागर भी मोटी रकम लेकर फर्जी तरीके से बड़े मेडिकल कॉलेजों में छात्रों को एडमिशन दिलवा रहा था। जगदीश सागर की गवाही इस पूरे घोटाले में अहम साबित हुई।
इस पूरे मामले में फर्जी तरीके से एडमिशन लेने वाले छात्रों के साथ ही मंत्री से लेकर अधिकारियों तक, प्रिंसिपल, दलाल आदि की एक के बाद गिरफ्तारियां हो रही हैं।

इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री का पूर्व एसओडी भी जांच के घेरे में है। पीएमटी घोटाले में अरविन्दो मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन डॉ. विनोद भण्डारी और व्यापम के परीक्षा नियंत्रक डॉ. पंकज त्रिवेदी की गिरफ्तारियां हुईं। पूर्व मंत्री ओपी शुक्ला को घोटाले के पैसों के साथ रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया था। इस घोटाले में कई बड़े कांग्रेसी नेताओं के शामिल होने की भी खबरें हैं।
पत्रकार अक्षय सिंह की दुखद मृत्यु पर मेरी गहरी संवेदना और दुखः।
डीन डा अरुण शर्मा का शव दिल्ली के एक होटल में मिला है। वे व्यापम घोटाले से जुड़ी जांच में शामिल थे। वे उस जांच टीम के प्रमुख थे जो मेडिकल प्रवेश परीक्षा में धांधली की जांच कर रही है। उनकी मृत्यु पर शोक व्यक्त कर रहा हूँ। साथ ही बताना चाहूँगा की व्यापम से जुडी और कितनी जानें गईं हैं।


अब तक 40 -
व्यापम की मौतें :
1. शैलेश यादव - राज्यपाल राम नरेश यादव के पुत्र थे और व्यापम घोटाले में आरोपी हुए। मार्च 2015 में लखनऊ में राज्यपाल आवास पर मृत पाए गए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 50 साल की उम्र में परिवार के सदस्यों को मधुमेह था वह दावा किया था कि और मस्तिष्क रक्तस्त्राव की मृत्यु हो गई। समय नहीं बताया गया। हालांकि, एक टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के कारण उन्होंने विषाक्तता के निधन का उल्लेख है। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण पता नहीं चल सका है।
2. विजय सिंह - एक और आरोपी सिंह अप्रैल 2015 में छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में एक लॉज में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाया गया।
3. नम्रता डामोर - एमजीएम मेडिकल कॉलेज, इंदौर की छात्रा थी और 7 जनवरी, 2012 को वह कॉलेज के छात्रावास से रहस्यमय तरीके से लापता होने सूचना मिली थी और एक सप्ताह के बाद पर उज्जैन में कयता गांव में रेलवे पटरियों के पास उसे मृत पाया गया था। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक रिपोर्ट के अनुसार, अनुचित साधनों का उपयोग कर पी एम टी -2010 में दाखिला के संदिग्धों की सूची में उनका नाम था।
4. डॉ डीके साकल्ले - जबलपुर के नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज के डीन थे और MPPEB घोटाले में उनकी कथित भूमिका के लिए बर्खास्त कर दिए गए है छात्रों के दबाव से बचने के लिए एक 30 दिन की चिकित्सा अवकाश के दौरान खुद को आग लगा लेने से जलने से जुलाई 2014 में मृत्यु हो गई। (आज, 5 जुलाई 2015 को उनके बाद बने मेडिकल कॉलेज के डीन डा अरुण शर्मा का शव दिल्ली में एक होटल में मिला।
5. रामेंद्र सिंह भदौरिया - जनवरी 2015 को पंजीकृत एक प्राथमिकी के अनुसार इस 30 वर्षीय व्यक्ति की लाश ग्वालियर में अपने घर पर लटका पाया गया।
6. नरेंद्र सिंह तोमर - हाई प्रोफाइल MPPEB घोटाले में आरोपी की जून 2015 में इंदौर जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। 29 वर्षीय पशुचिकित्सा रात में सीने में दर्द की शिकायत की और महाराजा यशवंत राव अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत लाया घोषित कर दिया गया।
7. डॉ राजेंद्र आर्य - ग्वालियर में बिरला अस्पताल में तोमर की मौत के 24 घंटे के भीतर इस 40 साल वर्षीय डाक्टर की भी मृत्यु हो गई। व्यापम घोटाले में आरोपी वे एक वर्ष के लिए जमानत पर थे, और कोटा गए थे जहाँ से लौटते हुए उनकी हालत गंभीर हो गयी।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार व्यापम घोटाले की जाँच कर रहे हैं एसआईटी की रिपोर्ट में अन्य आरोपियों के अलावे निम्नांकित को मृत घोषित किया गया है -
8. अंशुल सनचन
9. अनुज पांडे
10 विक्रम सिंह
11. अरविंद शाक्य
12. कुलदीप मरावी
13. अनंतराम टैगोर
14. आशुतोष तिवारी
15. ज्ञान सिंह (भिंड)
16. प्रमोद शर्मा (भिंड)
17. विकास पांडेय (इलाहाबाद)
18. विकास ठाकुर (बड़वानी)
19. श्यामवीर सिंह यादव
20. आदित्य चौधरी
21. दीपक जैन (शिवपुरी)
22. ज्ञान सिंह (ग्वालियर)
23. बृजेश राजपूत (बड़वानी)
24. नरेंद्र राजपूत (झांसी)
25. आनंद सिंह यादव (फतेहपुर)
26. अनिरुद्ध उजकेय (मंडला)
27. ललित कुमार पशुपतिनाथ जायसवाल
28. राघवेन्द्र सिंह (सिंगरौली)
29. आनंद सिंह (बड़वानी)
30. मनीष कुमार समादिया (झांसी)
31. दिनेश जाटव
32. ज्ञान सिंह (सागर)
उनकी मौत के बारे में जानकारी ज्यादा नहीं है, सिर्फ यह उनमें से ज्यादातर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के चंबल क्षेत्र में हुआ है।

Tuesday, June 23, 2015

आपातकाल और बी पी मंडल : Emergency and B P Mandal :

26 जून को आपातकाल की 40 वीं वर्षगांठ है। दरअसल, संविधान के अनुसार देश पर बाहरी खतरे (युद्ध) या आतंरिक (राजद्रोह या विद्रोह) खतरे से उत्पन्न विशेष स्थिति का सामना करने के लिए सरकार आपकाल लागू कर सकती है जब वह नागरिक अधिकार और साधारण कानून निलंबित करती है। सरकार के पास असीमित अधिकार मिल जाते हैं जिसका दुरपयोग भी किया जा सकता है। और हुआ भी यही था।
मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने इलाहबाद हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किय। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इंदिरा हगंधी की इस्तीफे की मांग उठ गयी और कानूनन उन्हें ऐसा ही करना चाहिए था। फैसले में इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। परन्तु इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं और इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की। 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। यहाँ तक कि कांग्रेस पार्टी ने खुले आम कहने लगी कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।
इस तरह 26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 मास की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित कर दिया गया। प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर नसबंदी अभियान चलाया गया। जयप्रकाश नारायण ने इसे भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था।
आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा क़ानून (मीसा) के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ़्तारी की गई, इनमें जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, जॉर्ज फ़र्नांडिस, अटल बिहारी वाजपेयी आदि भी शामिल थे।
जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर सम्पूर्ण क्रांति के नारे को लेकर छात्र संघर्ष समिति का गठन हुआ। पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष लालू प्रसाद और सचिव सुशील मोदी, छात्र नेता रामविलास पासवान, दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष अरुण जेटली आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
18 मार्च 1974 को छात्र संघर्ष समिति ने बिहार विधान सभा का घेराव किया। फिर छात्र संघर्ष समिति ने बिहार विधान सभा के सभी सदस्यों से इस्तीफा देने आह्वान किया। उन्होंने मांग की मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर को बर्खास्त किया जाए।
उस समय 318 सदस्यीय बिहार विधान सभा में मुख्य पार्टियों की संख्या इस प्रकार थी : कांग्रेस (इंदिरा) 167, सी पी आई 35, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी 33, भारतीय जान संघ 25, कांग्रेस (ओ) 30, निर्दलीय 17, हिंदुस्तानी शोषित दल 3, झारखण्ड 1, झारखण्ड पार्टी 3, बिहार प्रान्त झारखण्ड पार्टी 2 आदि।
कर्पूरी ठाकुर और बी पी मंडल संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में थे। विधायक बदलते हुए राजनैतिक परिस्थितियों में धीरे-धीरे इस्तीफा देने लगे। भारतीय जन संघ में इस्तीफे के प्रश्न पर दो फाड़ हो गए। इसी तरह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के अधिकांश विधायक कर्पूरी ठाकुर के इस्तीफा बाद बी पी मंडल को नेता मान लिए।
मधेपुरा में राजनैतिक आंदोलन हो रहे थे और छात्र संघर्ष समिति के स्थानीय टी पी कॉलेज के नेता बी पी मंडल के इस्तीफा देने की मांग को लेकर एस डी ओ कंपाउंड (SDO Compound) में "यज्ञ आंदोलन" करते हुए इंदिरा - अब्दुल गफूर विरोधी अन्य मन्त्रों के साथ साथ "बी पी मंडल स्वाहा" कह कर आहुति दे रहे थे। मैं भी यह मंजर देखने वहां पहुंचा था। उसी दौरान विरोध प्रदर्शन में शामिल युवक सदानंद पुलिस की गोली का शिकार हो गए।
आपातकाल घोषणा एवं मधेपुरा में हुए इन घटनाओं के समय ही लगभग जय प्रकाश बाबू के आग्रह पर बी पी मंडल और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के लहभग सभी सदस्य बिहार विधान सभा से इस्तीफा दे दिए।
अब बिहार के कांग्रेस विरोधी नेताओं की भी धड़-पकड़ शुरू हो गयी। बी पी मंडल अपने गॉव मुरहो में थे। पर मंडल परिवार के पुराने रुतबे के कारण और मुरहो में तब जल्दी पुलिस का पदार्पण नहीं होने की परंपरा से संभवतः पुलिस इस ताक में रहती थी कब मंडल जी मधेपुरा आएं और कोई कार्यवाई हो। इस दौरान लगभग डेढ़ महीने तक दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश भी गिरफ़्तारी से परहेज रखने के लिए मंडल जी के साथ ही मुरहो में थे। कुछ दिनों तक चौधरी ब्रह्म प्रकाश मंडल जी के मधेपुरा आवास पर भी बतौर मेहमान रहें। (स्व बी पी मंडल और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री राव बिरेन्द्र सिंह भी अभिन्न मित्र थे)।
आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद 1977 में अपने पक्ष में ख़ुफ़िया रिपोर्ट के मद्देनज़र प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी। आपातकाल समाप्त कर दिया गया। चुनाव में आपातकाल लागू करने का फ़ैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। ख़ुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं। जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घट कर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ।
बिहार में जनता पार्टी के सांसदीय समिति के अध्यक्ष होने के नाते, और जय प्रकाश बाबू के आग्रह पर, कर्पूरी ठाकुर और सत्येन्द्र बाबू के आपत्ति बावजूद, बी पी मंडल ने लालू प्रसाद को छपरा से लोक सभा टिकट के लिए अनुमोदन किए।
1977 में बिहार के 54 सीट में से 52 जनता पार्टी के पक्ष में थे और एक एक सीट निर्दलीय और झारखण्ड पार्टी को मिली।
बिहार से जीतने वाले दिग्गजों में बी पी मंडल के अलावे बाबू जगजीवन राम (कांग्रेस छोड़ कर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी बनाए थे), सत्येन्द्र नारायण सिंह, कर्पूरी ठाकुर, मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडिस, हुकुमदेव नारायण यादव और पहली बार जीतने वालों में कम उम्र के लालू प्रसाद और रिकार्ड वोट के साथ राम विलास थे।
विडम्बना यह है की लालू प्रसाद आज भी अपने टिकट के लिए बी पी मंडल की स्मृति के प्रति अहसानमंद होने की जगह उनके प्रति उपेक्षा का भाव रखते हैं।