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New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the downtrodden.....

Wednesday, December 28, 2016

कैशलेस धोखा : आपकी जेब काटी जा रही है, वह भी जबरन।


क्या आपको अंदाजा है हम पर जो कैश लेस इकनॉमी थोपी जा रही है उसका फायदा किसको और कितना होने वाला है?
तथ्य नंबर-1
जब भी आप डेबिट कार्ड से कोई आर्थिक व्यवहार करते हैं तो बैंक रिटेलर या जिसको पैसे का भुगतान किया गया है उससे 0.5 से लेकर 1% तक कमीशन लेते हैं।
तथ्य नंबर -2
क्रेडिट कार्ड कंपनियां और बैंक क्रेडिट कार्ड से होने वाले हर आर्थिक व्यवहार (ट्रांजेक्शन) पर 1.5 % से लेकर 2.5% तक दलाली लेती है । यह दलाली दुकानदार यानी भुगतान लेने वाले से वसूली जाती है।
तथ्य नंबर -3
Paytm/Freecharge/ Jio Money और इन जैसी दूसरी E-wallets कम्पनियां 2.5% से 3.5% तक दलाली लेती है जब हम अपने मेहनत की कमाई अपने बैंक अकाउंट से e-wellet में ट्रांसफर करते हैं।
तथ्य नंबर -4
आरबीआई के अंकड़ों के मुताबिक हर महीने 2.25 लाख करोड़ और हर साल करीब 25 से 30 लाख करोड़ रुपये पूरे देश में ATM मशीनों से निकाले जाते हैं। अगर बैंकों से होने वाले विड्राल को भी इसमें जोड़ दिया जाए तो (ATM+ बैंक) से निकलने वाली यह राशि होती है करीब 75 लाख करोड़। चूंकि इस राशि का सारा लेनदेन बैंक से होता है इसलिए यह सारा पैसा 1 नंबर का सफेद धन होता है।
तथ्य नंबर -5
वर्तमान में कुल आर्थिक व्यवहार का केवल 3 % आर्थिक व्यवहार इलेक्ट्रॉनिक तरीके से होता है।
तथ्य नंबर -6
अगर 1 नंबर में हुए 75 लाख करोड़ के आर्थिक व्यवहार को कैश लेस कर देंगे तो क्या होगा? Paytm/Freecharge/ Jio Money और इन जैसी दूसरी E-wallets कंपनियों की चांदी हो जायेगी।
कैसे होगी? तो जानिए ऐसे होगी...
75 लाख करोड़ के कैशलैस आर्थिक व्यवहार पर अगर यह निजी कंपनियां औसतन 2% भी कमीशन पाती हैं तो सीधे-सीधे हर साल डेढ़ लाख करोड़ रुपये इन कंपनियों को मिलेगा। बिना कुछ किये धरे। पैसा जनता का, माल व्यापारी का और ये कंपनियां मुफ्त में माल उड़ाएंगी!

सरकार ऐसे देगी सफाई
सरकार कहेगी मत यूज करो E-WELLET हम आपको फ्री में UPI app उपलब्ध करा रहे हैं। यह सरकारी है। एकदम फ्री है। इसके जरिये भुगतान करो। अच्छी बात है। लेकिन जरा सोचिए पिछले कई सालों से काम कर रहे रेलवे रिजर्वेशन के सरकारी सर्वर की क्या स्पीड है? इसी स्पीड में UPI का सर्वर भी चलेगा या फिर Paytm/Freecharge/ Jio Money और इन जैसी दूसरी E-wallets कंपनियां इसकी स्पीड बढ़ने नहीं देंगी। इतिहास गवाह है सरकारी विमान कंपनी एयर इंडिया की कमर बीजेपी वाले प्रमोद महाजन की करीबी जेट ने तोड़ी। BSNL और MTNL को कौन अपनी मुट्ठी में कर लिया है। इसलिए यह मत कहना की UPI यूज करो। जब UPI से स्पीड में पेमेंट नहीं होगा तो लोग वापस Paytm/Freecharge/ Jio Money और इन जैसी दूसरी E-wallets कंपनियों पर आश्रित हो जाएंगे।
डेढ़ लाख करोड़ रुपये सालाना का यह एक खुल्लमखुल्ला घोटाला है।
सरकार, Paytm/Freecharge/ Jio Money और इन जैसी दूसरी E-wallets कॉर्पोरेट कंपनियों और बैंकों की इसमें मिली भगत है।
अब समझ में आ रहा है कि कालाधन के नाम पर नोट बन्दी का फैसला कालाधन चलाने वाले कॉर्पोरेट को उपकृत करने के लिए लिया गया है। 2014 के चुनाव में कॉर्पोरेट ने बीजेपी पर जो निवेश किया था यह उसका रिटर्न है।
सारा गेम प्लान है
जैसे- जैसे नोट बन्दी की परतें उघड़ रहीं है कई बातें समझ में आने लगी हैं। मसलन नोट बन्दी, मोदी या जेटली के दिमाग से निकला फैसला नहीं है, क्योंकि इनके पास इतना गूढ़ डेढ़ लाख करोड़ सालाना कमाने का आइडिया सोचने वाला दिमाग है ही नहीं। अगर होता तो यह लोग राजनीति नहीं बिजनेस कर रहे होते। यह तो सिर्फ चेहरा हैं। असल गेम प्लान तो किसी और ने करोड़ों रुपये खर्च करके, टॉप चार्टड अकाउंटेंट, बैंकर और वित्त विशेषज्ञों से तैयार करवाया है। सरकार तो सिर्फ इस रेडीमेड प्लान को ढो रही है।
याद कीजिए, नोट बन्दी के चार दिन बाद यानी 13 नवंबर को प्रधानमंत्री का गोवा में दिया गया भाषण। क्या कहा था मोदी ने? उन्होंने कहा था, "मैं जानता हूं, मैंने कैसी-कैसी ताकतों से लड़ाई मोल ले ली है। जानता हूं, कैसे लोग मेरे खिलाफ हो जाएंगे। मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे..." अब समझ में आ रहा है कि प्रधानमंत्री वास्तव में किस से डर रहे हैं।

Thursday, December 1, 2016

सीमा क्या होगी कंपनी राज का ?

सरकार कैश रकम निकालने और रखने की सीमा तय कर चुकी है।
अब सोना रखने और खरीदने पर भी सीमा तय कर दिया जायेगा।
परंतु अम्बानी और अडानी और उनके जैसे धन्ना सेठों के संपत्ति पर कोई सीमा नहीं। दिन दुगुना और रात चौगुना बढ़ती रहे।
पुराने मोनोपोली (एकाधिकार) एक्ट का कोई मतलब नहीं रह गया है।
टीवी देखने के लिए भी, न जाने किस कानून के अन्तर्गत, बिना सेट टॉप बॉक्स, आप टीवी देख नहीं सकते। छिटपुट केवल वालों की जगह ज़ी नेटवर्क और रिलायंस को केबल सप्लाई का एकाधिकार दे दिया गया है : वजह, पहले एक पेमेंट पर कई लोग देखते थे जिससे कंपनियों को नुकसान हो रहा था और लोगों पर कड़ी नज़र भी रखना है।
पहले भी लैंड सीलिंग एक्ट के तहत ज़मीन रखने की सीमा तय की गयी थी। आज कंपनियों को सेज़ (SEZ) आदि के माध्यम से बेहिसाब ज़मीन किसानों से छीन कर दे दिया गया है।
तो "सीमा" सिर्फ आम लोगों के लिए।
दरअसल यह कवायद वर्ल्ड बैंक और अमरीका के इशारे पर हो रहा है। भारत अभी भी 'सोने की चिड़िया' है, परंतु आम जनों का अपनी सम्पति और मेहनत से कमाई दौलत को बचा बचा कर खर्च करने की परंपरा रही है। अब विदेशों में जमा 'काला धन' का परिभाषा बदल कर, लोगों के निजी संपत्ति को ही 'काला धन' बता कर, उसे विदेशियों और देशी धन्ना सेठों को लूटने के लिए निकलवाया जा रहा है।
इस पूरे प्रकरण में, आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी विपक्ष नपुंसक जैसा सिर्फ शोर कर पा रहा है।
पर इसका उपाय दिखेगा, वक़्त के साथ जवाब भी मिलेगा।
इंतज़ार है।

Thursday, November 24, 2016

संगठित लूट? कानूनी लूट-खसोट ? किसका देश और किसकी सरकार ?



सर्वोच्च न्यायालय में नोटबन्दी पर केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि दुनिया में जीडीपी का महज 4 प्रतिशत कैश ट्रांजैक्शन होता है, लेकिब हमारे देश में ये जीडीपी का 12 प्रतिशत है, ऐसे में नोटबंदी का कदम ज्यादा कैश ट्रांजैक्शन को खत्म कर, उसको डिजिटल करने के लिए उठाया गया है।
विश्व बैंक की 2011 में अंतर्राष्ट्रीय तुलना कार्यक्रम के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि भारतीय आबादी का 23.6%, या लगभग 276 मिलियन लोग प्रति दिन क्रय शक्ति समानता पर $ 1.25 से नीचे रहते हैं। यानि हैण्ड तो माउथ, या जैसे तैसे ज़िन्दगी बसर कर रहें हैं। और सबसे दुःखस पहलु है की यही वह तपका है जिसे डिजिटलाइजेशन की ओर ले जाने के लिए सरकार यह कवायद कर रही है।
हलफनामा में सरकार ने कहा है कि इस कदम से 70 साल के ब्लैक मनी के बोझ को सरकार ने खत्म करने का प्रयास किया है। क्या इसी 'ब्लैकमनी' की बात नरेन्द्र मोदी ने चुनाव प्रचार में किए थे ?
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जिस तरह से इसे लागू किया गया है, वह ‘प्रबंधन की विशाल असफलता’ है और यह संगठित एवं कानूनी लूट-खसोट का मामला है। उन्होंने पीएम से पूछा कि क्या ऐसा कोई देश है जहां लोग अपने पैसे जमा तो करवा सकते हैं लेकिन निकलवा नहीं सकते? नोटबंदी के बाद से देश में 60 से 65 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
इस बीच, मोदी सरकार ने अपने दोस्तों को दिया हुआ 7 हज़ार करोड़ रुपए का लोन माफ़ कर दिया जिसमें 1200 करोड़ रुपए का लोन विजय माल्या का भी था।
बैंकों के माध्यम से जो लोन सरकार माफ़ करा रहे हैं वो हमारे या आपके द्वारा लिए गए छोटे-छोटे लोन नहीं हैं बल्कि इस देश के 9 बड़े-बड़े धन्नासेठों के घराने हैं जिन्होंने मिलकर कुल 7 लाख करोड़ रुपए का लोन सरकारी बैंकों से उठा रखा है। और मोदी जी के इन कर्ज़दार दोस्तों के नाम हैं –
एस्सार, रिलायंस, जीवीके, जीएमआर, अडानी, लैनको, वीडियोकॉन, वेदांता, जेपी आदि बड़े उद्योगपतियों के लोन माफ़ किया गया है।
कई कारणों से सरकार ने यह दावा किया है की नोट बंदी पर गोपनीयता बरती गयी। परंतु RBI के सितंबर 2016 की आकड़े देखे तो अगस्त 2016 के मुकाबले 5,88,600 करोड़ रुपया बैंकों के खाते में अतिरिक्त जमा हुआ। जुलाई 2016 में बैंकों के खातों में 96 हजार 196 बिलियन रुपये जमा हुए और सितंबर 2016 में बैंकों के सभी खातों में राशि बढ़कर 1 लाख 2 हजार 82 बिलियन रुपये हो गई। जिसका अंतर कनवर्ट करने पर 5,88,600 करोड़ रुपया होता है।
अब जरा RBI के आकड़ों के अनुसार ही 2015 में जुलाई और सितंबर के बीच जमा होने वाली राशि देखिए। जुलाई 2015 में सभी बैंकों में लगभग 88 हजार 301 बिलियन रुपये जमा हुआ और उसी साल सितंबर 2015 में 89 हजार 462 बिलियन रुपये जमा हुआ था।
हाल ही में ये बात सामने आई थी कि कुछ नेताओं को नोट बंदी की जानकारी पहले से ही थी। ऐसे में ये आकड़े सवाल पैदा करते है कि क्या कुछ नेताओं या बिजनेस मैन को इस बात की जानकारी पहले से ही थी। क्या जुलाई और सितंबर के जमा आकड़ों का भारी अंतर ये दर्शाता है कि कुछ लोगों ने अपने पैसों का निपटारा पहले ही कर लिया है। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में वित्त मंत्री अरूण जेटली से नोट बंदी की गोपनीयता पर सवाल करने पर वो मान चुके है कि सरकार ने पूरी तरह से नोट बंदी पर गोपनीयता बरती है लेकिन हो सकता हो इस बात कि जानकारी कुछ लोगों को पहले ही हो गई हो।
8 नवंबर की रात ऐतिहासिक थी। देश में 500 और 1000 का नोट बंद कर प्रधानमंत्री मोदी ने नये 500 और 2000 रुपये के नोट जारी करने की घोषणा की। पीएम मोदी ने अपने फैसले को अबतक का काला धन के खिलाफ सबसे बड़ा फैसला बताया।
इससे पहले भी पीएम मोदी कई मौकों पर काला धन के मुद्दे पर भाषण देते आए हैं। लेकिन इन भाषणों के दौरान भी दौरान यानि नोट बंदी के 11 महीने पहले ही मोदी सरकार की कुछ फैसले से हवाला काराबारियों को कानूनी रूप से विदेशों में धन भेजने का सुनहरा मौका मिल गया। इतने समयांतराल में कुछ लोगों ने 30,000 करोड़ रुपये विदेशों में ट्रांसफर कर दिया। यह पिछले सालो की तुलना में तीन गुना राशि है।
मोदी सरकार बनने के पहले LRS (Liberalised Remittance Scheme) की तहत विदेश में धन भेजने की सीमा सिर्फ 75 हजार डॉलर थी। बीजेपी की सरकार ने सत्ता में आने के एक हफ्ते के अंदर ही 03 जून 2014 को इसकी सीमा बढ़ा 125 हजार डॉलर कर दी गई। पिछले साल 26 मई 2015 को दोबारा LRS बढ़ाकर 250 डॉलर कर दी गई। ये फैसला एक तरफ से हवाला कारोबार को कानूनी दर्जा देने जैसा साबित हुआ। इस फैसले के चलते जून 2015 में 30,000 हजार करोड़ रुपये विदेशी खातों में भेज गए।
यहा तक कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की जानकारी में ये सब तब से हो रहा था। जब RBI गुपचुप तरीके से 500 और 1000 की नोटों की रोक की तैयारी कर रही थी। RBI के पास आज भी इसका स्पष्ट जवाब नहीं है कि इतनी बड़ी रकम अचानक कैसे विदेशी खातों में पहुंच गई।
प्रधानमंत्री ने कहा है 50 दिन तक रुकने के लिए कहा है, लेकिन देश के गरीब वर्ग के लिए ये 50 दिन मुश्किलों भरे होंगे।

Sunday, October 9, 2016

Duping Railway passengers : Government acting broker for Airline Owners.

Suresh Prabhu is Minister of Railways of Government of India but his actions are meant to force people to fly Airlines instead.
Recently, Railways, defying its duty as a public carrier, has indulged in money making business enterprise. But the money is not supposed to be made by this public sector, but embark on policies, which shall ensure money is made by Airline owners.
Railways have announced Dynamic Pricing as done by the Airlines. But there is big difference : Airlines offer confirmed seats and there is a 'supposed' competition among Airlines, though they too have cartel, because profit at the cost of passengers is the prime concern.
Railways have no option. And the tickets are Wait Listed,. So the real reasons for "Dynamic Pricing' has to be understood.
Let us take an example of October 2016, and journey between Patna nad New Delhi.
Saturday 9th October, 2016 is Dussehra Holidays. 11th October, 2016 is Vijay Dashmi and and 12th October is Muharram. Delhi High Court, Schools etc are closed till Sunday, the 16th October.
So, if you have to come from Patna to New Delhi, and you have to take the ticket now. It is expected that train ticket in Rajdhani with Waiting List likely to be confirmed will be available only on 17th October. Now with Dynamic Pricing for Rajdhani, the Wait Listed Ticket has been raised inexplicably by nearly Rs 1000/- and the tickets for Airlines reduced considerably.
So, those who can afford to travel by Rajdhani can as well fly by Airlines, fishing out a Thousand bucks more.
So Railways do not give you the option of taking a less costly ticket for some other day, but to fly a Private airlines instead.
Railways loss is the Airlines gain. Government loss is Private Owners Gain.
And this is how Narendra Modi Government is functioning.
This is also why Suresh Prabhu is made railway Minister.
The sooner this is opposed, the better it shall be for the Nation and its Citizens.
Jai Hind.

Saturday, October 8, 2016

जब हम युद्ध हारे थे और रक्षा मंत्री थे वी के कृष्ण मेनन :

भारत-चीन युद्ध 20 अक्टूबर, 1962 को लड़ा गया था। दोनों देशों के बीच ये युद्ध क़रीब एक महीने तक चला, जिसमें भारत को काफ़ी हानि उठानी पड़ी और उसकी हार हुई।
भारतीय सैनिकों ने वीरतापूर्वक चीनी सेना का सामना किया, किंतु राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व की अक्षमता के कारण सैनिकों की बहादुरी व्यर्थ चली गई। हार के कारणों को जानने के लिए भारत सरकार ने युद्ध के तत्काल बाद ले. जनरल हेंडरसन ब्रुक्स और इंडियन मिलिट्री एकेडमी के तत्कालीन कमानडेंट ब्रिगेडियर पी एस भगत के नेतृत्व में एक समिति बनाई थी। दोनों सैन्य अधिकारियो द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट को भारत सरकार अभी भी इसे गुप्त रिपोर्ट मानती है। दोनों अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में हार के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था। साथ ही इस हार के जिम्मेदार रक्षा मंत्री वी के कृष्णमेनन और दूसरा नाम लेफ़्टिनेंट जनरल बीएम कौल का है, जिन पर कृष्ण मेनन की छत्रछाया थी। लेफ़्टिनेंट जनरल बीएम कौल को पूर्वोत्तर के पूरे युद्धक्षेत्र का कमांडर बनाया गया था। उस समय वो पूर्वोत्तर फ्रंटियर कहलाता था और अब इसे अरुणाचल प्रदेश कहा जाता है। बीएम कौल सैनिक नौकरशाह थे, लेकिन उन्हें युद्ध का कोई अनुभव नहीं था।
एक और प्रकरण जानने की ज़रुरत है। 1962 में चीन के हाथों हमारी हार का भारत ने पांच साल बाद बदला लिया। वो भी दो बार दो अलग अलग मोर्चों पर, पहले नाथुला मोर्चे की विजयगाथा।
भारत और चीन के बीच करीब 4 हजार किलोमीटर लंबी लाईन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी पर 1967 में भारतीय सेना ने चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया था, वो जगह थी भारत चीन सीमा पर मौजूद ना-थुला पास। 11 सितंबर साल 1967 दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे के सामने आ गई थीं। चीन की सेना बाकायदा लाउडस्पीकर पर भारत की सेना को पीछे हटने की धमकी दिया करती थी कि पीछे हटो वरना 1962 की तरह कुचल दिया जाएगा। यही नहीं चीनियों ने भारतीय सीमा में घुसकर बंकर बनाने की कोशिश भी की थी।
चीन की इन हरकतों को रोकने के लिए 1967 में नाथुला पास पर तैनात मेजर जनरल सगत राय की अगुवाई में कंटीली बाड़ लगाने का फैसला किया। आज भी इस बाड़ के हिस्से ज्यों के त्यों मौजूद हैं। कंटीली बाड़ को लेकर खूनी लड़ाई तब शुरू हुई तब जुबानी झड़प के बाद चीन ने बाड़ लगा रही भारतीय सेना पर हमला कर दिया। बाड़ लगाने में जुटे इंजीनिरिंग यूनिट समेत भारतीय सेना के 67 जवान मारे गए।
1967 के चीनी हमले के बाद भारतीय सेना का खून खौल उठा। जवाबी हमला शुरू हुआ और चीन की मशीनगन यूनिट को पूरी तरह तबाह कर दिया गया।
1967 की उस लड़ाई में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के लिए यहां अमर जवान स्मारक बनाया गया है। तब से इस इलाके में चीन ने कभी ना तो घुसपैठ की कोशिश की और ना ही भारतीय सेना से टकराने की हिम्मत की। यहां आज भी 48 साल पुराने हालात की तरह ही चौकियां मौजूद हैं जिनके बीच सिर्फ चंद कदमों का फासला है।
नाथुला में मुंह की खाने के सिर्फ 15 दिन बाद एक और जंग हुई पास के ही चोला इलाके में।
भारत चीन सीमा में नाथुला के पास ही है चोला इलाका जहां पिछले साल बनाया गया है चोला विजय का स्मारक। यहां दर्ज है चोला की विजयगाथा। यहाँ एक लाल रंग का पत्थर है जिस पर कब्जे को लेकर भारत और चीन में बारूदी जंग शुरू हुई थी।
यहां दर्ज भारत की जीत की कहानी स्मारक की शक्ल में हमेशा के लिए अमर बना दिया गया है।

रोहित वेमुला पर जस्टिस रूपनवाल कमीशन रिपोर्ट - सिर्फ रोहित की "जात" पता लगाने का दावा :

रोहित चक्रवर्ती वेमुला (30 जनवरी 1989 - 17 जनवरी 2016) हैदराबाद विश्वविद्यालय में एक दलित पीएचडी छात्र था। हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला ने 17 जनवरी 2016 को फांसी लगाकर ख़ुदक़ुशी कर ली। रोहित को उनके चार अन्य साथियों के साथ कुछ दिनों पहले हॉस्टल से निकाल दिया गया था। इसके विरोध में वो कुछ दिनों से अन्य छात्रों के साथ खुले में रह रहे थे। कई अन्य छात्र भी इस आंदोलन में उनके साथ थे।
अपने सुसाइड नोट में रोहित ने लिखा, "..... आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा........मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं. मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था. विज्ञान पर लिखने वाला, कार्ल सगान की तरह. लेकिन अंत में मैं सिर्फ़ ये पत्र लिख पा रहा हूं.................मैं पहली बार इस तरह का पत्र लिख रहा हूं. पहली बार मैं आख़िरी पत्र लिख रहा हूं. मुझे माफ़ करना अगर इसका कोई मतलब न निकले तो..............आप जो मेरा पत्र पढ़ रहे हैं, अगर कुछ कर सकते हैं तो मुझे अपनी सात महीने की फ़ेलोशिप मिलनी बाक़ी है. एक लाख 75 हज़ार रुपए. कृपया ये सुनिश्चित कर दें कि ये पैसा मेरे परिवार को मिल जाए. मुझे रामजी को चालीस हज़ार रुपए देने थे. उन्होंने कभी पैसे वापस नहीं मांगे. लेकिन प्लीज़ फ़ेलोशिप के पैसे से रामजी को पैसे दे दें...........................अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन परिवार, आप सब को निराश करने के लिए माफ़ी. आप सबने मुझे बहुत प्यार किया. सबको भविष्य के लिए शुभकामना.......................आख़िरी बार - जय भीम....................... ..मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया. ख़ुद को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है.
रोहित की आत्महत्या की ख़बर आने के बाद से तेलंगाना के छात्र संगठनों ने आंदोलन शुरू करते हुए, इस घटना के विरोध में सोमवार को बंद की। कुछ दिनों में इस मामले को लेकर तेलंगाना के साथ-साथ दिल्ली के जेएनयू समेत देश के अन्य कई विश्वविद्यालयों के छात्र भी आंदोलनरत हो गए। संसद में हंगामा हुआ और मानव संसाधन विकास मंत्रालय, उच्च शिक्षा राजपत्र विभाग ने फरवरी, 2, 2016 को न्यायमूर्ति अशोक कुमार रुपनवाल की अगुवाई में घटनाओं की जांच के लिए एक कमीशन नियुक्त किया। इस कमीशन को इस बात का पर रिपोर्ट देनी थी कि
(I) रोहित की आत्महत्या की तथ्यों की जांच और परिस्थिति तय करने के लिए एवं (Ii) विश्वविद्यालय में छात्रों के लिए निवारण तंत्र मौजूदा शिकायत की समीक्षा करने के लिए, और सुधार के लिए सुझाव देने की ज़रुरत।
रोहित वेमुला खुदकुशी मामले की जांच कर रहे न्यायिक आयोग ने इस आत्महत्या के लिए रोहित को ही जिम्मेदार बताया है। द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक आयोग का मानना है कि रोहित की खुदकुशी की वजह निजी तनाव था जिसमें विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। अपनी रिपोर्ट में आयोग का कहना है कि रोहित वेमुला का जाति प्रमाण पत्र फर्जी था और वे दलित थे ही नहीं। आयोग ने रोहित को छात्रावास से बाहर किए जाने संबंधी विश्वविद्यालय के फैसले को भी सही बताया है। इलाहाबाद हाइकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एके रूपनवाल के एक सदस्यीय आयोग ने अगस्त 2016 में 41 पन्नों की रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी है।
अहम सवाल ये खड़ा हो रहा है कि क्या कमेटी को इस तथ्य के बारे में जांच करनी थी?
टर्म्स ऑफ़ रेफेरेंस के मुताबिक रोहित की जाति के बारे में पता करना कमेटी का काम नहीं था। 'ये (जाति के बारे में पता करना) कमेटी के टर्म ऑफ रेफरेंस में था ही नहीं।
रोहित की आत्महत्या, दरअसल, एक 'संस्थागत हत्या' थी। कमीशन की रिपोर्ट में कहीं भी भारत सरकार द्वारा स्कॉलरशिप बंद किये जाने से देश के रिसर्च करने वाले शोद्यार्थियों पर उसका असर, होस्टल से निकाले जाने का असल कारण और उसपर कोई टिप्पणी, इनका कोई जिक्र ही नहीं है।
लगता है इस रिपोर्ट का सिर्फ यह साबित करना है कि रोहित 'दलित' नहीं था, जिससे राजनैतिक तौर पर सत्ताधारी दल को कोई नुकसान नहीं हो।
रोहित वेमुला द्वारा आत्महत्या की घटना ने राष्ट्र के सामूहिक चिंतन पटल को झकझोर के रख दिया थाI उसके सुसाइड नोट से उसके सपनो का चित्र, एक निराश एवं मलिनचित भावना तथा इस पीड़ादायक जिंदगी से दूर जाने की इच्छा, सब कुछ दिखता है। वह इस समाज की वर्तमान जाति व्यवस्था का एक नवीनतम शिकार है, भले सरकार आज साबित करे की वह दलित था ही नहींI यह भी पूरी तरह सही नहीं है की यह एक छात्र पर अनुशासनक कार्यवाही, छात्रावास से निष्कासन अथवा छात्रवृति रोके जाने भर तक का ही मामला है।
रोहित से विश्वविद्यालय का ऐसा व्यवहार एक दलित छात्र के तौर पर ही किया गया जिसका अपने सैद्धांतिक तथा नैतिक आदर्शों हेतू अम्बेडकर से प्रेरणा लेने का तथा उन वैचारिक संघर्षों को आगे जारी रखने के अधिकार से सम्बंधित हैI उस छात्र को एक अलग दृष्टिकोण रखने तथा कोई विशेष राजनितिक संगठन में होने के कारण प्रताड़ित नहीं जा सकता। यह उसका अधिकार है की वह महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विषयों पर अपनी राय रखे। वह संभवतः मृत्युदंड देने के खिलाफ था। अतः उसे स्थानीय सांसद द्वारा राष्ट्र विरोधी ठहरा दिया गया था।
रोहित ने सवर्ण हिन्दू समाज द्वारा अपने एक दलित पी.एच.डी. छात्र होने के प्रति हो रहे पूर्वाग्रहों के कारण क्षुब्ध था। वह उसके लिए तैयार नहीं था और उसे नहीं झेल पाया। रोहित की आत्महत्या के ऊपर होने वाली जांच का नतीजा हमें स्वीकार्य नहीं है।

Thursday, October 6, 2016

Provocative Report on Rohith Vemula :


Rohith Chakravarti Vemula (30 January 1989 – 17 January 2016) was a PhD student at the University of Hyderabad who committed suicide on 17 January 2016.
There was a controversy which extended over several months and in July 2015 the University reportedly stopped paying him a fellowship of ₹25,000 (US$370) per month after he was found "raising issues under the banner of Ambedkar Students Association (ASA)." as part of institute's disciplinary inquiry.
On 17 January 2016 Rohith Vemula committed suicide, hanging himself with a banner of the Ambedkar Students Association. In the suicide-note which he left behind, he blamed the "system" for his death.
His suicide sparked protests and outrage from across India and gained widespread media attention as an alleged case of discrimination against Dalits, in which government educational institutions have been purportedly seen as hotbeds of caste-based discrimination against students belonging to depressed sections of the society at the behest of ABVP and RSS.
During the tenure of Smt Smriti Irani, Ministry of Human Resource Development, Department of Higher Education vide Gazette Notification dated February, 2, 2016 appointed a Commission of Inquiry consisting of Justice Ashok Kumar Roopanwal (Retd.) to enquire into the events at the
University of Hyderabad, culminating in death of Shri Chakravarty R.Vemula, a research scholar with the following terms of reference :
(i) to enquire into the facts and circumstance leading to the death of Shri Chakravarti R.Vemula, a research scholar of University of Hyderabad, and fix responsibility for lapses, if any.
(ii) to review the existing grievance redressal mechanism for students at the University, and
to suggest improvements.
The Commission in its 41 page report, probably ignoring the terms of reference, says, "...Rohith Vemula's mother “branded” herself as Dalit to avail the benefits of reservation; expelling him from the hostel was the “most reasonable” decision the university could have taken; personal frustration, not discrimination, drove the 26-year-old PhD scholar to suicide; Union Ministers Bandaru Dattatreya and Smriti Irani were only discharging their duties and there was no pressure on the Hyderabad Central University authorities."
Vemula’s decision to commit suicide, according to the probe, was wholly his own and not abetted by either the university administration or the government.
Nothing can be more farcical than what this report has to say. It is intriguing that the Commission has nothing to comment on the Governments withdrawl of Non NET UGC Scholarships. It again goes on to prove that the Modi Government continues to be more insensitive to the concerns of the Dalits, OBCs and much more importantly to the slow death being served to the Higher Education in India.
Rohith was in in need of scholarship and hostel. The problems in both was able to get neither because Government of India is on the process to sell off Higher Education. On the top of it the so called brokers of "Hindu" Identity, are calling the struggles of social justice 'casteist'!
No word has been said on scrapping of fellowships by subsequent Central Governments . Although there are serious and pressing questions about the nature of the NET/JRF, the indisputable fact is that the JRF picks out a very small subset of students to support for M.Phil./PhD research – the figure of 6400 fellowships in 2010-2011 works out to research support for just 4.6% of the 137,668 students registered for research in the humanities, social sciences and sciences across India in that period. This is hardly the kind of research investment any country, especially a developing one like India, needs.
In order to meet the challenges of a potential elite bias in eligibility of research – a possibility made even more salient after the implementation of OBC reservations -– the UGC instituted the thoroughly misnamed ‘Non-NET fellowship’ in order to provide minimum research support for non-JRF/SRF students (many of whom are NET-qualified) enrolled in M.Phil./PhD programmes in central universities. This support, to the tune of Rs. 5000 and Rs 8000 respectively plus a small annual contingency grant, was intended to be just enough for students to be financially independent from their families, who are invariably tapped as the primary source of financial support.
At its 510th meeting held on October 7, 2015 the UGC decided to discontinue the non-NET fellowship programme.
Under UPA I, at the WTO-GATS negotiations in 2005, the Indian government had already made an ‘offer’ of opening up the higher education sector to the international education trade. Teachers and students organisations across the country have consistently condemned the decision of the Central government to open up India’s highest education sector to GATS since 2005, but this opposition did not make a whit of difference to the UPA regime. The BJP appears more than willing to go down this disastrous neo-liberal route blazed by the UPA.
Equally disturbing is the MHRD’s indication that the Review Committee consider whether economic and other criteria are to be applied to eligibility for the non-NET fellowships. Were this indeed to be accepted, the move would convert the non-NET fellowship from one that invests in Indian research into what are called merit-cum-means fellowships in university systems. Even if this restricted non-NET fellowship could escape the stringent GATS restrictions, by being argued for as a levelling- of-the-field type of measure, receipt of such a fellowship would never be able to even minimally off-set the costs of research itself. Significantly increased tuition fees under the WTO-GATS regime, shall take away alł, and then some, of the restricted non-NET fellowship.
To conclude, the 'institutional murder' of Rohith Vemula has been 'justified' by the 'system' which Rohith blamed the in his suicide note, and this has to be taken seriously.
The Report on Rohith is challenge to all who are committed to the cause of social justice and real political freedom of our country to continue the agitation for this cause and openly condemn this bias report on Rohith's suicide.

Wednesday, October 5, 2016

सर्जीकल स्ट्राइक पर अजीबोगरीब स्थिति :

चैनल वाले ले डूबेंगे मोदी सरकार को। यह अजीब बात है की एक देश दावा कर रहा है कि हमने हमला किया और दूसरा देश इसे झूठ बता रहा है। अमूमन जिस देश पर हमला होता है वह छाती पीट पीट कर दुनिया को अपनी स्थिति बता कर सहानुभूति बटोरते हुए अपने प्रतिकार को जायज ठहराता है। पर यहाँ तो पाकिस्तान ही कह रहा है की सबूत दो की हमारे सीमा में घुस कर कितनों को मारा है। चीन को छोड़कर सभी देश चुप हैं। चीन ब्रह्मपुत्र का पानी रोक दिया है और चीन के मामले में चैनल वालों की घिग्गी बंधी हुई है। विदेशी मीडिया इस प्रकरण के सभी समाचारों में "भारत का दावा" लिख कर शुरू करते हैं।
जो भी कहा जा रहा है वह चैनल वाले ही कह रहे हैं। चैनलों द्वारा एक हिस्टीरिया उत्पन्न करने का प्रयास है। ज़ाहिर यह देशभक्ति के लिए नहीं बल्कि अन्य कारणों से है।
यह हमारे सेना और सैनिकों के मनोबल के लिए ठीक नहीं है। सर्जिकल स्ट्राइक पर दिए गए सेना के बयान में सोच समझ कर चुन कर शब्दों का प्रयोग किया गया था : "......बहुत विशिष्ट और विश्वसनीय के आधार पर हमें प्राप्त जानकारी है कि कुछ आतंकवादी टीमों जम्मू-कश्मीर और हमारे देश में विभिन्न अन्य महानगरों के अंदर आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के एक उद्देश्य के साथ नियंत्रण रेखा पर लांच पैड पर खुद को तैनात किया है और घुसपैठ करने वाले हैं। भारतीय सेना इन लांच पैड पर कल रात सर्जीकल हमलों का आयोजन किया। हमले से यह सुनिश्चित करना है कि इन आतंकवादियों के घुसपैठ कर अपने डिजाइन में सफल नहीं हों और हमारे देश के नागरिकों के जीवन खतरे में न पड़े।.... "
और सच्चाई यह की हमारे सैनिक उडी और बारामुला में शहीद हुए हैं। सर्जीकल स्ट्राइक्स पर Hindustan जैसे समाचार पत्र में लिखा गया की :
"भारत ने पीओके में घुसकर 38 आतंकियों को किया ढेर : उरी हमले के 10 दिन बाद भारतीय सेना ने 18 सैनिकों की शहादत का बदला ले लिया। 45 साल में पहली बार हमारे जवान एलओसी के पार करीब तीन किलोमीटर अंदर घुसे और चार घंटे में सात आतंकी कैंपों को नेस्तनाबूद कर 38 आतंकियों को ढेर कर दिया।"
अब सेना अपने बयान में तो पाकिस्तान के अंदर, नियंत्रण रेखा के पार घुसने की बात तो नहीं कही। फिर यह प्रचार क्यों हुआ? क्यों चैनल वाले फालतू बोल रहें हैं। सिर्फ अरविन्द केजरीवाल और संजय निरुपम ही नहीं, चैनल वालों को भी शहीदों के सम्मान में कम से कम और इस पर सोच समझ कर बोलने चाहिए।
मीडिया को अधिक ज़रूरी है की संयम से समाचार दें। वरना अति उत्साह में वे मोदी जी का नुकसान ही करेंगे।

Thursday, September 22, 2016

मधेपुरा दूरदर्शन टॉवर को हटाये जाने के विरोध में प्रदर्शन।

मधेपुरा युवा मोर्चा के तत्वाधान में दिनांक 22 सितंबर, 2016 को दोपहर 12 बजे मधेपुरा दूरदर्शन टॉवर को हटाये जाने के विरोध में एक प्रदर्शन किया गया।
प्रदर्शनकारी वार्ड आयुक्त मुकेश कुमार, ध्यानी यादव, ओम श्रीवास्तव, गूगल पासवान, हेमेंद्र कुमार, बाल किशोर यादव आदि के नेतृत्व में मुरहो मार्किट से चल कर डाक बंगला स्थित दूरदर्शन टॉवर पर पहुँच कर अपना पुरजोर विरोध दर्ज किया।
मधेपुरा के नागरिकों ने विशाल प्रदर्शन माध्यम से मधेपुरा से दूरदर्शन टॉवर हटाए जाने का विरोध करते हुए निम्नलिखित तथ्यों की ओर ज़िला पदाधिकारी के माध्यम से केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किये हैं।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जब से दूरदर्शन टॉवर के माध्यम से मधेपुरा में ऍफ़ एम् रेडियो सुविधा दिए जाने की घोषणा हुई है समय तत्काल प्रभाव से प्रसार भारती के इंजीनियरिंग विभाग के डिप्टी डायरेक्टर ने मधेपुरा से दूरदर्शन टॉवर हटाए जाने के लिए ट्रक व स्टाफ तथा मजदूरों को मधेपुरा भेज दिया है, जो अब टॉवर को खोलने में लग गए हैं।
* इस सन्दर्भ में दूरदर्शन अधिकारियों द्वारा दिए जा रहे तर्क सच्चाई व ज़मीनी हक़ीक़त से परे है, आधारहीन है और मधेपुरा जैसे पिछड़े व सीमांचल ज़िले के लाखों लोगो के साथ अन्याय है। दूरदर्शन अधिकारियों का कहना है की अब सोनबरसा में हाई पॉवर ट्रांसमिशन टॉवर लगा दी गई है जिससे मधेपुरा सहित सिमरी बख्तियारपुर, खगड़िया व बंगाल में कलना लो पॉवर ट्रांसमिशन टॉवर की ज़रुरत नहीं है।
* यह तर्क में कोई डीएम नहीं है, क्योंकि हाई पॉवर ट्रांसमिशन हर जगह असफल है। वैसे भी विकसित ज़िलों और दिल्ली एवं अन्य महानगरों में दोनों व्यवस्थाएं हैं जबकि मधेपुरा एवं अन्य ज़िलों के हज़ारों वर्ग किलोमीटर के सीमांचल इलाके के लाखों की जनसँख्या के लिए भारत सरकार के द्वारा रेडियो व टेलीविजन सुविधा की प्रति नागरिक अनुपात अभी भी काफी कम है।
* भारत सरकार द्वारा 100 करोड़ खर्च कर पंजाब फ़ज़लिका में 11 वर्षों के निर्माण समय लगा कर 1000 फ़ीट की टेलीविजन टॉवर लगाई गई और दावा किया गया की अब पाकिस्तान में हमारी टेलीविजन वेव ही चलेगी। लकिन हुआ उल्टा। पाकिस्तान के वेव के दखल से पंजाब के लोग भी फ़ज़लिका टॉवर का प्रसारण नहीं देख सकते है। इसी तरह भारत का दूसरा सबसे बड़ा टेलीविजन टॉवर रामेश्वरम में सफ़ेद हांथी साबित हुआ। अधिकांश जनसँख्या को इससे कोई फायदा नहीं हुआ। इसी तरह सोनबरसा का टॉवर का कोई फायदा नहीं हो रहा है, क्योंकि कई बार तो बिजली गुल होने पर उसका जेनेरेटर भी नहीं चलता है। और सबसे बड़ा घाटा यह है की मधेपुरा के लोगों को प्रसार भारती ऍफ़ एम् रेडियो की सुविधा से वंचित कर देगी।
* इसके पहले भी मधेपुरा से इसे हटाने का पुरजोर विरोध हुआ है और यह मांग की गई है मधेपुरा स्थित दूरदर्शन टॉवर से दूरदर्शन के लिए अन्य प्रोफार्म जैसे ऍफ़ एम् रेडियो, किसान चैनेल, लोक सभा व राज्य सभा चैनल, उर्दू व क्षेत्रीय बिहार टीवी का प्रसारण जारी रखा जाए।
* प्रसार भारती के अधिकारियों को यह भी बताया गया की मधेपुरा जैसे सीमांचल ज़िलों में एक भी आकाशवाणी के कार्यक्रम चीनी रेडियो वेव के दखल के कारन ठीक से सुनाई नहीं देती है।
* समाचार के लिए भी यहाँ के लोग बीबीसी या रेडियो नेपाल को सुनने के लिए विवश हैं। चुकी यह सीमांचल व कोसी बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र हैं, तो यह और भी चिंता का विषय है।
* भारत सरकार और प्रसार भारती नीतिगत तौर पर कई बार घोषणा कर चुके हैं की मधेपुरा जैसे सीमान्त क्षेत्र में रेडियो और टेलीविजन के सिग्नल को और शक्तिशाली करेगी लेकिन मधेपुरा से दूरदर्शन टॉवर हटाने के प्रयास करके सरकार अपने ही घोषणाओं और नीतियों के विरुद्ध काम कर रही है, जिसका विरोध किया जायेगा और सरकार को यह जन विरोधी कदम वापस लेने पर मजबूर किया जायेगा।
* सरकार यह सोच ही नहीं है की जो जनता नरेन्द्र मोदी जी की मन की बात सुनने के लिए बेचैन रहते हैं उनसे उनका वाजिब हक़ छिना जा रहे है। इस ज्ञापन के माध्यम से हम भारत सरकार और प्रसार भारती को सूचित करते हैं की दूरदर्शन व आकाशवाणी के अनुपयुक्त सुविधाओं और कमियों के कारण कोसी और सीमांचल क्षेत्र के लोग प्रधान मंत्री की 'मन की बात' कार्यक्रम को कभी ठीक से सुन नहीं पाए हैं।
* मधेपुरा में अपने रैली में २ नवम्बर 2015 को प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मधेपुरा के लिए किए गए घोषणाएं व वायदे के विपरीत मधेपुरा से दूरदर्शन का टॉवर हटाया जा रह है।
ऐसी परिस्थिति में और तथ्यों के आधार पर मधेपुरा के लोगों ने केंद्रीय मंत्री से अनुरोध किये है की मधेपुरा सहित सिमरी बख्तियारपुर, खगड़िया आदि से दूरदर्शन का टॉवर हटाने की प्रक्रिया को अविलम्ब रोक जाए और इस फैसले को रद्द किया जाए अन्यथा मधेपुरा की जनता इस मुद्दे पर अपना विरोध व सत्याग्रह जारी रखेगी।

People of Madhepura oppose removal of Doordarshan TV Tower. Memorandum to Shri Muppavarapu Venkaiah Naidu, Hon'ble Minister for Information & Broadcasting, Government of India

We, the people of Madhepura (Bihar), would like to draw your attention to the fact that that as soon as the news came that FM Radio Channel would be launched at Madhepura (Bihar), the Deputy Director (Engg) of Prasar Bharati has sent trucks to immediately dismantle the Doordarshan LPT at Madhepura and some other places.
* Doordarshan officials have been arguing that a High Power Transmission has been stationed at Sonebarsa in Saharsa District of Bihar and therefore LPTs at Kalna, Madhepura, Simri Bakhtiyarpur & Khagaria are not needed.
* This argument is wrong because HPT is no replacement for the various Low Power Transmission Tower. HPT does not function as expected and the failure of Fazilka TV Tower, often nicknamed the Fazilka Eiffel Tower and Rameswaram TV Tower, is the second-tallest man-made structure in India, is a case in point. It took 11 years and more than Rs 80 crore to erect it. However, nearly four years after it was erected and made functional, the Fazilka TV tower has failed to serve the very purpose, which necessitated its construction.
The television and the radio signals from Pakistan, which it was supposed to weaken, are still as strong as ever. Worse, the population, mostly rural, in all areas around 100 kilometres from its location, which it was supposed to serve have mostly switched over either to the cable connection or to the DTH.
The approximately 1,000 ft free standing tower, the second tallest man-made structure in India (after Rameshwaram TV tower, which is approximately 1,060 ft tall), has turned into a white elephant now. Planned as a relay station on lines of Jalandhar Doordarshan Kendra, apart from weakening the signals from Pakistan, the tower now relays only Doordarshan channels. No programmes are made here even though it houses the equipment necessary to create and relay them.
• There was a massive protest at Madhepura against this decision earlier also and today, and it is submitted that the LPTs should begin FM Radio Program in these backward area and also other DD Programmes such as Rajya Sabha TV, Lok sabha TV, PMs favorite Kisan Channel etc can be relayed from these LPTs and so they should not be removed.
• Our border areas should not be allowed to fall prey to the allurement of Chinese FM Radio Channels broadcasting Hindi programmes and songs.
• The people of border districts of Madhepura,Saharsa and Supaul, and the people residing in far flung areas of India have not much of chioce than radio as reach of television, internet etc have lots of limitations. It is not just for their entertainment that Radio is important, but it is for News i.e., keeping in touch with India, that Radio matters. The sensitivity of this has always been acknowledged by Government of India in its files and discussions at highest levels.
• The people in districts of Madhepura , Saharsa, Supaul, Purnea, Katihar, Araria and Kishanganj, i.e.,the districts which bore the brunt of Kosi floods of 2008, are facing peculiar problem while tuning to All India Radio Stations.
• Almost all AIR stations are intruded by overlapping Chinese Radio Stations, so much so that irritated listeners prefer to tune in to Radio Nepal to listen to Hindi film songs ans BBC Hindi service to listen to News. AIR Evening News had always been popular, but now BBC is preferred because it can be heard better.AIR Vividh Bharati was most trusted for those in love with Hindi Film songs but now FM of Radio Kantipur has taken its place.Interestingly Chinese do not obstruct Nepal Radio or BBC and even broadcast Hindi Film songs from their Radio stations!
• The Government of India had planned strengethening Radio waves in border areas by providing more radio relay stations in districts like Madhepura and strengthening the broadcasting power of existing ones, but the decision is yet to come out of government files and get implemented.
• This is exactly opposite to what Prime Minister Narendra Modi had promised to the people of Madhepura while addressing an Election Rally on 2nd November, 2015. He went on to say that, "The blessings I have got in all my rallies, I have got more than all of them put together alone in Madhepura." More recently while addressing the nation on Radio in the "Man ki Baat" programmem Shri Narendra Modi goes on to say, " My dear countrymen, India has always tried its best to have close, cordial and vibrant relations with its neighbours. A very important event took place recently. The Honourable President of India Shri Pranab Mukherjee inaugurated a new radio channel named ‘Akashvani Maitree Channel’ at Kolkata. Now, some people may wonder whether Honourable President should inaugurate a Radio Channel? But this is no ordinary Radio Channel, it is a very big and very important step. We have Bangladesh as our neighbour. We know that both Bangladesh and West Bengal continue to have a common cultural heritage. So, Akashvani Maitree on this side and Bangladesh Betaar on that side will mutually share the content and Bengali speaking people on both sides will enjoy the programmes of Akashvani, that is, All India Radio. This people to people contact is a big contribution of Akashvani. The President launched this radio channel..."
In such a circumstance the DD LPT Stations at Madhepura, Simri Bakhtiyarpur & Khagaria (of Border Areas) should not be ordered to be removed, or else the people of Madhepura shall continue the agitation in its support.
We, the people of Madhepura :

Sunday, September 18, 2016

बढ़ता रेल किराया और घटती रेल सुविधा :

हम 'मोदी, मोदी, मोदी.....' करते रह गए, और हे 'प्रभु' तूने यह क्या कर दिया।

मोदी सरकार के तमाम कदम के पीछे आम जनता से उसूले जा रहे पैसे को बढ़ाना और कॉरपोरेट के कदम में डालना ही रहा है। सुरेश प्रभु जैसे मंत्री, जिनके जात पर मंत्री पद तय होता है, जनता से कोई सरोकार नहीं है।
रेल ने किराया बढ़ाने को 'सर्ज प्राइसिंग' कहा है, उसे इस तरह से समझें। आप को सुलभ शौचालय जाना है, जोरों का प्रेशर है, अब वहाँ कर्मचारी आपके 'अर्ज' को देखते हुए अधिक पैसे लेगा। शौचालय कब जा पाएंगे, यह तय नहीं। लोग प्रेशर के साथ लाइन में लगते जायेंगे और 'सुलभ' का सुविधा का दाम बढ़ता जायेगा! तो यह है 'अर्ज प्राइसिंग'!
देश में इस समय 42 राजधानी, 46 शताब्दी तथा 54 दुरंतो ट्रेनें चल रही हैं। रेलवे ने 9 सितंबर के बाद की तिथि पर 'फ्लैक्सी किराया प्रणाली' लागू करने का फैसला लिया है। जिससे बुकिंग बढ़ने के साथ ही किराया भी बढ़ता जाएगा। मांग के अनुसार बढ़ते किराए की व्यवस्था के तहत 10 से 50 प्रतिशत तक अधिक किराया देना पड़ेगा। विमान किराए की तर्ज पर बुकिंग आरंभ होने पर पहली 10 प्रतिशत सीटें मूल किराए पर बुक होंगी। इसके आगे सीटों की बुकिंग 10-10 प्रतिशत बढ़ने पर 10-10 फीसदी किराया भी बढ़ाने का प्रावधान है।
इधर, रेलवे ने हाफ टिकट का कॉन्सेपट बदल दिया है। अभी तक रेलवे में हाफ टिकट लेकर बच्चों के लिए पूरी सीट हासिल करने वाली प्रक्रिया अब समाप्त कर दी जाएगी। रेलवे में अभी 5 से 12 साल के बच्चों का हाफ टिकट लगता है और उन्हें पूरी सीट मिलती है। बच्चों के लिए अगर सीट मांगी जाएगी तो उनका किराया भी पूरा लगेगा। हाफ टिकट पर बच्चे अब माता-पिता या बड़ों की सीट को ही शेयर करेंगे। रेलवे द्वारा जब-जब किराया बढ़ाया जाता है, चंडीगढ़ के यात्रियों से एक रुपये के चार रुपये तक भी वसूले जाते हैं। राउंड फिगर के नाम पर यह दोहरा बोझ डाला जाता है। बुधवार को हुई रेल किराए की बढ़ोतरी में जन शताब्दी, गरीब रथ और इलाहबाद के लिए थर्ड एसी से यात्रा करने वालों को यह अतरिक्त बोझ उठाना होगा।
एक जमाना था जब मालभाड़ा और रेल किराया केवल रेल बजट में ही बढ़ता था. रेल बजट निकला और आम आदमी निश्चिंत हो जाता था साल भर के लिए. यही हाल आम बजट और उससे जुड़े करों का था लेकिन भाजपा ने सारी तस्वीर ही बदल दी है। अब कभी भी रेल किराया बढ़ जाता है और कभी भी अन्य कर लग जाते हैं।
अब लोग पूछ रहे हैं कि अच्छे दिन और उन वायदों का क्या हुआ?
दरअसल, हवाई जहाजों का बेहिसाब बढ़ता किराया रोकने की उम्मीद के विपरीत सरकार ने रेल किराया बढ़ा कर जनता को मंहगाई की मार झेलने के लिए मजबूर कर दिया है। कॉरपोरेट को न हो नुकसान, भाड़ में जाए जनता तमाम।

रेलवे को मुनाफे का जरिया बना कर रिलाएंस या अन्य कॉरपोरेट को सौंपने का विरोध हर देशभक्त का परम कर्तव्य है।

Friday, September 16, 2016

जंजीर में न्याय :

देश की न्यायिक व्यवस्था चरमरा चुकी है।
न्यायमूर्ति जितेंद्र मोहन शर्मा द्वरा शहाबुद्दीन को बेल दी गई है। इस बेल के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में दो अलग अलग याचिकाओं द्वारा चुनौती दी जा रही है। नितीश अब जागे हैं, बीजेपी छाती पीट रही है। सुशील मोदी शहाबुद्दीन पर बोल रहा है, पर देश की न्यायिक व्यवस्था, जो अब केंद्र में भाजपा सरकार के अन्तर्गत है, पर कोई टिपण्णी नहीं कर रहा है। शाहबुद्दीन को सिर्फ इसलिए बेल मिल जाना की कोई प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं की गई के साथ यह भी आदेश आना चाहिए था की जिसकी जिम्मेदारी उस प्रक्रिया पूरी करने की थी, उसे इस गैरजिम्मेदारी के लिए सज़ा भी दी जानी चाहिए। बेल कैसे मिलता है यह कुछ "वकीलों" को ही नहीं, जो बेल ले चुके हुए हैं, उन्हें भी अच्छी तरह मालूम है।
मैं यहाँ दो अलग अलग हाई कोर्ट के व्यक्तिगत अनुभव बताना चाहता हूं।
एक हिस्ट्री शीटर, जिस पर दर्जनों हत्याएँ, फिरौती, लूट, गवाहों को मारने आदि का केस चल रहा है। हाई कोर्ट में उस का बेल मैटर आना था। इसके पहले उस नेता बने अपराधी के भाई को इस आधार पर बेल दिया गया की यह भाई व्यक्तिगत रूप से इन अपराधों में नहीं है, इसलिए इसे बेल दी जाती है और इस आधार पर उस हिस्ट्री शीटर को बेल नहीं दी जाएगी। इधर इस नामी बदमाश के बेल का विरोध के लिए तैयार कुछ एक्टिविस्ट "कंप्यूटर" द्वारा तैयार कॉज लिस्ट पर नज़र रखे हुए थे। परंतु अचानक वह केस लिस्ट पर उसी दिन के लिए सुनवाई पर आता है, और उस हिस्ट्री शीटर को इस आधार पर बेल मिल जाता है की इसी केस में इसके भाई को बेल दी गई है।
दुसरे जगह एक अन्य मामले में केस फाइल होता है।
5.2. 2016 : पहली सुनवाई।
4.3. 2016 : जज नहीं बैठे।
29.4.2016 : जज बदल गए : नोटिस जारी।
16.5.2016 : नोटिस जिन्हें था उन्होंने और समय माँगा।
15.7.2016 : जवाब नहीं दिया गया, 6 अक्टूबर की डेट दे दी गई।
19.7.2016 : चुकी मामला का तब तक कोई मतलब नहीं रह जाता, जल्द सुनवाई के लिए आवेदन: जिसे ख़ारिज कर दिया गया।
दरअसल, विवादो के निपटारे में असामान्य देरी के लिए, लंबित पड़े मामलो के लिए साथ ही साथ न्यायिक प्रक्रिया के गंदे या दोषपूर्ण प्रबंधन ही भारतीय न्यायिक व्यवस्था की पहचान है।
शीर्ष अदालत के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, 1 दिसंबर 2014 को सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या 64,919 है।
24 उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों के लिए उपलब्ध लंबित मामले क्रमश: 44.5 लाख और 2.6 करोड़ है। 24 उच्च न्यायालयों में लंबित 44 लाख मामले में से 34,32,493 दीवानी और 10,23,739 आपराधिक हैं।
न्याय में देरी, अन्याय हैI यह वादी जनता की दुर्दशा एवं बड़े पैमाने पर समाज के लिए कम सरोकार दिखाती है जिसका विनाशकारी परिणाम विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों को भुगतना पड़ता हैI
यह सर्वविदित है कि न्यायिक प्रक्रिया तथाकथित 'मेरिट'वालों के हाथों में है। अब इसके लिए जिम्मेदारी देश के संसद को लेनी होगी और देश में भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा की तरह भारतीय न्यायिक देव की स्थापना और संविधान अनुरूप व्यवस्था जब तक लागू नहीं होगी तब तक यह समस्या विकराल होती जाएगी।
और अगर न्याय की देवी के आँखों से पट्टी नहीं हटेगी तो बहुत देर हो जाएगी।

Tuesday, August 30, 2016

Protest against the closure of DoorDarshan LPTs at Kalna, Madhepura, Simri Bakhtiyarpur & Khagaria (Indo_Nepal Border Areas)

As soon as the news came that FM Radio Channel would be launched at Madhepura (Bihar), the Deputy Director (Engg) of Prasar Bharati has literally threatened the ADG (E) EZ of AIR & DD to immediately dismantle the Doordarshan LPT at Madhepura and some other places.
• This is exactly opposite to what Prime Minister Narendra Modi had promised to the people of Madhepura while addressing an Election Rally on 2nd November, 2015. He went on to say that, "The blessings I have got in all my rallies, I have got more than all of them put together alone in Madhepura." More recently while addressing the nation on Radio in the "Man ki Baat" programmem Shri Narendra Modi goes on to say, " My dear countrymen, India has always tried its best to have close, cordial and vibrant relations with its neighbours. A very important event took place recently. The Honourable President of India Shri Pranab Mukherjee inaugurated a new radio channel named ‘Akashvani Maitree Channel’ at Kolkata. Now, some people may wonder whether Honourable President should inaugurate a Radio Channel? But this is no ordinary Radio Channel, it is a very big and very important step. We have Bangladesh as our neighbour. We know that both Bangladesh and West Bengal continue to have a common cultural heritage. So, Akashvani Maitree on this side and Bangladesh Betaar on that side will mutually share the content and Bengali speaking people on both sides will enjoy the programmes of Akashvani, that is, All India Radio. This people to people contact is a big contribution of Akashvani. The President launched this radio channel..."
• Doordarshan officials have been arguing that a High Power Transmission has been stationed at Sonebarsa in Saharsa District of Bihar and therefore LPTs at Kalna, Madhepura, Simri Bakhtiyarpur & Khagaria are not needed.
• There was a massive protest at Madhepura against this decision and it was argued that the LPTs may begin FM Radio Program in these backward area and also other DD Programmes such as Rajya Sabha TV, Lok sabha TV, PMs favorite Kisan Channel etc can be relayed from these LPTs and so they should not be removed.
• But in the Memorandum submitted to the Hon'ble I& B Minister then the most vociferous argument was not to allow our border areas fall prey to the allurement of Chinese FM Radio Channels broadcasting Hindi programmes and songs.
• The people of border districts of Madhepura,Saharsa and Supaul have at least one thing in common with metro population as far as daily entertainment goes, and that is listening to Radio. Though FM channels popularity have made people in big cities turn to radio, the people residing in far flung areas of India have not much of chioce than radio as reach of television, internet etc have lots of limitations.
• However, for people in far flung areas it is not just for their entertainment that Radio is important, but it is for News i.e., keeping in touch with India, that Radio matters. The sensitivity of this has always been acknowledged by Government of India in its files and discussions at highest levels.
• The people in districts of Madhepura , Saharsa, Supaul, Purnea, Katihar, Araria and Kishanganj, i.e.,the districts which bore the brunt of Kosi floods of 2008, are facing peculiar problem while tuning to All India Radio Stations.
• Almost all AIR stations are intruded by overlapping Chinese Radio Stations, so much so that irritated listeners prefer to tune in to Radio Nepal to listen to Hindi film songs ans BBC Hindi service to listen to News. AIR Evening News had always been popular, but now BBC is preferred because it can be heard better.AIR Vividh Bharati was most trusted for those in love with Hindi Film songs but now FM of Radio Kantipur has taken its place.Interestingly Chinese do not obstruct Nepal Radio or BBC and even broadcast Hindi Film songs from their Radio stations!
• The Government of India had planned strengethening Radio waves in border areas by providing more radio relay stations in districts like Madhepura and strengthening the broadcasting power of existing ones, but the decision is yet to come out of govt files and get implimented.

In such a circumstance the DD LPT Stations at Madhepura, Simri Bakhtiyarpur & Khagaria (of Border Areas) should not be ordered to be removed, or else the people of Madhepura shall be forced to launch an agitation in its support.

Wednesday, August 24, 2016

पिछड़ा वर्ग आयोग : मंडल कमीशन में मुस्लिम पिछड़े भी शामिल हैं।


देश के संविधान में बाबा साहेब के गैर दलित पिछड़ों के सम्बन्ध में व्यक्त चिंता की वजह से दिए गए प्रावधान के अनुरूप पहला पिछड़ा वर्ग आयोग एक ब्राह्मण काका कालेलकर की अध्यक्षता में गठित की गयी, परंतु इस आयोग की अनुशंसाओं पर स्वयं अध्यक्ष काका कालेलकर की ओर से राष्ट्रपति को दिए गए आपत्ति के कारण इसे ख़ारिज दिया गया। 1977 में जनता पार्टी के शासन में आने पर अपने घोषणा पत्र में किये गए वायदे के अनुसार दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग गठित किया गया। इसकी जिम्मेदारी प्रधान मंत्री मोरारजी भाई देसाई ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बी पी मंडल को सौपते हुए कहे थे कि, "मंडल जी, आपको शायद लगा होगा की मैंने आपको कैबिनेट में स्थान क्यों नहीं दिया। परंतु यह अधिक जिम्मेदारी का दायित्व है जिसके लिए आपको हमेशा याद किया जायेगा।"
यह गौरतलब है की जहाँ प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग ने 30 मार्च, 1955 को कुल 2399 हिन्दू जातियों को पिछड़ा घोषित किया था, और क्लास 1 में 25%, क्लास II में 33.5% तथा क्लास III & IV में 40% आरक्षण की अनुशंसा की थी, वहीं मंडल कमीशन रिपोर्ट ने विभिन्न धर्मो (मुसलमान भी) और पंथो के 3743 जातियाँ (देश के 54% जनसँख्या) को सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक मापदंडो के आधार पर सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ा (संविधान में आर्थिक पिछड़ा नहीं लिखा है और कमीशन आर्थिक बराबरी के लिए भी नहीं था) घोषित करते हुए 27% (क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 50% अधिकतम का फैसला दिया था और पहले से SC/ST के लिए 22.5 % था), की रिपोर्ट दी।
कोर्ट फैसले के अनुसार गैर संविधानिक 'क्रीमी लेयर" प्रावधान और नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास के आदेशानुसार इसमें रोज छेड़-छाड़ की जा रही है।
सही मायने में उलटा आरक्षण लागू है (यानि 27% से अधिक मेरिट में भी नहीं आ सकते), और तमाम ओबीसी नेता सिर्फ अपने परिवार को तरक्की देने में लगे हैं।
#98thBirthAnniversaryOfBPMandal

Tuesday, August 23, 2016

काला धन पर मोदी सरकार का भद्दा मज़ाक :

मनमोहन सिंह की सरकार काला धन के लिए इससे अधिक सुविधा नहीं दे सकते थे की उन्होंने अपने प्रधान मंत्री दायित्व के कार्यकाल में स्विस बैंकों के ब्रांच भारत में ही खोलने की अनुमति दे दिए।
इस दौरान 2014 में खबर आई कि वाशिंगटन स्थित एक थिंक टैंक ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी की रिपोर्ट के मुताबिक 1948 से 2008 के बीच भारतीयों ने विदेशी बैंकों में करीब 28 लाख करोड़ रुपये काला पैसा जमा कराया।
देश व्यथित था और 12 फ़रवरी, 2014 को 'चाय पर चर्चा' कार्यक्रम में नरेन्द्र मोदी ने कसम खाई की वे काला धन को वापस स्वदेश लायेंगे और देश को भरोसा दिया की काला धन वापस लाकर देशवासियों में उसे बाटेंगे। प्रत्येक के हिस्से में 15 लाख रुपये तो आएगा ही।
27 अक्टूबर, 2014 को ब्लैक मनी के मुद्दे पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में आठ नामों का खुलासा किया। जो नाम जाहिर किए गए उनमें गोवा के खनन कारोबारी राधा एस टिम्बलू, राजकोट के कारोबारी पंकज चमनलाल लोढिया और डाबर समूह के प्रदीप बर्मन शामिल थे। खुलासा किया गया कि मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी का दिसंबर 2006 में 100-100 करोड़ रुपया स्विस अकाउंट में जमा था। रिलायंस इंडस्‍ट्रीज का 500 करोड़ रुपये एक अकाउंट में था। मोदी सरकार ने कालेधन के मामले में 60 लोगों के ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई शुरू की जिनके नाम पर विदेशी बैंकों में काला धन जमा था। पर धीरे से ये कार्यवाई रोक दी गई। कारण यह था कि इन लोगों में बड़े कॉर्पोरेट घरानों से जुड़े लोगों के नाम भी शामिल हैं। इस बीच स्विट्जरलैंड की बैंकिंग प्रणाली की गोपनीयता के खिलाफ वैश्विक स्तर पर चल रहे अभियान के बीच स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि करीब एक-तिहाई यानी 33 प्रतिशत घटकर 1.2 अरब फ्रैंक (करीब 8,392 करोड़ रुपये) रह गई है।
अब यह समाचार है कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की चेयरपर्सन रानी सिंह नायर ने आज कहा कि सरकार अर्थव्यवस्था में काले धन पर लगाम लगाने के लिए तीन लाख रुपये से अधिक के नकद लेन-देन पर प्रतिबंध लगाने की एसआईटी की सिफारिश पर गौर कर रही हैं।
दरअसल काले धन पर रोक लगाने के उपाय जो एम् सी जोशी कमिटी ने सुझाए थे उसमें प्रमुख था भ्रष्टाचार पर रोक के उद्देश्य से प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट को कड़ा बनाने के लिए उसमें संशोधन करना।
इस पर कोई कार्यवाई नहीं है। अलबत्ता रेडियो पर काला धन रोकने के प्रचार पर रोज करोड़ों खर्च हो रहा है। अच्छा होता अगर यह विज्ञापन हिंदी में न होकर अंग्रेजी या स्विस भाषा में होती।
कहाँ तीन ख़रब रुपये पकड़ना था और तीन लाख पर पर कार्यवाई की धमकी दी जा रही है? इससे अधिक बड़ा मज़ाक और क्या हो सकता है?
यह धमकी यह है की आप 15 लाख मांगने के चक्कर में कहीं खुद जेल की हवा न खाएँ। और कॉरपोरेट का धन काला हो या पीला इससे आपको क्या ?

Friday, July 29, 2016

चीन के हमले और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का संसद में बयान :

यह आश्चर्य का विषय है कि चीन के बार बार भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण, जिसे कांग्रेस के शासन में 'घुसपैठ' कहा जाता रहा है, उसे मोदी सरकार में रक्षा मंत्री ने 'सीमा उल्लंघन' कह कर संसद को सही जानकारी नहीं दी। उन्होंने गुरुवार को उत्तराखंड के चमोली जिले के बाराहोटी इलाके में चीनी सेना के घुसपैठ की खबरों का खंडन किया और कहा कि यह घुसपैठ नहीं बल्कि सीमा के उल्लंघन का मामला है। रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने लोकसभा में दिए बयान में कहा, ‘‘जैसी मीडिया में खबरें आई हैं उत्तराखंड में किसी तरह की घुसपैठ नहीं हुई है। यह चीनी सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) द्वारा सीमा के उल्लंघन का मामूली सा मसला है।’’
और उससे भी गंभीर बात है कि मंत्री महोदय मनोहर पर्रिकर ने यह कह कर कि भारत और चीन के बीच सीमा तय नहीं है, भारत द्वारा "मैकमोहन लाइन" को मानने की जगह चीनी दृष्टिकोण को ही दोहरा कर, संसद में औपचारिक मान्यता दे दी।
विदेश नीति और देश की रक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर ऐसी स्थिति शायद बिलकुल मनमोहन सिंह के कार्यकाल की लगती है।
दरअसल, मैकमहोन रेखा भारत और तिब्बत (जिसे चीन निगल चुका है), के बीच सीमा रेखा है। यह अस्तित्व में सन् 1914 में भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और तिब्बत के बीच शिमला समझौते के तहत आई थी। 1914 के बाद से अगले कई वर्षो तक इस सीमारेखा का अस्तित्व कई अन्य विवादों के कारण कहीं छुप गया था, किन्तु 1935 में ओलफ केरो नामक एक अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी ने तत्कालीन अंग्रेज सरकार को इसे आधिकारिक तौर पर लागू करने का अनुरोध किया। 1937 में सर्वे ऑफ इंडिया के एक मानचित्र में मैकमहोन रेखा को आधिकारिक भारतीय सीमारेखा के रूप में पर दिखाया गया था।
इस सीमारेखा का नाम सर हैनरी मैकमहोन के नाम पर रखा गया था, जिनकी इस समझौते में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी और वे भारत की तत्कालीन अंग्रेज सरकार के विदेश सचिव थे। अधिकांश हिमालय से होती हुई सीमारेखा पश्चिम में भूटान से 890 कि॰मी॰ और पूर्व में ब्रह्मपुत्र तक 260 कि॰मी॰ तक फैली है। जहां भारत के अनुसार यह चीन के साथ उसकी सीमा है, वही, चीन 1914 के शिमला समझौते को मानने से इनकार करता है। चीन के अनुसार तिब्बत स्वायत्त राज्य नहीं था और उसके पास किसी भी प्रकार के समझौते करने का कोई अधिकार नहीं था। चीन के आधिकारिक मानचित्रों में मैकमहोन रेखा के दक्षिण में 56 हजार वर्ग मील के क्षेत्र को तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है। इस क्षेत्र को चीन में दक्षिणी तिब्बत के नाम से जाना जाता है। 1962- 63 के भारत-चीन युद्ध के समय चीनी फौजों ने कुछ समय के लिए इस क्षेत्र पर अधिकार भी जमा लिया था। इस कारण ही वर्तमान समय तक इस सीमारेखा पर विवाद यथावत बना हुआ है, लेकिन भारत-चीन के बीच भौगोलिक सीमा रेखा के रूप में इसे अवश्य माना जाता है।
पिछले लगभग 11 महीने से मोदी सरकार ने चीन के साथ हिमालय में सीमा की स्थिति पर एक ढक्कन डाल दिया है। मिडिया कवरेज पर अंकुश लगा दी गयी है जिससे सूचना के स्रोतों सूख चुके है।
परंतु ऐसा नहीं है कि चीनी सीमा पार हमलों समाप्त हो गया है। सिर्फ लगातार हो रही चीनी घुसपैठ की घटनाओं की कम जानकारी है।
यह बीजिंग को 'खुश' करने के लिए है। जिस तरह से चीनी अपने अतिक्रमण को "चीनी फौजी दलों द्वारा रास्ता भटकने" कह कर ख़ारिज कर देता है, उसी तरह अब मोदी सरकार भी उन्हीं शब्दों का प्रयोग करती है।
चीन की फौज जिसे वे 'पीपुल्स लिबरेशन आर्मी' कहते है, के सैनिकों द्वारा 2008 में सिर्फ 270 बार भारतीय सीमा में "खोने" के आंकड़े उपलब्ध हैं। सिर्फ 2008 में "आक्रामक सीमा गश्ती" पीएलए द्वारा की 2,285 घुसपैठ के पैटर्न बनाए गए थे। आज भी वे उसी तरह बदस्तूर जारी है। संसद में सिर्फ बयान दी जा रही है।
चीन मुख्य रूप से लद्दाख में भारतीय क्षेत्र के अक्साई चिन और शाख्सगाम घाटी के 38,000 वर्ग किलोमीटर के अवैध कब्जे में है। चीनी दावे पिछले कुछ वर्षों से बढ़ते गए हैं। अरुणाचल में यह 90,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर चीन ने दावा किया है।
सरजमीन पर स्थिति देखकर और सीमा पर शांति और सौहार्द सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न सीमा समझौतों पर दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं। शांति बनाए रखने के लिए समझौते की कोई कमी नहीं हैं, परंतु वास्तविक नियंत्रण (एलएसी) की सीमा के पार चीनी घुसपैठ बेरोकटोक जारी है।

चीन के हमले और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का संसद में बयान :

यह आश्चर्य का विषय है कि चीन के बार बार भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण, जिसे कांग्रेस के शासन में 'घुसपैठ' कहा जाता रहा है, उसे मोदी सरकार में रक्षा मंत्री ने 'सीमा उल्लंघन' कह कर संसद को सही जानकारी नहीं दी। उन्होंने गुरुवार को उत्तराखंड के चमोली जिले के बाराहोटी इलाके में चीनी सेना के घुसपैठ की खबरों का खंडन किया और कहा कि यह घुसपैठ नहीं बल्कि सीमा के उल्लंघन का मामला है। रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने लोकसभा में दिए बयान में कहा, ‘‘जैसी मीडिया में खबरें आई हैं उत्तराखंड में किसी तरह की घुसपैठ नहीं हुई है। यह चीनी सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) द्वारा सीमा के उल्लंघन का मामूली सा मसला है।’’
और उससे भी गंभीर बात है कि मंत्री महोदय मनोहर पर्रिकर ने यह कह कर कि भारत और चीन के बीच सीमा तय नहीं है, भारत द्वारा "मैकमोहन लाइन" को मानने की जगह चीनी दृष्टिकोण को ही दोहरा कर, संसद में औपचारिक मान्यता दे दी।
विदेश नीति और देश की रक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर ऐसी स्थिति शायद बिलकुल मनमोहन सिंह के कार्यकाल की लगती है।
दरअसल, मैकमहोन रेखा भारत और तिब्बत (जिसे चीन निगल चुका है), के बीच सीमा रेखा है। यह अस्तित्व में सन् 1914 में भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और तिब्बत के बीच शिमला समझौते के तहत आई थी। 1914 के बाद से अगले कई वर्षो तक इस सीमारेखा का अस्तित्व कई अन्य विवादों के कारण कहीं छुप गया था, किन्तु 1935 में ओलफ केरो नामक एक अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी ने तत्कालीन अंग्रेज सरकार को इसे आधिकारिक तौर पर लागू करने का अनुरोध किया। 1937 में सर्वे ऑफ इंडिया के एक मानचित्र में मैकमहोन रेखा को आधिकारिक भारतीय सीमारेखा के रूप में पर दिखाया गया था।
इस सीमारेखा का नाम सर हैनरी मैकमहोन के नाम पर रखा गया था, जिनकी इस समझौते में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी और वे भारत की तत्कालीन अंग्रेज सरकार के विदेश सचिव थे। अधिकांश हिमालय से होती हुई सीमारेखा पश्चिम में भूटान से 890 कि॰मी॰ और पूर्व में ब्रह्मपुत्र तक 260 कि॰मी॰ तक फैली है। जहां भारत के अनुसार यह चीन के साथ उसकी सीमा है, वही, चीन 1914 के शिमला समझौते को मानने से इनकार करता है। चीन के अनुसार तिब्बत स्वायत्त राज्य नहीं था और उसके पास किसी भी प्रकार के समझौते करने का कोई अधिकार नहीं था। चीन के आधिकारिक मानचित्रों में मैकमहोन रेखा के दक्षिण में 56 हजार वर्ग मील के क्षेत्र को तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है। इस क्षेत्र को चीन में दक्षिणी तिब्बत के नाम से जाना जाता है। 1962- 63 के भारत-चीन युद्ध के समय चीनी फौजों ने कुछ समय के लिए इस क्षेत्र पर अधिकार भी जमा लिया था। इस कारण ही वर्तमान समय तक इस सीमारेखा पर विवाद यथावत बना हुआ है, लेकिन भारत-चीन के बीच भौगोलिक सीमा रेखा के रूप में इसे अवश्य माना जाता है।
पिछले लगभग 11 महीने से मोदी सरकार ने चीन के साथ हिमालय में सीमा की स्थिति पर एक ढक्कन डाल दिया है। मिडिया कवरेज पर अंकुश लगा दी गयी है जिससे सूचना के स्रोतों सूख चुके है।
परंतु ऐसा नहीं है कि चीनी सीमा पार हमलों समाप्त हो गया है। सिर्फ लगातार हो रही चीनी घुसपैठ की घटनाओं की कम जानकारी है।
यह बीजिंग को 'खुश' करने के लिए है। जिस तरह से चीनी अपने अतिक्रमण को "चीनी फौजी दलों द्वारा रास्ता भटकने" कह कर ख़ारिज कर देता है, उसी तरह अब मोदी सरकार भी उन्हीं शब्दों का प्रयोग करती है।
चीन की फौज जिसे वे 'पीपुल्स लिबरेशन आर्मी' कहते है, के सैनिकों द्वारा 2008 में सिर्फ 270 बार भारतीय सीमा में "खोने" के आंकड़े उपलब्ध हैं। सिर्फ 2008 में "आक्रामक सीमा गश्ती" पीएलए द्वारा की 2,285 घुसपैठ के पैटर्न बनाए गए थे। आज भी वे उसी तरह बदस्तूर जारी है। संसद में सिर्फ बयान दी जा रही है।
चीन मुख्य रूप से लद्दाख में भारतीय क्षेत्र के अक्साई चिन और शाख्सगाम घाटी के 38,000 वर्ग किलोमीटर के अवैध कब्जे में है। चीनी दावे पिछले कुछ वर्षों से बढ़ते गए हैं। अरुणाचल में यह 90,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर चीन ने दावा किया है।
सरजमीन पर स्थिति देखकर और सीमा पर शांति और सौहार्द सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न सीमा समझौतों पर दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं। शांति बनाए रखने के लिए समझौते की कोई कमी नहीं हैं, परंतु वास्तविक नियंत्रण (एलएसी) की सीमा के पार चीनी घुसपैठ बेरोकटोक जारी है।

Sunday, May 1, 2016

Nationalise Hindu College, University of Delhi : Girls hostel Scam :

:
The decision NOT to have admissions for Girls Hostel this year is blasphemous. The funds of UGC has been (mis)used. The Girls Hostel Fees were raised astronomically and the students were protesting against this.
In March 2014, seven teachers — Atul Gupta, Ish Mishra, P K Vijayan, Poonam Sharma Sethi, Ratan Lal, Rajesh Kumar and Sachin Vashistha — had written to L-G Najeeb Jung, alleging irregularities in the construction of the girls’ hostel. The L-G was the chief guest at the function to lay the foundation stone for the hostel. In the letter, the teachers alleged that the governing body had begun construction despite the proposal being rejected by the municipal corporation. They also alleged that the college had not sought clearances from agencies like the National Green Tribunal and the Delhi Jal Board.
Hindu College, one of the most prestigious colleges under the ambit of Delhi University had undertaken construction of a new girl’s hostel wing and a New Academic Block to upgrade the existing infrastructure facilities of the college at an estimated cost of Rs. 16.50 crores. The Chairman Sh SNP Punj in his appeal for funds had said that these projects are experiencing a shortfall of funds of Rs.7.50 crores. The donations would be exempted from Income Tax under Section 80 G of the Income Tax Act.
Less than a month after tying to dismiss two teachers, Hindu College governing body had decided to penalise seven teachers for writing to the Lieutenant-Governor, alleging irregularities in the construction of a girls’ hostel.
“We have given them minor punishment for defaming the college and bringing harm to its name. The seven teachers will be subjected to annual increment cuts for two years and will be barred from any administrative role for five years,” governing body chairman S N P Punj had said.
The Delhi University Teachers’ Association (DUTA) opposed the decision. In a statement, DUTA has asked the Visitor (His Excellency the President of India) to intervene, stating that “the decision shows that the college is being held hostage by a vindictive management that will not tolerate any questioning of its dubious functioning."
Actually, this is another glaring example of how the prestigious Hindu College though being run by a Trust but in actuality is being treated as the personal fiefdom of the present Chairman of the Trust SHRI S.N.P.PUNJ, whose family or he personally has absolutely no contribution in the establishment of the College more than 100 years ago, but invokes all legal interpretation to literally claim that the College is his private property and the Teaching and non-teaching staff are his own employees. Sh Punj had notoriously tired to dismiss two OBC members of teaching faculty at Hindu College, who are fighting their battle in the court of law. In fact if you write his name on Google Search, you will get references to just many of the Court Cases, and later somewhere option of Hindu College will also come. The College Administration has been targeting a dalit teacher Dr Ratan Lal, a fit case for Action against Sh SNP Punj under Dalit Atrocities Act 2016.
Hindu College was founded in 1899, by Late Shri Krishan Dassji Gurwale. In the backdrop of the nationalist struggle against British Raj. Some prominent citizens including Shri Gurwale Ji, decided to start a college that would provide nationalist education to the youth, while being non-elitist and non-sectarian. Originally, the college was housed in a humble building in Kinari Bazar, Chandni Chowk, and it was affiliated to Punjab University as there was no University in Delhi at that time. As the college grew, it faced a major crisis in 1902. The Punjab University warned the college that the University would disaffiliate the college if the college fails to get a proper building of its own. But fortunately, Rai Bahadur Lala Sultan Singh came to rescue the college from this crisis. He donated a part of his historic property, which originally belonged to Colonel James Skinner, at Kashmiri Gate, Delhi, to the college. The college functioned from there till 1953. When the University of Delhi took birth in 1922, Hindu College along with Ramjas College and St. Stephen's College were subsequently affiliated to the University, making them the first three institutions to be affiliated with University.
Hindu College was a centre for intellectual and political debate during India’s freedom struggle, especially during the Quit India Movement. This is the only college in Delhi to have a Students’ Parliament since 1935, which in fact, provided a platform to many national leaders including Mahatma Gandhi, Motilal Nehru, Pandit Jawaharlal Nehru, Sarojini Naidu, Annie Besant, Muhammad Ali Jinnah and Subhash Chandra Bose for motivating the youth. Responding whole-heartedly to Gandhi Ji's Quit India call in 1942, the college played a leading role in India’s freedom struggle as some teachers and students of the college even went to prison and had closed its gates for several months.
Today, the Hindu College cannot be allowed to be an island of "private property" running on the public UGC funding at University of Delhi. If the University or the Union Government does not take timely and appropriate action, unrest and agitation in this prestigious Institution of University of Delhi is a foregone conclusion.

Sunday, April 24, 2016

Outrageous Agenda:

Outrageous Agenda:
The SC/ST/OBC Forum for Teaching and Non-Teaching Staff of Swami Shraddhanand College has called the matter listed as Supplementary Agenda No 11 of the Governing Body Meeting scheduled to be held on 27th April, 2016. Item No 11 says . "Discussion on initiatives to promote education among SC/ST/OBC teachers", as outrageous and has demanded its withdrawal.
The matter has been sent by Sh Alkesh Sharma, Treasurer, Governing Body.

" The SC/ST/OBC Forum for Teaching and Non-Teaching Staff of Swami Shraddhanand College is shocked and anguished over derogatory use of words, meant to humiliate and harass the SC/ST/OBC by saying that the Governing Body will "educate" them or promote their 'education'. This sort of wording reflects the manuwadi mind set of some of the members. Sh Alkesh Sharma, who is himself an employee of the Delhi Cantonment Board, under Ministry of Defense, Government of India, and so he is expected to be more sensitive towards displaying respect to all the sections of the society.
The SC/ST/OBC Forum for Teaching and Non-Teaching Staff of Swami Shraddhanand College demands that such agenda be immediately withdrawn and Sh Sharma should render an unconditional apology."

The annihilation of a Dalit Teacher Ratan Lal.: the making of a Rohit Vemula.


"Justice To Rohit Vemula, Dignity for Dr Ratan Lal"
Normally I prefer writing in Hindi because I think that those whom I would like to understand what I have to say, do not know English, and those who know English wouldn't like to understand what I would like to say. But here the idea is that those who wouldn't like to understand what I have to say, should at least read what is being said.
The murder of Rohit Vemula, which is being rightly called an 'institutional murder', because as we should know, Rohit who was a dalit PhD scholar at the University of Hyderabad, committed suicide on 17 January 2016, as from July 2015 the University stopped paying him a fellowship of 25,000 rupees per month after he was found "raising issues under the banner of Ambedkar Students Association (ASA)," as part of institute's disciplinary inquiry, and Rohit had been protesting against this for months. The role of ABVP, Union Minister Bandaru Dattatreye and the Union HRD Minister Smriti Irani in this episode have been questioned by the protestors. Crocodile tears are being shed now, but a life has gone and many like him continue to suffer. Ratan Lal is one of them.
Ratan Lal, is a friend, and that is not the reason for raising my concern. Ratan Lal is an Associate Professor in the Department of History at the prestigious Hindu College, University of Delhi, writes a lot, is a vociferous speaker who can hold his audience almost hypnotically, involves himself in every social and political issue of significance, has courage to question the wrong and is a nature loving person. He comes from a humble background, studied in Hindi medium but did well as a student and researcher at University of Delhi, and got an opportunity to teach at Hindu College and is now the senior most teacher in the Department of History. Having been trained under Prof D N Jha and Prof K M Shrimali, he has authored very interesting books on Indian History.
Now Ratan Lal is being hounded by the College Administration and he has been running from pillar to post with no result. The reason is not just that he is a Dalit, but also that you cannot invoke law against persons who have the money power. Hindu College is a College being run by a Trust but in actuality it is being treated as the personal fiefdom of the present Chairman of the Trust SHRI S.N.P.PUNJ, whose family or he personally has absolutely no contribution in the establishment of the College more than 100 years ago, but invokes all legal interpretation to literally claim that the College is his private property and the Teaching and non-teaching staff are his own employees. Sh Punj has notoriously tired to dismiss two OBC members of teaching faculty at Hindu College, who are fighting their battle in the court of law. In fact if you write his name on Google Search, you will get references to just many of the Court Cases, and later somewhere option of Hindu College will also come.
Actually Hindu College was founded in 1899, by Late Shri Krishan Dassji Gurwale. In the backdrop of the nationalist struggle against British Raj. Some prominent citizens including Shri Gurwale Ji, decided to start a college that would provide nationalist education to the youth, while being non-elitist and non-sectarian. Originally, the college was housed in a humble building in Kinari Bazar, Chandni Chowk, and it was affiliated to Punjab University as there was no University in Delhi at that time. As the college grew, it faced a major crisis in 1902. The Punjab University warned the college that the University would disaffiliate the college if the college fails to get a proper building of its own. But fortunately, Rai Bahadur Lala Sultan Singh came to rescue the college from this crisis. He donated a part of his historic property, which originally belonged to Colonel James Skinner, at Kashmiri Gate, Delhi, to the college. The college functioned from there till 1953. When the University of Delhi took birth in 1922, Hindu College along with Ramjas College and St. Stephen's College were subsequently affiliated to the University, making them the first three institutions to be affiliated with University.
Hindu College was a centre for intellectual and political debate during India’s freedom struggle, especially during the Quit India Movement. This is the only college in Delhi to have a Students’ Parliament since 1935, which in fact, provided a platform to many national leaders including Mahatma Gandhi, Motilal Nehru, Pandit Jawaharlal Nehru, Sarojini Naidu, Annie Besant, Muhammad Ali Jinnah and Subhash Chandra Bose for motivating the youth. Responding whole-heartedly to Gandhi Ji's Quit India call in 1942, the college played a leading role in India’s freedom struggle as some teachers and students of the college even went to prison and had closed its gates for several months.
Ratan Lal is actually the true follower of the traditions of the Hindu College. He has raised his voice on many issues of concern and in favour of the students and teaching community. These were never liked by the establishment at Hindu College. But reasons for heartburn are many more. The first cause was when a residential establishment in depleted condition, considered to be heritage building, was handed over to Ratan Lal for his official accommodation as per rules. After several requests when the College did not provide any grant for the repair of the place, Ratan Lal, who had just received some arrears for his promotion, spent a considerable amount with intimation and information to the College for making the place livable, knowing that this is where he shall stay till his retirement. Since the place has a small lawn, the whole place was decorated with plants and a bust of Dr Bheem Rao Ambedkar was also placed in the lawn. This steered the hornets nest. It again was making the establishment uncomfortable because the plan was to evacuate Ratan Lal and make the place of some commercial use. In fact the accommodation allotted to the Non-teaching employee in the adjoining section was vacated and later allotted to the office of Sulabh International, to whom the cleanliness responsibilities have been outsourced. Not to sop here, on the other-side a huge pit of 20 X 20 X 20 feet has been dug and all the garbage of the College is being dumped there in the name "compost" making, which emanates nasty smell and also methane if there is a water due to rains. The leaves piled up there are in condition that they can catch fire and spread to nearby Chemistry Laboratory or the Chemistry store, which also has cylinders apart from chemicals of different kinds. The idea is to humiliate and harass Ratan Lal and force him to leave the accommodation and also teach him a lesson to dare erect the bust of Babasaheb Bheem Rao Ambedkar Ji.
Systematic targeting of Ratan Lal has been sent in complaints and appeals to the University and College Authorities as under everal times in past nearly a year, and has not been replied :
1. Deliberately snatching his paper and arbitrarily dividing his class, forcing to work like junior most teacher (more work-load than the sanctioned strength).
2. Deliberately withheld his TA for the month of June 2015, without furnishing any rules and regulations of Delhi University.
3. The construction of the Botanical Garden surrounded by huge walls next to my house, without keeping in mind the direction of the flow of heavy rain water and proper drainage mechanism. Consequently, the lawn of his house gets converted into a pond in heavy rains, children have to wade through the dirty water to go to school. The water logging also invites mosquitoes and insects apart from littering his garden with all the waste that flows with drain water and creates health hazards. The area is deliberately kept dark which has created security threat.
4. In a further twist of events leading to his harassment is the fact that the house (adjacent to my house) which was earlier allotted to an employee of the college has now been allotted to a private agency to run the office for sanitation work. The purpose is intentional- humiliation as well as invasion into my privacy. This has also created security threat for him and his family members.
5. As if this was not enough to humiliate him, recently a ‘compost’ pit (garbage pit) on the other side of his house has been dug up. This ‘compost’ pit has become a dump yard for all sorts of garbage, dry leaf and is bound to become a source of foul smell. It is also situated between the chemistry lab on the one side and the chemistry store room on the other. There is huge pile of dry leaf in the open ‘compost’, therefore, in case of fire it may cost anything including life. At this site the former Principal used to throw all sorts of garbage including broken toilet seats. This is a deliberate attempt to force him to vacate the house. It smacks some hidden agenda to his life as well.
6. It is not out of context to mention that there is a bust of Baba Saheb on his campus .A letter mentioning his community name, “To insinuate that any action against you is being directed to harass you simply because you belong to SC Category…”was also served on him by the Chairman, Governing Body in recent past.
7. Forwarding him a representation of a fictitious woman, Monica Rai, without verifying her identity. Her representation was quite derogatory, however, he was forced to reply. This was nothing but conspiracy to implicate him in a fake case.
Finally, Ratan Lal has approached Delhi Police for justice. On 5th February 2016, a complaint was filed by Ratan Lal at the Maurice Nagar Police Station to register an FIR against the Officiating Principal, Dr. Anju Srivastav and others. In response to the first reminder submitted on 3rd of March, he was requested by the Police Station on 4th of March to submit more relevant documents which may help in the investigation. As the matter was serious in nature, he duly submitted some of the relevant documents to SHO’s office on 09.03.16, which were enough to prove the discriminatory and atrocious action and behaviour of the Hindu College Authorities. He also sent number of photographs to the SHO through whatsapp. On 29.03.16, he gave a second reminder with regard to his complaint. On 4th and 6th of April 2016, he personally met the DCP, Shri Madhur Varma and the Police Commissioner, Shri Alok Verma respectively and apprised them with the matter and submitted a representation to them.
It is indeed a matter of deep pain and anguish that more than two months have lapsed but no action has been taken in the matter. There is a saying that Justice delayed is Justice denied and if a Professor is a victim of continuous harassment and atrocities and there is no action on the part of the police in the capital of the country, one can imagine the condition of the dalits in other parts of the country! It seems that either the college authorities are considering themselves above the law of the country or the police or the police is deliberately protecting them. Are they waiting for some unwarranted act, such as Rohith Vemula to happen? Will the concerned officers wake up then? The entire ‘event’ is not only affecting his personal, family and professional life but also social life. He is in deep mental and psychological pain and crisis.

I call upon my friends and colleagues who have even little bit concern for Human Rights, Social Justice and the Right of Dalits to live with dignity to join me in the movement : "Justice To Rohit Vemula, Dignity for Dr Ratan Lal".

Please share.

Tuesday, April 12, 2016

13 अप्रैल : सामाजिक न्याय के प्रणेता स्व बी पी मंडल का पुण्यतिथि।


अप्रैल का सामाजिक न्याय के संदर्भ में बड़ा ऐतिहासिक महत्व है। मैं 11 अप्रैल को महात्मा ज्योतिबा फूले के जन्मदिवस को महत्व्पूर्ण तो मानता ही हूँ, परन्तु 14 अप्रैल को बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर का जन्मदिवस सामाजिक न्याय के सन्दर्भ में विशेष महत्व है। परन्तु 13 अप्रैल को सामाजिक न्याय के प्रणेता स्व बी पी मंडल की पुण्यतिथि भी उल्लेखनीय दिन है।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत सरकार के पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष स्व बी पी मंडल का जन्म 25 अगस्त,1918 को बनारस में हुआ था। वे बिहार के आधुनिक इतिहास में पिछड़े वर्ग के और यादव समाज के संभवतः प्रथम क्रन्तिकारी व्यकित्व, मुरहो एस्टेट के ज़मींदार होते हुए भी स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रीय और कांग्रेस पार्टी में बिहार से स्थापना सदस्यों में एक, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, बिपिन चन्द्र पाल, सच्चिदानंद सिन्हा जैसे प्रमुख नेताओं के साथी, 1907 से 1918 तक बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमिटी और ए आई सी सी के बिहार से निर्वाचित सदस्य, 1911 में गोप जातीय महासभा (बाद में यादव महासभा) की संस्थापक स्व रासबिहारी लाल मंडल के सबसे छोटे पुत्र थे। रासबिहारी बाबू यादवों के लिए जनेऊ धारण आन्दोलन और 1917 में मोंटेग-चेल्म्फोर्ड समिति के समक्ष यादवों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए, वायसरॉय चेल्म्फोर्ड को परंपरागत 'सलामी'देने की जगह उनसे हाथ मिलते हुए जब यादवों के लिए नए राजनैतिक सुधारों में उचित स्थान और सेना में यादवों के लिए रेजिमेंट की मांग की थी।1911 में सम्राट जार्ज पंचम के हिंदुस्तान में ताजपोशी के दरबार में प्रतिष्टित जगह से शामिल हो कर वह उन अँगरेज़ अफसरों को भी दंग कर दिए जिनके विरुद्ध वे वर्षों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे।1917 में कांग्रेस के कलकत्ता विशेष अधिवेशन में वे सबसे पहले पूर्ण स्वराज्य की मांग की थी। कलकत्ता से छपने वाली हिंदुस्तान का तत्कालीन प्रतिष्टित अंग्रेजी दैनिक अमृता बाज़ार पत्रिका ने रासबिहारी लाल मंडल की अदम्य साहस और अभूतपूर्व निर्भीकता की प्रशंसा की और अनेक लेख और सम्पादकीय लिखी, और दरभंगा महराज ने उन्हें 'मिथिला का शेर' कह कर संबोधित किया था। 27 अप्रैल, 1908 के सम्पादकीय में अमृता बाज़ार पत्रिका ने कलकत्ता उच्च न्यायलय के उस आदेश पर विस्तृत टिप्पणी की थी जिसमें भागलपुर के जिला पदाधिकारी लायल के रासबिहारी बाबू के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यवहार को देखते हुए उनके विरुद्ध सभी मामले को दरभंगा हस्तांतरित कर दिया था। 1918 में बनारस में ५१ वर्ष की आयु में जब रासबिहारी बाबू का निधन हुआ तो वहीँ बी पी मंडल का जन्म हुआ। रासबिहारी लाल मंडल के बड़े पुत्र भुब्नेश्वरी प्रसाद मंडल थे जो १९२४ में बिहार-उड़ीसा विधान परिषद् के सदस्य थे, तथा १९४८ में अपने मृत्यु तक भागलपुर लोकल बोर्ड (जिला परिषद्) के अध्यक्ष थे। दूसरे पुत्र कमलेश्वरी प्रसाद मंडल आज़ादी की लड़ाई में जय प्रकाश बाबू वगैरह के साथ गिरफ्तार हुए थे और हजारीबाग सेन्ट्रल जेल में थे और १९३७ में बिहार विधान परिषद् के सदस्य चुने गए थे। कहते हैं की एक समय कलकत्ता में रासबिहारी बाबू से राजनैतिक रूप से जुड़े प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के कारण मधेपुरा विधान सभा से 1952 के प्रथम चुनाव में बी पी मंडल काँग्रेस के प्रत्याशी बने और 1952 में बहुत काम उम्र में मधेपुरा विधान सभा से सदस्य चुने गए। 1962 में पुनः चुने गए और 1967 में मधेपुरा से लोक सभा सदस्य चुने गए1965 में मधेपुरा क्षेत्र के पामा गाँव में हरिजनों पर सवर्णों एवं पुलिस द्वारा अत्याचार पर वे विधानसभा में गरजते हुए कांग्रेस को छोड़ सोशिअलिस्ट पार्टी में आ चुके थे। बड़े नाटकीय राजनैतिक उतार-चढ़ाव के बाद १ फ़रवरी,१९६८ में बिहार के पहले यादव मुख्यमंत्री बने। इसके लिए उन्होंने सतीश बाबू को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनवाए। अतः सतीश बाबू को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनाने वाले स्व बी पी मंडल ही थे। बी पी मंडल ६ महीने तक सांसद थे, और बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी थे। वे राम मनोहर लोहिया जी एवं श्रीमती इंदिरा गाँधी की इच्छा के विरुद्ध बिहार में पहले पिछड़े समाजके मुख्यमंत्री बनने जा रहे थे। परन्तु विधानसभा में बहुमत के बावजूद तत्कालीन राज्यपाल अयंगर साहेब रांची जाकर बैठ गए और मंडल जी को शपथ दिलाने से इस आधार पर इंकार कर दिया कि बी पी मंडल बिहार में बिना किसी सदन के सदस्य बने ६ महीने तक मंत्री रह चुके है। परन्तु बी पी मंडल ने राज्यपाल को चुनौती दी और इस परिस्थिति से निकलने के लिए तय किया गया की सतीश बाबू एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बन कर इस्तीफा देंगे जिससे बी पी मंडल के मुख्यमंत्री बनने में राज्यपाल द्वारा खड़ा किया गया अरचन दूर किया जा सके। अब इंदिरा गाँधी और लोहिया जी सभी मंडल जी के व्यक्तित्व से डरते थे और नहीं चाहते थे की सतीश बाबू इस्तीफा दें। परन्तु सतीश बाबू ने बी पी मंडल का ही साथ दिया। आगे की कहानी और दिलचस्प है। उन्ही दिनों बरौनी रिफायनरी में तेल का रिसाव गंगा में हो गया और उसमें आग लग गयी। बिहार विधान सभा में पंडित बिनोदानंद झा ने कहा कि शुद्र मुख्यमंत्री बना है तो गंगा में आग ही लगेगी! साक्ष्य तो इस प्रकरण का बिहार विधानसभा के रिकार्ड में है - बात पहले बिहार विधान सभा की है, जब स्व बी पी मंडल ने आपत्ति की थी कि यादवों के लिए विधान सभा में 'ग्वाला' शब्द का प्रयोग किया गया।सभापति सहित कई सदस्यों ने कहा की यह असंसदीय कैसे हो सकता है क्योंकि यह शब्दकोष (Dictionary) में लिखा हुआ है। स्व मंडल ने कुछ गालियों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये भी तो शब्दकोष (Dictionary) में है, फिर इन्हें असंसदीय क्यों माना जाता है। सभापति ने स्व मंडल की बात मानते हुए, यादवों के लिए 'ग्वाला' शब्द के प्रयोग को असंसदीय मान लिया। लेकिन उन दिनों किन जातिवादी हालातों में बाते हो रही थी, इसका अंदाज़ मुश्किल है। 1968 में उपचुनाव जीत कर पुनः लोक सभा सदस्य बने।1972 में मधेपुरा विधान सभा से सदस्य चुने गए। 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर मधेपुरा लोक सभा से सदस्य बने। 1977 में जनता पार्टी के बिहार संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के नाते लालू प्रसाद को कर्पूरी ठाकुर और सत्येन्द्र नारायण सिंह के विरोध के बावजूद छपरा से लोक सभा टिकट मंडल जी ने ही दिया। 1978 में कर्णाटक के चिकमंगलूर से श्रीमती इंदिरा गाँधी के लोक सभा में आने पर जब उनकी सदस्यता रद्द की जा रही थी, तो मंडल जी ने इसका पुरजोर विरोध किया। 1.1.1979 को प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने बी पी मंडल को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया, जिस जबाबदेही को मानल जी ने बखूबी निभाया।इनके दिए गए रिपोर्ट को लाख कोशिश के बावजूद सर्वोच्च न्यायलय में ख़ारिज नहीं किया जा सका।खैर, उसके बाद की घटनाएं तो तात्कालिक इतिहास में दर्ज है और जो हममें से बहुतों को अच्छी तरह याद है.स्व बी पी मंडल जी की मृत्यु 13 अप्रैल,1982 को 63 वर्ष की आयु में हो गयी।
स्व बी पी मंडल के जयंती पर उनकी स्मृति को अनेकों बार नमन।